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मुश्‍किलों से गुज़रते वक्‍त यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ा है!

मुश्‍किलों से गुज़रते वक्‍त यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ा है!

मुश्‍किलों से गुज़रते वक्‍त यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ा है!

आडा डेलो स्ट्रीटो की ज़ुबानी

मैंने अभी-अभी दिन का वचन अपनी नोटबुक में लिखना खत्म किया है। मैं 36 साल का हूँ, फिर भी उन चंद लाइनों को लिखने में मुझे 2 घंटे लग गए। क्या आप इसकी वजह जानना चाहेंगे? मेरी माँ आपको समझाएगी।—जोएल

सन्‌ 1968 में मैंने और मेरे पति लूईजी ने बपतिस्मा लिया और यहोवा के साक्षी बन गए। हमारे पहले दो बेटे, डेविड और मार्क स्वस्थ पैदा हुए। उसके बाद, सन्‌ 1973 में हमारे तीसरे बेटे जोएल का जन्म हुआ। वह बेलजियम के बेंश शहर के एक अस्पताल में पैदा हुआ था। बेंश, ब्रूसेल्स शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर दक्षिण की तरफ है। जोएल समय से पहले पैदा हुआ था, इसलिए जन्म के वक्‍त उसका वज़न सिर्फ 1.7 किलो था। मुझे तो अस्पताल से छुट्टी मिल गयी, मगर जोएल को कुछ और दिनों के लिए अस्पताल में रहना पड़ा ताकि उसका वज़न बढ़ सके।

कुछ हफ्ते बाद जब हमारे बेटे जोएल की सेहत में कोई सुधार नहीं आया, तब हम उसे एक बाल-चिकित्सक के पास ले गए। जोएल की जाँच-पड़ताल के बाद डॉक्टर ने कहा: “मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जोएल को वो सारी परेशानियाँ हैं, जो उसके भाइयों को नहीं हैं।” हमारे बीच एक अजब खामोशी छा गयी। उसी पल मुझे एहसास हो गया कि हमारे मुन्‍ने को ज़रूर कोई गंभीर बीमारी है। फिर डॉक्टर ने मेरे पति को अलग ले जाकर कहा: “तुम्हारे बच्चे को ट्राइसोमी 21 है।” इस बीमारी को डाउन सिंड्रोम भी कहा जाता है। *

डॉक्टर की बात सुनकर हम बहुत दुखी हुए। हमने फैसला किया कि हम अपने बेटे को दूसरे डॉक्टर को दिखाएँगे। दूसरे डॉक्टर ने करीब एक घंटे तक बिना कुछ बोले जोएल की बारीकी से जाँच की। उस दौरान, लूईजी और मेरे लिए एक-एक मिनट घंटों के बराबर बीत रहा था। आखिरकार, डॉक्टर ने हमसे कहा: “आपका बच्चा पूरी तरह आप पर निर्भर रहेगा।” फिर उसने स्नेह-भरी आवाज़ में कहा, “पर जोएल खुश रहेगा, क्योंकि उसके मम्मी-पापा उस पर जान छिड़कते हैं!” यह सुनकर मेरी ममता उमड़ आयी। मैंने बड़े ध्यान से उसे अपनी गोद में उठाया और हम उसे वापस घर ले आए। उस समय तक वह आठ हफ्ते का हो चुका था।

