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मुझे जीने का सच्चा मकसद मिला

मुझे जीने का सच्चा मकसद मिला

मुझे जीने का सच्चा मकसद मिला

गास्पार मारटीनेस की ज़ुबानी

मेरी कहानी एक तरह से बहुत मामूली कहानी है। मैं गाँव का एक गरीब लड़का था जो शहर जाकर अमीर बन गया। लेकिन जैसा कि आप आगे पढ़ेंगे, मैंने जो दौलत हासिल की वह ऐसी दौलत नहीं थी जिसके सपने लिए मैं शहर आया था।

मैं 1930 के दशक में एक गाँव में पला-बढ़ा था जो लगभग बंजर था। यह गाँव उत्तरी स्पेन के रीओहा इलाके में आता है। दस साल की उम्र में मेरी स्कूल की पढ़ाई छूट गयी, लेकिन तब तक मैंने पढ़ना-लिखना सीख लिया था। अपने छ: भाई-बहनों के साथ मैं दिन-भर मैदानों में भेड़ें चराता या हमारी थोड़ी-सी ज़मीन पर खेती करता था।

गरीब होने की वजह से हमें लगा कि दुनिया में धन-दौलत ही सबकुछ है। हम उन लोगों से जलते थे जिनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी। फिर भी, एक बार एक बिशप ने कहा कि “उसके हलके में हमारा गाँव ही ऐसा है जहाँ लोग अपने धर्म के बड़े पक्के हैं।” मगर उसको इस बात का एहसास नहीं था कि समय के गुज़रते इसी गाँव के कई लोग कैथोलिक धर्म छोड़ देंगे।

एक बेहतर ज़िंदगी की तलाश में

बड़े होने पर मैंने अपने ही गाँव की एक लड़की मर्सेथेस से शादी की और कुछ ही समय बाद हमारे घर एक नन्हा मेहमान आया। अब हमारे कंधों पर एक बेटे की ज़िम्मेदारी आ गयी। सन्‌ 1957 में हम पास के एक शहर लोगरोनो चले गए और धीरे-धीरे मेरे परिवार के सभी लोग वहाँ आकर बस गए। जल्द ही मुझे इस बात का एहसास हुआ कि बिना किसी खास हुनर के मेरे लिए अपने परिवार का पेट पालना बहुत मुश्‍किल होगा। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि करूँ तो क्या करूँ, किससे सलाह लूँ? हालाँकि मुझे पता नहीं था कि मैं क्या ढूँढ़ू मगर मैं शहर की लाइब्रेरी में जाकर खोजबीन करने लगा।

बाद में मैंने एक रेडियो प्रोग्राम के बारे में सुना जो पत्र-व्यवहार के ज़रिए बाइबल अध्ययन का कोर्स चलाता है। मैंने वह कोर्स किया और कोर्स खत्म होते ही कुछ प्रोटेस्टेंट प्रचारकों ने मुझसे संपर्क किया। मैं दो-चार बार उनकी उपासना की जगह पर गया और इस बीच मैं देख सका कि उनके समूह के नामी-गिरामी सदस्यों में होड़ लगी रहती थी। मैं दोबारा उस जगह नहीं गया और इस नतीजे पर पहुँचा कि सभी धर्मों में ऐसा ही होता होगा।

ज़िंदगी में क्या मायने रखता है, अब मैं समझा

सन्‌ 1964 में एयूखेन्यो नाम का एक जवान आदमी हमारे घर आया। वह यहोवा का साक्षी था। इस धर्म के बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। लेकिन उसके साथ बाइबल पर चर्चा करने के लिए मैं फौरन राज़ी हो गया। मुझे लगा कि मैं बाइबल के बारे में बहुत कुछ जानता हूँ। चर्चा के दौरान मैंने बाइबल से उन चंद आयतों का इस्तेमाल किया जो मैंने कोर्स के दौरान सीखी थीं। हालाँकि मैंने कुछ प्रोटेस्टेंट शिक्षाओं को सही साबित करने की कोशिश की, मगर मुझे खुद उन शिक्षाओं पर पूरा विश्‍वास नहीं था।

एयूखेन्यो के साथ दो बार लंबी बातचीत होने के बाद मुझे मानना पड़ा कि वह बाइबल का इस्तेमाल करने में बड़ा माहिर है। मैं यह देखकर हैरान रह गया कि मुझसे कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद वह किसी भी विषय पर बाइबल से आयतें दिखा सकता था और उन्हें समझा सकता था। एयूखेन्यो ने मुझे बाइबल से दिखाया कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं और परमेश्‍वर का राज बहुत जल्द इस धरती को फिरदौस बना देगा। यह सब सुनकर बाइबल के बारे में सीखने की मेरी दिलचस्पी और भी बढ़ गयी।—भज. 37:11, 29; यशा. 9:6, 7; मत्ती 6:9, 10.

