इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

ऐसा प्यार बढ़ाइए जो कभी नहीं मिटता

ऐसा प्यार बढ़ाइए जो कभी नहीं मिटता

ऐसा प्यार बढ़ाइए जो कभी नहीं मिटता

‘प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है। प्यार कभी नहीं मिटता।’—1 कुरिं. 13:7, 8.

1. (क) प्यार के बारे में अकसर क्या कहा जाता है? (ख) आज ज़्यादातर लोग किससे प्यार करते हैं?

 प्यार इंसान की एक बुनियादी ज़रूरत है। प्यार के बारे में बहुत कुछ कहा, सुना और लिखा गया है। इसकी तारीफ में बेहिसाब गीत रचे गए हैं। अकसर इन गीतों में प्यार के बारे में जो कहा जाता है वह हकीकत से कोसों दूर होता है। बाज़ार में मन-गढ़ंत प्रेम-कहानियों की किताबों और फिल्मों की भरमार है। लेकिन जब परमेश्‍वर के लिए और दूसरे इंसानों के लिए सच्चे प्यार की बात आती है, तो आज ऐसे प्यार की भारी कमी है। इन आखिरी दिनों में हम वही होता हुआ देख रहे हैं जो बाइबल में पहले से बताया गया था। आज लोग ‘सिर्फ खुद से प्यार करनेवाले, पैसे से प्यार करनेवाले और परमेश्‍वर के बजाय मौज-मस्ती से प्यार करनेवाले’ हैं।—2 तीमु. 3:1-5.

2. बाइबल, गलत किस्म के प्यार के बारे में क्या चेतावनी देती है?

2 इंसान के अंदर प्यार दिखाने की काबिलीयत है। लेकिन परमेश्‍वर का वचन हमें आगाह करता है कि हम गलत किस्म के प्यार से खबरदार रहें। बाइबल बताती है कि जब एक इंसान के अंदर गलत किस्म का प्यार पैदा होता है तो इसका क्या अंजाम होता है। (1 तीमु. 6:9, 10) क्या आपको याद है कि प्रेषित पौलुस ने देमास के बारे में क्या लिखा था? हालाँकि वह पौलुस का साथी था, फिर भी वह दुनिया की चीज़ों से प्यार करने लगा। (2 तीमु. 4:10) प्रेषित यूहन्‍ना ने मसीहियों को इसी खतरे के बारे में चेतावनी दी थी। (1 यूहन्‍ना 2:15, 16 पढ़िए।) जो इंसान इस दुनिया, इसकी चीज़ों और तौर-तरीकों से प्यार करता है वह परमेश्‍वर और उसकी तरफ से मिलनेवाली चीज़ों से प्यार नहीं कर सकता।

3. हमारे सामने क्या चुनौती है? इससे क्या-क्या सवाल उठते हैं?

3 इस दुनिया में रहते हुए भी हम इस दुनिया के नहीं हैं। इसलिए प्यार के बारे में दुनिया जो मानती है, उससे दूर रहना हमारे लिए एक चुनौती है। यह बेहद ज़रूरी है कि हम गलत या ओछे किस्म के प्यार के फंदे में न पड़ें। इसके बजाय, हम उसूलों के मुताबिक प्यार करना सीखें। मगर सवाल यह है कि हम किसके लिए इस तरह का सच्चा प्यार बढ़ाएँ और दिखाएँ? ऐसा प्यार बढ़ाने में, जो धीरज के साथ सबकुछ सहता है और कभी नहीं मिटता, हमारी मदद के लिए क्या इंतज़ाम किए गए हैं? ऐसा प्यार बढ़ाने से आज हमें क्या फायदे होते हैं और भविष्य में क्या फायदे होंगे? परमेश्‍वर इन सवालों के क्या जवाब देता है यह जानना ज़रूरी है, तभी हम उसके हिसाब से काम कर सकेंगे।

यहोवा के लिए प्यार बढ़ाना

4. परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार कैसे बढ़ता है?

