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क्या आप यहोवा की साफ चेतावनियों पर ध्यान देंगे?

क्या आप यहोवा की साफ चेतावनियों पर ध्यान देंगे?

क्या आप यहोवा की साफ चेतावनियों पर ध्यान देंगे?

“मार्ग यही है, इसी पर चलो।”—यशा. 30:21.

1, 2. शैतान क्या करने पर तुला है और परमेश्‍वर का वचन कैसे हमारी मदद करता है?

 दिशा दिखाने के लिए सड़क पर लगाए गए गलत निशान से हम न सिर्फ रास्ता भटक सकते हैं, बल्कि वह काफी खतरनाक भी हो सकता है। मान लीजिए कि आपके दोस्त ने पहले ही आपको आगाह कर दिया कि एक दुष्ट आदमी ने जानबूझकर रास्ते पर गलत निशान लगाया है ताकि मुसाफिर परेशान हो जाएँ तो क्या आप उसकी बात पर विश्‍वास नहीं करेंगे?

2 ठीक उसी तरह हमारा दुश्‍मन शैतान भी हमें भटकाने की ताक में रहता है। (प्रका. 12:9) पिछले लेख में हमने जिन खतरों के बारे में सीखा, वे सब उसी की करतूतें हैं और वह यही चाहता है कि हम उस राह से भटक जाएँ जो हमें हमेशा की ज़िंदगी की ओर ले जाती है। (मत्ती 7:13, 14) लेकिन हम अपने प्यारे परमेश्‍वर यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं जिसने हमारा भला चाहते हुए हमें चिताया है कि हम उस ‘निशान’ से गुमराह न हों जो शैतान ने हमारे रास्ते में लगाया है। आइए अब हम शैतान के तीन और खतरों के बारे में चर्चा करें और देखें कि परमेश्‍वर का वचन कैसे हमें गुमराह होने से बचाता है। उसकी चेतावनियों को पढ़ते वक्‍त हम इस तरह कल्पना कर सकते हैं, मानो यहोवा हमारे पीछे चल रहा है और हमें सही राह दिखाते हुए कह रहा है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशा. 30:21) यहोवा की साफ चेतावनियों पर ध्यान देने से हम उसके दिखाए मार्ग पर चलने का अपना इरादा मज़बूत कर पाएँगे।

“झूठे शिक्षकों” के पीछे मत चलो

3, 4. (क) झूठे शिक्षक कैसे सूखे कुएँ की तरह हैं? (ख) झूठे शिक्षक अकसर कहाँ से आते हैं और वे क्या चाहते हैं?

3 कल्पना कीजिए कि आप बंजर रास्ते से गुज़र रहे हैं। आपको कुछ दूरी पर एक कुआँ नज़र आता है और आप अपनी प्यास बुझाने की उम्मीद से वहाँ जाते हैं। लेकिन वहाँ पहुँचकर आप देखते हैं कि कुआँ सूखा हुआ है। आपको कितनी निराशा होगी! झूठे शिक्षक उसी सूखे कुएँ की तरह होते हैं। जो भी उनके पास सच्चाई के पानी के लिए जाता है, वह बुरी तरह निराश हो जाता है। प्रेषित पौलुस और पतरस के ज़रिए यहोवा हमें झूठे शिक्षकों के बारे में आगाह करता है। (प्रेषितों 20:29, 30; 2 पतरस 2:1-3 पढ़िए।) ये झूठे शिक्षक कौन हैं? परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखीं इन प्रेषितों की बातें, झूठे शिक्षकों को पहचानने में हमारी मदद करती हैं कि वे कहाँ से आए हैं और कैसे काम करते हैं।

4 पौलुस ने इफिसुस की मंडली के प्राचीनों से कहा: “तुम्हारे ही बीच में से ऐसे आदमी उठ खड़े होंगे जो . . . टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।” पतरस ने संगी मसीहियों को लिखा: “तुम्हारे बीच भी झूठे शिक्षक आएँगे।” तो फिर ये झूठे शिक्षक कहाँ से आए? वे मंडली के बीच से ही उठ खड़े होंगे। ऐसे लोग धर्मत्यागी होते हैं। * वे क्या चाहते हैं? उन्हें सिर्फ उस संगठन को छोड़ने से तसल्ली नहीं मिलती, जिसे वे कभी प्यार करते थे, बल्कि प्रेषित पौलुस समझाता है कि उनका मकसद “चेलों को अपने पीछे खींच” लेना होता है। पौलुस यहाँ जिन चेलों की बात कर रहा है, वे उन धर्मत्यागियों के नहीं बल्कि मसीह के चेले हैं। “खूँखार भेड़िए” की तरह ये झूठे शिक्षक मंडली के भरोसेमंद सदस्यों का विश्‍वास नष्ट करने और उन्हें सच्चाई से दूर ले जाने की ताक में रहते हैं।—मत्ती 7:15; 2 तीमु. 2:18.

5. झूठे शिक्षक कौन-से तरीके इस्तेमाल करते हैं?

5 झूठे शिक्षक कैसे काम करते हैं? उनके काम करने के तरीके से धूर्तता झलकती है। धर्मत्यागी लोग “गुप्त तरीके से” भ्रष्ट विचार मंडली में ले आते हैं। तस्करों की तरह वे अपना काम चोरी-छिपे करते हैं। और जिस तरह वे चालाकी से जाली दस्तावेज़ बनाते हैं उसी तरह धर्मत्यागी अपनी “झूठी बातों” या दलीलों से अपने छली विचार इस तरह पेश करते हैं मानों वे सच हैं। वे “छल से भरी [अपनी] शिक्षाओं” को फैलाने के लिए शास्त्र की बातों को “तोड़-मरोड़कर” बताते हैं। (2 पत. 2:1, 3, 13; 3:16) साफ है कि धर्मत्यागी हमारी भलाई नहीं चाहते। अगर हम उनके रास्ते पर चलें तो यकीनन हम हमेशा की ज़िंदगी की राह से भटक जाएँगे।

6. झूठे शिक्षकों के बारे में बाइबल क्या साफ सलाह देती है?

