इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

यहोवा पर पूरा भरोसा रखने से हिम्मत बढ़ती है

यहोवा पर पूरा भरोसा रखने से हिम्मत बढ़ती है

यहोवा पर पूरा भरोसा रखने से हिम्मत बढ़ती है

“जब मैं यहोवा को पुकारूंगा तब वह सुन लेगा।”—भज. 4:3.

1, 2. (क) दाविद ने किन कठिन परिस्थितियों का सामना किया? (ख) हम किन भजनों पर चर्चा करेंगे?

 राजा दाविद को इसराएल पर राज करते हुए कुछ वक्‍त बीत चुका है मगर अब वह बड़ी कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है। उसके बेटे अबशालोम ने साज़िश करके खुद को राजा घोषित कर दिया और दाविद को मजबूरन यरूशलेम से भागना पड़ा। उसके भरोसेमंद दोस्त ने भी उसे धोखा दिया और अब वह अपने चंद वफादार जनों के साथ आँसू बहाता हुआ, नंगे पाँव जैतून पहाड़ की तरफ चला जा रहा है। और-तो-और राजा शाऊल के घराने का एक शख्स शिमी भी उस पर धूल-पत्थर फेंककर उसे कोस रहा है।—2 शमू. 15:30, 31; 16:5-14.

2 क्या वह इस दुख और अपमान की वजह से इस कदर मायूस हो जाता कि मौत ही उसे राहत दिलाती? नहीं, क्योंकि वह यहोवा पर पूरा भरोसा रखता था। तीसरे भजन में यरूशलेम से भागने के बारे में उसने जो लिखा उससे यह बात साफ पता चलती है। दाविद ने चौथा भजन भी लिखा। ये दोनों ही भजन दाविद के यकीन को ज़ाहिर करते हैं कि परमेश्‍वर उसकी प्रार्थनाओं को सुनता और उनका जवाब देता है। (भज. 3:4; 4:3) इन भजनों से हमें इस बात की तसल्ली मिलती है कि यहोवा दिन-रात अपने वफादार सेवकों के साथ रहता है, उन्हें सहारा, शांति और सुरक्षा का एहसास दिलाकर आशीष देता है। (भज. 3:5; 4:8) इसलिए आइए इन भजनों पर गौर करें और देखें कि ये कैसे हमारी हिम्मत और यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ाते हैं।

जब ‘हमारे विरुद्ध बहुत-से उठते हैं’

3. जैसा कि भजन 3:1, 2 में बताया है दाविद के हालात कैसे थे?

3 कोई आकर दाविद को यह संदेश देता है: “इस्राएली मनुष्यों के मन अबशालोम की ओर हो गए हैं।” (2 शमू. 15:13) यह सोचते हुए कि अबशालोम कैसे इतने सारे लोगों को अपनी तरफ कर सकता है दाविद, यहोवा से पूछता है: “हे यहोवा मेरे सतानेवाले कितने बढ़ गए हैं! वे जो मेरे विरुद्ध उठते हैं बहुत हैं। बहुत से मेरे प्राण के विषय में कहते हैं, कि उसका बचाव परमेश्‍वर की ओर से नहीं हो सकता।” (भज. 3:1, 2) कई इसराएलियों ने सोचा कि यहोवा दाविद को अबशालोम और उसके साथियों के हाथों से नहीं बचाएगा।

4, 5. (क) दाविद को किस बात का पूरा विश्‍वास था? (ख) “मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला,” इन शब्दों का क्या मतलब है?

4 लेकिन दाविद को बिलकुल डर नहीं था क्योंकि उसे परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा था। उसने गाया: “परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला है।” (भज. 3:3) दाविद को पूरा विश्‍वास था कि यहोवा उसकी रक्षा करेगा जैसे ढाल एक सैनिक की करती है। जी हाँ, यह बुज़ुर्ग राजा शर्म के मारे अपना सिर ढाँपकर भाग रहा है। लेकिन सारे जहान का मालिक, दाविद के हालात बदलकर उसकी महिमा करेगा। यहोवा उसको फिर से सिर उठाकर इज़्ज़त के साथ जीने की हिम्मत देगा। दाविद को पूरा विश्‍वास था कि परमेश्‍वर उसकी पुकार ज़रूर सुनेगा। क्या आप यहोवा पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं?

