इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने से हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी

परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने से हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी

परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने से हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी

“तू धर्मी को आशीष देगा; हे यहोवा, तू उसको अपने अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा।”—भज. 5:12.

1, 2. एलिय्याह, सारपत की विधवा स्त्री से क्या आग्रह करता है और उसे क्या भरोसा दिलाता है?

 वह स्त्री और उसका बेटा दोनों भूखे थे और परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता को भी भूख लगी थी। सारपत की वह विधवा चूल्हे में आग जलाने ही जा रही थी कि भविष्यवक्‍ता एलिय्याह ने उससे पानी और रोटी माँगी। वह भविष्यवक्‍ता को पानी देने के लिए राज़ी थी, लेकिन जहाँ तक रोटी की बात थी, उसके पास “केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल” था। उसे लगा कि वह भविष्यवक्‍ता को खाने के लिए कुछ नहीं दे पाएगी इसलिए उसने अपनी मजबूरी उसे बतायी।—1 राजा 17:8-12.

2 एलिय्याह ने आग्रह किया कि “पहिले मेरे लिये एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ, फिर इसके बाद अपने और अपने बेटे के लिये बनाना। क्योंकि इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है, कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा चुकेगा, और न उस कुप्पी का तेल घटेगा।”—1 राजा 17:13, 14.

3. हमारे सामने कौन-सा ज़रूरी सवाल खड़ा है?

3 स्त्री को सिर्फ यही फैसला नहीं करना था कि वह एलिय्याह को खाने के लिए कुछ देगी या नहीं, बल्कि इससे भी अहम फैसला उसे करना था। क्या वह इस बात पर भरोसा दिखाती कि परमेश्‍वर उसे और उसके बेटे को बचाएगा? या फिर परमेश्‍वर की मंज़ूरी और दोस्ती से बढ़कर वह अपनी ज़रूरतों को पहली जगह देती? हम सबके सामने भी यही सवाल है। हम किस बात की ज़्यादा चिंता करते हैं, यहोवा की मंज़ूरी पाने की या रुपये-पैसे जमा करने की? हमारे पास यहोवा पर भरोसा रखते हुए उसकी सेवा करने का हर कारण है। तो उसकी मंज़ूरी पाने के लिए हम कौन-से कदम उठा सकते हैं, आइए उन पर गौर करें।

‘तू उपासना पाने के योग्य है’

4. यहोवा हमारी उपासना पाने का हकदार क्यों है?

4 यहोवा के पास यह माँग करने का अधिकार है कि लोग उसकी इस तरह सेवा करें जो उसे मंज़ूर हो। और स्वर्ग में रहनेवाले उसके दूत भी इस बात से सहमत हैं, तभी तो उन्होंने एक आवाज़ में कहा था: “हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू अपनी महिमा, अपने आदर और शक्‍ति के लिए तारीफ पाने के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं और तेरी ही मरज़ी से ये वजूद में आयीं और रची गयीं।” (प्रका. 4:11) यहोवा ने ही इस विश्‍व की सृष्टि की है, इसलिए वही हमारी उपासना का हकदार है।

5. किस तरह परमेश्‍वर का प्यार हमें उसकी सेवा करने के लिए उभारता है?

5 हमें इस वजह से भी यहोवा की सेवा करनी चाहिए क्योंकि उसके जितना प्यार हमें और कोई नहीं करता। बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।” (उत्प. 1:27) परमेश्‍वर ने इंसान को सोचने-समझने और अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी। हमें ज़िंदगी देकर वह पूरी मानवजाति का पिता बन गया। (लूका 3:38) एक अच्छे पिता की तरह उसने अपने बेटे-बेटियों को ज़रूरत की वह हर चीज़ दी, जिससे हम खुश रहें। “वह सूरज चमकाता” और “बारिश बरसाता है” जिससे इस खूबसूरत धरती पर खूब अन्‍न हो।—मत्ती 5:45.

6, 7. (क) आदम ने अपनी सभी संतानों का क्या नुकसान कर दिया? (ख) जो लोग परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना चाहते हैं उन्हें मसीह के बलिदान से क्या फायदा होगा?

