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स्त्रियो, आपको क्यों मुखियापन के अधीन रहना चाहिए?

स्त्रियो, आपको क्यों मुखियापन के अधीन रहना चाहिए?

स्त्रियो, आपको क्यों मुखियापन के अधीन रहना चाहिए?

“स्त्री का सिर पुरुष है।”—1 कुरिं. 11:3.

1, 2. (क) यहोवा ने मुखियापन और अधीन रहने का जो इंतज़ाम किया है, उसके बारे में प्रेषित पौलुस ने क्या लिखा? (ख) इस लेख में किन सवालों पर विचार किया जाएगा?

 यहोवा परमेश्‍वर ने एक व्यवस्था कायम की है, जिसके बारे में प्रेषित पौलुस ने लिखा: “हर पुरुष का सिर मसीह है” और “मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (1 कुरिं. 11:3) हमने पिछले लेख में देखा था कि यीशु ने अपने मुखिया यहोवा परमेश्‍वर के अधीन रहना एक सम्मान समझा और इससे उसे बड़ी खुशी मिली। और यह भी कि मसीही पुरुषों का सिर यानी मुखिया, मसीह है। मसीह लोगों के साथ कोमलता, नरमी, दया और बिना किसी स्वार्थ के पेश आता था, उसके दिल में दीन लोगों के लिए बहुत करुणा थी। मंडली में पुरुषों को भी दूसरों के साथ, खासकर अपनी पत्नियों के साथ व्यवहार करते वक्‍त यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए।

2 फिर स्त्रियों के बारे में क्या कहा जा सकता है? उनका सिर या मुखिया कौन है? पौलुस ने लिखा: “स्त्री का सिर पुरुष है।” परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी इस बात को स्त्रियों को किस नज़र से देखना चाहिए? क्या यह सिद्धांत उस वक्‍त भी लागू होता है जब किसी स्त्री का पति, यहोवा का उपासक नहीं होता? क्या पुरुष के अधीन रहने का मतलब है कि शादीशुदा ज़िंदगी में पत्नी की कोई अहमियत नहीं होती और परिवार से जुड़े किसी भी फैसले में वह अपनी राय नहीं दे सकती? एक स्त्री तारीफ के काबिल कैसे बन सकती है?

‘मैं उसके लिये एक सहायक बनाऊंगा’

3, 4. शादीशुदा ज़िंदगी में मुखियापन के इंतज़ाम को लागू करना क्यों फायदेमंद है?

3 मुखियापन के इंतज़ाम को परमेश्‍वर ने ठहराया है। आदम की सृष्टि करने के बाद यहोवा परमेश्‍वर ने कहा: “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उससे मेल खाए।” हव्वा की सृष्टि के बाद, आदम एक साथी और सहायक पाकर इतना खुश हुआ कि उसने कहा: “यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है।” (उत्प. 2:18-24) आदम और हव्वा के पास सिद्ध मानवजाति के माता-पिता बनने का शानदार मौका था, जो धरती पर बने फिरदौस में हमेशा-हमेशा जीते।

4 हमारे पहले माता-पिता की बगावत की वजह से इंसान उस सिद्ध ज़िंदगी से हाथ धो बैठे, जो उन्हें अदन के बाग मिली थी। (रोमियों 5:12 पढ़िए।) हालाँकि वे असिद्ध हो गए, लेकिन परमेश्‍वर ने मुखियापन का जो इंतज़ाम ठहराया था वह कायम रहा। अगर इस इंतज़ाम को सही तरीके से माना जाए, तो शादीशुदा ज़िंदगी में खुशियों की बहार आ जाती है और इससे बहुत-से फायदे भी होते हैं। यीशु अपने मुखिया यहोवा के अधीन रहने में जैसा महसूस करता था, पति-पत्नी भी वैसा ही महसूस करेंगे। धरती पर आने से पहले स्वर्ग में यीशु “हर समय [यहोवा के] साम्हने आनन्दित” रहता था। (नीति. 8:30) लेकिन पुरुष अब असिद्ध हो गए हैं इसलिए वे ठीक तरह से मुखियापन की ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाते और न ही स्त्रियाँ पूरी तरह से उनके अधीन रह पाती हैं। मगर जब पति-पत्नी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में अपनी तरफ से अच्छे-से-अच्छा करने की कोशिश करते रहते हैं, तो उन्हें आज के समय में भी इस इंतज़ाम से बहुत खुशी मिल सकती है।

