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बाइबल के अध्ययन से अपनी प्रार्थनाएँ निखारिए

बाइबल के अध्ययन से अपनी प्रार्थनाएँ निखारिए

बाइबल के अध्ययन से अपनी प्रार्थनाएँ निखारिए

“हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपने दास की प्रार्थना पर . . . कान लगा।”—नहे. 1:11.

1, 2. बाइबल में दर्ज़ कुछ प्रार्थनाओं पर गौर करना क्यों फायदेमंद है?

 प्रार्थना करना और बाइबल का अध्ययन करना, सच्ची उपासना के अहम पहलू हैं। (1 थिस्स. 5:17; 2 तीमु. 3:16, 17) बेशक बाइबल एक ऐसी किताब नहीं, जिसमें सिर्फ प्रार्थनाएँ लिखी हों। मगर इसमें कई प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं, जिनमें से ज़्यादातर भजनों की किताब में पायी जाती हैं।

2 जैसे-जैसे आप बाइबल पढ़ेंगे और इसका अध्ययन करेंगे, आपको ऐसी बहुत-सी प्रार्थनाएँ मिलेंगी जो आपके हालात पर बिलकुल सही बैठती हों। यही नहीं, अगर आप उन प्रार्थनाओं के कुछ शब्द या भजनों के कुछ बोल अपनी बिनती में शामिल करें, तो वह और निखर जाएगी। आप उन लोगों से क्या सीख सकते हैं, जिन्होंने मदद के लिए यहोवा को पुकारा और उसने उनकी सुनी? और प्रार्थनाओं में उन्होंने जो कहा, उससे हमें क्या सीख मिलती है?

परमेश्‍वर से मार्गदर्शन माँगिए और उस पर चलिए

3, 4. अब्राहम का सेवक किस खास काम से मेसोपोटामिया गया? यहोवा ने उसकी प्रार्थना का जो जवाब दिया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

3 बाइबल के अध्ययन से यह बात खुलकर सामने आती है कि हमें हमेशा परमेश्‍वर से मार्गदर्शन माँगना चाहिए। गौर कीजिए कि कुलपिता अब्राहम के एक सबसे पुराने नौकर के साथ क्या हुआ। उसका नाम शायद एलीएजेर था। अब्राहम ने उसे मेसोपोटामिया भेजा ताकि वह उसके बेटे इसहाक के लिए एक ऐसी लड़की लाए जो परमेश्‍वर का भय मानती हो। जब कुछ स्त्रियाँ पानी भरने के लिए कुएँ के पास आ रही थीं, तो एलीएजेर ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: “यहोवा . . . ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर झुका, कि मैं पीऊं: और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटों को भी पिलाऊंगी: सो वही हो जिसे तू ने अपने दास इसहाक के लिये ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करुणा की है।”—उत्प. 24:12-14.

4 अब्राहम के नौकर को अपनी प्रार्थना का जवाब तब मिला, जब रिबका ने उसके ऊँटों को पानी पिलाया। जल्द ही, रिबका उसके साथ कनान गयी और इसहाक की प्यारी पत्नी बनी। बेशक, आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यहोवा आपको भी कोई खास निशानी देगा जैसे उसने एलीएजेर को दी थी। लेकिन अगर आप उससे प्रार्थना करें और उसकी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलने की ठान लें, तो वह आपको ज़िंदगी में सही राह ज़रूर दिखाएगा।—गला. 5:18.

प्रार्थना से डर और चिंताएँ कम होती हैं

5, 6. एसाव से मिलने से पहले याकूब ने जो प्रार्थना की, उसमें क्या बात गौर करने लायक है?

5 प्रार्थना करने से डर और चिंताएँ कम होती हैं। याकूब को डर था कि उसका जुड़वा भाई एसाव उसे नुकसान पहुँचाएगा। इसलिए उसने प्रार्थना की: “हे यहोवा, . . . तू ने जो जो काम अपनी करुणा [या, सच्चा प्यार] और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, . . . तेरे ऐसे ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं। मेरी विनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा: मैं तो उस से डरता हूं, कहीं ऐसा न हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कों को भी मार डाले। तू ने तो कहा है, कि मैं निश्‍चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जा सकते।”—उत्प. 32:9-12.