6 यहोवा ने हमें पाप के भयंकर अंजाम से भी बचाया है। पाप करने की वजह से आदम मानो एक जुआरी बन गया जो जुआ खेलने के लिए अपने परिवार में ही चोरी करता है। यहोवा के खिलाफ बगावत करके आदम ने अपने ही बच्चों से उनकी हमेशा की ज़िंदगी और खुशियाँ चुरा लीं। उसके स्वार्थ की वजह से मानवजाति एक निर्दयी मालिक यानी असिद्धता की गुलाम बन गयी। इसका अंजाम यह हुआ है कि इंसान बीमार होते, दुखों का सामना करते और आखिरकार मर जाते हैं। किसी गुलाम को आज़ाद करने के लिए उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। और यहोवा ने भी भारी कीमत चुकायी ताकि हम उसके दर्दनाक अंजामों से बच सकें। (रोमियों 5:21 पढ़िए।) अपने पिता की इच्छा पर चलकर यीशु मसीह ने “बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान” दे दी। (मत्ती 20:28) जल्द ही फिरौती की उस कीमत का पूरा-पूरा फायदा उन्हें मिलेगा जो परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाएँगे।

7 हम खुशी से एक मकसद भरी ज़िंदगी जी सकें इसके लिए हमारे सृष्टिकर्ता ने जो किया है उतना कोई और नहीं कर सकता। अगर हम पर उसकी मंज़ूरी हुई तो हम देख सकेंगे कि मानवजाति को जो भी नुकसान हुआ है, भविष्य में वह कैसे उसकी भरपायी करेगा। लेकिन आज भी यहोवा हममें से हरेक को निजी तौर पर यह बताता रहेगा कि “वह उन लोगों को इनाम देता है, जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रा. 11:6.

“तेरी प्रजा के लोग . . . स्वेच्छाबलि बनते हैं”

8. यशायाह का उदाहरण हमें परमेश्‍वर की सेवा के बारे में क्या सिखाता है?

8 यह ज़रूरी है कि परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए हम अपने चुनाव करने की आज़ादी का सही इस्तेमाल करें। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहोवा किसी पर भी उसकी सेवा करने का दबाव नहीं डालता। उसने एक बार यशायाह से पूछा: “मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” यहोवा ने भविष्यवक्‍ता से यह पूछकर दरअसल उसके चुनाव करने के हक का आदर किया। कल्पना कीजिए कि यशायाह को ऐसा कहते हुए कितनी खुशी मिली होगी: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।”—यशा. 6:8.

9, 10. (क) हमें किस रवैए के साथ परमेश्‍वर की सेवा करनी चाहिए? (ख) तन-मन से यहोवा की सेवा करना हमारे लिए सही क्यों है?

9 इंसान चाहे तो परमेश्‍वर की सेवा कर सकता है, चाहे तो नहीं। लेकिन यहोवा चाहता है कि हम खुशी-खुशी उसकी सेवा करें। (यहोशू 24:15 पढ़िए।) जो परमेश्‍वर की उपासना कुढ़-कुढ़कर करते हैं, उनसे वह खुश नहीं होता और न ही वह ऐसे लोगों की उपासना कबूल करता है, जो सिर्फ इंसान को खुश करने के लिए ऐसा करते हैं। (कुलु. 3:22) अगर हम दुनियावी बातों में ज़्यादा दिलचस्पी लेने की वजह से परमेश्‍वर की सेवा “पूर्ण मन से” नहीं करेंगे, तो हमें परमेश्‍वर की मंज़ूरी नहीं मिलेगी। (भज. 119:2) यहोवा जानता है कि हमारी भलाई इसी में है कि हम तन-मन से उसकी सेवा करें। मूसा ने इसराएलियों से गुज़ारिश की थी कि वे ‘अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करने, उसकी बात मानने, और उससे लिपटे रहने’ के ज़रिए जीवन को चुन लें।—व्यव. 30:19, 20.

10 प्राचीन इसराएल के राजा दाविद ने यहोवा के लिए गीत गाया: “तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; तेरे जवान लोग पवित्रता से शोभायमान, और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं।” (भज. 110:3) आज बहुत-से लोग रुपए-पैसे और ऐशो-आराम के लिए ही जीते हैं। लेकिन यहोवा से प्यार करनेवाले, यहोवा की सेवा को हर चीज़ से पहले रखते हैं। जिस जोश के साथ वे खुशखबरी का प्रचार करते हैं उससे ज़ाहिर होता है कि उनके जीवन में सबसे ज़रूरी काम क्या हैं। उन्हें इस बात का पूरा भरोसा है कि यहोवा उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करेगा।—मत्ती 6:33, 34.