5 “मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला,” दाविद के इन शब्दों से ज़ाहिर होता है कि उसे उम्मीद थी कि यहोवा उसकी मदद ज़रूर करेगा। टूडेज़ इंग्लिश वर्शन कहता है: “लेकिन मेरे प्रभु, तू खतरे में हमेशा मेरी ढाल है; तू मुझे जीत दिलाता और फिर से मेरी हिम्मत बँधाता है।” “मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला” इन शब्दों के बारे में एक किताब कहती है “जब परमेश्‍वर . . . किसी का ‘सिर’ ऊँचा करता है, तो वह उसमें आशा और विश्‍वास भर देता है।” दाविद से इसराएल की राजगद्दी छीन ली गयी थी जिस वजह से वह बहुत दुखी था। मगर उसके ‘मस्तिष्क के ऊंचा’ किए जाने का नतीजा यह होता कि उसमें दोबारा हिम्मत आ जाती साथ ही परमेश्‍वर पर उसका भरोसा बढ़ जाता।

‘यहोवा मुझे उत्तर देता है!’

6. दाविद क्यों कहता है कि उसे उसकी प्रार्थनाओं का जवाब यहोवा के पवित्र पर्वत से मिलेगा?

6 दाविद को यहोवा पर पूरा भरोसा है कि वह उसकी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा इसलिए वह आगे कहता है: “मैं ऊंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूं, और वह अपने पवित्र पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है।” (भज. 3:4) दाविद के आदेश पर वाचा के संदूक को सीनै पहाड़ पर ले जाया गया। यह संदूक परमेश्‍वर की मौजूदगी को दर्शाता था। (2 शमूएल 15:23-25 पढ़िए।) इसलिए दाविद का यह कहना सही था कि उसे उसकी प्रार्थनाओं का जवाब यहोवा के पवित्र पर्वत से मिलेगा।

7. दाविद को किसी तरह का डर क्यों नहीं था?

7 दाविद अच्छी तरह जानता है कि उसकी प्रार्थना अनसुनी नहीं होगी इसलिए उसे किसी तरह का डर नहीं है। इसके बजाय वह गाता है: “मैं लेटकर सो गया; फिर जाग उठा, क्योंकि यहोवा मुझे सम्हालता है।” (भज. 3:5) रात के अँधेरे में जब उस पर हमला होने का सबसे ज़्यादा खतरा होता है, तब भी वह बेखटके सोता है क्योंकि उसे भरोसा है कि वह जागेगा। अपने पिछले अनुभवों के आधार पर वह जानता है कि यहोवा उसकी मदद ज़रूर करेगा। अगर हम “यहोवा के मार्गों पर” चलते रहें और उनसे कभी न भटकें तो हम भी ऐसा भरोसा रख सकते हैं।2 शमूएल 22:21, 22 पढ़िए।

8. भजन 27:1-4 कैसे दिखाता है कि दाविद को परमेश्‍वर पर भरोसा था?

8 दाविद के एक और भजन से यह ज़ाहिर होता है कि उसे परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा है और उसे किसी बात का डर नहीं। उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा: “यहोवा परमेश्‍वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? . . . चाहे सेना भी मेरे विरुद्ध छावनी डाले, तौभी मैं न डरूंगा; . . . एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।” (भज. 27:1-4) अगर आपकी भावनाएँ दाविद की तरह हैं और आपके हालात आपका साथ देते हैं तो आप नियमित तौर पर सभाओं में हाज़िर होकर यहोवा के सेवकों से मिलेंगे।—इब्रा. 10:23-25.

