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‘सबके साथ शांति बनाए रखो’

‘सबके साथ शांति बनाए रखो’

‘सबके साथ शांति बनाए रखो’

“जहाँ तक तुमसे हो सके, सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो।”—रोमि. 12:18.

1, 2. (क) यीशु ने अपने चेलों को किस बारे में खबरदार किया? (ख) विरोध का सामना करने की बुद्धि-भरी सलाह हमें कहाँ से मिल सकती है?

 यीशु ने अपने चेलों को खबरदार किया कि उन्हें दुनिया के राष्ट्रों के हाथों ज़ुल्म सहना पड़ेगा। अपनी मौत से पहलेवाली शाम को यीशु ने उन्हें समझाया कि ऐसा क्यों होगा। उसने अपने प्रेषितों से कहा: “अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया जो उसका अपना है उसे पसंद करती। मगर क्योंकि तुम दुनिया के नहीं हो बल्कि मैंने तुम्हें दुनिया से चुन लिया है, इसलिए दुनिया तुमसे नफरत करती है।”—यूह. 15:19.

2 प्रेषित पौलुस ने अपनी ज़िंदगी में यीशु के इन शब्दों को सच साबित होते देखा था। अपने जवान साथी तीमुथियुस को लिखी दूसरी चिट्ठी में पौलुस ने कहा: “तू ने मेरी शिक्षाओं, मेरे जीने के तरीके, मेरे मकसद, मेरे विश्‍वास, मेरी सहनशीलता, मेरे प्यार और धीरज को और मुझ पर ढाए गए ज़ुल्मों और मेरे दुःखों को नज़दीकी से देखा है।” फिर उसने कहा: “दरअसल, जितने भी मसीह यीशु में परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।” (2 तीमु. 3:10-12) पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी के 12वें अध्याय में यह बुद्धि-भरी सलाह दी कि उन्हें विरोध का सामना कैसे करना चाहिए। उसकी यह सलाह, इन आखिरी दिनों में हमारे लिए मददगार साबित हो सकती है।

‘बढ़िया काम करने में लगे रहो’

3, 4. रोमियों 12:17 में दी सलाह इन मामलों में कैसे लागू की जा सकती है: (क) जब परिवार के सभी सदस्य यहोवा के उपासक न हों? (ख) अपने पड़ोसियों से पेश आते वक्‍त?

3 रोमियों 12:17 पढ़िए। पौलुस समझाता है कि जब कोई हमारा विरोध करता है, तो हमें ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देना चाहिए। यह सलाह मानना खासकर उन लोगों के लिए ज़रूरी है, जिनके परिवार के सभी सदस्य यहोवा के उपासक नहीं हैं। मिसाल के तौर पर एक मसीही को लीजिए, जिसका जीवन-साथी सच्चाई में नहीं है। वह साथी शायद उसे जब-तब जली-कटी सुनाता है या उसके साथ कठोरता से पेश आता है। ऐसे में मसीही बदला लेने के खयाल को अपने दिल में पनपने नहीं देगा। “बुराई का बदला बुराई से” देने में कोई फायदा नहीं। इसके उलट, यह आग में घी का काम कर सकता है।

4 तो फिर, हमें क्या करना चाहिए? पौलुस ने सलाह दी: “ऐसे काम करने की कोशिश में रहो जो सबकी नज़र में बढ़िया हों।” अगर एक पति अपनी पत्नी के विश्‍वास के खिलाफ कड़वी बात कहता है और पत्नी तब भी उससे प्यार से पेश आती है, तो इससे उनके बीच ज़बरदस्त झगड़ा नहीं छिड़ेगा, बल्कि मामला वहीं शांत हो जाएगा। (नीति. 31:12) कार्लोस, जो आज एक बेथेल परिवार का सदस्य है, बताता है कि कैसे उसकी माँ ने उसके पापा के कड़े विरोधों का सामना किया। वह अपने पति से आदर से पेश आती और घर की अच्छी देखभाल करती थी। कार्लोस कहता है: “वह हम बच्चों को बढ़ावा देती थी कि हम हमेशा पापा से आदर से बात करें। वह मुझे पापा के साथ बूल (फ्राँस में बॉल से खेला जानेवाला एक गेम) खेलने के लिए ज़ोर देती थी, इसके बावजूद कि यह मेरा मनपसंद खेल नहीं था। मम्मी ऐसा इसलिए कहती थी क्योंकि इसे खेलने के बाद पापा की तबियत खुश हो जाती थी।” कुछ समय बाद, कार्लोस के पिता ने बाइबल का अध्ययन शुरू कर दिया और बपतिस्मा लिया। “ऐसे काम करने की कोशिश में रहो जो सबकी नज़र में बढ़िया हों,” यहोवा के साक्षी इस सलाह को एक और तरीके से लागू करते हैं। जब कोई विपत्ति आती है, तो वे अपने पड़ोसियों की कारगर तरीके से मदद करते हैं। इस तरह, वे साक्षियों के बारे में लोगों की गलतफहमियाँ दूर कर पाते हैं।

