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मसीही मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझिए

मसीही मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझिए

मसीही मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझिए

“परमेश्‍वर ने शरीर के हर अंग को, जैसा उसे अच्छा लगा वैसे, उसकी जगह दी है।”—1 कुरिं. 12:18.

1, 2. (क) क्या बात दिखाती है कि मंडली में हर किसी की अपनी भूमिका है, जिसकी वह कदर कर सकता है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

 यहोवा ने मंडली का इंतज़ाम प्राचीन इसराएल के ज़माने से किया है, ताकि वह अपने लोगों की देखभाल कर सके और उन्हें ज़रूरी निर्देशन दे सके। उदाहरण के लिए, जब इसराएलियों ने ऐ नाम के नगर को धूल चटा दी, तो उसके बाद यहोशू ने ‘आशीष और शाप की व्यवस्था के सारे वचन जैसे-जैसे व्यवस्था की पुस्तक में लिखे हुए थे, वैसे-वैसे इस्राएल की सारी सभा [या, मंडली] के सामने पढ़कर सुनाए।’—यहो. 8:34, 35.

2 ईसवी सन्‌ पहली सदी में, प्रेषित पौलुस ने मसीही प्राचीन तीमुथियुस से कहा कि मंडली ‘परमेश्‍वर का घराना’ और “सच्चाई के लिए खंभा और सहारा है।” (1 तीमु. 3:15) और आज परमेश्‍वर का ‘घराना’ सच्चे ‘मसीहियों का भाईचारा है, जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है। पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से कुरिंथ के मसीहियों को दो चिट्ठियाँ लिखीं। पहली चिट्ठी के 12वें अध्याय में उसने मंडली की तुलना इंसान के शरीर से की। उसने कहा कि हालाँकि सभी मसीहियों की भूमिका अलग-अलग हैं, फिर भी मंडली में उनकी अपनी-अपनी एक जगह है। पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर ने शरीर के हर अंग को, जैसा उसे अच्छा लगा वैसे, उसकी जगह दी है।” उसने यह भी बताया कि “शरीर के जिन हिस्सों को हम कम आदर के लायक समझते हैं, उन्हीं को हम ढककर और भी ज़्यादा आदर देते हैं।” (1 कुरिं. 12:18, 23) इसलिए परमेश्‍वर के घराने में एक वफादार मसीही की भूमिका दूसरों के मुकाबले न तो बेहतर है, न ही कमतर। वह बस अलग है! तो फिर, परमेश्‍वर के इंतज़ाम में हमारी जो भूमिका है, उसे हम कैसे जान सकते हैं? हम अपनी भूमिका की कदर कैसे कर सकते हैं? किन बातों से तय होता है कि मंडली में हमारी क्या भूमिका होगी? और अपनी “तरक्की सब लोगों पर ज़ाहिर” करने के लिए हमें क्या करना होगा?—1 तीमु. 4:15.

मंडली में अपनी जगह की कदर कैसे करें?

3. मंडली में अपनी जगह बनाने और उसकी कदर करने का एक तरीका क्या है?

3 मंडली में अपनी जगह बनाने और उसकी कदर करने का एक तरीका है, ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ और उसके नुमाइंदे, शासी निकाय को पूरा-पूरा सहयोग देना। (मत्ती 24:45-47 पढ़िए।) हमें खुद की जाँच करनी चाहिए कि हम दास वर्ग से मिलनेवाले निर्देशन मान रहे हैं या नहीं। मिसाल के लिए, बरसों से हमें पहनावे, बनाव-सिंगार, मनोरंजन और इंटरनेट का सही इस्तेमाल करने की साफ-साफ हिदायतें मिलती आ रही हैं। क्या हम बड़े ध्यान से ये हिदायतें मानते हैं, ताकि यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर कोई आँच न आए? पारिवारिक उपासना के शेड्‌यूल के बारे में क्या? क्या हमने इसके लिए एक अलग शाम ठहराने की सलाह दिल से मानी है? अगर हम कुँवारे हैं, तो क्या हम निजी बाइबल अध्ययन के लिए समय निकालते हैं? दास वर्ग के मार्गदर्शन पर चलने से हममें से हरेक को और हमारे पूरे परिवार को यहोवा से ढेरों आशीषें मिलेंगी।