5. पति-पत्नियों को रोमियों 12:10 में दी सलाह को गंभीरता से क्यों लेना चाहिए?

5 बाइबल में दी एक सलाह सभी मसीहियों पर लागू होती है और अगर पति-पत्नी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब बनाना चाहते हैं तो उनके लिए भी इस सलाह को मानना बेहद ज़रूरी है। यह सलाह है: “आपस में भाइयों जैसा प्यार दिखाते हुए एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो। एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” (रोमि. 12:10) इसके साथ-साथ पति और पत्नी, दोनों को ‘एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आने और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करने’ की पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए।—इफि. 4:32.

जब जीवन-साथी यहोवा का उपासक नहीं होता

6, 7. अगर एक मसीही पत्नी अपने अविश्‍वासी पति के अधीन रहती है तो क्या नतीजा हो सकता है?

6 अगर आपका साथी यहोवा का उपासक नहीं है तब आप क्या कर सकते हैं? ज़्यादातर परिवारों में देखा गया है कि पति सच्चाई कबूल नहीं करता। ऐसे में पत्नी को अपने पति के साथ कैसे पेश आना चाहिए? बाइबल इसका जवाब देती है: “पत्नियो, तुम अपने-अपने पति के अधीन रहो ताकि अगर किसी का पति परमेश्‍वर के वचन की आज्ञा नहीं मानता, तो वह अपनी पत्नी के पवित्र चालचलन और गहरे आदर को देखकर तुम्हारे कुछ बोले बिना ही जीत लिया जाए।”—1 पत. 3:1, 2.

7 परमेश्‍वर का वचन पत्नी को सलाह देता है कि अगर उसका पति विश्‍वास में नहीं है, तब भी उसे उसके अधीन रहना चाहिए। उसका अच्छा चालचलन पति को यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि आखिर क्या वजह है जो उसकी पत्नी उसके साथ इतना अच्छा व्यवहार करती है। नतीजा, पति शायद अपनी मसीही पत्नी के विश्‍वास के बारे में जानने की कोशिश करे और हो सकता है कि वह आगे चलकर सच्चाई अपना ले।

8, 9. अगर किसी मसीही पत्नी के अविश्‍वासी पति पर उसके अच्छे चालचलन का असर नहीं होता, तो ऐसे में पत्नी क्या कर सकती है?

8 लेकिन अगर अविश्‍वासी पति सच्चाई में दिलचस्पी नहीं दिखाता, तब मसीही पत्नी क्या कर सकती है? बाइबल पत्नी को बढ़ावा देती है कि वह हर समय मसीही गुण ज़ाहिर करे, चाहे यह उसके लिए कितना ही मुश्‍किल क्यों न हो। मिसाल के लिए 1 कुरिंथियों 13:4 में हम पढ़ते हैं: “प्यार सहनशील” होता है। इसलिए अच्छा होगा कि मसीही पत्नी “मन की पूरी दीनता, कोमलता और सहनशीलता के साथ” प्यार से उस हालात का सामना करे। (इफि. 4:2) परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति यानी उसकी पवित्र शक्‍ति की मदद से मुश्‍किल हालात में भी मसीही गुण ज़ाहिर करना मुमकिन है।

