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एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद जीत!

एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद जीत!

एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद जीत!

रूस में यह संघर्ष सन्‌ 1995 में शुरू हुआ और 15 साल तक चला। हालाँकि वहाँ सभी को अपना धर्म मानने की आज़ादी थी, फिर भी इन सालों के दौरान साक्षियों पर बहुत ज़ुल्म ढाए गए। विरोधियों ने ठान लिया था कि वे साक्षियों के धर्म को मॉस्को (रूस की राजधानी) और दूसरी जगहों पर गैर-कानूनी साबित करके ही दम लेंगे। लेकिन परमेश्‍वर यहोवा ने रूस के भाई-बहनों की खराई के लिए उन्हें आशीष दी और उन्हें कानूनी जीत दिलायी। आखिर यह जंग किस वजह से शुरू हुई?

अंत में आज़ादी!

सन्‌ 1917 में रूस में यहोवा के साक्षियों के धर्म पर पाबंदी लगायी गयी थी, लेकिन सन्‌ 1991 में सोवियत संघ की सरकार ने उनके धर्म को कानूनी मान्यता दे दी। जब सोवियत संघ का बँटवारा हुआ, तब रूस एक बार फिर अलग देश बन गया और रूस की नयी सरकार ने भी उनके धर्म को मान्यता दे दी। इतना ही नहीं, सरकार ने यह भी कबूल किया कि दशकों पहले उसने साक्षियों पर उनके धर्म की वजह से ज़ुल्म ढाए थे। इसके बाद, सन्‌ 1993 में मॉस्को के न्याय विभाग ने मॉस्को के यहोवा के साक्षियों को कानूनी मान्यता दी। उसी साल, रूस में नया संविधान लागू किया गया जिसके मुताबिक लोगों को अपना धर्म मानने की आज़ादी थी। इस पर एक भाई ने खुशी-खुशी कहा, “हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हम इस तरह की आज़ादी को देखेंगे!” फिर उसने कहा, “हम 50 साल से इसका इंतज़ार कर रहे थे!”

रूस के भाई-बहनों ने उस ‘अच्छे वक्‍त’ का इस्तेमाल करके ज़ोर-शोर से प्रचार काम किया और बहुत-से लोगों ने दिलचस्पी दिखायी। (2 तीमु. 4:2) एक स्त्री ने कहा, “लोग धर्म में बहुत दिलचस्पी ले रहे थे।” जल्द ही प्रचारकों, पायनियरों और मंडलियों में कमाल की बढ़ोतरी हुई। सन्‌ 1990 में जहाँ मॉस्को में साक्षियों की गिनती सिर्फ 300 थी, वह 1995 के आते-आते 5,000 से भी अधिक हो गयी! इससे उन लोगों में खलबली मच गयी जो धर्म की आज़ादी के खिलाफ थे। सन्‌ 1995 में उन्होंने साक्षियों के खिलाफ कानूनी जंग छेड़ दी और इसके खत्म होने से पहले साक्षियों को चार पड़ावों से गुज़रना पड़ा।

आपराधिक मामले की कार्रवाही

यह जंग जून, 1995 में शुरू हुई। मॉस्को के एक समूह की, रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च से साँठ-गाँठ थी। उसने हमारे भाइयों के खिलाफ शिकायत दर्ज़ करायी कि वे गैर-कानूनी काम करते हैं। इस समूह ने दावा किया कि वह उन लोगों की खातिर यह कदम उठा रहा है जिनके परिवार के सदस्य साक्षी हैं और वे अपने साक्षी सदस्यों से परेशान थे। इस समूह की शिकायत पर जून, 1996 में जाँचकर्ताओं ने मॉस्को के साक्षियों की तहकीकात की और उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करने की कोशिश की, पर वे कामयाब नहीं हुए। फिर भी, इस समूह ने दूसरी बार हमारे भाइयों के खिलाफ वही शिकायत दर्ज़ करायी। एक बार फिर जाँचकर्ताओं ने तहकीकात की और सारे इलज़ाम झूठे साबित हुए। इसके बावजूद, विरोधियों ने तीसरी बार फिर वही शिकायत दर्ज़ की और सरकारी वकील इसी नतीजे पर पहुँचा कि उसे साक्षियों के खिलाफ आपराधिक मामला शुरू करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। मगर विरोधियों ने चौथी बार भी वही शिकायत दर्ज़ करायी, पर पहले की तरह सरकारी वकील को कोई सबूत नहीं मिला। हैरानी की बात है कि उन्होंने फिर से जाँच करने की माँग की। आखिरकार, 13 अप्रैल, 1998 को एक नए जाँचकर्ता ने मुकदमा बंद कर दिया।

