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“पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’”

“पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’”

“पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’”

“पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’ . . . हर कोई जो प्यासा हो वह आए। जो कोई चाहे वह जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में ले ले।”—प्रका. 22:17.

1, 2. हमें अपनी ज़िंदगी में राज के कामों को कितनी अहमियत देनी चाहिए और क्यों?

 हमारे जीवन में राज के कामों की क्या अहमियत होनी चाहिए? यीशु ने अपने चेलों को बढ़ावा दिया कि वे ‘पहले राज की खोज करें।’ उसने उन्हें भरोसा दिलाया कि अगर वे ऐसा करेंगे, तो परमेश्‍वर उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा। (मत्ती 6:25-33) उसने परमेश्‍वर के राज की तुलना एक बेशकीमती मोती से की। जब मोतियों की तलाश करनेवाले एक व्यापारी को वह मोती मिला, तो उसने ‘अपना सबकुछ बेचकर उसे खरीद लिया।’ (मत्ती 13:45, 46) क्या हमें भी राज के प्रचार काम और चेला बनाने के काम को अपने जीवन में सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए?

2 हमने पिछले दो लेखों में देखा कि प्रचार काम में हिम्मत के साथ बोलना और परमेश्‍वर के वचन का कुशलता से इस्तेमाल करना दिखाता है कि हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन पर चल रहे हैं। हम नियमित तौर पर राज का काम करते रहें इसमें भी पवित्र शक्‍ति एक अहम भूमिका निभाती है। आइए देखें कैसे।

सबके लिए न्यौता!

3. इंसानों को किस तरह का पानी पीने का न्यौता दिया गया है?

3 पवित्र शक्‍ति के ज़रिए सभी इंसानों को एक न्यौता दिया गया है। (प्रकाशितवाक्य 22:17 पढ़िए।) उन्हें न्यौता दिया गया है कि ‘आओ’ और एक बहुत ही खास तरह के पानी से अपनी प्यास बुझाओ। यह साधारण पानी नहीं है जो हाइड्रोजन के दो भाग और ऑक्सीजन के एक भाग से मिलकर बनता है। हालाँकि धरती पर जीवन कायम रखने के लिए पानी बहुत ज़रूरी है, लेकिन यीशु ने जब एक कुँए पर सामरी स्त्री से बात की, तो उसके मन में एक दूसरे तरह के पानी की बात थी। उसने कहा: “जो कोई वह पानी पीता है, जो मैं उसे दूँगा वह फिर कभी-भी प्यासा नहीं होगा। मगर जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसके अंदर पानी का एक सोता बन जाएगा और हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए उमड़ता रहेगा।” (यूह. 4:14) इंसानों को यह खास पानी पीने का न्यौता दिया गया है, अगर वे इसे पीएँगे तो उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।

4. जीवन देनेवाले पानी की ज़रूरत क्यों पड़ी? यह पानी किसे दर्शाता है?

4 जीवन देनेवाले इस पानी की ज़रूरत तब पड़ी जब पहले पुरुष आदम ने यहोवा की आज्ञा तोड़ने में हव्वा का साथ दिया। जिसने उन्हें जीवन दिया था, उन्होंने उसी की आज्ञा तोड़ दी। (उत्प. 2:16, 17; 3:1-6) नतीजा, उन्हें उस बाग से निकाल दिया गया जो उनका घर था ताकि “ऐसा न हो, कि [आदम] हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।” (उत्प. 3:22) हमारे पूर्वज आदम की वजह से मौत पूरी मानवजाति में फैल गयी। (रोमि. 5:12) जीवन देनेवाला पानी परमेश्‍वर के उन सारे इंतज़ामों को दर्शाता है, जो उसने मानवजाति को पाप और मौत से छुड़ाने और उन्हें धरती पर फिरदौस में सिद्ध और हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए किए हैं। ये सारे इंतज़ाम यीशु के फिरौती बलिदान की बदौलत मुमकिन हो पाए हैं।—मत्ती 20:28; यूह. 3:16; 1 यूह. 4:9, 10.