‘अंगारों का ढेर लगाइए,’ विरोधियों का दिल पिघलाइए

5, 6. (क) दुश्‍मनों के सिर पर “अंगारों का ढेर” लगाने का क्या मतलब है? (ख) आपके इलाके का एक अनुभव बताइए, जो दिखाता है कि रोमियों 12:20 की सलाह पर चलने से अच्छे नतीजे निकलते हैं।

5 रोमियों 12:20 पढ़िए। इसमें कोई शक नहीं कि यह आयत लिखते समय, पौलुस के मन में नीतिवचन 25:21, 22 का ख्याल आया हो। वहाँ हम पढ़ते हैं: “यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना; क्योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा, और यहोवा तुझे इसका फल देगा।” पौलुस ने रोमियों के अध्याय 12 में अंगारों का ढेर लगाने की जो सलाह दी, उसका मतलब यह नहीं कि विरोधी को सज़ा देना या उसे शर्मिंदा करना। इसके बजाय, नीतिवचन 25:21, 22 और रोमियों 12:20 में शायद पुराने ज़माने में धातु पिघलाने का जो तरीका इस्तेमाल होता था, उसका उदाहरण दिया गया है। उन्‍नीसवीं सदी के एक अँग्रेज़ विद्वान, चार्ल्स ब्रिजस ने बताया: “जिन धातुओं को पीटकर आसानी से आकार नहीं दिया जा सकता था, उन्हें जलते अंगारों के बीच रखा जाता था। उन्हें सिर्फ आग पर ही नहीं रखा जाता था, बल्कि उनके ऊपर भी अंगारों का ढेर लगाया जाता था। इसी तरह, सब्र, निस्वार्थ और गहरा प्यार दिखाए जाने पर कठोर-से-कठोर दिल भी पिघल सकता है।”

6 जैसे ‘अंगारों के ढेर’ से धातु पिघल जाती है, वैसे ही भलाई के कामों से विरोधियों का रवैया बदल सकता है और वे परमेश्‍वर के लोगों पर ज़ुल्म ढाना बंद कर सकते हैं। हम भले कामों से लोगों का दिल जीत सकते हैं और वे बाइबल का संदेश सुनने के लिए राज़ी हो सकते हैं। प्रेषित पतरस ने लिखा: “दुनिया के लोगों के बीच तुम बढ़िया चालचलन बनाए रखो, ताकि चाहे वे तुम्हें बुरे काम करनेवाले कहकर तुम पर दोष लगाते हैं, वे तुम्हारे उन अच्छे कामों की वजह से, जो उन्होंने खुद अपनी आँखों से देखे हैं, उस दिन परमेश्‍वर की महिमा करें जिस दिन वह जाँच करने आएगा।”—1 पत. 2:12.

“सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो”

7. मसीह अपने चेलों को कैसी शांति देता है? यह हमें क्या करने के लिए उकसाती है?

7 रोमियों 12:18 पढ़िए। अपने प्रेषितों के साथ बितायी आखिरी शाम को यीशु ने कहा: “मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, मैं तुम्हें अपनी शांति देता हूँ।” (यूह. 14:27) मसीह अपने चेलों को जो शांति देता है, वह है मन का सुकून। और यह सुकून उन्हें इस एहसास से मिलता है कि यहोवा और उसका प्यारा बेटा यीशु उनसे प्यार करते हैं और उन्हें मंज़ूरी देते हैं। यह मन का चैन हमें दूसरों के साथ शांति से रहने के लिए उकसाता है। सच्चे मसीही अमन-पसंद लोग और शांति कायम करनेवाले होते हैं।—मत्ती 5:9.

