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पूरी गंभीरता के साथ यहोवा की सेवा करना

पूरी गंभीरता के साथ यहोवा की सेवा करना

पूरी गंभीरता के साथ यहोवा की सेवा करना

“जो बातें गंभीर सोच-विचार के लायक हैं, . . . लगातार उन्हीं पर ध्यान देते रहो।”—फिलि. 4:8.

1, 2. किस वजह से कई लोग ज़िंदगी को गंभीरता से नहीं लेते और इससे क्या सवाल उठते हैं?

 आज इंसान ऐसी दुनिया में जी रहा है, जहाँ उसे इस कदर दुखों और मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है, जितना उसने पहले कभी नहीं किया था। जिनकी आध्यात्मिक नींव मज़बूत नहीं होती, उनके लिए तो ‘संकटों से भरे इस वक्‍त का सामना करना’ और भी “मुश्‍किल” होता है। (2 तीमु. 3:1-5) वे अपने बल पर जैसे-तैसे ज़िंदगी का एक-एक दिन काटते हैं। और कई हैं, जो ज़िंदगी को गंभीरता से नहीं लेना चाहते इसलिए अपना ध्यान मनोरंजन पर लगाते हैं, जहाँ उनके मन-बहलाव के कई साधन मौजूद हैं।

2 लोग अकसर तनाव का सामना करने के लिए मनोरंजन को जीवन में पहली जगह देते हैं। अगर मसीही सावधान न रहें, तो वे भी आसानी से इस फंदे में फँस सकते हैं। हम इस फंदे से कैसे बच सकते हैं? क्या इसका यह मतलब है कि हम हमेशा गंभीर बने रहें? हम मौज-मस्ती और अपनी ज़िम्मेदारियों के बीच तालमेल कैसे बनाए रख सकते हैं? शास्त्र के कौन-से सिद्धांत हमारी मदद कर सकते हैं ताकि हम ज़िंदगी को गंभीरता से तो लें, लेकिन खुद के बारे में हद-से-ज़्यादा गंभीर न हों?

मौज-मस्ती से प्यार करनेवाली दुनिया में गंभीर रहना

3, 4. बाइबल हमें गंभीर रहने की अहमियत के बारे में क्या समझाती है?

3 इसमें कोई शक नहीं कि यह दुनिया “मौज-मस्ती से प्यार” करने पर बहुत ज़ोर देती है। (2 तीमु. 3:4) लेकिन इससे हमारी आध्यात्मिकता खतरे में पड़ सकती है। (नीति. 21:17) इसलिए ताज्जुब नहीं कि तीमुथियुस और तीतुस को चिट्ठी लिखते वक्‍त प्रेषित पौलुस ने गंभीर रहने के मामले में सलाह दी। अगर हम पौलुस की सलाह को लागू करें तो हम ज़िंदगी के बारे में इस दुनिया के लापरवाह रवैए को ठुकरा सकेंगे।1 तीमुथियुस 2:1, 2; तीतुस 2:2-8 पढ़िए।

4 सदियों पहले सुलैमान ने लिखा कि कभी-कभी ज़िंदगी को गंभीरता से लेने के लिए मौज-मस्ती को त्यागना ज़रूरी होता है। (सभो. 3:4; 7:2-4) जी हाँ, इस छोटी-सी ज़िंदगी में उद्धार पाने के लिए हमें “जी-तोड़ संघर्ष” करने की ज़रूरत है। (लूका 13:24) हमें “गंभीर सोच-विचार” की बातों पर ध्यान देते रहने की ज़रूरत है। (फिलि. 4:8, 9) इसका मतलब है कि हमें मसीही जीवन के हर पहलू पर अच्छी तरह गौर करना चाहिए।

5. ज़िंदगी के कौन-से एक पहलू में हमें गंभीर होना चाहिए?

5 उदाहरण के लिए सच्चे मसीही, यहोवा और यीशु की मिसाल पर चलते हुए मेहनत से काम करने की अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं। (यूह. 5:17) इसलिए अकसर उनकी सराहना की जाती कि वे मेहनती और भरोसेमंद हैं। खासकर परिवार के मुखिया को अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए फिक्रमंद होना चाहिए और मेहनत करनी चाहिए। ऐसा न करना “विश्‍वास से मुकर” जाना है, जो यहोवा से मुकर जाने के बराबर है!—1 तीमु. 5:8.

उपासना में गंभीर लेकिन खुश

6. हम क्यों कह सकते हैं कि हमें यहोवा की उपासना को गंभीरता से लेना चाहिए?