5. “जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में ले ले,” यह न्यौता किसकी तरफ से है? समझाइए।

5 वह कौन है जो यह न्यौता देता है कि आ और “जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में ले ले”? मसीह के हज़ार साल के शासन के दौरान यीशु के ज़रिए वे सारे इंतज़ाम मानवजाति को पूरी तरह मुहैया कराए जाएँगे, जो ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हैं। उन इंतज़ामों को “जीवन देनेवाले पानी की नदी” से दर्शाया गया है, ‘जो बिल्लौर की तरह साफ होगी।’ यह नदी “परमेश्‍वर और मेम्ने की राजगद्दी से निकलकर बह रही” है। (प्रका. 22:1) इसलिए यह कहा जा सकता है कि यहोवा, जो सभी को जीवन देता है वही इस पानी का स्रोत है। इस पानी में जीवन के लिए ज़रूरी चीज़ें मौजूद हैं। (भज. 36:9) यहोवा ही है जो ‘मेम्ने’ यीशु मसीह के ज़रिए यह पानी मुहैया कराता है। (यूह. 1:29) इस लाक्षणिक नदी के ज़रिए वह उन सारे दुख-तकलीफों को दूर करेगा, जो मानवजाति पर इसलिए आए क्योंकि आदम ने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी। जी हाँ, यहोवा परमेश्‍वर ही यह न्यौता देता है कि “आ!”

6. “जीवन देनेवाले पानी की नदी” कब से बहनी शुरू हुई?

6 हालाँकि “जीवन देनेवाले पानी की नदी” पूरी तरह तो मसीह के हज़ार साल के शासन के दौरान ही बहेगी, लेकिन इसके बहने की शुरूआत “प्रभु के दिन” से हो चुकी है। ‘प्रभु का दिन’ सन्‌ 1914 में शुरू हुआ, जब “मेम्ने” को स्वर्ग में राजा बनाया गया। (प्रका. 1:10) इसलिए जीवन के लिए ज़रूरी कुछ इंतज़ाम सन्‌ 1914 से उपलब्ध हुए। इन इंतज़ामों में परमेश्‍वर के वचन में दिया संदेश शामिल है, क्योंकि इस संदेश को “पानी” कहा गया है। (इफि. 5:26) ‘जीवन देनेवाला पानी लेने’ का न्यौता सभी को दिया जा रहा है, यानी सभी को राज की खुशखबरी सुनायी जा रही है और उनके पास यह मौका है कि वे उसे कबूल करें। लेकिन प्रभु के दिन में असल में यह न्यौता देने का काम कौन कर रहा है?

“दुल्हन” कहती है, “आ!”

7. “प्रभु के दिन” में कौन सबसे पहले न्यौता देने का काम कर रहा है? वह यह न्यौता किन्हें दे रहा है?

7 दुल्हन वर्ग के सदस्य, यानी पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त मसीही ही वे लोग हैं, जो सबसे पहले यह न्यौता देते हैं कि “आ”। दुल्हन किसे यह न्यौता देती है? वह यह न्यौता खुद को नहीं दे रही है, बल्कि उन लोगों को दे रही है, जिन्हें “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के महान दिन के युद्ध” के बाद इस धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा है।—प्रकाशितवाक्य 16:14, 16 पढ़िए।

8. किस बात से पता चलता है कि अभिषिक्‍त मसीही सन्‌ 1918 से लोगों को यहोवा का न्यौता दे रहे हैं?

8 मसीह के अभिषिक्‍त चेले यह न्यौता सन्‌ 1918 से दे रहे हैं। उस साल एक जन भाषण दिया गया जिसका विषय था, “आज जी रहे लाखों लोग शायद कभी न मरें।” इस भाषण में यह आशा दी गयी कि हर-मगिदोन के युद्ध के बाद इस धरती पर फिरदौस में कई लोग जीएँगे। इसके बाद सन्‌ 1922 में अमरीका के सीडर पॉइंट, ओहायो में बाइबल विद्यार्थियों के अधिवेशन में एक भाषण दिया गया। उसमें सुननेवाले सभी लोगों से गुज़ारिश की गयी कि वे ‘राजा और उसके राज की घोषणा करें।’ इस गुज़ारिश ने दुल्हन वर्ग के बचे हुए सदस्यों में और भी लोगों को यह न्यौता देने का जोश भर दिया। सन्‌ 1929 में 15 मार्च की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में एक लेख छपा जिसका विषय था “प्यार-भरा न्यौता,” यह प्रकाशितवाक्य 22:17 पर आधारित था। इस लेख में लिखा था: “अभिषिक्‍त वर्ग के बचे हुए विश्‍वासयोग्य जन [परमप्रधान] के साथ यह न्यौता दे रहे हैं और कह रहे हैं कि ‘आ।’ यह संदेश उन लोगों को सुनाया जाना है जो नेकी और सच्चाई से प्यार करते हैं। इस काम को आज किया जाना है।” दुल्हन वर्ग के सदस्य आज भी लोगों को यह न्यौता दे रहे हैं।

“सुननेवाला हर कोई कहे: ‘आ!’”