इस मुकद्दमे का एक वकील कहता है, “इसके बाद कुछ अजीब-सी बात हुई।” हालाँकि पाँचवी बार तहकीकात करनेवाले सरकारी वकील के प्रतिनिधि ने कबूल किया कि उन्हें साक्षियों के खिलाफ कोई गैर-कानूनी सबूत नहीं मिला, फिर भी उसने साक्षियों के खिलाफ सिविल मामला (दीवानी मुकद्दमा) दर्ज़ करवाने की सलाह दी। उस प्रतिनिधि ने दावा किया कि मॉस्को के यहोवा के साक्षियों की बिरादरी देश और विदेश का कानून तोड़ रही है। मॉस्को के उत्तरी प्रशासन क्षेत्र का सरकारी वकील उससे सहमत था और उसने साक्षियों के खिलाफ सिविल मामला दर्ज़ कर दिया। * और 29 सितंबर, 1998 में मॉस्को की गालाविनस्की ज़िला-अदालत में मुकद्दमे की सुनवायी शुरू हो गयी। यह था जंग का दूसरा पड़ाव।

बाइबल अदालत में

उत्तरी मॉस्को की एक छोटी-सी अदालत की सरकारी वकील टॉट्यॉना कॉनड्रॉटयेवा ने इलज़ाम लगाने शुरू किए। उसने 1997 में स्थापित किए उस देश के एक कानून का हवाला दिया, जिसके मुताबिक सिर्फ ऑर्थोडॉक्स ईसाई, इस्लाम, यहूदी और बौद्ध ही सबसे प्राचीन धर्म हैं। * इस कानून की वजह से बाकी के धर्मों के लिए मान्यता प्राप्त करना मुश्‍किल हो गया। इस कानून ने अदालत को यह छूट भी दी कि नफरत को बढ़ावा देनेवाले धर्मों पर पाबंदी लगायी जा सकती है। तो इसके आधार पर सरकारी वकील ने साक्षियों पर झूठा इलज़ाम लगाते हुए कहा कि साक्षी नफरत को बढ़ावा देते हैं और परिवारों को तबाह करते हैं, इसलिए उनके धर्म पर पाबंदी लगा देनी चाहिए।

इस पर हमारे भाइयों की तरफ से लड़नेवाले वकील ने पूछा: “मॉस्को की मसीही मंडली में ऐसा कौन है जो कानून तोड़ने का गुनहगार है?” सरकारी वकील एक भी नाम नहीं बता पायी। लेकिन उसने दावा किया कि साक्षियों की किताबें दूसरे धर्मों से नफरत करना सिखाती हैं। अपनी बात को साबित करने के लिए उसने प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं, साथ ही दूसरी किताबों से कुछ जानकारी पढ़ी। (ऊपर देखिए।) जब पूछा गया कि ये साहित्य किस तरह नफरत करना सिखाते हैं, तो उसने कहा “यहोवा के साक्षी सिखाते हैं कि उन्हीं का धर्म सच्चा है।”

