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भाइयों जैसा प्यार दिखाने में बढ़ते जाओ

भाइयों जैसा प्यार दिखाने में बढ़ते जाओ

भाइयों जैसा प्यार दिखाने में बढ़ते जाओ

“प्यार की राह पर चलते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी तुमसे प्यार किया।”—इफि. 5:2.

1. यीशु ने अपने चेलों की क्या खास पहचान बतायी?

 यहोवा के साक्षी, घर-घर जाकर परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने के लिए जाने जाते हैं। मगर वे यीशु के सच्चे चेले हैं, इसकी पहचान उनका प्रचार काम नहीं बल्कि उनका आपसी प्यार है। यीशु ने कहा: “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 13:34, 35.

2, 3. मसीही सभा में आनेवाले लोग जब भाइयों के बीच प्यार देखते हैं, तो उन पर क्या असर होता है?

2 पूरी दुनिया में सच्चे मसीहियों के बीच जो प्यार है, वह कहीं और नहीं! जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरफ खींचता है, उसी तरह प्यार यहोवा के लोगों को एकता में बाँधता है और नेकदिल लोगों को सच्ची उपासना की तरफ खींचता है। इस सिलसिले में मारसेलीनो का उदाहरण लीजिए, जो कैमरून देश का रहनेवाला है। काम की जगह पर हुए एक हादसे में उसकी आँखों की रौशनी चली गयी। इसके बाद लोगों में यह काना-फूसी होने लगी कि वह जादू-टोना करता था, इसलिए अंधा हो गया। पादरी और दूसरे लोगों ने उसे तसल्ली देने के बजाय चर्च के उसे चर्च से बेदखल कर दिया। इसके बाद, मारसेलीनो की मुलाकात यहोवा के एक साक्षी से हुई जिसने उसे सभा में आने का न्यौता दिया। मारसेलीनो शुरू-शुरू में हिचकिचाया, क्योंकि उसमें दोबारा ठुकराए जाने का गम सहने की ताकत नहीं थी।

3 मगर फिर वह राज्य-घर में आया। जब साक्षियों ने दिल खोलकर उसका स्वागत किया, तो वह दंग रह गया। उसने वहाँ बाइबल की जो शिक्षाएँ सुनीं, उनसे उसके दिल को बहुत ठंडक पहुँची। इसके बाद से उसने मंडली की एक भी सभा नहीं छोड़ी और बाइबल अध्ययन में भी तरक्की की। सन्‌ 2006 में उसने बपतिस्मा लिया। अब वह अपने परिवार और पड़ोसियों के साथ सच्चाई बाँटता है और कई बाइबल अध्ययन शुरू करने में कामयाब हो पाया है। उसकी यह दिली ख्वाहिश है कि उसके बाइबल विद्यार्थी वही प्यार महसूस करें, जो परमेश्‍वर के लोगों के बीच उसने किया था।

4. हमें पौलुस की इस सलाह को दिल से क्यों मानना चाहिए कि “प्यार की राह पर चलते रहो”?

4 मंडली में भाइयों जैसे प्यार को बरकरार रखने के लिए हम सभी को मेहनत करने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, कड़ाके की ठंड में लोग जलती हुई आग के सामने हाथ सेंकने आते हैं। मगर गरमाहट का मज़ा लेते रहने के लिए आग में लकड़ियाँ डालते रहना ज़रूरी है, वरना वह बुझ जाएगी। उसी तरह, मंडली में प्यार का बँधन मज़बूत बनाए रखने के लिए हममें से हरेक को मेहनत करनी होगी। हम यह कैसे कर सकते हैं? प्रेषित पौलुस जवाब देता है: “प्यार की राह पर चलते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी तुमसे प्यार किया और तुम्हारी खातिर परमेश्‍वर के सामने सुगंध देनेवाली भेंट और बलिदान के तौर पर खुद को सौंप दिया।” (इफि. 5:2) हम प्यार की राह पर कैसे चलते रह सकते हैं?

‘तुम भी अपने दिलों को बड़ा करो’

5, 6. पौलुस ने कुरिंथियों को अपना ‘दिल बड़ा करने’ के लिए क्यों उकसाया?

5 प्रेषित पौलुस ने प्राचीन कुरिंथ के मसीहियों को लिखा: “कुरिंथियो, हमने खुलकर तुमसे बात की है, हमने तुम्हारे लिए अपना दिल और बड़ा किया है। हमारे दिल में तुम्हारे लिए बहुत जगह है, मगर तुम्हारे अपने दिल में कोमल स्नेह के लिए जगह नहीं, तुम तंगदिल हो गए हो। इसलिए अपने बच्चे जानकर तुमसे कहता हूँ कि तुम भी बदले में अपने दिलों को बड़ा करो।” (2 कुरिं. 6:11-13) पौलुस ने कुरिंथियों को ‘अपना दिल बड़ा करने’ के लिए क्यों उकसाया?