6 इसके बाद, याकूब ने अपने परिवार की हिफाज़त के लिए एहतियाती कदम उठाए। उसकी प्रार्थना का जवाब तब मिला जब उसकी अपने भाई से सुलह हो गयी। (उत्प. 33:1-4) इस प्रार्थना को ध्यान से पढ़ने पर आप पाएँगे कि याकूब ने सिर्फ मदद की गुहार ही नहीं लगायी। बल्कि उसने वादा किए गए वंश पर अपना विश्‍वास ज़ाहिर किया और परमेश्‍वर के सच्चे प्यार के लिए दिल से एहसान माना। क्या आपको किसी बात का “डर” या चिंता है? (2 कुरिं. 7:5) अगर हाँ, तो याकूब की फरियाद आपको याद दिलाएगी कि प्रार्थना करने से हमारा डर और चिंताएँ कम हो सकती हैं। लेकिन प्रार्थना में मदद माँगने के अलावा, हमें ऐसी बातें भी कहनी चाहिए जो दिखाएँ कि हमें परमेश्‍वर पर विश्‍वास है।

बुद्धि की गुज़ारिश कीजिए

7. मूसा ने परमेश्‍वर से यह प्रार्थना क्यों की कि वह उसे अपने मार्गों के बारे में ज्ञान दे?

7 यहोवा को खुश करने की इच्छा आपको उकसाएगी कि आप उससे बुद्धि की गुज़ारिश करें। मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उसे अपने मार्गों के बारे में ज्ञान दे। उसने कहा: “सुन तू [यहोवा] मुझ से कहता है, कि इन लोगों को [मिस्र से] ले चल; . . . और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपनी गति [या, मार्ग] समझा दे, . . . तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।” (निर्ग. 33:12, 13) परमेश्‍वर ने मूसा की सुन ली और उसे अपने मार्गों की गहरी समझ दी। मूसा को इस ज्ञान की सख्त ज़रूरत थी, क्योंकि वह परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई करने जा रहा था।

8. पहला राजा 3:7-14 पर मनन करने से आपको क्या फायदा होगा?

8 दाविद ने भी बिनती की: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला।” (भज. 25:4) उसके बेटे सुलैमान ने परमेश्‍वर से बुद्धि के लिए मिन्‍नत की, ताकि वह इसराएल पर हुकूमत करने की अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा सके। सुलैमान की प्रार्थना से यहोवा खुश हुआ और उसने सुलैमान को सिर्फ बुद्धि ही नहीं बल्कि धन और वैभव भी दिया। (1 राजा 3:7-14 पढ़िए।) अगर आपको मंडली में ऐसी ज़िम्मेदारियाँ दी जाती हैं जिन्हें पूरा करना आपको मुश्‍किल लगे, तो बुद्धि के लिए प्रार्थना कीजिए और नम्रता दिखाइए। तब परमेश्‍वर आपको ज्ञान पाने और बुद्धि से काम लेने में मदद देगा, जिससे आप अपनी ज़िम्मेदारियाँ सही तरीके से और प्यार से निभा पाएँगे।

दिल से दुआ कीजिए

9, 10. मंदिर के उद्‌घाटन में सुलैमान ने जो प्रार्थना की, उसमें उसने मन के बारे में क्या बातें बतायीं?

9 अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दे, तो हमें दिल से दुआ करनी होगी। यह बात हम सुलैमान से सीख सकते हैं। ईसा पूर्व 1026 में, जब यरूशलेम में यहोवा के मंदिर का उद्‌घाटन हुआ तब वहाँ जमी भीड़ के सामने सुलैमान ने दिल की गहराइयों से प्रार्थना की। यह प्रार्थना 1 राजा, अध्याय 8 में दर्ज़ है। जब वाचा का संदूक परम-पवित्र स्थान में रखा गया और मंदिर यहोवा के बादल से भर गया, तो सुलैमान ने यहोवा का गुणगान किया।

