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क्या आप पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलते हैं?

क्या आप पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलते हैं?

क्या आप पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलते हैं?

“तेरा भला आत्मा [“पवित्र शक्‍ति,” NW] मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले!”—भज. 143:10.

1, 2. (क) कुछ घटनाएँ बताइए जब यहोवा ने अपने सेवकों की खातिर अपनी पवित्र शक्‍ति का इस्तेमाल किया। (ख) क्या पवित्र शक्‍ति कुछ खास मौकों पर ही काम करती है? समझाइए।

 पवित्र शक्‍ति के कामों के बारे में सोचते वक्‍त आपके सामने किन घटनाओं की तसवीर उभर आती है? क्या आपको गिदोन और शिमशोन के बड़े-बड़े कारनामे याद आते हैं? (न्यायि. 6:33, 34; 15:14, 15) शायद आपको पहली सदी के मसीहियों की हिम्मत याद आए या स्तिफनुस का शांत चेहरा, जब वह महासभा के सामने खड़ा था। (प्रेषि. 4:31; 6:15) आज के ज़माने के बारे में क्या? अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में भाई-बहनों के बीच जिस तरह खुशी उमड़ती है, भाइयों को निष्पक्षता दिखाने की वजह से जब जेल जाना पड़ता है या फिर जब हम प्रचार में कमाल की बढ़ोतरी देखते हैं तो क्या हमें इस बात का सबूत नहीं मिलता कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति वाकई काम करती है?

2 क्या पवित्र शक्‍ति केवल खास मौकों पर या अनोखे हालात में ही मदद करती है? नहीं। परमेश्‍वर का वचन मसीहियों के बारे में कहता है कि वे “पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते” हैं और उनके “जीने का तरीका पवित्र शक्‍ति के मुताबिक” होता है। (गला. 5:16, 18, 25) ये शब्द दिखाते हैं कि पवित्र शक्‍ति हमारी ज़िंदगी पर हर पल असर कर सकती है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह अपनी पवित्र शक्‍ति से हमारी सोच, बोली और कामों को निर्देशित करे। (भजन 143:10 पढ़िए।) अगर हम अपनी ज़िंदगी में पवित्र शक्‍ति को खुलकर काम करने देंगे तो वह हममें इसके फल पैदा करेगी, जिससे दूसरों को ताज़गी मिलेगी और परमेश्‍वर की महिमा होगी।

3. (क) हमें पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में क्यों चलना चाहिए? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 यह क्यों ज़रूरी है कि हम पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलते रहें? क्योंकि इसके खिलाफ एक और शक्‍ति काम करती है जो हम पर कब्ज़ा करने की ताक में रहती है। उसे बाइबल की भाषा में “पापी शरीर” कहा गया है, जिसका झुकाव हमेशा बुरे कामों की तरफ होता है, एक ऐसी विरासत जो हम सबको आदम से मिली है। (गलातियों 5:17 पढ़िए।) परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के निर्देशन के मुताबिक चलने में क्या शामिल है? हम क्या कारगर कदम उठा सकते हैं ताकि हम पापी शरीर की इच्छाओं का विरोध कर सकें? आइए पवित्र शक्‍ति के फल के बाकी के छः पहलुओं “सहनशीलता, कृपा, भलाई, विश्‍वास, कोमलता, [और] संयम” पर चर्चा करते वक्‍त इन सवालों पर गौर करें।—गला. 5:22, 23.

कोमलता और सहनशीलता से मंडली में शांति बनी रहती है

4. कोमलता और सहनशीलता से कैसे मंडली में शांति बनी रहती है?

4 कुलुस्सियों 3:12, 13 पढ़िए। मंडली में शांति बनाए रखने के लिए कोमलता और सहनशीलता, दोनों का होना बहुत ज़रूरी है। पवित्र शक्‍ति के फल के ये पहलू हमारी मदद करते हैं कि हम दूसरों के साथ प्यार से पेश आएँ, गुस्सा दिलानेवाले हालात में शांत रहें और जब दूसरे अपनी बोली या कामों से हमें ठेस पहुँचाते हैं, तो उनसे बदला लेने की न सोचें। अगर किसी भाई-बहन से हमारी नहीं बनती तो सहनशीलता या धीरज हमारी मदद करेगा कि हम उससे नाता न तोड़ें, बल्कि हमारे बीच आयी दरार को भरने की पूरी कोशिश करें। क्या मंडली में वाकई कोमलता और सहनशीलता दिखाने की ज़रूरत है? जी हाँ, क्योंकि हम सब असिद्ध हैं।

5. पौलुस और बरनबास के बीच क्या हुआ और इससे क्या पता चलता है?

