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जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर आपका स्वागत है!

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“चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा ही के हैं।”—रोमि. 14:8.

1. यीशु ने जीवन की सबसे बेहतरीन राह के बारे में क्या सिखाया?

 यहोवा चाहता है कि हम जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चलें और उसका लुत्फ उठाएँ। वैसे लोग कई तरीकों से अपनी ज़िंदगी जी सकते हैं, लेकिन जीने का सबसे बेहतरीन तरीका एक ही है। वह है परमेश्‍वर के नियमों के मुताबिक चलना और उसके बेटे यीशु मसीह से सीखना। यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि उन्हें पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से परमेश्‍वर की उपासना करनी चाहिए, साथ ही उसने यह भी आज्ञा दी कि उन्हें दूसरों को चेला बनाना चाहिए। (मत्ती 28:19, 20; यूह. 4:24) अगर हम यीशु के दिए निर्देशन पर चलेंगे, तो हम यहोवा को खुश करेंगे और वह हमें आशीषें देगा।

2. पहली सदी के बहुत-से लोगों ने राज के संदेश के लिए कैसा रवैया दिया? “प्रभु के मार्ग” पर चलने का क्या मतलब था?

2 “जो [लोग] हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते हैं,” वे जब विश्‍वासी बनते हैं और बपतिस्मा लेते हैं, तो हम कई वाजिब कारणों से उनसे कह सकते हैं कि “जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर आपका स्वागत है!” (प्रेषि. 13:48) पहली सदी के दौरान, अलग-अलग राष्ट्रों के हज़ारों लोगों ने सच्चाई कबूल की और बपतिस्मा लेकर सबके सामने इस बात का सबूत दिया कि वे सिर्फ परमेश्‍वर की भक्‍ति करना चाहते हैं। (प्रेषि. 2:41) पहली सदी के वे चेले “प्रभु के मार्ग” पर चलनेवाले कहलाए गए। (प्रेषि. 9:2; 19:23) उन्हें इस नाम से पुकारा जाना सही भी था, क्योंकि जो लोग मसीह के चेले बने उन्होंने सारी ज़िंदगी यीशु मसीह पर अपना पूरा विश्‍वास दिखाया और उसकी मिसाल पर चले।—1 पत. 2:21.

3. यहोवा के लोग क्यों बपतिस्मा लेते हैं? पिछले दस सालों में कितने लोगों ने बपतिस्मा लिया?

3 इन आखिरी दिनों में चेला बनाने का काम दुनिया के 230 से भी ज़्यादा देशों में बड़े ज़ोर-शोर से किया जा रहा है। पिछले 10 सालों में 27,00,000 से भी ज़्यादा लोगों ने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया और बपतिस्मा लेकर परमेश्‍वर को अपना समर्पण ज़ाहिर किया। देखा जाए तो हर हफ्ते औसतन 5,000 लोगों ने सच्चाई कबूल की! इन लोगों ने इसलिए बपतिस्मा लिया क्योंकि वे परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, बाइबल का ज्ञान लेते और परमेश्‍वर की तरफ से मिलनेवाली सच्चाई पर विश्‍वास करते हैं। बपतिस्मा हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम कदम है, क्योंकि यह यहोवा के साथ हमारे करीबी रिश्‍ते की शुरूआत है। बपतिस्मा लेकर हम दिखाते हैं कि हमें पूरा यकीन है कि यहोवा हमेशा हमारी मदद करेगा, ताकि हम वफादारी से उसकी सेवा कर सकें। पुराने ज़माने में भी उसने अपने सेवकों की मदद की थी ताकि वे उसके बताए रास्ते पर चल सकें।—यशा. 30:21.

बपतिस्मा लेना क्यों ज़रूरी है?

