हमारा मसीहा! जिसके ज़रिए परमेश्वर हमारा उद्धार करता है
हमारा मसीहा! जिसके ज़रिए परमेश्वर हमारा उद्धार करता है
“ठीक जैसे आदम में सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह में सभी ज़िंदा किए जाएँगे।”—1 कुरिं. 15:22.
1, 2. (क) यीशु से मिलने पर अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने क्या किया? (ख) हम क्यों कहते हैं कि यीशु के मसीहा होने के बारे में आज हमारे पास ज़्यादा सबूत हैं?
“हमें मसीहा मिल गया है।” ये शब्द अन्द्रियास ने अपने भाई पतरस से कहे थे। उसे यकीन हो गया था कि वह नासरत के जिस यीशु से मिलकर आ रहा है, वही परमेश्वर का चुना हुआ अभिषिक्त जन है। अन्द्रियास के साथी, फिलिप्पुस को भी इस बात का यकीन हो गया था। इसलिए उसने अपने दोस्त नतनएल को ढूँढ़ा और उससे कहा: “हमें वह मिल गया है जिसके बारे में मूसा ने कानून में और भविष्यवक्ताओं ने अपने लेखों में लिखा था। वह नासरत का रहनेवाला यीशु है, जो यूसुफ का बेटा है।”—यूह. 1:40, 41, 45.
2 आप क्या मानते हैं? क्या आपको पूरा यकीन है कि यीशु ही वह मसीहा है जिसके आने का वादा किया गया था और वही यहोवा की तरफ से ‘उद्धार का खास नुमाइंदा’ है? (इब्रा. 2:10) पहली सदी में यीशु के चेलों के पास उसके मसीहा होने के जितने सबूत थे, उनसे कहीं ज़्यादा सबूत आज हमारे पास हैं। आज हमारे पास परमेश्वर का वचन है, जिसमें यीशु के जन्म से लेकर मरे हुओं में से उसके दोबारा जी उठने का ब्यौरा इस बात का पक्का सबूत देता है कि वही मसीह था। (यूहन्ना 20:30, 31 पढ़िए।) बाइबल यह भी दिखाती है कि आगे भी यीशु स्वर्ग से मसीहा के नाते अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करता रहेगा। (यूह. 6:40; 1 कुरिंथियों 15:22 पढ़िए।) आपने बाइबल से जो कुछ सीखा है, उसके आधार पर आप भी कह सकते हैं कि आपको “मसीहा मिल गया है।” मगर पहले आइए देखें कि शुरू के वे चेले कैसे इस सही नतीजे पर पहुँचे थे कि उन्हें मसीहा मिल गया है।
मसीहा के बारे में “पवित्र रहस्य” धीरे-धीरे प्रकट किया गया
3, 4. (क) पहली सदी के चेले, मसीहा को कैसे पहचान सकते थे? (ख) आप क्यों कहते हैं कि सिर्फ यीशु ही मसीहा के बारे में सारी भविष्यवाणियाँ पूरी कर सका?
3 पहली सदी में यीशु के चेले क्यों यकीन के साथ यह कह सकते थे कि यीशु ही मसीहा था? क्योंकि यहोवा ने भविष्यवक्ताओं के ज़रिए एक-एक कर वे सारी निशानियाँ बतायी थीं जिनकी मदद से आनेवाले मसीहा की पहचान होती। इसे समझाने के लिए बाइबल के एक विद्वान ने यह मिसाल दी। मान लीजिए कि कुछ लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं। ये एक-दूसरे से पहले कभी नहीं मिले, न ही इनके बीच कभी कोई बातचीत हुई है। इन सभी के पास संगमरमर पत्थर का तराशा हुआ एक-एक टुकड़ा है। लेकिन जब इन अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ा जाता है तो यह एक बेहद खूबसूरत मूरत की शक्ल इख्तियार करता है। बेशक, यह देखकर आप यही कहेंगे कि इन सबके पीछे किसी एक आदमी का हाथ है जो सामने नहीं आया, मगर उसने एक ही मूरत के अलग-अलग टुकड़ों का डिज़ाइन इन लोगों के पास भेजा। हर कोई अपने हिस्से का टुकड़ा ले आया। मसीहा की पहचान करानेवाली हर भविष्यवाणी भी संगमरमर की मूरत के एक टुकड़े जैसी है। हर भविष्यवाणी में मसीहा को पहचानने के लिए कुछ ज़रूरी जानकारी दी गयी थी।
4 मसीहा के बारे में सारी भविष्यवाणियों का एक ही शख्स में पूरा होना क्या सिर्फ एक इत्तफाक था? एक खोजकर्ता कहता है कि इस बात की गुंजाइश “न के बराबर है” कि यह महज़ एक इत्तफाक था! “पूरे इतिहास में यीशु ही एक ऐसा शख्स था जो मसीहा के बारे में सारी भविष्यवाणियाँ पूरी कर सका।”
5, 6. (क) शैतान को सज़ा कैसे दी जानी थी? (ख) परमेश्वर ने कैसे धीरे-धीरे यह ज़ाहिर किया कि वादा किया गया “वंश” किस खानदान से आएगा?
