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यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा का कोई मोल नहीं लगाया जा सकता

यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा का कोई मोल नहीं लगाया जा सकता

यहोवा से मिलनेवाली शिक्षा का कोई मोल नहीं लगाया जा सकता

“मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के बारे में उस ज्ञान की खातिर जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता, सब बातों को वाकई नुकसान समझता हूँ।”—फिलि. 3:8.

1, 2. कुछ मसीहियों ने क्या फैसला किया है? और किस बात ने उन्हें ऐसा करने के लिए उकसाया?

 रॉबर्ट बचपन से स्कूल में अव्वल आता था। जब वह सिर्फ आठ साल का था, तब उसकी एक टीचर खास उससे मिलने उसके घर आयी। उसने रॉबर्ट से कहा, ‘तुम तो आसमान की बुलंदियाँ छूने के लिए पैदा हुए हो। देखना एक दिन तुम बहुत बड़े डॉक्टर बनोगे।’ आगे चलकर हाई स्कूल में वह बहुत ही अच्छे नंबरों से पास हुआ। इस वजह से उसे ऊँची शिक्षा के लिए अपने देश की अच्छी-से-अच्छी यूनिवर्सिटी में आसानी से दाखिला मिल सकता था। बहुतों को लगा कि ऐसा मौका ज़िंदगी में बार-बार नहीं आता। लेकिन रॉबर्ट ने यह मौका ठुकरा दिया, क्योंकि वह पायनियर बनना चाहता था।

2 रॉबर्ट की तरह आज बहुत-से मसीहियों के आगे तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ने के कई मौके हैं। लेकिन कुछ मसीही उन मौकों का पूरा-पूरा फायदा नहीं उठाते क्योंकि वे परमेश्‍वर की सेवा में आगे बढ़ना चाहते हैं। (1 कुरिं. 7:29-31) आखिर रॉबर्ट जैसे मसीहियों को क्या बात उकसाती है कि वे प्रचार काम में अपना तन-मन लगा दें? सबसे बड़ी बात यह है कि वे यहोवा से प्यार करते हैं। इसके अलावा, वे परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा की बहुत कदर करते हैं, जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता। क्या हाल ही में आपने सोचा है कि अगर आपने सच्चाई न सीखी होती, तो आपकी ज़िंदगी कैसी होती? यहोवा से सिखलाए जाने की वजह से हमें जो शानदार आशीषें मिली हैं, उन पर मनन करने से हमारे दिल में खुशखबरी के लिए कदरदानी बनी रहेगी। साथ ही, हम पूरी उमंग के साथ यह खुशखबरी दूसरों को बताते रहेंगे।

परमेश्‍वर से सिखलाए जाने का सम्मान

3. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा असिद्ध इंसानों को सिखाने के लिए तैयार है?

3 यहोवा भला है, इस वजह से वह असिद्ध इंसानों को सिखाने के लिए तैयार है। अभिषिक्‍त मसीहियों के बारे में यशायाह 54:13 में यह भविष्यवाणी की गयी है, “तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी।” ये शब्द मसीह की ‘दूसरी भेड़ों’ पर भी लागू होते हैं। (यूह. 10:16) यह बात यशायाह की एक दूसरी भविष्यवाणी से साफ ज़ाहिर होती है जो आज हमारे दिनों में पूरी हो रही है। दर्शन में यशायाह ने देखा कि सब राष्ट्रों के लोग सच्ची उपासना की तरफ उमड़ रहे हैं। और एक-दूसरे से कह रहे हैं, “आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्‍वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।” (यशा. 2:1-3) वाकई, परमेश्‍वर से सिखलाए जाना कितने बड़े सम्मान की बात है!

4. यहोवा जिन लोगों को सिखाता है, उनसे वह क्या चाहता है?

4 यहोवा जिन लोगों को सिखाता है, उनसे वह क्या चाहता है? सबसे ज़रूरी बात है कि वे नम्र हों और सीखने के लिए तैयार हों। भजनहार दाविद ने लिखा, “यहोवा भला और खरा है, . . . नम्र लोगों को वह अपने मार्ग की शिक्षा देता है।” (भज. 25:8, 9, NHT) यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक, मैं सबके सामने तेरी बड़ाई करता हूँ कि तू ने ये बातें बुद्धिमानों और ज्ञानियों से तो बहुत ध्यान से छिपाए रखीं, मगर बच्चों पर ज़ाहिर की हैं।” (लूका 10:21) जी हाँ, यहोवा ‘नम्र लोगों पर महा-कृपा करता है।’ क्या यह जानकर आपके दिल में उसके लिए प्यार नहीं बढ़ जाता?—1 पत. 5:5.

