बपतिस्मा लें—पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से
बपतिस्मा लें—पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से
“इसलिए जाओ और . . . लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो।”—मत्ती 28:19.
1, 2. (क) ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में क्या हुआ था? (ख) किस बात ने कई लोगों को बपतिस्मा लेने के लिए उभारा?
यरूशलेम शहर में कई देशों से लोग आए हुए थे। इस भीड़ की वजह से शहर में काफी चहल-पहल थी। ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के दिन एक खास त्योहार मनाया जा रहा था और कई मेहमान इसमें हिस्सा ले रहे थे। मगर तभी वहाँ एक अनोखी घटना घटी जिसके बाद प्रेषित पतरस ने एक दमदार भाषण दिया। उसकी बातों का लोगों पर इतना गहरा असर हुआ कि करीब 3,000 यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने पश्चाताप किया और पानी में बपतिस्मा लिया। इस तरह वे उस मसीही मंडली का हिस्सा बन गए जो अभी-अभी बनायी गयी थी। (प्रेषि. 2:41) यरूशलेम के तालाबों और जल-कुंडों में इतनी भारी तादाद में लोगों के बपतिस्मा लेने से चारों तरफ काफी हलचल मच गयी होगी!
2 ऐसा क्या हुआ था जिससे इतने सारे लोगों ने बपतिस्मा लिया? उस दिन सुबह यीशु के करीब 120 चेले एक घर की ऊपरी कोठरी में इकट्ठा थे। तभी “आकाश से साँय-साँय करती तेज़ आँधी जैसी आवाज़ हुई” और वे सभी चेले पवित्र शक्ति से भर गए। इसके बाद, बहुत-से स्त्री-पुरुष इकट्ठा हो गए जो परमेश्वर के भक्त थे और जब उन्होंने उन चेलों को ‘अलग-अलग भाषाएँ बोलते’ सुना तो ताज्जुब करने लगे। यीशु की मौत के बारे में पतरस की चुभनेवाली बातें सुनकर कई लोगों का “दिल उन्हें बेहद कचोटने लगा।” अब उन्हें क्या करना था? पतरस ने उन्हें बताया: “पश्चाताप करो, और तुममें से हरेक . . . यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले और तब तुम पवित्र शक्ति का मुफ्त वरदान पाओगे।”—प्रेषि. 2:1-4, 36-38.
3. पिन्तेकुस्त के दिन, पश्चाताप करनेवाले यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों को क्या करने की ज़रूरत थी?
3 याद कीजिए कि जिन यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने पतरस की बात सुनी थी उनके धार्मिक विश्वास क्या थे। वे यहोवा को अपना परमेश्वर मानते थे। और इब्रानी शास्त्र से उन्होंने पवित्र शक्ति के बारे में सीखा था कि यह परमेश्वर की सक्रिय शक्ति है जिसका इस्तेमाल उसने दुनिया की सृष्टि करते वक्त और बाद में भी किया था। (उत्प. 1:2; न्यायि. 14:5, 6; 1 शमू. 10:6; भज. 33:6) मगर उन्हें कुछ और भी सीखने की ज़रूरत थी। उनके लिए यह समझना और स्वीकार करना ज़रूरी था कि परमेश्वर ने मसीहा के रूप में यीशु को उनके उद्धार के लिए भेजा था। इसलिए पतरस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें “यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा” लेने की ज़रूरत है। पिन्तेकुस्त से कुछ दिन पहले, यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद पतरस और दूसरे चेलों को आज्ञा दी थी कि वे लोगों को “पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से” बपतिस्मा दें। (मत्ती 28:19, 20) पहली सदी में यीशु के ये शब्द गहरा मतलब रखते थे और आज भी इनका गहरा मतलब है। आइए देखें कि ये शब्द क्या मतलब रखते हैं।
पिता के नाम से
4. यहोवा के साथ रिश्ता कायम करने के मामले में क्या बदलाव हुआ?