हमारे एक वकील भाई ने न्यायाधीश और सरकारी वकील को एक-एक बाइबल दी और इफिसियों 4:5 पढ़ा: “एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास, एक ही बपतिस्मा।” कुछ ही देर में न्यायाधीश, सरकारी वकील और वकील, हाथ में बाइबल लिए यूहन्‍ना 17:18 और याकूब 1:27 जैसी आयतों पर चर्चा करने लगे। अदालत ने पूछा: “क्या ये आयतें दूसरे धर्मों से नफरत करना सिखाती हैं?” सरकारी वकील ने जवाब दिया कि उसे बाइबल के बारे में इतनी जानकारी नहीं। फिर हमारे वकील ने रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के साहित्य दिखाए जो साक्षियों की निंदा करते हैं और पूछा: “क्या ये बातें गैर-कानूनी हैं?” सरकारी वकील ने कहा: “मैं इस मामले में ज़्यादा नहीं जानती।”

सरकारी वकील औंधे मुँह

यहोवा के साक्षियों पर परिवारों को तबाह करने का इलज़ाम लगाते हुए सरकारी वकील ने कहा कि वे क्रिसमस जैसे त्योहार नहीं मनाते। लेकिन, बाद में उसने कबूल किया कि रूस के कानून के मुताबिक वहाँ के नागरिकों के लिए क्रिसमस मनाना ज़रूरी नहीं। तो रूसी लोग, जिनमें रूस के साक्षी भी शामिल हैं, उन्हें चुनाव करने का हक है। सरकारी वकील ने यह भी आरोप लगाया कि इनका संगठन ‘बच्चों की खुशियाँ छीन लेता है और उन्हें आराम करने का वक्‍त नहीं देता।’ लेकिन जब उससे सवाल किया गया तो उसने कबूल किया कि उसने कभी यहोवा के साक्षियों के बच्चों से बात नहीं की। जब एक वकील ने पूछा कि क्या आप कभी साक्षियों की सभाओं में गयी हैं, तो उसने कहा: “मुझे वहाँ जाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई।”

सरकारी वकील ने मनोरोगविज्ञान के एक प्रोफेसर को गवाह के तौर पर पेश किया। उस प्रोफेसर ने दावा किया कि हमारा साहित्य पढ़ने से मानसिक रोग हो जाता है। जब हमारे वकील ने कहा कि अदालत को पेश किया गया प्रोफेसर का लिखित बयान हू-ब-हू उस दस्तावेज़ में लिखी बातों से मेल खाता है जो मॉस्को पेट्रिआरकेट यानी वहाँ के ऑर्थोडॉक्स चर्च के अगुवों ने लिखी थीं, तब प्रोफेसर ने कबूल किया कि उसके बयान की कुछ बातें शब्द-ब-शब्द उसी दस्तावेज़ से ली गयी थीं। पूछताछ करने पर पता चला कि उसने कभी किसी साक्षी का इलाज नहीं किया। वहीं मनोरोगविज्ञान के दूसरे प्रोफेसर ने अदालत में गवाही दी कि उसने मॉस्को में 100 से भी ज़्यादा साक्षियों का सर्वे लिया और पाया कि उनकी दिमागी हालत बिलकुल ठीक है। और यह भी कहा कि साक्षी बनने के बाद वे दूसरे धर्मों की ज़्यादा इज़्ज़त करने लगे।

जीत-मगर पूरी तरह नहीं

इसके बाद 12 मार्च, 1999 को न्यायाधीश ने पाँच शिक्षित लोगों को यहोवा के साक्षियों के साहित्य की जाँच करने को कहा और मुकद्दमा कुछ समय के लिए रोक दिया। मगर इससे पहले ही रूस के न्याय मंत्रालय ने कुछ लोगों को साक्षियों के साहित्य की जाँच करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी, जिसका मॉस्को के मुकद्दमे से कोई नाता नहीं था। फिर 15 अप्रैल, 1999 को साहित्य के जाँचकर्ताओं ने रूस के मंत्रालय को रिपोर्ट दी कि साक्षियों के साहित्य में कोई बुराई नहीं है। इसलिए 29 अप्रैल, 1999 को यहोवा के साक्षियों को रूस में दोबारा पंजीकृत कर दिया गया। हालाँकि मॉस्को की अदालत को अब हमारे साहित्य की अच्छी रिपोर्ट मिल चुकी थी, फिर भी उसने ज़ोर दिया कि साहित्य की जाँच फिर से की जाए। अजीब-सी बात थी, एक तरफ रूस के न्याय मंत्रालय ने यहोवा के साक्षियों के धर्म को कानूनी मान्यता दे दी थी, वहीं दूसरी तरफ मॉस्को का न्याय विभाग साक्षियों के खिलाफ कानून तोड़ने के आरोप में उनकी तहकीकात कर रहा था!

