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‘बड़े लाल द्वीप’ में बाइबल

‘बड़े लाल द्वीप’ में बाइबल

‘बड़े लाल द्वीप’ में बाइबल

मेडागास्कर। यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा द्वीप है। यह अफ्रीका के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग 400 किलोमीटर दूर है। यहाँ की सरकारी भाषा मलगासी है और लोगों को भी इसी नाम से पुकारा जाता है। मलगासी लोग मुद्दतों से परमेश्‍वर के नाम ‘यहोवा’ से वाकिफ हैं, क्योंकि उनकी भाषा की बाइबल में यह नाम दिया गया है। मलगासी बाइबल का अनुवाद हुए करीब 170 साल हो चुके हैं। आइए देखें कि इसका अनुवाद और छपाई कैसे हुई। यह कहानी, लगन और समर्पण की दास्तान है।

मलगासी भाषा में बाइबल के अनुवाद की शुरूआत पास के मॉरीशस द्वीप में हुई थी। सन्‌ 1813 में मॉरीशस के अँग्रेज़ गवर्नर, सर रॉबर्ट फारक्वर ने खुशखबरी की किताबों का मलगासी में अनुवाद करने में पहल की। बाद में उसने मेडागास्कर के राजा, राडमा प्रथम को बढ़ावा दिया कि वह ‘लंदन मिशनरी सोसाइटी’ (एल.एम.एस.) से शिक्षकों को ‘बड़े लाल द्वीप’ में आने का न्यौता दे। मेडागास्कर को अकसर ‘बड़ा लाल द्वीप’ कहा जाता है।

18 अगस्त, 1818 को दो मिशनरी मॉरीशस से तोआमसीना आए, जो मेडागास्कर का बंदरगाह शहर है। ये मिशनरी वेल्श के वासी थे और उनके नाम थे, डेविड जोन्स और थॉमस बीवन। तोआमसीना में उन्होंने देखा कि यहाँ के लोग, धर्म में गहरी आस्था रखते हैं। यही नहीं, पूर्वजों की पूजा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे रीति-रिवाज़ मानना उनकी रोज़मर्रा ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है। मलगासी लोगों की बोली बहुत मज़ेदार है, वे अपनी बात काफी खुलकर बताते हैं और तरह-तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उनकी भाषा की शुरूआत मलेओ-पॉलिनीशियन भाषा से हुई।

जोन्स और बीवन ने तोआमसीना में एक छोटा-सा स्कूल खोला, जिसके फौरन बाद उन्होंने अपने बीवी-बच्चों को मॉरीशस से बुला लिया। मगर अफसोस! उनके पूरे दल में मलेरिया फैल गया। और दिसंबर 1818 में जोन्स की पत्नी और बच्ची की मौत हो गयी। दो महीने बाद, बीवन का परिवार भी इस बीमारी की चपेट में आ गया और उन सबकी मौत हो गयी। अकेला डेविड जोन्स बच गया।

इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी जोन्स ने हार नहीं मानी। उसने ठान लिया कि वह मेडागास्कर के लोगों तक परमेश्‍वर का वचन पहुँचाकर ही रहेगा। फिर से दुरुस्त होने के लिए वह वापस मॉरीशस गया। वहाँ उसने मलगासी भाषा सीखने का मुश्‍किल काम शुरू किया। उसके कुछ ही समय बाद, वह खुशखबरी की किताब, यूहन्‍ना का अनुवाद करने की तैयारी करने लगा।

अक्टूबर 1820 में जोन्स वापस मेडागास्कर आया। वह मेडागास्कर की राजधानी, आनटानानारीवो पहुँचा और जल्द ही वहाँ उसने एक नया मिशनरी स्कूल खोला। मगर स्कूल में किताबें, ब्लैक-बोर्ड, मेज़ वगैरह की सुविधाएँ नहीं थीं। लेकिन पढ़ाई अव्वल दर्जे की थी और बच्चों में भी सीखने की ललक थी।