4. निजी मामलों में चुनाव करते वक्‍त हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

4 कुछ लोगों को शायद लगे कि मनोरंजन, पहनावे और बनाव-सिंगार जैसी बातों में चुनाव करना एक निजी मामला है। लेकिन जहाँ तक समर्पित मसीहियों की बात है, जिन्हें मंडली में अपनी जगह की कदर है, वे जानते हैं कि ये खुद की पसंद-नापसंद की बात नहीं है। उन्हें खासकर यह ध्यान रखना चाहिए कि इन मामलों में यहोवा का क्या नज़रिया है। और यह हम उसके वचन बाइबल से जान सकते हैं। बाइबल का संदेश ‘हमारे पांव के लिये दीपक और हमारे मार्ग के लिये उजियाला’ होना चाहिए। (भज. 119:105) इसके अलावा, हमें यह भी खयाल रखना चाहिए कि ज़ाती मामलों में हम जो चुनाव करते हैं, उसका हमारी सेवा और मंडली के अंदर और बाहर के लोगों पर क्या असर पड़ता है।2 कुरिंथियों 6:3, 4 पढ़िए।

5. हमें मनमानी करने से क्यों दूर रहना चाहिए?

5 जो ‘फितरत अब आज्ञा न माननेवालों में काम कर’ रही है, वह उस हवा की तरह है, जो चारों तरफ फैली है और जिसमें हम साँस लेते हैं। (इफि. 2:2) इस फितरत का असर हम पर भी हो सकता है। हम यह सोचने लग सकते हैं कि हमें यहोवा के संगठन से मार्गदर्शन की कोई ज़रूरत नहीं। बेशक, हम दियुत्रिफेस की तरह नहीं बनना चाहते, जो ‘प्रेषित यूहन्‍ना की किसी भी बात की इज़्ज़त नहीं करता था।’ (3 यूह. 9, 10) हमें मनमानी करने से दूर रहना चाहिए। तो आइए हम अपनी बातों और कामों से उस इंतज़ाम के खिलाफ कभी न जाएँ, जिसके ज़रिए यहोवा आज हमें हिदायतें देता है। (गिन. 16:1-3) इसके बजाय, दास वर्ग को सहयोग देना, हमारे लिए एक सम्मान की बात होनी चाहिए। साथ ही, हमें मंडली में अगुवाई करनेवालों की भी आज्ञा माननी चाहिए और उनके अधीन रहना चाहिए।इब्रानियों 13:7, 17 पढ़िए।

6. हमें खुद के हालात की जाँच क्यों करनी चाहिए?

6 मंडली में अपनी जगह की कदर करने का दूसरा तरीका है, खुद के हालात की जाँच करना कि क्या हम “अपनी सेवा की बड़ाई” करने और यहोवा का आदर करने में अपना भरसक कर सकते हैं। (रोमि. 11:13) ऐसा कर कुछ प्रचारक पायनियर सेवा शुरू कर पाए हैं। दूसरे लोग मिशनरी, सफरी अध्यक्ष और बेथेल परिवार के सदस्यों के तौर पर सेवा कर रहे हैं। और कई भाई-बहन राज्य-घर निर्माण काम में हाथ बँटा रहे हैं। दूसरी तरफ, ज़्यादातर सेवक अपने-अपने परिवार को यहोवा की सेवा में बनाए रखने और हर हफ्ते प्रचार काम में हिस्सा लेने की पूरी कोशिश करते हैं। (कुलुस्सियों 3:23, 24 पढ़िए।) जब हम खुद को राज़ी-खुशी परमेश्‍वर की सेवा में लगाएँगे और तन-मन से उसकी सेवा करेंगे, तो हम यकीन रख सकते हैं कि उसके इंतज़ाम में हमारे लिए हमेशा जगह होगी।

