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मसीही परिवारो—‘जागते रहो’

मसीही परिवारो—‘जागते रहो’

मसीही परिवारो—‘जागते रहो’

“आओ हम . . . जागते रहें और होश-हवास बनाए रखें।”—1 थिस्स. 5:6.

1, 2. आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने के लिए परिवारों से क्या उम्मीद की जाती है?

 “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” के बारे में बताते हुए प्रेषित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों के मसीहियों को लिखा: “भाइयो, तुम अंधकार में नहीं हो कि वह दिन तुम पर इस तरह आ पड़े, जिस तरह दिन का उजाला चोरों पर आ पड़ता है। तुम सब रौशनी के बेटे और दिन के बेटे हो। हम न तो रात के हैं न ही अंधकार के।” फिर उसने कहा: “तो फिर आओ हम बाकियों की तरह न सोएँ, बल्कि जागते रहें और होश-हवास बनाए रखें।”—योए. 2:31; 1 थिस्स. 5:4-6.

2 थिस्सलुनीकियों की मंडली को लिखी पौलुस की यह सलाह, आज “अन्त समय” में जीनेवाले हम मसीहियों के लिए बिलकुल सही है। (दानि. 12:4) शैतान की यह दुष्ट व्यवस्था नाश होने के कगार पर है इसलिए वह ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर सच्चे मसीहियों को परमेश्‍वर की सेवा से अलग करने में लगा हुआ है। बुद्धिमानी इसी में है कि हम पौलुस की यह सलाह दिल में उतार लें, ताकि हम आध्यात्मिक तौर पर चौकन्‍ना रह सकें। अगर मसीही परिवार जागते रहना चाहते हैं तो बहुत ज़रूरी है कि परिवार का हर सदस्य अपनी-अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी बखूबी निभाए। तो फिर पति, पत्नी और बच्चे किस तरह अपनी भूमिका निभाकर अपने परिवार को ‘जागते रहने’ में मदद दे सकते हैं?

पतियो—‘अच्छे चरवाहे’ की मिसाल पर चलो

3. पहले तीमुथियुस 5:8 के मुताबिक परिवार का मुखिया होने के नाते एक पुरुष की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

3 बाइबल कहती है: “स्त्री का सिर पुरुष है।” (1 कुरिं. 11:3) तो परिवार का मुखिया होने के नाते उसकी क्या ज़िम्मेदारी बनती है? मुखियापन की ज़िम्मेदारी के एक पहलू के बारे में पवित्र शास्त्र कहता है: “अगर कोई अपनों की, खासकर अपने घर के लोगों की देखभाल नहीं करता, तो वह विश्‍वास से मुकर गया है और अविश्‍वासी से भी बदतर हो गया है।” (1 तीमु. 5:8) बेशक मुखिया को अपने परिवार की खाने-पहनने की ज़रूरतों का खयाल रखना चाहिए। लेकिन अगर वह चाहता है कि उसका परिवार आध्यात्मिक तौर पर जागता रहे तो उसका सिर्फ कमाऊ होना काफी नहीं। उसे अपने परिवार में सभी को परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाने में मदद देकर उन्हें आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करने की ज़रूरत है। (नीति. 24:3, 4) वह ऐसा किस तरह कर सकता है?

4. अपने परिवार को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करने के लिए एक पुरुष को किस बात से मदद मिल सकती है?

4 ‘जैसे मसीह, मंडली का सिर है.’ उसी तरह “पति अपनी पत्नी का सिर है” इसलिए एक शादीशुदा पुरुष को चाहिए कि वह यह समझे कि मसीह कैसे मंडली की अगुवाई करता है और फिर उसकी मिसाल पर चले। (इफि. 5:23) ध्यान दीजिए कि यीशु ने चेलों के साथ अपने रिश्‍ते के बारे में क्या कहा था। (यूहन्‍ना 10:14, 15 पढ़िए।) तो फिर एक पुरुष कैसे अपने परिवार को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करने में सफल हो सकता है? उसका राज़ है: एक ‘अच्छे चरवाहे’ के तौर पर यीशु ने जो कहा और किया, उसका अध्ययन करना और उसके “नक्शे-कदम पर नज़दीकी से” चलना।—1 पत. 2:21.

5. अच्छा चरवाहा अपनी मंडली के बारे में क्या जानकारी रखता है?

