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आपकी प्रार्थनाएँ आपके बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?

आपकी प्रार्थनाएँ आपके बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?

आपकी प्रार्थनाएँ आपके बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?

“हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे।”—भज. 65:2.

1, 2. परमेश्‍वर के सेवक पूरे भरोसे के साथ उससे प्रार्थना क्यों कर सकते हैं?

 यहोवा हमेशा अपने वफादार लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है। इसलिए हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह हमारी भी सुनेगा। दुनिया में लाखों यहोवा के साक्षी चाहे एक ही वक्‍त पर प्रार्थना क्यों न करें, फिर भी यहोवा उनमें से किसी को भी अनसुना नहीं करता।

2 भजनहार दाविद को यकीन था कि यहोवा ने उसकी सारी फरियाद सुनी हैं। इसलिए उसने अपने एक गीत में कहा: “हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे।” (भज. 65:2) यहोवा ने दाविद की प्रार्थनाओं का जवाब इसलिए दिया, क्योंकि दाविद उसका एक वफादार सेवक था और सिर्फ उसी की उपासना करता था। हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मेरी प्रार्थनाएँ दिखाती हैं कि मैं यहोवा पर पूरा भरोसा रखता हूँ और सच्ची उपासना को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देता हूँ? मेरी प्रार्थनाएँ मेरे बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?’

नम्रता से यहोवा के पास आइए

3, 4. (क) हमें किस रवैए के साथ परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए? (ख) अगर हमने कोई गंभीर पाप किया है और उसकी ‘चिन्ता’ हमें खाए जा रही है, तो हमें क्या करना चाहिए?

3 अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दे, तो हमें नम्रता से उसके पास आना चाहिए। (भज. 138:6) हमें यहोवा से बिनती करनी चाहिए कि वह हमें जाँचे, ठीक जैसे दाविद ने बिनती की थी: “हे ईश्‍वर, मुझे जांचकर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!” (भज. 139:23, 24) लेकिन इस बारे में सिर्फ प्रार्थना करना काफी नहीं, बल्कि हमें खुद को यहोवा के हवाले कर देना चाहिए ताकि वह हमें जाँच सके। साथ ही, वह अपने वचन के ज़रिए जो सलाह देता है, हमें उसे कबूल करना चाहिए। यहोवा हमें “अनन्त के मार्ग” में ले जाता है। यानी वह हमारी मदद करता है ताकि हम हमेशा की ज़िंदगी की ओर ले जानेवाली राह पर बढ़ते जाएँ।

4 लेकिन तब क्या जब हमने कोई गंभीर पाप किया है और उसकी ‘चिन्ता’ हमें खाए जा रही है? (भजन 32:1-5 पढ़िए।) अगर आपका ज़मीर आपको कचोट रहा है तो उसकी आवाज़ मत दबाइए। वरना आपकी ताकत और आपका जोश खत्म हो सकता है, ठीक जैसे चिलचिलाती धूप में पेड़ों की नमी भाप बनकर उड़ जाती है। दाविद के साथ यही हुआ था। अपने पाप को छिपाने की वजह से उसकी खुशी छिन गयी और वह शायद बीमार भी पड़ गया। लेकिन जब उसने परमेश्‍वर के सामने अपना पाप कबूल किया, तो उसे क्या ही राहत मिली! ज़रा सोचिए, वह कितना खुश हुआ होगा जब उसने महसूस किया कि यहोवा ने ‘उसका अपराध क्षमा कर दिया’ है! परमेश्‍वर के आगे अपने गुनाह कबूल करने से मन को बहुत सुकून पहुँचता है। साथ ही, मसीही प्राचीनों की मदद लेने से एक गुनहगार दोबारा यहोवा के साथ रिश्‍ता जोड़ पाता है।—नीति. 28:13; याकू. 5:13-16.

परमेश्‍वर से मिन्‍नत कीजिए, उसे धन्यवाद दीजिए

5. यहोवा से मिन्‍नत करने का क्या मतलब है?

5 अगर हमें किसी बात की चिंता सता रही है, तो हमें पौलुस की यह सलाह माननी चाहिए: “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्‍नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्‍वर को बताते रहो।” (फिलि. 4:6) ‘मिन्‍नत’ करने का मतलब है, “नम्रता से गिड़गिड़ाकर फरियाद करना।” हमें परमेश्‍वर से मदद और सही राह दिखाने की मिन्‍नत खासकर तब करनी चाहिए, जब हम किसी खतरे का सामना करते हैं या हम पर ज़ुल्म ढाया जाता है।

6, 7. प्रार्थना में हमें यहोवा को किन बातों के लिए धन्यवाद देना चाहिए?