5. किस वजह से हम परमेश्‍वर को जान पाए हैं?

5 क्या हम यह कह सकते हैं कि हम अपनी बुद्धि या काबिलीयत की वजह से सच्चाई जान पाए हैं? जी नहीं। सच तो यह है कि हम अपने बलबूते परमेश्‍वर को कभी नहीं जान पाते। यीशु ने कहा, “कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए।” (यूह. 6:44) यहोवा प्रचार काम और अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए भेड़ समान लोगों को, यानी ‘सारी जातियों की मनभावनी वस्तुओं’ को अपने बेटे के पास खींच रहा है। (हाग्गै 2:7) क्या आप इस बात के लिए एहसानमंद नहीं कि यहोवा आपको भी अपने बेटे के पास खींच लाया है?—यिर्मयाह 9:23, 24 पढ़िए।

ज़िंदगी बदलकर रख देने की ताकत

6. ‘यहोवा का ज्ञान’ लेने से लोगों की ज़िंदगी में क्या बड़े-बड़े बदलाव आ सकते हैं?

6 यशायाह ने अपनी भविष्यवाणी में इस बात की बेहद खूबसूरत तसवीर खींची है कि कैसे लोगों की कायापलट हो जाती है। और यह आज हम सचमुच में होते देख रहे हैं। जो इंसान पहले खूँखार थे, वे अब शांत स्वभाव के हो गए हैं। (यशायाह 11:6-9 पढ़िए।) जो लोग जाति, राष्ट्र या किसी और वजह से एक-दूसरे से नफरत करते थे, उन्होंने अब एकता में रहना सीखा है। यह ऐसा है मानो उन्होंने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल” बनाए हों। (यशा. 2:4) आखिर उनकी ज़िंदगी में ये बड़े-बड़े बदलाव कैसे आए? उन्होंने ‘यहोवा का ज्ञान’ लिया और उसे अपनी ज़िंदगी में लागू किया। हालाँकि वे असिद्ध हैं, फिर भी सही मायनों में अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा उनमें ही पाया जाता है। खुशखबरी का जिस तरह हर किस्म के लोगों पर गहरा असर हो रहा है और इससे जो बढ़िया नतीजे मिल रहे हैं, उनसे साबित होता है कि परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा वाकई अनमोल है।—मत्ती 11:19.

7, 8. (क) परमेश्‍वर की शिक्षा लोगों को “गहराई तक समायी हुई [किन] बातों” से आज़ाद करती है? (ख) क्या बात दिखाती है कि इस शिक्षा से यहोवा की स्तुति होती है?

7 प्रेषित पौलुस ने गवाही देने के काम की तुलना आध्यात्मिक युद्ध से की। उसने कहा, “हमारे युद्ध के हथियार शारीरिक नहीं हैं, बल्कि ऐसे शक्‍तिशाली हथियार हैं जो परमेश्‍वर ने हमें दिए हैं कि हम गहराई तक समायी हुई बातों को जड़ से उखाड़ सकें। हम ऐसी दलीलों को और हर ऐसी ऊँची बात को जो परमेश्‍वर के ज्ञान के खिलाफ खड़ी की जाती है, उलट देते हैं।” (2 कुरिं. 10:4, 5) परमेश्‍वर की शिक्षा लोगों को “गहराई तक समायी हुई [किन] बातों” से आज़ाद करती है? झूठी शिक्षाओं, अंधविश्‍वास और दुनियावी फलसफों जैसी बातों से। (कुलु. 2:8) इस शिक्षा की मदद से लोग बुरे काम छोड़ पाते हैं और परमेश्‍वर को भानेवाले गुण पैदा कर पाते हैं। (1 कुरिं. 6:9-11) परमेश्‍वर से सिखलाए जाने की वजह से परिवार की खुशहाली बढ़ती है। और उन लोगों को जीने का मकसद मिलता है जिनके पास कोई आशा नहीं थी। वाकई, आज लोगों को ऐसी शिक्षा की सख्त ज़रूरत है।

