इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

मैं यहोवा की सेवा में लगा रहा

मैं यहोवा की सेवा में लगा रहा

मैं यहोवा की सेवा में लगा रहा

वर्नन ज़ुबको की ज़ुबानी

कनाडा के सेस्केचुवान प्रांत में स्टेनन नाम का एक गाँव है जिसके पास ही हमारा खेत था, वहीं मेरी परवरिश हुई। मेरे पिता फ्रेड और माँ एडेल्ला ने हमारे परिवार की अच्छी देखभाल की। उन्होंने हमारी आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतों का पूरा खयाल रखा। मेरी बड़ी बहन का नाम था अरेल्ला, फिर मेरे बाद था मेरा भाई ऐलवन, फिर बहन अलेग्रा और आखिर में एक और भाई डेरल। हम आज भी अपने माता-पिता के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने हमें सच्चाई सिखायी।

मेरे पिता एक अभिषिक्‍त मसीही थे और निडरता से प्रचार करते थे। हमारे परिवार को चलाने के लिए वे कड़ी मेहनत करते थे और इस बात का भी ध्यान रखते थे कि सबको पता चले कि वे एक साक्षी हैं। वे लोगों से हमेशा सच्चाई के बारे में बात करते थे। उनके जोश और हिम्मत ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। वे कहा करते थे: “अगर यहोवा की सेवा में लगे रहोगे, तो तुम बहुत-सी मुश्‍किलों से बचोगे।”

हम अकसर स्टेनन और उसके आस-पास के इलाकों में सड़क गवाही दिया करते थे। ऐसा करना मेरे लिए हमेशा आसान नहीं था। हर कसबे में धाक जमानेवाले लड़के हुआ करते थे जो हम बच्चों का मज़ाक उड़ाते थे। जब मैं आठ साल का था तब सड़क के एक मोड़ पर मैं प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! लेकर गवाही दे रहा था कि अचानक बच्चों के झुंड ने मुझे घेर लिया। उन्होंने मेरी नयी टोपी छीनकर पास के एक खंभे पर रख दी। शुक्र है कि एक बुज़ुर्ग भाई की नज़र मुझ पर थी, इसलिए वे मेरे पास आकर बोले: “वर्न, सब कुछ ठीक तो है?” भाई को देखते ही लड़के नौ दो ग्यारह हो गए। हालाँकि मुझे बुरा लगा, लेकिन मैंने इस अनुभव से सीख लिया कि सड़क गवाही देते समय, हमें खंभे की तरह एक ही जगह नहीं खड़े रहना चाहिए बल्कि चलते रहना चाहिए। बचपन के उन खास सालों के दौरान मैंने जो कुछ सीखा उससे मुझे आगे चलकर घर-घर प्रचार करने की हिम्मत मिली।

मई, 1951 में ऐलवन और मेरा बपतिस्मा हुआ। उस समय मैं 13 साल का था। मुझे आज भी याद है, भाई जैक नेथन ने बपतिस्मे का भाषण देते वक्‍त हमें बढ़ावा दिया कि हमारी ज़िंदगी का एक भी महीना ऐसा न हो जब हम यहोवा के बारे में बात न करें। * हमारा परिवार मानता था कि ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन पेशा है, पायनियर सेवा करना। सन्‌ 1958 में, पढ़ाई खत्म करने के बाद मैनिटोबा के विन्‍निपेग शहर जाकर मैंने पायनियर सेवा शुरू की। हालाँकि मैं लकड़ी के हमारे पुश्‍तैनी काम में अपने पिता का हाथ बँटा रहा था और हम खुश थे, फिर भी मेरे माता-पिता ने मुझे बढ़ावा दिया कि मैं विन्‍निपेग जाकर पायनियर सेवा करूँ।

नया घर-नयी दुल्हन

सन्‌ 1959 में शाखा दफ्तर ने उन सभी को क्यूबेक प्रांत जाने को कहा, जो वहाँ जा सकते थे, क्योंकि वहाँ प्रचारकों की बहुत ज़रूरत थी। मैं पायनियर सेवा करने के लिए क्यूबेक के मॉन्ट्रिऑल शहर चला गया। तब से मेरी ज़िंदगी की किताब में एक नया अध्याय जुड़ गया। मैं वहाँ की फ्रेंच भाषा और जीने के तौर-तरीके सीखने लगा। क्या ही बड़ा बदलाव! हमारे सर्किट निगरान ने मुझे ताकीद दी: “देखो ऐसा कभी न कहना, हमारे शहर में तो ऐसा होता है।” यह वाकई बहुत अच्छी सलाह थी।—1 कुरिं. 9:22, 23.