दो साल बाद मुकद्दमा दोबारा शुरू हुआ। जाँचकर्ताओं की रिपोर्ट के आधार पर 23 फरवरी, 2001 को न्यायाधीश यैलेनॉ प्रॉहोरीचेवा ने फैसला सुनाया। उसने कहा: “मॉस्को में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगाने या उसे पूरी तरह बंद करने की कोई वजह नहीं है।” आखिरकार, कानूनी तौर पर साबित हो गया कि साक्षियों पर लगे सारे आरोप झूठे हैं! लेकिन सरकारी वकील ने इस फैसले को नामंज़ूर करते हुए मॉस्को नगर-न्यायालय में अपील की। तीन महीने बाद, 30 मई, 2001 को इस अदालत ने न्यायाधीश प्रॉहोरीचेवा के फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि एक बार फिर मुकद्दमा लड़ा जाना चाहिए जिसमें वही सरकारी वकील लड़ेगी, पर न्यायाधीश दूसरा होगा। अब तीसरा पड़ाव शुरू होनेवाला था।

हारे—मगर उम्मीद कायम

इस बार नए न्यायाधीश वेरा डूबिनस्काया ने 30 अक्टूबर, 2001 को मुकद्दमा फिर से शुरू किया। * सरकारी वकील कॉनड्रॉटयेवा ने यहोवा के साक्षियों पर दोबारा वही इलज़ाम लगाया कि वे नफरत को बढ़ावा देते हैं। फिर उसने दावा किया कि यहोवा के साक्षियों पर पाबंदी लगाने से दरअसल उन्हीं की हिफाज़त होगी! उस बेबुनियाद दावे के जवाब में मॉस्को के सभी 10,000 साक्षियों ने तुरंत एक निवेदन-पत्र पर दस्तखत किए और अदालत से गुज़ारिश की कि उन्हें सरकारी वकील की “हिफाज़त” नहीं चाहिए।

सरकारी वकील ने कहा कि सवाल यह नहीं कि साक्षी गलत काम करते हैं या नहीं क्योंकि यह मुकद्दमा उनके काम के बारे में नहीं, बल्कि उनके साहित्य और विश्‍वास के बारे में है। फिर उसने घोषित किया कि वह रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के वक्‍ता को बतौर विशेष गवाह पेश करेगी। इस घोषणा ने यह साबित कर दिया कि साक्षियों पर पाबंदी लगाने के पीछे चर्च के पादरियों का ही सबसे बड़ा हाथ था। एक बार फिर 22 मई, 2003 को न्यायाधीश ने वही आदेश दिया कि यहोवा के साक्षियों के साहित्य की जाँच करायी जाए।

17 फरवरी, 2004 को मुकद्दमा दोबारा शुरू हुआ और जाँचकर्ताओं की रिपोर्ट पर गौर किया गया। जाँचकर्ताओं ने पाया कि हमारे साहित्य से पाठकों को बढ़ावा मिलता है कि वे “परिवार और शादी के इंतज़ाम की हिफाज़त करें।” साथ ही उन्हें यह दावा भी “बेबुनियाद” लगा कि हमारे साहित्य नफरत को बढ़ावा देते हैं। दूसरे जाँचकर्ता भी इससे सहमत थे। धार्मिक इतिहास के एक प्रोफेसर से पूछा गया कि “यहोवा के साक्षी प्रचार क्यों करते हैं?” तब उसने अदालत को जवाब दिया: “मसीहियों के लिए प्रचार करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि खुशखबरी की किताबें यही कहती हैं। मसीह ने भी अपने चेलों को यही करने की आज्ञा दी थी कि ‘जाओ और सब राष्ट्रों में प्रचार करो।’” इस सबके बावजूद, 26 मार्च, 2004 को न्यायाधीश ने मॉस्को में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगा दी। सोलह जून, 2004 को मॉस्को के नगर-न्यायालय ने उस फैसले को कबूल किया। * एक भाई जो लंबे समय से साक्षी है, उसने इस फैसले पर अपनी राय देते हुए कहा: “जब सोवियत सरकार का राज था, तब एक रूसी के लिए नास्तिक होना ज़रूरी था। मगर आज, उसे ऑर्थोडॉक्स होना पड़ेगा।”

