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यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी न करो

यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी न करो

यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी न करो

“परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुःखी न करो, जिससे तुम पर उस दिन के लिए मुहर लगायी गयी है।”—इफि. 4:30.

1. यहोवा ने लाखों लोगों के लिए क्या किया है और उनकी क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

 मुसीबतों से भरे इस संसार में रहनेवाले लाखों लोगों के लिए यहोवा ने कुछ खास किया है। उसने अपने एकलौते बेटे यीशु मसीह के ज़रिए मुमकिन किया है कि लोग उसके पास आ सकें। (यूह. 6:44) अगर आपने परमेश्‍वर को अपना समर्पण कर दिया है और उसके मुताबिक जी रहे हैं, तो आप उन लोगों में से एक हैं जिन्हें परमेश्‍वर अपने करीब आने का मौका देता है। आपने पवित्र शक्‍ति के नाम से बपतिस्मा लिया है, इसलिए आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलें।—मत्ती 28:19.

2. हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

2 हम ‘पवित्र शक्‍ति के लिए बोते हैं’ और इस तरह नयी शख्सियत धारण करते हैं। (गला. 6:8; इफि. 4:17-24) लेकिन प्रेषित पौलुस हमें सलाह देता है और आगाह भी करता है कि हमें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी नहीं करना चाहिए। (इफिसियों 4:25-32 पढ़िए।) अब हम पौलुस की सलाह पर करीबी से जाँच करेंगे। जब पौलुस ने यह कहा कि पवित्र शक्‍ति को दुखी मत करो तो उसके कहने का क्या मतलब था? यहोवा का एक समर्पित सेवक कैसे उसकी पवित्र शक्‍ति को दुखी कर सकता है? और हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचाने से कैसे बच सकते हैं?

पौलुस की बात का मतलब

3. इफिसियों 4:30 में लिखी बात का मतलब क्या है?

3 सबसे पहले इफिसियों 4:30 में लिखे पौलुस के शब्दों पर गौर कीजिए। उसने लिखा: “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुःखी न करो, जिससे तुम पर उस दिन के लिए मुहर लगायी गयी है, जब फिरौती के ज़रिए तुम छुड़ाए जाओगे।” पौलुस नहीं चाहता था कि उसके संगी विश्‍वासी परमेश्‍वर की नज़र में गिर जाएँ या उसके साथ उनका रिश्‍ता बिगड़ जाए। उन पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति से ‘उस दिन के लिए मुहर लगायी गयी थी, जब फिरौती के ज़रिए वे छुड़ाए जाते।’ पहली सदी की तरह आज भी यहोवा की पवित्र शक्‍ति एक मुहर की तरह है, यानी जो अभिषिक्‍त मसीही अपनी खराई बनाए रखते हैं उनके लिए “जो आनेवाला है, उसका बयाना।” (2 कुरिं. 1:22) अभिषिक्‍त मसीहियों पर मुहर लगायी गयी है, यह दर्शाता है कि वे परमेश्‍वर की निज संपत्ति हैं और उन्हें आगे चलकर स्वर्ग में ज़िंदगी मिलेगी। यह मुहर कुल 1,44,000 जनों पर लगायी गयी है।—प्रका. 7:2-4.

4. हमें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से क्यों दूर रहना चाहिए?

4 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी करना, वह पहला कदम हो सकता है जिससे एक मसीही की ज़िंदगी में परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति काम करना बंद कर दे। वाकई में परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमारी ज़िंदगी में काम करना बंद कर सकती है, जैसा कि दाविद के इन शब्दों से पता चलता है जो उसने बतशेबा के साथ पाप करने के बाद कहे। उसने पछतावा दिखाते हुए यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की: “मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] को मुझ से अलग न कर।” (भज. 51:11) उन्हीं अभिषिक्‍त जनों को स्वर्ग में अमरता का “ताज” पहनाया जाएगा, जो ‘मौत तक खुद को विश्‍वासयोग्य साबित करते’ हैं। (प्रका. 2:10; 1 कुरिं. 15:53) जिन मसीहियों को इस धरती पर जीने की आशा है, अगर वे परमेश्‍वर के लिए अपनी खराई बनाए रखना चाहते हैं और मसीह के फिरौती बलिदान पर विश्‍वास करने की वजह से जीवन का वरदान पाना चाहते हैं उन्हें भी पवित्र शक्‍ति की ज़रूरत पड़ती है। (यूह. 3:36; रोमि. 5:8; 6:23) इसलिए हम सभी को खबरदार रहने की ज़रूरत है कि हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी न करें।

एक मसीही कैसे पवित्र शक्‍ति को दुखी कर सकता है?

