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बेवफा दुनिया में वफा निभाना

बेवफा दुनिया में वफा निभाना

बेवफा दुनिया में वफा निभाना

“मैं तुम्हें इन बातों की आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो।”—यूह. 15:17.

1. पहली सदी के मसीहियों को आपस में दोस्ती का मज़बूत बंधन क्यों बनाए रखना था?

 इस धरती पर यीशु की आखिरी रात थी। उस मौके पर यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों को उकसाया कि वे एक-दूसरे के दोस्त बने रहें। कुछ ही समय पहले उसने कहा था कि अगर उनके बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि वे उसके चेले हैं। (यूह. 13:35) प्रेषितों को आपस में दोस्ती का मज़बूत बंधन बनाए रखना बेहद ज़रूरी था। इससे उन्हें आनेवाली आज़माइशों का सामना करने में मदद मिलती और वे उस काम को पूरा कर पाते, जो बहुत जल्द यीशु उन्हें सौंपनेवाला था। बेशक, पहली सदी के मसीहियों ने यहोवा और एक-दूसरे के लिए जो वफादारी दिखायी, वह मिसाल बन गयी।

2. (क) हमने क्या करने की ठान ली है, और क्यों? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 आज हम पूरी दुनिया में फैले एक ऐसे संगठन का हिस्सा हैं, जो पहली सदी के मसीहियों के नक्शे-कदम पर चलता है। क्या यह हमारे लिए खुशी की बात नहीं! हमने यीशु की यह आज्ञा मानने की ठान ली है कि एक-दूसरे के लिए सच्चा प्यार दिखाओ। आज ऐसा करना और ज़रूरी हो गया है, क्योंकि इन आखिरी दिनों में ज़्यादातर लोग विश्‍वासघाती और मोह-ममता न रखनेवाले हैं। (2 तीमु. 3:1, 3) उनकी दोस्ती अकसर खोखली और मतलबी होती है। इसलिए सच्चे मसीही के तौर पर अपनी पहचान बनाए रखने के लिए हमें इस रवैए से दूर रहना होगा। तो आइए देखें: सच्ची दोस्ती की बुनियाद क्या है? हम सच्चे दोस्त कैसे बना सकते हैं? दोस्ती निभाने के लिए हमें क्या करना होगा? हमें किन दोस्तों के साथ नाता तोड़ लेना चाहिए?

सच्ची दोस्ती की बुनियाद क्या है?

3, 4. सच्ची दोस्ती की बुनियाद क्या है, और क्यों?

3 सच्ची दोस्ती की बुनियाद है, परमेश्‍वर के लिए प्यार। राजा सुलैमान ने लिखा: “यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका साम्हना कर सकेंगे। जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।” (सभो. 4:12) अगर दोस्ती की तीसरी डोर यहोवा है, तो वह दोस्ती हमेशा कायम रहेगी।

4 यह सच है कि जो लोग यहोवा से प्यार नहीं करते, वे भी अच्छे दोस्त बना पाते हैं। लेकिन अगर दोस्ती यहोवा के प्यार की बुनियाद पर टिकी हो, तो वह और भी पक्की होती है। इतनी कि अगर दो दोस्तों के बीच गलतफहमियाँ भी पैदा हो जाएँ, तब भी उनकी दोस्ती पर कोई आँच नहीं आती। क्योंकि वे अपने आपसी झगड़ों को इस तरह सुलझाते हैं, जिससे यहोवा खुश हो। यही नहीं, परमेश्‍वर के दुश्‍मनों ने भी कई बार सच्चे मसीहियों के बीच फूट डालने की कोशिश की, मगर वे नाकाम रहे हैं। इतिहास गवाह है कि यहोवा के लोगों ने अपने दोस्तों से गद्दारी करने के बजाय मौत को गले लगाना मंज़ूर किया।—1 यूहन्‍ना 3:16 पढ़िए।

5. रूत और नाओमी के बीच पक्की दोस्ती का क्या राज़ था?