9, 10. भजन 3:6, 7 में लिखे शब्दों के बावजूद आप यह कैसे कह सकते हैं कि दाविद में बदला लेने की भावना नहीं थी?

9 हालाँकि दाविद के बेटे अबशालोम ने उसके साथ दगाबाज़ी की और दूसरों ने भी उसके साथ विश्‍वासघात किया, मगर फिर भी उसने गाया: “मैं उन दस हजार मनुष्यों से नहीं डरता, जो मेरे विरुद्ध चारों ओर पांति बान्धे खड़े हैं। उठ, हे यहोवा! हे मेरे परमेश्‍वर मुझे बचा ले! क्योंकि तू ने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ों पर मारा है और तू ने दुष्टों के दांत तोड़ डाले हैं।”भज. 3:6, 7.

10 दाविद में बदला लेने की भावना नहीं है। अगर उसके दुश्‍मनों के ‘जबड़ों पर मारा’ जाता, तो ऐसा परमेश्‍वर ही करता। राजा दाविद ने अपने लिए व्यवस्था की एक नकल बनायी थी और वह जानता था कि उसमें यहोवा ने यह लिखवाया है: “पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है।” (व्यव. 17:14, 15, 18; 32:35) और “दुष्टों के दांत” परमेश्‍वर ही ‘तोड़ता।’ किसी के दाँत तोड़ने का मतलब है कि उसकी पूरी ताकत छीन लेना ताकि वह किसी को नुकसान न पहुँचा सके। यहोवा जानता है कि कौन दुष्ट है क्योंकि “यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।” (1 शमू. 16:7) हमें यहोवा का कितना आभारी होना चाहिए कि उसने हमें मज़बूत विश्‍वास और ऐसी ताकत दी, ताकि हम अपने सबसे बड़े शत्रु दुष्ट शैतान का डटकर सामना कर सकें। उसे जल्द ही विनाश के लिए अथाह-कुंड में फेंक दिया जाएगा और उसकी हालत उस दहाड़ते शेर की तरह होगी जिसके दाँत नहीं होते!—1 पत. 5:8, 9; प्रका. 20:1, 2, 7-10.

“उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है”

11. हमें अपने संगी विश्‍वासियों के लिए प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?

11 दाविद जानता था कि जिस छुटकारे की वह बेसब्री से बाट जोह रहा है वह सिर्फ यहोवा दिला सकता है। लेकिन वह सिर्फ अपने ही बारे में नहीं सोच रहा था। एक संगठन के तौर पर उन लोगों के बारे में क्या कहा जा सकता है जिन पर यहोवा की मंज़ूरी है? दाविद ने अपने भजन के अंत में जो लिखा, वह बिलकुल सही था: “उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है; हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा पर हो।” (भज. 3:8) हालाँकि दाविद बड़ी-बड़ी मुसीबतों से गुज़र रहा था, फिर भी वह यहोवा के लोगों के बारे में सोचता है और भरोसा रखता है कि परमेश्‍वर उन्हें आशीष देगा। क्या हमें भी अपने संगी विश्‍वासियों के बारे में नहीं सोचना चाहिए? आइए हम प्रार्थना करें कि यहोवा हमारे भाई-बहनों को अपनी पवित्र शक्‍ति दे ताकि वे हिम्मत के साथ खुशखबरी का प्रचार करें और पूरे भरोसे के साथ इस काम को पूरा कर सकें।—इफि. 6:17-20.

12, 13. अबशालोम के साथ क्या हुआ और इसका दाविद पर क्या असर हुआ?

12 अबशालोम बड़ी शर्मनाक मौत मरा। यह उन सबके लिए चेतावनी है जो दूसरों को सताते हैं, खास तौर पर दाविद जैसे परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त जनों को। (नीतिवचन 3:31-35 पढ़िए।) युद्ध के दौरान जब अबशालोम की सेना हार गयी, तब वह अपनी जान बचाने के लिए खच्चर पर भागने लगा और उसके घने बाल एक बड़े पेड़ की झुकी हुई शाखा में फँस गए। वहाँ पर वह ज़िंदा तो बचा मगर ज़्यादा देर तक नहीं, क्योंकि जब वह बेसहारा लटका हुआ था तब योआब ने उसके हृदय में तीन बार भाले से वार करके उसे मार डाला।—2 शमू. 18:6-17.