6 यहोवा ने हमेशा सच्ची उपासना को गंभीरता से लिया है। मसलन, मूसा के नियम के मुताबिक जब इसराएलियों ने यहोवा की उपासना सही तरीके से नहीं की तो उन्हें इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ा। (यहो. 23:12, 13) उसी तरह, पहली सदी में यीशु के चेलों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा ताकि वे सच्ची उपासना को झूठी शिक्षाओं और रवैयों से अलग रख सकें। (2 यूह. 7-11; प्रका. 2:14-16) आज भी सच्चे मसीही अपनी उपासना को गंभीरता से लेते हैं।—1 तीमु. 6:20.

7. पौलुस कैसे अपनी सेवा की तैयारी करता था?

7 यह सच है कि हमें प्रचार काम से खुशी मिलती है। लेकिन इस सेवा में अपनी खुशी बनाए रखने के लिए हमें इसके बारे में गंभीरता से सोचने और पहले से तैयारी करने की ज़रूरत है। पौलुस ने बताया कि वह लोगों के हालात को मद्देनज़र रख उन्हें सिखाता था। उसने लिखा: “मैं सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ बना ताकि मैं हर संभव तरीके से कुछ लोगों का उद्धार करा सकूँ। मैं सबकुछ खुशखबरी की खातिर करता हूँ ताकि यह खबर मैं दूसरों के साथ बाँट सकूँ।” (1 कुरिं. 9:22, 23) पौलुस को लोगों की आध्यात्मिक तौर पर मदद करने में खुशी मिलती थी। वह गंभीरता से इस पर सोचता था कि वह अपने सुननेवालों की खास ज़रूरतें कैसे पूरी कर सकता है। और इसीलिए वह उन्हें यहोवा की उपासना करने का हौसला और बढ़ावा दे सका।

8. (क) जिन लोगों को हम सिखाते हैं, उनके बारे में हमारा रवैया कैसा होना चाहिए? (ख) बाइबल अध्ययन चलाने से हमें कैसे खुशी मिल सकती है?

8 पौलुस अपनी सेवा के बारे में कितना गंभीर था? वह यहोवा और सच्चाई का संदेश सुननेवालों की खातिर “दास” बनने को तैयार था। (रोमि. 12:11; 1 कुरिं. 9:19) क्या हम लोगों को परमेश्‍वर के वचन से सिखाने की ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं, फिर चाहे वह घर पर बाइबल अध्ययन हो, मसीही सभा हो या पारिवारिक उपासना हो? हो सकता है कि नियमित तौर पर बाइबल अध्ययन कराना हमें बहुत बड़ा बोझ लगे। क्योंकि इस तरह दूसरों की मदद करने के लिए हमें अपने निजी कामों से समय निकालना पड़ता है। पर क्या ऐसा करके हम यीशु के इन शब्दों के मुताबिक नहीं चल रहे होंगे कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है?” (प्रेषि. 20:35) जब हम दूसरों को उद्धार के रास्ते पर चलना सिखाते हैं तो उससे जो खुशी मिलती है, उसकी तुलना किसी काम से नहीं की जा सकती।

9, 10. (क) क्या गंभीर होने का मतलब है कि हम लोगों के साथ हँस-बोलकर अच्छा वक्‍त नहीं बिता सकते? समझाइए। (ख) क्या बात एक प्राचीन की मदद कर सकती है ताकि वह दूसरों का हौसला बढ़ा सके और लोग बेझिझक उसके पास आ सकें?

9 गंभीर होने का मतलब यह नहीं कि हम लोगों के साथ हँसना-बोलना छोड़ दें। यीशु ने दूसरों को न सिर्फ सिखाने में, बल्कि दोस्तों के साथ कुछ वक्‍त बिताकर अच्छे रिश्‍ते कायम करने में भी एक बेहतरीन मिसाल रखी। (लूका 5:27-29; यूह. 12:1, 2) और गंभीर होने का यह मतलब भी नहीं कि हम हरदम गंभीर-सा चेहरा बनाए रखें। अगर यीशु सख्त और बहुत गंभीर होता, तो लोग कतई उसके पास न आते। लेकिन हम जानते हैं कि बच्चों को भी उसका साथ अच्छा लगता था। (मर. 10:13-16) हम यीशु के जैसा रवैया कैसे दिखा सकते हैं?

