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मंडली का हौसला बढ़ाते रहिए

मंडली का हौसला बढ़ाते रहिए

मंडली का हौसला बढ़ाते रहिए

“एक-दूसरे को दिलासा देते रहो और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते रहो।”—1 थिस्स. 5:11.

1. मसीही मंडली में रहने से हमें क्या आशीषें मिलती हैं, फिर भी हमें किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

 मसीही मंडली का सदस्य होने से बड़ी आशीषें मिलती हैं। मसलन, आपका यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता होता है। आप दुनिया के तौर-तरीके नहीं अपनाते और उनके बुरे अंजामों से खुद को बचाते हैं क्योंकि मार्गदर्शक के तौर पर आप परमेश्‍वर के वचन पर भरोसा रखते हैं। आप भला चाहनेवाले सच्चे दोस्तों से घिरे रहते हैं। जी हाँ, आशीषें तो बहुत हैं। मगर ज़्यादातर मसीही किसी-न-किसी समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ भाई-बहनों को परमेश्‍वर के वचन की गहरी समझ नहीं है, सो उन्हें मदद चाहिए। कुछ बीमार हैं तो कुछ निराश, या कुछ उन गलत फैसलों की सज़ा भुगत रहे हैं जो कभी उन्होंने किए थे। और यह समस्या हम सबके सामने है कि हम सबको इस दुष्ट संसार में जीना है।

2. अपने भाइयों को मुसीबत में देखकर हमें क्या करना चाहिए और क्यों?

2 हममें से कोई भी अपने मसीही भाई-बहन को तकलीफ में या तड़पते नहीं देख सकता। प्रेषित पौलुस ने मसीही मंडली की तुलना शरीर से की और कहा: “अगर एक अंग को तकलीफ होती है, तो बाकी सभी अंग उसके साथ तकलीफ उठाते हैं।” (1 कुरिं. 12:12, 26) ऐसे हालात में हमें अपने भाई-बहनों की मदद करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। बाइबल में ऐसे बहुत-से उदाहरण हैं जब मसीही मंडली के लोगों ने भाई-बहनों की मदद की ताकि वे अपनी परेशानियों से पार पा सकें। जैसे-जैसे हम उन हालात पर गौर करेंगे, आप जाँचिए कि आप कैसे उस तरह मदद कर सकते हैं, जैसा उन उदाहरणों में बताया गया है। आप अपने भाई-बहनों को कैसे सहारा दे सकते हैं ताकि वे परमेश्‍वर की सेवा करते रह सकें और यहोवा की मंडली को मज़बूत बना सकें?

“उन्होंने उसे अपनी संगति में ले लिया”

3, 4. किस तरह अक्विला और प्रिस्किल्ला ने अप्पुलोस की मदद की?

3 जब अप्पुलोस इफिसुस में रहता था तब वह एक जोशीला प्रचारक था। प्रेषितों की किताब बताती है कि “वह पवित्र शक्‍ति के तेज से भरपूर था, इसलिए वह यीशु के बारे में सही-सही बातें बोलता और सिखाता था। मगर उसे सिर्फ उस बपतिस्मे की जानकारी थी जिसका यूहन्‍ना ने प्रचार किया था।” तो इसका मतलब है कि अप्पुलोस को “पिता, बेटे और पवित्र शक्‍ति के नाम से बपतिस्मा” लेने के बारे में नहीं पता था। इससे ज़ाहिर होता है कि उसे या तो यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के किसी चेले ने या पिन्तेकुस्त 33 ईसवी से पहले यीशु के किसी चेले ने गवाही दी थी। हालाँकि अप्पुलोस एक जोशीला प्रचारक था, फिर भी वह सच्चाई की कुछ खास बातें ठीक से नहीं समझा था। तो मसीहियों के साथ संगति करने से उसे कैसे मदद मिली?—प्रेषि. 1:4, 5; 18:25; मत्ती 28:19.

