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प्रलोभन और निराशा का सामना करने के लिए ताकत से भरपूर

प्रलोभन और निराशा का सामना करने के लिए ताकत से भरपूर

प्रलोभन और निराशा का सामना करने के लिए ताकत से भरपूर

“जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे।”—प्रेषि. 1:8.

1, 2. यीशु ने चेलों से किस मदद का वादा किया और उन्हें इसकी ज़रूरत क्यों थी?

 यीशु जानता था कि उसके चेले अपनी ताकत से उसकी आज्ञाएँ पूरी नहीं कर सकते थे। उन्हें बड़े पैमाने पर प्रचार करना था, उनके दुश्‍मन बहुत शक्‍तिशाली थे, इसके अलावा असिद्ध होने की वजह से उनमें कई कमियाँ थीं। तो इन बातों के मद्देनज़र यह साफ था कि उन्हें इंसानी ताकत से कहीं बढ़कर ताकत की ज़रूरत थी। इसलिए स्वर्ग जाने से पहले यीशु ने चेलों को यकीन दिलाया: “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया देश में यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।”—प्रेषि. 1:8.

2 ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यीशु ने अपना यह वादा पूरा किया और उन्हें पवित्र शक्‍ति दी। इससे ताकत पाकर उन्होंने पूरे यरूशलेम को प्रचार काम से भर दिया। कोई भी विरोध उनका काम नहीं रोक सका। (प्रेषि. 4:20) आज हमें “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त” में वैसी ही ताकत की ज़रूरत है, जैसी पहली सदी के चेलों को थी।—मत्ती 28:20.

3. (क) पवित्र शक्‍ति हमें कैसे ताकत देती है? (ख) यहोवा की ताकत हमें क्या करने में मदद देती है?

3 यीशु ने अपने चेलों से वादा किया कि ‘जब उन पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो वे ताकत पाएँगे।’ हमें पवित्र शक्‍ति कैसे ताकत देती है? इसे समझने के लिए एक बैटरी की मिसाल लीजिए जिसमें बिजली डालने से काम करने की क्षमता आ जाती है और ज़रूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति भी उस बिजली की तरह है। यह दरअसल उसकी सक्रिय शक्‍ति है जो उसकी इच्छा पूरी करने के लिए किसी भी चीज़ या इंसान पर काम करती है। यहोवा यह शक्‍ति अपने सभी सेवकों को देता है, ताकि वे अपने मसीही समर्पण के मुताबिक जी सकें और आनेवाले हर दबाव का सामना कर सकें।मीका 3:8; कुलुस्सियों 1:29 पढ़िए।

4. इस लेख में क्या गौर किया जाएगा और क्यों?

4 पवित्र शक्‍ति के ज़रिए हमें जो ताकत मिलती है वह कैसे ज़ाहिर होती है? जब पवित्र शक्‍ति काम करती है तो इसके क्या नतीजे होते हैं? जैसे-जैसे हम वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करते हैं हम पर शैतान की वजह से, इस दुनिया या हमारी असिद्धता की वजह से बहुत-सी बाधाएँ आती हैं। मसीही बने रहने के लिए यह ज़रूरी है कि हम इस तरह की बाधाओं को पार करें, प्रचार काम में नियमित तौर पर हिस्सा लें और यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाएँ। आइए गौर करें कि कैसे पवित्र शक्‍ति हमें प्रलोभनों का सामना करने, साथ ही थकान और निराशा पर काबू पाने में मदद देती है।

प्रलोभनों से लड़ने की ताकत

5. प्रार्थना से हमें कैसे ताकत मिलती है?

5 यीशु ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया: “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे, मगर हमें उस दुष्ट शैतान से बचा।” (मत्ती 6:13) यहोवा अपने वफादार सेवकों की इस प्रार्थना को ज़रूर सुनता है। एक और मौके पर यीशु ने कहा: ‘स्वर्ग में रहनेवाला पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्‍ति ज़रूर देगा।’ (लूका 11:13) यह जानकर कितनी हिम्मत मिलती है कि सही काम करने के लिए यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति देता है! इसका मतलब यह नहीं कि वह हमें किसी भी परीक्षा या प्रलोभन में नहीं पड़ने देगा। (1 कुरिं. 10:13) लेकिन प्रलोभन का सामना करते वक्‍त वह हमारे लिए रास्ता निकालेगा, जिसके लिए बेशक हमें और भी गिड़गिड़ाकर बिनती करनी होगी।—मत्ती 26:42.