5 लाक्षणिक तौर पर चरवाहे और भेड़ों के बीच का रिश्‍ता ज्ञान और विश्‍वास पर आधारित है। एक चरवाहा अपनी भेड़ों के बारे में सब कुछ जानता है और भेड़ें भी अपने चरवाहे को अच्छी तरह जानतीं और उस पर भरोसा रखती हैं। वे उसकी आवाज़ पहचानतीं और उसकी बात मानती हैं। यीशु ने कहा: “मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,” यानी यीशु अपनी मंडलियों के बारे में सिर्फ ऊपरी जानकारी नहीं रखता। यहाँ “जानता” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है, उसका मतलब है, “व्यक्‍तिगत रूप से, या पूरी-पूरी जानकारी होना।” जी हाँ, हमारा अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों को निजी तौर पर जानता है। वह हरेक की ज़रूरतों, कमज़ोरियों और खूबियों से अच्छी तरह वाकिफ है। हमारे आदर्श यीशु से भेड़ों की कोई भी बात छिप नहीं सकती। उसी तरह भेड़ें भी अपने चरवाहे को बखूबी जानतीं और उसकी अगुवाई पर पूरा भरोसा रखती हैं।

6. पति कैसे अच्छे चरवाहे की मिसाल पर चल सकता है?

6 मसीह के मुखियापन के उदाहरण पर चलने के लिए ज़रूरी है कि पति खुद को एक चरवाहा और अपने अधीन रहनेवालों को भेड़ों की तरह समझे। उसे परिवार के हर सदस्य को अच्छी तरह जानने की कोशिश करनी चाहिए। क्या पति के लिए ऐसा करना मुमकिन है? बिलकुल। अगर वह परिवार के सभी सदस्यों से अच्छी तरह बात करे, उनकी परेशानियाँ सुने, परिवार के कामों में अगुवाई ले और अच्छे फैसले लेने का खास ध्यान रखे, जैसे पारिवारिक उपासना, सभाओं, प्रचार और मनोरंजन के मामले में, तो यह ज़रूर मुमकिन है। जब एक पति, सिर्फ परमेश्‍वर के वचन के ज्ञान के आधार पर ही नहीं, बल्कि अपने परिवार के सदस्यों को समझते हुए उनकी अगुवाई करता है, तो बेशक वे उसकी अगुवाई पर भरोसा रखेंगे। इसके अलावा उसे भी यह देखकर खुशी मिलेगी कि पूरा परिवार एक होकर सच्ची उपासना कर रहा है।

7, 8. परिवार की देखभाल करने में एक पति कैसे अच्छे चरवाहे की तरह प्यार दिखा सकता है?

7 एक अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों से प्यार भी करता है। जब हम खुशखबरी की किताबों में यीशु के जीवन और प्रचार सेवा के बारे में पढ़ते हैं, तो चेलों के लिए उसका प्यार देखकर हमारा दिल कदरदानी से भर जाता है। उसने “अपनी भेड़ों की खातिर अपनी जान” तक दे दी। अपने परिवार के लिए पतियों को भी ऐसा ही प्यार दिखाना चाहिए। जो पति यहोवा की मंज़ूरी पाना चाहता है, उसे अपनी पत्नी के साथ सख्ती से नहीं, बल्कि प्यार से पेश आना चाहिए, ठीक ‘जैसे मसीह ने मंडली से प्यार किया था।’ (इफि. 5:25) उसके बोल हमेशा मीठे और परवाह दिखानेवाले होने चाहिए क्योंकि उसकी पत्नी ऐसा आदर पाने की हकदार है।—1 पत. 3:7.

8 बच्चों को तालीम देते वक्‍त परिवार के मुखिया को चाहिए कि वह परमेश्‍वर के स्तरों का सख्ती से पालन करे। मगर साथ ही, बच्चों पर अपना प्यार भी ज़ाहिर करे। और अगर ताड़ना देने की ज़रूरत पड़े तो प्यार से दे। कुछ बच्चों को समझाने में थोड़ा ज़्यादा वक्‍त लग सकता है। ऐसे में पिता को बहुत धीरज से काम लेना होगा। जब परिवार के मुखिया हमेशा यीशु की मिसाल पर चलते हैं, तो घर का माहौल अच्छा बनता है और सभी सुरक्षित महसूस करते हैं। उनका परिवार वैसी ही आध्यात्मिक सुरक्षा का आनंद उठाता है, जिसका ज़िक्र भजनहार ने अपने गीत में किया।भजन 23:1-6 पढ़िए।

9. कुलपिता नूह की तरह आज मसीही पतियों पर क्या ज़िम्मेदारी है और इसे निभाने में क्या बात उनकी मदद कर सकती है?

