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परमेश्‍वर के सेवक के नाते अदब से पेश आइए

परमेश्‍वर के सेवक के नाते अदब से पेश आइए

परमेश्‍वर के सेवक के नाते अदब से पेश आइए

‘परमेश्‍वर की मिसाल पर चलो।’—इफि. 5:1.

1, 2. (क) अदब से पेश आना क्यों ज़रूरी है? (ख) इस लेख में किन बातों पर चर्चा की जाएगी?

 अच्छे व्यवहार के बारे में लेखिका सू फॉक्स लिखती हैं: “हमारी बोली और व्यवहार में हमेशा विनम्रता घुली होनी चाहिए। यह हर जगह, हर समय काम आती है।” जब लोग अदब से पेश आने की आदत डाल लेते हैं तब दूसरों के साथ उनकी खटपट कम होती है या होती ही नहीं। वहीं दूसरी तरफ, रुखाई से पेश आने का अंजाम होता है रगड़े-झगड़े, नाराज़गी और दिल दुखी होना।

2 आम तौर पर सभी मसीही तहज़ीबदार होते हैं। फिर भी हमें खबरदार रहना चाहिए, क्योंकि आज दुनिया में हर कहीं लोग बेअदबी से पेश आते हैं और यह रवैया हम पर भी असर कर सकता है। आइए देखें कि इस मामले में बाइबल के सिद्धांत लागू करने से कैसे हमारी हिफाज़त होती है और हमारा अच्छा व्यवहार देखकर लोग सच्ची उपासना की तरफ खिंचे चले आते हैं। अदब से पेश आने में क्या शामिल है, यह समझने के लिए यहोवा परमेश्‍वर और उसके बेटे यीशु की मिसाल पर गौर कीजिए।

यहोवा और यीशु—अच्छे व्यवहार की उम्दा मिसालें

3. यहोवा परमेश्‍वर ने आदर दिखाने में क्या मिसाल रखी?

3 आदर से पेश आने में यहोवा से बढ़कर कोई नहीं। इस जहान का मालिक होने के बावजूद वह इंसानों पर कृपा करता है और उन्हें इज़्ज़त देता है। अब्राहम और मूसा से बात करते वक्‍त, यहोवा ने मूल भाषा इब्रानी में एक ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे उसकी आज्ञा उन्हें आज्ञा नहीं बल्कि विनम्र गुज़ारिश लगी। (उत्प. 13:14; निर्ग. 4:6) जब उसके सेवक गलती करते हैं, तब वह उनके लिए ‘दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय’ परमेश्‍वर साबित होता है। (भज. 86:15) वह उन इंसानों से बिलकुल अलग है, जो ज्वालामुखी की तरह फट पड़ते हैं जब दूसरे उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते।

4. दूसरों की सुनते वक्‍त हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

4 परमेश्‍वर जिस तरह से इंसानों की सुनता है, उससे भी हम अच्छे व्यवहार के बारे में सीख सकते हैं। अब्राहम को सदोम के लोगों की चिंता थी, इसलिए उसने यहोवा से कई सवाल पूछे। इस पर यहोवा ने अपना आपा नहीं खोया, बल्कि सब्र से काम लेते हुए उसके हर सवाल का जवाब दिया। (उत्प. 18:23-32) उसने यह नहीं सोचा कि अब्राहम उसका समय बरबाद कर रहा है। यहोवा अपने सेवकों की प्रार्थनाएँ और पछतावा दिखानेवाले पापियों की पुकार सुनता है। (भजन 51:11, 17 पढ़िए।) क्या हमें यहोवा की मिसाल पर चलते हुए दूसरों की नहीं सुननी चाहिए?

5. यीशु की मिसाल पर चलते हुए अच्छा व्यवहार दिखाने से कैसे दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते में सुधार आता है?