जोन्स ने करीब सात महीने अकेले काम किया। फिर उसे बीवन की जगह एक नया साथी मिल गया। वह था एक मिशनरी, डेविड ग्रिफट्‌स। जोन्स और ग्रिफट्‌स ने बाइबल का अनुवाद मलगासी में करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।

बाइबल का अनुवाद शुरू हुआ

सन्‌ 1820 के शुरूआती सालों में, मलगासी भाषा सूराबी नाम की लिपि में लिखी जाती थी। यानी, मलगासी शब्दों को लिखने के लिए अरबी वर्णमाला इस्तेमाल की जाती थी। मगर यह लिपि सिर्फ कुछ ही लोग पढ़ पाते थे। इसलिए मिशनरियों ने इस बारे में राजा राडमा प्रथम से बात की। तब राजा ने सूराबी की जगह रोमन लिपि इस्तेमाल करने की इजाज़त दी।

10 सितम्बर, 1823 को बाइबल का अनुवाद शुरू हो गया। जोन्स ने उत्पत्ति और मत्ती की किताबों का और ग्रिफट्‌स ने निर्गमन और लूका की किताबों का अनुवाद किया। दोनों पुरुषों में गज़ब की ताकत थी। वे न सिर्फ अनुवाद का ज़्यादातर काम करते थे, बल्कि सुबह और दोपहर को स्कूल में पढ़ाते भी थे। इतना ही नहीं, वे चर्च में तीन भाषाओं में उपदेश देने की तैयारी भी करते थे और देते भी थे। लेकिन वे बाइबल के अनुवाद को ही सबसे ज़्यादा अहमियत देते थे।

उन मिशनरियों ने विश्‍वविद्यालय के 12 विद्यार्थियों की मदद लेकर 18 महीनों के अंदर पूरे यूनानी शास्त्र और इब्रानी शास्त्र की कई किताबों का अनुवाद खत्म कर लिया। अगले साल पूरी बाइबल के अनुवाद का कच्चा रूप तैयार हो गया। बेशक, उसमें सुधार और फेरबदल किए जाने की ज़रूरत थी। इसलिए इस काम में मदद देने के लिए दो भाषा-विद्वानों, डेविड जॉन्स और जोसफ फ्रीमन को इंग्लैंड से भेजा गया।

बाधाओं के बावजूद आगे बढ़ना

जब बाइबल का मलगासी अनुवाद पूरा हुआ, तब ‘लंदन मिशनरी सोसाइटी’ ने चार्ल्स हावनडन को मेडागास्कर भेजा, ताकि वह वहाँ पहली प्रिंटिंग प्रेस खड़ी कर सके। हावनडन 21 नवंबर, 1826 को मेडागास्कर पहुँचा। मगर वहाँ पहुँचते ही उसे मलेरिया हो गया और एक महीने के अंदर वह चल बसा। अब उस द्वीप में ऐसा एक भी इंसान नहीं था, जो प्रिंटिंग प्रेस खड़ी कर सके। मगर अगले साल ही स्कॉटलैंड के एक कुशल कारीगर, जेम्स केमरन ने प्रिंटिंग प्रेस के पुरज़ों में से ही मिली पुस्तिका से देख-देखकर प्रेस खड़ी कर दी। फिर उसने छपाई के कई तरीके आज़माए। आखिरकार 4 दिसम्बर, 1827 को वह उत्पत्ति की किताब के पहले अध्याय के कुछ हिस्से छापने में कामयाब हो गया। *

27 जुलाई, 1828 को जब राजा राडमा प्रथम की मौत हुई, तब एक और बाधा आयी। दरअसल, राजा राडमा ने अनुवाद के काम में बहुत मदद दी थी। उस दौरान डेविड जोन्स ने कहा था: “राजा राडमा बहुत ही दयालु और मिलनसार हैं। वे शिक्षा के बड़े पैरोकार हैं। उनका मानना है कि लोगों को सोने-चाँदी से ज़्यादा सभ्यता के बारे में सिखाया जाना चाहिए।” मगर राजा की मौत के बाद उसकी पत्नी, रानावलोना ने राजगद्दी सँभाली और जल्द ही यह ज़ाहिर हो गया कि वह अनुवाद के काम में इतना सहयोग नहीं देगी, जितना उसका पति देता था।