9 कुलपिता नूह ऐसे समय में जीया, जब दुनिया नाश होनेवाली थी। लेकिन जब यहोवा “भक्‍तिहीन लोगों की उस पुरानी दुनिया पर जलप्रलय लाया,” तब उसने “नूह को सात और लोगों के साथ बचा लिया।” (2 पत. 2:5) नूह पर अपने परिवार को जलप्रलय से बचाने की ज़िम्मेदारी थी। उसी तरह आज परिवार के मुखियाओं पर यह ज़िम्मेदारी है। (मत्ती 24:37) तो यह कितना ज़रूरी है कि वे ‘अच्छे चरवाहे’ के उदाहरण का अध्ययन करें और उसके नक्शे-कदम पर चलने की पूरी कोशिश करें!

पत्नियो—‘अपने घर को बनाओ

10. अपने पति के अधीन रहने का क्या मतलब है?

10 प्रेषित पौलुस ने लिखा: “पत्नियाँ अपने-अपने पति के ऐसे अधीन रहें जैसे प्रभु के।” (इफि. 5:22) इस आयत का मतलब यह नहीं कि स्त्रियों का दर्जा कम है। पहली स्त्री हव्वा को बनाने से पहले सच्चे परमेश्‍वर ने कहा: “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।” (उत्प. 2:18) जी हाँ, स्त्री को एक “सहायक” और ‘मेल खानेवाली’ के तौर पर बनाया गया था, जो परिवार की देखभाल करने में अपने पति का साथ देती। बेशक वह आदर के लायक है!

11. एक अच्छी पत्नी कैसे “अपने घर को बनाती है”?

11 एक आदर्श पत्नी हमेशा परिवार की भलाई के लिए काम करती है। (नीतिवचन 14:1 पढ़िए।) जहाँ एक तरफ मूर्ख स्त्री मुखियापन के इंतज़ाम का अनादर करती है, वहीं बुद्धिमान स्त्री इसके लिए गहरा आदर दिखाती है। वह अपने जीवन-साथी के अधीन रहती है और दुनिया की औरतों की तरह मनमानी नहीं करती। (इफि. 2:2) एक मूर्ख पत्नी अपने पति की बुराई करने में ज़रा-भी नहीं झिझकती, जबकि बुद्धिमान पत्नी अपने बच्चों, साथ ही दूसरों की नज़रों में अपने पति की इज़्ज़त और बढ़ाती है। वह अपने पति के साथ बहस करके या उसे खीज दिलाकर उसके मुखियापन के अधिकार को तुच्छ नहीं समझती। यही नहीं, वह रुपए-पैसे के इस्तेमाल पर भी ध्यान देती है। मूर्ख पत्नी अपने पति के खून-पसीने की कमाई फिज़ूल में खर्च कर देती है। मगर अच्छी पत्नी ऐसा नहीं करती। वह इस मामले में अपने पति का साथ देती है। वह अपने पति पर ज़्यादा काम करने का दबाव नहीं डालती कि वह ज़्यादा पैसा कमाकर लाए बल्कि बुद्धिमानी से काम लेती और पैसे बचाती है।

12. एक पत्नी परिवार को ‘जागते रहने’ में कैसे मदद दे सकती है?

12 एक आदर्श पत्नी तब भी अपने पति का साथ देकर परिवार को ‘जागते रहने’ में मदद देती है, जब वह बच्चों को आध्यात्मिक शिक्षा देता है। (नीति. 1:8) वह खुशी-खुशी पारिवारिक उपासना के इंतज़ाम को सहयोग देती है। जब उसका पति बच्चों को कोई सलाह या अनुशासन देता है, तब वह उसका समर्थन करती है। वह उन पत्नियों से अलग होती है जो अपने पतियों का विरोध करती हैं, जिससे आखिरकार बच्चों को शारीरिक और आध्यात्मिक नुकसान पहुँचता है!

13. एक पत्नी के लिए क्यों ज़रूरी है कि वह परमेश्‍वर के कामों में लगे रहनेवाले अपने पति का साथ दे?