किन बातों से तय होता है कि मंडली में हमारी क्या भूमिका होगी

7. समझाइए कि हम मंडली में जो करते हैं, वह कैसे हमारे हालात पर निर्भर करता है।

7 अपने हालात की जाँच करना ज़रूरी है, क्योंकि हम मंडली में जो कर सकते हैं वह काफी हद तक हमारे हालात पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, मंडली में एक भाई की भूमिका कई मायनों में एक बहन की भूमिका से अलग होती है। इसके अलावा, उम्र, सेहत और ऐसी कई बातें हैं जिनसे तय होता है कि हम यहोवा की सेवा में कितना कर पाते हैं। नीतिवचन 20:29 कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है, परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।” मंडली में बच्चे और जवान बहुत-से मेहनत के काम कर पाते हैं, क्योंकि उनमें जवानी का जोश और दमखम होता है। मगर मंडली को बुज़ुर्गों से भी बहुत फायदा होता है, क्योंकि उन्होंने दुनिया देखी होती है और उनमें बुद्धि का भंडार होता है। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यहोवा के संगठन में हम जो कुछ करते हैं, परमेश्‍वर की महा-कृपा की बदौलत ही कर पाते हैं।—प्रेषि. 14:26; रोमि. 12:6-8.

8. मंडली में हमारी जो भूमिका है, उसका हमारी ख्वाहिश से क्या नाता है?

8 मंडली में हमारी क्या भूमिका है, यह एक और बात से तय होती है। वह क्या? यह जानने के लिए आइए दो सगी बहनों की मिसाल पर गौर करें। उन दोनों के हालात एक जैसे थे। उनके माँ-बाप ने उन्हें बचपन से ही बढ़ावा दिया कि वे हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद पायनियर सेवा करें। मगर स्कूल की पढ़ाई खत्म करने पर सिर्फ एक ने पायनियर सेवा शुरू की, जबकि दूसरी नौकरी करने लगी। आखिर, उनके रास्ते अलग कैसे हो गए? उनकी ख्वाहिश की वजह से। दोनों बहनों ने वही किया, जो वे करना चाहती थीं। क्या यह बात हम पर भी लागू नहीं होती? हमें गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि परमेश्‍वर की सेवा में हम क्या करने की ख्वाहिश रखते हैं। क्या हम अपनी सेवा बढ़ा सकते हैं, फिर चाहे इसके लिए हमें अपने हालात में फेरबदल क्यों न करनी पड़े?—2 कुरिं. 9:7.

9, 10. अगर हममें यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने की चाहत ही नहीं, तो हमें क्या करना चाहिए?

9 लेकिन तब क्या जब हममें यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने की चाहत ही नहीं, बल्कि हम जो थोड़ा-बहुत कर रहे हैं उसी में खुश हैं? पौलुस ने फिलिप्पी के मसीहियों को लिखी चिट्ठी में कहा: “परमेश्‍वर है जो अपनी मरज़ी के मुताबिक तुम्हारे अंदर काम कर रहा है ताकि तुम्हारे अंदर इच्छा पैदा हो और तुम उस पर अमल भी करो।” जी हाँ, यहोवा हमारे अंदर उसकी सेवा में ज़्यादा करने की इच्छा पैदा कर सकता है।—फिलि. 2:13; 4:13.

10 तो क्या इसका मतलब यह है कि हमें यहोवा की मरज़ी पूरी करने की ख्वाहिश पैदा करने के लिए उससे बिनती करने की कोई ज़रूरत नहीं? ज़रूरत है। हमें प्राचीन इसराएल के राजा दाविद की तरह बिनती करनी चाहिए। उसने प्रार्थना में कहा: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्‍वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूं।” (भज. 25:4, 5) हमें यहोवा से दुआ करनी चाहिए कि वह हममें ऐसे काम करने की चाहत पैदा करे, जो उसे खुश करते हैं। हमें इस बारे में गहराई से सोचना चाहिए कि जब हम यहोवा और उसके बेटे यीशु के कहे मुताबिक काम करते हैं, तो वे हमारे बारे में कैसा महसूस करते हैं। ऐसा करने पर हमारा दिल उनके लिए एहसान से उमड़ पड़ेगा। (मत्ती 26:6-10; लूका 21:1-4) और यही एहसान-भरा दिल हमें यहोवा की सेवा में और भी ज़्यादा करने को उभारेगा। हममें कैसा रवैया होना चाहिए, यह हम भविष्यवक्‍ता यशायाह से सीख सकते हैं। जब उसने यहोवा को यह पूछते सुना कि “मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” तब उसने जवाब दिया: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।”—यशा. 6:8.

तरक्की कीजिए—कैसे?