5 यीशु भी अच्छा व्यवहार दिखाने में एक उम्दा मिसाल था। यह उसने अपने पिता से सीखा था। हालाँकि सेवा में कभी-कभी उसका समय और पूरी ताकत खप जाती थी, फिर भी वह हमेशा धीरज और करुणा से पेश आता। इसलिए कोढ़ी और अंधे लोगों ने, जो भीख माँगकर अपना पेट पालते थे, साथ ही मुसीबत के मारों ने पाया कि यीशु उनकी मदद करने के लिए हरदम तैयार रहता है। जब वे वक्‍त-बेवक्‍त यीशु के पास आते, तो वह उन्हें भगा नहीं देता। इसके बजाय, वह अपना काम बीच में रोककर पहले उनकी परेशानियाँ दूर करता। जो लोग यीशु पर विश्‍वास करते थे, वह उनके लिए खास परवाह दिखाता था। (मर. 5:30-34; लूका 18:35-41) आज हम मसीही भी दूसरों पर कृपा करने और उनकी मदद करने के ज़रिए यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं। इस तरह का व्यवहार हमारे रिश्‍तेदार, पड़ोसी और दूसरों से छिपा नहीं रहता। यही नहीं, हमारे अच्छे व्यवहार से यहोवा की महिमा होती है और हमारी ज़िंदगी खुशियों से भर जाती है।

6. प्यार और दोस्ताना तरीके से पेश आने में यीशु ने क्या मिसाल रखी?

6 यीशु एक और तरीके से लोगों को गरिमा नवाज़ता था। वह उनका नाम लेकर बुलाता था। क्या यहूदी धर्म-गुरु ऐसा करते थे? नहीं। जो लोग कानून के जानकार नहीं थे, उन्हें वे “शापित” मानते और उनसे उसी तरह पेश आते थे। (यूह. 7:49) लेकिन परमेश्‍वर का बेटा उनसे जुदा था। वह मारथा, मरियम, जक्कई और दूसरे कई लोगों को नाम से बुलाता था। (लूका 10:41, 42; 19:5) आज हम लोगों को उनके नाम से बुलाएँगे या नहीं, यह जगह की संस्कृति और हालात पर निर्भर करता है। * फिर भी, यहोवा के साक्षी दूसरों के साथ दोस्ताना तरीके से पेश आने की कोशिश करते हैं। चाहे संगी मसीही या दूसरे, समाज में कम ओहदा क्यों न रखते हों, हम उन्हें वह आदर देने से पीछे नहीं हटते जिसके वे हकदार हैं।याकूब 2:1-4 पढ़िए।

7. हर जगह के लोगों का आदर करने में बाइबल के सिद्धांत कैसे हमारी मदद करते हैं?

7 परमेश्‍वर और उसका बेटा, हर राष्ट्र और जाति के लोगों पर जिस तरह दया करते हैं, वह दिखाता है कि वे सभी इंसानों की इज़्ज़त करते हैं। और यही बात नेकदिल लोगों को सच्चाई की तरफ खींचती है। बेशक, हर जगह का अपना एक अदब-कायदा होता है। इसलिए हम इस मामले में लकीर के फकीर नहीं होते। इसके बजाय हम बाइबल के सिद्धांतों को लागू करते हैं, क्योंकि तभी हम जगह के हिसाब से लोगों का आदर कर पाते हैं। तो आइए जाँच करें कि दूसरों के साथ तहज़ीब से पेश आने से कैसे हमें प्रचार में अच्छे नतीजे मिल सकते हैं।

दुआ-सलाम करना और बात करना

8, 9. (क) किस आदत को बुरा व्यवहार माना जा सकता है? (ख) दूसरों से व्यवहार करते वक्‍त हमें मत्ती 5:47 में दर्ज़ यीशु की सलाह क्यों माननी चाहिए?

