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पाठकों के प्रश्‍न

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किन हालात में शायद एक मसीही फिर से बपतिस्मा लेने की सोचे?

कुछ ऐसे हालात हो सकते हैं जिनमें एक बपतिस्मा-शुदा व्यक्‍ति यह जाँचना चाहे कि क्या यहोवा उसके बपतिस्मे को कबूल करता है या उसे फिर से बपतिस्मा लेना होगा? ऐसे ही एक हालात की मिसाल लीजिए। एक व्यक्‍ति शायद अपने बपतिस्मे के वक्‍त चोरी-छिपे कुछ ऐसा काम कर रहा था या ऐसी ज़िंदगी जी रहा था कि अगर वह बपतिस्मा-शुदा होता, तो उसे बहिष्कृत किया जाता। क्या ऐसे में यहोवा को किया उसका समर्पण सच्चा होता? जी नहीं, वह तभी सच्चा होता अगर वह गलत काम करना छोड़ देता। इसलिए जो व्यक्‍ति ऐसे हालात में बपतिस्मा लेता है, उसे शायद फिर से बपतिस्मा लेने के बारे में सोचना हो।

अब एक दूसरे हालात पर गौर कीजिए। एक व्यक्‍ति ने अपने बपतिस्मे के वक्‍त कोई पाप नहीं किया। लेकिन बाद में वह पाप करता है जिस वजह से न्यायिक समिति बिठायी जाती है। ऐसे में अगर वह कहे कि बपतिस्मे के समय उसे पूरी समझ नहीं थी कि वह क्या कर रहा है और इसलिए वह अपने बपतिस्मे को बपतिस्मा नहीं मानता, तब क्या? जब प्राचीनों की उस गुनहगार के साथ बैठक होती है, तो उन्हें न तो उसके बपतिस्मे पर कोई सवाल खड़ा करना चाहिए न ही उससे पूछना चाहिए कि वह अपने समर्पण और बपतिस्मे को जायज़ मानता है या नहीं। क्यों? क्योंकि उस व्यक्‍ति ने बपतिस्मे से पहले बाइबल पर आधारित एक भाषण सुना था, जिसमें बपतिस्मे की अहमियत के बारे में समझाया गया था। उसने समर्पण और बपतिस्मे के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब हाँ में दिया था। फिर वह खुद बपतिस्मे की जगह पर गया और उसे पानी में डुबोकर बपतिस्मा दिया गया। इसलिए यह मानने की हमारे पास हर वजह है कि उसने जो कदम उठाया, उसकी गंभीरता वह बखूबी समझता था। इस बिनाह पर प्राचीन उसे बपतिस्मा-शुदा भाई मानकर उसके साथ वैसे ही पेश आएँगे।

अगर वह व्यक्‍ति अपने बपतिस्मे को जायज़ नहीं मानता, तो प्राचीन उसका ध्यान प्रहरीदुर्ग पत्रिका (अँग्रेज़ी) के इन लेखों की तरफ दिला सकते हैं: 1 मार्च, 1960, पेज 159-60 और 15 फरवरी, 1964, पेज 123-26. इन लेखों में दोबारा बपतिस्मा लेने के मामले पर खुलकर चर्चा की गयी है। लेकिन आखिरकार एक व्यक्‍ति को (कुछ हालात में जैसे, बपतिस्मे के वक्‍त बाइबल की अच्छी समझ न होने पर) फिर से बपतिस्मा लेना है या नहीं, यह उसका निजी फैसला होना चाहिए।

अगर मसीही एक ही घर में कई लोगों के साथ रहते हैं, तो उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

हर किसी को रहने के लिए एक जगह की ज़रूरत होती है। लेकिन आज बहुत-से लोगों के पास अपना घर नहीं है। हो सकता है, माली हालत, सेहत या किसी और वजह से वे अपने परिवार और कई रिश्‍तेदारों के साथ एक ही छत के नीचे रहें। दुनिया के कुछ देशों में ऐसे परिवार शायद एक ही कमरे में रहें और इसलिए उन्हें एकांत के दो पल मिलने की गुंजाइश ही न हो।

एक ही घर में कई लोगों के साथ रहना सही है या नहीं, इस बारे में यहोवा का संगठन नियम-कानून नहीं बनाता। लेकिन मसीहियों को बढ़ावा दिया जाता है कि वे बाइबल सिद्धांतों की मदद से यह देखें कि वे जिन हालात और जिन लोगों के साथ रह रहे हैं, उससे यहोवा खुश होगा या नहीं। ऐसे कुछ सिद्धांत क्या हैं?