10 सुलैमान की प्रार्थना का अध्ययन कर गौर कीजिए कि उसमें मन या दिल के बारे में क्या बताया गया है। सुलैमान ने कबूल किया कि सिर्फ यहोवा ही इंसानों का दिल पढ़ सकता है। (1 राजा 8:38, 39) सुलैमान की प्रार्थना यह भी दिखाती है कि ऐसे पापियों के लिए भी आशा है, जो ‘सम्पूर्ण मन से परमेश्‍वर की ओर फिरते हैं।’ अगर किसी दुश्‍मन ने यहोवा के लोगों को हिरासत में ले लिया है, तो यहोवा उनकी मदद की दुहाई ज़रूर सुनेगा, बशर्ते उनका दिल यहोवा की ओर पूरी तरह से लगा रहे। (1 राजा 8:48, 58, 61) इसलिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम दिल से प्रार्थना करें।

भजन आपकी प्रार्थनाओं को कैसे निखारते हैं

11, 12. आपने उस लेवी की प्रार्थना से क्या सीखा, जो कुछ समय के लिए परमेश्‍वर के भवन में हाज़िर नहीं हो सका था?

11 भजनों की किताब का अध्ययन करने से आप अपनी प्रार्थनाओं को निखार सकते हैं। साथ ही, इससे आप यहोवा पर आस लगा पाएँगे कि वह आपकी प्रार्थना का जवाब ज़रूर देगा। एक लेवी की मिसाल पर गौर फरमाइए। वह बँधुवाई में था, इसलिए कुछ समय के लिए वह यहोवा के भवन में हाज़िर नहीं हो पाया। फिर भी, उसने धीरज धरा। उसने एक भजन में गाया: “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्‍वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।”—भज. 42:5, 11; 43:5.

12 आप उस लेवी से क्या सीख सकते हैं? अगर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने की वजह से आपको जेल की सज़ा हो जाती है और आप अपने संगी मसीहियों के साथ उपासना की जगह में इकट्ठा नहीं हो पाते, तो धीरज धरिए और यहोवा पर आस लगाइए कि वह आपकी तरफ से कार्रवाई करेगा। (भज. 37:5) बीते समय में परमेश्‍वर की सेवा में आपको जो आशीषें और खुशियाँ मिलीं, उन पर मनन कीजिए। यहोवा से धीरज धरने की ताकत माँगिए। ‘परमेश्‍वर पर तब तक आशा लगाए रहिए,’ जब तक कि वह आपके लिए रास्ता नहीं खोल देता कि आप दोबारा उसके लोगों के साथ संगति कर सकें।

विश्‍वास के साथ प्रार्थना कीजिए

13. याकूब 1:5-8 की सलाह के मुताबिक, आपको विश्‍वास के साथ प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?

13 आपके हालात चाहे कैसे भी क्यों न हों, हमेशा विश्‍वास के साथ प्रार्थना कीजिए। अगर आपकी खराई की परीक्षा होती है, तो चेले याकूब की सलाह मानिए। यहोवा से प्रार्थना कीजिए। और इस बात पर बिलकुल भी शक मत कीजिए कि वह परीक्षा की घड़ी में आपको बुद्धि दे सकता है, ताकि आप धीरज धर सकें। (याकूब 1:5-8 पढ़िए।) आप किस आज़माइश से गुज़र रहे हैं, यहोवा इस बारे में अच्छी तरह जानता है। और वह अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए आपको सही रास्ता दिखा सकता है और दिलासा दे सकता है। इसलिए पूरे विश्‍वास के साथ उसे अपने दिल की हर बात कह डालिए और ‘ज़रा भी शक मत कीजिए।’ उसकी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन और उसके वचन से मिलनेवाली सलाह कबूल कीजिए।

14, 15. यह क्यों कहा जा सकता है कि हन्‍ना ने विश्‍वास के साथ बिनती की और उसके मुताबिक काम भी किया?