11. (क) मंडलियों में अगुवाई लेनेवाले भाइयों की सख्त ज़रूरत क्यों आन पड़ी है? (ख) मंडली में खास ज़िम्मेदारियों के काबिल बनने के लिए एक भाई क्या कर सकता है?

11 सन्‌ 2008 की सेवा साल के दौरान, दुनिया-भर में 2,89,678 लोगों ने बपतिस्मा लिया। यह आँकड़ा साफ दिखाता है कि मंडलियों में अगुवाई लेनेवाले भाइयों की सख्त ज़रूरत आन पड़ी है। इसे पूरा करने के लिए एक भाई को क्या करना चाहिए? जवाब सीधा-सा है, उसे बाइबल में प्राचीनों और सहायक सेवकों के लिए जो योग्यताएँ दी गयी हैं, उन पर खरा उतरना चाहिए। (1 तीमु. 3:1-10, 12, 13; तीतु. 1:5-9) वह यह कैसे कर सकता है? उसे प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा, मंडली में अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए मेहनत करनी होगी, मसीही सभाओं में जवाब देने की अच्छी तैयारी करनी होगी और संगी भाई-बहनों में दिलचस्पी लेनी होगी। इस तरह वह दिखाएगा कि मंडली में उसकी जो भूमिका है, वह उसकी अहमियत समझता है।

12. नौजवान, सच्चाई के लिए अपना जोश कैसे दिखा सकते हैं?

12 जवान भाई, खासकर जिनकी उम्र 13-19 के बीच है, वे मंडली में तरक्की करने के लिए क्या कर सकते हैं? वे मेहनत कर सकते हैं कि वे “बुद्धि और परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली समझ” में बढ़ते जाएँ। इसके लिए ज़रूरी है कि वे बाइबल का ज्ञान लेते रहें। (कुलु. 1:9) उन्हें मन लगाकर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना और मंडली की सभाओं में पूरा-पूरा हिस्सा लेना चाहिए। जवान भाई ‘मौके के बड़े दरवाज़े’ में घुसने और ‘सरगर्मी के साथ सेवा करने’ के लिए भी मेहनत कर सकते हैं। यानी वे तरह-तरह की पूरे समय की सेवा के काबिल होने की कोशिश कर सकते हैं। (1 कुरिं. 16:9) पूरे समय की सेवा को अपना करियर बनाने से ही सच्चा संतोष और ढेरों आशीषें मिलती हैं।सभोपदेशक 12:1 पढ़िए।

13, 14. मसीही बहनें किन तरीकों से दिखा सकती हैं कि वे मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझती हैं?

13 मसीही बहनें भी दिखा सकती हैं कि वे मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझती हैं। कैसे? भजन 68:11 के मुताबिक उन्हें जो खास सम्मान दिया गया है, उसे पूरा करने के ज़रिए। उस वचन में हम पढ़ते हैं: “प्रभु आज्ञा देता है, तब शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना हो जाती है।” मंडली में अपनी भूमिका के लिए कदरदानी दिखाने का सबसे खास तरीका है, चेला बनाने के काम में हिस्सा लेना। (मत्ती 28:19, 20) इसलिए जब बहनें प्रचार काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेती हैं और उसकी खातिर त्याग करती हैं, तो वे साबित करती हैं कि उन्हें मंडली में अपनी भूमिका प्यारी है।

14 तीतुस को लिखते वक्‍त पौलुस ने कहा: “बुज़ुर्ग बहनों का बर्ताव ऐसा हो जैसा पवित्र लोगों का होता है। वे . . . अच्छी बातों की सिखानेवाली हों, ताकि वे जवान स्त्रियों को सीख देकर सुधार सकें कि वे अपने-अपने पति और बच्चों से प्यार करें, स्वस्थ मन रखें, साफ चरित्र रखें। साथ ही वे अपने घर का काम-काज करनेवाली, भली, और अपने-अपने पति के अधीन रहनेवाली हों जिससे कि परमेश्‍वर के वचन की बदनामी न की जा सके।” (तीतु. 2:3-5) वाकई, प्रौढ़ बहनें मंडली के लिए बढ़िया आशीष साबित हो सकती हैं! वे अगुवाई लेनेवाले भाइयों का आदर करती हैं। वे पहनावे, बनाव-सिंगार और मनोरंजन जैसे मामलों में बुद्धि-भरे फैसले लेती हैं। इस तरह, वे सबके लिए एक बढ़िया मिसाल कायम करती हैं और दिखाती हैं कि मंडली में उनकी जो जगह है, वह उनके लिए अनमोल है।

15. एक कुँवारी बहन अपने अकेलेपन से लड़ने के लिए क्या कर सकती है?