13 एक अच्छी सहायक जब अपने पति को मंडली की ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए देखती है तो कैसा महसूस करती है? बेशक वह खुश होती है! चाहे उसका पति प्राचीन हो या सहायक सेवक, अस्पताल संपर्क समिति का सदस्य हो या फिर इलाके की निर्माण समिति में काम करता हो, उसे अच्छा लगता है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहा है। हालाँकि वह जानती है इन मामलों में पति का सहयोग देने के लिए उसे कई त्याग करने पड़ेंगे, फिर भी वह अपनी बोली और कामों से उसकी हिम्मत बढ़ाती है। लेकिन उसे यह भी ध्यान रहता है कि जब परमेश्‍वर के कामों में उसका पति हिस्सा लेता है तो उसके परिवार को आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में मदद मिलती है।

14. (क) एक अच्छी पत्नी के लिए चुनौती कब खड़ी होती है और वह इसका सामना कैसे कर सकती है? (ख) एक पत्नी कैसे अपने पूरे परिवार की भलाई में योगदान दे सकती है?

14 एक पत्नी के लिए अच्छा सहायक बनने की चुनौती तब खड़ी होती है, जब उसका पति उसकी मरज़ी के खिलाफ कोई फैसला करता है। लेकिन ऐसे में भी वह ‘शांति और कोमलता’ से पेश आती है और पति के फैसले को अंजाम तक पहुँचाने में उसकी मदद करती है। (1 पत. 3:4) एक अच्छी पत्नी बाइबल से सारा, रूत, अबीगैल और यीशु की माँ मरियम जैसी परमेश्‍वर का भय माननेवाली स्त्रियों की मिसाल पर चलने की कोशिश करती है। (1 पत. 3:5, 6) वह आज के ज़माने की बुज़ुर्ग स्त्रियों के उदाहरण पर भी चलती है, जिनका ‘बर्ताव पवित्र’ होता है। (तीतु. 2:3, 4) अपने पति को प्यार और इज़्ज़त देने के ज़रिए, एक आदर्श पत्नी अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को कामयाब बनाने और परिवार की भलाई में अपना पूरा योगदान देती है। उसके घर में खुशियों का बसेरा होता है और सब सुरक्षित महसूस करते हैं। वाकई, ऐसी सहायक एक आध्यात्मिक पुरुष के लिए कितनी अनमोल होती है!—नीति. 18:22.

जवानो‘आप अपनी नज़र अनदेखी चीज़ों पर टिकाए रखो’

15. बच्चे अपने माता-पिता का साथ देकर कैसे परिवार को ‘जागते रहने’ में मदद दे सकते हैं?

15 आप जवान लोग कैसे अपने माता-पिता का साथ दे सकते हैं ताकि आपका परिवार आध्यात्मिक तौर पर “जागता रहे?” उस इनाम पर नज़र रखिए, जो यहोवा ने आपके लिए रखा है। शायद छुटपन से आपके माता-पिता ने आपको फिरदौस की तसवीर दिखायी हो। और जैसे-जैसे आप बड़े हुए उन्होंने आपको बाइबल और मसीही साहित्य के ज़रिए यह समझने में मदद दी हो कि नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी कैसी होगी! तो इस तरह जब आप यहोवा की सेवा पर ध्यान लगाए रहेंगे और उसके मुताबिक जीवन की योजना बनाएँगे तो आपको ‘जागते रहने’ में मदद मिलेगी।

16, 17. जीवन की दौड़ में जीतने के लिए जवान क्या कर सकते हैं?

16 पहले कुरिंथियों 9:24 में लिखे प्रेषित पौलुस के शब्दों को अपने दिल में उतार लीजिए। (पढ़िए।) आप जीतने के पक्के इरादे से जीवन की दौड़ में हिस्सा लीजिए। ऐसा रास्ता चुनिए जिससे आपको हमेशा की ज़िंदगी का इनाम मिले। लेकिन ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के चक्कर में आज कइयों की नज़र उस इनाम से हट गयी है। उन्होंने बड़ी बेवकूफी की है। ऐसे लोग, उस रास्ते पर चलने की योजना बनाते हैं, जहाँ से वे पैसा बटोर सकें मगर उससे सच्ची खुशी नहीं मिलती। बेशक पैसा बहुत-सी चीज़ें खरीद सकता है, मगर वे चीज़ें ज़्यादा समय तक नहीं टिकेंगी। आप अपनी नज़र “अनदेखी चीज़ों” पर टिकाए रखिए। क्यों? क्योंकि “जो दिखायी नहीं देतीं वे हमेशा कायम रहती हैं।”—2 कुरिं. 4:18.