हमारे भाइयों ने इस पाबंदी पर कैसा रवैया दिखाया? उनका रवैया काफी हद तक पुराने ज़माने के नहेमायाह की तरह था। उसके ज़माने में जब दुश्‍मनों ने यरूशलेम की दीवार बनाने का काम रोकने की कोशिश की, तो नहेमायाह और उसके लोग डरकर पीछे नहीं हटे बल्कि दीवार “बनाते रहे” (किताब-ए-मुकद्दस) और उनका “मन उस काम में नित लगा रहा।” (नहे. 4:1-6) उसी तरह मॉस्को के हमारे भाई विरोध से डरकर पीछे नहीं हटे बल्कि खुशखबरी का प्रचार करते रहे, जिसका किया जाना बेहद ज़रूरी है। (1 पत. 4:12, 16) उन्हें पूरा भरोसा था कि यहोवा उनका खयाल रखेगा। अब वे इस लंबे संघर्ष के चौथे पड़ाव का सामना करने को तैयार थे।

दुश्‍मनी बढ़ी

25 अगस्त, 2004 को हमारे भाइयों ने व्लाडीमिर पुटान को एक निवेदन-पत्र भेजा, जो उस वक्‍त रूस का राष्ट्रपति था। उसमें पाबंदी को लेकर अफसोस ज़ाहिर किया गया था और 3,15,000 से ज़्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। इस निवेदन-पत्र की 76 गड्डियाँ बन गयी थीं। उसी दौरान ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों ने अपना असली रंग दिखाया। उनके नेताओं ने कहा: “हम यहोवा के साक्षियों के काम का विरोध करते हैं।” एक मुसलिम अगुवे ने कहा कि साक्षियों पर पाबंदी लगाकर “एक बेहतरीन कदम उठाया गया है।”

ताज्जुब की बात नहीं कि बहकावे में आकर आम जनता भी यहोवा के साक्षियों का विरोध करने लगी। लोगों ने मॉस्को में प्रचार काम करनेवाले कुछ साक्षियों को लात-घूँसों से भी बुरी तरह मारा। एक बार गुस्से से पागल एक आदमी ने हमारी बहन को एक इमारत से बाहर खदेड़ा और पीठ पर ऐसी ज़ोर से लात मारी कि वह सिर के बल जा गिरी। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा मगर पुलिस ने उस आदमी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। बाकी साक्षियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, उनकी उँगलियों के निशान लिए, तसवीरें खींची, और रात-भर जेल में रखा। मॉस्को में जहाँ यहोवा के साक्षियों की सभाएँ होती थीं, वहाँ के मैनेजरों को धमकी दी गयी की अगर वे साक्षियों को अपने हॉल किराए पर देंगे, तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। इस वजह से, बहुत-सी मंडलियों को सभाएँ करने की जगह नहीं मिली। चालीस मंडलियों को एक राज-घर में मिलना पड़ता था, जिसमें चार हॉल थे। एक मंडली वहाँ सुबह साढ़े सात बजे जन-भाषण की सभा रखती थी। एक सफरी निगरान ने बताया कि “सभा में आने के लिए प्रचारकों को सुबह पाँच बजे उठना पड़ता था, फिर भी एक साल तक वे खुशी-खुशी ऐसा करते रहे।”