रानी के राज्य की बागडोर सँभालने के कुछ ही समय बाद, इंग्लैंड से एक आदमी आया। उसने रानी से अनुवाद के सिलसिले में बात करने के लिए उससे मिलने की गुज़ारिश की। मगर उसकी गुज़ारिश ठुकरा दी गयी। एक दूसरे मौके पर जब मिशनरियों ने रानी को बताया कि लोगों को अब भी बहुत कुछ सिखाना बाकी है, यहाँ तक कि यूनानी और इब्रानी भाषा के बारे में, तो रानी ने जवाब दिया: “यूनानी-इब्रानी से मेरा कोई सरोकार नहीं। मैं बस यह जानना चाहती हूँ कि क्या आप मेरी प्रजा को कुछ काम की बातें सीखा सकते हैं, जैसे साबुन बनाना।” केमरन फौरन ताड़ गया कि मलगासी बाइबल के अनुवाद के पूरा होने से पहले ही मिशनरियों को जाने के लिए कहा जा सकता है। इसलिए उसने रानी की कही बात पर सोचने के लिए एक हफ्ते की मोहलत माँगी।

अगले हफ्ते, केमरन ने रानी के शाही दूतों को साबुन की दो छोटी टिकियाँ पेश की, जो वहीं के सामान से बनायी गयी थीं। मिशनरियों ने, जो अच्छे कारीगर भी थे, इस तरह और दूसरे कई तरीकों से समाज की सेवा कर रानी को काफी समय तक खुश रखा। और इस बीच उन्होंने इब्रानी शास्त्र की कुछ ही किताबों को छोड़ बाइबल की बाकी सब किताबें छाप डालीं।

हैरानी, फिर मायूसी

हालाँकि रानी ने शुरू-शुरू में मिशनरियों के साथ रूखा व्यवहार किया, मगर मई 1831 में उसने एक ऐसा फरमान जारी किया कि वे हक्के-बक्के रह गए। उसने अपनी प्रजा को बपतिस्मा लेकर मसीह बनने की इजाज़त दी! लेकिन यह फैसला चंद दिनों के लिए ही था। मेडागास्कर का इतिहास (अँग्रेज़ी) किताब के मुताबिक, “बपतिस्मा लेनेवालों की बढ़ती संख्या देखकर शाही दरबार के वे मंत्री डर गए, जो कोई बदलाव नहीं चाहते थे। उन्होंने रानी को यह पट्टी पढ़ायी कि परम प्रसाद (होली कम्यूनियन) लेना, अँग्रेज़ राज के साथ वफा करने की शपथ लेने के बराबर है।” इसलिए रानी ने सन्‌ 1831 के आखिर में, मसीही बपतिस्मे की इजाज़त वापस ले ली। यानी फरमान जारी करने के ठीक छः महीने बाद।

रानी का फरमान जारी करना और फिर वापस लेना, साथ ही सरकार में रूढ़िवादियों का बढ़ता दबदबा देखकर मिशनरियों ने बाइबल की छपाई में तेज़ी ला दी। मसीही यूनानी शास्त्र की छपाई पहले ही खत्म हो गयी थी और हज़ारों कॉपियाँ लोगों में बँट चुकी थी। मगर 1 मार्च, 1835 में एक और बाधा आयी। रानी रानावलोना प्रथम ने ऐलान किया कि मसीही धर्म गैर-कानूनी है। उसने यह भी हुक्म दिया कि सभी मसीही किताबें अधिकारियों के हवाले कर दी जाएँ।

रानी की इस आज्ञा का यह भी मतलब था कि जो मलगासी प्रिंटिंग प्रेस चलाने का काम सीख रहे थे, वे अब बाइबल छापने के काम में हिस्सा नहीं ले सकते। इसलिए गिने-चुने मिशनरियों ने मिलकर दिन-रात काम किया और आखिरकार, जून 1835 में पूरी बाइबल छपकर तैयार हो गयी। इस तरह, मलगासी बाइबल का जन्म हुआ!