14 एल्काना जो एक लेवी था, उसकी दो पत्नियाँ थीं—हन्‍ना और पनिन्‍ना। हन्‍ना ने विश्‍वास के साथ प्रार्थना की और उसके मुताबिक काम भी किया। दरअसल हन्‍ना बाँझ थी, लेकिन पनिन्‍ना के कई बच्चे थे, इसलिए वह हमेशा हन्‍ना को ताना मारती थी। एक दिन हन्‍ना, परमेश्‍वर के निवास-स्थान गयी और उसने मन-ही-मन प्रार्थना की। उसने वादा किया कि अगर उसे एक लड़का हुआ, तो वह उसे यहोवा को दे देगी। हन्‍ना के होंठ हिलते देख महायाजक एली ने सोचा कि उसने शराब पी रखी है। लेकिन जब उसे पता चला कि हन्‍ना नशे में नहीं है, तो उसने कहा: “इस्राएल का परमेश्‍वर तुझे मनचाहा वरदान दे।” (NHT) हन्‍ना को यह नहीं मालूम था कि परमेश्‍वर उसकी प्रार्थना का जवाब ठीक कैसे देगा, पर उसे इतना विश्‍वास था कि वह जवाब देगा ज़रूर। इसलिए “उसका मुंह फिर उदास न रहा,” वह बेफिक्र लौट गयी।—1 शमू. 1:9-18.

15 कुछ समय बाद, उसे एक बेटा हुआ जिसका नाम शमूएल रखा गया। उसका दूध छुड़ाने के बाद, हन्‍ना उसे निवास-स्थान में ले गयी और यहोवा की सेवा में दे दिया। (1 शमू. 1:19-28) समय निकालकर हन्‍ना की प्रार्थना पर मनन कीजिए। इससे आपकी प्रार्थना में निखार आएगा। आप यह भी देख पाएँगे कि मुश्‍किल आने पर अगर आप इस विश्‍वास के साथ यहोवा से प्रार्थना करें कि वह आपकी ज़रूर सुनेगा, तो आप मायूसी से उबर पाएँगे।—1 शमू. 2:1-10.

16, 17. नहेमायाह ने जब विश्‍वास के साथ प्रार्थना की और उसके मुताबिक काम किया, तो उसका क्या नतीजा निकला?

16 ईसा पूर्व 5वीं सदी में, खरे इंसान नहेमायाह ने विश्‍वास के साथ प्रार्थना की और उसके मुताबिक काम भी किया। उसने फरियाद की: “हे प्रभु [यहोवा] बिनती यह है, कि तू अपने दास की प्रार्थना पर, और अपने उन दासों की प्रार्थना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपने दास का काम सुफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर।” वह “पुरुष” कौन था? वह पुरुष फारस का राजा अर्तक्षत्र था, जिसके दरबार में नहेमायाह पिलानेहारे के तौर पर सेवा करता था।—नहे. 1:11.

17 जब नहेमायाह को पता चला कि यहूदी बाबुल की बँधुवाई से छूट गए हैं और “वे बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई” है, तो वह कई दिनों तक विश्‍वास के साथ प्रार्थना करता रहा। (नहे. 1:3, 4) नहेमायाह को अपनी प्रार्थनाओं का जो जवाब मिला वह उम्मीद से बढ़कर था। राजा अर्तक्षत्र ने उसे यह इजाज़त दी कि वह यरूशलेम जाकर वहाँ की शहरपनाह दोबारा खड़ी करे। (नहे. 2:1-8) देखते-ही-देखते दीवार बनकर तैयार हो गयी। परमेश्‍वर ने नहेमायाह की प्रार्थना का जवाब इसलिए दिया क्योंकि उसने सच्ची उपासना को ध्यान में रखकर पूरे विश्‍वास से प्रार्थना की थी। क्या आप भी इसी तरह प्रार्थना करते हैं?

स्तुति करना और धन्यवाद देना मत भूलिए

18, 19. यहोवा के सेवकों के पास उसकी स्तुति करने और उसे धन्यवाद देने की क्या वजह हैं?

18 प्रार्थना में यहोवा की स्तुति करना और उसे धन्यवाद देना मत भूलिए। ऐसा करने की हमारे पास ढेरों वजह हैं। उदाहरण के लिए, दाविद यहोवा की बादशाहत का गुणगान करने के लिए बेताब था। (भजन 145:10-13 पढ़िए।) क्या आपकी प्रार्थनाएँ दिखाती हैं कि परमेश्‍वर के राज का ऐलान करना, आपके लिए बड़े सम्मान की बात है? भजन लिखनेवालों के शब्दों से आपको मदद मिलेगी कि आप दिल से मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के लिए यहोवा को अपना एहसान ज़ाहिर करें।—भज. 27:4; 122:1.