“गवाही” के लिए

मॉस्को में हमारे प्रचार काम पर लगी पाबंदी गैर-कानूनी थी, यह साबित करने के लिए दिसंबर, 2004 में हमारे वकीलों ने ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ से अपील की। (पेज 6 पर दिया बक्स “रूसी अदालत के फैसले पर फ्रांस में क्यों विचार किया गया?” देखिए।) 6 साल बाद, 10 जून, 2010 को अदालत ने यहोवा के साक्षियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। * अदालत ने हम पर लगाए गए सभी इलज़ामों पर गौर किया और उन्हें बेबुनियाद पाया। अदालत ने यह भी कहा कि कानून के मुताबिक रूस की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह “साक्षियों पर किए गए अन्याय पर रोक लगाए और उससे हुए नुकसान की भरपाई करे।”—पेज 8 पर दिया बक्स “अदालत का फैसला” देखिए।

‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ ने फैसला सुनाया कि वह यहोवा के साक्षियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी देती है और यह फैसला न सिर्फ रूस पर बल्कि उन 46 देशों पर भी लागू होता है जो यूरोपीय परिषद्‌ के सदस्य हैं। यही नहीं, दुनिया-भर में न्यायाधीश, विधायक, और मानव अधिकारों का अध्ययन करनेवाले लोग इस मुकद्दमे में ज़रूर दिलचस्पी लेंगे। क्यों? अपने फैसले पर पहुँचने के लिए अदालत ने न सिर्फ यहोवा के साक्षियों के पक्ष में हुए पिछले आठ फैसलों को मद्देनज़र रखा था बल्कि अर्जण्टिना, कनाडा, जापान, रूस, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, ब्रिटेन और अमरीका की सबसे ऊँची अदालतों में यहोवा के साक्षियों को मिली जीत का भी ज़िक्र किया। अब दुनिया-भर में यहोवा के साक्षी यूरोपीय अदालत के इस फैसले का अपनी उपासना की पैरवी करने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मेरी वजह से तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाएगा, ताकि उन पर और गैर-यहूदियों पर गवाही हो।” (मत्ती 10:18) पिछले 15 सालों से जो कानूनी संघर्ष चल रहा था उस वजह से हमारे भाई मॉस्को और दूसरी जगहों पर इतने बड़े पैमाने पर यहोवा के नाम का ऐलान कर सके, जितना वे पहले नहीं कर पाए थे। साक्षियों के खिलाफ हुई कार्रवाही, मुकद्दमों और अंतर्राष्ट्रीय अदालत में हुए फैसलों से जिस तरह लोगों का ध्यान साक्षियों पर गया, उससे वाकई अच्छी “गवाही” मिली, और “खुशखबरी के फैलने में . . . तरक्की ही हुई।” (फिलि. 1:12) आज साक्षी जब मॉस्को में प्रचार करते हैं, तो बहुत-से लोग पूछते हैं: “क्या आप लोगों के काम पर पाबंदी नहीं लगी थी?” इससे हमारे भाइयों को अपने विश्‍वास के बारे में और ज़्यादा बताने का मौका मिलता है। जी हाँ, दुनिया की कोई ताकत हमारे प्रचार काम को रोक नहीं सकती। हम प्रार्थना करते हैं कि यहोवा, हमारे रूसी भाई-बहनों पर अपनी आशीष बरसाता रहे, जिन्होंने मुश्‍किल दौर में भी हिम्मत नहीं हारी।

[फुटनोट]

^ साक्षियों के खिलाफ 20 अप्रैल, 1998 को शिकायत दर्ज़ की गयी। दो हफ्ते बाद, 5 मई से रूस ने ‘मानव अधिकारों के लिए यूरोपीय संविधान’ लागू किया।

^ “रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के ज़बरदस्त दबाव के चलते यह कानून पारित किया गया। ऑर्थोडॉक्स चर्च ने रूस में अपनी जगह बना ली है और चाहते हैं कि यहोवा के साक्षियों पर पाबंदी लगा दी जाए।”—असोसिएटेड प्रेस, 25 जून, 1999.

