इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

‘निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाइए’

‘निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाइए’

‘निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाइए’

“वे . . . पवित्र शक्‍ति से भर गए और निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे।”—प्रेषि. 4:31.

1, 2. हमें प्रचार के काम में कुशल क्यों होना चाहिए?

 यीशु ने अपनी मौत से तीन दिन पहले अपने चेलों से कहा: “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों पर गवाही हो; और इसके बाद अंत आ जाएगा।” फिर जब यीशु मरे हुओं में से जी उठा, तो स्वर्ग लौटने से पहले उसने अपने चेलों को काम दिया कि “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ, . . . और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।” यीशु ने उनसे वादा किया कि “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ” रहूँगा।—मत्ती 24:14; 26:1, 2; 28:19, 20.

2 पहली सदी में जो काम शुरू हुआ था, आज हम यहोवा के साक्षी उसी काम में लगे हुए हैं। परमेश्‍वर के राज का प्रचार करने और चेले बनाने का काम दुनिया का सबसे ज़रूरी काम है, क्योंकि इससे लोगों की जानें बचती हैं। तो फिर, इस काम में कुशल होना भी कितना ज़रूरी है! इस लेख में हम देखेंगे कि प्रचार करते वक्‍त पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन पाने से कैसे हमें निडरता से बोलने में मदद मिलती है। आगे के दो लेख दिखाएँगे कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति कैसे हमें मार्गदर्शन देती है कि हम सिखाने में कुशल हों और लगातार प्रचार का काम करते रहें।

निडरता ज़रूरी है

3. राज के प्रचार का काम करने के लिए निडर होना ज़रूरी क्यों है?

3 परमेश्‍वर ने हमें अपने राज का प्रचार करने का काम देकर बड़ी इज़्ज़त दी है। मगर, कभी-कभी इस काम में मुश्‍किलें आती हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी को फौरन स्वीकार कर लेते हैं, मगर ज़्यादातर लोग नूह के ज़माने के लोगों की तरह होते हैं। यीशु ने उनके बारे में कहा, “जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया।” (मत्ती 24:38, 39) फिर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हमारी खिल्ली उड़ाते हैं या हमारा विरोध करते हैं। (2 पत. 3:3) हमारा विरोध करनेवाले बड़े अधिकारी हो सकते हैं, या फिर हमारे साथ पढ़नेवाले या नौकरी करनेवाले। यहाँ तक कि हमारा परिवार भी हमारा विरोधी हो सकता है। इन मुश्‍किलों के अलावा हमारी अपनी कमज़ोरियाँ भी हैं, जैसे लोगों से मिलने में झिझक महसूस करना या यह डर होना कि हमारी बात नहीं सुनी जाएगी। कुल मिलाकर कई वजहों से हम “हिम्मत के साथ” और “बेझिझक होकर” परमेश्‍वर का वचन नहीं सुना पाते। (इफि. 6:19, 20) फिर भी परमेश्‍वर का वचन लगातार सुनाते रहने के लिए निडर होना ज़रूरी है। हम कैसे निडर बन सकते हैं?

4. (क) निडरता क्या है? (ख) प्रेषित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को खुशखबरी सुनाने के लिए हिम्मत कैसे जुटायी?

4 “निडरता” के लिए यूनानी भाषा के शब्द का मतलब “बेझिझक बोलना, खुलकर बोलना, साफ-साफ बोलना” है। इस शब्द से “हिम्मत का, आत्म-विश्‍वास का . . . और बेखौफ होने” का विचार मिलता है। निडरता का मतलब यह नहीं कि हम लोगों को खरी-खरी सुनाएँ या रुखाई से बोलें। (कुलु. 4:6) निडर होने के साथ-साथ हम सबके साथ शांति भी कायम रखना चाहते हैं। (रोमि. 12:18) जब हम परमेश्‍वर के राज का प्रचार करते हैं, तो निडर होने के साथ-साथ हमें व्यवहार-कुशल भी होना चाहिए ताकि हम भूल से भी किसी को नाराज़ न करें। जी हाँ, निडर होने के लिए ऐसे गुण ज़रूरी हैं जिन्हें पैदा करने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इस तरह की निडरता हमारे अपने अंदर से, यानी हमारे अपने दम पर नहीं आती। प्रेषित पौलुस और उसके साथियों ने “फिलिप्पी में . . . बेइज़्ज़त होने के बाद भी” थिस्सलुनीके के लोगों को खुशखबरी सुनाने की “हिम्मत” कैसे “जुटायी”? पौलुस ने लिखा, “हमारे परमेश्‍वर के ज़रिए।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:2 पढ़िए।) हमारे मामले में भी यहोवा परमेश्‍वर हमारा डर दूर कर सकता है, हमें ऐसी ही निडरता दे सकता है।

5. यहोवा ने पतरस, यूहन्‍ना और दूसरे चेलों को निडर होने का वरदान कैसे दिया?

