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गुस्से को काबू में रखते हुए “बुराई को जीतते रहो”

गुस्से को काबू में रखते हुए “बुराई को जीतते रहो”

गुस्से को काबू में रखते हुए “बुराई को जीतते रहो”

“हे प्यारो, अपना बदला मत लेना . . . बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।”—रोमि. 12:19, 21.

1, 2. कुछ मसीही यात्रियों ने कैसे एक अच्छा उदाहरण रखा?

 यहोवा के साक्षियों का एक समूह, जिसमें 34 लोग थे, एक शाखा दफ्तर के समर्पण के लिए जा रहा था। लेकिन रास्ते में किसी तकनीकी खराबी के कारण उनकी उड़ान में काफी देर हो गयी। दरअसल पैट्रोल डालने के लिए जहाँ एक घंटा रुकना था, वहाँ उन्हें 44 घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा। इतना ही नहीं, वह हवाई अड्डा ऐसी जगह पर था, जहाँ न तो सही खाने-पीने की, न ही शौचालय की सुविधा थी। इससे कई यात्री भड़क उठे और हवाई अड्डे के कर्मचारियों को धमकी देने लगे। लेकिन इस दौरान हमारे भाई-बहन शांत रहे।

2 आखिरकार साक्षी समर्पण कार्यक्रम पर पहुँचे, मगर एकदम आखिरी भाग में। थके-हारे होने के बावजूद उन्होंने रुककर भाइयों की संगति का आनंद उठाया। बाद में उन्हें पता चला कि उन्होंने हवाई अड्डे पर जो धीरज और संयम दिखाया था, वह अनदेखा नहीं गया। क्योंकि उनमें से एक यात्री ने एअरलाइन कंपनी से कहा, “अगर वहाँ 34 मसीही मौजूद न होते, तो ज़रूर हंगामा हो जाता।”

गुस्सैल संसार में जीना

3, 4. (क) कैसे और कब से इंसान गुस्से का शिकार रहा है? (ख) क्या कैन अपने गुस्से पर काबू पा सकता था? समझाइए।

3 आज इस दुष्ट संसार से, इंसान पर इतने तनाव आते हैं कि ये उन्हें गुस्सैल बना देते हैं। (सभो. 7:7) अकसर ऐसा गुस्सा उनमें नफरत पैदा करता है और वे मार-काट पर उतर आते हैं। इस वजह से दो देशों के बीच या देश के अंदर ही युद्ध छिड़ जाते हैं। लेकिन अगर तनाव परिवार से हो, तब तो घर में ही मार-काट शुरू हो जाती है। पर हिंसा और क्रोध कोई नयी बात नहीं है। पहले इंसानी जोड़े आदम और हव्वा के पहले बेटे कैन ने, नफरत की वजह से अपने छोटे भाई हाबिल को मार डाला था। यहोवा ने कैन को समझाया था और यह वादा भी किया कि अगर वह अपने गुस्से पर काबू पा लेगा, तो वह उसे आशीष देगा। मगर फिर भी कैन ने यह घिनौना काम किया।उत्पत्ति 4:6-8 पढ़िए।

4 कैन को भले ही अपने माता-पिता से असिद्धता मिली थी, मगर उसके पास सही चुनाव करने की आज़ादी थी। वह चाहता तो अपने गुस्से को रोक सकता था। इसलिए उस हत्या के लिए वही पूरी तरह ज़िम्मेदार था। उसी तरह आज हमारे लिए भी, अपनी असिद्धता की वजह अपने गुस्से पर काबू पाना और हिंसक व्यवहार को रोकना मुश्‍किल होता है। इसके अलावा, ‘संकटों से भरे इस वक्‍त में’ दूसरी अनचाही बातें गुस्से और हिंसा पर काबू पाना हमारे लिए मुश्‍किल कर देती हैं। (2 तीमु. 3:1) मिसाल के लिए, रुपए-पैसे की तंगी से एक इंसान बौखला सकता है। पुलिस और परिवार की मदद करनेवाले संगठन कहते हैं कि लोगों का बात-बात पर भड़कना और परिवार में हिंसा का बढ़ना, इन सबके लिए बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था काफी हद तक ज़िम्मेदार है।

5, 6. दुनिया की किस फितरत का हम पर असर हो सकता है?