8 यहोवा की मदद से लोग अपने अंदर जो गुण पैदा करते हैं, उनमें से एक है ईमानदारी। इस बारे में ज़रा एक अनुभव पर ध्यान दीजिए। (इब्रा. 13:18) भारत में रहनेवाली एक स्त्री ने बाइबल अध्ययन करना शुरू किया और कुछ समय बाद वह बपतिस्मा-रहित प्रचारक बन गयी। एक दिन जब वह राज्य घर के निर्माण में हाथ बँटाने के बाद घर लौट रही थी, तो बस अड्डे के पास उसे सोने की एक चेन पड़ी मिली। उस चेन की कीमत लगभग 40,000 रुपए थी। हालाँकि वह स्त्री गरीब थी, फिर भी वह एक प्राचीन के साथ पुलिस स्टेशन गयी और सोने की चेन उनके हवाले कर दी। यह देखकर पुलिस इंस्पेक्टर को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ! बाद में, एक दूसरे इंस्पेक्टर ने स्त्री से पूछा, “आपने यह चेन किस वजह से लौटायी?” स्त्री ने जवाब दिया, “बाइबल की वजह से। बाइबल से मैंने सीखा है कि हमें ईमानदार होना चाहिए, इसलिए मैंने यह चेन लौटायी।” इन बातों का इंस्पेक्टर पर इतना अच्छा असर हुआ कि उसने प्राचीन से कहा, “इस राज्य में 3 करोड़ 80 लाख से भी ज़्यादा लोग हैं। अगर आप दस लोगों को भी इस स्त्री की तरह ईमानदार बना दें, तो यह बहुत बड़ी कामयाबी होगी।” जब हम गौर करते हैं कि कैसे परमेश्‍वर से सिखलाए जाने की बदौलत लाखों लोगों की ज़िंदगी सँवर गयी है, तो क्या हमें यहोवा की स्तुति करने की ढेरों वजह नहीं मिलतीं?

9. किस तरह लोग अपनी ज़िंदगी में ज़बरदस्त बदलाव ला सकते हैं?

9 परमेश्‍वर के वचन और पवित्र शक्‍ति की मदद से लोग अपनी ज़िंदगी में ज़बरदस्त बदलाव लाते हैं। (रोमि. 12:2; गला. 5:22, 23) कुलुस्सियों 3:10 कहता है, “सही ज्ञान के जरिए वह नयी शख्सियत पहन लो जिसकी रचना परमेश्‍वर करता है। और इसे लगातार नया बनाते जाओ, ताकि तुम्हारी यह शख्सियत परमेश्‍वर की छवि के मुताबिक हो।” बाइबल के संदेश में इतनी ताकत है कि यह एक इंसान के दिल में छिपे इरादों को खोलकर रख देता है। यहाँ तक कि उसकी सोच और भावनाओं को भी बदल सकता है। (इब्रानियों 4:12 पढ़िए।) सचमुच, यहोवा के वचन का सही ज्ञान लेने और उसके नेक स्तरों पर चलने से एक इंसान परमेश्‍वर का मित्र बन सकता है। और हमेशा की ज़िंदगी की आशा पा सकता है।

यहोवा हमें भविष्य के लिए तैयार करता है

10. (क) क्यों सिर्फ यहोवा ही हमें भविष्य के लिए तैयार कर सकता है? (ख) बहुत जल्द क्या होनेवाला है जिसका असर पूरी दुनिया पर होगा?

10 सिर्फ यहोवा ही हमें भविष्य के लिए तैयार रहने में मदद दे सकता है, क्योंकि वह जानता है कि आगे क्या होनेवाला है। वही तय करता है कि मानवजाति का आनेवाला कल कैसा होगा। (यशा. 46:9, 10) बाइबल की भविष्यवाणी बताती है कि “यहोवा का भयानक दिन निकट है।” (सप. 1:14) उस दिन नीतिवचन 11:4 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) के ये शब्द सच साबित होंगे, “कोप के दिन धन व्यर्थ रहता, काम नहीं आता है; किन्तु तब नेकी लोगों को मृत्यु से बचाती है।” जब यहोवा शैतान की इस दुनिया पर न्यायदंड लाएगा तब यह बात सबसे ज़्यादा मायने रखेगी कि हम पर परमेश्‍वर की मंज़ूरी है या नहीं। उस समय धन-दौलत किसी काम नहीं आएगी। दरअसल यहेजकेल 7:19 कहता है, “वे अपनी चान्दी सड़कों में फेंक देंगे, और उनका सोना अशुद्ध वस्तु ठहरेगा।” भविष्य के बारे में यह जानकारी हमारी मदद करती है कि आज हम बुद्धि से काम लें।

11. परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा हमें भविष्य के लिए कैसे तैयार करती है?

