‘यहोवा के नाम में शरण लो’
‘यहोवा के नाम में शरण लो’
“मैं . . . नम्र और दीन लोगों को बचा रखूंगा, और वे यहोवा के नाम में शरण लेंगे।”—सप. 3:12, NHT.
1, 2. पूरी मानवजाति पर जल्द ही कौन-सा लाक्षणिक तूफान आनेवाला है?
क्या आपको कभी मूसलाधार बारिश या ओलों से बचने के लिए पुल के नीचे शरण लेनी पड़ी है? इससे आपको काफी हद तक सुरक्षा मिल सकती है। लेकिन अगर तूफान या बवंडर चलने लगे तो क्या यह पुल आपकी रक्षा कर सकेगा?
2 बहुत जल्द एक ऐसा तूफान आनेवाला है, जो पूरी मानवजाति को इस धरती पर से मिटा सकता है। उसे लाक्षणिक तौर पर “उधेड़ का दिन” (या “तूफानी दिन” ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहा गया है। यह “यहोवा का भयानक दिन” है, जो सारी मानवजाति को अपनी चपेट में ले लेगा। मगर फिर भी हम एक ऐसी मज़बूत शरण पा सकते हैं, जहाँ हमारी रक्षा हो सकेगी। (सपन्याह 1:14-18 पढ़िए।) तो जल्द ही आनेवाले उस “यहोवा के रोष के दिन” में हम कैसे शरण पा सकते हैं?
बाइबल के ज़माने में तूफानी दिन
3. इसराएल के दस-गोत्रवाले राज को किस “उजाड़नेवाली आंधी” का सामना करना पड़ा?
3 जब यहोवा का दिन शुरू होगा तो सबसे पहले धरती के सारे झूठे धर्मों का विनाश होगा। उस वक्त हम कैसे शरण पा सकेंगे, यह जानने के लिए हमें परमेश्वर के लोगों के इतिहास पर गौर करना होगा। यशायाह जो ईसा पूर्व आठवीं सदी में रहा था, उसने यहोवा के न्याय के दिन की तुलना “उजाड़नेवाली आंधी” से की। यह आँधी दरअसल परमेश्वर को छोड़ देनेवाले इसराएल के दस-गोत्रों पर आनेवाली थी, जिससे उनका बचना नामुमकिन था। (यशायाह 28:1, 2 पढ़िए।) और ऐसा ईसा पूर्व 740 में हुआ, जब अश्शूरियों ने उन दस-गोत्रों पर हमला बोला, जिनमें एप्रैम का गोत्र सबसे अहम माना जाता था।
4. ईसा पूर्व 607 में “यहोवा का भयानक दिन” यरूशलेम पर कैसे टूट पड़ा?
4 इसके बाद ईसा पूर्व 607 में यरूशलेम और यहूदा के राज पर भी “यहोवा का भयानक दिन” टूट पड़ा क्योंकि उन्होंने भी यहोवा को छोड़ दिया था। बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने यहूदा और उसकी राजधानी यरूशलेम पर हमले की धमकी दी। तब यहूदियों ने ‘झूठ के शरणस्थान’ यानी मिस्र से मदद माँगी, जिनके साथ उन्होंने संधि की थी। लेकिन जिस तरह भयानक ओले सब तहस-नहस कर जाते हैं, उसी तरह बैबिलोन ने उनके “शरणस्थान” को उजाड़ दिया।—यशा. 28:14, 17.
5. झूठे धर्म के विनाश के वक्त, एक समूह के तौर पर परमेश्वर के लोग किस तरह बचाए जाएँगे?
5 यहोवा का भयानक दिन जिस तरह यरूशलेम पर टूट पड़ा, वह इस बात का सबूत था कि हमारे समय में धर्मत्यागी ईसाईजगत का न्याय कैसे किया जाएगा। इसके अलावा, बाकी की “महानगरी बैबिलोन” यानी पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म का भी नाश कर दिया जाएगा। इसके बाद शैतान की दुष्ट दुनिया के दूसरे हिस्सों को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। लेकिन समूह के तौर पर परमेश्वर के लोग बच जाएँगे, क्योंकि वे यहोवा में शरण लेंगे।—प्रका. 7:14; 18:2, 8; 19:19-21.