बलिदान—जिन्हें परमेश्‍वर कबूल करता है

11. इसराएली यहोवा को बलिदान चढ़ाकर क्या पाने की उम्मीद कर सकते थे?

11 कानून व्यवस्था के तहत इसराएलियों ने परमेश्‍वर को भानेवाले बलिदान चढ़ाए ताकि उसकी मंज़ूरी पा सकें। लैव्यव्यवस्था 19:5 में कहा गया है: “जब तुम यहोवा के लिये मेलबलि करो, तब ऐसा बलिदान करना जिससे मैं तुम से प्रसन्‍न हो जाऊं।” उसी किताब में हम आगे पढ़ते हैं: “जब तुम यहोवा के लिये धन्यवाद का मेलबलि चढ़ाओ, तो उसे इसी प्रकार से करना जिस से वह ग्रहणयोग्य ठहरे।” (लैव्य. 22:29) जब परमेश्‍वर के लोग यहोवा की वेदी पर एक अच्छे जानवर की बलि चढ़ाते थे, तो उससे ऊपर उठनेवाला धुआँ सच्चे परमेश्‍वर के लिए मानो ‘सुखदायक सुगन्ध’ होता था। (लैव्य. 1:9, 13) जी हाँ, परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हुए जब वे ऐसी बलि चढ़ाते थे, तो परमेश्‍वर को उससे राहत और ताज़गी मिलती थी। (उत्प. 8:21, किताब-ए-मुकद्दस) आज भी यही सिद्धांत लागू होता है। यहोवा को भानेवाले बलिदान चढ़ाने से हमें यहोवा की मंज़ूरी मिलती है। तो यहोवा को किस तरह के बलिदान भाते हैं? आइए दो पहलुओं पर गौर करें: एक हमारा चालचलन और दूसरा हमारी बोली।

12. किन कामों की वजह से हमारे ‘शरीर का बलिदान’ परमेश्‍वर की नज़र में घृणित हो सकता है?

12 रोमियों को लिखे अपने खत में प्रेषित पौलुस ने कहा: “तुम अपने शरीर को जीवित, पवित्र और परमेश्‍वर को भानेवाले बलिदान के तौर पर अर्पित करो। इस तरह तुम अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते हुए पवित्र सेवा कर सकोगे।” (रोमि. 12:1) परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए एक इंसान को अपना शरीर शुद्ध रखना चाहिए। अगर हम अपने शरीर को तंबाकू, सुपारी, नशीले पदार्थों या शराब से गंदा करेंगे, तो हमारे बलिदान की कोई कीमत नहीं होगी। (2 कुरिं. 7:1) इससे भी बढ़कर “जो व्यभिचार में लगा रहता है वह अपने ही शरीर के खिलाफ पाप” करता है। किसी भी तरह के अनैतिक काम करनेवाले इंसान के बलिदान से यहोवा को घृणा होती है। (1 कुरिं. 6:18) परमेश्‍वर को खुश करने के लिए एक इंसान को चाहिए कि वह “अपने सारे चालचलन में पवित्र” बने।—1 पत. 1:14-16.

13. यहोवा की महिमा करना क्यों सही है?

13 एक और बलिदान जिससे परमेश्‍वर खुश होता है, वह है हमारी बोली। यहोवा से प्यार करनेवाले हमेशा उसके बारे में सबके सामने और अपने घर की चार-दीवारी में अच्छी बातें करते हैं। (भजन 34:1-3 पढ़िए।) भजन 148-150 पढ़िए और गौर कीजिए कि इन तीन भजनों में हमें कितनी बार यहोवा की महिमा करने के लिए उभारा गया है। सच, “धर्मी लोगों को स्तुति करनी सोहती है।” (भज. 33:1) और हमारे आदर्श यीशु मसीह ने भी ज़ोर दिया कि हम प्रचार के ज़रिए परमेश्‍वर की महिमा करें।—लूका 4:18, 43, 44.

14, 15. होशे ने इसराएलियों से कैसा बलिदान चढ़ाने को कहा और यहोवा उनके बारे में क्या कहता है?