11 परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा हमें उसके आनेवाले दिन के लिए कैसे तैयार करती है? एक तरीका है कि यह हमें ज़रूरी बातों को ज़िंदगी में पहली जगह देने में हमारी मदद करती है। प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा, “जो इस ज़माने में दौलतमंद हैं, उन्हें आदेश दो कि वे अभिमानी न बनें और अपनी आशा उस धन पर न रखें जो आज है और कल नहीं रहेगा, बल्कि . . . परमेश्‍वर पर रखें।” भले ही हम दौलतमंद न हों, फिर भी परमेश्‍वर की प्रेरणा से दी गयी इस सलाह से हम फायदा पा सकते हैं। वह कैसे? पैसा कमाने या साज़ो-सामान बटोरने के बजाय हमें चाहिए कि हम “ऐसे काम करें जो दूसरों के लिए अच्छे हैं” और “भले कामों में धनी बनें।” यहोवा की सेवा को ज़िंदगी में पहली जगह देकर हम ‘अपने लिए ऐसा खज़ाना जमा करते हैं, जो भविष्य के लिए बढ़िया नींव बन जाएगा।’ (1 तीमु. 6:17-19) इस तरह त्याग की ज़िंदगी जीकर हम व्यावहारिक बुद्धि का सबूत देते हैं। क्योंकि जैसे यीशु ने कहा, “अगर एक इंसान सारा जहान हासिल कर ले, मगर इसकी कीमत चुकाने के लिए उसे अपनी जान देनी पड़े, तो इसका क्या फायदा?” (मत्ती 16:26, 27) अब क्योंकि यहोवा का दिन बहुत करीब है, हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं कहाँ धन जमा कर रहा हूँ? क्या मैं परमेश्‍वर की सेवा कर रहा हूँ या धन-दौलत की गुलामी?’—मत्ती 6:19, 20, 24.

12. जब कुछ लोग हमारे प्रचार काम को कौड़ी का समझते हैं, तो हमें क्यों दिल छोटा नहीं करना चाहिए?

12 परमेश्‍वर के वचन में बताए “भले कामों” में सबसे अहम काम है, राज का प्रचार करना और चेला बनाना, जिससे लोगों की जान बच सकती है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) लेकिन कुछ लोग शायद हमारे इस काम को कौड़ी का समझें, ठीक जैसे पहली सदी में लोग समझते थे। (1 कुरिंथियों 1:18-21 पढ़िए।) मगर इससे हमारे संदेश का मोल कम नहीं होता और न इस बात की अहमियत घटती है कि हर इंसान को इस संदेश पर विश्‍वास करने का मौका दिया जाना चाहिए। (रोमि. 10:13, 14) जब हम दूसरों की मदद करते हैं कि वे परमेश्‍वर की शिक्षा से फायदा पाएँ, तो यहोवा हमें बेशुमार आशीषें देता है।

त्याग करने से मिलती हैं आशीषें

13. खुशखबरी की खातिर प्रेषित पौलुस ने क्या त्याग किए?

13 मसीह बनने से पहले प्रेषित पौलुस यहूदी समाज में नामो-शोहरत कमाने की तालीम हासिल कर रहा था। तेरह साल की उम्र में वह अपना शहर तरसुस छोड़कर यरूशलेम गया। वहाँ उसने गमलीएल से शिक्षा पायी, जो मूसा के कानून का शिक्षक था और जिसकी लोग बहुत इज़्ज़त करते थे। (प्रेषि. 22:3) फिर ऐसा वक्‍त आया जब पौलुस अपनी जाति और उम्र के कई लोगों से कहीं ज़्यादा तरक्की करने लगा और अगर वह यहूदी धर्म में बना रहता तो बहुत ऊँचे ओहदे पर होता। (गला. 1:13, 14) मगर जब उसने खुशखबरी कबूल की और प्रचार काम का बीड़ा उठाया तो उसने सबकुछ पीछे छोड़ दिया। क्या पौलुस को अपने फैसले पर कभी मलाल हुआ? कभी नहीं। उलटा उसने कहा, “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु के बारे में उस ज्ञान की खातिर जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता, सब बातों को वाकई नुकसान समझता हूँ। उसी की खातिर मैंने सब बातों का नुकसान उठाया है और मैं इन्हें ढेर सार कूड़ा समझता हूँ।”—फिलि. 3:8.