8 आज कई जगहों पर लोगों की ज़िंदगी बड़ी रफ्तार से दौड़ रही है। ऐसे में लोग अकसर एक-दूसरे को “नमस्ते” या “हैलो” कहने, या यह पूछने का भी तकल्लुफ नहीं उठाते कि “आप कैसे हैं?” बेशक, किसी से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह भीड़-भड़क्के में हर किसी से बात करे। लेकिन ऐसे कई हालात हैं जिनमें दूसरों को नमस्ते कहना अच्छा और मुनासिब भी होता है। क्या आपमें भी लोगों को दुआ-सलाम करने की आदत है? या क्या आप अकसर दूसरों को देखकर बिना मुस्कराए या दो शब्द कहे आगे बढ़ जाते हैं? एक इंसान अनजाने में बेअदबी से पेश आने लग सकता है।

9 यीशु ने एक बात याद दिलायी जब उसने कहा: “अगर तुम सिर्फ अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन-सा अनोखा काम करते हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा ही नहीं करते?” (मत्ती 5:47) इस सिलसिले में, एक सलाहकार डॉनल्ड वाइस ने लिखा: “यह बात लोगों के गले नहीं उतरती कि सामनेवाला उन्हें देखकर भी अनदेखा कर दे। दरअसल, दूसरों को नज़रअंदाज़ करने की कोई वजह है ही नहीं। इसलिए इस समस्या का सीधा-सा हल है: लोगों से दुआ-सलाम कीजिए। उनसे बात कीजिए।” अगर हम दूसरों से प्यार और दोस्ताना अंदाज़ में मिलें, तो हमें अच्छे नतीजे मिलेंगे।

10. अच्छा व्यवहार हमें अपनी सेवा में अच्छे नतीजे पाने में कैसे मदद दे सकता है? (“मुस्कराकर बातचीत शुरू कीजिए” बक्स देखिए।)

10 एक मसीही जोड़े, टॉम और कैरल की मिसाल लीजिए। वे उत्तरी अमरीका के एक बड़े शहर में रहते हैं। उन्होंने अपने पड़ोसियों से मीठी बातचीत करना, अपनी सेवा का हिस्सा बनाया है। वे यह कैसे कर पाते हैं? याकूब 3:18 का ज़िक्र करते हुए टॉम कहता है: “हम दोस्ताना व्यवहार बनाए रखने की कोशिश करते हैं और सबके साथ शांति से रहते हैं। हम खुद जाकर उन लोगों से मिलते हैं, जो अपने घर के बाहर खड़े होते हैं और जो हमारे इलाके में काम करने आते हैं। हम उन्हें देखकर मुस्कराते और दुआ-सलाम करते हैं। फिर उन विषयों पर बात करते हैं, जिनमें उन्हें दिलचस्पी है, जैसे उनके घर, नौकरी, बच्चे और कुत्तों के बारे में। धीरे-धीरे हममें दोस्ती हो जाती है।” कैरल बताती है: “एक-दो मुलाकातों के बाद, हम उन्हें अपना नाम बताते हैं और उनसे उनका नाम पूछते हैं। हम उन्हें चंद शब्दों में अपने गवाही देने के काम के बारे में बताते हैं। आखिरकार, हम उन्हें गवाही दे पाते हैं।” टॉम और कैरल ने अपने बहुत-से पड़ोसियों का भरोसा जीता है। उनमें से कइयों ने बाइबल पर आधारित साहित्य स्वीकार किए और कुछ ने तो सच्चाई सीखने के लिए बड़ा उत्साह भी दिखाया।

आफत में शराफत

11, 12. प्रचार में बेरुखी का सामना करना हमारे लिए नयी बात क्यों नहीं है? ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?

11 जब हम खुशखबरी सुनाते हैं, तब हमें कभी-कभार लोगों की बेरुखी का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन यह हमारे लिए कोई नयी बात नहीं, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों को खबरदार किया था: “अगर उन्होंने मुझ पर ज़ुल्म किया है, तो तुम पर भी ज़ुल्म करेंगे।” (यूह. 15:20) मगर ईंट का जवाब पत्थर से देने के अच्छे नतीजे नहीं निकलते। तो फिर हमें कैसे पेश आना चाहिए? प्रेषित पतरस ने लिखा: “मसीह को प्रभु जानकर अपने दिलों में पवित्र मानो, और जो कोई तुम्हारी आशा की वजह जानने की माँग करता है, उसके सामने अपनी आशा की पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार रहो, मगर ऐसा कोमल स्वभाव और गहरे आदर के साथ करो।” (1 पत. 3:15) अगर हम अदब से पेश आएँ, यानी कोमलता और आदर दिखाएँ तो हमारे विरोधियों का दिल पिघल सकता है और वे शायद हमारा संदेश सुनने के लिए राज़ी हो जाएँ।—तीतु. 2:7, 8.