6 लेकिन अगर हम सिर्फ तभी प्रार्थना करें जब हमें कुछ चाहिए, तो इससे हमारे इरादों के बारे में क्या झलकेगा? पौलुस ने कहा कि हमें “धन्यवाद के साथ” परमेश्‍वर से बिनती करनी चाहिए। और यह सही भी है, क्योंकि यहोवा को धन्यवाद देने की हमारे पास ढेरों वजह हैं, ठीक जैसे दाविद के पास थीं। उसने कहा: “हे यहोवा! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्थ्य और विभव, तेरा ही है; क्योंकि आकाश और पृथ्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है; हे यहोवा! राज्य तेरा है, और तू सभों के ऊपर मुख्य और महान ठहरा है। . . . हे हमारे परमेश्‍वर! हम तेरा धन्यवाद और तेरे महिमायुक्‍त नाम की स्तुति करते हैं।”—1 इति. 29:11-13.

7 यीशु खाने-पीने की चीज़ों के लिए परमेश्‍वर को धन्यवाद देता था। प्रभु का संध्या भोज मनाते वक्‍त उसने रोटी और दाख-मदिरा के लिए भी उसका धन्यवाद किया। (मत्ती 15:36; मर. 14:22, 23) इन चीज़ों के लिए कदर दिखाने के अलावा, हमें उन “आश्‍चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है,” “यहोवा का . . . धन्यवाद” करना चाहिए। हमें उसके “न्यायसंगत निर्णयों” (बुल्के बाइबिल) और बाइबल में दिए उसके संदेश के लिए भी उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए।—भज. 107:15; 119:62, 105.

दूसरों के लिए प्रार्थना कीजिए

8, 9. हमें अपने संगी मसीहियों के लिए क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?

8 इसमें कोई शक नहीं कि हम यहोवा से अपने बारे में प्रार्थना करते हैं। लेकिन हमें दूसरों के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए, यहाँ तक कि उन मसीही भाई-बहनों के लिए भी जिन्हें हम नाम से नहीं जानते। हो सकता है प्रेषित पौलुस कुलुस्से के हर मसीही को न जानता हो, फिर भी उसने लिखा: “हम जब-जब तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं, तो हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का हमेशा धन्यवाद करते हैं, क्योंकि हमने मसीह यीशु में तुम्हारे विश्‍वास के बारे में और उस प्यार के बारे में सुना है जो सभी पवित्र जनों के लिए तुम रखते हो।” (कुलु. 1:3, 4) पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों के लिए भी प्रार्थना की। (2 थिस्स. 1:11, 12) जब हम अपने मसीही भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो इससे हमारे बारे में बहुत कुछ ज़ाहिर होता है। साथ ही, हम यह भी दिखाते हैं कि उनके बारे में हमारा नज़रिया कैसा है।

9 जब हम अभिषिक्‍त मसीहियों और उनके साथी, “दूसरी भेड़ों” के लिए प्रार्थना करते हैं तो हम परमेश्‍वर के संगठन के लिए परवाह दिखाते हैं। (यूह. 10:16) पौलुस ने अपने संगी मसीहियों से दरख्वास्त की कि वे उसके लिए प्रार्थना करें ताकि ‘उसे बोलने की ऐसी काबिलीयत दी जाए कि वह खुशखबरी का पवित्र रहस्य सुना सके।’ (इफि. 6:17-20) क्या हम भी दूसरे मसीहियों के लिए इस तरह की प्रार्थना करते हैं?

10. दूसरों के बारे में प्रार्थना करने से हम पर क्या असर होता है?

10 दूसरों के लिए प्रार्थना करने से हमें उनके बारे में अच्छा नज़रिया रखने में मदद मिलती है। अगर कोई शख्स हमें एक आँख नहीं सुहाता, तो उसके बारे में प्रार्थना करने से हमारी सोच बदल सकती है। (1 यूह. 4:20, 21) ऐसी प्रार्थनाओं से पूरी मंडली की हौसला-अफज़ाई होती है और भाइयों के बीच एकता बढ़ती है। यही नहीं, इनसे यह भी साबित होता है कि हममें मसीह जैसा प्यार है। (यूह. 13:34, 35) यह गुण, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है। प्यार के अलावा, पवित्र शक्‍ति के फल के दूसरे पहलू हैं: खुशी, शांति, सहनशीलता, कृपा, भलाई, विश्‍वास, कोमलता, संयम। क्या हम निजी प्रार्थना में परमेश्‍वर से पवित्र शक्‍ति माँगते हैं, ताकि हम उसके फल पैदा कर सकें? (लूका 11:13; गला. 5:22, 23) अगर हाँ, तो हम अपनी बातों और कामों से दिखा रहे होंगे कि हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन पर चलते और उसके मुताबिक जीते हैं।गलातियों 5:16, 25 पढ़िए।

11. दूसरों से यह कहना क्यों सही है कि वे हमारी खातिर प्रार्थना करें?