5 जब ‘यहूदियों के धर्म-अधिकारियों, बुज़ुर्गों और शास्त्रियों’ ने प्रेषित पतरस और यूहन्‍ना को धमकाया, तो उनका जवाब यह था: “क्या परमेश्‍वर की नज़र में यह सही होगा कि हम उसकी बात मानने के बजाय तुम्हारी सुनें, तुम खुद फैसला करो। मगर जहाँ तक हमारी बात है, हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।” चेलों ने परमेश्‍वर से यह प्रार्थना नहीं की कि उन पर ज़ुल्म होना बंद हो जाए, बल्कि परमेश्‍वर के दूसरे सेवकों के साथ मिलकर उन्होंने यह बिनती की: “हे यहोवा, उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने दासों को यह वरदान दे कि वे पूरी तरह निडर होकर तेरा वचन सुनाते रहें।” (प्रेषि. 4:5, 19, 20, 29) यहोवा ने उनकी बिनती का जवाब कैसे दिया? (प्रेषितों 4:31 पढ़िए।) यहोवा ने उन्हें अपनी पवित्र शक्‍ति की मदद दी, ताकि वे हिम्मत जुटाकर निडर हो सकें। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमारी भी इसी तरह मदद कर सकती है। तो फिर, हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति कैसे पा सकते हैं और प्रचार के काम में इसका मार्गदर्शन कैसे पा सकते हैं?

निडर कैसे बनें

6, 7. परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति पाने का सबसे सीधा तरीका क्या है? मिसालें बताइए।

6 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति पाने का सबसे सीधा तरीका है, परमेश्‍वर से इसे माँगना। यीशु ने अपने सुननेवालों से कहा: “जब तुम दुष्ट होते हुए भी यह जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें कैसे देनी हैं, तो स्वर्ग में रहनेवाला पिता और भी बढ़कर, अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्‍ति क्यों न देगा!” (लूका 11:13) जी हाँ, हमें पवित्र शक्‍ति हासिल करने के लिए लगातार प्रार्थना करनी चाहिए। क्या आपको कुछ तरीकों से गवाही देने में डर लगता है, जैसे सड़क पर, अचानक किसी मौके पर या बिज़नेस इलाके में? अगर हाँ, तो प्रार्थना में यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगिए और इन कामों के लिए ज़रूरी हिम्मत जुटाने में उसकी मदद माँगिए।—1 थिस्स. 5:17.

7 रोसा नाम की एक मसीही बहन ने ऐसा ही किया। * रोसा एक स्कूल में काम करती है। एक दिन जब वह स्कूल में थी, तो उसके साथ काम करनेवाली एक टीचर किसी दूसरे स्कूल की रिपोर्ट पढ़ रही थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि बच्चों के साथ कैसा बुरा सलूक किया जाता है। उस टीचर ने जो पढ़ा उससे वह इतनी परेशान हो गयी कि बोल पड़ी, “यह दुनिया कहाँ जा रही है?” रोसा गवाही देने के इस मौके को यूँ ही छोड़ना नहीं चाहती थी। बातचीत शुरू करने के लिए उसने हिम्मत कैसे जुटायी? रोसा कहती है: “मैं ने यहोवा से प्रार्थना की और उसकी पवित्र शक्‍ति की मदद माँगी।” रोसा बढ़िया गवाही दे सकी और ज़्यादा बातचीत करने के लिए वक्‍त तय किया। न्यू यॉर्क शहर में रहनेवाली पाँच साल की लड़की मीलानी की बात पर भी गौर कीजिए। मीलानी कहती है: “मुझे स्कूल भेजने से पहले, मम्मी मुझे साथ लेकर हर दिन यहोवा से प्रार्थना करती हैं।” वे प्रार्थना किसलिए करती हैं? इसलिए कि मीलानी को हिम्मत मिले ताकि वह अपने परमेश्‍वर के पक्ष में बोल सके और गवाही दे सके! उसकी माँ कहती है, “स्कूल में जब किसी का जन्मदिन या कोई त्योहार मनाया जाता है तो मीलानी इनमें शरीक नहीं होती। हिम्मत पाने के लिए प्रार्थना करने से, वह ऐसे मौकों पर बता पाती है कि वह क्यों इनमें शरीक नहीं होती।” क्या ये मिसालें नहीं दिखातीं कि जब हिम्मत जुटाने की बात आती है, तो प्रार्थना बहुत काम आती है?