6. यीशु ने शैतान के प्रलोभनों के जवाब किस आधार पर दिए?

6 जब शैतान ने यीशु की परीक्षा ली तब यीशु ने बाइबल के हवाले देकर उसका जवाब दिया जिससे पता चलता है कि परमेश्‍वर का वचन यीशु के मन में अच्छी तरह बसा हुआ था। उसने कहा था, “यह लिखा है . . . यह भी लिखा है . . . दूर हो जा शैतान! क्योंकि यह लिखा है ‘तू सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा की उपासना कर और उसी की पवित्र सेवा कर।’” यीशु को यहोवा और उसके वचन से इतना प्यार था कि शैतान की तरफ से आए हर प्रलोभन को उसने ठुकरा दिया। (मत्ती 4:1-10) जब यीशु ने एक-के-बाद-एक सारे प्रलोभन ठुकरा दिए तो शैतान उसे छोड़कर चला गया।

7. प्रलोभनों को दूर करने में बाइबल कैसे हमारी मदद करती है?

7 शैतान के प्रलोभनों का विरोध करने के लिए जब खुद यीशु ने शास्त्र का इस्तेमाल किया तो हमें और भी कितना ज़्यादा करना चाहिए! अगर हम शैतान और उसके कारिंदों का विरोध करना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें परमेश्‍वर के स्तरों को जानने और उन पर पूरी तरह चलने की ज़रूरत है। बाइबल का अध्ययन करनेवाले कई लोगों को जब परमेश्‍वर की बुद्धि और उसके धर्मी स्तरों की समझ हासिल हुई तो उन्हें उन स्तरों के मुताबिक जीने की प्रेरणा मिली। जी हाँ, ‘परमेश्‍वर के वचन’ में ऐसी ताकत है कि वह हमारे “दिल के विचारों और इरादों” को परख सकता है। (इब्रा. 4:12) हम जितना ज़्यादा बाइबल पढ़ते और उस पर मनन करते हैं, उतना ही ज़्यादा हम यहोवा की “सच्चाई को पहचानते” हैं। (दानि. 9:13, किताब-ए-मुकद्दस) यह बात बिलकुल सही है, इसलिए हमें ऐसी आयतों पर गौर करना चाहिए जो खासकर हमारी खामियों से ताल्लुक रखती हैं।

8. हम पवित्र शक्‍ति कैसे पा सकते हैं?

8 यीशु प्रलोभनों का विरोध कर सका क्योंकि आयतों को जानने के साथ-साथ वह “पवित्र शक्‍ति से भरा हुआ” था। (लूका 4:1) अगर हम भी ऐसी ताकत और योग्यता पाना चाहते हैं, तो हमें यहोवा के किए सारे इंतज़ामों का पूरा फायदा उठाकर उसके करीब आना होगा, क्योंकि इन्हीं के ज़रिए वह हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देता है। (याकू. 4:7, 8) इन इंतज़ामों में बाइबल अध्ययन, प्रार्थना और भाई-बहनों के साथ मेल-जोल रखना शामिल है। कई भाई-बहनों ने देखा है कि जब वे पूरी तरह से मसीही कामों में लगे रहते हैं तो इससे वे परमेश्‍वर के विचारों को दिलो-दिमाग में ताज़ा रख पाते हैं।

9, 10. (क) आपके इलाके में आम तौर पर किस तरह के प्रलोभन आते हैं? (ख) मनन और प्रार्थना करने से कैसे आप प्रलोभनों का सामना कर सकते हैं, फिर चाहे आप थके ही क्यों न हों?

