इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

“परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो”

“परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो”

“परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो”

“अपने काम में आलस न दिखाओ। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो। यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो।”—रोमि. 12:11.

1. पुराने ज़माने में, इसराएली जानवरों के बलिदान और दूसरी भेंटें क्यों चढ़ाते थे?

 यहोवा के सेवक उसके लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने और उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए खुशी-खुशी त्याग करते हैं। और यहोवा उनके त्याग की बहुत कदर करता है। उसने पुराने ज़माने में इसराएलियों के चढ़ाए जानवरों के बलिदान और दूसरी भेंटें कबूल की। इसराएलियों ने यह सब मूसा के कानून के मुताबिक किया। उन्होंने अपने पापों की माफी पाने के लिए बलिदान चढ़ाए और अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए भेंटें चढ़ायीं। हालाँकि आज यहोवा, मसीही मंडली से इस तरह के बलिदानों की माँग नहीं करता, फिर भी उनसे उम्मीद की जाती है कि वे दूसरे किस्म के बलिदान चढ़ाएँ। यही बात, प्रेषित पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी के 12वें अध्याय में बतायी। आइए देखें कि आज हम ये बलिदान कैसे चढ़ा सकते हैं।

एक जीवित बलिदान

2. मसीहियों के नाते हम कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए? इसके लिए हमें क्या करना होगा?

2 रोमियों 12:1, 2 पढ़िए। पौलुस ने अपनी चिट्ठी की शुरूआत में साफ-साफ बताया कि अभिषिक्‍त मसीही चाहे यहूदी हों या गैर-यहूदी, उन्हें परमेश्‍वर के सामने उनके विश्‍वास के आधार पर नेक ठहराया गया है, न कि उनके कामों के आधार पर। (रोमि. 1:16; 3:20-24) अध्याय 12 में पौलुस समझाता है कि मसीहियों को यहोवा के लिए अपना एहसान ज़ाहिर करने के लिए त्याग की ज़िंदगी जीनी चाहिए। इसके लिए हमें अपने मन को नयी दिशा देनी होगी। विरासत में मिली असिद्धता की वजह से हम “पाप और मौत के कानून” के अधीन हैं। (रोमि. 8:2) इसलिए हमें “अपने मन को प्रेरित करनेवाली शक्‍ति को नया” बनाने की ज़रूरत है। यह हम तभी कर पाएँगे, जब हम अपने मन के रुझान को पूरी तरह बदलेंगे। (इफि. 4:23) यह बदलाव सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर और उसकी पवित्र शक्‍ति की मदद से हो सकता है। इसमें यह भी ज़रूरी है कि हम अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” का इस्तेमाल कर यह बदलाव लाने की ठान लें। इसका मतलब है कि हम “इस दुनिया की व्यवस्था के मुताबिक खुद को ढालना बंद” करने में अपना भरसक करें, जिसके नैतिक मूल्य गिरते जा रहे हैं और जो घटिया किस्म के मनोरंजन और गंदी सोच से भरी पड़ी है।—इफि. 2:1-3.

3. हम मसीही कामों में क्यों हिस्सा लेते हैं?

3 पौलुस हमें यह भी न्यौता देता है कि “परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी सिद्ध इच्छा” मालूम करते रहने के लिए हम अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” का इस्तेमाल करें। ज़रा सोचिए: हम क्यों हर दिन बाइबल पढ़ते, मनन और प्रार्थना करते हैं? हम क्यों मसीही सभाओं में हाज़िर होते और राज की खुशखबरी सुनाते हैं? क्या इसलिए कि मंडली के प्राचीन हमें ऐसा करने के लिए उकसाते हैं? कुछ हद तक यह सच है कि प्राचीन हमें ऐसा करने के लिए बार-बार याद दिलाते हैं और हम इसके लिए उनके शुक्रगुज़ार भी हैं। लेकिन मसीही कामों में हिस्सा लेने की सबसे बड़ी वजह है कि पवित्र शक्‍ति हमें यहोवा के लिए अपना प्यार दिखाने के लिए उभारती है। इसके अलावा, खुद हमें पक्का यकीन है कि परमेश्‍वर भी हमसे यही चाहता है। (जक. 4:6; इफि. 5:10) यह जानकर हमें क्या ही खुशी और संतोष मिलता है कि सच्ची मसीही ज़िंदगी जीकर हम परमेश्‍वर को आनंदित करते हैं!

