इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

परमेश्‍वर के लोगों के बीच सुरक्षा पाइए

परमेश्‍वर के लोगों के बीच सुरक्षा पाइए

परमेश्‍वर के लोगों के बीच सुरक्षा पाइए

“मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा।”—भज. 35:18.

1-3. (क) किन वजहों से कुछ मसीही यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को खतरे में डाल सकते हैं? (ख) परमेश्‍वर के लोग कहाँ सुरक्षा पा सकते हैं?

 एक बार छुट्टियों के दौरान जोसफ नाम का एक मसीही भाई अपनी पत्नी के साथ समुद्र में तैराकी के लिए उतरा। वहाँ उन्होंने मूँगे की चट्टान और अलग-अलग आकार की ढेरों रंग-बिरंगी मछलियाँ देखीं। उनकी खूबसूरती उन्हें इतनी भा गयी कि वे तैरते-तैरते काफी गहराई में उतर आए। जब वे एकदम समुद्र तल तक पहुँचे तो जोसफ की पत्नी बोली: “मुझे लगता है कि हमें और नीचे नहीं जाना चाहिए।” जोसफ ने कहा: “चिंता मत करो। मुझे मालूम है कि हम कहाँ हैं।” लेकिन इसके तुरंत बाद वह सोचने लगा कि ‘अचानक सारी मछलियाँ कहाँ गायब हो गयीं?’ और तब वह बुरी तरह घबरा गया। उसकी समझ में आ गया कि वह वाकई बहुत दूर निकल आया है। उस गहरे समुद्र में एक शार्क मछली उसकी तरफ बढ़ी चली आ रही थी। अब तो उसकी जान मछली के रहमो-करम पर थी। वह मछली से सिर्फ एक हाथ के फासले पर था कि अचानक उसने देखा कि वह दूसरी तरफ मुड़ी और चली गयी।

2 आज शैतान की दुनिया में भी बहुत-से आकर्षण हैं, जैसे मनोरंजन, काम-काज और ऐशो-आराम की चीज़ें। और ये एक मसीही को अपनी तरफ इस कदर खींच सकती हैं कि वह अनजाने में ही दुनियावी समुद्र की गहराई तक उतर सकता है, जिसमें काफी खतरा है। जोसफ जिसका ज़िक्र ऊपर किया है, वह एक मसीही प्राचीन है। वह कहता है: “मेरे अनुभव ने मुझे सोचने पर मजबूर किया है कि हमें अपनी संगति पर काफी ध्यान देने की ज़रूरत है।” फिर वह कहता है: “ऐसी जगह में तैरिए, जहाँ आप मज़ा भी ले सकें और कोई खतरा भी न हो। और वह जगह है, मंडली।” जी हाँ, आप ऐसी जगह गहराई में मत तैरिए, जहाँ आप आध्यात्मिक तौर पर अकेले और खतरे में पड़ जाएँ। अगर कभी आप खुद को ऐसे हालात में पाते हैं तो तुरंत मुड़कर ‘सुरक्षित जगह’ में आ जाइए। वरना यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता खतरे में पड़ सकता है यानी आप आध्यात्मिक तौर पर निगल लिए जा सकते हैं।

3 आज यह दुनिया मसीहियों के लिए काफी खतरनाक है। (2 तीमु. 3:1-5) शैतान जानता है कि वह कुछ ही दिनों का मेहमान है और इसलिए वह बेखबर लोगों को फाड़ खाने की ताक में रहता है। (1 पत. 5:8; प्रका. 12:12, 17) लेकिन हमारे लिए सुरक्षा का इंतज़ाम किया गया है। यहोवा ने अपने लोगों के लिए आध्यात्मिक गढ़ यानी मसीही मंडली का इंतज़ाम किया है।

4, 5. लोग अपने भविष्य के बारे में कैसा महसूस करते हैं और क्यों?

