सचेत रहने के बढ़िया नतीजे
सचेत रहने के बढ़िया नतीजे
अगर आपकी मंडली के इलाके में अचानक गवाही देने का मौका सामने आए, तो क्या आप उसे देख पाते हैं? फिनलैंड के ऐतिहासिक बंदरगाह शहर तुरकू में हमारे मसीही भाई ऐसे मौके के प्रति सचेत थे और इसका अच्छा नतीजा निकला।
कुछ समय पहले तुरकू के भाइयों ने गौर किया कि उनके शहर के बंदरगाह पर एक बहुत बड़ा जहाज़ बनाया जा रहा है। उसे बनाने के लिए एशिया से कुछ आदमी आए थे। बाद में एक भाई ने उन होटलों का पता लगाया, जहाँ ये विदेशी मज़दूर ठहरे हुए थे। उसे यह भी पता चला कि तड़के ही एक बस आकर उन्हें बंदरगाह तक ले जाती है। उसने तुरंत इसके बारे में तुरकू की अँग्रेज़ी बोलनेवाली मंडली को इत्तला कर दी।
उस मंडली के प्राचीनों ने यह बात समझ ली कि ढेर सारे विदेशियों के आने की वजह से उनके सामने राज-संदेश सुनाने का अचानक नया मौका आ गया है। उन्होंने फौरन एक खास अभियान का इंतज़ाम किया। उस हफ्ते के रविवार को सुबह सात बजे, बस स्टॉप के पास दस प्रचारक जमा हुए। पहले-पहल तो कोई भी मज़दूर नज़र नहीं आया। भाइयों ने सोचा, ‘कहीं हमें पहुँचने में देर तो नहीं हो गयी। क्या वे तुरकू छोड़कर चले गए?’ लेकिन तभी एक मज़दूर काम के कपड़े पहने हुए बाहर आया। उसके बाद दूसरा आया और फिर बाकी के मज़दूर भी आने लगे। देखते-ही-देखते मज़दूरों का जत्था बस स्टॉप के पास इकट्ठा हो गया। प्रचारक भी अँग्रेज़ी प्रकाशनों के साथ मज़दूरों को प्रचार करने में जुट गए। सभी मज़दूरों को बस में अपनी-अपनी सीट पर बैठने में करीब एक घंटा लग गया, जिससे भाइयों को उनमें से ज़्यादातर मज़दूरों से बात करने का मौका मिला। जब बस चली तब तक भाइयों ने मज़दूरों में 126 पुस्तिकाएँ और 329 पत्रिकाएँ बाँट दी थीं।
उस वक्त मिले अच्छे नतीजे से भाइयों का हौसला बढ़ा और उन्होंने अगले हफ्ते सर्किट निगरान के दौरे के वक्त भी अभियान का इंतज़ाम किया। उस दिन बारिश हो रही थी। मगर 24 प्रचारक सुबह साढ़े छः बजे प्रचार की सभा के लिए इकट्ठा हुए, जहाँ सर्किट निगरान ने सभा चलायी। इस बार उन्होंने टागालोग भाषा में भी साहित्य लिए क्योंकि पिछली दफा प्रचार करने से उन्हें पता चला कि उनमें से कई लोग फिलिपाईन्स से भी आए थे। उस दिन जब बस बंदरगाह की तरफ चली, तब प्रचारकों ने मज़दूरों में कुल 7 किताबें, 69 पुस्तिकाएँ, 479 पत्रिकाएँ बाँटीं। आप कल्पना कर सकते हैं कि इस अभियान में हिस्सा लेनेवाले भाई-बहनों को कितनी खुशी मिली होगी!
इसके पहले कि मज़दूर अपने-अपने देश लौटें, भाइयों को होटलों में जाकर उनमें से कइयों के साथ बातचीत करने का मौका मिला और वे उन्हें राज का संदेश गहराई से समझा पाए। कुछ मज़दूरों ने कहा कि उनकी दूसरे देशों में भी साक्षियों से मुलाकात हो चुकी है। उन्होंने भाइयों से यह भी कहा कि आप लोगों ने पहल करके हमसे बातचीत की इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
अगर आपकी मंडली के इलाके में अचानक गवाही देने का मौका आए तो क्या आप उसके प्रति सचेत रहते हैं? क्या आप दूसरे देशों या भाषा के लोगों से बात करने में पहल करते हैं? अगर हाँ, तो आपको भी ऐसा खुशनुमा अनुभव मिल सकेगा, जैसा तुरकू के भाइयों को मिला।
[पेज 32 पर नक्शा/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
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