12 जब लोग हमारे बारे में उलटा-सीधा कहते हैं, तो क्या हम उन्हें इस तरह से जवाब देने के लिए तैयार हो सकते हैं, जिससे परमेश्‍वर खुश हो? जी हाँ। पौलुस ने सुझाव दिया: “तुम्हारे बोल हमेशा मन को भानेवाले, सलोने हों। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें हर एक को वैसे जवाब देना आ जाएगा, जैसे तुमसे उम्मीद की जाती है।” (कुलु. 4:6) हमें अपने घरवालों, स्कूल के साथियों, साथ काम करनेवालों, मंडली के भाई-बहनों, पड़ोसियों, सभी के साथ अदब से पेश आने की आदत डालनी चाहिए। ऐसा कर हम अपने खिल्ली उड़ानेवालों और ज़लील करनेवालों का उस तरीके से सामना करने के लिए तैयार हो पाएँगे, जो मसीहियों को शोभा देता है।रोमियों 12:17-21 पढ़िए।

13. अदब दिखाने से विरोधियों का दिल पिघल सकता है, इसका एक उदाहरण दीजिए।

13 मुश्‍किल हालात में भी अदब दिखाने के अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। मिसाल के लिए, जापान में एक साक्षी घर-घर प्रचार कर रहा था कि तभी एक घर-मालिक और उसके मेहमान ने उसका मज़ाक उड़ाया। इस पर उस भाई ने विनम्रता दिखायी और वहाँ से चला गया। उसने आगे प्रचार जारी रखा। उसने गौर किया कि वह मेहमान काफी समय से उसे दूर खड़ा देख रहा है। जब भाई उसके पास गया तो उस मेहमान ने कहा: “जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। मैंने गौर किया कि हमने आपको इतना बुरा-भला कहा, फिर भी आप मुस्कराते रहे। आपकी तरह बनने के लिए मुझे क्या करना होगा?” दरअसल, उस मेहमान की नौकरी छूट गयी थी और हाल ही में उसकी माँ भी गुज़र गयी। इस वजह से उसके पास खुश रहने की कोई वजह ही नहीं रह गयी थी। साक्षी ने उसके सामने बाइबल अध्ययन की पेशकश रखी और वह इसके लिए राज़ी हो गया। जल्द ही, वह हफ्ते में दो बार बाइबल अध्ययन करने लगा।

अच्छा व्यवहार सिखाने का सबसे बढ़िया तरीका

14, 15. पुराने ज़माने में यहोवा के सेवक अपने बच्चों को कैसी तालीम देते थे?

14 पुराने ज़माने में, परमेश्‍वर का भय माननेवाले माता-पिता अपने बच्चों को घर पर ही अदब-कायदा सिखाते थे। गौर कीजिए, उत्पत्ति 22:7 में अब्राहम और उसके बेटे इसहाक ने आपस में कैसे तहज़ीब से बात की। यूसुफ की मिसाल भी दिखाती है कि उसने अपने माता-पिता से अच्छे संस्कार पाए थे। जब वह जेल में था, तब भी वह दूसरे कैदियों से अदब से पेश आया। (उत्प. 40:8, 14) उसने जिस तरह फिरौन से बात की, वह दिखाता है कि उसे अधिकारियों से बात करने का सलीका था।—उत्प. 41:16, 33, 34.

15 इसराएल जाति को दी दस आज्ञाओं में से एक थी: “तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।” (निर्ग. 20:12) अपने माता-पिता के लिए आदर दिखाने का एक तरीका है कि बच्चे घर पर अच्छा व्यवहार करें। यिप्तह की बेटी ने बहुत ही अनोखे तरीके से अपने पिता के लिए आदर दिखाया। उसने अपने पिता के किए वादे का मान रखा, जबकि ऐसा करना उसके हालात के मुताबिक बहुत मुश्‍किल था।—न्यायि. 11:35-40.