6 गौर कीजिए कि कुरिंथ की मंडली की शुरूआत कैसे हुई। पौलुस ईसवी सन्‌ 50 के आखिर में कुरिंथ आया। जब उसने वहाँ प्रचार करना शुरू किया तो उसे काफी विरोध का सामना करना पड़ा। फिर भी उसने हार नहीं मानी। कुछ ही समय में उसकी मेहनत रंग लायी, बहुत-से लोग खुशखबरी पर विश्‍वास करने लगे। इस तरह वहाँ एक नयी मंडली की शुरूआत हुई। पौलुस ने “डेढ़ साल तक” उस मंडली को सिखाने और मज़बूत करने में खुद को पूरी तरह लगा दिया। इससे ज़ाहिर है कि उसके दिल में कुरिंथ के मसीहियों के लिए कितना प्यार था। (प्रेषि. 18:5, 6, 9-11) बदले में कुरिंथ के मसीहियों को भी पौलुस से प्यार करना और उसे आदर देना चाहिए था। लेकिन कुछ ने उससे किनारा कर लिया। शायद उनमें से कइयों को पौलुस का खुलकर सलाह देना रास नहीं आया। (1 कुरिं. 5:1-5; 6:1-10) दूसरे शायद “महा-प्रेषितों” की बातों में आ गए होंगे। (2 कुरिं. 11:5,6) पौलुस चाहता था कि उसके सभी भाई-बहन उससे सच्चा प्यार करें। इसलिए उसने उनसे गुज़ारिश की कि वे उसके और संगी मसीहियों के करीब आकर अपने “दिलों को बड़ा” करें।

7. हम भाइयों जैसा प्यार दिखाने में अपने “दिलों को बड़ा” कैसे कर सकते हैं?

7 आज हमारे बारे में क्या? हम भाइयों जैसा प्यार दिखाने में अपने “दिलों को बड़ा” कैसे कर सकते हैं? अकसर देखा गया है कि जो लोग एक ही उम्र या जाति के होते हैं, या फिर एक ही माहौल में पले-बड़े होते हैं, वे आपस में जल्दी घुल-मिल जाते हैं। और जिन लोगों के शौक एक जैसे होते हैं, वे अपना ज़्यादातर समय उन्हीं के साथ बिताते हैं। क्या यह बात हमारे बारे में भी सच है? अगर हाँ, तो हमें अपने “दिलों को बड़ा” करने की ज़रूरत है। खुद से पूछिए: ‘क्या मैं दूसरे भाई-बहनों के साथ प्रचार, घूमने-फिरने और दूसरे मौकों पर संगति करने में कभी-कभार ही वक्‍त बिताता हूँ? राज्य-घर में आनेवाले नए लोगों से क्या मैं बहुत कम मिलता हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि पहले उन्हें मेरे दोस्त बनने के लायक होना पड़ेगा? क्या मैं मंडली के बुज़ुर्गों और जवानों, सभी को दुआ-सलाम करता हूँ?’

8, 9. रोमियों 15:7 में पौलुस ने दुआ-सलाम करने के बारे में जो सलाह दी, वह हमें बढ़-चढ़कर भाइयों जैसा प्यार दिखाने में कैसे मदद दे सकती है?

8 दुआ-सलाम करने के मामले में पौलुस ने रोम के मसीहियों को एक सलाह दी। उस पर गौर करने से हम संगी मसीहियों के बारे में सही नज़रिया बनाए रख पाएँगे। (रोमियों 15:7, फुटनोट पढ़िए।) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “स्वागत” किया गया है, उसका मतलब है “किसी से मिलते वक्‍त प्यार से पेश आना या मिलनसार होना, उन्हें अपनी बिरादरी और दोस्तों के दायरे में शामिल करना।” पुराने ज़माने में जब किसी के घर उसका दोस्त आता था, तो वह उसे मेहमान-नवाज़ी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। इससे उसका दोस्त जान जाता था कि वह उसके आने से बहुत खुश है। यीशु ने भी इसी तरह मसीही मंडली में हमारा स्वागत किया है। और हमें भी यह बढ़ावा दिया जाता है कि संगी मसीहियों का स्वागत करने में हम उसकी मिसाल पर चलें।