11 अगर हमारे बच्चों को इम्तहान में नकल करने के लिए लुभाया जाता है, तो हमें उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें बाइबल से ऐसी आयतें पढ़कर सुनानी चाहिए जिनसे वे ईमानदारी से अपना पेपर लिख सकें। पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों से कहा: “हम परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम कुछ भी गलत न करो।” (2 कुरिं. 13:7) इस तरह, नम्रता से की गयी प्रार्थनाओं से यहोवा खुश होता है और ये दिखाती हैं कि हम नेकदिल इंसान हैं। (नीतिवचन 15:8 पढ़िए।) प्रेषित पौलुस की तरह, हम भी दूसरों से हमारी खातिर प्रार्थना करने के लिए कह सकते हैं। उसने लिखा: “हमारे लिए प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ है, इसलिए कि हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।”—इब्रा. 13:18.

हमारी प्रार्थनाएँ हमारे बारे में कुछ और भी ज़ाहिर करती हैं

12. हमें खासकर किन बातों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए?

12 क्या हमारी प्रार्थनाओं से ज़ाहिर होता है कि हम यहोवा के साक्षी खुशी-खुशी और जोश के साथ सेवा करते हैं? क्या हम खासकर इन बातों के लिए प्रार्थना करते हैं कि परमेश्‍वर का नाम रौशन हो और वह हुकूमत करने के अपने अधिकार को बुलंद करे? और यह भी कि हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम करें और उसके राज का संदेश सुनाएँ? हमें इन सब ज़रूरी बातों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि यीशु ने आदर्श प्रार्थना में ऐसा ही सिखाया था। यह प्रार्थना इन शब्दों से शुरू होती है: “हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए। तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।”—मत्ती 6:9, 10.

13, 14. हमारी प्रार्थनाएँ हमारे बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?

13 हमारी प्रार्थनाएँ दिखाती हैं कि हमें किन बातों में दिलचस्पी है, हमारे इरादे और ख्वाहिशें क्या हैं। हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर यहोवा जान लेता है कि हम किस किस्म के इंसान हैं। नीतिवचन 17:3 कहता है: “चान्दी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी होती है, परन्तु मनों को यहोवा जांचता है।” यहोवा देखता है कि हमारे दिल में क्या है। (1 शमू. 16:7) उसे अच्छी तरह पता है कि सभाओं, अपनी सेवा और अपने मसीही भाई-बहनों के बारे में हम कैसा महसूस करते हैं। उसे यह भी मालूम है कि हम यीशु के “भाइयों” के बारे में क्या सोचते हैं। (मत्ती 25:40) वह जानता है कि हम जिस बारे में दुआ करते हैं, क्या वाकई उसे पूरा होते देखना चाहते हैं। या बस आधे मन से एक ही बात बार-बार दोहराते हैं? यीशु ने कहा: “प्रार्थना करते वक्‍त, दुनिया के लोगों की तरह बार-बार एक ही बात न दोहरा, क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके बहुत ज़्यादा बोलने से परमेश्‍वर उनकी सुनेगा।”—मत्ती 6:7.

14 हमारी प्रार्थनाओं से यह भी ज़ाहिर होता है कि हमें यहोवा पर कितना भरोसा है। दाविद ने कहा: “तू [यहोवा] मेरा शरणस्थान है, और शत्रु से बचने के लिये ऊंचा गढ़ है। मैं तेरे तम्बू में युगानुयुग बना रहूंगा। मैं तेरे पंखों की ओट में शरण लिए रहूंगा।” (भज. 61:3, 4) लाक्षणिक मायनों में जब यहोवा हम पर ‘अपना तंबू तानता’ है, तो हम उसकी पनाह में आ जाते हैं और वह हमारी देखभाल और हिफाज़त करता है। (प्रका. 7:15) जी हाँ, हम पर विश्‍वास की चाहे जो भी परीक्षा आ जाए, यहोवा ‘हमारी ओर’ होगा। जब हम इसी यकीन के साथ उससे प्रार्थना करते हैं, तो हम उसके और भी करीब आते हैं। क्यों, है ना यह बड़ी तसल्ली की बात!भजन 118:5-9 पढ़िए।

15, 16. अगर हम मंडली में ज़्यादा सेवा करने की इच्छा रखते हैं, तो प्रार्थना करने से हमें कैसे मदद मिल सकती है?