5 गौर कीजिए कि पौलुस और बरनबास के बीच क्या हुआ। खुशखबरी को दूर-दूर तक फैलाने में दोनों ने कई साल तक मिलकर काम किया। दोनों में कमाल की खूबियाँ थीं। लेकिन एक बार उनमें “ज़बरदस्त तकरार हुई” और “वे एक-दूसरे से अलग हो गए।” (प्रेषि. 15:36-39) यह घटना दिखाती है कि कभी-कभी परमेश्‍वर के समर्पित सेवकों में भी मतभेद हो सकता है। अगर एक मसीही की किसी भाई-बहन के साथ बहस हो जाती है तो इससे पहले कि मामला गरम हो जाए और हमेशा के लिए रिश्‍ते में दरार पड़ जाए, वह क्या कर सकता है?

6, 7. (क) अपने संगी विश्‍वासी के साथ बातचीत के वक्‍त मामला गरम होने से पहले हम बाइबल की कौन-सी सलाह मान सकते हैं? (ख) अगर एक इंसान “सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे, और क्रोध करने में धीमा हो” तो उसे क्या फायदे होंगे?

6 पौलुस और बरनबास में अचानक बहस छिड़ी जो एक “ज़बरदस्त तकरार” में तबदील हो गयी। अगर एक मसीही को लगता है कि संगी विश्‍वासी के साथ मामले पर चर्चा करते वक्‍त उसे गुस्सा आ रहा है, तो उसका याकूब 1:19, 20 में दी गयी सलाह को मानना बुद्धिमानी होगा। वहाँ लिखा है: “हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे, और क्रोध करने में धीमा हो। इसलिए कि इंसान के क्रोध करने का नतीजा वह नेकी नहीं होता, जिसकी माँग परमेश्‍वर करता है।” हालात को मद्देनज़र रखते हुए वह बात का रुख मोड़ सकता है, विषय बदल सकता है या हालात गरम होने से पहले वहाँ से निकल सकता है।—नीति. 12:16; 17:14; 29:11.

7 इस सलाह को मानने के क्या फायदे हैं? जब एक मसीही अपने गुस्से को शांत करने के लिए वक्‍त लेता है, मामले के बारे में प्रार्थना करता है और अच्छी तरह जवाब देने पर विचार करता है तो वह पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चल रहा होता है। (नीति. 15:1, 28) पवित्र शक्‍ति की मदद से वह दूसरों के साथ कोमलता और सहनशीलता से पेश आ सकता है। इस तरह उसे इफिसियों 4:26, 29 में पायी जानेवाली सलाह को लागू करने में मदद मिलेगी। वहाँ लिखा है: “तुम्हें क्रोध आए, तो भी पाप मत करो। . . . कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, मगर सिर्फ ऐसी बात निकले जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे।” वाकई जब हम जीवन में कोमलता और सहनशीलता को पहन लेते हैं तो हम मंडली में शांति और एकता को बढ़ावा देते हैं।

कृपा और भलाई से अपने परिवार का माहौल खुशनुमा बनाइए

8, 9. कृपा और भलाई का क्या मतलब है और इन गुणों का घर के माहौल पर क्या असर होता है?

8 इफिसियों 4:31, 32; 5:8, 9 पढ़िए। कृपा और भलाई चिलचिलाती धूप में ठंडी हवा के झोंके और एक गिलास ठंडे पानी की तरह हैं। इन गुणों से परिवार का माहौल खुशनुमा हो जाता है। कृपा एक प्यारा गुण है जो दूसरों में सच्ची दिलचस्पी लेकर ज़ाहिर किया जाता है। यह दिलचस्पी हम अपने भले कामों और मीठी बोली से दिखा सकते हैं। भलाई भी कृपा की तरह ही सद्‌गुण है जो हमारे कामों में दिखायी देता है और जिससे दूसरों को फायदा होता है। इसमें खासकर उदारता की भावना होती है। (प्रेषि. 9:36, 39; 16:14, 15) लेकिन भलाई कृपा से बढ़कर है।