4, 5. बपतिस्मा लेने से मिलनेवाली कुछ आशीषों और फायदों के बारे में बताइए।

4 शायद आपने परमेश्‍वर के बारे में ज्ञान लिया है, अपनी ज़िंदगी को सुधारा है और बपतिस्मा-रहित प्रचारक बन गए हैं। आपकी यह तरक्की वाकई काबिले-तारीफ है। लेकिन क्या आपने प्रार्थना में परमेश्‍वर को अपना समर्पण ज़ाहिर किया है और अब जल्द ही बपतिस्मा लेना चाहते हैं? आपने बाइबल के अध्ययन से सीखा होगा कि आपकी ज़िंदगी पूरी तरह से यहोवा की महिमा करने पर लगी होनी चाहिए, न कि खुद को खुश करने में या धन-दौलत बटोरने में। (भजन 148:11-13; लूका 12:15 पढ़िए।) बपतिस्मा लेने से हमें कौन-सी कुछ आशीषें मिलती हैं और क्या फायदे होते हैं?

5 एक समर्पित मसीही बनने पर आपको ज़िंदगी का सबसे बड़ा मकसद हासिल होगा। आप खुश रहेंगे क्योंकि आप परमेश्‍वर की इच्छा पूरी कर रहे होंगे। (रोमि. 12:1, 2) पवित्र शक्‍ति की मदद से आप अपने अंदर परमेश्‍वर के गुण, जैसे शांति और विश्‍वास पैदा कर पाएँगे। (गला. 5:22, 23) परमेश्‍वर आपकी प्रार्थनाएँ सुनेगा और आप उसके वचन पर चलने की जो मेहनत करते हैं, उस पर वह आशीष देगा। आपको प्रचार काम से भी खुशी मिलेगी। और जब आप ऐसी ज़िंदगी जीएँगे जिसे यहोवा मंज़ूर करता है, तो आपकी हमेशा की ज़िंदगी की आशा पक्की हो जाएगी। इससे भी बढ़कर समर्पण और बपतिस्मे के ज़रिए आप दिखाएँगे कि आप सचमुच एक यहोवा का साक्षी बनना चाहते हैं।—यशा. 43:10-12.

6. हमारे बपतिस्मे से क्या बात ज़ाहिर होती है?

6 परमेश्‍वर को अपना समर्पण करने और बपतिस्मा लेने के ज़रिए हम दिखाते हैं कि यहोवा हमारा मालिक है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “दरअसल हम में से कोई भी सिर्फ अपने लिए नहीं जीता, और न ही कोई अपने लिए मरता है। क्योंकि अगर हम जीते हैं, तो यहोवा के लिए जीते हैं और अगर मरते हैं तो यहोवा के लिए मरते हैं। इसलिए चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा ही के हैं।” (रोमि. 14:7, 8) परमेश्‍वर ने आज़ाद मरज़ी देकर हमें इज़्ज़त बख्शी है। जब हम यह ठान लेते हैं कि हम जीवन की इसी राह पर चलते रहेंगे क्योंकि हम पर परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, तो इससे यहोवा का दिल खुश होता है। (नीति. 27:11) हमारा बपतिस्मा इस बात की निशानी है कि हमने परमेश्‍वर को अपना समर्पण किया है, साथ ही इससे हम सबके सामने ज़ाहिर करते हैं कि हम यहोवा को अपना राजा मानते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि विश्‍व पर हुकूमत करने के मसले में हम यहोवा की तरफ हैं। (प्रेषि. 5:29, 32) बदले में यहोवा भी हमारा साथ देता है। (भजन 118:6 पढ़िए।) बपतिस्मा लेने से आज और आनेवाले समय में बहुत-सी आशीषों का द्वार खुल जाता है।

प्यार-भरे भाईचारे की आशीष से नवाज़े गए

7-9. (क) जिन लोगों ने अपना सबकुछ छोड़ दिया और यीशु के पीछे हो लिए, उन्हें यीशु ने क्या भरोसा दिलाया? (ख) मरकुस 10:29, 30 में दर्ज़ यीशु का वादा कैसे पूरा हो रहा है?