4 जैसे पहले बताया गया है, जिन्होंने पतरस का भाषण सुनकर बपतिस्मा लिया था वे यहोवा की उपासना करनेवाले लोग थे और उसके साथ उनका एक रिश्ता था। वे उसके कानून में दी आज्ञाओं को मानने की कोशिश कर रहे थे। यही वजह है कि उनमें से जो दूसरे देशों में रहते थे वे यरूशलेम आए। (प्रेषि. 2:5-11) मगर परमेश्वर ने हाल ही में इंसानों के साथ व्यवहार करने के तरीके में एक बड़ा बदलाव किया था। उसने यहूदियों को ठुकरा दिया जो अब तक उसके खास लोग थे। इसलिए परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए इसराएलियों को दिया गया कानून मानना अब कोई मायने नहीं रखता था। (मत्ती 21:43; कुलु. 2:14) पतरस का भाषण सुननेवाले अगर यहोवा के साथ अपना रिश्ता कायम रखना चाहते तो उन्हें किसी और बात की ज़रूरत थी।
5, 6. परमेश्वर के साथ रिश्ता कायम करने के लिए, पहली सदी में बहुत-से यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों ने क्या किया?
5 यह तो तय था कि उन्हें अपने जीवनदाता यहोवा की ही उपासना करनी थी। (प्रेषि. 4:24) पतरस ने अपने भाषण में जो समझाया उसके मुताबिक कदम उठानेवाले अब इस बात का सबसे बड़ा सबूत देख सकते थे कि यहोवा उनका भला चाहनेवाला पिता है। उसने उनके छुटकारे के लिए मसीहा को भेजा और वह उन लोगों को भी माफ करने के लिए तैयार था जिनसे पतरस ने कहा: “इसराएल का सारा घराना हर हाल में यह जान ले कि परमेश्वर ने इसी यीशु को प्रभु और मसीह दोनों ठहराया है, जिसे तुमने सूली पर चढ़ाकर मार डाला।” पतरस की बात पर अमल करनेवाले अब देख सकते थे कि पिता यहोवा ने उन सबकी खातिर क्या किया है जो उसके साथ रिश्ता कायम करना चाहते हैं। इसलिए अब उनके पास पिता का एहसान मानने की और भी बड़ी वजह थी!—प्रेषितों 2:30-36 पढ़िए।
6 वाकई वे यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले अब समझ सकते थे कि यहोवा के साथ अपना रिश्ता कायम रखने के लिए यह स्वीकार करना ज़रूरी था कि यहोवा ने यीशु के ज़रिए उनके उद्धार का इंतज़ाम किया है। यही वजह है कि उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप किया, जिनमें से एक पाप यह था कि चाहे जानबूझकर या अनजाने में, वे यीशु को मार डालने के कसूरवार थे। और यह बात भी समझ में आती है कि पिन्तेकुस्त के बाद के दिनों में वे क्यों “एक मन से प्रेषितों से शिक्षा पाने में लगे रहे।” (प्रेषि. 2:42) अब उनके लिए ‘परमेश्वर की महा-कृपा की राजगद्दी के सामने, बेझिझक बोलने की हिम्मत के साथ जाना’ न सिर्फ मुमकिन था बल्कि वे दिल से यही चाहते थे।—इब्रा. 4:16.
7. आज किस तरह बहुतों ने परमेश्वर के बारे में अपनी सोच बदली है और पिता के नाम से बपतिस्मा लिया है?
7 आज अलग-अलग धर्म, भाषा और संस्कृति के लाखों लोगों ने बाइबल से यहोवा के बारे में सच्चाई सीखी है। (यशा. 2:2, 3) इनमें से कुछ पहले नास्तिक थे और कुछ देववादी थे जो परमेश्वर के वजूद पर यकीन तो करते थे मगर यह मानते थे कि उसे अपनी सृष्टि में कोई दिलचस्पी नहीं है। मगर अब उन्हें यकीन हो गया है कि इस दुनिया को बनानेवाला एक सिरजनहार है और वे उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम कर सकते हैं। दूसरे त्रियेक देवता की या तरह-तरह की मूर्तियों की पूजा करते थे। मगर उन्होंने सीखा कि सिर्फ यहोवा ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और अब वे उसका नाम लेकर उसे पुकारते हैं। यह बात यीशु की बतायी इस सच्चाई से मेल खाती है कि उसके चेलों को पिता के नाम से बपतिस्मा लेना चाहिए।
8. जो आदम से मिले पाप के बारे में नहीं जानते, उन्हें पिता के बारे में क्या समझने की ज़रूरत है?