अलग-अलग वरदान

4, 5. मसीही प्राचीनों को अपने वरदानों का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए?

4 रोमियों 12:6-8, 11 पढ़िए। पौलुस कहता है: “उस महा-कृपा के मुताबिक जो हमें दिखायी गयी है, हमें अलग-अलग वरदान मिले हैं।” वह बताता है कि उन वरदानों या काबिलीयतों में से कुछ हैं, दूसरों को सीख देकर उकसाना और अगुवाई करना। ये वरदान खासकर मसीही प्राचीनों को दिए गए हैं, जिन्हें “पूरी मेहनत” से अगुवाई करने को कहा गया है।

5 पौलुस कहता है कि निगरानी की ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों को सिखाने और “सेवा” में लगे रहने में भी पूरी मेहनत करनी चाहिए। रोमियों 12:7 में बतायी “सेवा” का क्या मतलब है? इसकी आस-पास की आयतें दिखाती हैं कि “सेवा” से पौलुस का मतलब था, मंडली या “एक ही शरीर” में की जानेवाली सेवा। (रोमि. 12:4, 5) यह सेवा, उस सेवा से मिलती-जुलती है जिसका ज़िक्र प्रेषितों 6:4 में किया गया है। वहाँ प्रेषितों ने ऐलान किया: “हम प्रार्थना करने और वचन सिखाने की सेवा में लगे रहेंगे।” इस तरह की सेवा में क्या शामिल है? मसीही प्राचीन अपने वरदानों का इस्तेमाल मंडली के सदस्यों को मज़बूत करने के लिए करते हैं। वे प्रार्थना के साथ परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते, खोजबीन करते, साथ ही सिखाने और चरवाही का काम करते हैं। इस तरह, वे सच्चे दिल से मंडली को सलाह और निर्देशन दे पाते हैं। ऐसा कर वे दिखाते हैं कि वे “सेवा में लगे” हुए हैं। निगरानों को चाहिए कि वे पूरी लगन के साथ अपने वरदानों का इस्तेमाल करें और “खुशी-खुशी” भेड़ों की देखभाल करें।—रोमि. 12:7, 8; 1 पत. 5:1-3.

6. इस लेख के मुख्य वचन, रोमियों 12:11 में दी सलाह पर हम कैसे चल सकते हैं?

6 पौलुस आगे बताता है: “अपने काम में आलस न दिखाओ। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो। यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो।” अगर हम अपनी सेवा में ढीले पड़ गए हैं, तो हमें बाइबल का और भी गहरा अध्ययन करने की आदत डालनी होगी। हमें दिल की गहराई से बार-बार यहोवा की पवित्र शक्‍ति के लिए भी बिनती करनी होगी। ऐसा करने पर ही हम खुद के गुनगुनेपन से लड़ पाएँगे और दोबारा सरगर्मी से सेवा कर पाएँगे। (लूका 11:9, 13; प्रका. 2:4; 3:14, 15, 19) पवित्र शक्‍ति ने शुरूआती मसीहियों में नया जोश भरा, ताकि वे “परमेश्‍वर के शानदार कामों का बखान” कर सकें। (प्रेषि. 2:4, 11) उसी तरह, आज परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमें “उसके तेज से भरे” रहने, यानी पूरे जोश के साथ सेवा करने के लिए उकसा सकती है।—रोमि. 12:11.

नम्रता और अपनी हद पहचानना

7. हमें क्यों नम्रता और अपनी हद में रहकर सेवा करनी चाहिए?

7 रोमियों 12:3, 16 पढ़िए। हमारे पास जो भी वरदान या काबिलीयतें हैं, वे सब हमें यहोवा की “महा-कृपा” की बदौलत मिली हैं। पौलुस एक और आयत में बताता है: “हमें ज़रूरत के हिसाब से योग्यता परमेश्‍वर की तरफ से मिली है।” (2 कुरिं. 3:5) इसलिए हमें अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बनना चाहिए। इसके बजाय, हमें नम्रता से कबूल करना चाहिए कि सेवा में कामयाबी हमें यहोवा की आशीष से मिलती है, न कि अपने हुनर के दम पर। (1 कुरिं. 3:6, 7) इसी बात को ध्यान में रखते हुए पौलुस ने कहा: “मैं तुममें से हरेक से, जो वहाँ हैं, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे।” यह ज़रूरी है कि हम अपना आत्म-सम्मान बनाए रखें और राज-सेवा में खुशी और संतोष पाएँ। लेकिन साथ ही हमें अपनी हद पहचाननी चाहिए, क्योंकि तभी हम अपनी ज़िद पर अड़े नहीं रहेंगे। हमें मामलों को ऐसे ‘समझना चाहिए ताकि हम स्वस्थ मन हासिल’ कर सकें।

8. हम “अपनी ही नज़र में खुद को बड़ा समझदार” मानने से कैसे बच सकते हैं?