5 मसीहा के बारे में सारी भविष्यवाणियाँ एक “पवित्र रहस्य” की तरफ ध्यान दिलाती हैं। इस रहस्य में कई पहलू ऐसे थे जिनका पूरे जहान पर ज़बरदस्त असर होना था। (कुलु. 1:26, 27; उत्प. 3:15) इस रहस्य का एक पहलू यह था कि ‘उस पुराने साँप’ यानी शैतान इब्लीस को सज़ा दी जाए जो इंसानों पर पाप और मौत लाने का ज़िम्मेदार है। (प्रका. 12:9) यह सज़ा कैसे दी जानी थी? यहोवा ने बताया था कि एक “स्त्री” वह “वंश” पैदा करेगी जो शैतान का सिर कुचल देगा। भविष्यवाणी में बताया गया यह वंश उस साँप का सिर कुचलकर उसका खात्मा करेगा जो दुनिया में बगावत, बीमारियाँ और मौत लाने का कसूरवार था। मगर इससे पहले, परमेश्वर की इजाज़त से शैतान मानो उस स्त्री के “वंश” की एड़ी को डसेगा।
6 यहोवा ने धीरे-धीरे यह ज़ाहिर किया कि जिस “वंश” का उसने वादा किया है, वह कौन होगा। परमेश्वर ने शपथ खाकर अब्राहम से यह वादा किया: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्प. 22:18) मूसा ने भविष्यवाणी की थी कि यह वंश उससे भी महान “नबी” होगा। (व्यव. 18:18, 19) दाविद को यह यकीन दिलाया गया और बाद में भविष्यवक्ताओं ने भी यही बताया कि मसीहा, दाविद के खानदान से आएगा और वह विरासत में दाविद की राजगद्दी पाएगा और सदा तक राज करेगा।—2 शमू. 7:12, 16; यिर्म. 23:5, 6.
मसीहा के रूप में यीशु की पहचान
7. किस मायने में यीशु, परमेश्वर की “स्त्री” में से निकला?
7 स्वर्ग में स्वर्गदूतों का एक संगठन है जो परमेश्वर का इस तरह साथ देता है जैसे एक पत्नी, पति का साथ देती है। इसलिए इस संगठन को परमेश्वर की “स्त्री” कहा गया है। परमेश्वर ने इस संगठन में से अपनी पहली सृष्टि यानी अपने बेटे को धरती पर भेजा ताकि वह वादा किया गया “वंश” बने। इसके लिए ज़रूरी था कि परमेश्वर का यह इकलौता बेटा स्वर्ग में अपना जीवन “त्याग” दे और एक सिद्ध इंसान के नाते इस धरती पर जन्म ले। (फिलि. 2:5-7; यूह. 1:14) परमेश्वर की पवित्र शक्ति मरियम पर “छा” गयी, जो इस बात की गारंटी थी कि वह जिसे जन्म देगी वह “पवित्र और परमेश्वर का बेटा कहलाएगा।”—लूका 1:35.
8. जब यीशु ने पानी में बपतिस्मा लेने के लिए खुद को पेश किया तो वह कैसे मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियाँ पूरी कर रहा था?