8 उन्होंने यह भी सीखा है कि उन्हें आदम से विरासत में पाप मिला है। (रोमि. 5:12) यह उनके लिए एक नयी बात थी जो उन्हें स्वीकार करनी पड़ी। उनकी तुलना एक ऐसे बीमार आदमी से की जा सकती है जिसे अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं है। हो सकता है उसमें रोग के कुछ लक्षण हों, जैसे कभी-कभी उसे दर्द होता हो। लेकिन बीमारी का सही-सही पता न लगने की वजह से वह शायद सोचता हो कि वह सेहतमंद है। लेकिन सच्चाई कुछ और है। (1 कुरिंथियों 4:4 से तुलना कीजिए।) अगर उसकी बीमारी का सही-सही पता लग जाए तो उसे क्या करना चाहिए? क्या यह अक्लमंदी नहीं होगी कि वह ऐसा इलाज करवाए जो जाना-माना है, जिसके कामयाब होने के पक्के सबूत हैं और जो असरदार है? उसी तरह, आदम से विरासत में मिले पाप के बारे में सीखने पर बहुतों ने बाइबल की मदद से इस “बीमारी का पता” लगाया है और यह समझ पाए हैं कि इसका “इलाज” परमेश्वर के हाथ में है। जी हाँ, जितने लोग पिता से दूर हैं उन्हें परमेश्वर के पास जाने की ज़रूरत है जो उनका “इलाज” कर सकता है।—इफि. 4:17-19.
9. यहोवा के साथ हम एक रिश्ता कायम कर सकें, इसके लिए उसने क्या किया?
9 अगर आपने अपनी ज़िंदगी यहोवा परमेश्वर को समर्पित की है और बपतिस्मा पाकर मसीही बन चुके हैं, तो आप जानते हैं कि उसके साथ एक रिश्ता होना कितनी बड़ी आशीष है। अब आप इस बात की कदर कर सकते हैं कि आपका पिता यहोवा आपसे कितना प्यार करता है। (रोमियों 5:8 पढ़िए।) हालाँकि आदम और हव्वा ने परमेश्वर के खिलाफ पाप किया था, फिर भी उसने खुद अपनी तरफ से एक ऐसा इंतज़ाम किया जिससे उनके बच्चे, जिनमें हम भी शामिल हैं, उसके साथ एक अच्छा रिश्ता कायम कर सकें। इसके लिए, परमेश्वर को अपने प्यारे बेटे को तड़प-तड़पकर मरते देखने का दर्द सहना पड़ा। क्या यह जानकर हमारा दिल नहीं करता कि हम परमेश्वर के अधिकार को मानें और प्यार की खातिर उसकी आज्ञाओं पर चलें? अगर आपने अब तक अपनी ज़िंदगी परमेश्वर को समर्पित नहीं की है और बपतिस्मा नहीं लिया है, तो ये कदम उठाने के लिए आपके पास ठोस कारण हैं।
बेटे के नाम से
10, 11. (क) आप यीशु के कितने एहसानमंद हैं? (ख) यीशु ने अपनी जान देकर फिरौती की कीमत चुकायी, इसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
10 एक बार फिर गौर कीजिए कि पतरस ने भीड़ से क्या कहा। उसने यीशु को स्वीकार करने की बात पर ज़ोर दिया और इस बात का ‘बेटे के नाम से बपतिस्मा’ लेने से सीधा ताल्लुक है। ऐसा करना उस वक्त ज़रूरी क्यों था और आज भी यह ज़रूरी क्यों है? यीशु को स्वीकार करने और उसके नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब है, इस बात को समझना कि अपने सिरजनहार के साथ एक रिश्ता बनाए रखने में यीशु कैसे हमारी मदद करता है। यीशु का यातना की सूली पर चढ़ाया जाना ज़रूरी था ताकि यहूदी जिस कानून का पालन न कर सके उसका शाप उन पर से मिट जाए। मगर उसकी मौत सिर्फ शाप मिटाने के काम नहीं आयी, बल्कि इसका और भी बड़ा फायदा हुआ। (गला. 