सबसे पहले हमें सोचना होगा कि दूसरों के साथ रहने से हम पर और परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते पर क्या असर होगा। जिनके साथ हम रहते हैं वे किस तरह के लोग हैं? क्या वे यहोवा की उपासना करते हैं? क्या वे बाइबल के स्तरों पर चलते हैं? प्रेषित पौलुस ने लिखा: “धोखा न खाओ। बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।”—1 कुरिं. 15:33.

बाइबल समझाती है कि यहोवा, व्यभिचार और शादी के बाहर यौन-संबंध रखने की कड़ी निंदा करता है। (इब्रा. 13:4) इससे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा को यह बिलकुल नहीं भाता कि कुँवारे लोग पति-पत्नी की तरह एक ही कमरे में रहें। एक मसीही ऐसी जगह हरगिज़ नहीं रहना चाहेगा जहाँ अनैतिकता पर कोई रोक-टोक नहीं होती।

इसके अलावा, जो लोग परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना चाहते हैं, उन्हें बाइबल उकसाती है: “व्यभिचार से दूर भागो।” (1 कुरिं. 6:18) इसलिए मसीहियों के लिए यह बुद्धिमानी होगी कि वे साथ रहने के ऐसे इंतज़ाम से दूर रहें, जो उन्हें अनैतिक कामों के लिए लुभा सकता है। मान लीजिए, एक ही घर में बहुत-से मसीही रहते हैं। एक दिन अचानक दो कुँवारे मसीही खुद को घर में अकेला पाते हैं क्योंकि बाकी लोग बाहर गए हुए हैं। ऐसे में क्या उनके कदम बहक नहीं सकते? उसी तरह, अगर दो अविवाहित लोग एक-दूसरे को पसंद करते हैं, तो उनका एक ही घर में रहना खतरे से खाली नहीं। समझदारी इसी में है कि वे खुद को ऐसे हालात से कोसों दूर रखें।

उसी तरह, जब पति-पत्नी तलाक लेते हैं तो उसके बाद उनका एक ही घर में रहना मुनासिब नहीं होगा। क्योंकि एक-दूसरे के साथ लैंगिक संबंध रखने के आदी होने की वजह से वे आसानी से अनैतिकता में फँस सकते हैं।—नीति. 22:3.

आखिरी मगर अहम बात पर ध्यान देना भी ज़रूरी है। वह यह कि एक व्यक्‍ति के फैसले को समाज किस नज़र से देखता है। रहने का जो इंतज़ाम एक मसीही को सही लग सकता है, अगर बिरादरी में उस बारे में उलटी-सीधी बात होती है, तो उसे नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं होगा। हम हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि हमारे चालचलन से यहोवा के नाम की बदनामी हो। पौलुस ने कहा: “तुम यहूदियों और यूनानियों के लिए, साथ ही परमेश्‍वर की मंडली के लिए पाप में गिरने की वजह मत बनो, ठीक जैसे मैं भी सब बातों में सब लोगों को खुश कर रहा हूँ और अपने फायदे की नहीं, बल्कि बहुतों के फायदे की खोज में रहता हूँ ताकि वे उद्धार पा सकें।”—1 कुरिं. 10:32, 33.

जो मसीही यहोवा के नेक स्तरों पर चलना चाहते हैं, उनके लिए रहने की सही जगह ढूँढ़ना सचमुच एक चुनौती हो सकती है। लेकिन मसीहियों को यह ‘जाँचना और पक्का करते रहना चाहिए कि प्रभु को क्या भाता है।’ उन्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उनके घरों में कोई शर्मनाक काम न हो रहा हो। (इफि. 5:5, 10) इसके लिए उन्हें परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें एक-दूसरे को बुराई से बचाने और यहोवा का अच्छा नाम बनाए रखने की भरसक कोशिश करनी चाहिए।