5 इनके अलावा, हमारा मिलना-जुलना जिन लोगों से होता है वे अकसर “खुद से प्यार करनेवाले,” “मगरूर,” यहाँ तक कि “खूँखार” होते हैं। उनकी संगति में हम भी आसानी से उनके जैसे बन जाते हैं और गुस्सा करने लगते हैं। (2 तीमु. 3:2-5) दरअसल फिल्मों और टी.वी. के कार्यक्रमों में अकसर बदले की भावना को सही करार दिया जाता है और दिखाया जाता है कि किसी समस्या को हिंसा से दूर करना आम बात है, जिसमें कोई बुराई नहीं। ज़्यादातर कहानियों में दर्शक उस आखिरी दृश्‍य का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, जब गुंडे को ‘उसके किए की सज़ा मिलती है’ और कहानी के अंत में हीरो के हाथों गुंडे की मौत दिखायी जाती है।

6 इस तरह की हिंसा दरअसल “दुनिया की फितरत” और उसके गुस्सैल राजा शैतान की फितरत ज़ाहिर करती है, परमेश्‍वर के विचार नहीं। (1 कुरिं. 2:12; इफि. 2:2; प्रका. 12:12) ऐसी फितरत शरीर की अभिलाषाओं को बढ़ावा देती है जो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति और उसके फल के पूरी तरह खिलाफ है। दरअसल, मसीहियत की यह बुनियादी शिक्षा है कि उकसाए जाने पर हमें बदला लेने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। (मत्ती 5:39, 44, 45 पढ़िए।) तो फिर हम किस तरह यीशु की शिक्षाओं को पूरी तरह अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं?

अच्छे और बुरे उदाहरण

7. जब शिमोन और लेवी ने अपने गुस्से को काबू में न रखा तो उसका क्या नतीजा निकला?

7 बाइबल में गुस्से को काबू करने के बारे में ढेरों सलाह दी गयी हैं। असल ज़िंदगी के उदाहरणों से यह भी दिखाया है कि गुस्से में भड़कने का नतीजा क्या होता है और उस पर काबू पाने का नतीजा क्या होता? गौर कीजिए, जब शिमोन और लेवी को अपनी बहन दीना के साथ हुए कुकर्म की खबर मिली, तब शेकेम से बदला लेने का क्या अंजाम हुआ? वे “बहुत उदास और क्रोधित” हुए। (उत्प. 34:7) उसके बाद याकूब के बेटों ने शेकेम शहर पर हमला करके उसे लूट लिया और स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाकर ले आए। यह सब उन्होंने सिर्फ अपनी बहन की खातिर नहीं बल्कि अपनी शान या अपनी इज़्ज़त बनाए रखने की खातिर किया। उन्हें लगा कि शेकेम ने उनके और उनके पिता याकूब की बेइज़्ज़ती की है। दूसरी तरफ, क्या याकूब अपने बेटों के इस व्यवहार से खुश था?

8. शिमोन और लेवी के ब्यौरे से हम बदला लेने के बारे में क्या सीखते हैं?

8 हालाँकि दीना के साथ जो बुरा हुआ उससे याकूब को बहुत दुख पहुँचा, लेकिन बदले की आग में जलकर शिमोन और लेवी ने जो किया, याकूब ने उसे भी गलत ठहराया। मगर, शिमोन और लेवी अपने आपको सही ठहराने से बाज़ नहीं आए। उन्होंने कहा: “क्या वह हमारी बहिन के साथ वेश्‍या की नाईं बर्ताव करे?” (उत्प. 34:31) इन दोनों से ना सिर्फ याकूब, बल्कि यहोवा भी नाखुश था। कई साल बाद याकूब ने भविष्यवाणी की कि उसके बेटे शिमोन और लेवी के हिंसक और गुस्सैल व्यवहार की वजह से उनके वशंज पूरे इसराएल राष्ट्र में तितर-बितर हो जाएँगे। (उत्पत्ति 49:5-7 पढ़िए।) जी हाँ, अपने बेकाबू गुस्से की वजह से शिमोन और लेवी ने अपने पिता और परमेश्‍वर दोनों की मंज़ूरी खो दी।

9. दाविद गुस्से में आकर बदला लेने से कैसे बाल-बाल बचा?