9 भलाई का मतलब है नैतिकता के ऊँचे आदर्श। इसमें सिर्फ हमारे अच्छे काम ही नहीं बल्कि हमारी पूरी शख्सियत शामिल है। कल्पना कीजिए कि एक स्त्री अपने परिवार के लिए फल काट रही है। वह हर टुकड़े को न सिर्फ बाहर से बल्कि अंदर से भी देखती है कि क्या वह अच्छी तरह पका हुआ और मीठा है, कहीं खराब तो नहीं। उसी तरह पवित्र शक्‍ति से हममें जो भलाई पैदा होती है, वह पूरी तरह हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाती है।

10. पवित्र शक्‍ति के फल पैदा करने में परिवार के सदस्यों की मदद कैसे की जा सकती है?

10 क्या बात एक मसीही परिवार के सदस्यों को भलाई और कृपा से पेश आने में मदद दे सकती है? इसके लिए परमेश्‍वर के वचन का सही ज्ञान लेना बहुत ज़रूरी है। (कुलु. 3:9, 10) कुछ परिवार के मुखिया पारिवारिक उपासना की शाम को पवित्र शक्‍ति के फल पर चर्चा करते हैं। इसके लिए जानकारी इकट्ठा करना मुश्‍किल नहीं है। आपकी भाषा में खोजबीन के जो ज़रिए मौजूद हैं, उनकी मदद से आप पवित्र शक्‍ति के फल के हरेक पहलू पर जानकारी निकालिए। आप हर हफ्ते सिर्फ कुछ पैराग्राफ पर चर्चा कर सकते हैं। इस तरह एक पहलू पर आप कई हफ्तों तक अध्ययन कर सकते हैं। पारिवारिक उपासना के दौरान, दी गयी हर आयत पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए। देखिए कि आप सीखी हुई बातों को अपने जीवन में कहाँ और कैसे लागू कर सकते हैं और अपनी मेहनत पर यहोवा की आशीष माँगिए। (1 तीमु. 4:15; 1 यूह. 5:14, 15) क्या इस तरह अध्ययन करने से, परिवार के सदस्यों के आपसी व्यवहार में फर्क आ सकता है?

11, 12. कृपा के बारे में अध्ययन करने से कैसे दो मसीही जोड़ों को फायदा हुआ?

11 एक जवान जोड़ा अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को खुशहाल बनाना चाहता था इसलिए उन्होंने पवित्र शक्‍ति के फल पर गहराई से अध्ययन करने का फैसला किया। क्या इससे उन्हें फायदा हुआ? पत्नी कहती है: “जब मैंने सीखा कि कृपा में वफादारी और निष्ठा जैसे गुण शामिल हैं, तो इसका एक-दूसरे के साथ हमारे व्यवहार पर वाकई बहुत असर पड़ा, जो आज तक हमारी ज़िंदगी में देखा जा सकता है। इन गुणों की वजह से हमने झुकना और एक-दूसरे को माफ करना सीखा। साथ ही, ज़रूरत पड़ने पर हमने एक-दूसरे को ‘शुक्रिया’ और ‘माफ कीजिए’ जैसे शब्द भी कहने सीखे।”

12 एक और मसीही जोड़े का उदाहरण लीजिए, जिनकी शादीशुदा ज़िंदगी में कई समस्याएँ थीं। उन्हें एहसास हुआ कि इसका कारण है कि वे एक-दूसरे को कृपा नहीं दिखाते। उन्होंने कृपा पर मिलकर अध्ययन करने का फैसला किया। इसका नतीजा क्या हुआ? पति याद करता है: “कृपा के गुण का अध्ययन करते समय हमने खुद में यह कमी देखी कि हम एक-दूसरे के इरादे पर शक करते हैं। हमारे लिए ज़रूरी था कि हम भरोसा रखना और अच्छाई ढूँढ़ना सीखें। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे की ज़रूरत का खयाल रखने लगे। कृपा दिखाने में यह शामिल है कि मैं अपनी पत्नी को खुलकर उसकी बात कहने का मौका दूँ और वह जो कहती है, उसका बुरा न मानूँ। इसका मतलब था कि मैं अपना घमंड दूर रखूँ। जैसे-जैसे हम अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में कृपा का गुण दिखाने लगे, हमारे बीच लड़ाई-झगड़े कम हो गए। इससे हमें बड़ी राहत मिली।” क्या पवित्र शक्‍ति के फल का अध्ययन करने से आपके परिवार को भी फायदा हो सकता है?