8. निडर होने के बारे में हम भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह से क्या सीख सकते हैं?

8 गौर कीजिए कि भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह को निडर होने में किस बात से मदद मिली। जब यहोवा ने उसे गैर-यहूदी जातियों के लिए भविष्यवक्‍ता ठहराया, तो यिर्मयाह का जवाब था: “देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।” (यिर्म. 1:4-6) मगर, वक्‍त के गुज़रते यिर्मयाह इतनी लगन और इतने जोश से प्रचार करने लगा कि लोग उसे विनाश का प्रचारक कहने लगे। (यिर्म. 38:4) पैंसठ से ज़्यादा साल तक, वह बड़ी निडरता से यहोवा की तरफ से आनेवाली सज़ा का ऐलान करता रहा। इसराएल में वह अपनी निडरता और हिम्मत से प्रचार करने के लिए इस कदर मशहूर हो गया कि उसके प्रचार के करीब 600 साल बाद जब यीशु ने प्रचार के काम में बड़ी निडरता दिखायी, तो लोगों ने यह मान लिया कि यिर्मयाह फिर से जी उठा है। (मत्ती 16:13, 14) भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह जो पहले बोलने में झिझक महसूस करता था, वह इस पर जीत कैसे हासिल कर पाया? वह कहता है: “[परमेश्‍वर का वचन] मेरे हृदय में और मेरी हड्डियों के भीतर बन्द एक धधकती आग सी बन जा[ता] है; और मैं इसे रोकते रोकते थक गया हूं, अब मुझ से सहा नहीं जाता।” (यिर्म. 20:9, NHT) जी हाँ, यहोवा के वचनों में ऐसी ज़बरदस्त ताकत थी कि यिर्मयाह खुद को बोलने से रोक न सका।

9. परमेश्‍वर के वचन का क्यों हम पर वैसा ही असर हो सकता है जैसा यिर्मयाह पर हुआ था?

9 प्रेषित पौलुस ने इब्रानियों के नाम अपनी चिट्ठी में लिखा: “परमेश्‍वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है और दोनों तरफ तेज़ धार रखनेवाली तलवार से भी ज़्यादा धारदार है। यह इंसान के बाहरी रूप को उसके अंदर के इंसान से अलग करता है, और हड्डियों को गूदे तक आर-पार चीरकर अलग कर देता है और दिल के विचारों और इरादों को जाँच सकता है।” (इब्रा. 4:12) परमेश्‍वर के वचन या उसके संदेश का हम पर वैसा ही असर हो सकता है जैसा यिर्मयाह पर हुआ था। मत भूलिए कि बाइबल को लिखनेवाले मामूली इंसान थे, फिर भी इसमें इंसान की बुद्धि नहीं बल्कि परमेश्‍वर की बुद्धि पायी जाती है, क्योंकि इसके लिखनेवालों ने जो भी लिखा परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा। दूसरा पतरस 1:21 कहता है: “कोई भी भविष्यवाणी इंसान की मरज़ी से कभी नहीं हुई, बल्कि इंसान पवित्र शक्‍ति से उभारे जाकर परमेश्‍वर की तरफ से बोलते थे।” हमें वक्‍त निकालकर बाइबल का इस तरह अध्ययन करना चाहिए कि इससे हम वह सीखें जो परमेश्‍वर हमें सिखाना चाहता है। तब हमारे मन में वह संदेश रच-बस जाएगा जो परमेश्‍वर ने अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए लिखवाया है। (1 कुरिंथियों 2:10 पढ़िए।) वह संदेश हमारे अंदर ऐसा होगा जैसे “धधकती आग” हो और हम इसे अपने अंदर नहीं रख पाएँगे।

10, 11. (क) अगर हम निडरता से बोलना चाहते हैं, तो हमें निजी अध्ययन किस तरह करना चाहिए? (ख) अपने निजी अध्ययन से और फायदा पाने के लिए कम-से-कम एक तरीका ऐसा बताइए जिससे आप इसमें सुधार करना चाहते हैं।