16-18. (क) बच्चों को अच्छा व्यवहार कैसे सिखाया जा सकता है? (ख) इसके क्या फायदे हैं?

16 बच्चों को अच्छा आचरण सिखाना निहायत ज़रूरी है। उन्हें बचपन से ही घर आए मेहमानों का स्वागत करना, टेलीफोन पर सलीके से बात करना और चार लोगों के बीच तहज़ीब से खाना खाना सिखाना चाहिए ताकि वे बड़े होकर दूसरों के साथ घुल-मिल सकें। उन्हें समझने की ज़रूरत है कि उन्हें क्यों आगे होकर दूसरों के लिए दरवाज़ा खोलना, बुज़ुर्ग और बीमारों के लिए लिहाज़ दिखाना और भारी सामान उठाने में दूसरों की मदद करनी चाहिए। उन्हें यह भी समझाइए कि सच्चे दिल से “कृपया/मेहरबानी,” “शुक्रिया/धन्यवाद,” “क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?” “माफ कीजिए” वगैरह कहने की क्या अहमियत है।

17 बच्चों को अदब से पेश आने की तालीम देना मुश्‍किल नहीं। ऐसा करने का सबसे बढ़िया तरीका है, खुद अच्छी मिसाल कायम करना। पच्चीस साल का कुर्ट बताता है कि कैसे उसने और उसके तीन भाइयों ने विनम्रता दिखाना सीखा। वह कहता है: “हम मम्मी-पापा को एक-दूसरे से आदर से बात करते सुनते थे। साथ ही, हम यह भी देखते थे कि वे कैसे लोगों के साथ सब्र से पेश आते और उनके लिए लिहाज़ दिखाते थे। राज्य-घर में जब पापा सभाओं से पहले और बाद में बुज़ुर्ग भाई-बहनों से बात करने जाते, तो मुझे साथ ले चलते थे। मैं उन्हें दुआ-सलाम करते और बात करते सुनता था। उस दौरान मैं साफ देख पाता था कि पापा के दिल में उनके लिए कितना आदर है।” कुर्ट आगे कहता है: “कुछ वक्‍त बाद, मैंने उनके अच्छे व्यवहार को अपना बना लिया। इसलिए अदब से पेश आने में अब मुझे मेहनत नहीं करनी पड़ती, यह खुद-ब-खुद होता है। अदब से पेश आने का मतलब नहीं कि आपको ऐसा करने का नाटक करना है, बल्कि आप ऐसा करना चाहते हैं इसलिए करते हैं।”

18 बच्चों को अच्छा व्यवहार सिखाने का क्या नतीजा होता है? वे आसानी से दोस्त बना पाते हैं और दूसरों के साथ शांति से रह पाते हैं। बड़े होकर उनकी अपने मालिक और साथ काम करनेवालों के साथ अच्छी निभ पाती है। इससे भी बढ़कर, जो बच्चे अदब से पेश आना, आदर दिखाना जानते हैं और सही राह पर चलते हैं, उनके माता-पिता को खुशी और संतोष मिलता है।नीतिवचन 23:24, 25 पढ़िए।

अच्छा व्यवहार रखे हमें दुनिया से जुदा

19, 20. हमें अपने विनम्र परमेश्‍वर और उसके बेटे की मिसाल पर चलने की क्यों ठान लेना चाहिए?

19 पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो।” (इफि. 5:1) यहोवा और उसके बेटे, यीशु की मिसाल पर चलने में बाइबल के सिद्धांतों को लागू करना शामिल है। इनमें से कुछ सिद्धांत इस लेख में दिए गए हैं। अगर हम इन सिद्धांतों पर चलें, तो हम अदब दिखाने का ढोंग करने से दूर रहेंगे। यानी हम अपने मतलब के लिए अधिकारियों की खुशामद नहीं करेंगे।—यहू. 16.