8 मसीहा के बारे में भविष्यवाणियों में बताया गया था कि यीशु कहाँ और कब आएगा। भविष्यवाणी थी कि यीशु, बेतलेहेम में पैदा होगा और ऐसा ही हुआ। (मीका 5:2) पहली सदी में यहूदी लोग मसीहा के आने की उम्मीद लगाए हुए थे। कुछ लोग बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना के बारे में पूछ रहे थे: “कहीं यही तो मसीह नहीं?” मगर यूहन्ना ने उन्हें जवाब दिया: “वह आनेवाला है जो मुझसे कहीं शक्तिशाली है।” (लूका 3:15, 16) ईस्वी सन् 29 के पतझड़ में, जब यीशु 30 साल का था तब वह यूहन्ना के पास बपतिस्मा लेने आया। जी हाँ, बिलकुल सही वक्त पर यीशु ने खुद को मसीहा के रूप में पेश किया। (दानि. 9:25) इसके बाद उसने सेवा का अपना ज़बरदस्त काम शुरू किया। उसने कहा: “तय किया गया वक्त आ चुका है और परमेश्वर का राज पास आ गया है।”—मर. 1:14, 15.
9. यीशु के चेलों को, पूरी जानकारी न होने के बावजूद किस बात का पक्का यकीन था?
9 मगर, लोग उस वक्त मसीहा से जो उम्मीदें लगाए बैठे थे उसमें उन्हें सुधार करने की ज़रूरत थी। उन्होंने एक राजा के तौर पर जिस तरह यीशु का स्वागत किया वह बिलकुल सही था। मगर वे यह नहीं समझ पाए कि उसका राज भविष्य में स्वर्ग से होगा। यह बात उन्हें बाद में जाकर पूरी तरह समझ आयी। (यूह. 12:12-16; 16:12, 13; प्रेषि. 2:32-36) इसके बावजूद, जब यीशु ने चेलों से पूछा: “तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” तब पतरस ने बेझिझक यह जवाब दिया: “तू जीवित परमेश्वर का बेटा, मसीह है।” (मत्ती 16:13-16) और जब यीशु की किसी शिक्षा को न समझ पाने के कारण उसके कई चेले उसे छोड़कर चले गए, तब भी पतरस ने ऐसा ही जवाब दिया।—यूहन्ना 6:68, 69 पढ़िए।
मसीहा की बात मानना
10. यहोवा ने क्यों इस बात पर ज़ोर दिया कि उसके बेटे की बात मानी जाए?
10 स्वर्ग में, परमेश्वर का इकलौता बेटा बहुत ही शक्तिशाली स्वर्गदूत था। यीशु धरती पर रहते वक्त “पिता का भेजा प्रतिनिधि” था। (यूह. 16:27, 28) उसने कहा: “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूह. 7:16) यहोवा ने भी यीशु के मसीहा होने की बात पक्की की। जब एक दर्शन में यीशु का रूप बदला, तब यहोवा ने चेलों को यह हिदायत दी: “इसकी सुनो।” (लूका 9:35) जी हाँ, लोगों को इस चुने हुए शख्स की बात सुननी या माननी थी। इसके लिए विश्वास करना और भले काम करना ज़रूरी था। परमेश्वर को खुश करने और हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ये दोनों बातें बेहद ज़रूरी हैं।—यूह. 3:16, 35, 36.
11, 12. (क) किन वजहों से पहली सदी के यहूदियों ने यीशु को मसीहा मानने से इनकार कर दिया? (ख) यीशु पर विश्वास करनेवाले कौन थे?
11 हालाँकि यीशु को मसीहा साबित करनेवाले ढेरों सबूत मौजूद थे, फिर भी पहली सदी के ज़्यादातर यहूदियों ने उसे मसीहा स्वीकार नहीं किया। क्यों? क्योंकि मसीहा के बारे में उन्होंने अपनी ही कुछ धारणाएँ बना रखी थीं। उनकी एक धारणा यह थी कि वह ऐसा नेता होगा जो उन्हें रोम के शासन के ज़ुल्मों से आज़ाद कराएगा। (यूहन्ना 12:34 पढ़िए।) वे एक ऐसे मसीहा को स्वीकार नहीं कर सके जिस पर ये भविष्यवाणियाँ पूरी हुईं कि लोग उसे तुच्छ समझेंगे, उससे मुँह मोड़ लेंगे, वह बहुत दुख उठाएगा और हमारी वजह से उसकी रोगों से जान-पहचान होगी और आखिरकार वह मार डाला जाएगा। (यशा. 53:3, 5) यहाँ तक कि यीशु के कुछ वफादार चेले भी इस बात से निराश हो गए कि उसने राजनीति में शामिल होकर उन्हें रोम के ज़ुल्मों से छुटकारा नहीं दिलाया। फिर भी वे यीशु के वफादार बने रहे और कुछ समय बाद उन्हें सही समझ दी गयी।—लूका 24:21.
