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बुज़ुर्गों का आदर क्यों करें?

बुज़ुर्गों का आदर क्यों करें?

बुज़ुर्गों का आदर क्यों करें?

अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य के समुद्र तट पर एक पेड़ है। इसे देखकर लोग इसकी तसवीर अपने कैमरे में कैद किए बिना नहीं रह पाते। इसे लोग ‘अकेला सरू’ नाम से पुकारते हैं। माना जाता है कि यह पेड़ करीब 250 साल पुराना है। यह पेड़ सालों से अडिग खड़ा है, इसलिए लोग इसका कई तरह से ध्यान रखते हैं। जैसे कि इसकी सुरक्षा के लिए जड़ों के इर्द-गिर्द पत्थर का चबूतरा बना दिया गया है और इसे मज़बूत तारों का सहारा दिया गया है।

‘अकेला सरू’ की तरह ही हमारे बीच ऐसे कई बुज़ुर्ग मसीही हैं जिन्होंने अपने जीवन में कमाल का धीरज दिखाया है। खुशखबरी का ऐलान करना वह बेहतरीन तरीका है जिसके ज़रिए वे धीरज दिखाते हैं। भविष्यवक्‍ता योएल ने कहा था कि “बुज़ुर्ग” लोग बाइबल के संदेश का ऐलान करेंगे। (योए. 2:28-32; प्रेषि. 2:16-21) ज़रा सोचिए, दूसरों को ‘राज की खुशखबरी’ सुनाने में इन बुज़ुर्गों ने कितनी मेहनत की है और कितने अनगिनत घंटे बिताए हैं। (मत्ती 24:14) राज के कुछ बुज़ुर्ग प्रचारक सालों से मुसीबतों और विरोध का सामना कर रहे हैं। अगर एक सरू का पेड़ अडिग खड़े रहने की वजह से इतना मशहूर है और उसे बचाए रखने के लिए उसे पत्थर और तारों का सहारा दिया जाता है, तो हमारे बीच जो बुज़ुर्ग भाई-बहन हैं हमें उन्हें और भी कितना सहारा और इज़्ज़त देने की ज़रूरत है!

यहोवा परमेश्‍वर ने पुराने समय में अपने लोगों से कहा: “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना।” (लैव्य. 19:32) यहोवा के सेवकों में आज हमें ऐसे लोगों का उदाहरण मिलता है जो बरसों से वफादारी दिखाते हुए ‘परमेश्‍वर के साथ चल’ रहे हैं। (मीका 6:8) वे बाइबल में दिए सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं और इस तरह उनके पके बाल वाकई उनका “शोभायमान मुकुट ठहरते हैं।”—नीति. 16:31.

प्रेषित पौलुस ने जवान तीमुथियुस को सलाह दी: “किसी बुज़ुर्ग की सख्ती से आलोचना न कर।” तीमुथियुस को ‘उसे अपना पिता समझकर उसे प्यार से समझाना’ था और “बुज़ुर्ग स्त्रियों को माँ” समझना था। (1 तीमु. 5:1, 2) तीमुथियुस को एक तरह से पके बालवालों के सामने “खड़े होना” था। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा चाहता है कि हमारे बात करने के तरीके से बुज़ुर्गों के लिए आदर झलके।

रोमियों 12:10 में लिखा है: “एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” इसमें कोई शक नहीं कि मंडली में प्राचीन, बुज़ुर्ग मसीहियों का आदर करते हैं। लेकिन एक-दूसरे का आदर करने में हम सभी को पहल करनी चाहिए।

यह सच है कि बुज़ुर्गों की, यानी माता-पिता, नाना-नानी और दादा-दादी की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी खास तौर से परिवार के लोगों की होती है। ‘अकेला सरू’ पेड़ को देखें तो लोगों ने इसे सुरक्षित रखने के लिए बहुत कुछ किया है और कर भी रहे हैं। अगर एक पेड़ के लिए इतना कुछ किया जा सकता है तो क्या अपने बुज़ुर्ग माता-पिता, नाना-नानी और दादा-दादी की गरिमा बनाए रखने के लिए हम कुछ नहीं करेंगे? मसलन, अगर हम उनकी बात ध्यान से सुनें तो हम अपनी इच्छा उन पर थोपने के बजाय उनकी भावनाओं का खयाल रखेंगे।—नीति. 23:22; 1 तीमु. 5:4.

हमारे बुज़ुर्ग भाई-बहन यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल हैं। वह उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ता। (भज. 71:18) हकीकत तो यह है कि सच्चा परमेश्‍वर उन्हें सहारा देता है ताकि वे वफादारी से उसकी सेवा करते रहें। आइए हम भी बुज़ुर्ग भाई-बहनों को सहारा दें और उनका आदर करें।

[पेज 7 पर तसवीरें]

जिस तरह ‘अकेला सरू’ पेड़ को सहारे की ज़रूरत है, उसी तरह बुज़ुर्ग भाई-बहनों को आदर और सम्मान देने की ज़रूरत है

[चित्र का श्रेय]

American Spirit Images/age fotostock