9 जब हम राज्य-घर, सम्मेलन और अधिवेशन में अपने भाइयों को दुआ-सलाम करते हैं, तो हमें खासकर उन लोगों पर ध्यान देना चाहिए, जिनसे मिले या बात किए हमें काफी समय हो चुका है। क्यों न आप उनके साथ कुछ मिनट बतिया लें? अगली सभा में हम दूसरों के साथ ऐसा कर सकते हैं। वक्‍त के गुज़रते हम करीब-करीब सभी भाई-बहनों के साथ बढ़िया बातचीत का लुत्फ उठा पाएँगे। अगर हम एक ही दिन में सभी से नहीं मिल पाते, तो परेशान मत होइए। क्योंकि जिनसे हम बात नहीं कर पाते, उनके पास दरअसल नाराज़ होने की कोई वजह नहीं।

10. मंडली में सभी के पास कौन-से मौके हैं? हम इनका पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं?

10 “हैलो” या “नमस्ते” कहना, दूसरों का स्वागत करने में पहला कदम है। देखते-ही-देखते इससे एक मज़ेदार बातचीत शुरू हो जाती है और फिर यह पक्की दोस्ती में बदल जाती है। उदाहरण के लिए, जब सम्मेलन या अधिवेशन में लोग एक-दूसरे को अपना परिचय देते और बात करते हैं, तो वे दोबारा मिलने की आस रखते हैं। राज्य-घर निर्माण और राहत काम में हिस्सा लेनेवाले स्वयंसेवकों के बीच अकसर अच्छी दोस्ती हो जाती है। वे आपस में अपने अनुभव बाँटते हैं और इस तरह एक-दूसरे के अच्छे गुण जान पाते हैं। पक्की दोस्ती करने के लिए, यहोवा के संगठन में मौकों की कमी नहीं। अगर हम अपने “दिलों को बड़ा” करें, तो हम अपने दोस्तों का दायरा बढ़ा पाएँगे। इससे हमारे बीच प्यार और मज़बूत होगा, जो हमें सच्ची उपासना में एक करता है।

दूसरों के लिए वक्‍त निकालिए

11. मरकुस 10:13-16 के मुताबिक, यीशु ने क्या मिसाल कायम की?

11 सभी मसीहियों को ऐसा होना चाहिए कि दूसरे उनके पास बेझिझक आ सकें। इस मामले में यीशु एक बढ़िया मिसाल है। गौर कीजिए जब कुछ माता-पिता अपने बच्चों को यीशु के पास ला रहे थे और चेलों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तब यीशु ने क्या किया। उसने कहा: “बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज ऐसों ही का है।” फिर “उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष देने लगा।” (मर. 10:13-16) ज़रा सोचिए, महान शिक्षक का प्यार पाकर उन बच्चों की बाँछें कैसी खिल उठी होंगी!

12. कौन-सी बातें हमें लोगों से बातचीत करने से रोक सकती हैं?

12 हरेक मसीही को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं दूसरों के लिए वक्‍त निकालता हूँ या क्या मैं हर समय व्यस्त दिखता हूँ?’ कई आदतें अपने आपमें बुरी नहीं होतीं, लेकिन वे हमारे और दूसरों के बीच दीवार बन सकती हैं। उदाहरण के लिए, अगर हम हमेशा अपने फोन से चिपके रहें या कोई-न-कोई रिकॉर्डिंग सुनते रहें, तो लोगों को लग सकता है कि हमें उनसे बात नहीं करनी। अगर वे हमेशा हमें पामटॉप जैसे यंत्रों में आँखें गड़ाए देखें, तो वे सोचेंगे कि हमें उनमें कोई दिलचस्पी नहीं। बेशक, “चुप रहने का भी समय” होता है, लेकिन जब हम लोगों के बीच होते हैं तो वह ज़्यादातर ‘बोलने का समय’ होता है। (सभो. 3:7) कुछ शायद कहें, “मुझे ज़्यादा बात करने की आदत नहीं” या “मुझे सुबह-सुबह बात करना पसंद नहीं।” बात करने का मन न होने पर भी अगर हम बातचीत करें, तो हम ऐसे प्यार का सबूत देते हैं, जो “सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता।”—1 कुरिं. 13:5.

13. पौलुस ने तीमुथियुस को भाई-बहनों की तरफ कैसा रवैया रखने के लिए उकसाया?