आध्यात्मिक और शारीरिक तौर पर शरण
6. यहोवा के लोग शरण कैसे पा सकते हैं?
6 आज इन आखिरी दिनों में भी परमेश्वर के लोग कैसे शरण पा सकते हैं? हम प्रार्थना में ‘परमेश्वर के नाम का स्मरण’ करके, साथ ही जोश के साथ उसकी सेवा करके आध्यात्मिक शरण पा सकते हैं यानी परमेश्वर के साथ एक मज़बूत रिश्ता बना सकते हैं। (मलाकी 3:16-18 पढ़िए।) हम बखूबी जानते हैं कि यहाँ स्मरण करने का मतलब सिर्फ उसके नाम के बारे में सोचना नहीं है। बाइबल कहती है: “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।” (रोमि. 10:13) तो इसका मतलब है, यहोवा का नाम लेने और उद्धार पाने के बीच नाता है। आज बहुत-से लोग यह फर्क देख पाते हैं कि कौन हैं जो पूरी श्रद्धा से ‘उसके नाम का स्मरण’ करते और साक्षियों के तौर पर उसकी सेवा करते हैं और कौन हैं, जो ऐसा नहीं करते।
7, 8. पहली सदी के मसीहियों की जान कैसे बची, उसी तरह आनेवाले समय में सच्चे मसीही कैसे बचेंगे?
7 परमेश्वर के लोगों को सिर्फ आध्यात्मिक शरण नहीं, बल्कि वादे के मुताबिक उन्हें शारीरिक तौर पर भी शरण मिलती है यानी उनका उद्धार होता है। इसके बारे में हमें उस वाकए से पता चलता है, जो ईसवी सन् 66 में घटा था। उस वक्त सेस्टियस गैलस ने रोमी फौज के साथ यरूशलेम पर हमला बोला था। यीशु ने पहले से बताया था कि उस क्लेश के “दिन घटाए” जाएँगे। (मत्ती 24:15, 16, 21, 22) यह तब हुआ जब रोमी फौज अचानक उस शहर को छोड़कर चली गयी, जिससे सच्चे मसीहियों को ‘बचने’ का मौका मिला। वे यरूशलेम और आस-पास के इलाकों को छोड़कर भाग सके। कुछ लोगों ने यरदन नदी पार की और उसके पूरब में पहाड़ों पर शरण ली।
8 उन दिनों के मसीहियों की तुलना आज हम परमेश्वर के लोगों से कर सकते हैं। उन मसीहियों ने शरणस्थान ढूँढ़ा था, उसी तरह आज परमेश्वर के सेवक भी ढूँढ़ेंगे। लेकिन इस बार वे किसी जगह पर जाकर शरण नहीं लेंगे क्योंकि वे पूरी दुनिया में फैले हैं। जब धर्मत्यागी ईसाईजगत का विनाश किया जाएगा, तब परमेश्वर के ‘चुने हुए’ और उनके वफादार साथी बच जाएँगे क्योंकि उन्होंने यहोवा और उसके पहाड़ समान संगठन में शरण ली होगी।
9. किसकी कोशिश रही है कि यहोवा का नाम भुला दिया जाए? एक उदाहरण दीजिए।
9 दूसरी तरफ ईसाईजगत के लोग नाश होने के लायक हैं क्योंकि उन्होंने चर्च जानेवाले लोगों को आध्यात्मिक अंधकार में रखा है, यहाँ तक कि परमेश्वर के नाम से भी नफरत की है। मध्य युग के दौरान यूरोप में हर कोई परमेश्वर के नाम से वाकिफ था। यह नाम इब्रानी भाषा के चार अक्षरों में लिखा जाता था, जिसे टेट्राग्रामटन कहते हैं और इसका हिंदी अनुवाद है, य-ह-व-ह, या ज-ह-व-ह। यह नाम अकसर सिक्कों या घर की बाहरी दीवारों पर, किताबों या बाइबलों में, यहाँ तक कि कुछ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्चों में भी देखा जाता था। लेकिन हाल में बाइबल अनुवादों और बाकी जगहों से परमेश्वर का नाम निकालने का चलन हो गया है। इसका एक सबूत हमें 29 जून 2008 को लिखे एक खत से मिलता है, जिसका विषय था ‘परमेश्वर का नाम।’ यह खत ‘ईश्वरीय उपासना और धर्मविधियों पर अनुशासन की कलीसिया’ ने बिशपों के सम्मेलन को लिखा था, जिसमें रोमन कैथोलिक चर्च ने यह निर्देश दिया कि टेट्राग्रामटन की जगह “प्रभु” शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वैटिकन चर्च ने आदेश दिया कि कैथोलिकों की धार्मिक सभाओं के दौरान प्रार्थना और भजनों में परमेश्वर का नाम नहीं लेना चाहिए। ईसाईजगत के धर्मगुरुओं के अलावा, दूसरे धर्म के अगुवों ने भी लाखों लोगों को सच्चे परमेश्वर की पहचान से महरूम रखा है।
परमेश्वर के नाम को पवित्र करनेवालों के लिए सुरक्षा
10. आज परमेश्वर के नाम का सम्मान कैसे किया जा रहा है?