20 यहोवा ने अच्छे व्यवहार के जो स्तर कायम किए हैं, उन्हें शैतान इन आखिरी दिनों में मिटाने पर तुला हुआ है। लेकिन शैतान, सच्चे मसीहियों के अच्छे व्यवहार को मिटाने में कभी कामयाब नहीं होगा। ऐसा हो कि हममें से हरेक अपने विनम्र परमेश्‍वर और उसके बेटे की मिसाल पर चलने की ठान ले। तब हमारी बोली और व्यवहार हमेशा उन लोगों से अलग होगा, जो उजड्ड हैं। ऐसा करने पर हम अपने परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई करेंगे, जो अच्छे व्यवहार की उम्दा मिसाल है। साथ ही, हम नेकदिल लोगों को सच्ची उपासना की तरफ भी खींच पाएँगे।

[फुटनोट]

^ कई संस्कृतियों में अपने से बड़ों का नाम लेकर उन्हें पुकारना अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन अगर वे हमें इसकी इजाज़त देते हैं, तो हम ऐसा कर सकते हैं। मसीहियों को ऐसे दस्तूर का आदर करना चाहिए।

क्या आपको याद है?

• अदब से पेश आने के बारे में हम यहोवा और यीशु से क्या सीख सकते हैं?

• हम क्यों कह सकते हैं कि अदब से दुआ-सलाम करने से हम मसीही के तौर पर अच्छा नाम पाएँगे?

• प्रचार में तहज़ीब दिखाने से हमें अच्छे नतीजे कैसे मिलते हैं?

• माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा व्यवहार कैसे सिखा सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 27 पर बक्स]

मुस्कराकर बातचीत शुरू कीजिए

बहुत-से लोग अजनबियों से बात शुरू करने में झिझकते हैं। लेकिन यहोवा के साक्षी, परमेश्‍वर यहोवा और अपने पड़ोसी के प्यार की खातिर बातचीत करने का हुनर सीखते हैं, क्योंकि वे दूसरों को बाइबल की सच्चाई बाँटना चाहते हैं। इस सिलसिले में तरक्की करने के लिए क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

फिलिप्पियों 2:4 में एक अनमोल सिद्धांत दिया गया है: “हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में न रहे, बल्कि दूसरे के भले की भी फिक्र करे।” अब ज़रा सोचिए: अगर आप किसी व्यक्‍ति से पहली बार मिल रहे हैं, तो आप उसके लिए अजनबी हैं। ऐसे में लाज़िमी है कि वह आपसे बात करने में हिचकिचाएगा। आप उसका डर कैसे दूर कर सकते हैं? अच्छी तरह मुस्कराइए और दोस्ताना अंदाज़ में दुआ-सलाम कीजिए। लेकिन इसके अलावा, और बातों पर भी ध्यान देना ज़रूरी है।

हो सकता है वह कुछ सोच रहा हो और आपके बात करने से उसके विचारों में खलल पड़ गयी हो। अगर आप उसके विचारों का लिहाज़ न करते हुए उसका ध्यान बस अपनी बातों की तरफ लाने की कोशिश करेंगे, तो क्या वह आपका संदेश सुनने के लिए तैयार होगा? नहीं। इसलिए हो सके तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसके मन में क्या चल रहा है। और फिर उसी बात को लेकर चर्चा शुरू कीजिए। जब यीशु, सामरिया के कुँए के पास एक स्त्री से मिला, तो उसने यही किया। (यूह. 4:7-26) वह स्त्री पानी भरने के बारे में सोच रही थी। इसलिए यीशु ने उससे पानी के बारे में ही बातचीत शुरू की। और कुछ ही समय बाद, उनके बीच आध्यात्मिक बातों को लेकर एक दिलचस्प चर्चा शुरू हो गयी।

[पेज 26 पर तसवीरें]

लोगों के साथ दोस्ताना व्यवहार करने से उन्हें अच्छी गवाही देने का रास्ता खुलता है

[पेज 28 पर तसवीर]

हमें हमेशा अदब से पेश आना चाहिए