14 जोश के साथ प्रचार करके हम इस बात का सबूत देते हैं कि हम यहोवा से प्यार करते और उसकी मंज़ूरी पाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, गौर कीजिए कि भविष्यवक्‍ता होशे ने उन इसराएलियों को क्या सलाह दी, जिन्होंने झूठी उपासना में लगकर परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो दी थी। (होशे 13:1-3) उसने कहा कि वे यहोवा से इस तरह बिनती करें: “हे [यहोवा], मेरे समस्त अधर्म को मुझसे दूर कर, तू केवल मेरी अच्छाई को स्वीकार कर। तब हम बलि में बैल नहीं, वरन्‌ स्तुतिगान तुझे चढ़ाएंगे।”—होशे 14:1, 2; नयी हिन्दी बाइबल।

15 यहोवा को बलि चढ़ाने के लिए इसराएली जो जानवर खरीदते थे, उनमें बैल सबसे महँगा होता था। लेकिन जैसा कि उन्होंने कहा कि “बैल नहीं, वरन्‌ स्तुतिगान” चढ़ाएँगे, तो उन्हें स्तुति का उत्तम बलिदान चढ़ाना था। इसका मतलब है कि उन्हें दिल से, सोचे-समझे शब्दों का इस्तेमाल करके सच्चे परमेश्‍वर की महिमा करनी थी। ऐसे बलिदान चढ़ानेवालों के बारे में यहोवा ने क्या कहा? “मैं सेंतमेंत [या, “खुलकर,” NHT] उन से प्रेम करूंगा।” (होशे 14:4) यहोवा ऐसे लोगों को माफ करता है, अपनी मंज़ूरी देता और उनसे दोस्ती करता है।

16, 17. जब परमेश्‍वर में विश्‍वास एक इंसान को खुशखबरी सुनाने के लिए प्रेरित करता है, तब यहोवा उसकी स्तुति को किस तरह कबूल करता है?

16 लोगों के सामने यहोवा की महिमा करना सच्ची उपासना का एक अहम हिस्सा रहा है। भजनहार के लिए सच्चे परमेश्‍वर की स्तुति करना इतना मायने रखता था कि उसने बिनती की: “हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर।” (भज. 119:108) आज के बारे में क्या? हमारे दिनों के एक बड़े समूह के बारे में भविष्यवाणी करते वक्‍त यशायाह ने कहा कि “[वे] यहोवा का गुणानुवाद आनन्द से सुनाएंगे। . . . [मेरे परमेश्‍वर की] वेदी पर [उनके तोहफे] ग्रहण किए जाएंगे।” (यशा. 60:6, 7) इस भविष्यवाणी की पूर्ति में आज लाखों लोग परमेश्‍वर को “गुणगान का बलिदान” चढ़ाते हैं, यानी “होठों का फल जो उसके नाम का सरेआम ऐलान” है।—इब्रा. 13:15.

17 आपके बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या आप परमेश्‍वर को भानेवाले बलिदान चढ़ाते हैं? अगर नहीं, तो क्या आप मुनासिब बदलाव करके लोगों में यहोवा के नाम की महिमा करना शुरू कर सकते हैं? जब अपने विश्‍वास से प्रेरित होकर आप खुशखबरी का प्रचार करेंगे, तो आपका बलिदान “यहोवा को बैल से अधिक . . . भाएगा।” (भजन 69:30, 31 पढ़िए।) भरोसा रखिए कि आपका स्तुति बलिदान “सुखदायक सुगन्ध” की तरह यहोवा तक पहुँचेगा और वह आपको अपनी मंज़ूरी देगा। (यहे. 20:41) फिर इससे आपको जो खुशी मिलेगी उसकी बराबरी किसी से नहीं की जा सकेगी।

‘यहोवा धर्मी को आशीष देगा’

18, 19. (क) परमेश्‍वर की सेवा के मामले में आज बहुत-से लोग कैसी सोच रखते हैं? (ख) परमेश्‍वर की मंज़ूरी खोने का क्या अंजाम होता है?

18 आज बहुत-से लोग मलाकी के दिनों की तरह इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि “परमेश्‍वर की सेवा करनी व्यर्थ है। . . . इस से क्या लाभ?” (मला. 3:14) ऐसे लोगों पर रुपये-पैसे बटोरने की ऐसी धुन सवार होती है कि उन्हें लगता है, परमेश्‍वर का मकसद पूरा नहीं होगा और उसके नियम आज लागू नहीं होते। ऐसे लोग मानते हैं कि खुशखबरी का प्रचार करना समय की बरबादी है, और दूसरों को खीज दिलाना है।