9 आपको किस तरह के प्रलोभनों से लड़ना पड़ता है? क्या कभी आपमें ऐसे इंसान के साथ इश्‍कबाज़ी करने की चाहत पैदा हुई, जिससे आपकी शादी नहीं हुई है? अगर आप अविवाहित हैं तो क्या आपका मन किया कि किसी गैर-साक्षी के साथ घूमने-फिरने का प्रस्ताव कबूल कर लें? हो सकता है, कुछ मसीहियों के सामने टीवी देखते या इंटरनेट का इस्तेमाल करते वक्‍त अचानक अश्‍लील तसवीरें देखने का प्रलोभन आ जाए। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है? अगर हाँ, तो आपने क्या किया? इस बात पर मनन करना समझदारी होगा कि आपका एक गलत कदम आपको दूसरे गलत कदम की ओर ले जाएगा और आप गंभीर पाप कर बैठेंगे। (याकू. 1:14, 15) उस दर्द की कल्पना कीजिए जो आपकी एक गलती की वजह से यहोवा, मंडली और आपके परिवार को पहुँचेगा। दूसरी तरफ परमेश्‍वर के सिद्धांतों का वफादारी से पालन करने का नतीजा यह होता है कि हम एक अच्छा विवेक पाते हैं। (भजन 119:37; नीतिवचन 22:3 पढ़िए।) जब कभी आप पर इस तरह के प्रलोभन आते हैं तो उन पर काबू पाने के लिए और भी गिड़गिड़ाकर प्रार्थना कीजिए।

10 यीशु पर आए प्रलोभनों के बारे में हमें कुछ और याद रखने की ज़रूरत है। शैतान ने यीशु की परीक्षा तब ली, जब वह जंगल में 40 दिन तक भूखा था। बेशक शैतान ने सोचा होगा कि यीशु की खराई तोड़ने का यही “सही मौका” है। (लूका 4:13) उसी तरह शैतान हमारी भी खराई तोड़ने के लिए मौके की तलाश में रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम खुद को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत रखें। अकसर शैतान ऐसे मौके पर वार करता है जब वह देखता है कि उसका शिकार एकदम कमज़ोर हो गया है। इसलिए जब भी हम थके हुए या निराश होते हैं, तब हमें यहोवा से और भी ज़्यादा बिनती करनी चाहिए कि वह हमें अपनी सुरक्षा और पवित्र शक्‍ति दे।—2 कुरिं. 12:8-10.

थकान और निराशा का सामना करने की ताकत

11, 12. (क) आज बहुत-से लोग निराश क्यों हो जाते हैं? (ख) निराशा से लड़ने के लिए हमारे पास क्या मदद हाज़िर है?

11 असिद्ध होने के नाते, हम समय-समय पर निराश हो जाते हैं। खासकर आज यह बहुत आम है क्योंकि हम तनाव भरे वक्‍त में जी रहे हैं। हम ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं, जिसका अनुभव मानवजाति ने पहले कभी नहीं किया। (2 तीमु. 3:1-5) जैसे-जैसे हर-मगिदोन नज़दीक आ रहा है आर्थिक, भावनात्मक और दूसरी परेशानियाँ बढ़ती जा रही हैं। इसलिए ताज्जुब नहीं कि आज बहुत-से लोग अपने परिवार का भरण-पोषण करना मुश्‍किल पाते हैं। इन वजहों से वे थक जाते हैं, बोझ से दब जाते हैं, यहाँ तक कि पूरी तरह पस्त हो जाते हैं। अगर आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं, तो आप ऐसे दबावों का सामना कैसे कर सकते हैं?

12 याद कीजिए, यीशु ने अपने चेलों को भरोसा दिलाया कि वह उनकी मदद के लिए परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति देगा। (यूहन्‍ना 14:16, 17 पढ़िए।) यह पूरे विश्‍व की सबसे ताकतवर शक्‍ति है। इसके ज़रिए यहोवा हमें हमारी ताकत से “कहीं बढ़कर” ताकत देता है ताकि हम किसी भी परीक्षा का सामना पूरे धीरज के साथ कर सकें। (इफि. 3:20) ठीक जैसे प्रेषित पौलुस ने कहा कि अगर हम उस पर भरोसा रखें तो हमें “वह ताकत” मिलेगी “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर” होगी, फिर चाहे “हम हर तरह से दबाए” क्यों न जाएँ। (2 कुरिं. 4:7, 8) यहोवा हमारा तनाव दूर करने का वादा तो नहीं करता, मगर इस बात का यकीन दिलाता है कि वह हमें तनाव से लड़ने के लिए अपनी पवित्र शक्‍ति ज़रूर देगा।—फिलि. 4:13.