9 पौलुस ने लिखा: “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्‍ति मिलती है।” (फिलि. 4:13) परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से मसीही साथी वे सारे काम कर पाता है, जो शायद वह अपनी ताकत से न कर पाए। उदाहरण के लिए, अगर पति-पत्नी में से कोई अपने जीवन-साथी के साथ कठोरता से व्यवहार करता है, तो शायद निर्दोष साथी को ईंट का जवाब पत्थर से देने का मन करे। लेकिन बाइबल सभी मसीहियों से कहती है: “किसी को भी बुराई का बदला बुराई से न दो। . . . क्योंकि लिखा है: ‘यहोवा कहता है, बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।’” (रोमि. 12:17-19) उसी तरह 1 थिस्सलुनीकियों 5:15 हमें सलाह देता है: “इस बात का ध्यान रखो कि तुम में से कोई किसी की बुराई का बदला बुराई से न दे, मगर हमेशा एक-दूसरे की और बाकी सबकी भलाई करने में लगे रहो।” यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से हम नामुमकिन को भी मुमकिन कर पाएँगे। इसलिए कितना सही होगा कि हम यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगे, क्योंकि यही शक्‍ति हमें अपने अंदर उन गुणों को बढ़ाने में मदद करेगी, जिन्हें दिखाना हमारे लिए मुश्‍किल होता है!

10. दूसरों की कड़वी बातों और बुरे व्यवहार का सामना यीशु ने कैसे किया?

10 लोग यीशु को कड़वी बातें सुनाते थे और उसके साथ बुरा व्यवहार करते थे। ऐसे लोगों से किस तरह पेश आना चाहिए, इस बारे में यीशु ने एक उम्दा मिसाल कायम की। पहला पतरस 2:23 कहता है: “जब उसे गाली दी जा रही थी, तो बदले में उसने गाली देना शुरू नहीं किया। जब वह दुःख झेल रहा था, तो वह धमकियाँ नहीं देने लगा, बल्कि खुद को उस न्यायी के हाथ में सौंपता रहा जो सच्चा न्याय करता है।” हमें उसके अच्छे उदाहरण पर चलने का बढ़ावा दिया गया है। जब दूसरे हमारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो हमें तैश में नहीं आना चाहिए। सभी मसीहियों की तरह हमें भी इस हिदायत पर चलना चाहिए कि “गहरी करुणा दिखाओ, नम्र स्वभाव रखो, बुराई का बदला बुराई से न दो, न ही गाली के बदले गाली दो।”—1 पत. 3:8, 9.

क्या स्त्रियों को अपने होठ सी लेने चाहिए?

11. कुछ मसीही स्त्रियों को क्या सम्मान मिलेगा?

11 क्या पति के मुखियापन के अधीन रहने का मतलब है कि पत्नी परिवार से जुड़े या दूसरे किसी मामले में अपनी राय देने का हक नहीं रखती? ऐसा नहीं है। यहोवा ने पुरुषों को ही नहीं, स्त्रियों को भी बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ दी हैं। ज़रा सोचिए 1,44,000 जनों को कितना बड़ा सम्मान दिया गया है कि वे स्वर्ग में मसीह के अधीन इस धरती पर राजा और याजक के तौर पर शासन करेंगे! उन 1,44,000 जनों में स्त्रियाँ भी शामिल हैं। (गला. 3:26-29) ज़ाहिर है, यहोवा ने अपने इंतज़ाम में स्त्रियों को भी बहुत अहम भूमिका दी है।

12, 13. एक उदाहरण दीजिए जो दिखाता है कि स्त्रियाँ भी भविष्यवाणी करती थीं।

12 बाइबल के ज़माने में स्त्रियाँ भी भविष्यवाणी करती थीं। योएल 2:28, 29 में पहले से बता दिया गया था: “मैं सब प्राणियों पर अपना आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी, . . . तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] उण्डेलूंगा।”