15 कई बार कुँवारी बहनों के लिए मंडली में अपनी भूमिका समझना मुश्‍किल हो सकता है। एक बहन, जिसने कुछ ऐसा ही महसूस किया, कहती है: “कुँवारेपन की ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसे लम्हे आते हैं, जब तनहाइयाँ आ घेरती हैं।” वह अपने अकेलेपन से कैसे लड़ती है? इस सवाल के जवाब में उसने कहा: “प्रार्थना और अध्ययन करने से मुझे एहसास रहता है कि मंडली में मेरी क्या भूमिका है। मैं इस बारे में अध्ययन करती हूँ कि यहोवा मुझे किस नज़र से देखता है। फिर मैं मंडली के दूसरे लोगों की मदद करने की कोशिश करती हूँ। इस तरह मैं खुद के बारे में कम, औरों के बारे में ज़्यादा सोचती हूँ।” भजन 32:8 (नयी हिन्दी बाइबिल) में यहोवा ने दाविद से कहा: “मैं तुझे परामर्श दूंगा। मेरी आंखें तुझ पर लगी रहेंगी।” जी हाँ, यहोवा को अपने हरेक सेवक में, यहाँ तक कि कुँवारी बहनों में भी दिलचस्पी है। और वह सभी को मंडली में अपनी भूमिका की अहमियत समझने में मदद देता है।

अपनी जगह पर बने रहिए!

16, 17. (क) यहोवा के संगठन का हिस्सा होने का न्यौता कबूल करना क्यों हमारी ज़िंदगी का सबसे बढ़िया फैसला है? (ख) यहोवा की मंडली में हम अपनी भूमिका को अनमोल कैसे समझ सकते हैं?

16 यहोवा ने प्यार से अपने सभी सेवकों को अपनी तरफ खींचा है, ताकि वह उनके साथ रिश्‍ता कायम कर सके। यीशु ने कहा: “कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए।” (यूह. 6:44) दुनिया में अरबों लोग हैं, फिर भी यहोवा ने हमें चुना है और अपनी मंडली का हिस्सा बनने का न्यौता दिया है। इसे कबूल करना, हमारी ज़िंदगी का सबसे बढ़िया फैसला है। इस फैसले से हमें जीने का मकसद मिला है। इतना ही नहीं, मंडली में अपनी एक जगह बनाने के बाद हमें जो खुशी और संतोष मिला है, उसे बयान करने के लिए हमारे पास लफ्ज़ नहीं!

17 भजनहार ने कहा: “हे यहोवा, मैं तेरे धाम से . . . प्रीति रखता हूं। मेरे पांव चौरस स्थान में स्थिर है; सभाओं में मैं यहोवा को धन्य कहा करूंगा।” (भज. 26:8, 12) सच्चे परमेश्‍वर ने हम सबके लिए अपने संगठन में एक जगह ठहरायी है। अगर हम परमेश्‍वर से मिलनेवाले निर्देशनों पर चलें और खुद को उसकी सेवा में पूरी तरह लगा दें, तो हम मंडली में अपनी भूमिका को अनमोल समझेंगे।

क्या आपको याद है?

• यह क्यों कहा जा सकता है कि मंडली में हर मसीही की एक भूमिका है?

• हम कैसे दिखाते हैं कि परमेश्‍वर के संगठन में हम अपनी भूमिका को अनमोल समझते हैं?

• किन बातों से तय होता है कि मंडली में हमारी क्या भूमिका होगी?

• मसीही जवान और बड़े-बुज़ुर्ग कैसे दिखा सकते हैं कि वे परमेश्‍वर के इंतज़ाम में अपनी जगह की कदर करते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीरें]

मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर सेवा करने के लिए भाई क्या कर सकते हैं?

[पेज 17 पर तसवीर]

मसीही बहनें कैसे दिखा सकती हैं कि उन्हें मंडली में अपनी भूमिका प्यारी है?