5 इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा से प्यार करनेवालों के साथ दोस्ती करने से हमें सबसे ज़्यादा सुकून मिलता है। रूत और नाओमी का उदाहरण लीजिए। इनकी दोस्ती की मिसाल, बाइबल में दी दोस्ती की कई बढ़िया मिसालों में से एक है। आखिर, उनकी पक्की दोस्ती का क्या राज़ था? यह राज़ रूत ने बताया, जब उसने अपनी सास नाओमी से कहा: “तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्‍वर मेरा परमेश्‍वर होगा; . . . यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊं, तो यहोवा मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे।” (रूत 1:16, 17) ज़ाहिर-सी बात है कि रूत और नाओमी, दोनों के दिलों में परमेश्‍वर के लिए गहरा प्यार था। इसी प्यार की वजह से वे सास-बहू से दोस्त बन गए और एक-दूसरे की मदद की। नतीजा, यहोवा ने उन पर अपनी आशीषें बरसायीं।

सच्चे दोस्त कैसे बनाएँ?

6-8. (क) पक्की दोस्ती करने के लिए क्या ज़रूरी है? (ख) आप दोस्त बनाने के लिए कैसे पहल कर सकते हैं?

6 रूत और नाओमी का किस्सा दिखाता है कि पक्की दोस्ती रातों-रात नहीं हो जाती। यह सच है कि इसकी बुनियाद है, दोस्तों के दिलों में यहोवा के लिए प्यार, मगर यह काफी नहीं। पक्की दोस्ती करने में कड़ी मेहनत लगती है। साथ ही, एक व्यक्‍ति को दोस्ती की खातिर कई त्याग करने पड़ते हैं। यहाँ तक कि एक मसीही परिवार में, बच्चों को भी एक-दूसरे का करीबी दोस्त बनने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत है। तो आप सच्चे दोस्त कैसे बना सकते हैं?

7 पहल कीजिए। प्रेषित पौलुस ने रोम की मंडली में अपने दोस्तों को उकसाया: “मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालो।” (रोमि. 12:13) कोई भी आदत डालने के लिए उस काम को बार-बार करना होता है। उसी तरह, मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालने के लिए, हमें लगातार छोटे-मोटे तरीकों से दूसरों की खातिरदारी करने की ज़रूरत है। याद रखिए, कोई दूसरा आपके लिए यह आदत नहीं डाल सकता। (नीतिवचन 3:27 पढ़िए।) मेहमान-नवाज़ी दिखाने का एक तरीका है, मंडली के अलग-अलग भाई-बहनों को सादे भोजन पर बुलाना। क्या आप ऐसा नियमित तौर पर कर सकते हैं?

8 दोस्ती करने के मामले में पहल करने का एक और तरीका है, अलग-अलग लोगों को अपने साथ प्रचार के लिए बुलाना। जब आप अपने साथी को सच्चे दिल से यहोवा के लिए प्यार ज़ाहिर करते सुनेंगे, तो बेशक आप अपने साथी के और भी करीब आएँगे।

9, 10. पौलुस ने कौन-सी मिसाल रखी? हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

9 स्नेह दिखाने में अपना दिल बड़ा कीजिए। (2 कुरिंथियों 6:12, 13 पढ़िए।) क्या आपको कभी लगा है कि मंडली में ऐसा एक भी व्यक्‍ति नहीं, जिसकी तरफ आप दोस्ती का हाथ बढ़ा सकें? अगर हाँ, तो हो सकता है कि आपको अपनी सोच बदलनी होगी कि किन लोगों से आप दोस्ती कर सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने स्नेह दिखाने में अपना दिल बड़ा करने की एक बढ़िया मिसाल रखी। एक वक्‍त था, जब वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वह किसी गैर-यहूदी से दोस्ती करेगा। लेकिन आगे चलकर यही पौलुस “गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित” बना।—रोमि. 11:13.

10 एक और बात गौर करने लायक यह है कि पौलुस ने सिर्फ अपनी उम्र के लोगों से दोस्ती नहीं की। उदाहरण के लिए, पौलुस की तीमुथियुस से गहरी दोस्ती थी, इसके बावजूद कि उनके बीच उम्र का काफी फासला था और उनकी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई थी। उसी तरह, आज भी मंडली में कई जवान, बड़े-बुज़ुर्गों से दोस्ती करते हैं और उनके लिए यह दोस्ती बहुत अनमोल होती है। करीब 20-25 साल की एक मसीही जवान, वनैसा कहती है: “मेरी एक बहुत ही प्यारी सहेली है, जिनकी उम्र 50 से भी ज़्यादा है। मैं उन्हें खुलकर हर वह बात बता सकती हूँ, जो मैं अपनी हमउम्र सहेलियों को बताती हूँ। और वे भी मेरा बहुत खयाल रखती हैं।” इस तरह की दोस्ती की शुरूआत कैसे होती है? वनैसा बताती है: “मुझे यह दोस्ती बैठे-बिठाए नहीं मिल गयी, बल्कि इसके लिए मुझे मेहनत करनी पड़ी।” क्या आप भी अपनी उम्र के बाहर लोगों से दोस्ती करेंगे? अगर आप ऐसा करें, तो बेशक यहोवा आपकी मेहनत पर आशीष देगा।

11. दाविद और योनातन की यारी से हम क्या सीख सकते हैं?