8 अपनी कामयाबी की शेखी बघारना मूर्खता होगी। क्योंकि ‘परमेश्‍वर ही इसे बढ़ाता है।’ (1 कुरिं. 3:7) पौलुस ने बताया कि परमेश्‍वर ने मंडली के हरेक सदस्य को “विश्‍वास बाँटा है।” खुद को दूसरों से बड़ा समझने के बजाय हमें याद रखना चाहिए कि हरेक को जो विश्‍वास मिला है, वह उसी के मुताबिक काम करता है। पौलुस आगे कहता है: “दूसरों के लिए उसी तरह महसूस करो जैसा तुम खुद के लिए करते हो।” अपनी दूसरी चिट्ठी में पौलुस लिखता है: “झगड़ालूपन या अहंकार की वजह से कुछ न करो, मगर मन की दीनता के साथ दूसरों को खुद से बेहतर समझो।” (फिलि. 2:3) हमारे मसीही भाई-बहन किसी-न-किसी मामले में हमसे बेहतर हैं, यह बात मानने में सच्ची नम्रता की ज़रूरत होती है। साथ ही, हमें बार-बार खुद को यह बात याद दिलाने की भी ज़रूरत है। नम्रता हमें “अपनी ही नज़र में खुद को बड़ा समझदार” बनने से बचाएगी। हो सकता है खास ज़िम्मेदारी मिलने पर कुछ प्रचारक दूसरों की नज़रों में आ जाएँ। लेकिन सच्ची खुशी हमें तभी मिलेगी, जब हम ऐसे काम करेंगे जिन पर लोगों का ध्यान नहीं जाता और जिन्हें “दीन-हीन और छोटा समझा जाता है।”—1 पत. 5:5.

हमारी मसीही एकता

9. पौलुस ने अभिषिक्‍त मसीहियों की तुलना शरीर के अलग-अलग अंगों से क्यों की?

9 रोमियों 12:4, 5, 9, 10 पढ़िए। पौलुस ने अभिषिक्‍त मसीहियों की तुलना शरीर के अलग-अलग अंगों से की, जो अपने सिर यानी मसीह के अधीन एकता में काम करते हैं। (कुलु. 1:18) वह अभिषिक्‍त मसीहियों को यह याद दिलाता है कि शरीर के अलग-अलग अंग तरह-तरह के काम करते हैं, फिर भी वे “अनेक होते हुए भी मसीह के साथ एकता में एक शरीर हैं।” उसी तरह, पौलुस ने इफिसुस के अभिषिक्‍त मसीहियों को उकसाया: “प्यार के साथ . . . आओ हम, सब बातों में मसीह के अधीन बढ़ते जाएँ जो हमारा सिर है। उसी से शरीर के सारे अंग, ज़रूरी काम करनेवाले हरेक जोड़ के ज़रिए आपस में पूरे तालमेल से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को सहयोग देते हैं और शरीर के ये अलग-अलग अंग अपना-अपना काम पूरा करते हैं। इसीलिए सारा शरीर बढ़ता जाता है और प्यार में अपना निर्माण करता है।”—इफि. 4:15, 16.

10. ‘दूसरी भेड़ों’ को किन अधिकारियों के अधीन रहना चाहिए?

10 हालाँकि “दूसरी भेड़ें” उस शरीर का हिस्सा नहीं, जिसका सिर मसीह है, फिर भी वे इस मिसाल से बहुत कुछ सीख सकती हैं। (यूह. 10:16) पौलुस कहता है कि यहोवा ने “सबकुछ [मसीह के] पैरों तले कर दिया और उसे सब चीज़ों पर मुखिया ठहराकर मंडली की खातिर दे दिया।” (इफि. 1:22) आज दूसरी भेड़ें उन “सब चीज़ों” में आती हैं, जिन पर परमेश्‍वर ने अपने बेटे को मुखिया ठहराया है। वे उस “संपत्ति” का भी हिस्सा हैं, जिस पर मसीह ने ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ को अधिकारी ठहराया है। (मत्ती 24:45-47) इसलिए इस धरती पर जीने की आशा रखनेवालों को मसीह को अपना सिर मानना चाहिए। साथ ही, उन्हें विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास, उसके शासी निकाय और उन पुरुषों के अधीन रहना चाहिए, जिन्हें मंडली में निगरान ठहराया गया है। (इब्रा. 13:7, 17) इससे मसीही एकता बनी रहती है।

11. हमारी एकता किस पर टिकी है? पौलुस ने कौन-सी दूसरी सलाह दी?