^ ताज्जुब की बात है कि दस साल पहले इसी तारीख को सोवियत सरकार ने कबूल किया था कि उन्होंने यहोवा के साक्षियों को धर्म के नाम पर बहुत सताया।

^ उस पाबंदी की वजह से मॉस्को की मंडलियों को (सन्‌ 1993 में) मिली कानूनी मान्यता रद्द हो गयी। विरोधियों ने सोचा कि इससे साक्षियों का प्रचार काम बंद हो जाएगा।

^ मगर रूस ने साक्षियों के खिलाफ फिर से ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ में मुकद्दमा चलाए जाने की अपील की। लेकिन 22 नवंबर, 2010 में पाँच न्यायधीशों के ग्रैंड चैंम्बर ने उनकी अपील ठुकरा दी। और इस तरह 10 जून, 2010 को सुनाया गया फैसला आखिरी था और उस पर अमल किया जाना था।

[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]

रूसी अदालत के फैसले पर फ्रांस में क्यों विचार किया गया?

28 फरवरी, 1996 को रूस, ‘मानव अधिकारों के लिए यूरोपीय संविधान’ का हिस्सा बना। (इस संविधान को रूस में 5 मई, 1998 से लागू किया गया।) इस तरह रूसी सरकार ने अपने देश के लोगों को नीचे लिखी बातों का अधिकार दिया:

‘हर नागरिक को अपना धर्म चुनने का अधिकार है। उसे अपने घर और सार्वजनिक स्थानों पर अपना धर्म मानने की आज़ादी है, और अगर वह चाहे तो अपना धर्म बदल भी सकता है।’—धारा 9.

‘उसे अपने विचार ज़ुबानी या लिखित तौर पर कहने का, साथ ही दूसरों को जानकारी देने का अधिकार है।’—धारा 10.

‘उसे शांति से चलायी गयी सभाओं में भाग लेने का अधिकार है।’—धारा 11.

ऐसा कोई इंसान या संगठन जिसे इस संविधान की धाराओं के मुताबिक अपने देश के कानून से इंसाफ नहीं मिलता, वह अपना मुकदमा फ्रांस के स्ट्रेज़बूर्ग शहर में ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ में पेश कर सकता है। (ऊपर दी गयी तसवीर देखिए।) यह अदालत 47 देशों के न्यायाधीशों से बनी है, जो ‘मानव अधिकारों के लिए यूरोपीय संविधान’ का हिस्सा हैं। हर न्यायाधीश अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है। इस अदालत का फैसला अटल होता है। जो देश इस संविधान का हिस्सा हैं, उन्हें हर हाल में इस अदालत का फैसला मानना पड़ता है।

[पेज 8 पर बक्स]

अदालत का फैसला

साक्षियों के पक्ष में अदालत ने जो फैसले किए, उनमें से तीन पर गौर कीजिए।

साक्षियों पर लगाया एक इलज़ाम था कि वे परिवार तोड़ते हैं, जिसे अदालत ने यह कहते हुए गलत साबित किया:

“हरेक को अपना धर्म मानने की आज़ादी है, मगर जब परिवार का कोई सदस्य उस हक का आदर नहीं करता बल्कि उसके धर्म का विरोध करता है तब परिवार में फूट पड़ जाती है।”—पैरा. 111.

अदालत को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि साक्षी “अपनी बातों से दूसरों को अपने वश में कर लेते हैं।” उसने कहा:

“अदालत को ताज्जुब होता है कि [रूसी] अदालतों ने ऐसे एक भी शख्स का नाम नहीं लिया जिसने साक्षियों के वश में आकर कोई फैसला किया हो।”—पैरा. 129.

एक और आरोप लगाया गया था कि यहोवा के साक्षी खून नहीं लेते जिस वजह से उनके लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है। अदालत ने कहा:

“हरेक को खास तरह का इलाज कबूल करने या उसे ठुकराने की आज़ादी है। मिसाल के लिए ठीक जैसे हर समझदार इंसान को यह हक है कि वह ऑपरेशन कराएगा कि नहीं, उसी तरह उसे इस बात का भी हक है कि वह खून लेगा या नहीं।”—पैरा. 136.