7 प्रेषित पतरस ने यीशु से कहा: “देख! हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं; फिर हमारे लिए इसमें क्या होगा?” (मत्ती 19:27) असल में पतरस जानना चाहता था कि उसका और यीशु के बाकी चेलों का भविष्य कैसा होगा। उन्होंने खुद को राज के प्रचार काम में पूरी तरह लगाने के लिए कई बड़े-बड़े बलिदान किए थे। (मत्ती 4:18-22) यीशु ने उन्हें क्या भरोसा दिलाया?

8 इसी वाकये के बारे में मरकुस ने भी लिखा। वहाँ यीशु ने बताया कि उसके चेले आध्यात्मिक भाईचारे का हिस्सा होंगे। उसने कहा: “ऐसा कोई नहीं जिसने मेरी और खुशखबरी की खातिर, घर या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों या खेतों को छोड़ा हो, और जो इस ज़माने में घरों, भाइयों और बहनों और माँओं और बच्चों और खेतों का सौ गुना न पाए पर ज़ुल्मों के साथ, और आनेवाली दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी।” (मर. 10:29, 30) पहली सदी के मसीही, जैसे लुदिया, अक्विला, प्रिस्किल्ला और गयुस उन लोगों में से थे जिन्होंने दूसरे मसीहियों को “घर” की सुविधा दी और इस तरह अपने संगी विश्‍वासियों के ‘भाई, बहन और माँ’ बन गए, ठीक जैसे यीशु ने वादा किया था।—प्रेषि. 16:14, 15; 18:2-4; 3 यूह. 1, 5-8.

9 यीशु की कही बात आज बड़े पैमाने पर पूरी हो रही है। कई मसीही, जैसे मिशनरी, बेथेल परिवार के सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय सेवक और दूसरे साक्षी अपनी मरज़ी से अपने “खेत” यानी अपनी रोज़ी-रोटी त्याग देते हैं, ताकि वे दूसरी जगहों में भी राज के कामों को बढ़ा सकें। बहुत-से भाई-बहनों ने सादगी-भरी ज़िंदगी जीने के लिए अपना घर-बार छोड़ दिया। लेकिन यहोवा ने उन्हें नहीं छोड़ा, उसने उनकी देखभाल की और उन्हें भी उसकी सेवा में खुशी मिली। अपने इन भाई-बहनों के अनुभव सुनकर हम खुशी से फूले नहीं समाते। (प्रेषि. 20:35) इससे बढ़कर बपतिस्मा पाए यहोवा के सभी सेवक दुनिया-भर में फैले भाईचारे के साथ मिलकर “[परमेश्‍वर के] राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे” रहने की आशीष का लुत्फ उठाते हैं।—मत्ती 6:33.

“परमप्रधान की शरण” में सुरक्षित

10, 11. “परमप्रधान की शरण” क्या है? हम उसमें कैसे रह सकते हैं?

10 समर्पण और बपतिस्मा लेने से हमें एक और बढ़िया आशीष मिलती है। हमें “परमप्रधान की शरण” में रहने का सम्मान मिलता है। (भजन 91:1, NHT पढ़िए। *) यह एक लाक्षणिक जगह है, जहाँ हमें सुरक्षा मिलती है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी हालत है जिसमें हम आध्यात्मिक नुकसान से बचे रहते हैं। मगर वे लोग इस जगह से अनजान हैं जो न तो मामलों को परमेश्‍वर की नज़र देखते हैं और न ही उस पर भरोसा करते हैं। अपने समर्पण के मुताबिक जीने और यहोवा पर अपना पूरा भरोसा ज़ाहिर करने के ज़रिए हम एक तरह से कहते हैं: “[यहोवा] मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्‍वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा।” (भज. 91:2) यहोवा परमेश्‍वर हमारा धाम या निवासस्थान बन जाता है। (भज. 91:9) इससे बढ़कर और क्या चाहिए हमें?

