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क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ पढ़ने का आनंद लिया है? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

• परमेश्‍वर ने इसराएलियों को मिस्र से बाहर निकालने के लिए किस स्वर्गदूत को भेजा? (निर्ग. 23:20, 21)

इसमें दो राय नहीं कि यह स्वर्गदूत परमेश्‍वर का पहिलौठा था क्योंकि उसमें ‘यहोवा का नाम रहता’ था, जो आगे चलकर यीशु बना।—9/15, पेज 21.

• सच्ची उपासना के मामले में कुछ लोग क्या सफाई पेश करते हैं, जिन्हें परमेश्‍वर कबूल नहीं करता?

‘यह तो बहुत मुश्‍किल है। मेरा दिल नहीं करता। साँस लेने की भी फुरसत नहीं। मैं इतना काबिल नहीं। किसी ने मेरा दिल दुखाया है।’ परमेश्‍वर की आज्ञा न मानने के लिए इस तरह की सफाई देना जायज़ नहीं है।—10/15, पेज 12-15.

• किन तरीकों से मसीही सभाओं को ऐसा बनाया जा सकता है, जिससे आपका और दूसरों का हौसला बढ़े?

‘पहले से तैयारी कीजिए। हमेशा हाज़िर होइए। समय पर पहुँचिए। ज़रूरी साहित्य साथ लाइए। ध्यान मत भटकने दीजिए। हिस्सा लीजिए। छोटे जवाब दीजिए। अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कीजिए। हिस्सा लेनेवालों का हौसला बढ़ाइए। एक-दूसरे से मिलिए।—10/15, पेज 22.

• हम हारून से क्या सबक सीख सकते हैं जो साथियों के दबाव में आ गया था?

जब इसराएलियों ने हारून से उनके लिए ईश्‍वर बनाने को कहा तब वहाँ मूसा हाज़िर नहीं था। वह उनके दबाव में आ गया और उसने वैसा ही किया। इससे ज़ाहिर होता है कि साथियों का दबाव सिर्फ जवानों पर ही नहीं आता। इसका असर उन बड़े लोगों पर भी हो सकता है, जो हमेशा सही करना चाहते हैं। हमें साथियों के बुरे दबाव का विरोध करने की ज़रूरत है।—11/15, पेज 8.