4 एक ऐसे किसान के बारे में सोचिए जो बड़ी मेहनत से ज़मीन जोतकर तैयार करता है ताकि उसमें बीज बोए। वह उम्मीद करता है कि ये बीज बढ़ेंगे और इनसे पौधे निकलेंगे। (इब्रा. 6:7) उसी तरह, परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार भी बढ़ना चाहिए। इसे बढ़ाने के लिए क्या करना ज़रूरी है? हमें भी अपने दिल की उपजाऊ मिट्टी को मानो जोतकर तैयार करना है, ताकि इसमें राज की सच्चाई के जो बीज बोए गए वे फल ला सकें। परमेश्‍वर के वचन का दिल लगाकर अध्ययन करने से मानो हम अपने दिल की जुताई कर रहे हैं और परमेश्‍वर को करीब से जान रहे हैं। (कुलु. 1:10) मंडली की सभाओं में बिना नागा हाज़िर होना और उनमें हिस्सा लेना भी ज्ञान बढ़ाने में हमारी मदद करेगा। खुद से पूछिए, क्या मैं परमेश्‍वर को करीब से जानने के लिए लगातार मेहनत कर रहा हूँ?—नीति. 2:1-7.

5. (क) हम यहोवा के खास गुणों के बारे में कैसे सीख सकते हैं? (ख) परमेश्‍वर के न्याय, उसकी बुद्धि और शक्‍ति के बारे में आप क्या कह सकते हैं?

5 यहोवा अपने वचन, बाइबल के ज़रिए हमें अपने बारे में बताता है। इसलिए बाइबल का अध्ययन करने और यहोवा के बारे में दिनों-दिन अपना ज्ञान बढ़ाने से हम उसके खास गुणों, यानी उसके न्याय, उसकी शक्‍ति, बुद्धि और सबसे बढ़कर उसके बेमिसाल प्यार के बारे में अपनी समझ बढ़ा सकेंगे। यहोवा के सभी कामों में और उसके सिद्ध कानून में उसका न्याय दिखायी देता है। (व्यव. 32:4; भज. 19:7) सृष्टि में उसकी तमाम रचनाओं से हम उसकी महान बुद्धि देख सकते हैं, जो हमें हैरत में डाल देती है। (भज. 104:24) और यहोवा की बेहिसाब ताकत और कभी न खत्म होनेवाली शक्‍ति का सबूत उसके बनाए विश्‍वमंडल से मिलता है।—यशा. 40:26.

6. परमेश्‍वर ने हमारी खातिर अपना प्यार कैसे दिखाया है? इसका आप पर कैसा असर हुआ है?

6 परमेश्‍वर के सबसे खास गुण यानी उसके प्यार के बारे में क्या कहा जा सकता है? परमेश्‍वर का प्यार इतना महान है कि यह हम सबको अपनी आगोश में समा लेता है। परमेश्‍वर ने इंसानों के छुटकारे के लिए फिरौती का इंतज़ाम करके यह प्यार दिखाया है। (रोमियों 5:8 पढ़िए।) यह इंतज़ाम दुनिया के सभी इंसानों के लिए किया गया है, मगर इसका फायदा सिर्फ उन्हीं को मिलेगा जो परमेश्‍वर के प्यार के लिए कदरदानी दिखाते हैं और उसके बेटे पर अपना विश्‍वास दिखाते हैं। (यूह. 3:16, 36) परमेश्‍वर ने हमारे पापों के लिए प्रायश्‍चित्त बलिदान के तौर पर अपना बेटा यीशु दिया है। परमेश्‍वर का यह प्यार देखकर हमारे दिल में भी उसके लिए प्यार उमड़ना चाहिए।

7, 8. (क) परमेश्‍वर के लिए प्यार दिखाने के लिए क्या करना ज़रूरी है? (ख) किन हालात के होते हुए भी परमेश्‍वर के लोग उसकी आज्ञाओं पर चलते हैं?

7 परमेश्‍वर ने हमारे लिए कितना कुछ किया है। बदले में हम उसके लिए प्यार कैसे दिखा सकते हैं? इसका जवाब ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे इन शब्दों से मिलता है जो बहुत अहमियत रखते हैं: “परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें; और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।” (1 यूह. 5:3) जी हाँ, हम यहोवा परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, इसलिए उसकी आज्ञाओं पर चलना चाहते हैं। यह एक वजह है कि हम क्यों उसके नाम और राज के बारे में गवाही देते हैं जिससे दूसरों का फायदा होता है। यह इस बात का सबूत है कि हम सच्चे दिल से परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानते हैं, क्योंकि जो हमारे दिल में भरा है वही हमारे मुँह पर आता है।—मत्ती 12:34.

