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‘अपना मार्ग सफल बनाइए’ कैसे?

‘अपना मार्ग सफल बनाइए’ कैसे?

‘अपना मार्ग सफल बनाइए’ कैसे?

सफलता या कामयाबी ऐसा शब्द है, जो फौरन हमारा ध्यान खींच लेता है। आज कुछ लोगों ने नौकरी-पेशे की दुनिया में तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ी हैं और कुछ ने करोड़पति या अरबपति होने का नाम कमाया है। और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने कामयाब होने के ख्वाब तो देखे थे लेकिन उन्हें नाकामयाबी का मुँह देखना पड़ा।

कुछ हद तक यह सही है कि एक इंसान का कामयाब होना इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपनी ज़िंदगी में किस बात पर ज़्यादा ध्यान देता है। लेकिन दो और पहलू भी हैं, जो कामयाब होने के लिए ज़रूरी हैं। पहला, आप अपना वक्‍त और ताकत कैसे इस्तेमाल करते हैं। और दूसरा, आप पहल करते हैं या नहीं।

कई मसीहियों ने पाया है कि प्रचार में खुद को पूरी तरह लगा देने से उन्हें बहुत खुशी और संतोष मिला है। कई जवान और बुज़ुर्ग पूरे समय की सेवा करने से ज़िंदगी में कामयाब हो पाए हैं। वहीं कुछ लोगों को प्रचार काम उबाऊ लगता है और वे दूसरे लक्ष्य हासिल करने में लग जाते हैं और प्रचार काम को पहली जगह नहीं देते। ऐसा क्यों होता है? आप क्या कर सकते हैं ताकि आप अहमियत रखनेवाली बातों को भूल न जाएँ? और आप कैसे ‘अपने मार्ग को सफल बना सकते हैं?’—यहो. 1:8, NHT.

खेल-कूद जैसे कार्यक्रम और शौक

मसीही जवानों को सच्चे परमेश्‍वर की सेवा और खेल-कूद जैसे दूसरे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के बीच सही तालमेल बिठाना चाहिए। जो ऐसा करते हैं, कामयाबी उनकी पहुँच से दूर नहीं और वे वाकई तारीफ के काबिल हैं।

कुछ मसीही जवान खेल-कूद जैसे स्कूल के दूसरे कामों में और अपने शौक पूरे करने में हद-से-ज़्यादा ही मशगूल हो जाते हैं। ये काम अपने आप में शायद गलत न हो, लेकिन मसीही जवानों को खुद से पूछना चाहिए: ‘खेल-कूद और अपने शौक पूरे करने में मेरा कितना समय जाता है? उस दौरान मैं किन लोगों की सोहबत में रहता हूँ? उनके रवैए का मुझ पर क्या असर पड़ता है? मेरा ध्यान किन चीज़ों पर लग सकता है?’ आपको शायद एहसास हो कि एक जवान इन कामों में इस कदर डूब सकता है कि परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए उसके पास थोड़ा ही समय या ताकत बचे। तो ज़ाहिर है कि क्यों ज़रूरी बातों को पहली जगह देना इतनी अहमियत रखता है।—इफि. 5:15-17.

इस सिलसिले में विक्टर * की मिसाल लीजिए। वह कहता है: “जब मैं 12 साल का था, तब मैं एक क्लब के लिए वॉलीबाल खेलता था। वक्‍त के गुज़रते मैंने कई इनाम जीते। मेरे सामने वॉलीबाल का सितारा बनने का मौका था।” लेकिन कुछ समय बाद विक्टर को महसूस हुआ कि खेल की दीवानगी परमेश्‍वर के साथ उसके रिश्‍ते पर बुरा असर डाल रही है। एक दिन तो वह बाइबल पढ़ते-पढ़ते ही सो गया। यही नहीं, उसे प्रचार काम भी उबाऊ लगने लगा। वह कहता है: “मेरी पूरी ताकत वॉलीबाल खेलने में खर्च हो जाती थी और जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि उपासना से जुड़े कामों के लिए मेरा जोश कम होता जा रहा है। मैं जानता था कि मैं यहोवा के लिए अपना भरसक नहीं कर रहा था।”

ऊँची शिक्षा हासिल करना

बाइबल के मुताबिक मसीह भाइयों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने परिवारवालों की देखभाल करें, जिसमें रोटी, कपड़ा और मकान जैसी ज़रूरतें शामिल हैं। (1 तीमु. 5:8) लेकिन क्या ये ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक भाई को कॉलेज या यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल करना ज़रूरी है?