11 वफादार रहिए। सुलैमान ने लिखा: “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” (नीति. 17:17) ये शब्द लिखते वक्‍त सुलैमान को शायद अपने पिता दाविद और उसके जिगरी दोस्त योनातन का खयाल आया हो। (1 शमू. 18:1) राजा शाऊल का यह अरमान था कि उसका बेटा योनातन ही इसराएल की गद्दी पर बैठे। मगर योनातन जानता था कि यहोवा, दाविद को यह सम्मान देनेवाला है और उसने यह बात कबूल भी की। इसलिए जब लोग दाविद की तारीफ करते थे, तो योनातन अपने पिता शाऊल की तरह नहीं कुड़कुड़ाता था। और जब शाऊल ने दाविद के बारे में झूठी अफवाहें फैलायीं, तो योनातन ने अपने पिता की बातों पर यकीन नहीं किया। (1 शमू. 20:24-34) क्या हम योनातन की तरह हैं? जब हमारे दोस्तों को मंडली में कोई खास सम्मान मिलता है, तो क्या हम दिल से उनके लिए खुश होते हैं? जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो क्या हम उनकी मदद करते हैं और उन्हें दिलासा देते हैं? जब कोई उनके खिलाफ कुछ कहता है, तो क्या हम आँख मूंदकर उसका यकीन कर लेते हैं? या क्या हम योनातन की तरह अपने दोस्तों के वफादार रहते हैं और उनके बचाव में बात करते हैं?

हमें किन दोस्तों के साथ नाता तोड़ लेना चाहिए?

12-14. कुछ बाइबल विद्यार्थियों के सामने कौन-सी चुनौती आती है? ऐसे में हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

12 जब एक बाइबल विद्यार्थी अपने तौर-तरीके बदलने लगता है, तब हो सकता है उसे दोस्ती के मामले में चुनौती का सामना करना पड़े। उसे शायद अपने दोस्तों के साथ घूमना-फिरना अच्छा लगता हो, मगर परेशानी यह है कि वे बाइबल के स्तरों पर नहीं चलते। बीते समय में उसने शायद उनके साथ बहुत वक्‍त बिताया हो, मगर अब उसे एहसास होता है कि वे जो काम करते हैं, उनका उस पर बुरा असर हो सकता है। इसलिए वह महसूस करता है कि उसे उनके साथ अपना मेल-जोल कम कर देना चाहिए। (1 कुरिं. 15:33) मगर साथ ही उसे यह भी लगता है कि अगर वह ऐसा करे, तो वह उन्हें दगा दे रहा होगा।

13 अगर आप एक बाइबल विद्यार्थी हैं और इस उलझन में हैं, तो याद रखिए कि सच्चा दोस्त वह होता है जो आपको अपनी ज़िंदगी सँवारते देख खुश होता है। यही नहीं, वह शायद आपके साथ मिलकर यहोवा के बारे में भी सीखने लगे। वहीं दूसरी तरफ, अगर आपका दोस्त आपके बारे में “बुरा-भला” कहता है, क्योंकि आपने “बदचलनी की कीचड़ में लोटना छोड़ दिया है,” तो वह दोस्त सच्चा नहीं बल्कि झूठा है। (1 पत. 4:3, 4) और देखा जाए तो दगा आप नहीं, बल्कि वह आपको दे रहा है।

14 जब एक बाइबल विद्यार्थी के पुराने दोस्त, जिनमें परमेश्‍वर के लिए कोई प्यार नहीं, उसे छोड़ देते हैं, तो उसे तनहाइयाँ आ घेरती हैं। ऐसे में मंडली के भाई-बहन उसके दोस्तों की कमी पूरी कर सकते हैं। (गला. 6:10) क्या आप सभाओं में आनेवाले बाइबल विद्यार्थियों को निजी तौर पर जानते हैं? क्या आप समय-समय पर उनसे बात कर उनका हौसला बढ़ा सकते हैं? क्या आप उन्हें अपने घर बुलाकर उनके साथ मेल-जोल रख सकते हैं?