अकेले में अपने विश्‍वास का सबूत दीजिए

13. अपनी आध्यात्मिकता को हमें किस खतरे से बचाने की ज़रूरत है?

13 मसीहियों को हमेशा पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलना चाहिए, फिर चाहे वे लोगों के बीच हों या अकेले हों। आज इस शैतानी संसार में गंदी तसवीरें और घटिया मनोरंजन चारों तरफ फैला हुआ है। इससे हमारी आध्यात्मिकता को खतरा हो सकता है। एक मसीही को इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए? परमेश्‍वर का वचन हमें सलाह देता है: “बुराई को उतार फेंको और अपने अंदर उस वचन के बोए जाने को कोमलता से स्वीकार करो, जो तुम्हारी ज़िंदगियों को बचा सकता है।” (याकू. 1:21) आइए गौर करें कि पवित्र शक्‍ति के फल का एक और पहलू विश्‍वास कैसे यहोवा के सामने शुद्ध बने रहने में हमारी मदद करता है।

14. विश्‍वास की कमी कैसे हमें गलत चालचलन में फँसा सकती है?

14 बुनियादी तौर पर विश्‍वास का मतलब है, यहोवा परमेश्‍वर को असल रूप में देखना। अगर परमेश्‍वर हमारे लिए असल नहीं होगा तो हम आसानी से गलत चालचलन में फँस जाएँगे। आइए पुराने ज़माने के परमेश्‍वर के लोगों पर ध्यान दें। वे चोरी-छिपे घृणित कामों में लगे थे, जिसके बारे में यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को इस तरह बताया: “मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिये अपनी अपनी नक्काशीवाली कोठरियों के भीतर अर्थात्‌ अन्धियारे में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता; यहोवा ने देश को त्याग दिया है।” (यहे. 8:12) क्या आपने समस्या की असल जड़ पर गौर किया? उन्हें लगता था कि यहोवा उनके गलत कामों को नहीं देख रहा है। जी हाँ, यहोवा उनके लिए असल नहीं था।

15. यहोवा में मज़बूत विश्‍वास कैसे हमारी रक्षा करता है?

15 इसके उलट यूसुफ के उदाहरण पर गौर कीजिए। हालाँकि वह अपने परिवार और लोगों से दूर था मगर फिर भी उसने पोतीपर की पत्नी के साथ व्यभिचार करने से इनकार कर दिया। क्यों? उसने कहा: “भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर का अपराधी क्योंकर बनूं?” (उत्प. 39:7-9) जी हाँ, यहोवा उसके लिए असल था। अगर हम भी परमेश्‍वर को असल समझेंगे तो हम न तो घटिया मनोरंजन देखेंगे और ना ही अकेले में कोई ऐसा काम करेंगे जिससे परमेश्‍वर को दुख पहुँचे। हमें भी भजनहार की तरह ठान लेना चाहिए, जिसने अपने गीत में कहा: “मैं अपने घर में मन की खराई के साथ अपनी चाल चलूंगा; मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊंगा।”—भज. 101:2, 3.

संयम दिखाते हुए अपने हृदय की रक्षा कीजिए

16, 17. (क) जैसा कि नीतिवचन की किताब में बताया है कैसे “एक निर्बुद्धि जवान” पाप में फँस जाता है? (ख) पेज 26 पर दिखायी तसवीर की तरह हमारे साथ भी क्या हो सकता है, फिर चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो?

16 संयम पवित्र शक्‍ति के फल का आखिरी पहलू है जो हमें ऐसी चीज़ों को ना कहने में मदद देता है, जिनकी परमेश्‍वर निंदा करता है। इससे हमारे हृदय की रक्षा होती है। (नीति. 4:23) नीतिवचन 7:6-23 में दिए गए एक दृश्‍य पर गौर कीजिए। वहाँ बताया गया है कि कैसे “एक निर्बुद्धि जवान” एक वेश्‍या की छली बातों में आ जाता है। दरअसल ऐसा उसके साथ तब होता है जब वह “उस स्त्री के घर के कोने के पास” जाता है। शायद वह सिर्फ उसे देखने की लालसा उसकी गली में जाता है। लेकिन इससे पहले कि वह बातों को समझ पाता, काफी देर हो जाती है, उसे ऐसे कामों में फँसाया जा चुका होता है, जिसमें ‘उसके प्राण’ चले जाते हैं।