9, 10. जो लोग इस न्यौते को कबूल करते हैं, उन्हें कैसे बढ़ावा दिया गया है कि वे भी बदले में दूसरों को यह न्यौता दें?

9 जिन लोगों को यह न्यौता दिया जा रहा है उनके बारे में क्या कहा जा सकता है? उनसे कहा गया है कि वे भी दूसरों को यह न्यौता दें। उदाहरण के लिए 1 अगस्त, 1932 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 232 पर कहा गया था: “अभिषिक्‍त जनों को चाहिए कि वे उन सभी को बढ़ावा दें जो राज की खुशखबरी सुनाने में हिस्सा ले सकते हैं। प्रभु का संदेश सुनाने के लिए उन्हें अभिषिक्‍त होने की ज़रूरत नहीं है। यहोवा के लोगों को यह जानकर बड़ी खुशी हो रही है कि वे जीवन देनेवाला पानी उन लोगों तक पहुँचा सकते हैं, जिन्हें हर-मगिदोन से बचाया जाएगा और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी दी जाएगी।”

10 जो कोई यह न्यौता सुनता है कि “आ!” उसकी क्या ज़िम्मेदारी बनती है इस बारे में 15 अगस्त, 1934 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 249 पर बताया गया था: “यहोनादाब वर्ग के लोगों को येहू वर्ग के लोगों के साथ यानी अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ मिलकर राज के संदेश का ऐलान करना चाहिए। भले ही यहोनादाब वर्ग के लोग यहोवा के अभिषिक्‍त मसीही नहीं हैं, फिर भी उन्हें यह काम करना चाहिए।” सन्‌ 1935 में प्रकाशितवाक्य 7:9-17 में बतायी “बड़ी भीड़” की पहचान साफ हो गयी। इससे परमेश्‍वर का न्यौता देने के काम में बेहतरीन तरक्की हुई। तब से सच्चे उपासकों की गिनती में गज़ब की बढ़ोतरी हुई है। इस न्यौते को कबूल करनेवालों की गिनती आज 70 लाख से भी ज़्यादा हो गयी है। इसे कबूल करने के बाद उन्होंने परमेश्‍वर को अपना समर्पण किया और पानी में बपतिस्मा लिया। वे दुल्हन वर्ग के साथ मिलकर जोश से दूसरों को यह न्यौता दे रहे हैं कि ‘आओ और जीवन देनेवाला पानी मुफ्त में लो।’

“पवित्र शक्‍ति” कहती है, “आ!”

11. पहली सदी में पवित्र शक्‍ति ने प्रचार में कैसे एक अहम भूमिका निभायी?

11 जब यीशु नासरत के सभा-घर में प्रचार कर रहा था तो उसने यशायाह नबी का खर्रा खोला और यह बात पढ़ी: “यहोवा की पवित्र शक्‍ति मुझ पर है, क्योंकि उसने गरीबों को खुशखबरी सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है। उसने कैदियों को रिहाई का और अंधों को आँखों की रौशनी पाने का संदेश सुनाने के लिए मुझे भेजा है कि कुचले हुओं को रिहाई देकर आज़ाद करूँ और यहोवा की मंज़ूरी पाने के वक्‍त का प्रचार करूँ।” फिर यीशु ने इन शब्दों को खुद पर लागू करते हुए कहा: “यह शास्त्रवचन जो तुमने अभी-अभी सुना, वह आज पूरा हुआ है।” (लूका 4:17-21) स्वर्ग वापस जाने से पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा: “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे, और . . . दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) पहली सदी में प्रचार के मामले में पवित्र शक्‍ति ने एक अहम भूमिका निभायी।

12. हमारे दिनों में दूसरों को न्यौता देने में पवित्र शक्‍ति कैसे भूमिका निभाती है?