4 एक मसीही जोड़े प्रिस्किल्ला और अक्विला ने अप्पुलोस को सभा-घर में पूरी हिम्मत के साथ प्रचार करते सुना। वे दोनों उसे अपने साथ ले आए और उसे बहुत-सी बातें सिखायीं। (प्रेषितों 18:24-26 पढ़िए।) ऐसा करके उन्होंने बहुत अच्छा किया। बेशक अक्विला और प्रिस्किल्ला ने बड़ी एहतियात बरतते हुए और मदद करने के इरादे से उससे बात की होगी ताकि उसे ऐसा न लगे कि उसमें कमियाँ निकाली जा रही हैं। उसे सिर्फ इतनी जानकारी दिए जाने की ज़रूरत थी कि मसीही मंडली की शुरूआत कैसे हुई। इस जोड़े ने अप्पुलोस को जो यह खास जानकारी दी उसके लिए वह उनका बहुत एहसानमंद था। यह सीखने के बाद अप्पुलोस ने अखया के भाइयों की “बहुत मदद” की और ज़बरदस्त गवाही दी।—प्रेषि. 18:27, 28.

5. राज के हज़ारों प्रचारक क्या मदद करते हैं और इसका क्या नतीजा होता है?

5 आज भी मसीही मंडली में कई लोग उन भाई-बहनों का बहुत एहसान मानते हैं जिन्होंने बाइबल समझने में उनकी मदद की। ऐसे बहुत-से उदाहरण हैं जिनमें बाइबल विद्यार्थी और सिखानेवाले के बीच अच्छी दोस्ती कायम हो गयी है। अकसर लोगों को सच्चाई सिखाने में महीनों तक उनसे नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन करने के लिए समय निकालना होता है। और राज के प्रचारक यह त्याग करने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि यह ज़िंदगी और मौत का सवाल है। (यूह. 17:3) यह देखकर कितनी खुशी मिलती है कि लोग सच्चाई को दिलो-दिमाग में उतार लेते हैं और उसके मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीते और अपना जीवन यहोवा की इच्छा पूरी करने में लगा देते हैं।

“तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे”

6, 7. (क) अपने साथ दौरे पर ले जाने के लिए पौलुस ने तीमुथियुस को क्यों चुना? (ख) किस तरह तीमुथियुस की मदद की गयी जिससे वह तरक्की कर सका?

6 प्रेषित पौलुस, सीलास के साथ अपने दूसरे मिशनरी दौरे पर लुस्त्रा गया तो वे वहाँ तीमुथियुस से मिले जो उस वक्‍त एक किशोर या करीब 20 साल के आस-पास का एक जवान था। “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे।” तीमुथियुस की माँ यूनीके और नानी लोइस समर्पित मसीही थीं, लेकिन उसका पिता मसीही नहीं था। (2 तीमु. 1:5) करीब दो साल पहले अपनी पहली मिशनरी यात्रा के दौरान पौलुस की जान-पहचान वहाँ तीमुथियुस के परिवार से हुई होगी। लेकिन इस बार उसने तीमुथियुस में खास दिलचस्पी ली क्योंकि वह दूसरे जवानों से हटकर था। इसलिए वहाँ के प्राचीनों के निकाय की अनुमति से पौलुस, तीमुथियुस को मिशनरी दौरे पर ले गया।प्रेषितों 16:1-3 पढ़िए।

7 पौलुस उम्र में तीमुथियुस से काफी बड़ा था इसलिए तीमुथियुस को उससे बहुत कुछ सीखना था और उसने सीखा भी। इसलिए पौलुस ने कुछ ही समय बाद तीमुथियुस को पूरे भरोसे के साथ अपना प्रतिनिधि बनाकर मंडलियों में दौरे के लिए भेजा। करीब 15 या उससे ज़्यादा साल तीमुथियुस ने पौलुस की संगति का आनंद उठाया। जिस तीमुथियुस को कुछ अनुभव नहीं था और जो शर्मीला था, उसी ने इतनी तरक्की की कि आगे चलकर वह एक बेहतरीन निगरान बना।—फिलि. 2:19-22; 1 तीमु. 1:3.

8, 9. मंडली के सदस्य कैसे जवानों का हौसला बढ़ा सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

8 मसीही मंडली में ऐसे कई जवान भाई-बहन हैं, जो यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं। परमेश्‍वर की सेवा में अच्छी मिसाल रखनेवाले भाई-बहन अगर इनकी परवाह करें और हिम्मत बढ़ाएँ तो ये मेहनत करके आगे आ सकते हैं और बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभाल सकते हैं। अपनी मंडली पर एक नज़र डालिए! क्या आपको ऐसे लोग नज़र आते हैं जो खुद को तीमुथियुस की तरह परमेश्‍वर की सेवा में सौंप सकते हैं? आपकी मदद और हौसला-अफज़ाई से वे पायनियर, बेथेल सेवक, मिशनरी या सफरी निगरान बन सकते हैं। कैसे आप इन जवानों की मदद कर सकते हैं कि वे ऐसे लक्ष्य हासिल कर सकें?