अच्छा होगा कि किसी भी तरह की ऊँची शिक्षा हासिल करने से पहले एक व्यक्‍ति इस बात पर गौर करे कि इसका यहोवा के साथ उसके रिश्‍ते पर क्या असर पड़ेगा। आइए इसे समझने के लिए बाइबल से एक उदाहरण पर ध्यान दें।

बारूक, यिर्मयाह नबी का सेकेट्री था। लेकिन ज़िंदगी के एक मोड़ पर आकर यहोवा की सेवा से उसका ध्यान हटने लगा और वह बड़ा बनने की चाहत रखने लगा। यहोवा से यह बात छिपी नहीं, उसने यिर्मयाह नबी के ज़रिए बारूक को चेतावनी दी: “क्या तू अपने लिए बड़ी बड़ी बातों की खोज में है? उन्हें मत खोज।”—यिर्म. 45:5, NHT.

बारूक किन “बड़ी बड़ी बातों की खोज” में था? वह शायद यहूदियों के बीच अपने लिए एक नाम कमाना चाहता था। या फिर वह धन-दौलत बटोरना चाहता था। जो भी हो, लेकिन वह उन ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को पहली जगह नहीं दे रहा था, जिससे परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता मज़बूत बना रहता। (फिलि. 1:10) आखिरकार बारूक ने यिर्मयाह के ज़रिए दी यहोवा की चेतावनी को माना और इसलिए वह यरूशलेम के विनाश से बच गया।—यिर्म. 43:6.

हम बारूक के वाकए से क्या सीखते हैं? बारूक को चेतावनी दी गयी थी, जिससे पता चलता है कि उसमें कुछ कमी थी। वह अपने लिए बड़ी बड़ी बातों की खोज में था। अगर आप अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के काबिल हैं, तो क्या आपको ऊँची शिक्षा हासिल करने के लिए अपना वक्‍त, पैसा और ताकत लगानी चाहिए, सिर्फ इसलिए कि आपको अपने या अपने माँ-बाप या रिश्‍तेदारों के सपने पूरे करने हैं?

जॉर्ज की मिसाल लीजिए, जो एक कंप्यूटर प्रोग्रामर है। साथ काम करनेवालों के दबाव में आकर वह अपने काम से जुड़ी एक खास किस्म की ट्रेनिंग लेने लगा। देखते-ही-देखते वह इतना व्यस्त हो गया कि परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े कामों के लिए उसके पास वक्‍त ही नहीं बचता था। वह याद करता है: “मेरे पास साँस लेने की भी फुरसत नहीं होती थी। मेरा ज़मीर हमेशा मुझे कचोटता था कि मैंने परमेश्‍वर की सेवा में जो लक्ष्य रखे हैं उन्हें मैं हासिल नहीं कर सकता।”

नौकरी में पूरी तरह डूब जाना

परमेश्‍वर का वचन मसीहियों को उकसाता है कि वे मेहनती हों और एक ज़िम्मेदार कर्मचारी और मालिक बनें। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “तुम चाहे जो भी काम करो, उसे तन-मन लगाकर ऐसे करो मानो यहोवा के लिए करते हो न कि इंसानों के लिए।” (कुलु. 3:22, 23) हालाँकि मेहनती होना तारीफ के लायक है, लेकिन इससे भी ज़रूरी एक चीज़ है, अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करना। (सभो. 12:13) अगर एक मसीह अपने नौकरी-पेशे में पूरी तरह डूब जाए, तो उपासना से जुड़े काम आसानी से दूसरी जगह ले लेंगे।

चौबीसों घंटे अपने काम में लगे रहने से एक मसीह के पास न तो परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने और न ही अपने परिवार की मदद करने के लिए ताकत बचेगी। राजा सुलैमान ने कहा, “अधिकाधिक पाने की ललक” होना ‘वायु के पीछे दौड़ना है।’ (सभो. 4:6, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अगर एक मसीही दुनिया में करियर बनाने के पीछे दौड़ता रहे, तो वह भारी तनाव का शिकार हो सकता है। यही नहीं, करियर बनाने का जुनून उसे पूरी तरह दिमागी और शारीरिक तौर पर पस्त कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो क्या वह “आनन्द” कर पाएगा और “अपने सब परिश्रम में सुखी” रह पाएगा? (सभो. 3:12, 13) सबसे बढ़कर क्या उसके पास अपने परिवार और उपासना से जुड़े दूसरे कामों के लिए शारीरिक और मानसिक ताकत बचेगी?