13 ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम के एक घर के ऊपरी कमरे में यीशु के करीब 120 चेले जमा थे, जहाँ पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी थीं। उस दिन पूरे समूह पर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उंडेली गयी। इस वजह से पतरस भविष्यवक्‍ता योएल की कही बात दोहरा सका, जिसे उसने पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों पर भी लागू किया। पतरस ने कहा: “यह वही हो रहा है जिसकी भविष्यवाणी योएल भविष्यवक्‍ता ने की थी: ‘परमेश्‍वर कहता है, “आखिरी दिनों में मैं हर तरह के इंसान पर अपनी पवित्र शक्‍ति उंडेलूँगा, और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यवाणी करेंगे . . . यहाँ तक कि उन दिनों मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी अपनी पवित्र शक्‍ति उंडेलूँगा और वे भविष्यवाणी करेंगे।”’”—प्रेषि. 2:16-18.

14. पहली सदी में मसीही धर्म को फैलाने में स्त्रियों ने कैसे हिस्सा लिया?

14 पहली सदी में मसीही धर्म को फैलाने में स्त्रियों ने एक अहम भूमिका निभायी। उन्होंने परमेश्‍वर के राज के बारे में दूसरों को बताया, साथ ही प्रचार से जुड़े दूसरे कामों में भी हिस्सा लिया। (लूका 8:1-3) मिसाल के लिए प्रेषित पौलुस ने फीबे को “किंख्रिया की मंडली में सेवा” करनेवाली कहा। और जब उसने अपने संगी मसीहियों को मसीही प्यार भेजा तो उसने कई विश्‍वासी स्त्रियों का ज़िक्र किया, जैसे “प्रभु में कड़ी मेहनत करनेवाली त्रूफैना और त्रूफोसा।” उसने “हमारी प्यारी पिरसिस” का भी ज़िक्र किया, “जिसने प्रभु में कड़ी मेहनत की है।”—रोमि. 16:1, 12.

15. हमारे समय में मसीही धर्म फैलाने में स्त्रियाँ क्या भाग अदा कर रही हैं?

15 आज पूरी दुनिया में 70 लाख से भी ज़्यादा लोग परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने में लगे हुए हैं, जिनमें ज़्यादातर स्त्रियाँ हैं। (मत्ती 24:14) उनमें बहुत-सी स्त्रियाँ पूरे समय की सेवक हैं, कई मिशनरी सेवा करती हैं और कई बेथेल परिवार की सदस्य हैं। भजनहार दाविद ने अपने गीत में गाया: “[यहोवा] आज्ञा देता है, तब शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना हो जाती है।” (भज. 68:11) ये शब्द वाकई सच साबित हुए हैं! खुशखबरी सुनाने और यहोवा के मकसदों को पूरा करने में स्त्रियाँ जो भूमिका निभा रही हैं यहोवा उसकी कदर करता है। उसने जो कहा है कि मसीही स्त्रियों को अधीनता दिखानी है, उसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अपने होठ सीकर अधीन रहना है।

दो स्त्रियाँ जिन्होंने कदम उठाया

16, 17. सारा का उदाहरण कैसे दिखाता है कि पत्नियों को अपनी राय पेश करने से झिझकना नहीं चाहिए?

16 अगर यहोवा स्त्रियों को इतनी सारी ज़िम्मेदारियाँ सौंप सकता है, तो क्या पति को भी कोई अहम फैसला लेते वक्‍त अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा नहीं करना चाहिए? ऐसा करके पति अकलमंदी दिखा रहे होंगे। बाइबल में ऐसे कई वाकये दर्ज़ हैं जिनमें पत्नियों ने पति की राय पूछे बगैर अपनी बात कही या कोई काम किया। दो उदाहरणों पर गौर कीजिए।

17 कुलपिता अब्राहम की पत्नी सारा लगातार अपने पति से दूसरी पत्नी और उसके बेटे को घर से निकालने के लिए कहती रही क्योंकि वे उनका आदर नहीं करते थे। ‘यह बात इब्राहीम को बहुत बुरी लगी,’ मगर परमेश्‍वर को नहीं। इसलिए उसने अब्राहम से कहा: “उस लड़के और अपनी दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान।” (उत्प. 21:8-12) अब्राहम ने यहोवा की बात मानी। उसने वही किया जो सारा कह रही थी।

18. अबीगैल ने अपनी तरफ से क्या कदम उठाया?