11 हमारी मसीही एकता, प्यार पर टिकी है जो “पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़ है।” (कुलु. 3:14) पौलुस ने इसी बात पर ज़ोर देते हुए रोमियों के 12वें अध्याय में कहा कि हमारे प्यार में ‘कपट नहीं होना’ चाहिए और “भाइयों जैसा प्यार” दिखाने के लिए हमें “एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव” रखना चाहिए। इससे हम एक-दूसरे की इज़्ज़त कर पाते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा: “एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” मगर प्यार दिखाने का यह मतलब नहीं कि हम भावनाओं में बह जाएँ। हमें अपनी मंडली को शुद्ध बनाए रखने की भरसक कोशिश करनी चाहिए। प्यार के बारे में सलाह देते वक्‍त पौलुस ने यह भी बताया: “दुष्ट बातों से घिन करो, अच्छी बातों से लिपटे रहो।”

मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालिए

12. दूसरों की मदद करने में, हम मकिदुनिया के मसीहियों से क्या सीख सकते हैं?

12 रोमियों 12:13 पढ़िए। मसीही भाइयों के लिए हमारा प्यार हमें उकसाएगा कि जितना हमसे बन पड़े, हम उतना “पवित्र जनों की ज़रूरतें पूरी करने में मदद” करें। अगर हम गरीब हैं, तब भी हम दूसरों की मदद कर सकते हैं। मकिदुनिया के मसीहियों के बारे में पौलुस ने लिखा: “जब वे बड़ी परीक्षा के दौरान दुःख झेल रहे थे तब अपनी घोर गरीबी के बावजूद उन्होंने बड़ी खुशी के साथ अपनी दरियादिली की दौलत लुटायी। उन्होंने अपने बूते से बढ़कर, हाँ, मैं गवाही देता हूँ कि अपनी हैसियत से कहीं बढ़कर ऐसा किया। और इन भाइयों ने अपने आप ही हमसे गुज़ारिश की, यहाँ तक कि मिन्‍नतें कीं कि [यहूदिया के] पवित्र जनों की सेवा के लिए जो तय किया गया है, उसमें दान करने का उन्हें भी सम्मान दिया जाए।” (2 कुरिं. 8:2-4) हालाँकि मकिदुनिया के मसीही खुद तंगहाली में जी रहे थे, फिर भी उनका दिल बड़ा था। उन्होंने यहूदिया के ज़रूरतमंद भाइयों की मदद करना एक बड़ा सम्मान माना।

13. ‘मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालने’ का क्या मतलब है?

13 जिन यूनानी शब्दों का अनुवाद “मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालो” किया गया है, उनसे इस बात का इशारा मिलता है कि हमें मेहमान-नवाज़ी दिखाने में पहल करनी चाहिए। ईज़ी-टू-रीड वर्शन बाइबल में इस वाक्य का अनुवाद इस तरह किया गया है: “अतिथि-सत्कार के अवसर ढूँढ़ते रहो।” अकसर मेहमान-नवाज़ी दिखाने का तरीका है, दूसरों को खाने पर बुलाना। जब हम ऐसा प्यार से उभारे जाने पर करते हैं, तो यह वाकई काबिले-तारीफ होता है। लेकिन मेहमान-नवाज़ी दिखाने में पहल करने का मतलब है, इसके अलग-अलग तरीके ढूँढ़ना। मिसाल के लिए, अगर हम अपनी आर्थिक हालत या सेहत से जुड़ी समस्या की वजह से दूसरों को खाने पर नहीं बुला सकते, तो हम उन्हें चाय, कॉफी या शरबत के लिए बुला सकते हैं।

14. (क) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मेहमान-नवाज़ी” किया गया है, वह किन शब्दों से मिलकर बना है? (ख) प्रचार में हम दूसरी भाषा बोलनेवालों के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