12 हमारे दिनों में लोगों को यह न्यौता देने में पवित्र शक्‍ति कैसे मदद करती है? पवित्र शक्‍ति का स्रोत यहोवा है। वह अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए दुल्हन वर्ग के लोगों को उसका वचन बाइबल समझने में मदद करता है। यही शक्‍ति उन्हें उकसाती है कि वे जाकर उन लोगों को यह न्यौता दें और बाइबल की सच्चाइयाँ समझाएँ, जिनके पास इस धरती पर फिरदौस में हमेशा तक जीने का मौका है। लेकिन उनके बारे में क्या कहा जा सकता है जो यह न्यौता कबूल करके यीशु मसीह के चेले बन चुके हैं और दूसरों को यह न्यौता दे रहे हैं? पवित्र शक्‍ति उनकी भी मदद करती है। ‘पवित्र शक्‍ति के नाम से’ बपतिस्मा लेने के बाद वे उसके निर्देशन में काम करते हैं और उस पर निर्भर रहते हैं। (मत्ती 28:19) ज़रा उस संदेश के बारे में सोचिए जो अभिषिक्‍त जन और दिन-पर-दिन बढ़ती बड़ी भीड़ के लोग दूसरों को सुना रहे हैं। यह संदेश वे बाइबल से सुनाते हैं, जो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की प्रेरणा से लिखी गयी है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह न्यौता पवित्र शक्‍ति की मदद से सबको दिया जा रहा है। हम भी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में काम करते हैं। यह जानकर न्यौता देने के हमारे काम पर कैसा असर होना चाहिए?

वे “कहती रहती हैं: ‘आ!’”

13. “पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’” इससे क्या पता चलता है?

13 “पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन” सिर्फ एक बार नहीं कहतीं, “आ!” यहाँ मूल भाषा में जिस क्रिया का इस्तेमाल किया गया है उसका मतलब है कोई काम लगातार करते रहना। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए नयी दुनिया अनुवाद मसीही यूनानी शास्त्र में हम पढ़ते हैं: “पवित्र शक्‍ति और वह दुल्हन कहती रहती हैं: ‘आ!’” इससे पता चलता है कि हमें परमेश्‍वर का यह न्यौता लगातार देते रहना है। जो लोग इस न्यौते को सुनते और कबूल करते हैं, बदले में वे क्या करते हैं? वे भी दूसरों से कहते हैं “आ!” बाइबल में लिखा है कि सच्चे उपासकों की बड़ी भीड़ ‘दिन-रात यहोवा के मंदिर में उसकी पवित्र सेवा करती है।’ (प्रका. 7:9, 15) वह किस मायने में ‘दिन-रात सेवा करती’ है? (लूका 2:36, 37; प्रेषितों 20:31; 2 थिस्सलुनीकियों 3:8 पढ़िए।) बुज़ुर्ग नबिया हन्‍ना और प्रेषित पौलुस की मिसाल दिखाती है कि ‘दिन-रात सेवा करने’ का मतलब है परमेश्‍वर की सेवा में लगातार और पूरी मेहनत से काम करना।

14, 15. दानिय्येल ने कैसे दिखाया कि नियमित तौर पर उपासना करते रहना बहुत ज़रूरी है?

14 दानिय्येल नबी ने भी दिखाया कि नियमित तौर पर उपासना करते रहना कितना ज़रूरी है। (दानिय्येल 6:4-10, 16 पढ़िए।) वह “अपनी रीति के अनुसार” “दिन में तीन बार” परमेश्‍वर से प्रार्थना करता था। यह उसकी आदत बन चुकी थी, जिसे उसने नहीं बदला। एक महीने के लिए भी नहीं, जबकि वह जानता था कि अगर उसने परमेश्‍वर से प्रार्थना की तो उसे शेरों की माँद में फेंक दिया जाएगा। उसके कामों से देखनेवालों को साफ पता चल गया कि नियमित तौर पर यहोवा की उपासना करने से बढ़कर कुछ भी नहीं है।—मत्ती 5:16.

15 दानिय्येल रात-भर शेरों की माँद में था, सुबह होते ही राजा ने खुद जाकर उसे पुकारा: “हे दानिय्येल, हे जीवते परमेश्‍वर के दास, क्या तेरा परमेश्‍वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?” दानिय्येल ने तुरंत जवाब दिया: “हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे! मेरे परमेश्‍वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुंह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्हों ने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके साम्हने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की।” दानिय्येल “नित्य” यानी लगातार यहोवा की उपासना करता था और इसकी वजह से यहोवा ने उसे आशीष दी।—दानि. 6:19-22.

16. दानिय्येल के उदाहरण को ध्यान में रखते हुए, प्रचार में हिस्सा लेने के मामले में हमें खुद से क्या सवाल करने चाहिए?