जब मैं क्यूबेक आया तब वहाँ मेरा कोई पायनियर साथी नहीं था। फरवरी, 1961 में मैंने शर्ली टरकॉट नाम की बहन से शादी कर ली, जो हमेशा के लिए मेरी पायनियर साथी बनी। मैं विन्‍निपेग में उससे पहले मिल चुका था। उसके परिवार में भी सभी यहोवा से प्यार करते थे। उस वक्‍त मुझे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि वह जीवन-भर के लिए मेरा सहारा बनेगी और मुझे हिम्मत देगी।

गैसपे द्वीप का दौरा

शादी के दो साल बाद, क्यूबेक के रिमूस्की शहर में हमें खास पायनियर नियुक्‍त किया गया। अगले साल वसंत में शाखा दफ्तर ने हमें कनाडा के पूर्वी तट, गैसपे प्रायद्वीप पर प्रचार करने के लिए कहा। हमें वहाँ जितना हो सके उतने सच्चाई के बीज बोने थे। (सभो. 11:6) हमने अपनी गाड़ी में 1,000 से ज़्यादा पत्रिकाएँ और 400 किताबें, साथ ही खाना और कुछ कपड़े लिए और एक महीने के प्रचार काम के लिए रवाना हो गए। हमने एक-एक करके गैसपे के सारे छोटे-छोटे गाँवों में प्रचार किया। वहाँ के रेडियो स्टेशन ने लोगो को चेतावनी दी कि यहोवा के साक्षी आनेवाले हैं और उनसे कोई साहित्य न लिया जाए। मगर लोगों ने घोषणा को गलत समझ लिया और सोचा कि यह हमारे प्रकाशनों का विज्ञापन है इसलिए उन्होंने बड़ी खुशी से हमारे साहित्य कबूल किए।

उस समय क्यूबेक के कुछ इलाकों में प्रचार करने की आज़ादी को मिले ज़्यादा वक्‍त नहीं हुआ था इसलिए अकसर पुलिस हमें रोक लेती थी। एक शहर में हम हर घर में साहित्य बाँट रहे थे तभी कुछ ऐसा ही हुआ। एक अफसर ने हमें थाने चलने को कहा और हम राज़ी हो गए। मुझे पता चला कि उस शहर के वकील ने हमारे प्रचार को रोकने के लिए फरमान जारी किया था। उस दिन पुलिस का मुख्य अधिकारी शहर में नहीं था, इसलिए मैंने उस वकील को टोरोंटो के शाखा दफ्तर से मिला एक खत दिखाया जिसमें हमारे प्रचार करने के हक के बारे में समझाया गया था। खत पढ़ते ही वकील बोला: “मुझे कोई परेशानी नहीं। मुझे तो चर्च के पादरी ने आप लोगों को रोकने के लिए कहा था।” वहाँ से छूटते ही हम तुरंत उसी इलाके में प्रचार के लिए गए, जहाँ हमें पुलिस ने रोका था। हम नहीं चाहते थे कि लोगों को लगे कि कानूनी तौर पर हमारे काम पर रोक लगी है, इसलिए हमने अपनी सेवा जारी रखी।

अगली सुबह जब हम पुलिस के मुख्य अधिकारी से मिलने गए तो उसे यह जानकर बहुत गुस्सा आया कि हमें प्रचार करने से रोका गया था। उसकी वकील से हुई फोन पर बातचीत सुनने लायक थी! फिर उन्होंने हमसे कहा कि अगर हमें किसी भी तरह की परेशानी हो तो हम सीधे उनसे बात करें और वे हमारी मदद करेंगे। हालाँकि हम परदेसी थे और फ्रेंच भाषा भी ठीक से नहीं जानते थे, फिर भी लोग अच्छी तरह पेश आते थे और मेहमान-नवाज़ी दिखाते थे। लेकिन हम सोचते थे कि ‘क्या ये कभी सच्चाई कबूल करेंगे?’ सालों बाद हमें इस सवाल का जवाब मिला जब हम गैसपे प्रायद्वीप में राज-घर निर्माण कार्य करने के लिए आए। हमने देखा कि कई लोग जिन्हें हमने गवाही दी थी, अब हमारे भाई बन चुके थे। वाकई, यहोवा ही बढ़ाता है।—1 कुरिं. 3:6, 7.

हमें एक विरासत मिली

सन्‌ 1970 में हमारी बेटी लीसा का जन्म हुआ। यहोवा की तरफ से मिली इस विरासत से हमारी जिंदगी में खुशियों की बहार आ गयी। मेरी पत्नी शर्ली और लीसा दोनों कई बार मेरे साथ राज-घर निर्माण काम के लिए आती थीं। अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद लीसा ने हमसे कहा: “आप दोनों को मेरी वजह से पूरे समय की सेवा छोड़नी पड़ी थी, मगर अब मैं पायनियर बनकर इस परिवार में पूरे समय की सेवा बरकरार रखना चाहती हूँ।” लीसा को पायनियर सेवा करते हुए 20 साल हो गए हैं और उसका पति सीलवाँ भी उसके साथ पायनियर सेवा करता है। उन दोनों ने कई अंतर्राष्ट्रीय निर्माण कामों में हिस्सा लिया है। परिवार के तौर पर हमारा यही लक्ष्य है कि हम सादगी-भरी ज़िंदगी जीएँ और यहोवा के काम के लिए खुद को हमेशा तैयार रखें। मैं कभी लीसा के उन शब्दों को नहीं भूला, जो उसने पायनियर सेवा शुरू करने से पहले कहे थे। दरअसल, 2001 में उसने हमें भी फिर से पायनियर सेवा शुरू करने का बढ़ावा दिया और तब से मैं पायनियर सेवा कर रहा हूँ। पायनियर सेवा मुझे सिखाती है कि मुझे हर काम में यहोवा पर भरोसा रखना है, साथ ही खुशी-खुशी सादगी भरा जीवन जीना है।