मसीही सभाओं और प्रचार काम से हमारी हिम्मत बढ़ी

जोएल की और भी डॉक्टरी जाँच की गयी, जिससे पता चला कि उसका दिल कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया है और उसे गंभीर तरह की रिकिट्‌स बीमारी (हड्डियों का टेढ़ापन) भी है। उसका दिल बड़ा होने की वजह से उसके फेफड़े दब रहे थे और इस वजह से उसे संक्रमण होने का ज़्यादा खतरा था। कुछ ही समय बाद जब वह चार महीने का हुआ, तो उसे ब्रोंकियल निमोनिया हो गया। इसलिए उसे दोबारा अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इस बार उसे एक अलग कमरे में रखा गया। जोएल को छटपटाता देख हमारा दिल छलनी हो जाता था। हम बस यही सोचते कि काश! हम उसे अपनी गोद में उठाकर उसे सहला पाते। मगर उसे उठाना तो दूर हमें अगले 10 हफ्तों के लिए उसे छूने तक की इजाज़त नहीं थी। उस दौरान हम कितने बेबस थे! हम उसे सिर्फ तड़पता देख सकते थे और उसके लिए प्रार्थना कर सकते थे, बस!

मगर उस दर्दनाक दौर में भी हमने अपने बड़े बेटों के साथ मंडली की सभाओं में जाना नहीं छोड़ा। उस समय डेविड 6 साल का और मार्क 3 साल का था। राज्य घर में जाना ऐसा था मानो परमेश्‍वर की बाहों में जाना, जो हमारी बहुत परवाह करता है। वहाँ मसीही भाई-बहनों से घिरे रहने से हमें ऐसा लगता था कि हम अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल सकते हैं। इसके बाद, हमें मन का बड़ा सुकून मिलता। (भज. 55:22) यहाँ तक कि जो-जो नर्सें जोएल की देखभाल कर रही थीं, उन्होंने भी गौर किया कि कैसे मसीही सभाओं में जाने से हम मायूसी के सागर में डूबने से बचे हैं।

उस दौरान, मैंने यहोवा से यह भी बिनती की कि वह मुझे प्रचार में जाने की ताकत दे। मैं नहीं चाहती थी कि घर में रहकर मैं अपना सारा दिन आँसू बहाकर बिता दूँ। बल्कि मैं लोगों से बात कर उन्हें यह बताना चाहती थी कि क्यों मुझे यहोवा के इस वादे पर पूरा यकीन है कि वह एक नयी दुनिया लाएगा, जहाँ बीमारी का नामो-निशान तक नहीं होगा। और यह भी कि इस वादे से कैसे मेरी हिम्मत बढ़ी है। हर बार जब मैं प्रचार में हिस्सा लेती, तो मुझे लगता कि यहोवा ने मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दिया है।

“ये तो कमाल हो गया!”

वह क्या ही खुशी का दिन था, जब हम जोएल को अस्पताल से वापस घर ले आए! मगर अगले ही दिन हमारी खुशी दुख में बदल गयी। जोएल की तबियत बिगड़ने लगी और हमें फौरन उसे फिर से अस्पताल ले जाना पड़ा। उसकी जाँच करने के बाद डॉक्टरों ने कहा: “जोएल के पास जीने के लिए सिर्फ छः महीने हैं।” दो महीने बाद जब वह आठ महीने का हुआ, तब उसकी हालत और खराब होती गयी। इससे हमें यही लगा कि डॉक्टरों की कही बात सच हो रही है। एक डॉक्टर ने हमें बिठाकर कहा: “हमें दुख है, इससे ज़्यादा हम और कुछ नहीं कर सकते। अब सिर्फ आपका परमेश्‍वर यहोवा ही कुछ कर सकता है।”