9 मार्टिन नाम का एक भाई 20 साल से बेथेल परिवार का सदस्य है। वह याद करते हुए कहता है कि 30 साल पहले एक सफरी निगरान के साथ जब वह प्रचार कर रहा था तो उस वक्‍त भाई ने उसमें जो दिलचस्पी दिखायी, उसके लिए वह उसका बहुत आभारी है। भाई ने अपना अनुभव बताते हुए मार्टिन का हौसला बढ़ाया और कहा कि उसने जवानी में बेथेल में सेवा की थी। क्यों न वह भी यहोवा के संगठन में ऐसी ही सेवा करने के बारे में सोचे। मार्टिन को लगता है कि परमेश्‍वर की सेवा में आगे चलकर उसने जो फैसले किए वे उसी बातचीत का नतीजा हैं। क्या पता आप भी किसी जवान दोस्त का हौसला बढ़ाकर उसे आध्यात्मिक लक्ष्यों की तरफ मोड़ सकें।

“जो मायूस हैं, उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो”

10. इपफ्रुदीतुस को कैसा महसूस हुआ और क्यों?

10 पौलुस को उसके विश्‍वास की वजह से कैद किया गया था। इपफ्रुदीतुस ने उससे मिलने के लिए फिलिप्पी से रोम तक का लंबा और थका देनेवाला सफर तय किया। इस यात्री ने फिलिप्पी के लोगों की तरफ से एक दूत का काम किया। वह न सिर्फ उनके तोहफे पौलुस के पास ले गया बल्कि उसने पौलुस के साथ ठहरने की योजना भी बनायी ताकि वह उसके बुरे वक्‍त में उसकी कुछ मदद कर सके। जब इपफ्रुदीतुस रोम में था तो वह बहुत बीमार हो गया, “यहाँ तक कि मरने पर था।” इपफ्रुदीतुस को लगा कि उसके आने का कोई फायदा नहीं हुआ और यह सोचकर वह बहुत निराश हो गया।—फिलि. 2:25-27.

11. (क) अगर मंडली में कोई निराशा का शिकार है तो हमें क्यों ताज्जुब नहीं करना चाहिए? (ख) इपफ्रुदीतुस के मामले में पौलुस ने क्या करने को कहा?

11 आज बहुत-से कारणों से लोग निराशा में डूब जाते हैं। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े बताते हैं कि जीवन में कभी-न-कभी 5 में से 1 इंसान निराशा का शिकार होता है। यहोवा के लोग भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। परिवार का भरण-पोषण ठीक से न कर पाना, बीमारी, नाकामी पर मायूसी या दूसरे और कारणों से इंसान टूट सकता है। जब इपफ्रुदीतुस बीमारी से जूझ रहा था तो फिलिप्पी के लोगों ने उसकी मदद कैसे की? पौलुस ने लिखा: “जैसा दस्तूर है प्रभु में बड़ी गर्मजोशी और पूरी खुशी के साथ उसका स्वागत करना; और ऐसे भाइयों की कदर किया करना। क्योंकि प्रभु के काम की खातिर उसने अपनी जान की बाज़ी लगा दी यहाँ तक कि वह मरने पर था, ताकि तुम लोगों के यहाँ न होने की कमी पूरी करने के लिए तुम्हारे बदले वह मेरी सेवा कर सके।”—फिलि. 2:29, 30.

12. निराशा में डूबे लोगों को दिलासा देने के लिए क्या किया जा सकता है?