10 निजी बाइबल अध्ययन का हम पर ज़बरदस्त असर हो, इसके लिए ज़रूरी है कि बाइबल का संदेश हमारे दिल की गहराइयों तक पहुँचे और हमारे अंदर के इंसान को झंझोड़ दे। भविष्यवक्‍ता यहेजकेल की मिसाल लीजिए। एक दर्शन में उससे कहा गया कि एक लिपटा हुआ कागज़ खा ले जिस पर ढीठ इसराएलियों के खिलाफ एक कड़ा संदेश लिखा था। यहेजकेल को यह संदेश उन तक पहुँचाना था। उसे यह संदेश पूरी तरह जज़्ब करना था और अपने अंदर समा लेना था। ऐसा करने से उस संदेश को सुनाने का काम उसे मीठा लगता, मानो उसमें शहद जैसी मिठास हो।यहेजकेल 2:8–3:4, 7-9 पढ़िए।

11 हमारे हालात भी वैसे ही हैं जैसे यहेजकेल के थे। आज ज़्यादातर लोग बाइबल का संदेश नहीं सुनना चाहते। अगर हम परमेश्‍वर के वचन निडरता से सुनाते रहना चाहते हैं, तो यह ज़रूरी है कि हम शास्त्र का अध्ययन इस तरह करें कि इसका संदेश पूरी तरह से समझें और उस पर यकीन करें। अध्ययन के लिए हमें नियमित वक्‍त निकालना चाहिए, ऐसा नहीं कि कभी किया तो कभी नहीं किया। हमारी ख्वाहिश उस भजनहार जैसी होनी चाहिए जिसने यह गीत गाया: “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!” (भज. 19:14) कितना ज़रूरी है कि हम बाइबल में जो पढ़ते हैं उस पर रुककर मनन करें, ताकि ये सच्चाइयाँ हमारे दिल की गहराइयों में उतर जाएँ! जी हाँ, हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि अपने निजी अध्ययन से और फायदा पाने के लिए इसमें सुधार करें। *

12. पवित्र शक्‍ति से मार्गदर्शन पाने में मसीही मंडली की सभाएँ कैसे हमारी मदद करती हैं?

12 यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद पाने का एक और तरीका है कि “हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें, और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें।” (इब्रा. 10:24, 25) जी-जान लगाकर मसीही सभाओं में बिना नागा हाज़िर होना, ध्यान से सुनना और सीखी हुई बातों पर अमल करना कुछ ऐसे बढ़िया तरीके हैं जिनसे हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं। और मसीही मंडली ही तो है जिसके ज़रिए यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमें सही राह दिखाती है!प्रकाशितवाक्य 3:6 पढ़िए।

निडरता के फायदे

13. पहली सदी के मसीहियों ने प्रचार के काम में जो कामयाबी पायी उससे हम क्या सीख सकते हैं?

13 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति इस विश्‍व की सबसे ज़बरदस्त शक्‍ति है। यह इंसानों को यहोवा की मरज़ी पूरी करने की ताकत दे सकती है। इसी पवित्र शक्‍ति के असर में, पहली सदी के मसीहियों ने बहुत बड़े पैमाने पर प्रचार का काम किया। उन्होंने उस वक्‍त की “दुनिया के कोने-कोने” तक खुशखबरी का प्रचार किया। (कुलु. 1:23) इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उन मसीहियों में से ज़्यादातर “कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी” थे, यह बात साफ हो जाती है कि उन्हें किसी ज़बरदस्त शक्‍ति ने इस कदर उभारा कि वे यह काम कर पाए।—प्रेषि. 4:13.

14. क्या बात हमें “पवित्र शक्‍ति के तेज से भरपूर” होने में मदद देगी?

14 अगर हम इस तरह की ज़िंदगी जीते हैं कि पवित्र शक्‍ति हमें मार्गदर्शन देती रहे, तो हमारे अंदर परमेश्‍वर की सेवा निडरता से करते रहने का जोश पैदा होगा। पवित्र शक्‍ति के लिए लगातार प्रार्थना करने, बड़ी लगन से निजी अध्ययन करने, सीखी हुई बातों के बारे में प्रार्थना के साथ मनन करने और मसीही सभाओं में बिना नागा हाज़िर होने से हमें बहुत-से फायदे होंगे और यह हमें “पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे” होने में मदद देगा। (रोमि. 12:11) ‘अपुल्लोस नाम के एक यहूदी’ की मिसाल याद कीजिए जो “बात करने में माहिर था।” बाइबल बताती है कि “वह पवित्र शक्‍ति के तेज से भरपूर था, इसलिए वह यीशु के बारे में सही-सही बातें बोलता और सिखाता था।” (प्रेषि. 18:24, 25) अगर हम भी “पवित्र शक्‍ति की आग से भरे हुए” होंगे तो हम घर-घर के प्रचार में और किसी भी मौके पर लोगों को गवाही देते वक्‍त निडरता से बात कर सकेंगे।—रोमि. 12:11, द बाइबल—एन अमेरिकन ट्रांस्लेशन।

15. निडरता से बोलने के हमें क्या फायदे होते हैं?