यह सुनकर मैं कटे पेड़-सी गिर पड़ी। मुझे ऐसा लगा मानो मेरे शरीर में ज़रा भी ताकत नहीं बची। फिर भी मैं वापस जोएल के कमरे में गयी और यह ठान लिया कि उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ूँगी। कई मसीही बहनें बारी-बारी से मेरे साथ अस्पताल में रहीं, क्योंकि लूईजी को हमारे दोनों बड़े बेटों की भी देखभाल करनी थी। इस तरह एक हफ्ता गुज़र गया। फिर एक दिन अचानक जोएल को दिल का दौरा पड़ा। नर्सें दौड़ी-दौड़ी उसके कमरे में आयीं, मगर वे कुछ न कर सकीं। कुछ मिनटों बाद, उनमें से एक नर्स ने धीमे से कहा, “सब खतम हो चुका है . . . ।” मेरी तो दुनिया ही उजड़ गयी! मैं फूट-फूटकर रोने लगी और कमरे से बाहर आ गयी। मैंने यहोवा से प्रार्थना करने की कोशिश की, पर अपना दर्द बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे। इस तरह कुछ 15 मिनट हुए थे कि तभी एक नर्स ने ज़ोर से कहा, “जोएल को होश आ रहा है!” उसने मुझे कसकर थामते हुए कहा, “खुद चलकर देख लो।” जब मैं जोएल के पास आयी, तो देखा कि उसका दिल फिर से धड़कने लगा है! जोएल के ठीक होने की खबर आग की तरह अस्पताल में फैल गयी। डॉक्टर और नर्सें उसे देखने आए और बहुतों ने कहा, “ये तो कमाल हो गया!”

चार साल की उम्र में तरक्की का पहला कदम

जोएल के शुरूआती सालों में डॉक्टर हमसे बार-बार कहता: “जोएल को खूब सारा प्यार देना।” अगर डॉक्टर यह न भी कहता, तब भी हम जोएल पर प्यार की बौछार करते और उसकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ते। क्योंकि खासकर उसके जन्म के बाद से हमने यहोवा के प्यार और परवाह को महसूस किया है। हमने अनगिनत मौकों पर जोएल के लिए प्यार दिखाया, क्योंकि वह हर चीज़ के लिए हम पर निर्भर था।

जोएल के पैदा होने के बाद, हर साल अक्टूबर और मार्च के बीच उस पर सेहत से जुड़ी एक-के-बाद-एक समस्या आती और हमें कई बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते। ऐसा जोएल की ज़िंदगी के पहले सात सालों के दौरान चलता रहा। इस बीच मैं अपने बड़े बेटों, डेविड और मार्क को भी ज़्यादा-से-ज़्यादा समय देने की पूरी कोशिश करती। नतीजा, उन्होंने भी जोएल को तरक्की करने में बड़ी मदद दी। और इसका इतना बढ़िया फल निकला कि हम हैरान रह गए। मिसाल के लिए, कई डॉक्टरों ने कहा था कि जोएल कभी चल नहीं पाएगा। पर जब वह चार साल का था, तब हमारे बड़े बेटे मार्क ने एक दिन कहा, “चलो जोएल, मम्मी को दिखा दो कि तुम कर सकते हो!” और जानते हैं, जोएल ने क्या किया? उसने अपने पहले कदम लिए! हमारी खुशी का पारावार न रहा और हमारे परिवार ने एक-साथ मिलकर यहोवा से प्रार्थना की और दिल से उसे शुक्रिया कहा। दूसरे मौकों पर भी जब जोएल छोटी-मोटी तरक्की करता, तो हम उसे प्यार से शाबाशी देते।

छुटपन से परमेश्‍वर के बारे में सिखाने की मेहनत रंग लायी

जब भी मुमकिन होता, हम जोएल को अपने साथ सभाओं के लिए राज्य घर ले जाते थे। उसे बीमारी लगने में देर नहीं लगती थी, इसलिए उसे कीटाणुओं से बचाने के लिए हम उसे खास बच्चे-गाड़ी में डालकर लाते थे। इस गाड़ी के ऊपर प्लास्टिक का पारदर्शी कवर होता था। हालाँकि जोएल को हर समय कवर के नीचे रहना पड़ता था, फिर भी मंडली के बीच रहने से उसे खुशी मिलती थी।

हमें अपने मसीही भाई-बहनों से बहुत हौसला मिला। उन्होंने कभी हमें प्यार की कमी महसूस नहीं होने दी और कारगर तरीकों से मदद भी दी। एक भाई अकसर हमें यशायाह 59:1 में दर्ज़ शब्द याद दिलाता: “सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके।” इन शब्दों से हमें बड़ा दिलासा मिला, साथ ही हमें यहोवा पर भरोसा रखने में भी मदद मिली।

जैसे-जैसे जोएल बड़ा होता गया, हमने कोशिश की कि यहोवा की सेवा करना उसकी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन जाए। हर मौके पर हम उससे यहोवा के बारे में इस तरह बात करते कि जोएल का स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा के साथ एक प्यार-भरा रिश्‍ता कायम हो सके। हम गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती करते कि वह हमारी मेहनत पर आशीष दे, ताकि जोएल को परमेश्‍वर के बारे में सिखाने में हम जो भी मेहनत कर रहे हैं, वह रंग लाए।

जब जोएल ने किशोरावस्था में कदम रखा, तब हमें यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि उसे दूसरों के साथ बाइबल की सच्चाइयाँ बाँटना बहुत अच्छा लगता है। चौदह साल की उम्र में उसका एक बड़ा ऑपरेशन हुआ। उसके बाद जब वह ठीक हो रहा था, तो उसने एक दिन मुझसे पूछा: “मम्मी क्या मैं डॉक्टर को सर्वदा जीवित रहना किताब दे सकता हूँ?” उसके मुँह से यह सुनकर मुझे बेहद खुशी हुई। कुछ साल बाद, जोएल का एक और ऑपरेशन किया गया। हम अच्छी तरह जानते थे कि इस बार शायद उसका बचना मुश्‍किल हो। ऑपरेशन से पहले जोएल ने डॉक्टरों को एक खत दिया, जो हमने साथ मिलकर तैयार किया था । उस खत में जोएल ने समझाया कि वह क्यों खून नहीं चढ़वाना चाहता। डॉक्टर ने जोएल से पूछा, “क्या तुम खुद यह मानते हो?” जोएल ने अटल विश्‍वास के साथ कहा: “जी हाँ, डॉक्टर।” हमें अपने बेटे पर नाज़ था कि उसे अपने सृष्टिकर्ता पर पूरा भरोसा है और उसने उसे खुश करने का मन बना लिया है। अस्पताल के लोगों ने हमारा पूरा-पूरा साथ दिया, जिसके लिए हम उनके बहुत ही एहसानमंद हैं।

जोएल की आध्यात्मिक तरक्की

जोएल ने 17 साल की उम्र में बपतिस्मा लेकर यहोवा को किया अपना समर्पण ज़ाहिर किया। वह हमारे लिए एक यादगार दिन था! उसे आध्यात्मिक तरक्की करता देख हमारी खुशी का कोई ठिकाना न रहा। तब से यहोवा के लिए उसका प्यार और सच्चाई के लिए उसका जोश कभी कम नहीं हुआ है। यही नहीं, जिससे भी वह मिलता है, यही कहता है: “सच्चाई ही मेरी ज़िंदगी है!”

जब जोएल करीब 17-19 साल का था, तब उसने पढ़ना-लिखना सीखा। इसके लिए उसे काफी मेहनत करनी पड़ी। एक छोटा-सा शब्द लिखना, उसके लिए किसी जीत से कम नहीं था। तब से वह हर दिन की शुरूआत रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए पुस्तिका से दिन का वचन पढ़कर करता। उसके बाद, वह वचन का एक-एक शब्द बड़े ध्यान से अपनी नोटबुक में लिखता। अब उसकी यह नोटबुक काफी भर गयी है!

जिस दिन सभा होती, उस दिन जोएल इस बात का पूरा ध्यान रखता कि हम समय से बहुत पहले ही राज्य घर पहुँच जाएँ, ताकि वह सभा में आनेवाले लोगों का गर्मजोशी के साथ स्वागत कर सके। उसे सभाओं में जवाब देना और प्रदर्शनों में भाग लेना पसंद है। उसे माइक्रोफोन सँभालना और दूसरे काम करना भी अच्छा लगता है। अगर उसकी तबियत ठीक रहती है, तो वह हर हफ्ते हमारे साथ प्रचार में आता है। सन्‌ 2007 में जोएल को सहायक सेवक ठहराया गया। इस बारे में जब मंडली में घोषणा की गयी, तो हमारी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े। यहोवा की यह क्या ही कृपा थी!