15 जब हम सच्चे दिल से यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो हमें यह जानने में मदद मिलती है कि क्या हमारे इरादे नेक हैं। मिसाल के लिए, अगर हम मंडली में निगरान की ज़िम्मेदारी पाने के लिए बेताब हैं, तो इसके पीछे हमारा क्या इरादा है? क्या हम नम्रता से दूसरों की मदद करना और राज के कामों को आगे बढ़ाना चाहते हैं? या क्या हम मंडली में “सबसे बड़ा बनना” और दूसरों पर ‘हुक्म चलाना’ चाहते हैं? यहोवा के लोगों को ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं। (3 यूहन्‍ना 9, 10; लूका 22:24-27 पढ़िए।) अगर हम पूरी ईमानदारी से प्रार्थना करें, तो हममें जो भी गलत इच्छाएँ हैं, यहोवा उन्हें हमारे सामने ला सकता है। और इससे पहले कि ये इच्छाएँ हमारे दिल में मज़बूती से जड़ पकड़ लें, हम खुद को बदल सकते हैं।

16 एक मसीही पत्नी की यह दिली तमन्‍ना हो सकती है कि उसका पति पहले सहायक सेवक बने और बाद में एक निगरान या प्राचीन के तौर पर सेवा करे। वह यह तमन्‍ना निजी प्रार्थना में यहोवा के सामने रख सकती है। वह शायद अपनी इस प्रार्थना के मुताबिक काम भी करे और दूसरों के लिए एक अच्छी मिसाल बनने की कोशिश करे। यह ज़रूरी भी है, क्योंकि एक व्यक्‍ति का परिवार जिस तरह की बातें करता और व्यवहार रखता है, उसी से तय होता है कि मंडली के लोग उसे किस नज़र से देखेंगे।

सभाओं में प्रार्थना के दौरान

17. हमें अकेले में क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?

17 यीशु अकसर अपने पिता से प्रार्थना करने के लिए एकांत जगह ढूँढ़ता था। (मत्ती 14:13; लूका 5:16; 6:12) उसी तरह हमें भी अकेले में प्रार्थना करने की ज़रूरत है। जब हम शांत मन से ऐसे माहौल में प्रार्थना करते हैं जहाँ शोर-शराबा न हो, तो हम ऐसे फैसले ले पाएँगे जिनसे यहोवा का दिल खुश हो और उसकी उपासना करने का हमारा इरादा और भी पक्का हो। लेकिन यीशु ने भीड़ के सामने भी प्रार्थना की। और यह जाँचना फायदेमंद है, क्योंकि इससे हम जान पाएँगे कि सभाओं में प्रार्थना करने का सही तरीका क्या है।

18. मंडली की तरफ से प्रार्थना करते वक्‍त, भाइयों को कौन-सी बातें ध्यान में रखनी चाहिए?

18 हमारी सभाओं में वफादार भाई मंडली की तरफ से प्रार्थना करते हैं। (1 तीमु. 2:8) ऐसी प्रार्थनाओं के खत्म होने पर, हाज़िर लोगों को “आमीन” कहना चाहिए, जिसका मतलब है “ऐसा ही हो।” लेकिन वे ऐसा तभी कर पाएँगे जब वे कही बातों से सहमत होंगे। यीशु ने अपनी आदर्श प्रार्थना में ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे लोग चौंक गए हों या उनके दिल को धक्का लगा हो। (लूका 11:2-4) साथ ही, भीड़ में जितने लोग थे उसने उन सबकी समस्याएँ एक-एक कर नहीं गिनवायीं। उसी तरह, याद रखिए कि जो परेशानियाँ हमें सता रही हैं, उन्हें सभाओं में की जानेवाली प्रार्थनाओं में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि उनका ज़िक्र निजी प्रार्थनाओं में किया जाना चाहिए। इसके अलावा, सभा की प्रार्थनाओं में हमें कोई भी गुप्त बात नहीं बतानी चाहिए।

19. सभा में प्रार्थना के दौरान हमें कैसे पेश आना चाहिए?