10 एक प्राचीन का ज़िक्र करते हुए एक भाई ने कहा, “हालाँकि वह खुद-से बहुत ज़्यादा की माँग करते हैं, लेकिन दूसरों से कभी सिद्धता की उम्मीद नहीं करते।” क्या आपके बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है? दूसरों से कुछ हद तक किसी चीज़ की उम्मीद करना जायज़ है। मिसाल के लिए, जब माता-पिता बच्चों के लिए कुछ लक्ष्य रखते हैं और फिर इन्हें पाने में उनकी मदद करते हैं, तो बच्चे तरक्की करते हैं। उसी तरह प्राचीनों के लिए भी ज़रूरी है कि वे समय-समय पर भाई-बहनों को खास सुझाव दें ताकि वे आध्यात्मिक तौर पर तरक्की कर सकें। मगर साथ ही, अगर वे संतुलित रवैया रखेंगे, तो उन्हें दूसरों के साथ प्यार से पेश आने में मदद मिलेगी और दूसरे भी बेझिझक उनके पास आ सकेंगे। (रोमि. 12:3) एक बहन ने कहा: “मुझे पसंद नहीं कि एक प्राचीन हर चीज़ को मज़ाक में ले। लेकिन अगर वह हर समय गंभीर बना रहे, तो उससे बात करना मुश्‍किल हो सकता है।” एक और बहन को लगता है कि कुछ प्राचीनों का “स्वभाव इतना गंभीर होता है कि उन्हें देखकर ही डर लगता है।” प्राचीन कभी नहीं चाहेंगे कि “आनंदित परमेश्‍वर” यहोवा की उपासना करने में भाई-बहनों को जो खुशी मिलती है, उनकी वजह से उसमें कोई कमी आए।—1 तीमु. 1:11.

मंडली में ज़िम्मेदारी उठाना

11. मंडली में ‘आगे बढ़ने’ का क्या मतलब है?

11 जब पौलुस ने मंडली में भाइयों से गुज़ारिश की कि वे खुद को बड़ी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के काबिल बनाएँ, तो वह उन्हें दूसरों की नज़रों में छाने का बढ़ावा नहीं दे रहा था। इसके बजाय, उसने लिखा: “अगर कोई आदमी निगरानी के पद की ज़िम्मेदारी पाने की कोशिश में आगे बढ़ता है, तो वह एक बढ़िया काम करने की चाहत रखता है।” (1 तीमु. 3:1, 4) तो ‘आगे बढ़ने’ के लिए ज़रूरी है कि मसीही भाई, सेवा करने के इरादे से आध्यात्मिक गुणों को बढ़ाने की ज़बरदस्त इच्छा रखें और उसके लिए मेहनत करें। अगर एक भाई को बपतिस्मा लिए हुए कम-से-कम एक साल हो गया है और वह 1 तीमुथियुस 3:8-13 में दी सहायक सेवकों की माँगें काफी हद तक पूरी करता है, तो इस ज़िम्मेदारी के लिए उसकी सिफारिश की जा सकती है। गौर कीजिए कि आयत 8 साफ-साफ कहती है: “इसी तरह, सहायक सेवक को भी गंभीर होना चाहिए।”

12, 13. कुछ तरीके बताइए जिससे जवान भाई ज़िम्मेदारी उठाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं।

12 क्या आप 17-18 साल के जवान भाई हैं, आपका बपतिस्मा हो चुका है और आप ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से लेते हैं? आध्यात्मिक तौर पर आगे बढ़ने के लिए आपके सामने बहुत-से मौके हैं। उनमें से एक है, अपने प्रचार काम को और निखारना। क्या आपको हर उम्र के भाइयों के साथ सेवा करने में खुशी मिलती है? क्या आप ऐसे व्यक्‍ति को ढूँढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके साथ आप बाइबल अध्ययन कर सकें? बाइबल अध्ययन कराते वक्‍त जब आप उन सुझावों को लागू करेंगे जो आपने मसीही सभाओं में सीखे थे, तो आपकी सिखाने की कला और निखरेगी। इसके अलावा, आप अपने विद्यार्थी को हमदर्दी दिखा पाएँगे जो यहोवा के बारे में ज्ञान ले रहा है। जैसे-जैसे उसे अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने का एहसास होगा, आप उसे धीरज और समझदारी दिखाते हुए बाइबल सिद्धांत लागू करना सिखा पाएँगे।

13 आप जवान भाई, मंडली में बड़े-बुज़ुर्गों की मदद करने के लिए पहल कर सकते हैं। आप अपने राज-घर को साफ-सुथरा रखने में भी दिलचस्पी ले सकते हैं। जब आप ऐसे कामों में मदद देने के लिए खुशी-खुशी आगे आएँगे, तो इससे ज़ाहिर होगा कि आप अपनी सेवा के प्रति गंभीर हैं। तीमुथियुस की तरह आप भी मंडली की ज़रूरतों के लिए सच्चे दिल से परवाह दिखाना सीख सकते हैं।फिलिप्पियों 2:19-22 पढ़िए।

14. जवान भाइयों को कैसे ‘परखा जा’ सकता है कि वे मंडली में सेवा करने के “योग्य हैं या नहीं”?