5, 6. एक मसीही कैसे यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचा सकता है?

5 हम यहोवा के समर्पित लोग, उसकी पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से दूर रह सकते हैं। अगर हम ‘पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते रहते हैं और हमारा जीने का तरीका उसके मुताबिक’ होता है, तो गलत शारीरिक इच्छाएँ हम पर हावी नहीं हो पाएँगी और हम बुरे चालचलन से भी दूर रहेंगे। (गला. 5:16, 25, 26) लेकिन कभी-कभी हम जो नहीं सोचते वही हो जाता है। हो सकता है कि हम धीरे-धीरे परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे वचन के खिलाफ काम करने लगें और शायद हमें इसका एहसास भी न हो। ऐसा करके हम कुछ हद तक परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी कर रहे होंगे।

6 अगर हम लगातार पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन खिलाफ काम करते रहें तो हम उसे और उस शक्‍ति के स्रोत यहोवा परमेश्‍वर को दुखी कर रहे होंगे। इफिसियों 4:25-32 की जाँच करने से हमें पता चलेगा कि हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए और इससे हमें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचाने से दूर रहने में मदद मिलेगी।

पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचाने से कैसे बचें

7, 8. समझाइए कि हमें क्यों सच बोलना चाहिए।

7 हमें सच बोलना चाहिए। इफिसियों 4:25 में पौलुस ने लिखा: “जब तुमने झूठ को अपने से दूर किया है, तो तुममें से हरेक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम एक ही शरीर के अलग-अलग अंग हैं।” हम सभी मसीही ‘एक ही शरीर के अलग-अलग अंगों’ की तरह एक-दूसरे से एकता में जुड़े हैं, इसलिए हमें अपने मसीही भाई-बहनों से चालाकी नहीं करनी चाहिए और जानबूझकर उन्हें गलत बात नहीं बतानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना झूठ बोलने के बराबर है। अगर कोई ऐसा करता रहता है तो वह यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते से हाथ धो बैठेगा।नीतिवचन 3:32 पढ़िए।

8 धोखा देनेवाली बातों और कामों से मंडली की एकता में खलल पैदा हो सकता है। हमें भविष्यवक्‍ता दानिय्येल की तरह भरोसेमंद बनना चाहिए जिसमें दूसरे लोग ज़रा भी दोष न ढूँढ़ सकें। (दानि. 6:4) साथ ही हमें पौलुस की यह सलाह भी ध्यान में रखनी चाहिए जो उसने उन मसीहियों को दी जिन्हें स्वर्ग में जीने की आशा है। उसने उनसे कहा कि ‘मसीह के शरीर’ का हर अंग, यानी मंडली के हर सदस्य का बाकी सभी से नाता है और उसे यीशु के सच्चे अभिषिक्‍त चेलों के साथ एकता में बंधे रहना चाहिए। (इफि. 4:11, 12) अगर हम धरती पर फिरदौस में हमेशा-हमेशा जीने की आशा रखते हैं, तो हमें भी सच बोलना चाहिए और इस तरह पूरी दुनिया में फैले अपने भाइयों की बिरादरी की एकता में सहयोग देना चाहिए।

9. हमें इफिसियों 4:26, 27 में दी सलाह के मुताबिक क्यों चलना चाहिए?