8 दुनिया भर में हमारे भाई मुश्‍किलों के बावजूद परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानते रहते हैं। जब वे लोगों को राज का संदेश सुनाते हैं, तो लोग दिलचस्पी नहीं दिखाते और सुनने से साफ इनकार कर देते हैं। फिर भी हमारे भाई प्रचार में मेहनत करना नहीं छोड़ते, ताकि अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी कर सकें। (2 तीमु. 4:5) उनकी तरह, हम भी दूसरों को परमेश्‍वर के बारे में सिखाने का काम दिल से करते हैं। इसके अलावा, हम परमेश्‍वर की बाकी सभी आज्ञाओं पर चलने की भी पूरी कोशिश करते हैं।

हम अपने प्रभु यीशु मसीह से क्यों प्यार करते हैं

9. यीशु ने धीरज धरकर क्या-क्या सहा? उसने किसकी खातिर यह सब सहा?

9 परमेश्‍वर से प्यार करने के साथ-साथ हम उसके बेटे के लिए भी अपना प्यार बढ़ाते हैं। इसकी कई वजह हैं। यह सच है कि हमने यीशु को कभी देखा नहीं, मगर हम उसके बारे में जितना ज़्यादा सीखते हैं उतना ज़्यादा हम उससे प्यार करते हैं। (1 पत. 1:8) यीशु ने धीरज धरकर क्या-क्या सहा था? जिस दौरान यीशु अपने पिता की मरज़ी पूरी कर रहा था, उस दौरान उससे बेवजह नफरत की गयी, उस पर ज़ुल्म ढाया गया, झूठे इलज़ाम लगाए गए और उसे गालियाँ दी गयीं। उसे और भी कई तरीकों से अपमान सहना पड़ा। (यूहन्‍ना 15:25 पढ़िए।) स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के लिए प्यार की खातिर यीशु ये सारी तकलीफें धीरज से सहता रहा। और प्यार की खातिर ही यीशु ने बहुतों के लिए अपनी जान बलिदान की और उनके लिए फिरौती दी।—मत्ती 20:28.

10, 11. मसीह ने हमारे लिए जो किया, उसकी वजह से हमने क्या लक्ष्य रखा है?

10 जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यीशु ने हमारे लिए क्या-क्या किया, तो उसके लिए हमारा प्यार और भी बढ़ता है और हम भी बदले में कुछ करना चाहते हैं। उसके चेले होने के नाते हमारा यह लक्ष्य होना चाहिए कि हम भी ऐसा प्यार बढ़ाएँ और दिखाते रहें, जैसा मसीह ने दिखाया था ताकि हम राज के बारे में गवाही देने और चेले बनाने की उसकी आज्ञा मानते रहें।—मत्ती 28:19, 20.

11 सब इंसानों के लिए मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है कि अंत आने से पहले हम वह काम पूरा करें जो हमें दिया गया है। (2 कुरिंथियों 5:14, 15 पढ़िए।) मसीह ने जो प्यार दिखाया उसी की वजह से, वह इंसानों के लिए परमेश्‍वर का ठहराया हुआ मकसद पूरा कर सका। और मसीह के इस आदर्श पर नज़दीकी से चलकर हम सभी परमेश्‍वर के उस मकसद को पूरा करने में अपना-अपना भाग अदा कर पाएँगे। इसके लिए ज़रूरी है कि हम पूरी हद तक परमेश्‍वर के लिए प्यार बढ़ाने में कामयाब हों। (मत्ती 22:37) यीशु ने जो सिखाया उस पर चलने और उसकी आज्ञाएँ मानने से हम दिखाते हैं कि हम यीशु से प्यार करते हैं और हमने ठान लिया है कि उसकी तरह हम हर कीमत पर परमेश्‍वर की हुकूमत को बुलंद करते रहेंगे।—यूह. 14:23, 24; 15:10.

प्यार की सबसे बेहतरीन राह पर चलना

12. पौलुस ने जब एक “बेहतरीन राह” की बात कही, तो उसका क्या मतलब था?