3:13) यीशु ने अपनी जान देकर सभी इंसानों के लिए फिरौती बलिदान दिया जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत थी। (इफि. 2:15, 16; कुलु. 1:20; 1 यूह. 2:1, 2) इसके लिए यीशु ने नाइंसाफी, लोगों की नफरत, यातना और आखिरकार मौत भी सह ली। आप यीशु के बलिदान की किस हद तक कदर करते हैं? मान लीजिए कि आप 12 साल के एक लड़के हैं और आप टाइटैनिक जहाज़ पर सफर कर रहे हैं। जहाज़ समुद्र में बर्फ की एक चट्टान से टकराता है और डूबने लगता है। आप अपनी जान बचाने के लिए एक लाइफबोट में कूदने की कोशिश करते हैं, मगर वह बोट पहले ही लोगों से भर चुकी है। तभी लाइफबोट में एक आदमी अपनी पत्नी को चूमता है, कूदकर जहाज़ पर आता है और आपको उठाकर उस लाइफबोट में डाल देता है। तब आपको कैसा लगेगा? आप ज़रूर उस आदमी के एहसानमंद होंगे। सन् 1912 में जब टाइटैनिक जहाज़ डूबा था तब वाकई एक लड़के के साथ ऐसा हुआ और आप समझ सकते हैं कि उस लड़के ने कैसा महसूस किया होगा। * वह लड़का उस आदमी का कितना एहसानमंद रहा होगा! लेकिन यीशु ने तो आप पर और भी बड़ा एहसान किया है। उसने अपनी जान देकर आपके लिए हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन किया है।
11 परमेश्वर के बेटे यीशु ने आपकी खातिर जो किया है, उसके बारे में जब आपने सीखा तो आपको कैसा लगा? (2 कुरिंथियों 5:14, 15 पढ़िए।) आपका दिल यीशु के लिए एहसान से भर गया होगा। इसलिए आपके दिल ने आपको उकसाया कि आप अपनी ज़िंदगी परमेश्वर को समर्पित करें और ‘अब से खुद के लिए न जीएँ, बल्कि उसके लिए जीएँ जो आपके लिए मरा।’ ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब है, यीशु ने आपके लिए जो किया है उसे मानना और “जीवन दिलानेवाले खास नुमाइंदे” के रूप में उसके अधिकार को स्वीकार करना। (प्रेषि. 3:15; 5:31) एक वक्त था जब आपका सिरजनहार के साथ कोई रिश्ता नहीं था और भविष्य के लिए सही मायनों में आपको कोई आशा नहीं थी। लेकिन यीशु मसीह के बहाए लहू पर विश्वास दिखाने और बपतिस्मा लेने की वजह से अब आपने पिता यहोवा के साथ एक रिश्ता कायम किया है। (इफि. 2:12, 13) प्रेषित पौलुस ने लिखा: “तुम जो एक वक्त परमेश्वर के दुश्मन थे और उससे दूर थे, क्योंकि तुम्हारे मन दुष्ट कामों में लगे हुए थे, परमेश्वर ने तुम्हारे साथ [यीशु] के इंसानी शरीर की मौत के ज़रिए सुलह की है, ताकि तुम्हें पवित्र, बेदाग . . . पेश कर सके।”—कुलु. 1:21, 22.
12, 13. (क) अगर कोई आपको ठेस पहुँचाता है, तो ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने की वजह से आपको ऐसे में क्या करना चाहिए? (ख) यीशु के नाम से बपतिस्मा पाए हुए मसीही होने के नाते आपका क्या फर्ज़ बनता है?