19 इस तरह की सोच के पीछे कौन है, यह हमें अदन के बाग में हुई घटना से पता चलता है। वह शैतान ही था जिसने हव्वा को बहकाया कि वह उस बेशकीमती जीवन को ठुकरा दे जो यहोवा ने उसे दिया था और इस तरह उसकी मंज़ूरी खो दे। आज भी शैतान लोगों को यकीन दिलाने में लगा रहता है कि परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने से कुछ हासिल नहीं होगा। लेकिन हव्वा और उसके पति को जल्द ही एहसास हो गया कि परमेश्‍वर की मंज़ूरी खोने का मतलब था, ज़िंदगी से हाथ धोना। आज जो लोग उनके बुरे उदाहरण पर चलते हैं, उन्हें भी जल्द इस कड़वी सच्चाई का स्वाद चखना पड़ेगा।—उत्प. 3:1-7, 17-19.

20, 21. (क) सारपत की विधवा स्त्री ने क्या किया और उसका क्या नतीजा निकला? (ख) कैसे और क्यों हमें सारपत की विधवा स्त्री के उदाहरण पर चलना चाहिए?

20 जी हाँ, आदम-हव्वा को अपने फैसले का बुरा अंजाम भुगतना पड़ा। मगर गौर कीजिए कि सारपत की विधवा स्त्री के फैसले का क्या नतीजा हुआ, जिसका ज़िक्र शुरू में किया गया था। एलिय्याह की हिम्मत बढ़ानेवाली बात सुनकर उस स्त्री ने रोटी पकानी शुरू की और उसने सबसे पहले भविष्यवक्‍ता को परोसा। फिर यहोवा ने भी अपना वादा पूरा किया, जो उसने एलिय्याह से किया था। वाकया बताता है: “तब से वह और स्त्री और उसका घराना बहुत दिन तक खाते रहे। यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह के द्वारा कहा था, न तो उस घड़े का मैदा चुका, और न उस कुप्पी का तेल घट गया।”—1 राजा 17:15, 16.

21 जैसा आज लाखों लोग खुशी-खुशी कर रहे हैं, सारपत की विधवा स्त्री ने भी वही किया था। उसने अपना पूरा भरोसा उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर पर रखा और परमेश्‍वर ने उसकी मदद की। यह और बाइबल के दूसरे वाकये इस बात को पुख्ता करते हैं कि यहोवा हमारे भरोसे के लायक है। (यहोशू 21:43-45; 23:14 पढ़िए।) आज यहोवा के साक्षियों की ज़िंदगी इस बात का सबूत है कि जिन पर परमेश्‍वर की मंज़ूरी होती है, वह उन्हें कभी नहीं छोड़ता।—भज. 34:6, 7, 17-19. *

22. आज बिना देर किए परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाना क्यों बेहद ज़रूरी है?

22 परमेश्‍वर के न्याय का दिन अचानक इस “धरती पर रहनेवाले सभी लोगों पर” आ पड़ेगा। (लूका 21:34, 35) और कोई उससे बच नहीं सकेगा। आज हमारे पास चाहे कितनी ही दौलत या ऐशो-आराम की चीज़ें हों, उस वक्‍त वे धरी-की-धरी रह जाएँगी, जब परमेश्‍वर का नियुक्‍त न्यायी कहेगा: “मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है।” (मत्ती 25:34) सच, ‘यहोवा धर्मी को आशीष देगा; वह उसको अपने अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा।’ (भज. 5:12) इसे ध्यान में रखते हुए क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश करें?

[फुटनोट]

^ 15 मार्च, 2005 की प्रहरीदुर्ग का पेज 13, पैरा. 15; 1 अगस्त, 1997 के पेज 20-25 देखिए।

क्या आपको याद है?

• यहोवा क्यों सच्चे दिल से हमारी उपासना पाने का हकदार है?

• आज यहोवा किन बलिदानों को कबूल करता है?

• “बैल नहीं, वरन्‌ स्तुतिगान” शब्दों का क्या मतलब है और हमें अपना स्तुति बलिदान क्यों यहोवा को चढ़ाना चाहिए?

• हमें क्यों यहोवा की मंज़ूरी पाने की कोशिश करनी चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर तसवीर]

परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता ने एक ज़रूरतमंद माँ के सामने क्या चुनाव रखा?

[पेज 15 पर तसवीर]

यहोवा को अपने होठों का फल चढ़ाने से हमें क्या फायदे होंगे?

[पेज 17 पर तसवीर]

यहोवा पर सच्चे दिल से भरोसा करके आप कभी निराश नहीं होंगे