4 चाहे शारीरिक तौर पर हो या भावनात्मक, यह दुनिया बस एक हद तक ही सुरक्षा देती है। आज बहुतों को अपनी शारीरिक सुरक्षा खतरे में नज़र आती है क्योंकि अपराध, हिंसा और महँगाई बढ़ती जा रही है और वातावरण बिगड़ता जा रहा है। सभी लोगों को बुढ़ापे और बीमारी का सामना करना पड़ता है। और जिनके पास बढ़िया नौकरी, घर, पैसा और अच्छी सेहत है, वे भी सोचते हैं कि आखिर ये सब कितने दिन तक रहेगा।

5 उसी तरह भावनात्मक तौर पर भी बहुत-से लोग असुरक्षित महसूस करते हैं। कई लोगों ने यह उम्मीद की थी कि उन्हें शादी-शुदा ज़िंदगी और परिवार से सच्ची खुशी और शांति मिलेगी, मगर अफसोस कि उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। आध्यात्मिक मामले में भी लोगों को निराशा हाथ लगी है। चर्च जानेवालों को संदेह होता है कि जो राह उन्हें दिखायी जाती है वह सही भी है या नहीं, खासकर जब चाल-चलन की बात आती है या जब धर्म-गुरु ऐसी शिक्षा देते हैं जो बाइबल के खिलाफ होती है। इसलिए बहुत-से लोगों को विज्ञान पर भरोसा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखता। या फिर उन्हें लगता है कि इंसान का भला सोचो और भला करो यही काफी है। इन्हीं वजहों से लोग खुद को बिलकुल सुरक्षित महसूस नहीं करते, या फिर अपने भविष्य के बारे में गहराई से सोचना ही छोड़ देते हैं।

6, 7. (क) जो परमेश्‍वर की सेवा करते हैं और जो नहीं करते, उन दोनों के अलग नज़रिए की वजह क्या है? (ख) हम किस बात पर गौर करेंगे?

6 लेकिन दुनिया के लोगों और मसीही मंडली के सदस्यों के नज़रिए में कितना बड़ा फर्क है! हम यहोवा के लोग भी उन्हीं सवालों और समस्याओं का सामना करते हैं जो हमारे आस-पास के लोग करते हैं मगर हमारा रवैया उनसे बहुत अलग होता है। (यशायाह 65:13, 14; मलाकी 3:18 पढ़िए।) क्यों? क्योंकि बाइबल हमें अच्छी तरह समझाती है कि आज इंसान ऐसे हालात से क्यों जूझ रहा है। और हम जिंदगी की हर चुनौती और समस्या का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। यही वजह है कि हम भविष्य के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करते। यहोवा के उपासक होने के नाते हमें बुरे कामों और गलत दलीलों से और उनके खतरनाक नतीजों से सुरक्षा मिलती है। इसलिए मसीही मंडली के सदस्यों को ऐसा सुकून मिलता है जो दूसरों की समझ के बाहर है।—यशा. 48:17, 18; फिलि. 4:6, 7.

7 बाइबल में दिए कुछ उदाहरणों पर गौर करने से हम समझ पाएँगे कि जो यहोवा की सेवा करते हैं, उन्हें किस तरह सुरक्षा मिलती है और जो नहीं करते वे किस तरह के खतरे में पड़ते हैं। ये उदाहरण हमारी मदद करेंगे कि हम अपनी दलीलों और आदतों की जाँच करें और देखें कि क्या हम परमेश्‍वर की सलाहों को और भी अच्छी तरह मान सकते हैं, जिनसे हमारी हिफाज़त होती है।—यशा. 30:21.

“मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे”

8. यहोवा के सेवकों ने हमेशा क्या किया है?

8 इंसान की शुरूआत से ही देखा गया है कि यहोवा की सेवा करनेवालों और आज्ञा माननेवालों ने हमेशा उनकी संगति को ठुकराया है, जो यहोवा के उपासक नहीं थे। यहोवा ने साफ-साफ बता दिया था कि उसके उपासकों और शैतान के चेलों में दुश्‍मनी होगी। (उत्प. 3:15) यहोवा के लोग हर हाल में उसके सिद्धांतों को मानना चाहते हैं, जिसकी वजह से वे हमेशा अपने आस-पास के उन लोगों से अलग काम करते हैं, जिन्हें परमेश्‍वर के सिद्धांतों की कदर नहीं होती। (यूह. 17:15, 16; 1 यूह. 2:15-17) लेकिन परमेश्‍वर के सिद्धांतों पर चलना हमेशा आसान नहीं होता। तभी तो यहोवा के कुछ सेवकों ने सवाल उठाया है कि क्या ऐसी आत्म-त्याग की ज़िंदगी जीने में वाकई समझदारी है।

9. भजन 73 के लेखक ने जिस चुनौती का सामना किया उसके बारे में बताइए।

9 यहोवा का एक सेवक जो शायद आसाप के वंश से था और जिसने भजन 73 लिखा था, उसके मन में भी एक बार यह संदेह उठा कि यहोवा की सेवा करने का जो उसने फैसला किया है, क्या वह सही है। उसने पूछा कि ऐसा क्यों है कि दुष्ट लोग हमेशा सफल होते और खुशहाल नज़र आते हैं। जबकि परमेश्‍वर की सेवा करनेवालों की ज़िंदगी मुश्‍किलों से भरी होती है।भजन 73:1-13 पढ़िए।

10. भजनहार के पूछे सवालों पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?