12 हमें भी उन भाइयों की हौसला-अफज़ाई करनी चाहिए जो दुखी या निराश हैं। बेशक, यहोवा की सेवा में उन्होंने जो किया है हम उन बातों की तारीफ कर सकते हैं। शायद एक मसीही बनने या पूरे समय की सेवा करने के लिए उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बड़े बदलाव किए होंगे। हम उनकी उस मेहनत की कदर कर सकते हैं और उन्हें भरोसा दिला सकते हैं कि यहोवा भी उनकी इस मेहनत से बहुत खुश है। अगर बुढ़ापे या बीमारी की वजह से कोई भाई-बहन यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पा रहा है जितना वह किया करता था तो उनकी अब तक की सेवा के लिए वे हमारी कदर के हकदार हैं। चाहे हालात जो भी हों यहोवा अपने वफादार सेवकों को यह सलाह देता है: “जो मायूस हैं, उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो, कमज़ोरों को सहारा दो, और सबके साथ सहनशीलता से पेश आओ।”—1 थिस्स. 5:14.

“कृपा दिखाते हुए माफ करना”

13, 14. (क) कुरिंथ की मंडली ने कौन-सा गंभीर कदम उठाया और क्यों? (ख) उस आदमी को मंडली से बहिष्कृत करने का क्या नतीजा निकला?

13 पहली सदी में कुरिंथ की मंडली एक बड़ी समस्या का सामना कर रही थी। उसमें एक आदमी बिना कोई पछतावा दिखाए व्यभिचार किए जा रहा था। उसकी इस हरकत से मंडली की पवित्रता खतरे में थी। यहाँ तक कि दुनियावाले भी ऐसी हरकत को शर्मनाक बात समझते थे। इसलिए पौलुस ने बिलकुल सही निर्देशन दिया कि उस आदमी को मंडली से बाहर निकाल दिया जाए।—1 कुरिं. 5:1, 7, 11-13.

14 इस ताड़ना का अच्छा नतीजा निकला। मंडली को गंदे असर से बचाया गया और पापी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने दिल से पछतावा दिखाया जो उसके कामों से साफ नज़र आया। इसीलिए पौलुस ने उस मंडली को दूसरा खत लिखा कि उस आदमी को वापस मंडली में ले लिया जाए। उन्हें सिर्फ इतना ही नहीं करना था बल्कि पौलुस ने उनसे यह भी कहा: “अब तुम्हें [पश्‍चाताप दिखानेवाले पापी को] कृपा दिखाते हुए माफ करना चाहिए और उसे दिलासा देना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वह आदमी हद-से-ज़्यादा उदासी में डूब जाए।”2 कुरिंथियों 2:5-8 पढ़िए।

15. पश्‍चाताप दिखानेवाले इंसान को जब मंडली में ले लिया जाता है तो हमें उसे किस नज़र से देखना चाहिए?

15 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? जब किसी को मंडली से बहिष्कृत किया जाता है तो हमें बड़ा दुख होता है। उस मसीही ने यहोवा के नाम का अपमान किया होगा और उससे मंडली की बदनामी हुई होगी। शायद उसने खुद हमारे खिलाफ पाप किया होगा। लेकिन जब यहोवा के निर्देशन के मुताबिक ठहराए गए प्राचीन ऐसे मामले की जाँच करके यह फैसला करते हैं कि पश्‍चाताप करनेवाले को फिर से मंडली में ले लेना चाहिए, तो यह इस बात का सबूत होता है कि यहोवा ने उसे माफ कर दिया है। (मत्ती 18:17-20) क्या हमें भी यहोवा का नज़रिया नहीं अपनाना चाहिए? अगर हम पश्‍चाताप दिखानेवाले के साथ कठोरता से पेश आएँगे और उसे माफ नहीं करेंगे तो इससे ज़ाहिर होगा कि हम यहोवा के खिलाफ खड़े हैं। इसके बजाय, परमेश्‍वर की मंडली में शांति और एकता बनाए रखने और यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए क्या हमें सच्चा पश्‍चाताप दिखानेवाले और मंडली में वापस आनेवाले इंसान को ‘अपने प्यार का सबूत’ नहीं देना चाहिए?—मत्ती 6:14, 15; लूका 15:7.

“वह . . . मेरे बहुत काम का है”

16. मरकुस ने पौलुस को कैसे निराश किया?