11 यहोवा के “शरण स्थान” में रहने का यह भी मतलब है कि हमें उसके साथ एक नज़दीकी रिश्‍ता बनाने का सम्मान मिला है। इस रिश्‍ते की शुरूआत समर्पण और बपतिस्मे के वक्‍त होती है। उसके बाद हम बाइबल का अध्ययन करने, दिल-से प्रार्थना करने और पूरी तरह से परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के ज़रिए उसके साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करते जाते हैं। (याकू. 4:8) यीशु जितना यहोवा के करीब है, उतना करीब दुनिया का कोई भी व्यक्‍ति नहीं है। सृष्टिकर्ता पर से उसका भरोसा कभी नहीं डगमगाया। (यूह. 8:29) इसलिए आइए हम भी यहोवा पर और इस बात पर कभी शक न करें कि यहोवा हमें हमारे समर्पण के मुताबिक जीने में मदद देना चाहता है और वह ऐसा करने के काबिल है। (सभो. 5:4) परमेश्‍वर ने जो आध्यात्मिक इंतज़ाम किए हैं, वे ऐसे सबूत हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता और जिनसे ज़ाहिर होता है कि वह हमसे सचमुच प्यार करता है और चाहता है कि हम उसकी सेवा में कामयाब हों।

अपने आध्यात्मिक फिरदौस का मोल जानिए

12, 13. (क) आध्यात्मिक फिरदौस क्या है? (ख) हम नए लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

12 समर्पण और बपतिस्मा लेने से हमें आध्यात्मिक फिरदौस में रहने का मौका मिलता है। आध्यात्मिक फिरदौस क्या है? यह एक अनोखा माहौल है जहाँ हम अपने संगी विश्‍वासियों के साथ रहते हैं, जहाँ हम सभी का यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होता है और हम एक-दूसरे के साथ शांति से रहते हैं। (भज. 29:11; यशा. 54:13) हमारे इस आध्यात्मिक फिरदौस की तुलना दुनिया की किसी चीज़ से नहीं की जा सकती। यह खास तौर से अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में देखने को मिलता है, जहाँ अलग-अलग राष्ट्रों, भाषाओं और संस्कृति के हमारे भाई-बहन शांति, एकता और प्यार-भरे भाईचारे का लुत्फ उठाते हैं।

13 हम जिस आध्यात्मिक फिरदौस का लुत्फ उठाते हैं, उसमें और आज की इस गंदी दुनिया के माहौल में ज़मीन-आसमान का फर्क है। (यशायाह 65:13, 14 पढ़िए।) हमें यह सम्मान मिला है कि परमेश्‍वर के राज का संदेश सुनाने के ज़रिए हम दूसरों को भी इस आध्यात्मिक फिरदौस में आने का न्यौता दें। जिन्होंने हाल ही में मंडली के साथ संगति करनी शुरू की है, उनकी मदद करना भी हमारे लिए एक आशीष है। इस तरह उन्हें भी प्रचार काम अच्छी तरह करने में मदद मिलेगी। प्राचीनों के निर्देशन के तहत हम कुछ नए लोगों की मदद कर सकते हैं, ठीक जैसे अक्विला और प्रिस्किल्ला ने अपुल्लोस को “परमेश्‍वर के मार्ग की बारीकियों की और भी सही समझ” लेने में मदद दी थी।—प्रेषि. 18:24-26.

यीशु से सीखते रहिए

14, 15. यीशु से सीखते रहने के हमारे पास क्या पुख्ता कारण हैं?