16 दानिय्येल यहोवा की उपासना नियमित तौर पर करते रहने में किसी भी चीज़ को आड़े नहीं आने देना चाहता था, भले ही इसके लिए उसे अपनी जान देनी पड़ती। क्या हमारे बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है? लोगों को नियमित तौर पर परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने के लिए हम क्या त्याग कर रहे हैं या हम क्या त्याग करने के लिए तैयार हैं? हमें हर महीने लोगों को यहोवा के बारे में बताना चाहिए। ऐसा एक भी महीना नहीं होना चाहिए कि हम किसी को यहोवा के बारे में न बताएँ! अगर मुमकिन है, तो क्या हम हर हफ्ते प्रचार में जाने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं? यहाँ तक कि शारीरिक कमज़ोरी या बीमारी की वजह से अगर हम घर से बाहर नहीं निकल पाते और महीने में सिर्फ 15 मिनट ही प्रचार कर पाते हैं, तो हमें उसकी रिपोर्ट देनी चाहिए। आखिर हमें क्यों नियमित तौर पर प्रचार करना चाहिए? क्योंकि पवित्र शक्‍ति और दुल्हन के साथ हम भी कहते रहना चाहते हैं कि “आ!” जी हाँ, चाहे कुछ भी हो जाए हम नियमित राज प्रचारक बने रहने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे।

17. लोगों को यहोवा का न्यौते देने के किन मौकों को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए?

17 हमें लोगों को यहोवा का न्यौता सिर्फ तभी नहीं देना चाहिए जब हम घर-घर के प्रचार में जाते हैं, बल्कि हमें हर मौके पर यह न्यौता देने की कोशिश करनी चाहिए। यह हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है कि हम अलग-अलग मौकों पर सच्चाई के प्यासे लोगों को ‘जीवन देनेवाला पानी लेने’ का न्यौता दे सकते हैं। जैसे खरीदारी करते वक्‍त, सफर में, कहीं घूमने जाते वक्‍त, काम की जगह पर या स्कूल में! यहाँ तक कि अगर अधिकारी हमारे प्रचार काम पर पाबंदी लगाते हैं, फिर भी हम सूझ-बूझ से काम लेकर प्रचार करते रहते हैं। शायद हम हर घर में प्रचार न करें, कुछ घर छोड़-छोड़कर प्रचार करें, या फिर दूसरे तरीकों से प्रचार करने में ज़्यादा समय बिताएँ।

कहते रहिए, “आ!”

18, 19. आप कैसे दिखा सकते हैं कि परमेश्‍वर के सहकर्मी बनने के सम्मान की आप कदर करते हैं?

18 नब्बे साल से भी ज़्यादा समय से पवित्र शक्‍ति और दुल्हन उन लोगों से कह रही हैं “आ!” जो जीवन देनेवाले पानी के प्यासे हैं। क्या आपने उनके इस जोशीले न्यौते के बारे में सुना है? अगर हाँ, तो आपसे गुज़ारिश की जाती है कि आप यह न्यौता दूसरों को भी दें।

19 हम यह तो नहीं जानते कि यहोवा का यह प्यार-भरा न्यौता और कितने दिनों तक लोगों को दिया जाएगा, मगर न्यौता देने के इस काम में हिस्सा लेकर हम परमेश्‍वर के सहकर्मी बनते हैं। (1 कुरिं. 3:6, 9) यह कितने बड़े सम्मान की बात है! हमें यह दिखाना है कि हम इस सम्मान की कदर करते हैं। साथ ही नियमित तौर पर प्रचार करने के ज़रिए हमें “परमेश्‍वर को गुणगान का बलिदान हमेशा” चढ़ाते रहना है। (इब्रा. 13:15) आइए इस धरती पर जीने की आशा रखनेवाले सभी लोग दुल्हन वर्ग के सदस्यों के साथ मिलकर कहें “आ!” ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग ‘जीवन देनेवाले पानी को मुफ्त में ले लें’!

आपने क्या सीखा?

• “आ!” यह न्यौता किन्हें दिया गया है?

• यह क्यों कहा जा सकता है कि ‘आने’ का न्यौता यहोवा की तरफ से है?

• न्यौता देने में पवित्र शक्‍ति की क्या भूमिका है?

• हमें क्यों नियमित तौर पर प्रचार करने के लिए मेहनत करनी चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर चार्ट/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

कहते रहिए, “आ!”

1914

5,100 प्रचारक

1918

फिरदौस बनी धरती पर बहुत-से लोग जीवन पाएँगे

1922

“राजा और उसके राज की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो”

1929

बचे हुए वफादार अभिषिक्‍त जन कहते हैं “आ!”

1932

“आ!” यह न्यौता देने का काम अभिषिक्‍त जनों के अलावा दूसरों को भी दिया गया

1934

यहोनादाब वर्ग को प्रचार करने का न्यौता दिया गया

1935

“बड़ी भीड़” की पहचान साफ हो गयी

2009

73,13,173 प्रचारक