8. हम परिवार और मंडली में शांति कायम करनेवाले कैसे बन सकते हैं?

8 परिवार में शांति कायम करने का एक तरीका है, जल्द-से-जल्द झगड़े निपटाना, ना कि मामले को बिगड़ने देना। (नीति. 15:18; इफि. 4:26) यही बात मसीही मंडली पर भी लागू होती है। प्रेषित पतरस ने बताया शांति कायम करने में लगे रहने के लिए ज़बान पर लगाम देना बहुत ज़रूरी है। (1 पत. 3:10, 11) याकूब ने भी जीभ का सही इस्तेमाल करने, साथ ही ईर्ष्या और झगड़े से बचे रहने की कड़ी सलाह देने के बाद लिखा: “जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है, वह सबसे पहले तो पवित्र, फिर शांति कायम करनेवाली, लिहाज़ दिखानेवाली, आज्ञा मानने के लिए तैयार, दया और अच्छे कामों से भरपूर होती है। यह भेदभाव नहीं करती और न ही कपटी होती है। जो शांति कायम करनेवाले हैं, वे शांति के हालात में बीज बोते हैं और नेकी के फल काटते हैं।”—याकू. 3:17, 18.

9. “सबके साथ शांति बनाए” रखने की कोशिश करते वक्‍त, हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

9 लेकिन रोमियों 12:18 में लिखे पौलुस के शब्द सिर्फ परिवार और मंडली पर लागू नहीं होते। पौलुस ने कहा कि हमें “सबके साथ शांति बनाए” रखनी चाहिए। इनमें हमारे पड़ोसी, साथ काम करनेवाले, स्कूल के साथी और वे लोग शामिल हैं, जिनसे हम प्रचार में मिलते हैं। मगर पौलुस ने यह भी कहा: “जहाँ तक तुमसे हो सके . . . पूरी कोशिश करो।” इसका मतलब है कि हमें “सबके साथ शांति बनाए” रखने में अपनी भरसक कोशिश करनी चाहिए, मगर परमेश्‍वर के धर्मी सिद्धांतों को ताक पर रखकर नहीं।

बदला देना यहोवा का काम है

10, 11. हम किस मायने में “परमेश्‍वर के क्रोध को मौका” देते हैं? ऐसा करना क्यों सही है?

10 रोमियों 12:19 पढ़िए। जो हमारे काम और हमारे संदेश के लिए “सही नज़रिया नहीं दिखाते,” उनकी यहाँ तक कि हमारे कट्टर दुश्‍मनों की भी “बुराई का सामना करते वक्‍त [हमें] खुद को काबू में” रखना चाहिए और “कोमलता से” पेश आना चाहिए। (2 तीमु. 2:23-25) पौलुस ने मसीहियों से कहा कि वे बदला न लें, बल्कि “परमेश्‍वर के क्रोध को मौका” दें। मसीही होने के नाते, हम जानते हैं कि बदला लेने का अधिकार हमें नहीं दिया गया है। भजनहार ने लिखा: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी।” (भज. 37:8) और सुलैमान ने सलाह दी: “मत कह, कि मैं बुराई का पलटा लूंगा; वरन यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझ को छुड़ाएगा।”—नीति. 20:22.

11 जब विरोधी हमारा कुछ नुकसान करते हैं, तो बुद्धिमानी इसी में है कि हम मामला यहोवा के हाथ में छोड़ दें। अगर वह ठीक समझे तो अपने समय पर वह हमारे विरोधियों को सज़ा देगा। यहोवा के क्रोध की बात को मन में रखते हुए पौलुस ने आगे कहा: “लिखा है: यहोवा कहता है, बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” (व्यवस्थाविवरण 32:35 से तुलना कीजिए।) अगर हम बदला लेने की कोशिश करें, तो हम गुस्ताखी कर रहे होंगे। क्योंकि हम उस अधिकार को अपने हाथ में ले रहे होंगे, जो सिर्फ यहोवा का है। इसके अलावा, हम यह भी दिखा रहे होंगे कि हमें यहोवा के इस वादे पर बिलकुल भी भरोसा नहीं: “मैं ही बदला चुकाऊँगा।”

12. यहोवा का क्रोध कब और कैसे ज़ाहिर होगा?