13 अपने बेटे की मौत की खबर सुनकर क्या दाविद खुश हुआ? नहीं। बल्कि वह परेशान होकर चहलकदमी करने लगा, रोया और चिल्लाया: “हाय मेरे बेटे अबशालोम! मेरे बेटे, हाय! मेरे बेटे अबशालोम! भला होता कि मैं आप तेरी सन्ती मरता, हाय! अबशालोम! मेरे बेटे, मेरे बेटे!” (2 शमू. 18:24-33) योआब के शब्दों से ही दाविद को अपने इस दुख से बाहर निकलने में मदद मिलती है। अबशालोम कितनी बुरी मौत मरा! अपने स्वार्थ की वजह से वह यहोवा के अभिषिक्‍त, अपने पिता दाविद से लड़ बैठा और खुद पर विपत्ति ले आया!—2 शमू. 19:1-8; नीति. 12:21; 24:21, 22.

दाविद फिर अपना भरोसा यहोवा पर दिखाता है

14. भजन 4 की रचना के बारे में क्या कहा जा सकता है?

14 तीसरे भजन की तरह चौथे भजन में भी दाविद की प्रार्थना दिखाती है कि उसे यहोवा पर पूरा भरोसा था। (भज. 3:4; 4:3) यह साफ-साफ नहीं कहा जा सकता कि दाविद ने यह भजन कब लिखा। हो सकता है, अबशालोम के मंसूबे नाकाम होने पर दाविद ने जो राहत महसूस की तब यहोवा का आभार व्यक्‍त करते हुए उसने यह लिखा या लेवी गायकों को ध्यान में रखकर इसकी रचना की। बात चाहे जो हो, इस भजन पर मनन करने से हमारा भरोसा यहोवा पर और बढ़ता है।

15. हम यहोवा से उसके बेटे के ज़रिए क्यों पूरे यकीन के साथ प्रार्थना कर पाते हैं?

15 दाविद ने एक बार फिर दिखाया कि उसे यहोवा पर पूरा भरोसा है और वह उसकी प्रार्थना सुनता है। उसने गाया: “हे मेरे धर्ममय परमेश्‍वर, जब मैं पुकारूं तब तू मुझे उत्तर दे; जब मैं सकेती में पड़ा तब तू ने मुझे विस्तार दिया। मुझ पर अनुग्रह कर और मेरी प्रार्थना सुन ले।” (भज. 4:1) अगर हम धार्मिकता के काम करें तो हम भी ऐसा ही भरोसा रख सकेंगे। जब हम यह याद रखते हैं कि यहोवा “धर्ममय परमेश्‍वर” है, और अपने धर्मी लोगों पर आशीष देता है, तो हम पूरे यकीन के साथ उसके बेटे यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर उससे प्रार्थना कर पाते हैं। (यूह. 3:16, 36) इससे क्या ही शांति मिलती है!

16. दाविद शायद क्यों निराश हो गया था?

16 कभी-कभी हम निराशा का सामना करते हैं, जिसकी वजह से हम हिम्मत हार सकते हैं। शायद एक वक्‍त पर दाविद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था इसलिए उसने गीत में गाया: “हे मनुष्यों के पुत्रो, कब तक मेरी महिमा के बदले अनादर होता रहेगा? तुम कब तक व्यर्थ बातों से प्रीति रखोगे और झूठी युक्‍ति की खोज में रहोगे?” (भज. 4:2) ये शब्द “मनुष्यों के पुत्रो” मानवजाति को दर्शाते हैं जो बुरे थे। दाविद के दुश्‍मन “व्यर्थ बातों से प्रीति” रखते थे। न्यू इंटरनेशनल वर्शन इस आयत के दूसरे हिस्से का अनुवाद इस तरह करता है: “कब तक तुम भ्रमित बातों पर भरोसा रखोगे और झूठे देवताओं को पूजते रहोगे?” चाहे हम दूसरों के कामों से निराश भी हो जाएँ तब भी आइए हम एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर से तहेदिल से प्रार्थना करते रहें और उस पर पूरा भरोसा दिखाएँ।