12 ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने के बावजूद, आपको हर वक्त एहसास रहता है कि आपका रुझान पाप की तरफ है। हर दिन इस एहसास के साथ जीना दरअसल हमारे लिए अच्छा है। मिसाल के लिए, अगर कोई आपको ठेस पहुँचाता है तो क्या आप याद रखते हैं कि आप दोनों ही पापी हैं? आप दोनों को परमेश्वर से माफी की ज़रूरत है और आप दोनों को एक-दूसरे को माफ करना चाहिए। (मर. 11:25) इस ज़रूरत पर ज़ोर देने के लिए यीशु ने यह मिसाल दी: एक दास पर छः करोड़ दीनार का कर्ज़ था। मगर मालिक ने उसका कर्ज़ माफ कर दिया। बाद में, उस दास ने अपने एक संगी दास का कर्ज़ माफ नहीं किया जिसने उससे सिर्फ सौ दीनार उधार लिए थे। यीशु ने इस मिसाल से यह सबक समझाया: जो अपने भाई को माफ नहीं करता, उसे यहोवा भी माफ नहीं करेगा। (मत्ती 18:23-35) जी हाँ, ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब है यीशु के अधिकार को स्वीकार करना और उसकी मिसाल और शिक्षाओं पर चलने की कोशिश करना, जिनमें से एक शिक्षा यह है कि हमें दूसरों को माफ करने के लिए तैयार होना चाहिए।—1 पत. 2:21; 1 यूह. 2:6.
13 यह सच है कि असिद्ध होने की वजह से आप यीशु की मिसाल पर पूरी तरह नहीं चल पाते। मगर यह भी सच है कि आपने पूरे दिल से अपनी ज़िंदगी परमेश्वर को समर्पित की है, इसलिए आप चाहते हैं कि जहाँ तक आपसे बन पड़े आप यीशु की मिसाल पर चलें। इसमें यह भी शामिल है कि आप पुरानी शख्सियत को उतार फेंकने और नयी शख्सियत पहनने के लिए लगातार मेहनत करते रहें। (इफिसियों 4:20-24 पढ़िए।) जब आप किसी दोस्त की इज़्ज़त करते हैं तो आप ज़रूर उसकी मिसाल से सीखने और उसके जैसे अच्छे गुण पैदा करने की कोशिश करते हैं। उसी तरह, आप चाहेंगे कि आप मसीह से सीखें और उसकी मिसाल पर चलें।
14. आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप यीशु के इस अधिकार का आदर करते हैं कि वह स्वर्गीय राज का राजा है?
14 एक और तरीका है जिससे आप दिखा सकते हैं कि आपने ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब समझा है। “परमेश्वर ने सबकुछ [यीशु के] पैरों तले कर दिया और उसे सब चीज़ों पर मुखिया ठहराकर मंडली की खातिर दे दिया।” (इफि. 1:22) इसलिए यहोवा के समर्पित लोगों को यीशु जिस तरह निर्देशन देता है उसका आपको आदर करना चाहिए। हर मंडली में मसीह असिद्ध इंसानों को काम में लाता है। खास तौर पर यह बात ठहराए गए प्राचीनों पर लागू होती है जो आध्यात्मिक मायने में बुज़ुर्ग हैं। मसीह ने इन पुरुषों को इसलिए ठहराया है ‘ताकि पवित्र जनों का सुधार हो और मसीह का शरीर तरक्की करता जाए।’ (इफि. 4:11, 12) अगर एक असिद्ध इंसान कोई गलती करता भी है, तो यीशु जो स्वर्गीय राज का राजा है, वह उस मामले को अपने वक्त पर और अपने तरीके से सुधारने के काबिल है। क्या आप इस बात पर यकीन करते हैं?
15. अगर अभी तक आपका बपतिस्मा नहीं हुआ है, तो आप बपतिस्मा पाने के बाद कौन-सी आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं?