12 पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखी अपनी चिट्ठी की शुरूआत में लिखा: “जो लोग परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई को गलत तरीकों से दबा रहे हैं, उनकी सारी भक्‍तिहीनता और बुराई पर स्वर्ग से परमेश्‍वर का क्रोध प्रकट होता है।” (रोमि. 1:18) यहोवा स्वर्ग से अपना क्रोध अपने बेटे के ज़रिए “महा-संकट” के समय ज़ाहिर करेगा। (प्रका. 7:14) वह “परमेश्‍वर के सच्चे न्याय का सबूत” होगा, जैसा पौलुस ने अपनी दूसरी चिट्ठी में समझाया जो उसने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी। उसने कहा: “वाकई परमेश्‍वर की नज़र में यह न्याय है कि जो तुम्हें क्लेश देते हैं, उन्हें वह बदले में क्लेश दे। मगर तुम जो क्लेश सहते हो, तुम्हें हमारे साथ उस वक्‍त राहत दे जब प्रभु यीशु अपने शक्‍तिशाली दूतों के साथ धधकती आग में स्वर्ग से प्रकट होगा। वह उन लोगों से बदला लेगा जो परमेश्‍वर को नहीं जानते और हमारे प्रभु यीशु के बारे में खुशखबरी को नहीं मानते।”—2 थिस्स. 1:5-8.

भलाई से बुराई को जीत लो

13, 14. (क) विरोध का सामना करते वक्‍त हमें क्यों हैरानी नहीं होती? (ख) हम अपने सतानेवालों को कैसे आशीष दे सकते हैं?

13 रोमियों 12:14, 21 पढ़िए। यहोवा अपने मकसदों को ज़रूर अंजाम देगा, इस बात पर भरोसा रखते हुए हम अपना पूरा ध्यान उस काम पर लगा सकते हैं, जो उसने हमें सौंपा है। वह है ‘राज की खुशखबरी’ का “सारे जगत में प्रचार” करना। (मत्ती 24:14) हम जानते हैं कि इस काम से हमारे दुश्‍मन हम पर भड़क उठेंगे, क्योंकि यीशु ने पहले से कहा था: “तुम मेरे नाम की वजह से सब राष्ट्रों की नफरत का शिकार बनोगे।” (मत्ती 24:9) इसलिए सताए जाने पर हम न तो हैरत में पड़ते हैं, ना ही हमारे हौसले पस्त होते हैं। प्रेषित पतरस ने लिखा: “मेरे प्यारो, परीक्षाओं की जो आग तुम्हारे बीच जल रही है उस पर हैरान मत हो, मानो तुम्हारे साथ कोई अनोखी घटना घट रही है। यह इसलिए हो रहा है कि तुम्हारी परख हो। इसके बजाय, तुम यह जानकर खुशियाँ मनाओ कि तुम मसीह की दुःख-तकलीफों में साझेदार बन रहे हो।”—1 पत. 4:12, 13.

14 अपने दुश्‍मनों से नफरत करने के बजाय, हम उन्हें सच्चाई सिखाने की कोशिश करते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि उनमें से कई अनजाने में हम पर सितम करते हैं। (2 कुरिं. 4:4) हम पौलुस की इस सलाह को मानने की पूरी कोशिश करते हैं: “जो तुम पर ज़ुल्म करते हैं, उनके लिए परमेश्‍वर से आशीष माँगते रहो। हाँ, आशीष ही दो, शाप मत दो।” (रोमि. 12:14) अपने सतानेवालों को आशीष देने का एक तरीका है, उनके लिए प्रार्थना करना। यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में कहा: “अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो। जो तुमसे नफरत करते हैं उनके साथ भलाई करते रहो। जो तुम्हें कोसते हैं उन्हें आशीष देते रहो और जो तुम्हारी बेइज़्ज़ती करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।” (लूका 6:27,28) प्रेषित पौलुस अपने अनुभव से जानता था कि एक सतानेवाला आगे चलकर मसीह का वफादार चेला और यहोवा का जोशीला सेवक बन सकता है। (गला. 1:13-16, 23) पौलुस ने अपनी दूसरी चिट्ठी में कहा: “लोग गाली-गलौज करते हैं, मगर हम आशीष का कारण बनते हैं। वे ज़ुल्म करते हैं, हम सह लेते हैं। बदनाम किए जाने पर हम गुज़ारिश करते हैं।”—1 कुरिं. 4:12, 13.

15. भलाई से बुराई को जीतने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है?