19 इसके अलावा, यहोवा के साथ अपने अनमोल रिश्‍ते के लिए अगर आप एहसानमंद हैं, तो यह आपको उभारेगा कि आप दिल से इस तरह प्रार्थना करें: “हे प्रभु [यहोवा], मैं देश के लोगों के बीच तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं राज्य राज्य के लोगों के बीच में तेरा भजन गाऊंगा। क्योंकि तेरी करुणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंचती है। हे परमेश्‍वर, तू स्वर्ग के ऊपर अति महान है! तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए!” (भज. 57:9-11) ये क्या ही दिल छू लेनेवाले शब्द हैं! इसलिए अगर आप अपनी प्रार्थना में भजनों के बोल इस्तेमाल करेंगे, तो बेशक आपकी प्रार्थनाएँ निखर जाएँगी।

गहरे विस्मय के साथ बिनती कीजिए

20. परमेश्‍वर के लिए मरियम ने अपनी भक्‍ति कैसे दिखायी?

20 हमारी प्रार्थनाओं में यहोवा के लिए गहरा विस्मय साफ झलकना चाहिए। यह बात हम मरियम की उस प्रार्थना से सीख सकते हैं, जो उसने यह जानने के कुछ ही समय बाद की थी कि वह मसीहा की माँ बननेवाली है। उसने अपनी प्रार्थना में जो विस्मय-भरे शब्द इस्तेमाल किए, वे हन्‍ना की उस प्रार्थना से मिलते-जुलते हैं, जो उसने शमूएल को निवास-स्थान में सेवा के लिए देते वक्‍त की थी। मरियम ने प्रार्थना की: “मैं यहोवा का गुणगान करती हूँ और मेरा दिल मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर पर मगन हुए बिना नहीं रह सकता।” (लूका 1:46, 47) क्या आप भी इसी जज़्बे के साथ प्रार्थना कर सकते हैं? मरियम की प्रार्थना साफ दिखाती है कि वह परमेश्‍वर का भय माननेवाली थी। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि उसे मसीहा की माँ बनने के लिए चुना गया।

21. यीशु की प्रार्थनाओं में गहरा विस्मय और पक्का विश्‍वास कैसे ज़ाहिर होता है?

21 यीशु भी गहरे विस्मय और पूरे विश्‍वास के साथ प्रार्थना करता था। मिसाल के लिए, लाज़र को ज़िंदा करने से पहले, “यीशु ने आँखें उठाकर स्वर्ग की तरफ देखा और कहा: ‘पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुनी है। मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है।’” (यूह. 11:41, 42) क्या आपकी प्रार्थनाओं में ऐसा विस्मय और विश्‍वास ज़ाहिर होता है? यीशु की सिखायी आदर्श प्रार्थना का अध्ययन कीजिए, जो विस्मय से प्रार्थना करने की एक बढ़िया मिसाल है। उसमें आप पाएँगे कि यीशु ने खासकर यहोवा के नाम के पवित्र किए जाने, उसके राज के आने और उसकी मरज़ी पूरी होने के बारे में प्रार्थना की। (मत्ती 6:9, 10) अब ज़रा अपनी प्रार्थनाओं के बारे में सोचिए। क्या वे दिखाती हैं कि आपको यहोवा के राज में, उसकी मरज़ी पूरी करने और उसके नाम के पवित्र किए जाने में गहरी दिलचस्पी है? आपकी प्रार्थनाओं में यह ज़ाहिर होना चाहिए।

22. आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको खुशखबरी सुनाने की हिम्मत देगा?