15 कुछ लोगों ने अभी तक अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित नहीं की है और बपतिस्मा नहीं लिया है। अगर आप भी उनमें से एक हैं तो ऊपर जो बताया गया है उससे क्या आप समझ पाए हैं कि ‘बेटे’ यानी यीशु का आदर करना न सिर्फ सही है बल्कि ऐसा करना दिखाएगा कि आप उसके एहसानमंद भी हैं? ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने से आप शानदार आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं।—यूहन्ना 10:9-11 पढ़िए।
पवित्र शक्ति के नाम से
16, 17. पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा पाना आपके लिए क्या मायने रखता है?
16 पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेने का क्या मतलब है? जैसे पहले बताया गया है, पिन्तेकुस्त के दिन पतरस का भाषण सुननेवाले पवित्र शक्ति के बारे में जानते थे। दरअसल उन्होंने खुद अपनी आँखों से इस बात का सबूत देखा था कि परमेश्वर अपनी पवित्र शक्ति का अब भी इस्तेमाल कर रहा था। पतरस उन लोगों में से एक था जो “पवित्र शक्ति से भर गए और . . . अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे।” (प्रेषि. 2:4, 8) पवित्र शक्ति “के नाम से” का मतलब ज़रूरी नहीं कि यहाँ किसी शख्स के नाम की बात की जा रही है। आज “सरकार के नाम से” कई काम किए जाते हैं जबकि सरकार कोई शख्स नहीं है। ये काम सरकार के अधिकार से किए जाते हैं। उसी तरह, पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेनेवाला यह स्वीकार करता है कि पवित्र शक्ति कोई शख्स नहीं बल्कि यहोवा की सक्रिय शक्ति है। और ऐसे बपतिस्मे का मतलब है कि वह शख्स, परमेश्वर के मकसद में पवित्र शक्ति की भूमिका को समझता है।
17 आपने भी जब बाइबल का अध्ययन किया, तो पवित्र शक्ति के बारे में सीखा। मिसाल के लिए, आपने यह सीखा कि बाइबल पवित्र शक्ति की प्रेरणा से लिखी गयी थी। (2 तीमु. 3:16) जैसे-जैसे आप परमेश्वर के ज्ञान में बढ़ते गए, आप इस बात को और अच्छी तरह समझ पाए होंगे कि ‘स्वर्ग में रहनेवाला पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति देता है’ जिनमें आप भी शामिल हैं। (लूका 11:13) आपने शायद देखा होगा कि पवित्र शक्ति आपकी ज़िंदगी पर असर कर रही है। लेकिन अगर अभी तक आपने पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा नहीं लिया है तो यीशु का यह वादा आपके लिए क्या मायने रखता है कि पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति देता है? यही कि जब आप पवित्र शक्ति पाएँगे तो आगे चलकर आपको बड़ी आशीषें मिलेंगी।
18. पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेनेवालों को क्या आशीषें मिलती हैं?
18 आज भी यह साफ देखा जा सकता है कि यहोवा अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए मसीही मंडली को मार्गदर्शन देता है और चलाता है। यह शक्ति हम में से हरेक को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी मदद देती है। पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब है, इस बात को समझना कि हमारी ज़िंदगी में पवित्र शक्ति कैसे काम करती है और एहसानमंद होकर उसके मार्गदर्शन पर चलना। लेकिन कुछ लोग शायद सोचें कि यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने के बाद हम इस समर्पण के मुताबिक कैसे जी सकते हैं और इसमें पवित्र शक्ति कैसे हमारी मदद करती है। इस बारे में हम अगले लेख में देखेंगे।
[फुटनोट]
^ अक्टूबर 22, 1981 की सजग होइए (अँग्रेज़ी) के पेज 3-8 देखिए।
क्या आपको याद है?
• पिता के नाम से बपतिस्मा लेना आपके लिए क्या मायने रखता है?
• ‘बेटे’ के नाम से बपतिस्मा लेने का क्या मतलब है?
• आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप पिता और बेटे के नाम से बपतिस्मा लेने का मतलब समझते हैं?
• पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा लेने का क्या मतलब है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 10 पर तसवीरें]
ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त के बाद, नए चेलों का पिता के साथ कैसा रिश्ता कायम हुआ?
[चित्र का श्रेय]
By permission of the Israel Museum, Jerusalem