13 पौलुस ने जवान तीमुथियुस को उकसाया कि वह मंडली में हर किसी के लिए आदर दिखाए। (1 तीमुथियुस 5:1, 2 पढ़िए।) हमें भी बुज़ुर्ग मसीहियों से ऐसे पेश आना चाहिए मानो वे हमारे माता-पिता हों। और जवानों के साथ ऐसे कि वे हमारे सगे भाई-बहन हों। अगर हममें ऐसा रवैया होगा, तो हमारे प्यारे भाई-बहन हमारी मौजूदगी में खुद को अजनबी नहीं समझेंगे।

14. हौसला बढ़ानेवाली बातचीत करने के कुछ फायदे क्या हैं?

14 जब हम दूसरों से हौसला बढ़ानेवाली बातें करते हैं, तो इससे न सिर्फ परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता मज़बूत होता है बल्कि वे खुश भी रहते हैं। बेथेल में सेवा करनेवाला एक भाई आज भी ऐसे बुज़ुर्ग भाई-बहनों की मदद का एहसानमंद है। जब वह नया-नया आया था, तब ये भाई-बहन नियमित तौर पर समय निकालकर उससे बात करते थे। उनकी हौसला-अफज़ाई से उसने हमेशा यही महसूस किया कि वह बेथेल परिवार का एक हिस्सा है। आज वह उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलते हुए बेथेल के दूसरे लोगों से बात करता है।

नम्रता, शांति कायम करने में मदद देती है

15. कौन-से किस्से दिखाते हैं कि हममें भी झगड़े हो सकते हैं?

15 बीते ज़माने की फिलिप्पी मंडली में दो मसीही बहनें थीं, यूओदिया और सुन्तुखे। उन दोनों के बीच एक ऐसी समस्या पैदा हो गयी, जिसे सुलझाना मुश्‍किल था। (फिलि. 4:2, 3) पौलुस और बरनबास के बीच तकरार हो गयी, जिसकी वजह से उनके रास्ते अलग-अलग हो गए। यही नहीं, इसकी खबर दूर-दूर तक फैल गयी। (प्रेषि. 15:37-39) ये किस्से दिखाते हैं कि सच्चे मसीहियों में भी ठन सकती है। यहोवा हमें झगड़े सुलझाने और दोबारा दोस्ती कायम करने में मदद देता है। लेकिन वह चाहता है कि हम भी कुछ करें।

16, 17. (क) आपसी झगड़े मिटाने के लिए नम्रता दिखाना कितना ज़रूरी है? (ख) याकूब जिस तरह एसाव से मिला, उससे नम्रता दिखाने के बारे में हम क्या सीखते हैं?

16 फर्ज़ कीजिए, आप और आपका दोस्त कार में दूर किसी सफर पर जानेवाले हैं। इसके लिए आपको सबसे पहले गाड़ी में चाबी लगानी होगी और इंजन चालू करना होगा। उसी तरह, झगड़े मिटाने की शुरूआत भी एक चाबी से होती है और वह है नम्रता। (याकूब 4:10 पढ़िए।) जिनके बीच मन-मुटाव होता है अगर उनमें नम्रता होगी, तो वे अपने झगड़े सुलझाने के लिए परमेश्‍वर के वचन में दर्ज़ सिद्धांतों को लागू करेंगे। यह समझने के लिए बाइबल में दी एक मिसाल लीजिए।

17 एसाव और याकूब, जुड़वा भाई थे। एसाव ने पहिलौठे का हक खो दिया, क्योंकि यह उसने याकूब को बेच डाला था। इस वजह से एसाव अपने भाई से इतनी नफरत करने लगा कि वह उसके खून का प्यासा हो गया। इस घटना के बीस साल बाद जब दो भाई फिर से मिलनेवाले थे, तब याकूब “निपट डर गया और संकट में पड़ा।” उसे यकीन था कि हो-न-हो एसाव उस पर ज़रूर जानलेवा हमला करेगा। लेकिन जब वे मिले, तो याकूब ने कुछ ऐसा किया जिसे एसाव ने सपने में भी नहीं सोचा था। वह जैसे-जैसे अपने भाई के नज़दीक गया, उसने “भूमि पर गिरके दण्डवत्‌” किया। “तब एसाव उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा: फिर वे दोनों रो पड़े।” इससे लड़ाई का खतरा टल गया। याकूब की नम्रता से एसाव के सारे गिले-शिकवे दूर हो गए।—उत्प. 27:41; 32:3-8; 33:3, 4.

18, 19. (क) आपसी झगड़े निपटाते वक्‍त, बाइबल की सलाह मानने में हमें क्यों पहल करनी चाहिए? (ख) शांति कायम करने में शुरू-शुरू में नाकाम होने पर भी हमें क्यों दिल छोटा नहीं करना चाहिए?