18 नाबाल की पत्नी अबीगैल की मिसाल पर भी गौर कीजिए। जब दाविद, राजा शाऊल से अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था तो वह कुछ समय के लिए नाबाल की भेड़ों के झुंड के पास रुका। नाबाल जैसे अमीर आदमी की धन-संपत्ति में से कुछ पर हाथ साफ करने के बजाय दाविद और उसके आदमियों ने नाबाल की भेड़-बकरियों की रक्षा की। लेकिन नाबाल “कठोर और बुरे-बुरे काम करनेवाला था” और उसने दाविद के आदमियों को “गाली देकर भगा दिया,” (आर.ओ.वी.)। वह “दुष्ट” था और “उस में मूढ़ता पाई जाती” थी। जब दाविद के आदमियों ने इज़्ज़त के साथ उससे खाने-पीने का कुछ सामान माँगा, तो उसने मना कर दिया। जब अबीगैल को इस बारे में पता चला, तो उसने क्या किया? उसने नाबाल को बताए बगैर “फुर्त्ती से दो सौ रोटी, और दो कुप्पी दाखमधु, और पांच भेड़ियों का मांस, और पांच सआ भूना हुआ अनाज, और एक सौ गुच्छे किशमिश, और अंजीरों की दो सौ टिकियां” लीं और दाविद और उसके आदमियों को दे दीं। अबीगैल ने जो किया क्या वह सही था? बाइबल कहती है: “यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया।” बाद में दाविद ने अबीगैल से शादी कर ली।—1 शमू. 25:3, 14-19, 23-25, 38-42.

‘वह स्त्री जिसकी प्रशंसा की जाती है’

19, 20. क्या बात एक स्त्री को काबिले-तारीफ बनाती है?

19 जो स्त्री यहोवा की मरज़ी के मुताबिक काम करती है, बाइबल उसकी तारीफ करती है। नीतिवचन में “भली पत्नी” की तारीफ की गयी है और कहा गया है: “उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है। उसके पति के मन में उसके प्रति विश्‍वास है, और उसे लाभ की घटी नहीं होती। वह अपने जीवन के सारे दिनों में उस से बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है।” इसके अलावा “वह बुद्धि की बात बोलती है, और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं। वह अपने घराने के चालचलन को ध्यान से देखती है, और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती। उसके पुत्र उठ उठकर उसको धन्य कहते हैं; उसका पति भी उठकर उसकी . . . प्रशंसा करता है।”—नीति. 31:10-12, 26-28.

20 क्या बात एक स्त्री को तारीफ के काबिल बनाती है? नीतिवचन 31:30 में लिखा है: “शोभा तो झूठी और सुन्दरता व्यर्थ है, परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी।” यहोवा का भय मानने में दिल-से मुखियापन के इंतज़ाम के अधीन रहना शामिल है। “स्त्री का सिर पुरुष है,” ठीक जैसे “हर एक पुरुष का सिर मसीह है” और “मसीह का सिर परमेश्‍वर है।”—1 कुरिं. 11:3.