10 एक तरफ जहाँ दूसरे धर्मों में लोगों को परमेश्वर के नाम से अनजान रखा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ यहोवा के साक्षी उसके नाम का सम्मान और उसकी महिमा कर रहे हैं। वे पूरे आदर के साथ उसका नाम लेने के ज़रिए उसके नाम को पवित्र कर रहे हैं। यहोवा ऐसे लोगों से बहुत खुश होता है जो उस पर भरोसा रखते हैं और वह उन्हें आशीष देने और उनकी रक्षा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। वह ‘अपने शरणागतों की सुधि रखता है।’—नहू. 1:7; प्रेषि. 15:14.
11, 12. प्राचीन यहूदा में किसने यहोवा के नाम को बुलंद किया और आज ऐसा कौन कर रहा है?
11 पुराने ज़माने में यहूदा देश के ज़्यादातर लोग धर्मत्यागी हो गए थे, लेकिन कुछ लोगों ने ‘यहोवा के नाम में शरण ली।’ (सपन्याह 3:12, 13 पढ़िए।) जब परमेश्वर ने यहूदा देश को सज़ा देने के लिए बैबिलोन से उस पर चढ़ाई करवाकर लोगों को बंधुआई में ले जाने दिया, तब उसने यिर्मयाह, बारूक और एबेदमेलेक जैसे कुछ लोगों को बचाया। वे धर्मत्यागी लोगों के “बीच में” रहते हुए भी वफादार थे। और दूसरे वफादार जन बंधुआई में जाने के बाद भी परमेश्वर के वफादार बने रहे। बाद में, ईसा पूर्व 539 में मादी और फारस के राजा कुस्रू ने बैबिलोन को खाक में मिला दिया। तब कुस्रू ने जल्द ही एक फरमान निकाला कि बचे हुए यहूदी अपने वतन लौट सकते हैं।
12 सपन्याह ने सच्ची उपासना दोबारा शुरू करनेवाले इन वफादार जनों के बारे में पहले ही भविष्यवाणी की थी कि यहोवा उन्हें बचाएगा और उनके लिए खुशी मनाएगा। (सपन्याह 3:14-17 पढ़िए।) हमारे समय में भी यह बिलकुल सच साबित हुआ है। स्वर्ग में राज स्थापित करने के बाद, यहोवा ने धरती के बचे हुए अभिषिक्त जनों को महानगरी बैबिलोन की आध्यात्मिक बंधुआई से आज़ाद किया। और आज तक वह उनके लिए खुश है।
13. आज पूरी दुनिया में लोग किस आज़ादी का लुत्फ उठा रहे हैं?