14 प्राचीनो, आप ध्यान से ऐसे जवान भाइयों को कुछ काम सौंपिए जो “जवानी में उठनेवाली इच्छाओं से दूर” भागने की कोशिश कर रहे हैं और जो “नेकी, विश्‍वास, प्यार और शांति” के साथ-साथ दूसरे अच्छे गुणों को हासिल करने में जी-जान लगा रहे हैं। (2 तीमु. 2:22) मंडली में काम देकर इन्हें ‘परखा जा’ सकता है कि वे ज़िम्मेदारी उठाने के “योग्य हैं या नहीं” ताकि उनकी “तरक्की सब लोगों पर ज़ाहिर हो” सके।—1 तीमु. 3:10; 4:15.

मंडली और परिवार में गंभीरता

15. पहला तीमुथियुस 5:1, 2 के मुताबिक हम दूसरों के प्रति कैसे गंभीर नज़रिया दिखा सकते हैं?

15 गंभीर रहने में अपने भाई-बहनों के साथ गरिमा से पेश आना भी शामिल है। पौलुस ने तीमुथियुस को दूसरों के साथ आदर से पेश आने के बारे में सलाह दी। (1 तीमुथियुस 5:1, 2 पढ़िए।) खासकर जब हम विपरीत लिंग के लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, तो यह सलाह याद रखें। हमें अय्यूब की मिसाल पर चलना चाहिए जो दूसरी स्त्रियों के साथ बड़ी इज़्ज़त से पेश आता था और अपनी पत्नी का भी आदर करता था। उसने पूरी कोशिश की कि वह किसी दूसरी स्त्री को बुरी नज़र से कभी न देखे। (अय्यू. 31:1) अगर हम अपने भाई-बहनों के प्रति गंभीर होंगे तो उनके साथ इश्‍कबाज़ी करने का सवाल ही पैदा नहीं होगा, ना ही हम कुछ ऐसा करेंगे जिससे उन्हें हमारे पास आने में झिझक महसूस हो। गरिमा से पेश आना खासकर तब ज़रूरी होता है, जब दो लोग शादी करने के इरादे से एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। एक मसीही विपरीत लिंग के व्यक्‍ति की भावनाओं के साथ कभी नहीं खेलेगा।—नीति. 12:22.

16. दुनिया में कुछ लोग पति और पिता की भूमिका को किस नज़र से देखते हैं और बाइबल उनकी भूमिका के बारे में क्या बताती है?

16 परमेश्‍वर ने परिवार में हम सबको जो भूमिका दी है, उसे भी गंभीरता से लेना चाहिए। शैतान की दुनिया पति और पिता की भूमिका का मज़ाक उड़ाती है। आजकल के मनोरंजन में अकसर परिवार के मुखिया की खिल्ली उड़ाकर और उसका अपमान करके उसे नीचा दिखाया जाता है। लेकिन बाइबल पति को “पत्नी का सिर” ठहराकर उसके कंधे पर भारी ज़िम्मेदारी डालती है।—इफि. 5:23; 1 कुरिं. 11:3.

17. समझाइए कि हमारा पारिवारिक उपासना में शामिल होना कैसे दिखाता है कि हम अपनी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से ले रहे हैं?

17 हो सकता है कि एक पति अपने परिवार की ज़रूरतों को बखूबी निभा रहा हो, लेकिन अगर वह उन्हें आध्यात्मिक निर्देशन देने से चूक जाए, तो वह बुद्धि और समझ से काम नहीं ले रहा होगा। (व्यव. 6:6, 7) इसलिए 1 तीमुथियुस 3:4 कहता है कि अगर आप परिवार के मुखिया हैं और मंडली में खास ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं, तो आपको एक ऐसा इंसान होना चाहिए जो “अपने घरबार की अगुवाई करते हुए अच्छी देखरेख करता हो, जिसके बच्चे पूरी गंभीरता के साथ उसके अधीन रहते हों।” इस मामले में खुद से पूछिए, ‘क्या मैं पारिवारिक उपासना के लिए नियमित तौर पर समय निकालता हूँ?’ कुछ मसीही पत्नियों को अपने पतियों से आध्यात्मिक तौर पर अगुवाई लेने के लिए मानो भीख माँगनी पड़ती है। हरेक पति को गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह अपनी इस ज़िम्मेदारी को कैसे निभा रहा है। बेशक, एक मसीही पत्नी को भी पारिवारिक उपासना के इंतज़ाम में अपना सहयोग और पति का साथ देकर उसे सफल बनाने में अपना भरसक करना चाहिए।

18. बच्चे कैसे गंभीर होना सीख सकते हैं?