14 मेहमान-नवाज़ी दिखाने में यह भी शामिल है कि हम दूसरों के बारे कैसा नज़रिया रखते हैं। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मेहमान-नवाज़ी” किया गया है, वह दो मूल शब्दों से बना है। एक शब्द का मतलब है, “प्यार” और दूसरे का “अजनबी।” अजनबियों या दूसरी भाषा बोलनेवालों के लिए हमारा कैसा रवैया है? जो मसीही दूसरी भाषा बोलनेवालों को खुशखबरी सुनाने के लिए उनकी भाषा सीखने की पूरी कोशिश करते हैं, वे उनमें गिने जा सकते हैं जिन्हें मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत है। बेशक, हममें से कइयों के हालात इस बात की इजाज़त न दें कि हम दूसरी भाषा सीखें। फिर भी, हममें से हरेक प्रचार में सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार पुस्तिका का अच्छा इस्तेमाल कर सकता है, जिसमें बाइबल का संदेश कई भाषाओं में दिया गया है। क्या आपको प्रचार में यह पुस्तिका इस्तेमाल करने से अच्छे नतीजे मिले हैं?

हमदर्दी जताइए

15. रोमियों 12:15 में दी सलाह को मानने में यीशु कैसे एक अच्छी मिसाल है?

15 रोमियों 12:15 पढ़िए। इस आयत में पौलुस ने जो सलाह दी, उसका सार दो शब्दों में दिया जा सकता है: हमदर्दी दिखाइए। हमें दूसरों की भावनाएँ महसूस करना, उनका सुख-दुख बाँटना सीखना चाहिए। अगर हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहें, तो दूसरों की खुशी से हमें जो खुशी मिलती है और दूसरों का गम देखकर हमारे अंदर जो करुणा उमड़ पड़ती है, वह साफ नज़र आएगी। यीशु की ही मिसाल लीजिए। जब उसके 70 चेले प्रचार के एक अभियान से खुशी-खुशी लौटे और उन्होंने अपने काम के अच्छे नतीजों के बारे में बताया, तो वह “पवित्र शक्‍ति और बड़े आनंद से भर गया।” (लूका 10:17-21) यीशु उनकी खुशी देखकर फूला नहीं समाया। वहीं दूसरी तरफ, जब यीशु का दोस्त लाज़र मर गया था, तो वह ‘रोनेवालों के साथ रोया।’—यूह. 11:32-35.

16. हम दूसरों को हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं? खासकर किन्हें भाई-बहनों का हमदर्द होना चाहिए?

16 हमदर्दी दिखाने के मामले में, हमें यीशु के जैसे बनना चाहिए। जब हमारे मसीही भाई-बहन खुश होते हैं, तो हम उनकी खुशी में शरीक होते हैं। उसी तरह, जब वे किसी तकलीफ से गुज़रते हैं या उन्हें किसी बात का गम होता है, तो हमें उनका दर्द महसूस करने की कोशिश करनी चाहिए। ज़्यादातर मामलों में अगर हम ध्यान से उनकी बातें सुनें और हमदर्दी जताएँ, तो उनका मन काफी हलका हो सकता है। और कभी-कभी तो उनकी बातें शायद हमारे दिल को इस कदर छू जाएँ कि हमारी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगें। (1 पत. 1:22) पौलुस ने हमदर्दी दिखाने की जो सलाह दी, उस पर खासकर प्राचीनों को चलना चाहिए।

17. रोमियों के 12 अध्याय से अब तक हमने क्या सीखा? अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

17 रोमियों, 12 अध्याय में हमने अब तक जिन आयतों पर चर्चा की, उनमें दी सलाह हम अपनी मसीही ज़िंदगी और भाइयों के साथ अपने रिश्‍ते पर लागू कर सकते हैं। अगले लेख में, हम इसी अध्याय की बाकी आयतों की जाँच करेंगे, जो यह बताती हैं कि हमें मंडली के बाहर के लोगों के लिए कैसा रवैया रखना चाहिए और उनसे कैसे पेश आना चाहिए। उन लोगों में हमारा विरोध करनेवाले और सतानेवाले भी शामिल हैं।

दोहराने के लिए

• हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे” हैं?

• हमें क्यों नम्रता और अपनी हद में रहकर सेवा करनी चाहिए?

• हम अपने मसीही भाई-बहनों को किन तरीकों से हमदर्दी और करुणा दिखा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 4 पर तसवीरें]

हम मसीही कामों में क्यों हिस्सा लेते हैं?

[पेज 6 पर तसवीर]

हम दूसरी भाषा बोलनेवालों को राज के बारे में सीखने में कैसे मदद दे सकते हैं?