15 इसलिए एक सच्चा मसीही रोमियों के 12वें अध्याय की आखिरी आयत में दी सलाह मानता है: “बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।” सारी बुराई की जड़ शैतान और इब्‌लीस ही है। (यूह. 8:44; 1 यूह. 5:19) प्रेषित यूहन्‍ना को जो दर्शन दिया गया था, उसमें यीशु ने उसे बताया कि उसके अभिषिक्‍त भाइयों ने “मेम्ने के लहू की वजह से और उस संदेश की वजह से जिसकी उन्होंने गवाही दी, शैतान पर जीत हासिल की।” (प्रका. 12:11) यह दिखाता है कि शैतान और इस दुनिया की व्यवस्था में फैले उसके बुरे असर पर जीत हासिल करने का सबसे बढ़िया तरीका है, राज की खुशखबरी सुनाकर भलाई करना।

आशा की वजह से खुशी मनाओ

16, 17. रोमियों, अध्याय 12 से हमने इन बातों के बारे में क्या सीखा: (क)  हमें कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए? (ख) मंडली में हमें कैसे पेश आना चाहिए? (ग) हमें विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?

16 रोम के मसीहियों को लिखी पौलुस की चिट्ठी के अध्याय 12 से हमने बहुत कुछ सीखा। जैसे, यहोवा के समर्पित सेवक होने के नाते हमें त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हम ये त्याग खुशी-खुशी करते हैं, क्योंकि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमें ऐसा करने के लिए उभारती है। साथ ही, हमारी सोचने-समझने की शक्‍ति हमें यह भरोसा दिलाती है कि यही परमेश्‍वर की मरज़ी है। हम पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे हैं और अपने वरदानों यानी अलग-अलग काबिलीयतों का पूरे जोश से इस्तेमाल करते हैं। हम नम्रता से और अपनी हद पहचानते हुए सेवा करते हैं। हम मसीही एकता बरकरार रखने के लिए अपना भरसक करते हैं। हम मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालते हैं और एक-दूसरे से सच्ची हमदर्दी रखते हैं।

17 रोमियों अध्याय 12 में हमें विरोध का सामना करने के बारे में भी बहुत-सी सलाहें मिलती हैं। हमें जैसे को तैसा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। जब हमारा विरोध किया जाता है, तो बदले में हमें भले काम करने चाहिए। बाइबल के सिद्धांतों से समझौता किए बगैर हमें सभी के साथ शांति से रहने की पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए। यह बात परिवार, मंडली, पड़ोसियों के साथ पेश आते वक्‍त, नौकरी पर, स्कूल में और प्रचार काम में लागू होती है। यहाँ तक कि जब लोग हम पर ज़ुल्म ढाते हैं, तब हम यह याद रखते हुए कि बदला देने का काम यहोवा का है, भलाई से बुराई को जीतने की पूरी कोशिश करते हैं।

18. रोमियों 12:12 में हमें कौन-सी तीन सलाहें दी गयी हैं?

18 रोमियों 12:12 पढ़िए। इस आयत में पौलुस तीन और सलाह देता है। रोमियों, अध्याय 12 में दी गयी बुद्धि-भरी और कारगर सलाहों पर हम अपने बूते नहीं चल सकते। हमें यहोवा की मदद की ज़रूरत है, इसलिए पौलुस हमें सलाह देता है: “प्रार्थना में लगे रहो।” अगर हम ऐसा करें, तो हम उसकी दूसरी सलाह पर चल सकेंगे और वह है, “संकट में धीरज धरो।” आखिरी बात, हमें अपना पूरा ध्यान भविष्य के बारे में किए यहोवा के वादों पर लगाना चाहिए। और हमें हमेशा की ज़िंदगी पाने की “आशा की वजह से खुशी” मनानी चाहिए, फिर चाहे यह ज़िंदगी हमें स्वर्ग में मिले या धरती पर।

दोहराने के लिए

• हमें विरोध का सामना कैसे करना चाहिए?

• हमें किन दायरों में शांति कायम करने की कोशिश करनी चाहिए और कैसे?

• हमें बदला क्यों नहीं लेना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीर]

अपने पड़ोसियों की कारगर तरीके से मदद करने से हम साक्षियों के बारे में उनकी गलतफहमियाँ दूर कर पाते हैं

[पेज 9 पर तसवीर]

क्या आप मंडली में शांति कायम करनेवाले बनने की कोशिश करते हैं?