10 क्या भजनहार की तरह कभी आपके मन में भी ऐसे ही संदेह उठे हैं? अगर हाँ, तो खुद को बहुत दोषी मत समझिए, ना ही यह सोचिए कि आपका विश्‍वास डगमगाने लगा है। दरअसल यहोवा के बहुत-से सेवकों ने, यहाँ तक कि बाइबल लेखकों ने भी ऐसा ही महसूस किया था। (अय्यू. 21:7-13; भज. 37:1; यिर्म. 12:1; हब. 1:1-4, 13) तो यह सवाल कि “क्या परमेश्‍वर की सेवा करना और उसकी आज्ञा मानना ही इंसान के लिए सबसे अच्छा है?” इसका जवाब है, हाँ। और जो यहोवा की सेवा करना चाहते हैं, उन्हें यह सवाल पूछना ही चाहिए और इसके जवाब पर भरोसा भी करना चाहिए। यह सवाल अदन के बाग में उठाए शैतान के उस मसले से जुड़ा है, जो उसने यहोवा के राज करने के अधिकार पर खड़ा किया था और यह विश्‍व का सबसे अहम मसला है। (उत्प. 3:4, 5) इसलिए अच्छा होगा कि हम सभी भजनहार के उन सवालों पर गौर करें। क्या हमें डींग मारनेवाले दुष्ट लोगों से जलना चाहिए, जिन्हें देखकर लगता है कि वे सुख से जी रहे हैं? क्या हम यहोवा की सेवा से अपने ‘डग उखड़ने’ देंगे यानी यहोवा की सेवा छोड़कर दुष्टों के रास्ते पर चलेंगे? शैतान तो चाहता है कि हम ऐसा ही करें।

11, 12. (क) भजनहार ने कैसे अपना संदेह दूर किया और इससे हम क्या सीखते हैं? (ख) भजनहार जिस नतीजे पर पहुँचा, उस नतीजे पर पहुँचने में किस बात ने आपकी मदद की?

11 भजनहार ने कैसे इस तरह के संदेह दूर किए? हालाँकि उसने धर्म के रास्ते पर न चलने का लगभग मन बना ही लिया था, लेकिन जब वह “ईश्‍वर के पवित्रस्थान में” गया तो उसका नज़रिया बदल गया। यानी, जब वह परमेश्‍वर के मंदिर में यहोवा के लोगों से मिला और उसने परमेश्‍वर के मकसद के बारे में सोचा, तब उसे समझ में आया कि दुष्टों का क्या हश्र होगा, जिसका भागी वह नहीं होना चाहता था। वह देख सका कि दुष्ट किस रास्ते पर जा रहे हैं और ज़िंदगी में वे जो भी चुनाव करते हैं वह उन्हें “फिसलनेवाले स्थानों में” खड़ा करता है। भजनहार ने समझ लिया कि जो यहोवा को छोड़कर किसी और के पास जाते हैं, “सहसा उन पर विपत्ति” (ईज़ी टू रीड वर्शन) आती है और उनका नाश हो जाता है। मगर यहोवा अपनी सेवा करनेवालों को कभी नहीं छोड़ता। (भजन 73:16-19, 27, 28 पढ़िए।) बेशक आपने इस बात को सच होते हुए देखा होगा। बहुत-से लोगों को शायद अपने लिए ही जीना अच्छा लगे। उन्हें परमेश्‍वर के नियमों की कोई कदर न हो, मगर वे इसके बुरे अंजामों से बच नहीं सकते।—गला. 6:7-9.

12 भजनहार के अनुभव से हम और क्या सीखते हैं? उसने परमेश्‍वर के लोगों में सुरक्षा और बुद्धि पायी। जब वह उस जगह गया जहाँ यहोवा की उपासना होती है तब वह सही तरीके से सोचने लगा। उसी तरह मंडली की सभाओं में हमें बढ़िया आध्यात्मिक भोजन और बुद्धिमान सलाहकार मिलते हैं। इसलिए यहोवा अपने सेवकों को मसीही सभाओं में हाज़िर होने के लिए कहता है। वहाँ उन्हें बुद्धिमानी से काम करने का हौसला और प्रेरणा मिलती है।—यशा. 32:1, 2; इब्रा. 10:24, 25.