9 राजा दाविद का मामला उनसे बहुत अलग था। दाविद के पास बदला लेने के कई मौके थे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। (1 शमू. 24:3-7) पर एक मौके पर वह गुस्से से इतना बेकाबू हो गया कि बस गलत कदम उठाने ही वाला था। दरअसल हुआ यह कि एक अमीर आदमी नाबाल ने दाविद के आदमियों को बहुत बुरा-भला कहा, जबकि उन्होंने नाबाल के झुंड और चरवाहों की हिफाज़त की थी। इसलिए दाविद से यह बरदाश्‍त नहीं हुआ और वह आग-बबूला होकर अपने आदमियों के साथ नाबाल और उसके घराने पर धावा बोलने निकल पड़ा। वे रास्ते में ही थे कि एक जवान ने नाबाल की समझदार पत्नी अबीगैल को सारा किस्सा कह सुनाया और कहा कि कुछ बुरा होने से पहले वह जल्द ही कोई कदम उठाए। अबीगैल ने तुरंत ढेर सारी चीज़ें लीं और तोहफे के तौर पर देने के लिए दाविद से मिलने निकल पड़ी। उसने नाबाल की करतूतों की माफी माँगी और दाविद से दरख्वास्त की अपने परमेश्‍वर यहोवा के भय की खातिर वह रुक जाए। दाविद तब शांत हुआ और उसने कहा: “धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने . . . से रोक लिया है।”—1 शमू. 25:2-35.

मसीही रवैया

10. बदला लेने के बारे में मसीहियों का क्या रवैया होना चाहिए?

10 शिमोन और लेवी, साथ ही दाविद और अबीगैल के मामले में जो हुआ उससे साफ पता चलता है कि यहोवा बेकाबू गुस्से और हिंसा से नफरत करता है और जो व्यक्‍ति शांति बनाए रखने के लिए कदम उठाता है यहोवा उसे कामयाबी देता है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “जहाँ तक तुमसे हो सके, सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो। हे प्यारो, अपना बदला मत लेना, मगर परमेश्‍वर के क्रोध को मौका दो, क्योंकि लिखा है: “यहोवा कहता है, बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” लेकिन “अगर तेरा दुश्‍मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी पिला, इसलिए कि ऐसा करने से तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा।” बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।”—रोमि. 12:18-21. *

11. एक बहन ने कैसे अपने गुस्से पर काबू करना सीखा?

11 प्रेषित पौलुस की यह सलाह ज़िंदगी में लागू की जा सकती है। उदाहरण के लिए एक मसीही बहन ने एक प्राचीन से अपनी नौकरी पर आयी समस्या के बारे में बताया। बहन ने कहा कि उसकी नयी मैनेजर भेदभाव करती है और उसके साथ अच्छा सलूक नहीं करती। इसलिए उसे अपनी मैनेजर पर बहुत गुस्सा आता है और वह नौकरी छोड़ना चाहती है। प्राचीन ने देखा कि बहन के गरम-मिज़ाज होने की वजह से मामला और बिगड़ गया था, इसलिए उसने कहा कि वह जल्दबाज़ी में कोई कदम न उठाए। (तीतु. 3:1-3) उस भाई ने बहन को समझाया कि उसे यह सीखना ज़रूरी है कि वह बुरा सुलूक करनेवाले मैनेजर के साथ कैसे पेश आए क्योंकि इस बात की गारंटी नहीं कि दूसरी नौकरी में ऐसी समस्या नहीं आएगी। भाई ने उसे सलाह दी कि हमें यीशु की शिक्षा को जीवन में लागू करना चाहिए, यानी उसे मैनेजर के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा वह खुद के साथ चाहती है। (लूका 6:31 पढ़िए।) वह बहन कोशिश करने के लिए तैयार हुई। नतीजा क्या निकला? कुछ समय बाद बहन के साथ मैनेजर के व्यवहार में थोड़ा बदलाव आ गया, यहाँ तक कि मैनेजर उसके काम की कदर करने लगी।

12. जब समस्या मसीही भाई-बहनों के बीच खड़ी होती है, खासकर तब क्यों ज़्यादा तकलीफ हो सकती है?

12 दुनिया के लोगों के साथ अगर कोई समस्या खड़ी हो जाए तो इसमें हैरानी की बात नहीं। हम जानते हैं कि शैतान की दुनिया में अकसर हमारे साथ नाइंसाफी की जाती है और यह भी कि दुष्टों के गुस्सा दिलाने पर अपने गुस्से को काबू में रखना हमारे लिए बहुत ज़रूरी होता है। (भज. 37:1-11; सभो. 8:12, 13; 12:13, 14) लेकिन अगर समस्या हमारे मसीही भाई-बहनों की तरफ से हो तो तकलीफ ज़्यादा होती है। एक बहन कहती है, “जब मैं सच्चाई सीख रही थी तब यह बात पचाना मेरे लिए मुश्‍किल हो रहा था कि यहोवा के लोग भी गलती करते हैं।” हम बेरुखी और बेपरवाह दुनिया से निकलकर आते हैं तो उम्मीद करते हैं कि मंडली में भाई-बहन एक-दूसरे के साथ प्यार से पेश आएँगे। इसलिए अगर संगी मसीही कुछ ऐसा कह दे या कर दे जो मसीहियों को शोभा नहीं देता और खासकर ऐसा मसीही, जो किसी ज़िम्मेदारी के पद पर है तब तो दिल को बड़ी ठेस पहुँचती है, यहाँ तक कि गुस्सा भी आता है। हमारे मन में शायद यह सवाल उठे: ‘यहोवा के लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं?’ पर यह नयी बात नहीं है, ऐसा प्रेषितों के ज़माने में अभिषिक्‍त मसीहियों के बीच भी हुआ था। (गला. 2:11-14; 5:15; याकू. 3:14, 15) जब हमारे साथ ऐसा होता है तब हमें क्या करना चाहिए?