9 हमें शैतान का विरोध करना चाहिए और उसे कोई मौका नहीं देना चाहिए कि वह परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते को बिगाड़ने में कामयाब हो जाए। (याकू. 4:7) शैतान का विरोध करने में पवित्र शक्‍ति हमारी मदद करती है। जैसे कि हमें अपने गुस्से को हद-से-ज़्यादा भड़कने नहीं देना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “अगर तुम्हें क्रोध आए, तो भी पाप मत करो। सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा बना न रहे, न ही शैतान को मौका दो।” (इफि. 4:26, 27) अगर हमारा गुस्सा जायज़ भी है तो तुरंत मन-ही-मन प्रार्थना कीजिए इससे हमें “शान्त” बने रहने में मदद मिलेगी, हम खुद पर काबू रख पाएँगे और परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से बचे रहेंगे। (नीति. 17:27) इसलिए आइए हम ज़्यादा देर तक गुस्से में भड़के न रहें और शैतान को हमसे कोई बुरा काम कराने का मौका न दें। (भज. 37:8, 9) शैतान का विरोध करने का एक तरीका है कि अगर हमारा किसी से मन-मुटाव है तो यीशु की सलाह मानते हुए हमें जल्द-से-जल्द उससे सुलह करने की कोशिश करनी चाहिए।—मत्ती 5:23, 24; 18:15-17.

10, 11. हमें क्यों चोरी या बेईमानी नहीं करनी चाहिए?

10 अगर हमारे मन में कभी चोरी या बेईमानी करने की बात आती है, तो हमें उसे फौरन अपने मन से निकाल देना चाहिए। चोरी करने के बारे में पौलुस ने लिखा: “जो चोरी करता है वह अब से चोरी न करे। इसके बजाय, कड़ी मेहनत करे और अपने हाथों से ईमानदारी का काम करे, ताकि किसी ज़रूरतमंद को देने के लिए उसके पास कुछ हो।” (इफि. 4:28) अगर एक समर्पित मसीही चोरी करता है तो असल में वह “परमेश्‍वर का नाम अनुचित रीति” से ले रहा होता है, उसके नाम पर कलंक लगा रहा होता है। (नीति. 30:7-9) यहाँ तक कि गरीबी भी चोरी को सही करार नहीं दे सकती। जो लोग परमेश्‍वर और पड़ोसी से प्यार करते हैं, उन्हें इस बात का एहसास रहता है कि चोरी करना हमेशा गलत है।—मर. 12:28-31.

11 पौलुस ने न सिर्फ यह बताया कि हमें क्या नहीं करना चाहिए बल्कि उसने यह भी बताया कि हमें क्या करना चाहिए। अगर हम पवित्र शक्‍ति के मुताबिक जीते और उसके मार्गदर्शन में चलते हैं तो हम खूब मेहनत करेंगे ताकि हम अपने परिवार की देखभाल कर सकें और हमारे पास “किसी ज़रूरतमंद को देने के लिए” भी कुछ पैसा रहे। (1 तीमु. 5:8) यीशु और उसके प्रेषितों ने गरीबों की मदद के लिए थोड़ा पैसा अलग रखा था मगर धोखेबाज़ यहूदा इस्करियोती ने उसमें से कुछ पैसा चुरा लिया। (यूह. 12:4-6) वाकई वह पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में नहीं चला। हम लोग जो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलते हैं पौलुस की तरह “सब बातों में ईमानदारी से काम” करते हैं। (इब्रा. 13:18) इस तरह हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से बचे रहते हैं।

और किन तरीकों से पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से दूर रहें

12, 13. (क) जैसा कि इफिसियों 4:29 में बताया गया है, हमें कैसी बोली से दूर रहना चाहिए? (ख) हमारी बोली कैसी होनी चाहिए?

12 हमें अपनी बोली पर भी काबू रखना चाहिए। पौलुस ने कहा: “कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, मगर सिर्फ ऐसी बात निकले जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे।” (इफि. 4:29) एक बार फिर प्रेषित पौलुस ने हमसे सिर्फ यह नहीं कहा कि हमें क्या नहीं करना चाहिए बल्कि यह भी बताया कि हमें क्या करना चाहिए। अगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हम पर काम करेगी, तो हम वही कहेंगे जो ‘हिम्मत बँधाने के लिए अच्छा हो और जिससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे।’ इसके अलावा, हमें अपने मुँह से “गंदी बात” नहीं निकालनी चाहिए। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “गंदी” किया गया है, उसे सड़े हुए फल, मछली या माँस के लिए किया जाता है। जिस तरह हमें सड़े हुए खाने से हीक आती है उसी तरह हम ऐसी बोली से नफरत करते हैं जिसे यहोवा बुरा कहता है।

13 हमारे बोल अच्छे, भले और “सलोने” होने चाहिए। (कुलु. 3:8-10; 4:6) हमारी बोली से लोगों को पता चलना चाहिए कि हम दूसरों से बिलकुल अलग हैं। इसलिए आइए हम दूसरों की मदद करें, उनसे ‘हिम्मत बँधानेवाली’ बातें कहें और भजनहार की तरह महसूस करें, जिसने कहा: “मेरे मुंह के वचन ओर मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!”—भज. 19:14.