पश्‍चिम यूरोप में रहनेवाले जेम्स की मिसाल लीजिए। वह बाग-बगीचे लगाने के अपने कारोबार में पूरी तरह डूब गया। वह याद करते हुए कहता है: “दुनिया के लोग मुझे बहुत चाहते थे क्योंकि मैं पूरे जोश और लगन से काम करता था और हर काम पूरा करके ही दम लेता था। लेकिन अफसोस परमेश्‍वर के साथ मेरा रिश्‍ता कमज़ोर पड़ता गया और मैंने प्रचार में हिस्सा लेना बंद कर दिया। जल्द ही मैंने सभाओं में जाना भी छोड़ दिया। मैं इतना घमंडी बन गया कि मैंने प्राचीनों की सलाह ठुकरा दी और मंडली से बाहर निकल गया।”

आप अपने जीवन में कामयाब हो सकते हैं

अब तक हमने ऐसे तीन दायरों पर गौर किया है, जिनमें अगर एक मसीह पूरी तरह लग जाए तो परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता दाँव पर लग सकता है। क्या आप इनमें से किसी में पूरी तरह लगे हुए हैं? अगर हाँ, तो आगे दिए सवाल, आयतें और अलग-अलग मसीहियों की कही बातें आपको यह तय करने में मदद दे सकती हैं कि क्या आप वाकई कामयाबी की राह पर चल रहे हैं।

खेल-कूद जैसे कार्यक्रम और शौक: आप इन कामों में कितने मशगूल रहते हैं? क्या ये बातें आपका वह कीमती वक्‍त चुरा रही हैं, जो आप पहले आध्यात्मिक कामों में लगा रहे थे? क्या मंडली के भाई-बहनों की संगति आपको पहले जितनी आकर्षक और मनभावनी नहीं लगती? अगर ऐसा है तो क्यों न आप राजा दाविद की तरह यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करें: “जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे।”—भज. 143:8.

लेख की शुरूआत में विक्टर नाम के जिस शख्स का ज़िक्र किया गया है, उसकी एक सफरी निगरान ने मदद की। निगरान ने उससे कहा: “तुम्हारी बातों से लगता है तुम वॉलीबाल के दीवाने हो।” विक्टर कहता है: “सफरी निगरान की इस बात ने मुझे अंदर तक हिला दिया। उनके कहने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना दूर आ चुका हूँ। जल्द ही मैंने क्लब के लड़कों के साथ दोस्ती तोड़ दी और मंडली में नए दोस्त बनाने लगा।” आज विक्टर मंडली में बड़े जोश के साथ यहोवा की सेवा कर रहा है। वह दूसरों से यही सिफारिश करता है: “अपने दोस्तों, माता-पिता या मंडली के प्राचीनों से पूछिए कि क्या स्कूल के कार्यक्रम या आपके शौक आपको यहोवा के करीब ला रहे हैं या उससे दूर ले जा रहे हैं।”

क्यों न आप मंडली के प्राचीनों से कहें कि आप परमेश्‍वर की सेवा में और भी ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं? क्या आप बुज़ुर्ग भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं, जिन्हें शायद खरीदारी करने या घर के काम-काज निपटाने में मदद की ज़रूरत हो? चाहे आपकी उम्र जो भी हो, आप पूरे समय की सेवा कर सकते हैं और दूसरों के साथ अपनी खुशी बाँट सकते हैं।

ऊँची शिक्षा: यीशु ने ‘अपनी ही बड़ाई चाहने’ के बारे में आगाह किया था। (यूह. 7:18) आपने चाहे जितनी भी पढ़ाई करने का फैसला किया हो, लेकिन क्या आपने यह ‘पहचाना है कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं?’—फिलि. 1:9, 10.

कंप्यूटर प्रोग्रामर जॉर्ज ने अपनी ज़िंदगी में फेरबदल किए। उसने कहा: “प्राचीनों की सलाह को मैंने गंभीरता से लिया और मैंने अपने जीवन को सादा बनाया। मैं समझ गया कि मुझे और ज़्यादा पढ़ाई करने की ज़रूरत नहीं। क्योंकि इसमें सिर्फ मेरा वक्‍त और ताकत बरबाद होगी।” जॉर्ज मंडली के कामों में ज़ोर-शोर से हिस्सा लेने लगा। समय के चलते वह मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल से, जिसे अब ‘अविवाहित भाइयों के लिए बाइबल स्कूल’ कहते हैं, ग्रेजुएट हुआ। जी हाँ, उसने “तय वक्‍त का पूरा-पूरा इस्तेमाल” किया और परमेश्‍वर की शिक्षा हासिल की।—इफि. 5:16.

नौकरी: क्या आप अपने नौकरी-धंधे में इतने डूब गए हैं कि परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े काम आपकी ज़िंदगी में दूसरी जगह लेने लगे हैं? क्या आपके पास इतना समय होता है कि आप अपने परिवारवालों के साथ इत्मीनान से बातचीत कर पाते हैं? आप मंडली में जो भी भाग पेश करते हैं क्या आप अपनी पेशकश में सुधार लाने में मेहनत करते हैं? दूसरों से बातचीत करते वक्‍त क्या आप उनकी हौसला-अफज़ाई करते हैं? अगर आप ‘परमेश्‍वर का भय मानेंगे और उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे,” तो आपको यहोवा की आशीषें मिलेंगी और ‘परिश्रम करते हुए अपने जीव को सुखी रख’ पाएँगे।—सभो. 2:24; 12:13.