17. समझाइए कि हम भजन 4:3 के मुताबिक कैसे चल सकते हैं।

17 परमेश्‍वर पर दाविद का भरोसा इन शब्दों से साफ झलकता है: “यह जान रखो कि यहोवा ने भक्‍त को अपने लिये अलग कर रखा है; जब मैं यहोवा को पुकारूंगा तब वह सुन लेगा।” (भज. 4:3) यहोवा के वफादार रहने के लिए हिम्मत और यहोवा पर पक्के यकीन की ज़रूरत होती है। मिसाल के लिए इन गुणों को उस वक्‍त ज़ाहिर करना ज़रूरी होता है जब एक मसीही परिवार का कोई रिश्‍तेदार बहिष्कृत हो जाता है। परमेश्‍वर उनका आदर करता है जो उसके वफादार रहते हैं और उसके मार्गदर्शन पर चलते हैं। साथ ही, वफादारी और यहोवा पर पूरा भरोसा दिखाने से उसके लोगों के बीच खुशी का माहौल बना रहता है।—भज. 84:11, 12.

18. अगर कोई हमसे ऐसी बात कह देता है या कुछ ऐसा कर देता है, जिससे हमें ठेस पहुँचती है, तब भजन 4:4 के मुताबिक हमें क्या करना चाहिए?

18 अगर कोई हमसे ऐसी बात कह देता है या कुछ ऐसा कर देता है जिससे हमें ठेस पहुँचती है, तब हम क्या कर सकते हैं? अगर हम वह करें जो दाविद कहता है तो हमारी खुशी बनी रहेगी। वह कहता है: “कांपते रहो और पाप मत करो; अपने अपने बिछौने पर मन ही मन सोचो और चुपचाप रहो।” (भज. 4:4) अगर किसी ने हमसे बुरी बात कह दी या हमारा नुकसान किया है तो हम बदला लेने का पाप न करें। (रोमि. 12:17-19) हम रात को मन-ही-मन अपने बिस्तर पर यहोवा को अपनी भावनाएँ बता सकते हैं। अगर हम मामले के बारे में प्रार्थना करें तो हो सकता है हमारा नज़रिया बदल जाए और प्यार से हम उसे माफ कर दें। (1 पत. 4:8) ऐसा लगता है कि प्रेषित पौलुस की यह सलाह भजन 4:4 पर आधारित है: “अगर तुम्हें क्रोध आए, तो भी पाप मत करो। सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा बना न रहे, न ही शैतान को मौका दो।”—इफि. 4:26, 27.

19. हमारे आध्यात्मिक बलिदान चढ़ाने के बारे में भजन 4:5 से हमें क्या बढ़ावा मिलता है?

19 परमेश्‍वर पर भरोसा रखने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए दाविद ने गाया: “धर्म के बलिदान चढ़ाओ, और यहोवा पर भरोसा रखो।” (भज. 4:5) एक इसराएली के बलिदान की कदर तभी होती थी, जब वह नेक इरादे से ऐसा करता था। (यशा. 1:11-17) यही बात हमारे आध्यात्मिक बलिदान पर भी लागू होती है। अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारा बलिदान स्वीकार करे, तो ऐसा करते वक्‍त हमारा इरादा नेक होना चाहिए और हमें उस पर पूरा भरोसा दिखाना चाहिए।नीतिवचन 3:5, 6; इब्रानियों 13:15, 16 पढ़िए।

20. ‘यहोवा के मुख का प्रकाश चमकना’ इन शब्दों का क्या मतलब है?