18 बाइबल में आपसी झगड़े मिटाने की कई बेहतरीन सलाह दी गयी हैं। (मत्ती 5:23, 24; 18:15-17; इफि. 4:26, 27) * लेकिन जब तक हम नम्रता से उन्हें लागू नहीं करेंगे, तब तक शांति कायम करना बहुत मुश्‍किल होगा। इंतज़ार मत कीजिए कि दूसरे नम्रता दिखाएँ और आपके पास आएँ। नहीं तो यह ऐसा होगा कि कार चालू करने के लिए आप अपने दोस्त की राह तक रहे हैं, जबकि चाबी आपके हाथ में भी है।

19 जब हम शांति कायम करने की कई बार कोशिश करते हैं, मगर शुरू-शुरू में नाकाम रहते हैं, तो हमें दिल छोटा नहीं करना चाहिए। याद रखिए कि दूसरे व्यक्‍ति को शांत मन से सोचने के लिए वक्‍त लग सकता है। मिसाल के लिए, यूसुफ के भाइयों ने उससे बड़ा धोखा किया। बरसों बाद जब वे उससे मिले, तब वह मिस्र का प्रधानमंत्री बन चुका था। यूसुफ के भाइयों का मन बदल चुका था और उन्होंने यूसुफ से माफी माँगी। यूसुफ ने उन्हें माफ कर दिया। आगे चलकर याकूब के सभी बेटों से एक ऐसा राष्ट्र बना, जिसे यहोवा के नाम का कहलाए जाने का सम्मान मिला। (उत्प. 50:15-21) अपने भाई-बहनों के साथ शांति कायम कर हम मंडली की एकता और खुशी बरकरार रखने में अपना भाग अदा करते हैं।कुलुस्सियों 3:12-14 पढ़िए।

“अपने कामों से और सच्चे दिल से प्यार” कीजिए

20, 21. यीशु ने अपने प्रेषितों के पाँव धोए, इससे हम क्या सबक सीखते हैं?

20 अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, यीशु ने अपने प्रेषितों से कहा: “मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया, वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए।” (यूह. 13:15) यह बात कहने से पहले, यीशु ने अपने 12 प्रेषितों के पैर धोए थे। यह न तो कोई रस्म थी, न ही कृपा का कोई काम। बल्कि यह यीशु के प्यार का सबूत था। यह हम कैसे कह सकते हैं? यूहन्‍ना ने यह वाकया बयान करने से पहले कहा: “दुनिया में जो उसके अपने थे जिनसे वह प्यार करता आया था, वह उनसे आखिर तक प्यार करता रहा।” (यूह. 13:1) और इसी प्यार ने यीशु को वह काम करने के लिए उभारा, जो आम तौर पर एक नौकर करता था। अब यीशु के चेलों को नम्रता से एक-दूसरे के लिए प्यार-भरे काम करने थे। जी हाँ, अगर भाइयों के लिए हममें सच्चा प्यार होगा, तो यह हमें मसीही भाई-बहनों के लिए परवाह दिखाने के लिए उकसाएगा।

21 प्रेषित पतरस, जिसके पैर परमेश्‍वर के बेटे ने धोए, समझ गया कि यीशु ने ऐसा क्यों किया। पतरस ने लिखा: “अब क्योंकि तुमने सच्चाई के वचन को मानकर खुद को शुद्ध किया है, तो आपस में भाईचारे का निष्कपट प्यार दिखाओ और दिल से एक-दूसरे को गहरा प्यार करो।” (1 पत. 1:22) प्रभु ने प्रेषित यूहन्‍ना के पाँव भी धोए थे। इसलिए यूहन्‍ना ने कहा: “प्यारे बच्चो, हम सिर्फ बातों से या ज़ुबान से नहीं बल्कि अपने कामों से और सच्चे दिल से प्यार करें।” (1 यूह. 3:18) आइए हम भी भाइयों के लिए अपना प्यार अपने कामों से ज़ाहिर करें।

[फुटनोट]

^ यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए संगठित किताब के पेज 144-150 देखिए।

क्या आपको याद है?

• किन तरीकों से भाइयों के लिए प्यार दिखाने में हम अपने “दिलों को बड़ा” कर सकते हैं?

• दूसरों के लिए वक्‍त निकालने के लिए क्या बात हमारी मदद करेगी?

• शांति कायम करने में नम्रता कैसे हमारी मदद करती है?

• संगी मसीहियों की परवाह करने के लिए क्या बात हमें उभारेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 21 पर तसवीर]

संगी मसीहियों का दिल से स्वागत कीजिए

[पेज 23 पर तसवीर]

दूसरों के लिए वक्‍त निकालने के मौके मत गँवाइए