13. (क) एक जवान लड़की को कैसे मुश्‍किल हालात का सामना करने की ताकत मिली? (ख) क्या आप ऐसा ही कोई और अनुभव जानते हैं?

13 उन्‍नीस साल की स्टेफनी के उदाहरण पर गौर कीजिए जो एक पायनियर है। जब वह 12 साल की थी तब उसे मस्तिष्क आघात हुआ और जाँच करने पर पता चला कि उसके दिमाग में ट्यूमर है। तब से उसके दो ऑपरेशन हो चुके हैं और उसने रेडियेशन भी करवाया। उसके बाद उसे दो आघात और हुए जिसकी वजह से वह अपने शरीर का बायाँ हिस्सा ज़्यादा हिला नहीं पाती और उसकी आँखें भी कमज़ोर हो गयी हैं। स्टेफनी के लिए सभाएँ और प्रचार सेवा बहुत मायने रखती हैं, इसलिए वह अपनी ताकत इन कामों के लिए बचाकर रखती है। लेकिन फिर भी वह मानती है कि यहोवा की ताकत के बल पर ही वह कई मुश्‍किलों का सामना धीरज से कर पाती है। जब कभी वह दुखी होती है तो उसे हमारे साहित्य में दी संगी विश्‍वासियों की मिसालें पढ़ने से बड़ी हिम्मत मिलती है। भाई-बहन उसे खत लिखकर या सभाएँ शुरू होने से पहले या बाद में उससे बातचीत करके उसकी हिम्मत बढ़ाते हैं। सच्चाई में दिलचस्पी रखनेवाले लोग स्टेफनी की सिखायी बातों की इतनी कदर करते हैं कि वे उसके घर जाकर उससे बाइबल के बारे में सीखते हैं। इन सारी बातों के लिए स्टेफनी खुद को यहोवा का कर्ज़दार समझती है। उसकी सबसे पसंदीदा आयत है भजन 41:3 और उसे पूरा भरोसा है कि यह आयत उसके जीवन में खरी उतरी है।

14. जब हम निराश होते हैं तो हमें क्या नहीं सोचना चाहिए और क्यों?

14 जब हम थके होते हैं या किसी दबाव का सामना कर रहे होते हैं तब हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि आध्यात्मिक कामों में कटौती करके हमें राहत मिल सकती है। ऐसी सोच खतरनाक हो सकती है। क्यों? क्योंकि निजी और पारिवारिक बाइबल अध्ययन, प्रचार सेवा और सभाओं में जाने से ही हमें पवित्र शक्‍ति मिलती है जो हममें दोबारा जोश भर देती है। मसीही कामों से हमेशा ताज़गी मिलती है। (मत्ती 11:28, 29 पढ़िए।) कई बार भाई-बहन सभाओं में थके-हारे आते हैं लेकिन जब घर लौटने का समय आता है तो उनमें फिर से ताकत आ जाती है मानो उनकी आध्यात्मिक बैटरी चार्ज हो गयी हो।

15. (क) क्या यहोवा वादा करता है कि मसीहियों को अपनी ज़िंदगी में कोई संघर्ष नहीं करना पड़ेगा? बाइबल से समझाइए। (ख) परमेश्‍वर क्या वादा करता है और इससे क्या सवाल उठता है?

15 इसमें दो राय नहीं कि सच्चे चेलों के कंधों पर बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं और उन्हें वफादारी से पूरा करने में मेहनत लगती है। (मत्ती 16:24-26; लूका 13:24) लेकिन पवित्र शक्‍ति की मदद से यहोवा थके हुओं को ताकत देता है। भविष्यवक्‍ता यशायाह ने लिखा कि “जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाईं उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।” (यशा. 40:29-31) अगर ऐसी बात है तो हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्यों मसीही काम हमें बोझ लगने लगते हैं?