13 जिन लोगों को इस धरती पर हमेशा तक जीने की आशा है, वे भी महानगरी बैबिलोन से बाहर निकल आए हैं और झूठी शिक्षाओं से आज़ाद होकर सच्ची उपासना का लुत्फ उठा रहे हैं। (प्रका. 18:4) इस तरह बड़े पैमाने पर सपन्याह 2:3 की पूर्ति हमारे समय में हो रही है: “हे पृथ्वी के सब नम्र लोगों . . . [यहोवा को] ढ़ूंढ़ते रहो।” आज पूरी दुनिया के नम्र लोग यहोवा के नाम में शरण ले रहे हैं, फिर चाहे उनकी आशा धरती पर जीने की हो या स्वर्ग की।
परमेश्वर का नाम तावीज़ नहीं
14, 15. (क) कुछ लोगों ने किन चीज़ों को तावीज़ की तरह इस्तेमाल किया है? (ख) हमें किन चीज़ों को तावीज़ की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?
14 कुछ इसराएली समझते थे कि मंदिर उनके लिए एक तावीज़ है, जो दुश्मनों से उनकी रक्षा करेगा। (यिर्म. 7:1-4) इससे पहले भी वाचा के संदूक को इसराएली ऐसा तावीज़ समझते थे, जो युद्ध में उनकी रक्षा करता। (1 शमू. 4:3, 10, 11) कॉनस्टैंटाइन महान ने अपने सैनिकों की ढाल पर निशान बनवाए जो यूनानी में “मसीह” के पहले दो अक्षर, खी और रो थे। उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से युद्ध में उनकी रक्षा हो सकेगी। स्वीडन के राजा गस्ताव अडॉल्फ द्वितीय ने यूरोप में तीस साल तक युद्ध लड़ा था। माना जाता है कि उसने वह कवच पहना था जो पेज 7 पर दिखाया गया है। गौर कीजिए कि उस कवच पर इहोवा नाम बड़े अक्षरों में लिखा गया है।
15 कभी-कभी परमेश्वर के कुछ सेवकों पर दुष्ट स्वर्गदूतों ने हमला किया, तब यहोवा का नाम ज़ोर से पुकारने पर उन्हें शरण मिली। लेकिन जिन चीज़ों पर परमेश्वर का नाम होता है, उन्हें तावीज़ की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, मानो उनमें हमारी रक्षा करने की जादुई शक्ति हो। ऐसा करना यहोवा के नाम में शरण लेना नहीं है।
आज शरण लेना
16. आज हम कैसे आध्यात्मिक रूप से शरण पा सकते हैं?
16 परमेश्वर के लोग होने के नाते आज हम आध्यात्मिक सुरक्षा का आनंद लेते हैं। (भज. 91:1) मसलन, ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ और मंडली के प्राचीन, हमें दुनिया के तौर-तरीके अपनाने से खबरदार करते हैं ताकि हमारी सुरक्षा खतरे में न पड़े। (मत्ती 24:45-47; यशा. 32:1, 2) ज़रा सोचिए हमें कितनी बार चिताया जाता है कि हम रुपये-पैसे के प्यार में न पड़ें और गौर कीजिए कि ऐसी चेतावनियों ने कैसे हमारा आध्यात्मिक नुकसान होने से बचाया है। दूसरी तरफ अगर हम लापरवाह हो जाएँ और इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करें तो हम यहोवा की सेवा में ठंडे पड़ सकते हैं। परमेश्वर का वचन कहता है: “निश्चिंत रहने के कारण मूढ़ लोग नाश होंगे; परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।” (नीति. 1:32, 33) हमें खुद को हमेशा नैतिक रूप से शुद्ध रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए तभी परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता बरकरार रह पाएगा।
17, 18. आज लाखों लोगों को क्या बात यहोवा के नाम में शरण लेने में मदद दे रही है?
17 विश्वासयोग्य दास हमें बढ़ावा देता है कि हम खुशखबरी का संदेश प्रचार करने की यीशु की आज्ञा को मानें। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) सपन्याह ने भी एक बदलाव का ज़िक्र किया था, जिससे लोगों को परमेश्वर के नाम की शरण लेने में मदद मिलती। हम पढ़ते हैं: “उस समय मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”—सप. 3:9.