मैं फौरन बाइबल अध्ययन करने के लिए राज़ी हो गया। बाइबल से सीखी लगभग सारी बातें मेरे लिए नयी थीं और वे मेरे दिल को छू गयीं। मुझे जिस चीज़ की तलाश थी, वह आखिर मुझे मिल ही गयी। मुझे जीने का सच्चा मकसद मिल गया। अब मेरे लिए ये बातें कोई मायने नहीं रखती थीं कि मुझे समाज में ऊपर उठना है या ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसा कमाना है। क्योंकि यहोवा बहुत जल्द इन समस्याओं का हल करेगा। यहाँ तक कि वह बीमारी और मौत को भी मिटा देगा।—यशा. 33:24; 35:5, 6; प्रका. 21:4.

मैं बाइबल से सीखी बातें तुरंत अपने सगे-संबंधियों को बताने लगा। मैं बड़े जोश के साथ उन्हें समझाता था कि परमेश्‍वर ने धरती को फिरदौस बनाने का वादा किया है और उसमें वफादार लोग हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे।

मेरे परिवार ने बाइबल की सच्चाई अपनायी

देखते-ही-देखते मेरे परिवार से करीब 12 लोगों ने यह तय किया कि हम हर रविवार, दोपहर को मेरे चाचा के घर इकट्ठा होंगे और बाइबल के वादों पर चर्चा करेंगे। हमारी यह चर्चा दो-दो, तीन-तीन घंटे तक चलती थी। जब एयूखेन्यो ने देखा कि मेरे इतने सारे रिश्‍तेदारों को बाइबल में दिलचस्पी है, तो उसने हर परिवार के साथ बाइबल अध्ययन करने का इंतज़ाम किया।

मेरे कुछ और रिश्‍तेदार ड्यूरैंगो नाम के एक छोटे-से कसबे में रहते थे जो मेरे घर से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर है। वहाँ पर कोई साक्षी नहीं रहता। इसलिए तीन महीने बाद मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर अपने इन रिश्‍तेदारों से मिलने गया ताकि मैं इन्हें अपने नए विश्‍वास के बारे में बता सकूँ। हर शाम करीब दस लोग इकट्ठा होते थे और मैं देर रात तक उन्हें अपने विश्‍वास के बारे में समझाता था। वे सभी खुशी-खुशी मेरी बातें सुनते थे। जब मेरे जाने का वक्‍त आया तो मैंने उनको बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाली कुछ किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए दीं। तब से हम फोन या खतों के ज़रिए एक-दूसरे के संपर्क में रहे।

जब यहोवा के साक्षी पहली बार प्रचार करने ड्यूरैंगो आए तो 18 लोग बाइबल का अध्ययन करने के लिए उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। साक्षियों ने खुशी-खुशी हर परिवार के लिए बाइबल अध्ययन का बंदोबस्त किया।

तब तक मर्सेथेस ने सच्चाई में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी। ऐसी बात नहीं कि उसे बाइबल की शिक्षाओं से एतराज़ था बल्कि उसमें इंसान का डर समाया हुआ था। दरअसल उस वक्‍त स्पेन में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी थी। मर्सेथेस को डर था कि अधिकारी हमारे दोनों बच्चों को स्कूल से निकाल देंगे और हम समाज से बेदखल कर दिए जाएँगे। लेकिन जब उसने देखा कि हमारा पूरा खानदान बाइबल की सच्चाई अपना रहा है तो वह भी बाइबल सीखने के लिए तैयार हो गयी।

दो साल के अंदर मेरे परिवार के 40 सदस्यों ने बपतिस्मा लिया और साक्षी बन गए। अब मेरे परिवार का भी वही मकसद और लक्ष्य था जो मेरा था। मुझे लगा जैसे मैंने दुनिया-जहान की दौलत पा ली है। जी हाँ, यहोवा ने मेरे लिए आशीषों के झरोखे खोल दिए।

उम्र ढलती गयी, पर खुशियाँ बढ़ती गयीं

अगले 20 साल तक, मैंने अपना पूरा ध्यान हमारे दोनों बेटों की परवरिश करने और मंडली की मदद करने में लगाया। जब मैं और मर्सेथेस लोगरोनो आए थे, तब शहर की एक लाख आबादी में सिर्फ 20 साक्षी थे। इसलिए कुछ ही समय में मुझे मंडली में कई ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं।