16. थकान और निराशा की वजहों को दूर करने के लिए हम क्या कदम उठा सकते हैं?

16 यहोवा का वचन हमसे गुज़ारिश करता है कि हम ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों’ पर ध्यान दें। (फिलि. 1:10) प्रेषित पौलुस ने मसीही ज़िंदगी की तुलना एक लंबी दौड़ से की और परमेश्‍वर की प्रेरणा से यह सलाह दी: “आओ हम हरेक बोझ को . . . उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें।” (इब्रा. 12:1) वह कहना चाह रहा था कि हमें गैर ज़रूरी कामों के बोझ तले इतना नहीं दब जाना चाहिए कि हम पूरी तरह थक जाएँ। हो सकता है कि हम पहले से ही व्यस्त हों और ऊपर से दूसरे काम भी सिर पर ले लें, तो हम पस्त हो जाएँगे। इसलिए अगर आप हमेशा थका हुआ और तनाव महसूस करते हैं तो आपको आगे बतायी इन बातों पर ध्यान देने से मदद मिलेगी जैसे, आप कितनी देर तक काम करते हैं, कितनी बार घूमने जाते हैं और किस हद तक खेल या दूसरे मनोरंजन में वक्‍त ज़ाया करते हैं। अगर हम अपनी हदें पहचानें और समझदारी दिखाएँ तो अपने हालात को ध्यान में रखेंगे और इन मामलों में सोच-समझकर वादे करेंगे।

17. क्यों कुछ लोग निराश हो जाते हैं लेकिन इस मामले में यहोवा हमें क्या भरोसा दिलाता है?

17 ऐसा भी हो सकता है कि हममें से कुछ लोग इसलिए निराश हो जाएँ, क्योंकि उनकी उम्मीद के मुताबिक इस दुनिया का अंत अभी तक नहीं आया। (नीति. 13:12) लेकिन जो ऐसा महसूस करते हैं, उन्हें हबक्कूक 2:3 से हिम्मत मिल सकती है, जहाँ लिखा है: “इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्‍चय पूरी होगी और उस में देर न होगी।” यहोवा हमें भरोसा दिलाता है कि इस दुष्ट दुनिया का अंत अपने नियत समय पर ज़रूर आएगा!

18. (क) किस वादे से आपको हौसला मिलता है? (ख) अगले लेख में हम क्या सीखेंगे?

18 बेशक, यहोवा के सभी वफादार सेवक उस दिन की आस लगाए हैं, जब थकान और निराशा मिट जाएगी और सभी ‘जवानी’ का आनंद उठाएँगे। (अय्यू. 33:25) आज जब हम आध्यात्मिक कामों में हिस्सा लेते हैं तब पवित्र शक्‍ति की मदद से हम अपने अंदर वैसी ही ताकत महसूस कर सकते हैं। (2 कुरिं. 4:16; इफि. 3:16) ऐसा न हो कि थकान की वजह से आप मिलनेवाली हमेशा की आशीष खो बैठें। प्रलोभन, थकान या निराशा की वजह से आनेवाली हर तरह की परीक्षा आज नहीं तो परमेश्‍वर के राज में ज़रूर खत्म हो जाएगी। अगले लेख में हम यह जाँच करेंगे कि पवित्र शक्‍ति किस तरह मसीहियों को अत्याचार, साथियों के दबाव और दूसरी तरह की विपत्तियों का सामना करने की ताकत दे सकती है।

आप कैसे जवाब देंगे?

• बाइबल पढ़ाई कैसे हमें ताकत देती है?

• प्रार्थना और मनन से कैसे हमें ताकत मिलती है?

• हम निराश कर देनेवाली वजहों को दूर करने के लिए क्या कर सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24 पर तसवीर]

मसीही सभाएँ हमें आध्यात्मिक मज़बूती देती हैं