13. मतभेदों को दूर करना क्यों ज़रूरी है और यह कैसे किया जाना चाहिए?

13 अभी जिस बहन का ज़िक्र किया गया, वह बहन कहती है, “जो मुझे ठेस पहुँचाते थे, मैं उनके लिए प्रार्थना करने लगी और इससे मुझे बहुत मदद मिली।” जैसा कि हमने पढ़ा, यीशु ने अपने दुश्‍मन के लिए प्रार्थना करना सिखाया। (मत्ती 5:44) तो अपने मसीही भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करना और भी कितना ज़रूरी है! जिस तरह एक पिता चाहता है कि उसके सभी बच्चे एक-दूसरे से प्यार करें, उसी तरह यहोवा चाहता है कि धरती पर उसके सेवक एक-दूसरे के साथ मिलकर रहें। हम उस दिन की आस देखते हैं जब हम एक-साथ सुख-चैन से हमेशा के लिए जीएँगे और इस तरह से जीने के लिए यहोवा हमें अभी से सिखा रहा है। वह चाहता है कि हम उसके महान काम को एक-दूसरे का साथ देते हुए पूरा करें। इसलिए आइए हम अपनी समस्या को सुलझाएँ या गलतियों को “भुलाना” सीखें और आगे बढ़ते जाएँ। (नीतिवचन 19:11 पढ़िए।) अपने भाई-बहनों के साथ समस्या उठने पर उनसे दूर चले जाने के बजाय, चाहिए कि हम एक-दूसरे की मदद करते हुए परमेश्‍वर के लोगों में ही रहें और यहोवा की ‘सनातन भुजाओं’ में महफूज़ रहें।—व्यव. 33:27.

नर्मी से पेश आने का बढ़िया नतीजा

14. भाई-बहनों में फूट डालने की शैतान की चाल को हम कैसे नाकाम कर सकते हैं?

14 खुशखबरी सुनाने से रोकने के लिए शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूत मंडली में फूट डालने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। वे जानते हैं कि आपसी मतभेदों से मंडली और परिवार तबाह हो सकते हैं। (मत्ती 12:25) उनके बुरे मंसूबे नाकाम करने के लिए पौलुस की इस सलाह को मानना अच्छा होगा: “प्रभु के दास को लड़ने की ज़रूरत नहीं बल्कि ज़रूरी है कि वह सब लोगों के साथ नर्मी से पेश आए।” (2 तीमु. 2:24) याद रखिए कि हमारी कुश्‍ती “हाड़-माँस के इंसानों से नहीं, बल्कि . . . शक्‍तिशाली दुष्ट दूतों से है।” उस कुश्‍ती में जीत पाने के लिए हमें अपने अध्यात्मिक हथियार धारण करने होंगे, जिसमें “शांति की खुशखबरी सुनाने की तैयारी के जूते” पहनना शामिल है।—इफि. 6:12-18.

15. दुनियावाले जब हमें सताते हैं तो हमें क्या करना चाहिए?

15 दुनिया में यहोवा के दुश्‍मन, शांति से रहनेवाले उसके लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए उन्हें कई तरीकों से सताते हैं। इनमें से कुछ दुश्‍मन यहोवा के साक्षियों को बेरहमी से पीटते हैं। दूसरे अदालत और पत्रिकाओं-अखबारों में झूठ बोलते और छापते हैं। इस बारे में यीशु ने अपने चेलों को पहले ही आगाह कर दिया था। (मत्ती 5:11, 12) अगर हमारे साथ ऐसा कुछ होता है तो हमें क्या करना चाहिए? अपने कामों या अपनी बोली से हमें कभी-भी “बुराई का बदला बुराई से” नहीं देना चाहिए।—रोमि. 12:17; 1 पतरस 3:16 पढ़िए।

16, 17. एक मंडली ने कौन-सी चुनौती का सामना किया?