12 प्रेषित पौलुस, मसीह के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलता था। इस वजह से पौलुस बेझिझक अपने भाइयों से कह सका कि वे उसकी मिसाल पर चलें। (1 कुरिं. 11:1) पहली सदी के मसीहियों के लिए, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से बीमारों को ठीक करना और अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान हासिल करना मुमकिन था। पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को उकसाया कि उसकी तरह वे भी ये वरदान हासिल करने की कोशिश करें। मगर पौलुस ने उन्हें यह भी बताया कि कुछ और है जो इन वरदानों से भी बेहतर है। पहला कुरिंथियों 12:31 में उसने कहा: “मैं तुम्हें इन सबसे बेहतरीन एक राह दिखाता हूँ।” कौन-सी राह? आगे की आयतें दिखाती हैं कि यह प्यार की राह है। किस मायने में यह सबसे बेहतरीन राह है? पौलुस ने जो मिसालें दीं उन पर गौर कीजिए। (1 कुरिंथियों 13:1-3 पढ़िए।) वह कहता है कि अगर उसके पास ऐसी अनोखी काबिलीयत हो जिसके दम पर वह बड़े-बड़े हैरतअँगेज़ काम करे मगर उसमें प्यार का गुण न हो, तो उसकी क्या अहमियत होगी? पौलुस कहता है, अगर उसमें प्यार का गुण नहीं, तो वह “कुछ भी नहीं।” पौलुस ने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से उभारे जाकर एक बहुत बड़ी सच्चाई समझायी। उसने शब्दों से ऐसी ज़बरदस्त तसवीर खींची कि यह हमारे दिल में बैठ जाए!

13. (क) सन्‌ 2010 का सालाना पाठ क्या है? (ख) इसका क्या मतलब है कि प्यार कभी नहीं मिटता?

13 इसके बाद पौलुस बताता है कि प्यार क्या है और क्या नहीं। (1 कुरिंथियों 13:4-8 पढ़िए।) अब ज़रा कुछ देर के लिए खुद की जाँच कीजिए कि आप प्यार की माँगों पर किस हद तक खरे उतरते हैं। खासकर आयत 7 के आखिरी शब्दों पर और आयत 8 के पहले वाक्य पर ध्यान दीजिए: ‘प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है। प्यार कभी नहीं मिटता।’ यह आयत 2010 के लिए हमारा सालाना पाठ है। मसीही मंडली के शुरूआती दौर में मसीहियों को पवित्र शक्‍ति के जो वरदान मिले थे, वे कुछ समय बाद मिट जाते। जैसे आयत 8 में पौलुस ने कहा, भविष्यवाणी करने और अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान भी खत्म हो जाता। मगर प्यार हमेशा कायम रहेगा। यहोवा प्यार का साक्षात्‌ रूप है और वह सदा तक रहेगा। इसलिए प्यार भी सदा तक रहेगा। न कभी खत्म होगा, न कभी मिटेगा। इसका वजूद हमेशा-हमेशा तक रहेगा क्योंकि यह हमारे उस परमेश्‍वर का गुण है जो युगों-युगों तक बना रहता है।—1 यूह. 4:8.

प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है

14, 15. (क) प्यार हमें आज़माइशों को सहने में कैसे मदद देता है? (ख) एक जवान भाई ने अपने विश्‍वास से मुकरने से इनकार क्यों कर दिया?

14 मसीहियों पर चाहे कैसी ही आज़माइशें, मुश्‍किलें और समस्याएँ क्यों न आएँ, वे सबकुछ धीरज के साथ सह लेते हैं। क्या बात उन्हें सहने में मदद देती है? चंद शब्दों में कहें तो उसूलों के मुताबिक किया जानेवाला प्यार उन्हें मदद देता है। इस प्यार की खातिर एक मसीही न सिर्फ अपनी चीज़ों का नुकसान सह लेता है, बल्कि अपनी खराई बनाए रखने के लिए अगर उसे मसीह की खातिर जान भी गँवानी पड़े तो वह इसके लिए तैयार होता है। (लूका 9:24, 25) उन साक्षियों को याद कीजिए जिन्होंने दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान और उसके बाद के सालों में अपनी वफादारी की वजह से जेलों में, यातना शिविरों में और मज़दूर शिविरों में कई यातनाएँ सहीं।