12 यीशु को मसीहा मानने से इनकार करने की एक और वजह थी। यह वजह थी, यीशु की शिक्षाएँ जिन्हें स्वीकार करना बहुतों को काफी मुश्किल लगा। यीशु ने सिखाया कि परमेश्वर के राज में दाखिल होने के लिए उन्हें ‘खुद से इनकार करना’ होगा, यीशु का माँस ‘खाना’ और लहू ‘पीना’ होगा, ‘दोबारा पैदा होना’ होगा और दुनिया में रहते हुए भी उससे अलग रहना होगा। (मर. 8:34; यूह. 3:3; 6:53; 17:14, 16) ये माँगें उन लोगों के हिसाब से बहुत मुश्किल थीं जो दौलत के नशे में चूर, घमंडी, पाखंडी लोग थे। मगर जो यहूदी नम्र थे, उन्होंने यीशु को मसीहा स्वीकार किया, ठीक जैसे कुछ सामरियों ने भी उसे स्वीकार किया और कहा: “यह आदमी वाकई दुनिया का उद्धारकर्त्ता है।”—यूह. 4:25, 26, 41, 42; 7:31.
13. यीशु के साथ क्या हुआ जो ऐसा था मानो उसकी एड़ी को डसा गया?
13 यीशु ने पहले ही बताया था कि यहूदियों के प्रधान याजक उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे और सूली पर चढ़ाने के लिए उसे दूसरी जातियों के हवाले कर देंगे, मगर तीसरे दिन वह फिर से ज़िंदा होगा। (मत्ती 20:17-19) यहूदी महासभा के सामने जब यीशु ने यह मान लिया कि वह “परमेश्वर का बेटा मसीह है” तो उसकी इस बात को परमेश्वर की तौहीन कहा गया। (मत्ती 26:63-66) पीलातुस ने यीशु के मामले में ऐसा कुछ नहीं पाया जिसके लिए वह “मौत की सज़ा के लायक” ठहराया जाता। मगर यहूदियों ने उस पर रोमी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने का भी इलज़ाम लगाया था, इसलिए पीलातुस ने “यीशु को उनकी मरज़ी के मुताबिक मार डालने के लिए सौंप दिया।” (लूका 23:13-15, 25) इस तरह उन्होंने “जीवन दिलानेवाले खास नुमाइंदे” को “ठुकरा दिया” और उसे मरवाने में कामयाब हो गए, जबकि उन्हें इस बात के ढेरों सबूत मिले थे कि वह परमेश्वर का भेजा हुआ था। (प्रेषि. 3:13-15) इस तरह, जैसे भविष्यवाणी की गयी थी कि मसीहा “काटा जाएगा,” यीशु को ईस्वी सन् 33 के फसह के त्योहार के दिन सूली पर चढ़ाकर मार डाला गया। (दानि. 9:26, 27; प्रेषि. 2:22, 23) जिस बेरहमी से यीशु को मौत के घाट उतारा गया, उससे उत्पत्ति 3:15 की यह भविष्यवाणी पूरी हुई कि उस वंश की “एड़ी” को डसा जाएगा।
मसीहा का मरना क्यों ज़रूरी था
14, 15. (क) किन दो वजहों से यहोवा ने यीशु को मरने दिया? (ख) यीशु ने दोबारा जी उठने के बाद क्या किया?