18 यह शुद्ध भाषा क्या है? शुद्ध भाषा यहोवा परमेश्वर और उसके मकसदों के बारे में सच्चाई है, जो उसके वचन में मिलती है। आप उस वक्त एक तरह से शुद्ध भाषा बोल रहे होते हैं जब आप परमेश्वर के राज के बारे में दूसरों को सही-सही समझाते हैं और बताते हैं कि इसके ज़रिए कैसे उसका नाम पवित्र किया जाएगा। और तब भी जब आप परमेश्वर की हुकूमत को बुलंद किए जाने पर ज़ोर देते हैं या जब आप वफादार लोगों को मिलनेवाली हमेशा की आशीषों के बारे में समझाते हैं। आज बहुत-से लोग यह भाषा बोल रहे हैं और इसका नतीजा यह हुआ है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग ‘यहोवा से प्रार्थना करते और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करते’ हैं। जी हाँ, पूरी दुनिया में लाखों लोग यहोवा के नाम में शरण ले रहे हैं।—भज. 1:1, 3.
19, 20. बाइबल के ज़माने में ‘झूठ के शरणस्थानों’ पर भरोसा रखना क्यों बेमानी साबित हुआ?
19 दुनिया में लोगों को पहाड़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे इतने परेशान हो जाते हैं कि राहत पाने के लिए असिद्ध इंसानों से मदद माँगते हैं। या वे राजनैतिक संगठनों पर आस लगाते हैं, ठीक जैसे इसराएलियों ने किया था। इसराएलियों ने कई मौकों पर मदद पाने की उम्मीद से पड़ोसी देशों से संधि की। लेकिन आप जानते हैं कि इसका कोई फायदा नहीं हुआ। उसी तरह, आज भी न तो कोई राजनैतिक पार्टी, न ही संयुक्त राष्ट्र संघ मानवजाति को पूरी तरह समस्याओं से निजात दिला सकता है। तो फिर क्यों शरण पाने के लिए किसी को राजनैतिक संगठनों और संधियों पर भरोसा करना चाहिए? बाइबल में बता दिया गया था कि वे ‘झूठ के शरणस्थान’ होंगे। और यह सच है क्योंकि जो कोई उन पर आशा रखेंगे, उन्हें घोर निराशा का सामना करना पड़ेगा।—यशायाह 28:15, 17 पढ़िए।
20 जल्द ही यहोवा का भयानक दिन इस धरती पर तूफान की तरह आएगा। उस समय इंसान की तरकीबें, उनके बनाए शरणस्थान या उनके रुपये-पैसे उनकी रक्षा नहीं कर पाएँगे। यशायाह 28:17 में बताया गया है: “तुम्हारा झूठ का शरणस्थान ओलों से बह जाएगा, और तुम्हारे छिपने का स्थान जल से डूब जाएगा।”
21. सन् 2011 के सालाना वचन को लागू करने से हमें क्या फायदा हो सकता है?
21 आज और आनेवाले समय में यहोवा के सेवकों को उसके नाम में सच्ची सुरक्षा मिलेगी। जैसा कि सपन्याह के नाम का मतलब है, “यहोवा ने छिपाया है,” तो इससे पता चलता है कि हमें शरण इसी नाम में मिल सकती है। इसलिए 2011 का सालाना वचन बिलकुल सही है, जिसमें हमें बुद्धि भरी सलाह दी गयी है कि ‘यहोवा के नाम में शरण लो।’ (सप. 3:12) आज भी यहोवा पर अटूट विश्वास दिखाकर हम उसके नाम में शरण ले सकते हैं और हमें लेनी भी चाहिए। (भज. 9:10) आइए रोज़ाना हम इस वचन को अपने मन में रखें जो हमें भरोसा दिलाता है कि “यहोवा का नाम दृढ़ कोट है; धर्मी उस में भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है।”—नीति. 18:10.
क्या आपको याद है?
• हम यहोवा के नाम में कैसे शरण ले सकते हैं?
• हमें ‘झूठ के शरणस्थान’ पर क्यों भरोसा नहीं दिखाना चाहिए?
• भविष्य में हमसे कैसी शरण का वादा किया गया है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
सन् 2011 का सालाना वचन है: ‘यहोवा के नाम में शरण लो।’—सपन्याह 3:12, NHT.
[पेज 7 पर चित्र का श्रेय]
Thüringer Landesmuseum Heidecksburg Rudolstadt, Waffensammlung “Schwarzburger Zeughaus”