22 कई बार हमें ज़ुल्मों और दूसरी परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यहोवा से यह फरियाद करना सही होगा कि वह हमें उसकी सेवा करते रहने की हिम्मत दे। जब महासभा ने प्रेषित पतरस और यूहन्‍ना को आज्ञा दी कि “वे यीशु के नाम को लेकर” प्रचार करना बंद कर दें, तब उन्होंने पूरी हिम्मत से उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। (प्रेषि. 4:18-20) अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने अपने संगी मसीहियों को बताया कि उनके साथ क्या हुआ। तब वहाँ जो कोई मौजूद था, उन्होंने मिलकर यहोवा से बिनती की कि वह उन्हें बेधड़क वचन का प्रचार करते रहने की मदद दे। जब उनकी प्रार्थना सुन ली गयी, तो बेशक उनमें सनसनी दौड़ गयी होगी! क्योंकि “वे सब-के-सब पवित्र शक्‍ति से भर गए और निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे।” (प्रेषितों 4:24-31 पढ़िए।) नतीजा, हज़ारों लोग यहोवा के उपासक बने। इससे साफ ज़ाहिर है कि प्रार्थना आपको खुशखबरी सुनाने की हिम्मत भी दे सकती है।

अपनी प्रार्थनाएँ निखारते जाइए

23, 24. (क) बाइबल का अध्ययन आपकी प्रार्थनाओं को निखार सकता है, इसके और भी उदाहरण दीजिए। (ख) अपनी प्रार्थनाओं को निखारने के लिए आपको क्या करते रहना चाहिए?

23 बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने से आपकी प्रार्थनाएँ निखर सकती हैं, इस बात को साबित करने के लिए और भी मिसालें हैं। जैसे, योना की तरह आप भी अपनी प्रार्थना में कबूल कर सकते हैं कि “उद्धार यहोवा ही से होता है।” (योना 2:1-10) क्या किसी गंभीर पाप की वजह से आपका ज़मीर आपको कचोट रहा है और आपने प्राचीनों से मदद माँगी है? अगर हाँ, तो दाविद के भजनों में जो भावनाएँ झलकती हैं, उन पर गौर कीजिए। इससे आपको प्रार्थना में सच्चा पश्‍चाताप ज़ाहिर करने में मदद मिलेगी। (भज. 51:1-12) कुछ खास मौकों पर प्रार्थना करते वक्‍त, आप यिर्मयाह की तरह यहोवा की स्तुति कर सकते हैं। (यिर्म. 32:16-19) अगर आप एक जीवन-साथी की तलाश में हैं, तो एज्रा के अध्याय 9 में दी प्रार्थना का अध्ययन कीजिए। इसके अलावा, एक अच्छे जीवन-साथी के लिए खुद गुज़ारिश भी कीजिए। तब यहोवा की यह आज्ञा मानने का आपका इरादा और भी मज़बूत होगा, ‘सिर्फ प्रभु में शादी करो।’—1 कुरिं. 7:39; एज्रा 9:6,10-15.

24 बाइबल पढ़ने, अध्ययन करने और उसमें खोजबीन करने में लगे रहिए। ऐसे मुद्दे ढूँढ़िए जिन्हें आप अपनी प्रार्थना में शामिल कर सकते हैं। इस तरह, आप धन्यवाद के साथ प्रार्थना करते वक्‍त, मिन्‍नत और स्तुति करते वक्‍त बाइबल के वचनों को पिरो सकेंगे। अगर आप बाइबल के अध्ययन के ज़रिए अपनी प्रार्थनाएँ निखारते जाएँ, तो इसमें कोई शक नहीं कि आप यहोवा के और भी करीब आएँगे।

आप क्या जवाब देंगे?

• हमें क्यों परमेश्‍वर से मार्गदर्शन माँगना और उस पर चलना चाहिए?

• क्या बात हमें उकसाएगी कि हम बुद्धि के लिए प्रार्थना करें?

• भजनों की किताब हमारी प्रार्थनाओं को कैसे निखार सकती है?

• हमें विस्मय और विश्‍वास के साथ क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर तसवीर]

अब्राहम के नौकर ने परमेश्‍वर से मार्गदर्शन माँगा। क्या आप भी प्रार्थना में ऐसा करते हैं?

[पेज 10 पर तसवीर]

पारिवारिक उपासना आपकी प्रार्थनाओं को निखार सकता है