15, 16. (क) अगर हमारा कोई दोस्त यहोवा की सेवा छोड़ देता है, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) हम परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार कैसे दिखा सकते हैं?

15 लेकिन तब क्या जब मंडली में हमारा कोई दोस्त यहोवा से मुँह मोड़ लेता है, या फिर उसे बहिष्कृत कर दिया जाता है? ऐसे में शायद आपको बड़ा सदमा लगे। एक बहन, जिसकी करीबी दोस्त ने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया, कहती है: “मुझे बड़ा झटका लगा। मुझे लगता था कि मेरी सहेली सच्चाई में मज़बूत है, मगर मैं गलत थी। मैं सोच में पड़ गयी कि क्या वह सिर्फ अपने परिवार को खुश करने के लिए यहोवा की सेवा कर रही थी? मैंने अपने मन को टटोलना शुरू किया। अब तक मैंने यहोवा की जो सेवा की, क्या वह मैंने नेक इरादों से की है?” वह बहन इस गम को कैसे झेल पायी? वह कहती है: “मैंने अपना बोझ यहोवा पर डाल दिया। मैंने ठान लिया, मैं यह दिखाकर रहूँगी कि मैं यहोवा की सेवा सिर्फ इसलिए नहीं करती कि उसने मुझे अपने संगठन में कई दोस्त दिए हैं, बल्कि उसके गुणों की वजह से मैं उससे प्यार करती हूँ।”

16 अगर हम उन लोगों से दोस्ती करें जो इस दुनिया के दोस्त हैं, तो हम परमेश्‍वर के दोस्त नहीं हो सकते। चेले याकूब ने लिखा: “क्या तुम नहीं जानतीं कि दुनिया के साथ दोस्ती करने का मतलब परमेश्‍वर से दुश्‍मनी करना है? इसलिए, जो कोई इस दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वह खुद को परमेश्‍वर का दुश्‍मन बनाता है।” (याकू. 4:4) हम परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार तभी दिखा सकते हैं जब हमें उस पर भरोसा होगा कि वह हमें अपने दोस्त खोने के गम से उभरने में मदद देगा। लेकिन यहोवा ऐसा तभी करेगा, जब हम उसके वफादार बने रहेंगे। (इब्रानियों 13:5ख पढ़िए।) ऊपर जिस मसीही बहन के बारे में बताया गया है, वह कहती है: “मैंने यह सीख लिया है कि हम किसी को यहोवा से या हमसे प्यार करने के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकते। एक व्यक्‍ति को खुद अपनी मरज़ी से प्यार करना सीखना होता है।” लेकिन मंडली के जो लोग सच्चाई में बने रहते हैं, उनके साथ हम अपनी दोस्ती कैसे बरकरार रख सकते हैं?

दोस्ती निभाने के लिए हमें क्या करना होगा?

17. अच्छे दोस्त एक-दूसरे से किस तरह बातचीत करते हैं?

17 बातचीत वह डोर है, जो दो दोस्तों को बाँधे रखती है। अगर आप बाइबल में रूत और नाओमी, दाविद और योनातन, पौलुस और तीमुथियुस की कहानियाँ पढ़ें तो आप पाएँगे कि अच्छे दोस्त आपस में खुलकर और आदर से बात करते हैं। पौलुस ने लिखा: “तुम्हारे बोल हमेशा मन को भानेवाले, सलोने हों।” पौलुस ने बताया कि बातचीत का यह तरीका हमें खासकर उस वक्‍त अपनाना चाहिए जब हम ‘बाहरवालों’ यानी उन लोगों से बात करते हैं, जो हमारे मसीही भाई-बहन नहीं हैं। (कुलु. 4:5, 6) ज़रा सोचिए, अगर बाहरवालों से इतने आदर से बात करनी है, तो अपने मसीही भाई-बहनों से हमें और कितने आदर के साथ बातचीत करनी चाहिए?

18, 19. अपने मसीही दोस्त से मिलनेवाली सलाह के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए? इस सिलसिले में इफिसुस के प्राचीनों ने क्या मिसाल कायम की?

18 अच्छे दोस्त एक-दूसरे की राय की कदर करते हैं। इसलिए उनकी बातचीत सलोनी होनी चाहिए। मगर उन्हें बातों को गोल-मोल नहीं बल्कि सीधे-सीधे कहना चाहिए। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा: “जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है।” (नीति. 27:9) जब आपका दोस्त आपको कोई सलाह देता है, तो क्या आप उसकी सलाह के बारे में ऐसा ही महसूस करते हैं? (भजन 141:5 पढ़िए।) मान लीजिए कि आप कुछ ऐसा काम करते हैं, जिसके बारे में आपका दोस्त अपनी चिंता ज़ाहिर करता है। उसकी बात सुनकर आपको कैसा लगता है? क्या आपको बुरा लगता है? या क्या आप उसकी सलाह के पीछे उसका सच्चा प्यार देख पाते हैं?