20 दाविद आगे कहता है: “बहुत से हैं जो कहते हैं, कि कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? हे यहोवा तू अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका!” (भज. 4:6) ‘यहोवा के मुख का प्रकाश चमकना’ यहोवा के अनुग्रह या उसकी मंज़ूरी को दर्शाता है। (भज. 89:15) इसलिए जब दाविद प्रार्थना करता है कि “हे यहोवा तू अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका!” तो उसका मतलब है कि ‘हम पर अपनी मंज़ूरी दे।’ क्योंकि हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं इसलिए जब हम उसकी इच्छा पूरी करते हैं, तब हमें खुशी मिलती है और हम पर उसकी मंज़ूरी होती है।

21. अगर हम आज आध्यात्मिक कटनी में पूरा-पूरा हिस्सा लेते हैं तो हम क्या भरोसा रख सकते हैं?

21 परमेश्‍वर से मिलनेवाली ऐसी खुशी की आस देखते हुए, जो कटनी की खुशी से कहीं बढ़कर होती है, दाविद गाता है: “तू ने मेरे मन में उस से कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, जो उनको अन्‍न और दाखमधु की बढ़ती से होता था।” (भज. 4:7) अगर आज हम आध्यात्मिक कटनी के काम में पूरे जोश के साथ हिस्सा लेंगे तो हम सच्ची खुशी पाने का पूरा यकीन रख सकेंगे। (लूका 10:2) अभिषिक्‍त जनों की “जाति” इस काम में अगुवाई ले रही है और हम खुश हैं कि ‘कटनी के मज़दूरों’ की गिनती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। (यशा. 9:3) क्या आप इस कटनी के काम में पूरा-पूरा हिस्सा ले रहे हैं जिससे संतुष्टि मिलती है?

परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा रखते हुए आगे बढ़ते जाइए

22. जब इसराएली यहोवा के नियमों पर चले, तब भजन 4:8 के मुताबिक उन्हें क्या फायदा हुआ?

22 दाविद इस भजन को इन शब्दों से खत्म करता है: “मैं शान्ति से लेट जाऊंगा और सो जाऊंगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्‍चिंत रहने देता है।” (भज. 4:8) जब तक इसराएली यहोवा के नियम मानते रहे, वे निश्‍चिंत यानी बेखौफ रहे। उदाहरण के लिए राजा सुलैमान के राज के दौरान “यहूदी और इस्राएली . . . निडर रहते” थे। (1 राजा 4:25) हालाँकि पड़ोसी देश उनके बैरी थे, मगर फिर भी यहोवा पर भरोसा रखनेवाले ये लोग चैन से जीते थे। दाविद की तरह हम भी शांति से सोते हैं क्योंकि यहोवा हमारी हिफाज़त करता है।

23. अगर हम परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा रखें तो हम क्या अनुभव करेंगे?

23 आइए हम पूरे भरोसे के साथ यहोवा की सेवा में बढ़ते जाएँ। ऐसा हो कि हम विश्‍वास के साथ प्रार्थना भी करें और “परमेश्‍वर की शान्ति” का अनुभव करें “जो समझ से बिलकुल परे” है। (फिलि. 4:6, 7) इससे हमें कितनी खुशी मिलती है! इसमें शक नहीं कि अगर हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखेंगे तो हम पूरी हिम्मत के साथ भविष्य का सामना कर पाएँगे।

आप कैसे जवाब देंगे?

• अबशालोम की वजह से दाविद को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा?

भजन 3 कैसे हमारी हिम्मत बढ़ाता है?

भजन 4 कैसे हमारा भरोसा यहोवा पर मज़बूत करता है?

• यहोवा पर पूरा भरोसा रखने से हमें क्या फायदा होता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीर]

जब दाविद को अबशालोम से जान बचाकर भागना पड़ा तब भी उसे यहोवा पर पूरा भरोसा था

[पेज 32 पर तसवीरें]

क्या आप यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं?