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अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करते रहिए

अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करते रहिए

अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करते रहिए

जब हम किसी बेहतरीन जिमनास्ट को कुशलता से एक-से-बढ़कर-एक कलाबाज़ियाँ करते देखते हैं, तो हमारी आँखें फटी रह जाती हैं! बाइबल मसीहियों को बढ़ावा देती है कि जिस तरह एक जिमनास्ट खुद को प्रशिक्षित करता है, उसी तरह हमें भी अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करना चाहिए।

प्रेषित पौलुस ने इब्रानियों को चिट्ठी में लिखा: “ठोस आहार तो बड़ों के लिए है, जो अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं।” (इब्रा. 5:14) पौलुस ने इब्रानी मसीहियों से यह क्यों कहा कि उन्हें अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करना चाहिए? हम यह कैसे कर सकते हैं?

“तुम्हें दूसरों को सिखाने के काबिल बन जाना चाहिए था”

जब पौलुस यह समझा रहा था कि यीशु को “मेल्कीसेदेक की तरह महायाजक होने के लिए ठहराया” गया है, तो उसने लिखा: “हमारे पास [यीशु] के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है मगर तुम्हें यह सब समझाना मुश्‍किल है, क्योंकि तुम्हारी सोचने-समझने की शक्‍ति मंद पड़ गयी है। दरअसल, वक्‍त के हिसाब से तो तुम्हें दूसरों को सिखाने के काबिल बन जाना चाहिए था, मगर अब यह ज़रूरी हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्‍वर के पवित्र वचनों की बुनियादी बातें शुरूआत से सिखाए और तुम उनकी तरह बन गए हो जिन्हें ठोस आहार नहीं बल्कि सिर्फ दूध चाहिए।”—इब्रा. 5:10-12.

इससे पता चलता है कि शायद पहली सदी के कुछ यहूदी मसीहियों ने अपनी समझ नहीं बढ़ायी थी और वे सच्चाई में तरक्की करने से चूक गए थे। मिसाल के लिए, मूसा के दिए कानून और खतना के बारे में जो समझ की रौशनी बढ़ रही थी, वे उसे कबूल नहीं कर पा रहे थे। (प्रेषि. 15:1, 2, 27-29; गला. 2:11-14; 6:12, 13) कुछ के लिए हर हफ्ते मनाए जानेवाला सब्त और सालाना प्रायश्‍चित दिन से जुड़े रस्मों-रिवाज़ छोड़ना मुश्‍किल हो रहा था। (कुलु. 2:16, 17; इब्रा. 9:1-14) इसलिए पौलुस ने उन्हें उकसाया कि वे अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करें ताकि सही-गलत में फर्क कर सकें और कहा कि वे “प्रौढ़ता के लक्ष्य तक बढ़ते जाएँ।” (इब्रा. 6:1, 2) उसकी इस सलाह ने कुछ लोगों को यह सोचने पर ज़रूर मजबूर किया होगा कि वे अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं और शायद उन्हें सच्चाई में तरक्की करने में मदद मिली होगी। क्या हम भी ऐसा ही करते हैं?

अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित कीजिए

तजुरबेकार मसीही बनने के लिए हमें अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए? पौलुस ने कहा, “इस्तेमाल करते-करते।” जैसे एक जिमनास्ट प्रशिक्षण के ज़रिए अपनी माँसपेशियों और शरीर को इस तरह ढालता है कि वह मुश्‍किल-से-मुश्‍किल कलाबाज़ियों को भी बड़ी खूबसूरती और आसानी से कर लेता है, वैसे ही हमें अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल सही-गलत के बीच फर्क करने के लिए करना चाहिए।

जॉन रैटी, हॉवर्ड मेडिकल स्कूल में मनोविज्ञान के प्रोफेसर हैं, वे कहते हैं: “आपका दिमाग अच्छी तरह से काम करता रहे इसका सबसे बढ़िया तरीका है इसकी कसरत।” जॉर्ज वॉशिंगटन विश्‍वविद्यालय के एजिंग, हेल्थ और ह्‍यूमैनिटीस केंद्र के निदेशक जीन कोहेन का कहना है, “जब हम अपने दिमाग पर ज़ोर डालते हैं तो हमारे दिमाग की कोशिकाएँ नए पार्श्‍वतंतु (तंत्रिका कोशिका से निकलनेवाले तंतु) बनाती हैं, जिससे और ज़्यादा सिनैप्सिस (तंत्रिका कोशिकाओं के बीच की कड़ियाँ) बनती हैं।”

इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम सोचने-समझने की अपनी शक्‍ति को प्रशिक्षित करें और परमेश्‍वर के वचन के ज्ञान में बढ़ते जाएँ। इस तरह हम ‘परमेश्‍वर की सिद्ध इच्छा’ और भी अच्छी तरह पूरी कर पाएँगे।—रोमि. 12:1, 2.

“ठोस आहार” के लिए अपनी इच्छा बढ़ाइए

अगर हम “प्रौढ़ता की ओर” बढ़ना चाहते हैं तो हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मैं बाइबल सच्चाई की समझ में तरक्की कर रहा हूँ? क्या दूसरे लोग मानते हैं कि मैं आध्यात्मिक तौर पर प्रौढ़ मसीही हूँ?’ जब बच्चा छोटा होता है तो माँ को उसे दूध पिलाने और हल्की खुराक देने में खुशी होती है। लेकिन कल्पना कीजिए अगर बड़े होने पर भी बच्चा ठोस आहार नहीं खाता, तो माँ को कितनी चिंता होगी। उसी तरह जब हम देखते हैं कि जिनके साथ हम बाइबल अध्ययन कर रहे हैं वे तरक्की करके समर्पण और बपतिस्मे की ओर बढ़ रहे हैं, तो हमें कितनी खुशी होती है। लेकिन अगर बाइबल विद्यार्थी बपतिस्मे के बाद आध्यात्मिक तरक्की नहीं करता तब क्या? क्या यह देखकर हम दुखी नहीं होते? (1 कुरिं. 3:1-4) जो भी बाइबल अध्ययन कराता है, वह उम्मीद करता है कि आगे चलकर यह नया चेला भी दूसरों का बाइबल अध्ययन कराएगा।

किसी भी मामले को परखने में अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करने के लिए उस पर मनन करना ज़रूरी है और इसमें मेहनत लगती है। (भज. 1:1-3) हमें उन कामों में अपना वक्‍त बरबाद नहीं करना चाहिए, जिनमें हमें अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता, जैसे टी.वी. देखना या अपना कोई शौक पूरा करना। क्योंकि ये काम ज़रूरी बातों पर मनन करने में आड़े आ सकते हैं। अपनी सोचने-समझने की योग्यता को बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल और ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ के दिए साहित्य का अध्ययन करने की इच्छा बढ़ाएँ और इसे पूरी करें। (मत्ती 24:45-47) नियमित तौर पर बाइबल पढ़ाई करने के अलावा ज़रूरी है कि हम पारिवारिक उपासना और बाइबल विषयों पर गहराई से अध्ययन करने के लिए समय अलग रखें।

मैक्सिको का एक सफरी अध्यक्ष केरोनीमो कहता है कि जैसे ही उसे प्रहरीदुर्ग का कोई नया अंक मिलता है वह उसे फौरन पढ़ लेता है। इसके अलावा वह अपनी पत्नी के साथ अध्ययन करने के लिए भी अलग से समय निकालता है। केरोनीमो कहता है: “हम दोनों हर दिन साथ मिलकर बाइबल ज़रूर पढ़ते हैं और बाइबल का अच्छा अध्ययन करने के लिए हम ‘उत्तम देश’ ब्रोशर जैसे साहित्य का इस्तेमाल करते हैं।” रोनाल्ड नाम का एक मसीही भाई बताता है कि मंडली में हर हफ्ते होनेवाली बाइबल पढ़ाई की वह अच्छी तैयारी ज़रूर करता है। इसके अलावा उसने अध्ययन के लिए एक-दो ऐसे प्रोजेक्ट भी चुने हैं, जिन्हें पूरा करने में उसे काफी समय लगेगा। रोनाल्ड कहता है: “ये प्रोजेक्ट इतने दिलचस्प हैं कि मुझे हफ्ते के उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, जब मैं इन पर और ज़्यादा अध्ययन कर पाऊँगा।”

हम अपने बारे में क्या कह सकते हैं? क्या हम बाइबल अध्ययन और परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने में भरपूर समय बिताते हैं? क्या हम अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित कर रहे हैं और बाइबल सिद्धांतों के आधार पर फैसला लेने की काबिलीयत को बढ़ा रहे हैं? (नीति. 2:1-7) प्रौढ़ मसीहियों की सोचने-समझने की शक्‍ति इतनी तेज़ होती है कि वे सही-गलत में फर्क कर पाते हैं और उनके पास ज्ञान और बुद्धि भी होती है। आइए हम भी इस लक्ष्य को पाने की ठान लें।

[पेज 23 पर तसवीर]

सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करने के लिए ज़रूरी है कि हम इसका “इस्तेमाल” करें