17 “अनदेखी चीज़ों” में परमेश्‍वर के राज से मिलनेवाली आशीषें शामिल हैं। जीवन की योजना ऐसे बनाइए ताकि आपको राज की आशीषें मिल सकें। जीवन को यहोवा की सेवा में लगाने से ही सच्ची खुशी मिलेगी। जब आप यहोवा की सेवा करने की सोचते हैं तो आपके सामने कई रास्ते खुल जाते हैं, जिससे आप अपने लिए छोटे और बड़े लक्ष्य रख सकते हैं। * ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप हासिल कर सकें। इससे आप बिना ध्यान भटकाए परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहेंगे और आपको हमेशा की ज़िंदगी का इनाम मिलेगा।—1 यूह. 2:17.

18, 19. एक जवान कैसे जान सकता है कि उसने सच्चाई को अपना बनाया है या नहीं?

18 जवानो, जीवन के रास्ते पर पहला कदम है, सच्चाई को अपना बनाना। क्या आपने यह कदम उठाया है? खुद से पूछिए: ‘क्या मैं आध्यात्मिक इंसान हूँ या अपने माता-पिता के कहने पर मसीही कामों में हिस्सा लेता हूँ? क्या मैं ऐसे गुण पैदा करता हूँ, ताकि परमेश्‍वर मुझसे खुश हो? क्या मैं सच्ची उपासना से जुड़े कामों को नियमित तौर पर करने के लिए मेहनत करता हूँ जैसे प्रार्थना और अध्ययन करना, साथ ही सभाओं और प्रचार में जाना? क्या मैं परमेश्‍वर के करीब आकर उसके साथ मज़बूत रिश्‍ता बनाने की कोशिश कर रहा हूँ?’—याकू. 4:8.

19 मूसा के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसकी परवरिश अपने लोगों के बीच नहीं, बल्कि एक अलग संस्कृति में हुई थी, फिर भी उसने अपनी पहचान परमेश्‍वर के सेवक के तौर पर करायी, ना कि फिरौन की बेटी की संतान के तौर पर। (इब्रानियों 11:24-27 पढ़िए।) मसीही जवानो, आपको भी यहोवा की सेवा वफादारी से करने की ठान लेनी चाहिए। ऐसा करके आपको सच्ची खुशी मिलेगी। आज आप बेहतरीन ज़िंदगी जी पाएँगे, साथ ही “असली ज़िंदगी पर मज़बूत पकड़ हासिल” करने की आशा रख सकेंगे।—1 तीमु. 6:19.

20. जीवन की दौड़ में इनाम कौन पाएगा?

20 प्राचीन खेलों में दौड़ सिर्फ एक धावक जीतता था। लेकिन जीवन की दौड़ में ऐसा नहीं है। परमेश्‍वर की इच्छा है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करें।” (1 तीमु. 2:3, 4) आपसे पहले कइयों ने इस दौड़ में कामयाबी हासिल की है और कई हैं, जो आपके साथ दौड़ रहे हैं। (इब्रा. 12:1, 2) इनाम उन सबको मिलेगा जो थककर रुकते नहीं। इसलिए जीतने की ठान लीजिए!

21. अगले लेख में किस बारे में चर्चा की जाएगी?

21 ‘यहोवा का बड़ा और भयानक दिन’ आकर ही रहेगा। (मला. 4:5) कहीं ऐसा न हो कि सुस्त हो जाने की वजह से हमारे मसीही परिवार उसकी चपेट में आ जाएँ। यह बहुत ज़रूरी है कि परिवार का हर सदस्य अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी निभाए। आप और क्या सकते हैं ताकि आप आध्यात्मिक तौर पर चौकन्‍ना रहें और परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखें? अगले लेख में परिवार की आध्यात्मिक भलाई के लिए तीन और मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

[फुटनोट]

आपने क्या सीखा?

• मसीही परिवारों का ‘जागते रहना’ क्यों ज़रूरी है?

• एक पति कैसे अच्छे चरवाहे की मिसाल पर चल सकता है?

• एक अच्छी पत्नी कैसे अपने पति का साथ दे सकती है?

• जवान बच्चे कैसे परिवार को आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने में मदद दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

साथ देनेवाली पत्नी, आध्यात्मिक पुरुष के लिए अनमोल होती है