14. इफिसियों 4:30, 31 के मुताबिक हमें अपने अंदर से किन बुराइयों को निकाल देना चाहिए?

14 हमें कड़वाहट, गुस्से, गाली और हर तरह की बुराई को खुद से दूर रखना चाहिए। यह चेतावनी देने के बाद कि हमें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी नहीं करना चाहिए पौलुस ने लिखा: “हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज, साथ ही हर तरह की बुराई को खुद से दूर करो।” (इफि. 4:30, 31) हम असिद्ध हैं, इसलिए हम सभी को अपनी सोच और अपने कामों पर काबू रखने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। अगर हम ‘जलन-कुढ़न, गुस्से और क्रोध’ को खुली छूट देंगे तो हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुखी कर रहे होंगे। यह बात तब भी सच होती है जब हम उन बातों का हिसाब रखते हैं जो किसी ने हमारे खिलाफ कही होती हैं, बदले की भावना दिखाते हैं और जिसने हमारा दिल दुखाया है उसके साथ मेल करने से दूर रहते हैं। यहाँ तक कि अगर हम बाइबल की सलाह को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दें तो हो सकता है कि हम ऐसा रवैया दिखाने लगें जिसकी वजह से आगे चलकर हम पवित्र शक्‍ति के खिलाफ पाप कर बैठें और फिर हमें भयानक अंजाम भुगतने पड़ें।

15. अगर किसी ने हमारे दिल को गहरी चोट पहुँचायी है तो हमें क्या करना चाहिए?

15 हमें दूसरों की भलाई करने, प्यार से पेश आने और उन्हें माफ करने के लिए तैयार रहना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करो, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने भी मसीह के ज़रिए तुम्हें दिल से माफ किया है।” (इफि. 4:32) अगर किसी ने हमारे दिल को बहुत गहरी चोट पहुँचायी है, तो आइए हम उसे माफ करें, ठीक जैसे परमेश्‍वर करता है। (लूका 11:4) मान लीजिए, किसी भाई-बहन ने हमारे खिलाफ कोई गलत बात कही है। मामले को सुलझाने के लिए हम उसके पास जाते हैं और उससे बात करते हैं। हमारी बात सुनकर वह सच्चा पछतावा दिखाता है और हमसे माफी माँगता है। हम उसे माफ कर देते हैं, लेकिन हमें और भी कुछ करने की ज़रूरत है। लैव्यव्यवस्था 19:18 में लिखा है: “पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूं।”

खबरदार रहने की ज़रूरत

16. एक उदाहरण बताइए जो दिखाता है कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुख न पहुँचे, इसके लिए हमें कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत पड़ सकती है।

16 जब हम अकेले होते हैं, तब भी हमारे ऊपर ऐसा कोई गलत काम करने का प्रलोभन आ सकता है जिससे परमेश्‍वर नाराज़ होता है। उदाहरण के लिए, शायद एक भाई ऐसा संगीत सुनने का आदी हो जो मसीहियों के लिए गलत है। लेकिन फिर उसका ज़मीर उसे कचोटने लगता है क्योंकि वह बाइबल पर आधारित उस सलाह को ठुकरा रहा है, जो “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” अपने साहित्य में मुहैया कराता है। (मत्ती 24:45) वह शायद अपनी समस्या के बारे में प्रार्थना करे और इफिसियों 4:30 में लिखे पौलुस के शब्दों को याद करे। वह ठान लेता है कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुख हो और गलत किस्म का संगीत सुनना बंद कर देता है। भाई अपने इरादे पर बने रहने के लिए जो मेहनत करता है, उस पर यहोवा आशीष देगा। इसलिए आइए हम हमेशा ऐसे कामों से खबरदार रहें जिनसे यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँच सकता है।

17. अगर हम जागरूक न रहें और प्रार्थना में न लगे रहें तो क्या हो सकता है?