16 बाइबल की एक और घटना दिखाती है कि जिन्होंने हमारा दिल दुखाया है, हमें उनके लिए बुरी भावना नहीं रखनी चाहिए। यूहन्‍ना मरकुस ने प्रेषित पौलुस को बड़ा निराश किया। वह कैसे? जब पौलुस और बरनबास ने अपना पहला मिशनरी दौरा शुरू किया तो मरकुस उनकी मदद के लिए उनके साथ गया। मगर बीच रास्ते में ही उसने उनका साथ छोड़ दिया और घर वापस चला गया। वह क्यों गया इसकी वजह नहीं बतायी गयी है। उसके इस फैसले से पौलुस इतना निराश हुआ कि अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा की योजना बनाते वक्‍त उसने बरनबास की बात को न मानते हुए कहा कि वह इस बार यूहन्‍ना मरकुस को अपने साथ नहीं ले जाएगा। जो पहली मिशनरी यात्रा में हुआ पौलुस नहीं चाहता था कि वह दोहराया जाए।प्रेषितों 13:1-5, 13; 15:37, 38 पढ़िए।

17, 18. हम कैसे जानते हैं कि पौलुस और मरकुस के बीच की दरार मिट गयी और इससे हम क्या सीख सकते हैं?

17 हालाँकि पौलुस ने मरकुस को ठुकरा दिया था, मगर लगता है कि फिर भी मरकुस उदासी में नहीं डूब गया क्योंकि उसने बरनबास के साथ दूसरी जगह पर अपना मिशनरी काम जारी रखा। (प्रेषि. 15:39) इससे ज़ाहिर होता है कि मरकुस वफादारी से सेवा करता रहा। इसलिए कुछ साल बाद पौलुस के खत से पता चलता है कि उसने मरकुस को विश्‍वासी और भरोसे के लायक समझा। अब पौलुस रोम में कैद था, उसने तीमुथियुस को खत भेजकर बुलवाया। उसी खत में पौलुस ने लिखा: “मरकुस को अपने साथ लेते आना क्योंकि वह सेवा के लिए मेरे बहुत काम का है।” (2 तीमु. 4:11) जी हाँ, मरकुस, पौलुस की उम्मीदों पर खरा उतरा।

18 इस घटना से हम सबक सीख सकते हैं। मरकुस ने अपने अंदर अच्छे मिशनरी होने के गुण बढ़ाए। पौलुस के ठुकराए जाने से वह निराश नहीं हुआ। पौलुस और मरकुस दोनों ही आध्यात्मिक पुरुष थे और दोनों ने लंबे समय तक एक-दूसरे के लिए कड़वाहट नहीं पाले रखी। इसके बजाय, पौलुस ने आगे चलकर इस बात को समझा कि मरकुस उसके बड़े काम का है। जब भाइयों के बीच मामला सुलझ जाता है और समस्या हल हो जाती है तो अच्छा यही होगा कि वे परमेश्‍वर की सेवा में जुट जाएँ और दूसरों को भी आगे बढ़ने में मदद दें। सही नज़रिया रखने से मंडली की उन्‍नति होती है।

मंडली और आप

19. मसीही मंडली के सभी सदस्य एक-दूसरे की मदद के लिए क्या कर सकते हैं?

19 हम ‘संकटों से भरे वक्‍त’ में जी रहे हैं, “जिसका सामना करना मुश्‍किल” है। तो ऐसे में आपको भाई-बहनों की और उनको आपकी ज़रूरत है। (2 तीमु. 3:1) ज़रूरी नहीं कि एक मसीही जिस समस्या का सामना कर रहा है, वह उसका हल जानता हो। मगर यहोवा को मालूम है कि वह समस्या कैसे सुलझ सकती है। वह सही रास्ता दिखाने में मंडली के अलग-अलग लोगों का इस्तेमाल कर सकता है। शायद आपका भी! (यशा. 30:20, 21; 32:1, 2) तो आइए हम प्रेषित पौलुस की इस सलाह को दिल में उतार लें! “एक-दूसरे को दिलासा देते रहो और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते रहो, ठीक जैसा तुम कर भी रहे हो।”—1 थिस्स. 5:11.

आप कैसे जवाब देंगे?

• मसीही मंडली में एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने की ज़रूरत क्यों है?

• किस तरह की परेशानियों से पार पाने में आप दूसरों की मदद कर सकते हैं?

• हमें भाई-बहनों की मदद की ज़रूरत क्यों है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 11 पर तसवीर]

जब एक संगी मसीही किसी मुश्‍किल हालात का सामना कर रहा होता है तो हम उसकी मदद कर सकते हैं

[पेज 12 पर तसवीर]

मसीही मंडली के कई जवान भाई-बहनों में यहोवा की सेवा करने की काबिलीयत है