जेम्स जिसके बारे में लेख में पहले ज़िक्र किया गया है, उसका बाग-बगीचे लगाने का कारोबार ठप्प पड़ गया। उसके सारे पैसे खत्म हो गए और वह भारी कर्ज़ में डूब गया। फिर वह यहोवा के पास लौट आया। उसने परमेश्‍वर की मदद से धीरे-धीरे अपनी लड़खड़ाती हालत ठीक की। आज वह मंडली में एक पायनियर और प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा है। वह कहता है: “अब जब मैं बुनियादी चीज़ों में संतोष करता हूँ और परमेश्‍वर के कामों में अपनी ताकत लगाता हूँ, तो मुझे मन की शांति और सुकून मिलता है।”—फिलि. 4:6, 7.

थोड़ा वक्‍त निकालकर ईमानदारी से अपने इरादों की जाँच कीजिए और यह भी देखिए कि आपकी ज़िंदगी में क्या बातें असल में पहली जगह ले रही हैं। यहोवा की सेवा करना, एक ऐसी राह है जिस पर चलने से आपको हमेशा कामयाबी ही मिलेगी। इसलिए उसकी सेवा को अपनी ज़िंदगी का खास मकसद बना लीजिए।

हो सकता है आपको अपनी ज़िंदगी में कुछ फेरबदल करने पड़ें, यहाँ तक कि कुछ गैर-ज़रूरी चीज़ों को पूरी तरह दूर करना पड़े, ताकि आप “परखकर खुद के लिए मालूम करते रहो कि परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी सिद्ध इच्छा क्या है।” (रोमि. 12:2) लेकिन यकीन रखिए तन-मन से यहोवा की सेवा करके आप “अपने मार्ग को सफल बना” पाएँगे।

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 31 पर बक्स/तसवीर]

आप अपना मार्ग कैसे सफल बना सकते हैं?

आज बहुत-सी चीज़ें आपका ध्यान भटका सकती हैं, ऐसे में आप क्या कर सकते हैं ताकि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली चीज़ें आपसे नज़रअंदाज़ न हों? कुछ वक्‍त निकालकर आगे दिए सवालों की मदद से अपने इरादों और जीवन में कौन-सी बातें पहली जगह ले रही हैं, इस पर सोचिए:

खेल-कूद जैसे कार्यक्रम और आपके शौक

▪ इन कामों में हिस्सा लेते वक्‍त आपको किस तरह के रवैए का सामना करना होता है?

▪ आप इनमें कितना वक्‍त बिताते हैं?

▪ कहीं ये बातें आपकी ज़िंदगी का खास हिस्सा तो नहीं बन गयी हैं?

▪ क्या ये आपका वह कीमती वक्‍त चुरा रही हैं, जो आप पहले आध्यात्मिक कामों में लगा रहे थे?

▪ आपकी सोहबत के बारे में क्या?

▪ क्या आपके दोस्त आपको मंडली के भाई-बहनों से ज़्यादा आकर्षक और मनभावने लगते हैं?

ऊँची शिक्षा

▪ अगर आप अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के काबिल हैं, तो क्या आपको वाकई ऊँची शिक्षा हासिल करने के लिए अपना वक्‍त, पैसा और ताकत लगानी चाहिए?

▪ खुद का खर्चा-पानी उठाने के लिए क्या आपको सचमुच कॉलेज या यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल करना ज़रूरी है?

▪ क्या ऊँची शिक्षा लेने से आप मंडली की सभाओं में हाज़िर हो पाएँगे?

▪ क्या आपने “ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें” पहचानी हैं?

▪ क्या आपको यहोवा पर अपना विश्‍वास और भी मज़बूत करने की ज़रूरत है कि वह आपकी ज़रूरतों को पूरा करने के काबिल है?

नौकरी

▪ क्या आपकी नौकरी आपको “आनन्द” करने और ‘अपने सब परिश्रम में सुख’ पाने का मौका देती है?

▪ क्या नौकरी के बाद आपके पास अपने परिवार की ज़िम्मेदारी और उपासना से जुड़े दूसरे काम करने के लिए शारीरिक और मानसिक ताकत बचती है?

▪ क्या आपके पास इतना समय होता है कि आप इत्मीनान से अपने परिवारवालों के साथ बातचीत कर पाते हैं?

▪ क्या आप अपने नौकरी-धंधे में इतने डूब गए हैं कि उपासना से जुड़े काम दूसरी जगह लेने लगे हैं?

▪ क्या इससे मंडली में आप जो भाग पेश करते हैं, उस पर असर पड़ा है?

[पेज 30 पर तसवीर]

यहोवा ने बारूक को बड़ा बनने की चाहत से खबरदार किया