मसीही धर्म पर लगी पाबंदी की वजह से पूरी बाइबल को जल्द-से-जल्द लोगों में बाँटा गया और 70 कॉपियाँ ज़मीन में दफन कर दी गयीं, ताकि इन्हें कोई नाश न कर सके। यह बिलकुल सही फैसला था, क्योंकि एक साल के अंदर ही दो मिशनरियों को छोड़, बाकी सब वापस अपने देश लौट गए। इसके बावजूद भी ‘बड़े लाल द्वीप’ में परमेश्‍वर का वचन फैलता गया।

बाइबल के लिए मलगासियों का प्यार

मेडागास्कर के लोगों ने जब अपनी भाषा में परमेश्‍वर का वचन पढ़ा, तो वे फूले नहीं समाए! हालाँकि उस अनुवाद में कई गलतियाँ हैं और भाषा भी काफी पुरानी हो चुकी है, फिर भी आज मेडागास्कर में आपको शायद ही ऐसा घर मिले, जिसमें बाइबल न हो। यही नहीं, बहुत-से मलगासी रोज़ बाइबल पढ़ते हैं। इस अनुवाद की खासियत यह है कि इब्रानी शास्त्र की कई आयतों में परमेश्‍वर का नाम यहोवा इस्तेमाल किया गया है। यहाँ तक कि उन कॉपियों के यूनानी शास्त्र में भी परमेश्‍वर का नाम दिया गया है, जो शुरू-शुरू में छापी गयी थीं। यही वजह है कि क्यों ज़्यादातर मलगासी, परमेश्‍वर के नाम से अच्छी तरह वाकिफ हैं।

जब यूनानी शास्त्र की सबसे पहली कॉपियाँ छापकर मलगासी लोगों को दी गयीं, तो वे गद्‌गद हो उठे। उनकी खुशी देखकर प्रेस चलानेवाले, मिस्टर बेकर ने कहा: “मैं कोई भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूँ, लेकिन मुझे यकीन है कि इस देश से परमेश्‍वर के वचन का नामो-निशान कभी नहीं मिटेगा।” उसकी बात सच निकली। चाहे मलेरिया हो या मुश्‍किल भाषा सीखने की चुनौती या फिर रानी की कड़ी आज्ञाएँ, ये सब बातें परमेश्‍वर के वचन को मेडागास्कर के लोगों तक पहुँचने में नहीं रोक पायीं।

आज हालात पहले से बेहतर हैं। कैसे? सन्‌ 2008 में मलगासी में पूरी बाइबल, न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ निकाली गयी। यह अनुवाद तरक्की की तरफ एक बड़ा कदम है, क्योंकि इसमें आज की आम बोलचाल की भाषा इस्तेमाल की गयी है, जो लोगों के लिए समझने में आसान है। इसलिए परमेश्‍वर के वचन ने आज ‘बड़े लाल द्वीप’ में अपनी और भी मज़बूत जगह बना ली है।—यशा. 40:8.

[फुटनोट]

^ मलगासी में सबसे पहले बाइबल का जो हिस्सा छपा, वह था दस आज्ञाएँ और प्रभु की प्रार्थना। यह अप्रैल या मई 1826 में मॉरीशस में छापा गया था। मगर इनकी कॉपियाँ सिर्फ राजा राडमा के परिवारवालों और कुछ सरकारी अधिकारियों में ही बाँटी गयीं।

[पेज 31 पर तसवीर]

मलगासी भाषा की “न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन” बाइबल में परमेश्‍वर के नाम यहोवा की बड़ाई की गयी है