15 जर्मनी का एक जवान साक्षी, विलहेल्म इसकी एक अच्छी मिसाल था। उसे सज़ा सुनायी गयी थी कि नात्ज़ी सैनिक उसे गोलियों से मौत के घाट उतार दें, फिर भी वह अपने विश्‍वास से नहीं मुकरा। अपने परिवार के नाम आखिरी खत में उसने लिखा: “ठीक जैसे हमारे अगुवे यीशु मसीह ने आज्ञा दी थी, हमें सबसे बढ़कर परमेश्‍वर से प्यार करना चाहिए। अगर हम उसके पक्ष में खड़े रहेंगे तो वह हमें इनाम देगा।” बाद में प्रहरीदुर्ग के एक लेख में उसके परिवार के एक सदस्य ने लिखा: “मुसीबतों के दौर में हमारे पूरे परिवार ने इस बात का ध्यान रखा कि हम सबसे बढ़कर परमेश्‍वर से प्यार करें।” आज आर्मीनिया, एरिट्रिया, दक्षिण कोरिया और दूसरे देशों में हमारे कई भाई ऐसा ही जज़्बा दिखा रहे हैं। वे अपने विश्‍वास की वजह से जेल की सज़ा काट रहे हैं। यहोवा के लिए इन भाइयों का प्यार अटल है।

16. मलावी में हमारे भाइयों ने क्या-क्या सहा था?

16 कई जगहों में हमारे भाई दूसरी किस्म की तकलीफें सह रहे हैं, जिनसे उनके विश्‍वास और धीरज की आज़माइश होती है। जैसे, मलावी में यहोवा के साक्षियों के काम पर 26 साल तक सरकार ने पाबंदी लगा रखी थी, उनका कड़ा विरोध किया जाता था और उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी जाती थीं। मगर उन्हें धीरज से सबकुछ सहने का अच्छा इनाम मिला। जब उस देश में ज़ुल्मों का दौर शुरू हुआ तब साक्षियों की गिनती करीब 18,000 थी। मगर तीस साल बाद उनकी गिनती दुगुनी से ज़्यादा यानी 38,393 हो गयी। दूसरे देशों में भी ऐसे ही बढ़िया नतीजे देखने को मिले हैं।

17. जिन मसीहियों के परिवार सच्चाई में नहीं हैं, वे कैसी समस्याओं का सामना करते हैं? उन्हें विरोध सहने में किस बात से मदद मिलती है?

17 साक्षियों पर सरेआम होनेवाले हमलों को सहना काफी मुश्‍किल हो सकता है। मगर इससे भी ज़्यादा मुश्‍किल है, अपने ही परिवार के लोगों का विरोध सहना। परिवार के लोगों या रिश्‍तेदारों की वजह से मसीहियों को बहुत तनाव झेलना पड़ सकता है। यीशु ने पहले ही बताया था कि मसीहियों के साथ ऐसा होगा। आज हमारे कई भाई-बहनों पर यीशु के शब्द बिलकुल सच साबित हुए हैं। (मत्ती 10:35, 36) जवान साक्षियों ने अविश्‍वासी माता-पिता के विरोध का सामना किया है। कई जवानों को तो घर से निकाल दिया गया मगर उन्हें साक्षियों ने अपने घर में पनाह दी। कुछ ऐसे हैं जिनके परिवार ने उनसे नाता तोड़ लिया। इन जवानों को ऐसी बदसलूकी सहने में किस बात से मदद मिली? न सिर्फ मसीही भाई-बहनों के लिए प्यार से, बल्कि सबसे बढ़कर यहोवा और उसके बेटे के लिए सच्चे प्यार से उन्हें सहने की ताकत मिली।—1 पत. 1:22; 1 यूह. 4:21.

18. जो प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है, वह शादीशुदा मसीहियों को क्या करने में मदद देता है?

18 ज़िंदगी में और भी कई हालात ऐसे आते हैं जब हमारे लिए ऐसा प्यार दिखाना ज़रूरी होता है जो सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है। शादी के रिश्‍ते में प्यार एक पति-पत्नी को उकसाता है कि वे यीशु की इस बात का मान रखें: “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:6) “शारीरिक दुःख-तकलीफें” सहते वक्‍त शादीशुदा मसीहियों को खुद को याद दिलाना चाहिए कि उनकी शादी में यहोवा सबसे पहली जगह पर आता है। (1 कुरिं. 7:28) उसका वचन कहता है कि ‘प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है।’ जो पति-पत्नी प्यार को अपना पहनावा बना लेते हैं उन्हें इस प्यार से मज़बूती मिलती है, ताकि परेशानियों के बावजूद वे एक-दूसरे के साथ जुड़े रहें और अपनी शादी का रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखें।—कुलु. 3:14.