17 अगर हम जागरूक न रहें और प्रार्थना में न लगे रहें तो हम ऐसे किसी गंदे या गलत काम में फँस सकते हैं, जिससे पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचेगा। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता पवित्र शक्‍ति के ज़रिए अपनी इच्छा ज़ाहिर करता है, इसलिए पवित्र शक्‍ति को दुखी करना यहोवा को दुखी करने के बराबर है। और हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारी वजह से यहोवा को दुख पहुँचे। (इफि. 4:30) पहली सदी के यहूदी शास्त्रियों ने कहा कि यीशु, शैतान की शक्‍ति से चमत्कार करता है। (मरकुस 3:22-30 पढ़िए।) मसीह के उन दुश्‍मनों ने “पवित्र शक्‍ति के खिलाफ निंदा” की और ऐसा पाप किया जिसे माफ नहीं किया जा सकता था। आइए, हम ऐसा कभी न करें!

18. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमने ऐसा पाप नहीं किया है जो माफी के लायक नहीं?

18 हम ऐसा कोई पाप नहीं करना चाहते जो माफी के लायक न हो, इसलिए पवित्र शक्‍ति को दुख न पहुँचाने के बारे में पौलुस ने जो बात कही वह हमें याद रखने की ज़रूरत है। लेकिन अगर हम कोई गंभीर पाप कर बैठते हैं, तब क्या? अगर हमने पछतावा दिखाया है और प्राचीनों ने हमारी मदद की है, तो हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्‍वर ने हमें माफ कर दिया है और हमने पवित्र शक्‍ति के खिलाफ पाप नहीं किया है। परमेश्‍वर की मदद से हम हर उस काम से बचे रहेंगे जिससे पवित्र शक्‍ति को दोबारा दुख पहुँचे।

19, 20. (क) हमें किन कामों से दूर रहना चाहिए? (ख) हमें क्या ठान लेना चाहिए?

19 परमेश्‍वर अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए अपने लोगों को प्यार, आनंद और एकता के बँधन में बाँधता है। (भज. 133:1-3) इसलिए हमें दूसरों के बारे में गपशप नहीं करनी चाहिए या ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए जिससे दूसरों की नज़र में पवित्र शक्‍ति की ओर से ठहराए चरवाहों की इज़्ज़त घट जाए, क्योंकि इन कामों से पवित्र शक्‍ति को दुख होता है। (प्रेषि. 20:28; यहू. 8) इसके बजाय हमें मंडली में एकता बढ़ानी चाहिए और एक-दूसरे को आदर देना चाहिए। हमें परमेश्‍वर के लोगों के बीच अलग-अलग समूह बनाकर गुटबाज़ी को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। पौलुस ने लिखा: “हे भाइयो, मैं तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से उकसाता हूँ कि तुम सब एक ही बात कहो और तुम्हारे बीच फूट न हो, बल्कि तुम्हारे विचारों और सोचने के तरीके में पूरी तरह से एकता हो।”—1 कुरिं. 1:10.

20 हम पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचाने से दूर रहें, इस काम में हमारी मदद करने के लिए यहोवा तैयार रहता है और उसमें यह करने की ताकत भी है। क्यों न हम लगातार परमेश्‍वर से प्रार्थना में उसकी पवित्र शक्‍ति माँगें और ठान लें कि हम उसकी पवित्र शक्‍ति को दुखी नहीं करेंगे। आइए हम ‘पवित्र शक्‍ति के लिए बोते रहें’, आज और हमेशा के लिए उसका निर्देशन कबूल करते रहें।

आप क्या जवाब देंगे?

• परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी करने का क्या मतलब है?

• यहोवा का समर्पित सेवक कैसे उसकी पवित्र शक्‍ति को दुखी कर सकता है?

• किन तरीकों से हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति को दुखी करने से बच सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 30 पर तसवीर]

झगड़े तुरंत निपटाइए

[पेज 31 पर तसवीर]

आपकी बोली कौन-से फल की तरह है?