परमेश्‍वर के तोहफे के लिए एहसानमंद रहिए

21, 22. (क) परमेश्‍वर ने शादी का जो तोहफा दिया है, उसके लिए शुक्रिया अदा करने की शादीशुदा मसीहियों के पास क्या वजह हैं? (ख) यहोवा ने मुखियापन का जो इंतज़ाम किया है उसके लिए हमें क्यों आदर दिखाना चाहिए? (पेज 17 पर दिया बक्स देखिए।)

21 जब एक स्त्री-पुरुष शादी के बंधन में बँधते हैं तो उनके पास यहोवा का शुक्रिया अदा करने के कई कारण होते हैं! वे खुशी-खुशी अपनी ज़िंदगी का सफर तय कर सकते हैं। वे खासकर शादी के तोहफे के लिए यहोवा को धन्यवाद दे सकते हैं क्योंकि इसकी वजह से वे मिल-जुलकर काम कर पाते हैं और यहोवा के साथ-साथ चल पाते हैं। (रूत 1:9; मीका 6:8) यहोवा ने ही सबसे पहली शादी करायी थी, इसलिए वह जानता है कि शादीशुदा ज़िंदगी में खुशी कैसे पायी जा सकती है। अगर आप हमेशा उसकी मरज़ी के मुताबिक चलेंगे तो आज की मुसीबत-भरी दुनिया में भी ‘यहोवा का आनन्द आपका दृढ़ गढ़’ होगा।—नहे. 8:10.

22 जब एक मसीही पति अपनी पत्नी से उतना ही प्यार करता है जितना कि खुद से, तो वह मुखियापन की ज़िम्मेदारी को बड़े प्यार से और पत्नी की भावनाओं को समझते हुए निभा पाता है। परमेश्‍वर की उपासना करनेवाली अपनी पत्नी को वह प्यार कर पाएगा क्योंकि वह उसका साथ देती है और उसका गहरा आदर करती है। सबसे बढ़कर उनकी बेमिसाल शादी से हमारे यहोवा परमेश्‍वर का आदर होगा, जो तारीफ के लायक है।

क्या आपको याद है?

• यहोवा ने अधीन रहने और मुखियापन का क्या इंतज़ाम किया है?

• पति-पत्नी को क्यों एक-दूसरे का आदर करना चाहिए?

• मसीही पत्नी को अपने अविश्‍वासी पति के साथ कैसे पेश आना चाहिए?

• कोई भी अहम फैसला करने से पहले पति को क्यों अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 17 पर बक्स]

अधिकार के लिए क्यों आदर दिखाएँ?

यहोवा ने सभी बुद्धिमान प्राणियों के बीच मुखियापन और अधीन रहने की व्यवस्था ठहरायी है। यह इंतज़ाम आत्मिक प्राणियों और इंसानों, दोनों की भलाई के लिए किया गया है। एक-जुट होकर शांति से यहोवा की सेवा करने के ज़रिए उन्हें अपनी आज़ाद मरज़ी का इस्तेमाल करने और यहोवा का आदर करने का मौका मिलता है।—भज. 133:1.

अभिषिक्‍त मसीहियों की मंडली यीशु मसीह के अधिकार और मुखियापन के अधीन काम करती है। (इफि. 1:22, 23) यहोवा के अधिकार को मानते हुए आखिर में “बेटा भी अपने आप को उस एक के अधीन कर देगा जिसने सबकुछ उसके अधीन किया था, ताकि परमेश्‍वर ही सबके लिए सबकुछ हो।” (1 कुरिं. 15:27, 28) इसलिए कितना सही है कि परमेश्‍वर को समर्पित सभी मसीही भी मंडली और परिवार में ठहराए मुखियापन के इंतज़ाम को सहयोग दें! (1 कुरिं. 11:3; इब्रा. 13:17) ऐसा करने से, हमें ही फायदा होगा क्योंकि हमें यहोवा की मंज़ूरी और उसकी आशीषें मिलेंगी।—यशा. 48:17.

[पेज 13 पर तसवीर]

प्रार्थना से एक मसीही पत्नी को परमेश्‍वर के जैसे गुण दिखाने में मदद मिल सकती है

[पेज 15 पर तसवीर]

राज के कामों को बढ़ाने में स्त्रियाँ जो भूमिका निभाती हैं यहोवा उसकी कदर करता है