19. कुदरती हादसों के बाद परमेश्‍वर के लोगों के बीच क्या देखा गया है?

19 प्यार हमें कुदरती हादसों के वक्‍त भी सबकुछ धीरज से सहने में मदद देता है। जब दक्षिणी पेरू में एक भूकंप आया और अमरीका के खाड़ी इलाके में कटरीना नाम के भयंकर तूफान ने कहर ढाया तो वहाँ के भाइयों ने हर तरह का नुकसान धीरज के साथ सह लिया। इन हादसों ने हमारे कई भाइयों को घर से बेघर कर दिया और उनका सबकुछ उनसे छीन लिया। उस वक्‍त दुनिया भर के मसीही भाई-बहनों ने प्यार की खातिर, हादसों के शिकार इन भाइयों को राहत का सामान भेजा। और कइयों ने उन इलाकों में जाकर भाई-बहनों के घर फिर से बनाने और राज्य घरों की मरम्मत करने के लिए खुशी-खुशी अपनी सेवाएँ दीं। ऐसी सेवा साबित करती है कि हमारे भाई हर वक्‍त और किसी भी तरह के हालात में एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे की परवाह करते हैं।—यूह. 13:34, 35; 1 पत. 2:17.

प्यार कभी नहीं मिटता

20, 21. (क) प्यार की राह क्यों सबसे बेहतरीन है? (ख) आपने प्यार की राह पर चलते रहने का अटल फैसला क्यों किया है?

20 आज यहोवा के लोगों के बीच हम इस बात के सबूत देखते हैं कि प्यार की बेहतरीन राह पर चलने के कितने बढ़िया नतीजे निकलते हैं। किसी भी तरह के हालात में प्यार की राह ही सबसे बेहतरीन राह साबित होती है। गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने इसी सच्चाई पर कैसे ज़ोर दिया। पहले उसने बताया कि ऐसा वक्‍त आएगा जब पवित्र शक्‍ति के वरदान मिट जाएँगे, मसीही मंडली अपने शुरूआती दौर से निकलकर आध्यात्मिक तरक्की करती हुई प्रौढ़ता तक पहुँचेगी। फिर आखिर में उसने कहा: “लेकिन जो तीन बाकी रह जाएँगे, वे हैं विश्‍वास, आशा और प्यार, मगर इन तीनों में सबसे बड़ा है प्यार।”—1 कुरिं. 13:13.

21 आखिरकार वह वक्‍त भी आएगा जब वे सारी बातें हकीकत बन जाएँगी जिनके बारे में हमें विश्‍वास है कि ये होंगी। तब हमें उन बातों पर विश्‍वास करने की ज़रूरत नहीं रहेगी। उसी तरह, आज हम जिन वादों के पूरा होने की आशा रखते हैं जब वे पूरे हो जाएँगे और सबकुछ नया कर दिया जाएगा तब आशा रखने की ज़रूरत खत्म हो जाएगी। लेकिन प्यार के बारे में क्या? यह कभी नहीं मिटेगा, न ही खत्म होगा। प्यार सदा तक रहेगा। जब हम हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे तो हम परमेश्‍वर के प्यार के और भी नए-नए पहलू देख और समझ सकेंगे। हमारी दुआ है कि आप कभी न मिटनेवाले प्यार की बेहतरीन राह पर चलते हुए परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करें ताकि आप हमेशा तक जीते रहें।—1 यूह. 2:17.

आपका जवाब क्या होगा?

• हमें गलत किस्म के प्यार से क्यों खबरदार रहना चाहिए?

• प्यार हमें क्या-क्या सहने की ताकत दे सकता है?

• इसका मतलब क्या है कि प्यार कभी नहीं मिटता?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

सन्‌ 2010 का सालाना पाठ है: ‘प्यार सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है। प्यार कभी नहीं मिटता।’—1 कुरिं. 13:7, 8.

[पेज 25 पर तसवीर]

परमेश्‍वर का प्यार हमें गवाही देने के लिए उकसाता है

[पेज 26 पर तसवीर]

मलावी के भाई-बहनों के अटल प्यार ने उन्हें धीरज के साथ तकलीफें सहने में मदद दी