16 चाहे शैतान हम पर कैसी भी मुसीबत लाए मगर हम “भलाई से बुराई को जीतते” हुए लोगों को एक बढ़िया गवाही दे सकते हैं। उदाहरण के लिए पैसिफिक द्वीप की एक मंडली ने स्मारक मनाने के लिए एक हॉल किराए पर लिया। जब चर्च के पादरियों को पता चला तो उन्होंने अपने लोगों को चर्च की सभा के लिए उसी वक्‍त वहाँ जमा होने को कहा जब हमें स्मारक मनाना था। एक पुलिस अफसर ने चर्च के अधिकारियों को आदेश दिया कि साक्षियों का कार्यक्रम शुरू होने से पहले हॉल खाली हो जाना चाहिए। लेकिन जब स्मारक मनाने का समय आया तो क्या देखा कि हॉल, चर्च के सदस्यों से भरा हुआ है और उन्होंने तभी अपनी सभा शुरू की।

17 जब पुलिस जबरन लोगों से हॉल खाली कराने लगी तो चर्च का एक अध्यक्ष हमारे एक प्राचीन के पास आकर कहने लगा: “क्या यहाँ आप लोगों का कोई खास कार्यक्रम होनेवाला है?” जब भाई ने स्मारक के बारे में बताया तो उस आदमी ने कहा: “ओह! मुझे इसके बारे में पता नहीं था!” इस पर पुलिसवाला झल्लाया: “अरे! हमने तो सुबह ही आपको बताया था!” वह आदमी प्राचीन की तरफ देखते हुए और धूर्तता से मुस्कराते हुए बोला: “तो अब क्या करने का इरादा है? यह हॉल तो लोगों से खचाखच भरा है। क्या अब तुम पुलिस की मदद से हमें यहाँ से खदेड़ोगे?” उसने बड़ी चालाकी से बात को इस तरह घुमाया ताकि लगे कि साक्षी उन्हें तकलीफ देने के इरादे से आए हैं। लेकिन हमारे भाइयों ने क्या किया?

18. गुस्सा दिलाने पर भाइयों ने क्या किया और उसका क्या नतीजा निकला?

18 साक्षियों ने चर्च को आधे घंटे की अनुमति और दे दी, जिसके बाद वे अपना स्मारक का कार्यक्रम शुरू करते। लेकिन चर्च का कार्यक्रम लंबे समय तक चला। जब चर्च के सदस्य चले गए तब साक्षियों ने स्मारक मनाया। अगले दिन सरकार ने जाँच के लिए अधिकारियों के साथ एक सभा रखी। सबूतों को मद्देनज़र रखते हुए इस सभा ने चर्च से कहा कि वे यह घोषणा करें कि कल जो भी हंगामा हुआ वह साक्षियों की वजह से नहीं बल्कि चर्च के अध्यक्ष की वजह से हुआ। साथ ही, बोर्ड ने साक्षियों का शुक्रिया अदा किया कि आप लोगों ने मुश्‍किल घड़ी में धीरज से काम लेकर बहुत अच्छा किया। जी हाँ, “सबके साथ शांति बनाए रखने” की साक्षियों की कोशिश रंग लायी।

19. प्यार भरा रिश्‍ता कायम रखने का एक और तरीका क्या है?

19 शांति बनाए रखने का एक तरीका है, मन को भानेवाली बोली बोलना। अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि मनभावनी बोली क्या होती है और इसे कैसे सीखा और बोला जा सकता है।

[फुटनोट]

^ पुराने ज़माने में जब कच्ची धातु के ऊपर और नीचे “अंगारों का ढेर” जलाकर उसे पिघलाया जाता था तो उसमें से धातुएँ निकलती थीं। जब कोई हमारे साथ बुरा व्यवहार करता है और हम उसे प्यार दिखाते हैं तो इससे उनका मन पिघलता है और उसके बढ़िया गुण दिखायी देते हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

• दुनिया के लोग क्यों बहुत गुस्सा हो जाते हैं?

• बाइबल के किन उदाहरणों से पता चलता है कि गुस्से पर काबू रखने और न रखने के क्या नतीजे निकलते हैं?

• अगर एक मसीही हमें ठेस पहुँचाता है तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए?

• जब दुनियावाले हमें तरह-तरह से सताते हैं तो हमें कैसे पेश आना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 16 पर तसवीर]

गुस्से में तबाही मचाने के बाद शिमोन और लेवी लौटे

[पेज 18 पर तसवीरें]

अगर हम प्यार से पेश आएँ तो दूसरों के रवैए में बदलाव आ सकता है