निर्माण काम में प्यार और वफादारी का गुण होना ज़रूरी

यहोवा ने मुझे सिखाया है कि अगर हम उसका काम करने लिए हरदम तैयार रहें तो वह ज़रूर हमें आशीष देगा, फिर चाहे वह कोई भी काम हो। मुझे क्षेत्रीय निर्माण समिति में सेवा करने, साथ ही क्यूबेक और दूसरी जगहों में अपने भाई-बहनों के साथ निर्माण काम करने का बहुत बड़ा सम्मान मिला।

हो सकता है, ऐसे कुछ मसीही स्टेज पर बेहतरीन भाषण न देते हों, मगर वे राज-घर निर्माण में जिस कुशलता से काम करते हैं उसका जवाब नहीं! ये प्यारे मसीही इस काम में दिलो-जान लगा देते हैं और उनका हुनर निखरकर सामने आता है, जिसका नतीजा होता है एक खूबसूरत इमारत, जहाँ यहोवा की उपासना की जाती है।

मुझसे पूछा जाता है कि “राज-घर के निर्माण में स्वयंसेवक के तौर पर काम करने के लिए किन गुणों का होना सबसे ज़रूरी है?” अपने तजुरबे से मैं कह सकता हूँ कि सबसे ज़रूरी गुण है यहोवा, उसके बेटे और अपने भाई-बहनों की पूरी बिरादरी के लिए प्यार होना। (1 कुरिं. 16:14) और दूसरा है वफादारी। यह बात सही है कि कई बार हम जैसा काम चाहते हैं, वैसा नहीं होता। लेकिन ऐसे हालात में भी एक वफादार भाई परमेश्‍वर की तरफ से ठहराए इंतज़ाम को पूरा सहयोग देगा। वफादारी का यही गुण उसे भविष्य में भी काम करने के लिए उकसाएगा।

यहोवा के एहसानमंद

सन्‌ 1985 में मेरे पिता की मौत हो गयी, मगर उनकी सलाह मेरे दिलो-दिमाग में आज भी बसी है कि ‘यहोवा की सेवा में लगे रहो।’ बेशक, मेरे पिता दूसरे अभिषिक्‍त जनों के साथ स्वर्ग में यहोवा के काम में व्यस्त होंगे। (प्रका. 14:13) मेरी माँ 97 साल की है जो अब स्ट्रोक (मस्तिष्क-आघात) की वजह से ठीक से बोल नहीं पाती, मगर बाइबल की आयतें उसे अच्छी तरह याद हैं। वह जब भी चिट्ठी लिखती है तो उसमें बाइबल की आयतें ज़रूर होती हैं। वह हमें यहोवा की सेवा वफादारी से करने का बढ़ावा देती है। हम सभी बच्चे बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि हमें इतने प्यारे माता-पिता मिले!

अपनी वफादार पत्नी और हमसफर, शर्ली के लिए भी मैं यहोवा का एहसानमंद हूँ। उसने अपनी माँ की यह सलाह गाँठ बाँध ली थी: “वर्न तो सच्चाई से जुड़े कामों में व्यस्त रहा करेगा इसलिए तुम्हें उसको दूसरों के साथ बाँटना सीखना होगा।” आज से 49 साल पहले हमने अपनी शादी के बाद यह फैसला किया था कि हम साथ-साथ यहोवा की सेवा करते हुए बूढ़े होंगे और अगर इस दुनिया के अंत से बच निकले तो साथ-साथ जवान होंगे और हमेशा के लिए उसकी सेवा करते रहेंगे। जी हाँ, “प्रभु की सेवा में व्यस्त रहने के लिए” हमारे “पास बहुत काम” था। (1 कुरिं. 15:58) यहोवा ने हमेशा हमारी परवाह की और हमें किसी भी अच्छी चीज़ की कमी नहीं होने दी।

[फुटनोट]

^ 1 सितंबर 1990 की प्रहरीदुर्ग के पेज 10-14 पर जैक हालिडे नेथन की जीवन कहानी पढ़िए। (अँग्रेज़ी।)

[पेज 31 पर तसवीर]

“परिवार के तौर पर हमारा यही लक्ष्य है कि हम सादगी-भरी ज़िंदगी जीएँ और यहोवा के काम के लिए खुद को हमेशा तैयार रखें”