15 गवाही देते वक्‍त जब हम और भी निडरता से बोलते हैं तो इसका हम पर अच्छा असर होता है। प्रचार की तरफ हमारे रवैए में सुधार होता है क्योंकि हम इस काम की अहमियत और इसके फायदे ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाते हैं। प्रचार का काम असरदार तरीके से करने की वजह से हमें ज़्यादा खुशी मिलती है और हमारा उत्साह बढ़ता है। हमारा जोश इस एहसास से और बढ़ता है कि प्रचार का काम करना कितना ज़्यादा ज़रूरी है।

16. अगर प्रचार काम के लिए हमारा जोश कम हो गया है तो हमें क्या करना चाहिए?

16 अगर प्रचार काम के लिए हमारे अंदर अब पहले जैसा जोश नहीं रहा, तो क्या करना सही होगा? ऐसे में ज़रूरी है कि हम खुद को जाँचें। पौलुस ने लिखा: “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्‍वास में हो या नहीं। तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो।” (2 कुरिं. 13:5) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं अब भी पवित्र शक्‍ति के तेज से भरा हुआ हूँ? क्या मैं प्रार्थना में यहोवा से पवित्र शक्‍ति माँगता हूँ? क्या मेरी प्रार्थनाएँ दिखाती हैं कि मैं उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए उस पर निर्भर करता हूँ? क्या मेरी प्रार्थनाओं में सेवा के उस काम के लिए कदरदानी के शब्द होते हैं जो हमें सौंपी गयी है? क्या मैं निजी अध्ययन नियमित करता हूँ? मैं जो पढ़ता या सुनता हूँ उस पर मनन करने के लिए मैं कितना वक्‍त लगाता हूँ? मंडली की सभाओं में मैं किस हद तक शामिल होता हूँ?’ ऐसे सवालों पर ध्यान देने से आप पता लगा पाएँगे कि कमज़ोरी कहाँ है और फिर आप इसमें सुधार कर सकेंगे।

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति आपको निडर बनाए

17, 18. (क) आज प्रचार का काम किस पैमाने पर किया जा रहा है? (ख) परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने के काम में हम कैसे ‘बेझिझक सिखाते’ रह सकते हैं?

17 यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद, अपने चेलों से कहा: “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया देश में यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) जो काम तब शुरू हुआ था वह अब इतने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जैसे पहले कभी नहीं हुआ। आज करीब 70 लाख यहोवा के साक्षी 230 से ज़्यादा देशों में राज के संदेश का ऐलान कर रहे हैं। सेवा के इस काम में उन्होंने एक साल में लगभग एक अरब 50 करोड़ घंटे लगाए हैं। यह काम ऐसा है जो फिर कभी नहीं दोहराया जाएगा, इसलिए आज पूरे जोश के साथ इसे करने से हमें वाकई बहुत खुशी मिलती है!

18 पहली सदी की तरह आज भी, पूरी दुनिया में प्रचार का काम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। पवित्र शक्‍ति हमें जिस दिशा में जाने के लिए उकसाती है, अगर हम उसी दिशा में चलें तो हम प्रचार के काम में ‘बेझिझक सिखाते’ रहेंगे। (प्रेषि. 28:31) तो फिर, आइए हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हुए परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाते रहें!

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

^ बाइबल की अपनी पढ़ाई और निजी अध्ययन से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा पाने के लिए परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए किताब के पेज 21-32 पर “पढ़ने में ध्यान लगाए रह” और “अध्ययन करने से ढेरों आशीषें मिलती हैं” अध्याय देखिए।

आपने क्या सीखा?

• परमेश्‍वर का वचन सुनाने के लिए निडर होना ज़रूरी क्यों है?

• शुरू के चेलों को निडरता से बोलने में किस बात ने मदद दी?

• हम निडर कैसे बन सकते हैं?

• निडर होने के हमें क्या फायदे होते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 7 पर तसवीर]

माता-पिता अपने बच्चों को निडर होने में कैसे मदद दे सकते हैं?

[पेज 8 पर तसवीरें]

छोटी-सी प्रार्थना आपको प्रचार के काम में हिम्मत जुटाने में मदद करेगी