14 यीशु से सीखते रहने के हमारे पास कई पुख्ता कारण हैं। धरती पर आने से पहले यीशु ने अपने पिता के साथ काम करने में अरबों-खरबों साल बिताए। (नीति. 8:22, 30) वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि परमेश्‍वर की सेवा करके और सच्चाई की गवाही देकर ही जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चला जा सकता है। (यूह. 18:37) यीशु यह भी अच्छी तरह समझता था कि किसी और तरह की ज़िंदगी जीने का मतलब होगा सिर्फ अपने लिए जीना और सिर्फ यह सोचना कि अभी मुझे क्या मिल सकता है। वह बखूबी जानता था कि उसे कड़ी परीक्षाओं से गुज़रना पड़ेगा, यहाँ तक कि उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। (मत्ती 20:18, 19; इब्रा. 4:15) लेकिन उसने हमारे लिए एक आदर्श रखा और हमें सिखाया कि हम कैसे अपनी खराई बनाए रख सकते हैं।

15 यीशु के बपतिस्मा लेने के कुछ ही समय बाद शैतान ने उसे जीवन की सबसे बेहतरीन राह से भटकने का लालच दिया। लेकिन शैतान की हर कोशिश नाकाम रही। (मत्ती 4:1-11) इससे हम क्या सीखते हैं? यही कि चाहे शैतान हम पर कितनी ही कड़ी परीक्षा लाए, हम परमेश्‍वर के लिए अपनी खराई बनाए रख सकते हैं। शैतान खास तौर से उन पर अपना दाँव चलाता है, जो बपतिस्मा लेनेवाले हैं या जिन्होंने अभी-अभी बपतिस्मा लिया है। (1 पत. 5:8) ऐसा भी हो सकता है कि हमारा भला चाहनेवाले परिवारवालों को यहोवा के साक्षियों के बारे में कोई गलतफहमी हो और इस वजह से वे हमारा विरोध करें। लेकिन यह याद रखिए कि इन विरोधों की वजह से हमें बढ़िया मसीही गुण ज़ाहिर करने का मौका मिलता है, जैसे लोगों के सवालों के जवाब देते वक्‍त और गवाही देते वक्‍त आदर और समझ-बूझ से काम लेना। (1 पत. 3:15) हमारे व्यवहार से सुननेवालों पर अच्छा असर पड़ सकता है।—1 तीमु. 4:16.

जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चलते रहिए!

16, 17. (क) व्यवस्थाविवरण 30:19, 20 में बतायी जीवन की तीन बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं? (ख) यीशु, यूहन्‍ना और पौलुस ने मूसा की लिखी बात को कैसे पुख्ता किया?

16 यीशु के इस धरती पर पैदा होने से करीब 1,500 साल पहले मूसा ने इसराएलियों से जीवन की सबसे बेहतरीन राह चुनने की गुज़ारिश की। उसने कहा: “आज मैं स्वर्ग तथा पृथ्वी को तुम्हारे विरुद्ध साक्षी ठहराता हूं कि मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु, और आशिष तथा शाप रखा है, अत: जीवन को चुन ले कि तू अपनी सन्तान सहित जीवित रहे: अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करना, उसकी सुनना तथा उस से लिपटे रहना।” (व्यव. 30:19, 20, NHT) इसराएली परमेश्‍वर के वफादार नहीं रहे, लेकिन मूसा ने जीवन के लिए जो तीन बुनियादी ज़रूरतें बतायीं वे आज भी नहीं बदली हैं। उन तीन ज़रूरतों का ज़िक्र आगे चलकर यीशु और दूसरों ने भी किया।

17 पहली ज़रूरत है कि ‘हमें अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करना चाहिए।’ परमेश्‍वर की बतायी सही राह पर चलकर हम दिखाते हैं कि हम उससे प्यार करते हैं। (मत्ती 22:37) दूसरी ज़रूरत है, ‘हमें यहोवा की सुननी चाहिए।’ यह हम कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और उसकी आज्ञाओं को मानने के ज़रिए। (1 यूह. 5:3) इसके लिए हमें नियमित तौर पर मसीही सभाओं में हाज़िर होना चाहिए, जहाँ बाइबल पर चर्चा की जाती है। (इब्रा. 10:23-25) तीसरी ज़रूरत है कि हमें ‘यहोवा से लिपटे रहना चाहिए।’ आइए हम हमेशा परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते रहें और उसके बेटे के नक्शेकदम पर चलते रहें, फिर चाहे हमें किसी भी परीक्षा का सामना क्यों न करना पड़े।—2 कुरिं. 4:16-18.