14 यहोवा ने दो खास वजहों से यीशु को मरने दिया। पहली वजह यह थी कि आखिरी दम तक यीशु के वफादार रहने से एक ज़रूरी मसला हल हो जाता, जो “पवित्र रहस्य” का एक खास पहलू था। वह यह कि एक सिद्ध इंसान, शैतान की लायी कड़ी-से-कड़ी परीक्षा में भी ‘परमेश्वर के लिए अपनी भक्ति’ कायम रख सकता है और उसकी हुकूमत को बुलंद कर सकता है। (1 तीमु. 3:16) यीशु ने आखिरी सांस तक पूरी तरह वफादार रहकर यह मसला हल किया। दूसरी वजह खुद यीशु ने बतायी कि “इंसान का बेटा . . . इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।” (मत्ती 20:28) अपनी जान देकर यीशु ने “फिरौती का बराबर दाम” चुकाया और आदम की संतान को विरासत में मिले पाप का जुर्माना भरा और उन सभी को हमेशा की ज़िंदगी देना मुमकिन किया जो यीशु को परमेश्वर का ठहराया उद्धारकर्त्ता या मसीहा स्वीकार करते हैं।—1 तीमु. 2:5, 6.
15 मसीह तीन दिन तक कब्र में रहा और इसके बाद दोबारा ज़िंदा किया गया। यह साबित करने के लिए कि वह जी उठा है, वह 40 दिन तक अपने चेलों के सामने प्रकट होता रहा। उसने उन्हें आगे के लिए और भी हिदायतें दीं। (प्रेषि. 1:3-5) इसके बाद वह स्वर्ग चला गया ताकि अपने अनमोल बलिदान की कीमत यहोवा के सामने पेश करे और फिर उस वक्त का इंतज़ार करे जब एक मसीहा और राजा के नाते उसकी मौजूदगी शुरू होनी तय थी। तब तक यीशु को बहुत काम करना था।
मसीहा के नाते अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करना
16, 17. बताइए कि स्वर्ग लौटने के बाद यीशु ने मसीहा के नाते क्या-क्या किया।
16 जी उठने के बाद, यीशु सदियों से मसीही मंडली के काम-काज की निगरानी करता आया है। वह इस मंडली पर राजा के नाते हुकूमत कर रहा है। (कुलु. 1:13) तय वक्त पर वह परमेश्वर के राज के राजा की हैसियत से अपनी ताकत काम में लाना शुरू करेगा। बाइबल की भविष्यवाणियाँ और दुनिया की घटनाएँ इस बात का सबूत देती हैं कि सन् 1914 में एक राजा की हैसियत से यीशु की मौजूदगी शुरू हुई और तभी ‘दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्त’ भी शुरू हुआ। (मत्ती 24:3; प्रका. 11:15) इसके कुछ ही वक्त बाद यीशु ने पवित्र स्वर्गदूतों की सेना की अगुवाई की और शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को स्वर्ग से खदेड़कर बाहर कर दिया।—प्रका. 12:7-10.
17 ईसवी सन् 29 में यीशु ने प्रचार और सिखाने का जो काम शुरू किया था, वह अब अपनी शानदार समाप्ति पर आ रहा है। जल्द ही यीशु, धरती पर जीनेवाले सभी लोगों का न्याय करेगा। भेड़ जैसा स्वभाव रखनेवाले जितने लोग यह स्वीकार करते हैं कि यीशु उनके उद्धार के लिए यहोवा का ज़रिया है, उनसे वह कहेगा कि वे ‘उस राज के वारिस बन जाएँ जो दुनिया की शुरूआत से उनके लिए तैयार किया गया है।’ (मत्ती 25:31-34, 41) और जो यीशु को राजा मानने से इनकार कर देते हैं, वे उस वक्त नाश किए जाएँगे जब यीशु स्वर्गदूतों की सेना की अगुवाई करता हुआ दुनिया से तमाम बुराइयों को मिटा देगा। इसके बाद वह शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को बाँधकर “अथाह-कुंड” में बंद कर देगा।—प्रका. 19:11-14; 20:1-3.
18, 19. मसीहा के नाते अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते वक्त यीशु क्या-क्या करेगा? इससे आज्ञा माननेवाले इंसानों को क्या आशीषें मिलेंगी?