बुद्धिमानी से अपने दोस्त चुनिए

13-15. (क) दीना के साथ क्या हुआ और उससे हम क्या सीखते हैं? (ख) मसीही भाई-बहनों के साथ दोस्ती करने से कैसे हिफाज़त होती है?

13 दुनिया के लोगों के साथ मेल-जोल रखने की वजह से याकूब की बेटी दीना एक गंभीर समस्या में पड़ गयी। उसके बारे में उत्पत्ति की किताब में दिया वृत्तांत बताता है कि दीना का परिवार जहाँ रहता था, वहाँ की कनानी स्त्रियों से मिलने वह अकसर जाया करती थी। कनानी लोग यहोवा के उपासकों की तरह उसके ऊँचे स्तरों को नहीं मानते थे। पुरातत्वज्ञानियों की खोज दिखाती है कि कनानी लोग जिस तरह की ज़िंदगी जीते थे उसकी वजह से पूरा देश मूर्तिपूजा, अनैतिकता, घिनौनी लिंग उपासना और हिंसा से भर गया था। (निर्ग. 23:23; लैव्य. 18:2-25; व्यव. 18:9-12) याद कीजिए कि ऐसे लोगों से मेल-जोल रखने की वजह से दीना का क्या हश्र हुआ।

14 वहाँ शेकेम नाम का एक आदमी रहता था, जिसके बारे में कहा गया कि “वह तो अपने पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित था।” उसने दीना को देखा “और उसे ले जाकर उसके साथ कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला।” (उत्प. 34:1, 2, 19) कितना भयानक अंजाम! क्या आपको लगता है, दीना ने कभी सपने में भी यह सोचा होगा कि उसके साथ ऐसा होगा? शायद वह वहाँ के कुछ जवानों से बस दोस्ती करना चाहती थी। और उसे लगा कि इन लोगों से उसे कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन दीना बुरी तरह फँस गयी।

15 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? अगर हम ऐसे लोगों के साथ दोस्ती करते हैं जो यहोवा के उपासक नहीं हैं, तो हमें उसका अंजाम ज़रूर भुगतना पड़ेगा। बाइबल कहती है: “बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।” (1 कुरिं. 15:33) लेकिन जिनके विश्‍वास और स्तर आपकी तरह होते हैं और जो यहोवा से प्यार करते हैं, उन लोगों के साथ दोस्ती करने से आपकी हिफाज़त होगी। ऐसी अच्छी दोस्ती आपको बुद्धिमानी से काम करने के लिए उकसाएगी।—नीति. 13:20.

“तुम्हें धोकर शुद्ध किया”

16. प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ की मंडली के कुछ लोगों के बारे में क्या बताया?

16 मसीही मंडली ने बहुत-से लोगों की मदद की है जिसकी वजह से वे बुरे काम छोड़कर शुद्ध हो पाए। जब प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को अपना पहला खत लिखा तो उसने बताया कि इन मसीहियों ने परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने के लिए कैसे-कैसे बदलाव किए। कुछ लोग पहले व्यभिचारी, मूर्तिपूजक, शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाले, पुरुषों के साथ संभोग करनेवाले पुरुष, चोर, पियक्कड़ वगैरह थे। पौलुस ने कहा: “मगर . . . तुम्हें धोकर शुद्ध किया” गया।1 कुरिंथियों 6:9-11 पढ़िए।

17. बाइबल के स्तरों के मुताबिक जीने से कैसे बहुतों की ज़िंदगी में बदलाव आया?

17 जो लोग परमेश्‍वर पर विश्‍वास नहीं करते, उनके पास सही रास्ता इख्तियार करने के लिए सही सिद्धांत नहीं होते। वे खुद ही अपना रास्ता तय करते हैं या वे दुनिया के अनैतिक माहौल में खुद को ढाल लेते हैं जैसा कि यहोवा के उपासक बनने से पहले पुराने जमाने के कुरिंथ के मसीहियों ने किया था। (इफि. 4:14) परमेश्‍वर के वचन और उसके मकसद के बारे में सही-सही ज्ञान, इतनी ताकत रखता है कि अगर एक व्यक्‍ति उस ज्ञान के मुताबिक काम करे तो उसकी ज़िंदगी बदल सकती है। (कुलु. 3:5-10; इब्रा. 4:12) आज मसीही मंडली के बहुत-से भाई-बहन आपको बता सकते हैं कि पहले वे बेरोक-टोक अनैतिक ज़िंदगी जीया करते थे, फिर भी न तो वे खुश थे, न ही संतुष्ट। उन्हें शांति तभी मिली जब वे यहोवा के धर्मी स्तरों के बारे में सीखकर उसके लोगों के साथ संगति करने लगे और बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक जीने लगे।

18. एक जवान ने क्या अनुभव किया और उससे क्या साबित हुआ?