18. (क) सन्‌ 1914 की प्रहरीदुर्ग में सच्चाई के बारे में क्या बताया गया था? (ख) सच्चाई के प्रकाश के बारे में आज हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

18 बाइबल में दी सच्चाई के मुताबिक जीना कितनी बड़ी आशीष है! सन्‌ 1914 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में यह गौरतलब बात छापी गयी: “क्या हम इस बात से खुश नहीं हैं कि हम परमेश्‍वर की आशीष है? क्या हमारा परमेश्‍वर हमेशा हमारा साथ नहीं देता? अभी अगर किसी को इससे बेहतर कुछ पता चलता है, तो वह उस पर चले। अगर आगे चलकर आपमें से किसी को इससे बेहतर कुछ पता चलता है, तो हम उम्मीद करते हैं कि वह हमें बताएगा। हमने परमेश्‍वर के वचन से जो सीखा है, उसकी बराबरी हम दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं कर सकते। . . . कोई ज़बान या कोई कलम उस शांति, खुशी और आशीष को बयान नहीं कर सकती जो सच्चे परमेश्‍वर को जानने से हमें मिली है। परमेश्‍वर की बुद्धि, न्याय, शक्‍ति और प्यार की दास्तान हमारे दिलो-दिमाग को पूरी तरह संतुष्ट कर देती है। हमें इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए। हमारी यही तमन्‍ना है कि हम परमेश्‍वर के ज्ञान में बढ़ते जाएँ।” (प्रहरीदुर्ग, 15 दिसंबर, 1914, पेज 377-378) परमेश्‍वर ने हमें जो आध्यात्मिक प्रकाश और सच्चाई दी है, उसके लिए हम आज भी उतना ही एहसान मानते हैं। बेशक, अब हमारे पास आनंदित होने का और भी बढ़िया कारण है, तो आइए हम ‘यहोवा के प्रकाश में चलते रहें।’—यशा. 2:5; भज. 43:3; नीति. 4:18.

19. जो लोग बपतिस्मा लेने के काबिल हैं, उन्हें क्यों बिना देर किए यह कदम उठाना चाहिए?

19 अगर आप “यहोवा के प्रकाश में” चलना चाहते हैं, मगर अभी तक आपने अपना समर्पण करके बपतिस्मा नहीं लिया है, तो यह कदम उठाने में देर मत कीजिए। बपतिस्मे के लिए जो माँगें पूरी करने की ज़रूरत है, उन्हें पूरा करने की हर मुमकिन कोशिश कीजिए। क्योंकि यही वह तरीका है जिससे हम दिखा सकते हैं कि यहोवा और मसीह ने हमारे लिए जो किया है उसके लिए हम एहसानमंद हैं। यहोवा को अपनी सबसे कीमती चीज़ यानी अपनी ज़िंदगी दीजिए। परमेश्‍वर के बेटे के नक्शेकदम पर चलकर दिखाइए कि आप उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। (2 कुरिं. 5:14, 15) इसमें कोई शक नहीं कि यही जीवन की सबसे बेहतरीन राह है!

[फुटनोट]

^ भजन 91:1 (NHT): “जो परमप्रधान की शरण में वास करता है, वह सर्वशक्‍तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा।”

आप क्या जवाब देंगे?

• हमारा बपतिस्मा किस बात की निशानी है?

• परमेश्‍वर को समर्पण करने और बपतिस्मा लेने से क्या आशीषें मिलती हैं?

• यीशु से सीखना क्यों बहुत ज़रूरी है?

• जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चलते रहने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 25 पर तसवीर]

आपका बपतिस्मा लेना दिखाता है कि आपने जीवन की सबसे बेहतरीन राह चुन ली है

[पेज 26 पर तसवीरें]

क्या आप “परमप्रधान की शरण” में सुरक्षित हैं?