18 बच्चों को बढ़ावा दिया जाता है कि वे भी अपने जीवन में गंभीरता लाएँ। (सभो. 12:1) बच्चे मेहनत से काम करना सीख सकते हैं। वे अपनी उम्र और काबिलियत के हिसाब से घर के कामों में हाथ बँटा सकते हैं। (विला. 3:27) राजा दाविद छोटा ही था, जब वह एक अच्छा चरवाहा बना। उसने संगीत के साथ-साथ गीतों को धुनों में पिरोना सीखा। ये हुनर आगे चलकर इसराएल के राजा की सेवा करने में उसके काम आए। (1 शमू. 16:11, 12, 18-21) बेशक, बचपन में वह खेला-कूदा होगा, पर साथ ही उसने ज़रूरी हुनर भी सीखे, जिनका इस्तेमाल आगे चलकर उसने यहोवा की महिमा में किया। चरवाहा होने के नाते जो हुनर उसके पास थे, उस वजह से वह इसराएल देश की अगुवाई धीरज से कर सका। जवानो, क्या आप भी ज़रूरी हुनर सीख रहे हैं ताकि आप सृष्टिकर्ता की सेवा में इनका इस्तेमाल कर सकें और भविष्य में मिलनेवाली ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभा सकें?

एक संतुलित नज़रिया

19, 20. अपने और अपनी उपासना के मामले में आपने क्या संतुलित रवैया बनाए रखने की ठान ली है?

19 हम सभी अपने बारे में एक संतुलित नज़रिया बनाए रखने की कोशिश कर सकते हैं। हमें खुद के बारे में हद-से-ज़्यादा गंभीर होने की ज़रूरत नहीं है। हम “बहुत धर्मी” नहीं बनना चाहते। (सभो. 7:16) घर पर, काम की जगह पर या अपने मसीही भाई-बहनों के साथ कभी-कभी हँसी-मज़ाक कर लेने से तनाव भरा माहौल हलका हो सकता है। परिवार के सदस्यों को ध्यान रखना चाहिए कि वे एक-दूसरे की हद-से-ज़्यादा नुक्‍ताचीनी ना करें जिससे घर की शांति भंग हो जाए। मंडली में सभी एक-दूसरे से हँसना-बोलना और उनकी संगति का आनंद उठाना सीख सकते हैं। हम सीख सकते हैं कि बातचीत करते और सिखाते वक्‍त कैसे दूसरों की हिम्मत बढ़ायी जा सकती है।—2 कुरिं. 13:10; इफि. 4:29.

20 हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जिसे यहोवा और उसके नियमों की कोई परवाह नहीं। इसके उलट, यहोवा के लोग अपने परमेश्‍वर की आज्ञा मानने और उसके वफादार रहने को बड़ी अहमियत देते हैं। यह कितनी खुशी की बात है कि हम ऐसी बड़ी बिरादरी का भाग हैं, जो “पूरी गंभीरता के साथ” यहोवा की सेवा करती है! आइए हम ठान लें कि हम अपनी ज़िंदगी और उपासना को कभी लापरवाही से नहीं लेंगे।

आप क्या जवाब देंगे?

• हमें ज़िंदगी के बारे में दुनिया के लापरवाह रवैए को क्यों ठुकराना चाहिए?

• हम अपनी सेवा खुशी-खुशी, साथ ही गंभीरता से कैसे कर सकते हैं?

• ज़िम्मेदारियों के प्रति हम जो नज़रिया रखते हैं, उससे कैसे ज़ाहिर होता है कि हम गंभीर हैं या नहीं?

• क्यों अपने भाइयों और परिवार के सदस्यों के साथ गरिमा से पेश आना एक गंभीर मामला है? समझाइए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 12 पर तसवीरें]

एक पति को अपने परिवार की शारीरिक और आध्यात्मिक, दोनों ज़रूरतें पूरी करनी चाहिए