18 दूसरी तरफ, जो मसीही मंडली के ‘सुरक्षित पानी’ से दूर चले गए, वे अब अपने उस फैसले पर बहुत पछताते हैं। तान्या * नाम की एक बहन बताती है कि मैं उस “माहौल में पली-बढ़ी जहाँ बहुत-से लोग सच्चाई में थे।” लेकिन जब वह 16 साल की हुई तो वह “दुनिया का मज़ा लूटना चाहती थी” इसलिए उसने मंडली से नाता तोड़ लिया। उसे कई बुरे अंजाम भुगतने पड़े जिसमें अनचाहा गर्भ और गर्भपात शामिल था। अब वह कहती है: “मंडली से दूर होकर मैंने जो तीन साल गुज़ारे, उसने मेरे मन पर ऐसी बुरी छाप छोड़ी है जिसे मैं भुला नहीं सकती। एक बात जो मुझे खाए जाती है, वह यह कि मैंने अपने अजन्मे बच्चे की जान ले ली। . . . वे सारे जवान जो सिर्फ कुछ पल के लिए दुनिया का मज़ा ‘चखना’ चाहते हैं, मेरा उनसे कहना है: ‘ऐसा हरगिज़ मत कीजिए!’ पहले-पहल उसका स्वाद अच्छा लग सकता है, लेकिन बाद में यह बहुत ही कड़वाहट छोड़ जाता है। इस दुनिया के पास आपको देने के लिए दुख-तकलीफ के सिवाय और कुछ नहीं है। मैं जानती हूँ क्योंकि मैंने इसका स्वाद चखा है। यहोवा के संगठन में रहिए! यहीं रहकर आपको सच्ची खुशी मिल सकती है।”

19, 20. मसीही मंडली हमें क्या हिफाज़त देती है और किस तरह?

19 ज़रा सोचिए, अगर आप मसीही मंडली के सुरक्षा कवच से बाहर निकल जाते हैं, तो आपका क्या अंजाम होगा। बहुत-से लोग सच्चाई कबूल करने से पहले जिस रास्ते पर थे, उसके बारे में सोचकर ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। (यूह. 6:68, 69) अगर आप मसीही भाई-बहनों के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाकर रखें तो शैतान की इस दुनिया में जहाँ दुख-तकलीफ और शोक आम बात है, उससे आप अपनी हिफाज़त कर पाएँगे। जी हाँ, अगर आप उनके साथ संगति करें और सभाओं में नियम से हाज़िर होते रहें तो इससे यह बात आपके दिमाग में ताज़ा रहेगी कि यहोवा के धर्मी स्तरों को मानना ही बुद्धिमानी है और आपको उन स्तरों के मुताबिक जीने का हौसला मिलता रहेगा। भजनहार की तरह ‘बड़ी सभा में यहोवा का धन्यवाद’ करने की आपके पास कई वजह हैं।—भज. 35:18.

20 इसमें दो राय नहीं कि सभी मसीहियों की ज़िंदगी में वह पल आता है, जब उनके लिए अपनी खराई बनाए रखना बहुत मुश्‍किल होता है। तब उन्हें सिर्फ सही मार्ग दिखाने की ज़रूरत हो सकती है। ऐसे समय पर आप, यहाँ तक मंडली के बाकी लोग अपने भाई-बहनों की मदद कैसे कर सकते हैं? अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि आप अपने भाइयों को ‘दिलासा देने और उनकी हिम्मत बंधाने के लिए’ क्या कर सकते हैं।—1 थिस्स. 5:11.

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

आप कैसे जवाब देंगे?

भजन 73 के लेखक के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?

• दीना का अनुभव हमें क्या सिखाता है?

• आपको मसीही मंडली में ही सुरक्षा क्यों मिल सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 7 पर तसवीरें]

ऐसी जगह में तैरिए जहाँ कोई खतरा न हो; और मंडली में रहिए!