17 वह जवान कैसे इस जोखिम से बच सकता था? बाइबल की इस सलाह को लागू करके कि “उसकी डगरों में भूल कर न जाना।” (नीति. 7:25) इससे हमें एक सबक मिलता है: अगर हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलना चाहते हैं तो हम ऐसी परिस्थितियों से खुद को दूर रखेंगे, जिनमें हम पर आसानी से कोई प्रलोभन आ सकता है। जब एक इंसान बिना किसी मकसद के चैनल-पर-चैनल बदलता रहता है या इंटरनेट पर इधर-उधर की जानकारी देखता है तो वह उस “निर्बुद्धि जवान” की तरह ही गलत रास्ते पर चल रहा होता है। हो सकता है, वह जानबूझकर या अनजाने में ऐसे अश्‍लील दृश्‍य देख ले जो उसे उत्तेजित कर दें। धीरे-धीरे वह गंदी तसवीरें देखने का आदी हो सकता है, जिससे उसका ज़मीर कठोर और यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खराब हो सकता है। यहाँ तक कि उसकी जान भी जा सकती है।रोमियों 8:5-8 पढ़िए।

18. अपने हृदय की रक्षा करने के लिए एक मसीही क्या कदम उठा सकता है और इसमें संयम दिखाना कैसे शामिल है?

18 अगर हमारे सामने कोई गंदी तसवीर आ जाए तो तुरंत ठोस कदम उठाकर हम संयम दिखा सकते हैं और हमें ऐसा करना भी चाहिए। लेकिन अगर हम ऐसे हालात आने ही न दें तो कितना अच्छा होगा! (नीति. 22:3) खुद की रक्षा के लिए कुछ इंतज़ाम करने और उसी के मुताबिक चलने के लिए संयम की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए कंप्यूटर ऐसी जगह पर रखा जा सकता है, जहाँ लोगों का आना-जाना होता है। इससे आप कुछ गलत देखने के फंदे से बच सकते हैं। कुछ लोगों ने पाया है कि दूसरों की मौजूदगी में कंप्यूटर का इस्तेमाल करना या टीवी देखना सबसे अच्छा होता है। कुछ लोगों ने फैसला किया है कि वे अपने कंप्यूटर में इंटरनेट नहीं लगवाएँगे। (मत्ती 5:27-30 पढ़िए।) आइए खुद को और अपने परिवार को बचाने के लिए हम जो भी ज़रूरी कदम उठा सकते हैं, उठाएँ जिससे हम यहोवा की उपासना “साफ दिल और साफ ज़मीर से और ऐसे विश्‍वास के साथ . . . करें जिसमें कोई कपट न हो।”—1 तीमु. 1:5.

19. पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलने के क्या फायदे हैं?

19 पवित्र शक्‍ति के काम करने से जो फल पैदा होता है उससे बहुत-से फायदे होते हैं। कोमलता और सहनशीलता दिखाने से मंडली में शांति बनी रहती है। कृपा और भलाई से परिवार की खुशी में इज़ाफा होता है। विश्‍वास और संयम से हमें यहोवा के करीब आने और उसके सामने शुद्ध बने रहने में मदद मिलती है। इसके अलावा गलातियों 6:8 हमें भरोसा दिलाता है: “जो पवित्र शक्‍ति के लिए बोता है, वह पवित्र शक्‍ति से हमेशा की ज़िंदगी की फसल काटेगा।” जी हाँ, जो लोग पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलना चाहते हैं उन्हें मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी देगा।

आप कैसे जवाब देंगे?

• कोमलता और सहनशीलता दिखाने से कैसे मंडली में शांति बनी रहती है?

• घर में कृपा और भलाई का गुण दिखाने में क्या बात मसीहियों की मदद कर सकती है?

• विश्‍वास और संयम दिखाने से कैसे एक मसीही अपने हृदय की रक्षा कर सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 24 पर तसवीर]

मामला गरम होने से पहले आप क्या कदम उठा सकते है?

[पेज 25 पर तसवीर]

पवित्र शक्‍ति के फल का अध्ययन करने से आपके परिवार को फायदा हो सकता है

[पेज 26 पर तसवीर]

विश्‍वास और संयम दिखाने से हम किन खतरों से बच सकते हैं?