19 जब कोई भाई मंडली की तरफ से प्रार्थना करता है, तो हम हाज़िर लोगों को “परमेश्‍वर का डर” यानी श्रद्धा दिखानी चाहिए। (1 पत. 2:17) कुछ काम किसी समय और जगह पर करना सही हो सकता है, लेकिन वही काम शायद मसीही सभा में शोभा न दे। (सभो. 3:1) उदाहरण के लिए, सभा में हाज़िर एक व्यक्‍ति सभी को बढ़ावा दे सकता है कि वे प्रार्थना के दौरान बाहें डालकर या हाथ थामकर खड़े रहें। मगर इससे कुछ लोगों को बुरा लग सकता है या फिर उनका ध्यान भटक सकता है। इनमें शायद दिलचस्पी दिखानेवाले भी हों। हो सकता है कुछ मसीही जोड़े दूसरों का ध्यान खिंचे बगैर एक-दूसरे का हाथ पकड़ें। लेकिन अगर वे एक-दूसरे के गले में हाथ डालकर खड़े रहें, तो कोई देखनेवाला इस बात से ठोकर खा सकता है। शायद उसे लगे कि जोड़े को यहोवा का आदर करने के बजाय अपने रोमानी प्यार की पड़ी है। इसलिए परमेश्‍वर के सम्मान की खातिर, आइए हम “सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए” करें। और ऐसे व्यवहार से दूर रहें जिनसे लोगों का ध्यान भटक सकता है, उन्हें ठेस पहुँच सकती है या फिर वे ठोकर खा सकते हैं।—1 कुरिं. 10:31, 32; 2 कुरिं. 6:3.

किन बातों के लिए प्रार्थना करें?

20. रोमियों 8:26, 27 समझाइए।

20 निजी प्रार्थना करते वक्‍त कई बार हमें नहीं सूझता कि हम क्या कहें। पौलुस ने लिखा: “समस्या यह है कि जब हमें प्रार्थना करनी चाहिए, तब हम नहीं जानते कि हम क्या प्रार्थना करें। मगर पवित्र शक्‍ति खुद हमारी दबी हुई आहों के साथ हमारे लिए बिनती करती है। और दिलों को जाँचनेवाला [परमेश्‍वर] जानता है कि पवित्र शक्‍ति का क्या मतलब है।” (रोमि. 8:26, 27) यहोवा ने बाइबल में बहुत-सी प्रार्थनाएँ दर्ज़ करवायी हैं। जब हम प्रार्थना में कुछ बोल नहीं पाते, तब वह इन प्रार्थनाओं को हमारी गुज़ारिश समझकर कबूल करता है। और फिर उन्हें पूरा करता है। परमेश्‍वर हमें अच्छी तरह जानता है। साथ ही, वह उन बातों का मतलब भी समझता है, जो बाइबल के लेखकों ने पवित्र शक्‍ति के उभारे जाने पर लिखीं। इसलिए इन मायनों में जब उसकी पवित्र शक्‍ति हमारे लिए “बिनती” करती है, तो यहोवा हमारी दुआओं का जवाब देता है। लेकिन जैसे-जैसे हम यहोवा के वचन से वाकिफ होते हैं, हम सीख जाते हैं कि हमें प्रार्थना में क्या कहना चाहिए।

21. अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

21 जैसा कि हमने सीखा, हमारी प्रार्थनाएँ हमारे बारे में बहुत कुछ ज़ाहिर करती हैं। उदाहरण के लिए, ये बताती हैं कि हम यहोवा के कितने करीब हैं और उसके वचन को कितने अच्छे से जानते हैं। (याकू. 4:8) अगले लेख में हम बाइबल में दर्ज़ कुछ प्रार्थनाओं और उनमें कहे शब्दों की गहराई से जाँच करेंगे। ऐसा कर हम जान पाएँगे कि हम किन तरीकों से अपनी प्रार्थनाएँ निखार सकते हैं।

आप क्या जवाब देंगे?

• हमें किस रवैए के साथ परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए?

• हमें अपने संगी मसीहियों के लिए प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?

• हमारी दुआओं से हमारे और हमारे इरादों के बारे में क्या ज़ाहिर होता है?

• सभाओं में प्रार्थना के दौरान हमें कैसे पेश आना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 4 पर तसवीर]

क्या आप नियमित तौर पर प्रार्थना में यहोवा की स्तुति करते और उसे धन्यवाद देते हैं?

[पेज 6 पर तसवीर]

सभाओं में प्रार्थना के दौरान हमें हमेशा ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे यहोवा का आदर हो