18 अपनी हज़ार साल की हुकूमत के दौरान, यीशु उन सारे खिताबों पर पूरा उतरेगा जो उसे दिए गए हैं, जैसे “अद्भुत परामर्शदाता, शक्तिमान ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का शासक।” (यशा. 9:6, 7, नयी हिन्दी बाइबिल) उसके राज में, पापी इंसानों को सिद्ध किया जाएगा, जिनमें वे लोग भी शामिल होंगे जिन्हें मरे हुओं में से जी उठाया जाएगा। (यूह. 5:26-29) जो इंसान मसीहा की आज्ञा मानने के लिए तैयार होंगे उन्हें वह “जीवन के पानी के सोतों तक” ले जाएगा ताकि वे यहोवा के साथ शांति का रिश्ता कायम कर सकें। (प्रकाशितवाक्य 7:16, 17 पढ़िए।) आखिरी परीक्षा के बाद, शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों के साथ बाकी सभी बागियों को “धधकती आग की झील में फेंक दिया” जाएगा। इस तरह उस “साँप” का सिर कुचलकर उसे हमेशा के लिए मौत के घाट उतार दिया जाएगा।—प्रका. 20:10.
19 यीशु क्या ही शानदार तरीके से और बिना चूके, मसीहा के नाते अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करेगा! नतीजा यह होगा कि धरती पर फिरदौस में ऐसे इंसान बसेंगे जिन्हें पाप और मौत की बेड़ियों से आज़ाद किया गया है और जो बढ़िया सेहत और खुशियों से भरी हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। यहोवा के पवित्र नाम पर लगाया गया कलंक पूरी तरह मिटा दिया जाएगा और यह साबित कर दिया जाएगा कि पूरे जहान पर हुकूमत करने का हक सिर्फ उसी का है। परमेश्वर के अभिषिक्त जन की आज्ञा माननेवाले हर इंसान को बहुत जल्द क्या ही उम्दा विरासत मिलनेवाली है!
क्या आपको मसीहा मिल गया है?
20, 21. किन वजहों से आप दूसरों को मसीहा के बारे में बताना चाहेंगे?
20 सन् 1914 से हम मसीह के पारूसीआ या मौजूदगी के दौर में जी रहे हैं। हालाँकि हम अपनी आँखों से देख नहीं सकते कि वह परमेश्वर के राज के राजा की हैसियत से मौजूद है, मगर भविष्यवाणियों के पूरा होने से यह बात साफ देखी जा सकती है। (प्रका. 6:2-8) फिर भी, पहली सदी के यहूदियों की तरह आज ज़्यादातर लोग मसीहा की मौजूदगी के सबूतों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। उन्हें भी दुनिया के नेताओं जैसा कोई राजनेता चाहिए या फिर ऐसा कोई शख्स जो दुनिया के इन्हीं नेताओं के ज़रिए उनकी मदद करे। लेकिन इस लेख में आपने यह जाना है कि आज यीशु, परमेश्वर के राज का राजा है और उसने राज करना शुरू कर दिया है। क्या यह सच्चाई जानकर आप खुशी से उछल नहीं पड़े? पहली सदी के चेलों की तरह आपने भी कहा होगा: “हमें मसीहा मिल गया है।”
21 आज जब आप दूसरों को सच्चाई के बारे में बताते हैं, तो क्या आप उन्हें समझाते हैं कि मसीहा के नाते यीशु कितनी अहम ज़िम्मेदारी निभाता है? ऐसा करने से, मसीहा ने अब तक आपके लिए जो किया है, आज जो कर रहा है और भविष्य में जो करेगा, उसके लिए आपकी कदरदानी और भी बढ़ेगी। अन्द्रियास और फिलिप्पुस की तरह, बेशक आपने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को मसीहा के बारे में बताया होगा। क्यों न एक बार फिर, नए जोश के साथ उन्हें बताएँ कि यीशु मसीह वाकई हमारा मसीहा है? हाँ, वही मसीहा जिसके आने का वादा किया गया था और जिसके ज़रिए परमेश्वर हमारा उद्धार करता है!
क्या आप समझा सकते हैं?
• पहली सदी में चेले, मसीहा को कैसे पहचान सके?
• किन दो खास वजहों से यीशु की मौत हुई?
• यीशु भविष्य में मसीहा के नाते अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते हुए क्या-क्या करेगा?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 21 पर तसवीरें]
पहली सदी में लोग क्यों कह सके कि यीशु ही वह मसीहा था, जिसके आने का वादा किया गया था?
[पेज 23 पर तसवीर]
सच्चाई के बारे में दूसरों से बात करते वक्त, क्या आप उन्हें समझाते हैं कि मसीहा के नाते यीशु कितनी अहम ज़िम्मेदारी निभाता है?