यहोवा का हाथ कभी छोटा नहीं है!

सन्‌ 1999 में हम पर एक और मुसीबत आयी। एक आदमी बड़ी लापरवाही से अपनी कार चला रहा था और उसने सीधे हमारी कार को टक्कर मारी। इस हादसे में लूईजी बुरी तरह घायल हो गए। उनका एक पैर कटवाना पड़ा और रीढ़ की हड्डी के कई ऑपरेशन किए गए। इस मुश्‍किल समय में हमने एक बार फिर यहोवा पर भरोसा रखा और हमने महसूस किया कि वह वाकई अपने सेवकों को ज़रूरत की घड़ी में ताकत देता है। (फिलि. 4:13) हालाँकि आज भी लूईजी अपंग हैं, फिर भी हम अपने हालात के बारे में सही नज़रिया बनाए रखने की कोशिश करते हैं। मिसाल के लिए, वे पहले जैसे काम नहीं कर सकते, इसलिए अब उनके पास जोएल की देखभाल करने का वक्‍त-ही-वक्‍त है। इस वजह से मैं निजी अध्ययन, सभाओं और प्रचार के लिए ज़्यादा समय दे पाती हूँ। साथ ही, लूईजी हमारे परिवार और मंडली की आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने पर ज़्यादा ध्यान दे पाते हैं। लूईजी आज भी मंडली में प्राचीनों के निकाय के संयोजक के तौर पर सेवा कर रहें हैं।

हमारे परिवार के हालात दूसरे परिवारों के हालात से बिलकुल अलग हैं, इसलिए हमारे परिवार में सभी एक-साथ ज़्यादा समय बीता पाते हैं। वक्‍त के गुज़रते हमने सीखा है कि हमें हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, बल्कि समझ से काम लेना चाहिए। जिस दिन हमारा मन उदास होता है, हम यहोवा के सामने अपना दिल खोलकर रख देते हैं। पर दुख की बात है कि जब हमारे बेटे डेविड और मार्क बड़े हुए और हमसे अलग रहने लगे, तो उन्होंने धीरे-धीरे यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया। मगर हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन वे यहोवा के पास लौट आएँगे।—लूका 15:17-24.

सालों के दौरान, हमने यहोवा का सहारा महसूस किया है और हर मुश्‍किल घड़ी में हमने उस पर पूरा भरोसा रखना सीखा है। यशायाह 41:13 में लिखे शब्द हमारे दिल के बेहद करीब हैं, जिसमें लिखा है: “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा।” यह जानकर कि यहोवा ने हमारा हाथ कसकर थामा है, दिल को कितनी तसल्ली मिलती है! सच, हम कह सकते हैं कि मुश्‍किलों से गुज़रते वक्‍त स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ा है!

[फुटनोट]

^ ट्राइसोमी 21 एक जन्मजात बीमारी है, जिस वजह से एक बच्चा मानसिक रूप से मंद होता है। आम तौर पर गुणसूत्र (क्रोमोसोम) जोड़ी में आते हैं, मगर जो बच्चा ट्राइसोमी बीमारी के साथ पैदा होता है, उसके गुणसूत्र की जोड़ियों में से एक जोड़ी में दो के बजाय तीन गुणसूत्र होते हैं। और ट्राइसोमी 21 के मामले में यह अधिक गुणसूत्र, क्रोमोसोम 21 में पाया जाता है।

[पेज 17 पर तसवीरें]

जोएल अपनी माँ आडा के साथ

[पेज 18 पर तसवीर]

आडा, जोएल और लूईजी

[पेज 19 पर तसवीर]

जोएल को राज्य घर में भाई-बहनों का स्वागत करने में बड़ी खुशी मिलती है