जब मैं 56 साल का था, तब अचानक मेरी कंपनी ने वह फैक्टरी बंद कर दी जिसमें मैं काम करता था। मैं बेरोज़गार हो गया। मेरी हमेशा से तमन्‍ना थी कि मैं पूरे समय की सेवा करूँ इसलिए इन हालात का फायदा उठाते हुए मैं पायनियर बन गया। मुझे जो पेंशन मिलती थी उससे घर का गुज़ारा चलाना आसान नहीं था। मेरी पत्नी ने पार्ट-टाइम नौकरी कर मेरी काफी मदद की। इस तरह हम अपने घर की गाड़ी चला पाए और हमें ज़रूरी चीज़ों की कभी घटी नहीं हुई। मैं आज भी पायनियर सेवा कर रहा हूँ और मर्सेथेस समय-समय पर सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा करती है। उसे प्रचार काम करने में बड़ा मज़ा आता है।

कुछ साल पहले मर्सेथेस, मरचे नाम की एक जवान स्त्री को बराबर पत्रिकाएँ देती थी। मरचे ने बचपन में साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन किया था, इसलिए वह हमारी पत्रिकाएँ बड़े चाव से पढ़ती थी। मर्सेथेस ने गौर किया कि मरचे अब भी सच्चाई की कदर करती है। आखिरकार, मरचे बाइबल अध्ययन करने के लिए तैयार हो गयी और अच्छी तरक्की करने लगी। लेकिन उसके पति बीथेनटे को पीने की बुरी लत थी, इसलिए वह किसी भी नौकरी में टिक नहीं पाता था। इस वजह से वह घर-गृहस्थी चलाने में मरचे की कोई मदद नहीं करता था और उनकी शादी टूटने पर थी।

मेरी पत्नी ने मरचे से कहा, ‘क्यों न तुम बीथेनटे से कहो कि वह मेरे पति से बात करे।’ मरचे के बहुत कहने पर बीथेनटे मुझसे बात करने के लिए राज़ी हुआ। कई मुलाकातों के बाद वह भी बाइबल अध्ययन करने लगा। धीरे-धीरे उसने अपने आपको बदलना शुरू किया। पहले उसने कुछ दिनों के लिए शराब पीना बंद किया। फिर उसने हफ्ते-भर या उससे ज़्यादा समय तक शराब को हाथ नहीं लगाया। एक दिन ऐसा आया कि उसने पूरी तरह शराब छोड़ दी। इस बदलाव से उसके चेहरे पर रौनक आ गयी। उसका बिखरता परिवार फिर से एक हो गया। आज वह अपनी पत्नी और बेटी के साथ कैनरी द्वीपसमूह में रहता है। और वे वहाँ की एक छोटी-सी मंडली को पूरा-पूरा सहयोग देते हैं।

एक खुशहाल ज़िंदगी की यादें ताज़ा करना

सालों पहले हमारे जिन रिश्‍तेदारों ने सच्चाई सीखी थी, उनमें से कुछ अब नहीं रहे। मगर हमारा खानदान बढ़ता ही गया और यहोवा ने हमें बेशुमार आशीषें दी हैं। (नीति. 10:22) यह देखकर मेरे दिल को कितनी खुशी होती है कि 40 साल पहले मेरे जिन सगे-संबंधियों ने बाइबल सीखना शुरू किया था, उनमें से लगभग सभी आज तक अपने बच्चों और नाती-पोतों के साथ यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

आज मेरे बहुत-से रिश्‍तेदार साक्षी हैं और उनमें से कई प्राचीन, सहायक सेवक और पायनियर के तौर पर सेवा कर रहे हैं। मेरा बड़ा बेटा और बहू स्पेन के मैड्रिड शहर में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में सेवा कर रहे हैं। जब मैं साक्षी बना था उस वक्‍त स्पेन में तकरीबन 3,000 साक्षी थे। आज यह गिनती एक लाख से ऊपर हो गयी है। मैं पूरे समय की सेवा का भरपूर लुत्फ उठा रहा हूँ। यहोवा की सेवा में मेरी ज़िंदगी बहुत अच्छी गुज़री है और इस बात के लिए मैं यहोवा का शुक्रगुज़ार हूँ। कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद मुझे यह सुअवसर मिला कि मैं सफरी अध्यक्ष की गैर-हाज़िरी में मंडलियों का दौरा करूँ।

कुछ साल पहले मुझे पता चला कि जिस गाँव में मैं बड़ा हुआ था, वहाँ इक्के-दुक्के लोग ही रह गए हैं। गरीबी की मार से लगभग सभी गाँववाले अपना घर-बार, खेत-खलिहान छोड़ बेहतर ज़िंदगी की तलाश में निकल पड़े। खुशी की बात यह है कि उनमें से कई लोगों ने और खुद मैंने यहोवा की सेवा करने का अनमोल खज़ाना पाया है। हमने सीखा कि ज़िंदगी का सचमुच एक मकसद है और यहोवा की सेवा करने से हमें अपनी उम्मीदों से कहीं बढ़कर खुशी मिलती है।

[पेज 32 पर तसवीर]

भाई मारटीनेस का लगभग पूरा परिवार, जो सच्चाई में है