19 प्रेषित पौलुस और इफिसुस की मंडली के प्राचीनों के बीच एक बहुत ही करीबी रिश्‍ता था। उनमें से कइयों को वह शायद तब से जानता था जब उन्होंने पहली बार सच्चाई कबूल की। जब वह उनसे आखिरी बार मिला, तब उन्हें सीधे-सीधे सलाह दी। इस पर प्राचीनों ने कैसा महसूस किया? उन्होंने पौलुस की बात का बुरा नहीं माना। इसके बजाय, वे समझ गए कि पौलुस उनकी बहुत परवाह करता है और वे इसके लिए एहसानमंद थे। यहाँ तक कि जब उन्हें एहसास हुआ कि वे फिर कभी पौलुस से नहीं मिल पाएँगे, तो वे फूट-फूटकर रोने लगे।—प्रेषि. 20:17, 29, 30, 36-38.

20. एक सच्चा दोस्त क्या करेगा?

20 अच्छे दोस्त न सिर्फ बुद्धि-भरी सलाह कबूल करते हैं बल्कि देते भी हैं। मगर हाँ, हमें यह भी समझने की ज़रूरत है कि कब हमें ‘अपने काम से काम रखना’ चाहिए। (1 थिस्स. 4:11) हमें इस बात का भी खयाल रखना चाहिए कि हर कोई “परमेश्‍वर को अपना-अपना हिसाब देगा।” (रोमि. 14:12) लेकिन ज़रूरत पड़ने पर एक अच्छा दोस्त अपने साथी को यहोवा के स्तर प्यार से याद दिलाएगा। (1 कुरिं. 7:39) उदाहरण के लिए, अगर आपका कुँवारा दोस्त किसी अविश्‍वासी के साथ दिल लगा बैठा है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप अपनी दोस्ती टूटने के डर से चुप्पी साध लेंगे? दूसरी तरफ, मान लीजिए कि आपने उसे सलाह दी, मगर उसने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। तब आप क्या करेंगे? अगर आप उसके सच्चे दोस्त हैं, तो उसे सही राह पर लाने के लिए आप प्यार करनेवाले चरवाहों की मदद लेंगे। ऐसा करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत है। साथ ही, याद रखिए कि अगर आपकी दोस्ती परमेश्‍वर के प्यार की बुनियाद पर टिकी है, तो कोई भी मुश्‍किल उसे डिगा नहीं पाएगी।

21. कई बार हम क्या कर बैठते हैं? मगर मंडली में पक्के दोस्त बनाना क्यों ज़रूरी है?

21 कुलुस्सियों 3:13, 14 पढ़िए। कभी-कभी हम अपने दोस्तों को अपने खिलाफ “शिकायत की कोई वजह” दे सकते हैं। या फिर वे ऐसा कुछ कह या कर सकते हैं, जिससे हम खीझ उठें। याकूब ने भी कहा: “हम सब कई बार गलती करते हैं।” (याकू. 3:2) लेकिन सच्ची दोस्ती का यह मतलब नहीं कि हम एक-दूसरे के खिलाफ कितनी बार गलती करते हैं। बल्कि गलती करने पर जब हम दिल खोलकर एक-दूसरे को माफ करते हैं, वह सच्ची दोस्ती कहलाती है। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम आपस में खुलकर बात करने और एक-दूसरे को पूरी तरह माफ करने के ज़रिए पक्के दोस्त बनाएँ। अगर हम ऐसा प्यार दिखाएँ, तो यह “एकता में पूरी तरह से जोड़नेवाला जोड़ बन” जाएगा।

आप क्या जवाब देंगे?

• हम सच्चे दोस्त कैसे बना सकते हैं?

• हमें किन दोस्तों के साथ नाता तोड़ लेना चाहिए?

• सच्ची दोस्ती निभाने के लिए हमें क्या करना होगा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 18 पर तसवीर]

रूत और नाओमी के बीच पक्की दोस्ती का क्या राज़ था?

[पेज 19 पर तसवीर]

क्या आप नियमित तौर पर मेहमान-नवाज़ी दिखाते हैं?