14, 15. “परमेश्‍वर के सहकर्मी” होने के नाते हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

14 पौलुस की तरह, आज मसीही भी खुशखबरी की खातिर कई त्याग करते हैं। (मर. 10:29, 30) क्या ऐसा करने की वजह से हमें किसी चीज़ की घटी हुई है? गौर कीजिए रॉबर्ट ने क्या कहा जिसका शुरू में ज़िक्र किया गया है। वह कहता है, “मुझे अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं। पूरे समय की सेवा से मुझे सच्ची खुशी और गहरा संतोष मिला है। मैंने यह ‘परखकर देखा है कि यहोवा सचमुच भला है!’ जब-जब मैंने यहोवा की सेवा में आगे बढ़ने के लिए त्याग किए हैं, यहोवा ने मुझे उससे कहीं ज़्यादा आशीषें दी हैं। मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने कुछ खोया नहीं, हमेशा पाया है।” रॉबर्ट की तरह कई मसीही ऐसा ही महसूस करते हैं।—भज. 34:8; नीति. 10:22.

15 अगर आप काफी समय से प्रचार और सिखाने के काम में हिस्सा ले रहे हैं, तो बेशक आपको भी यह परखकर देखने के कई मौके मिले होंगे कि यहोवा कैसा भला है। क्या कभी खुशखबरी सुनाते वक्‍त आपको ऐसा लगा कि पवित्र शक्‍ति आपकी मदद कर रही है? क्या कभी आपने देखा है कि खुशखबरी सुनने से कैसे दूसरों की आँखें खुशी से चमक उठती हैं क्योंकि यहोवा ने उनके दिल के द्वार खोल दिए हैं? (प्रेषि. 16:14) क्या यहोवा ने रुकावटें पार करने में आपकी मदद की है? हो सकता है उसकी मदद से आपने कोई ऐसी रुकावट पार की हो जो आपको प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने से रोक रही थी। क्या यहोवा ने मुश्‍किल घड़ी में आपको सँभाला है? और जब आपको लगा कि उसकी सेवा करते रहने के लिए आपमें ताकत नहीं रही, तो क्या उसने आपको ताकत नहीं दी? (फिलि. 4:13) जब हम प्रचार में खुद अनुभव करते हैं कि कैसे यहोवा हमारी मदद करता है, तो वह हमें और भी सच्चा लगने लगता है और हम उसके करीब आते हैं। (यशा. 41:10) क्या प्रचार के इस शानदार काम में “परमेश्‍वर के सहकर्मी” होना एक आशीष नहीं?—1 कुरिं. 3:9.

16. दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने के लिए आप जो मेहनत और त्याग करते हैं, उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

16 बहुत-से लोग ज़िंदगी में कुछ ऐसा काम करना चाहते हैं, जिसे दुनिया हमेशा याद करे। लेकिन अकसर हमने देखा है कि दुनिया, लोगों की बड़ी-से-बड़ी कामयाबियाँ भी बहुत जल्द भूल जाती है। मगर दूसरी तरफ, यहोवा अपने नाम को पवित्र करने के लिए अपने सेवकों से जो-जो काम करवा रहा है, वे कभी नहीं भुलाए जाएँगे। इसके बजाय ये काम यहोवा के लोगों के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज़ किए जाएँगे। (नीति. 10:7; इब्रा. 6:10) ऐसा हो कि दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने का हमें जो सम्मान मिला है, उसकी हम हमेशा कदर करें।

आप क्या जवाब देंगे?

• यहोवा जिन लोगों को सिखाता है, उनसे वह क्या चाहता है?

• परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा किस तरह लोगों की ज़िंदगी सँवार देती है?

• दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने से हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

यहोवा से सिखलाए जानेवालों में ही सही मायनों में अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा पाया जाता है

[पेज 24 पर तसवीर]

क्या “परमेश्‍वर के सहकर्मी” होना हमारे लिए एक आशीष नहीं?