6 हम खुद को झूठे शिक्षकों से कैसे बचा सकते हैं? इस बारे में परमेश्‍वर का वचन, बाइबल हमें साफ-साफ बताता है। (रोमियों 16:17; 2 यूहन्‍ना 9-11 पढ़िए।) वह कहता है: “उनसे कोई वास्ता न रखो।” यह बात दूसरी बाइबलों में इस तरह कही गयी है, “उनके निकट न आओ,” “उनसे दूर रहो” और “उनसे सावधान रहो।” इस प्रेरित सलाह में शक की कोई गुंजाइश नहीं है। मान लीजिए डॉक्टर आपसे कहता है कि आप ऐसे आदमी से दूर रहिए जिसे एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो दूसरों को लग सकती है। आप जानते हैं कि डॉक्टर क्या कहना चाहता है और आप उसकी बात का सख्ती से पालन करेंगे। जी हाँ, धर्मत्यागियों को “मानसिक रोग है” और वे अपनी झूठी शिक्षाओं के ज़रिए दूसरों में भी इसे फैलाने की कोशिश करते हैं। (1 तीमु. 6:3, 4) हमारा सबसे बड़ा डॉक्टर यहोवा हमें ऐसे लोगों से दूर रहने को कहता है। लेकिन क्या हमने अपने जीवन के हर पहलू में उसकी इस सलाह को मानने की ठान ली है?

7, 8. (क) झूठे शिक्षकों से हम कैसे दूर रह सकते हैं? (ख) आपने क्यों ठान लिया है कि आप झूठे शिक्षकों की बातों में कभी नहीं आएँगे?

7 झूठे शिक्षकों से हम कैसे दूर रह सकते हैं? हम न तो उन्हें अपने घर में बुलाएँगे, ना ही दुआ-सलाम करेंगे। इसके अलावा, हम उनके साहित्य पढ़ने, टीवी पर उनके कार्यक्रम देखने, इंटरनेट पर उनकी खोज करने या उनके ब्लॉग पर अपनी टिप्पणियाँ देने से भी दूर रहेंगे। हम ऐसा करने का अटल इरादा क्यों करते हैं? प्यार की वजह से। हम “सत्यवादी ईश्‍वर” से प्यार करते हैं इसलिए हम तोड़-मरोड़कर पेश की गयी ऐसी शिक्षाओं में दिलचस्पी नहीं लेते, जो परमेश्‍वर के सच्चे वचन से बिलकुल मेल नहीं खातीं। (भज. 31:5; यूह. 17:17) हम यहोवा के संगठन से भी प्यार करते हैं, जो हमें दमदार सच्चाइयाँ सिखाता है जिनमें यहोवा का नाम और उसका मतलब, धरती के लिए उसका मकसद, मृत लोगों की हालत और दोबारा जीने की आशा शामिल है। क्या आप याद कर सकते हैं कि जब आपने पहली बार इस तरह की अनमोल सच्चाइयों के बारे में जाना था, तब आपने कैसा महसूस किया था? किसी की बातों में आकर आपको यहोवा के संगठन से नाता नहीं तोड़ना चाहिए, जिसके ज़रिए आपने ये सच्चाइयाँ सीखीं।—यूह. 6:66-69.

8 झूठे शिक्षक चाहे कुछ भी कहें हम उनकी बातों में नहीं आएँगे! हम क्यों धोखा खाने और निराश होने के लिए सूखे कुएँ के पास जाएँ? इसके बजाय आइए ठान लें कि हम यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहेंगे जो बरसों से परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई से हमारी प्यास बुझाता आ रहा है। सच्चाई का यह पानी शुद्ध और ताज़गी देनेवाला है।—यशा. 55:1-3; मत्ती 24:45-47.

“झूठी कहानियों” पर कान मत लगाओ

9, 10. पौलुस ने “झूठी कहानियों” के मामले में तीमुथियुस को क्या चेतावनी दी और ऐसा कहते वक्‍त उसके मन में क्या बात रही होगी? (फुटनोट देखिए।)

9 कई बार हम आसानी से समझ जाते हैं कि सड़क पर लगे निशान में किसी ने हेरफेर की है और वह गलत रास्ता दिखा रहा है। लेकिन कई बार उसे पहचानना मुश्‍किल होता है। इसी तरह शैतान की कुछ साज़िशें भी होती हैं, जिन्हें हम आसानी से पहचान नहीं पाते। प्रेषित पौलुस ने ऐसी ही शैतानी साज़िश के बारे में बताया और वह है ‘झूठी कहानियाँ।’ (1 तीमुथियुस 1:3, 4 पढ़िए।) हम जीवन के रास्ते से भटक ना जाएँ, इसलिए ज़रूरी है कि हम झूठी कहानियों को समझें और उनसे बचकर रहें।

10 तीमुथियुस की पहली चिट्ठी में पौलुस ने झूठी कहानियों के बारे में चेतावनी दी। तीमुथियुस एक मसीही निगरान था जिस पर मंडली को शुद्ध रखने और संगी विश्‍वासियों को वफादार बने रहने में मदद देने की ज़िम्मेदारी थी। (1 तीमु. 1:18, 19) पौलुस ने यहाँ झूठी कहानियों के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया, उसका मतलब है काल्पनिक या मनगढ़ंत बातें। इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक यह शब्द “(धार्मिक) कहानी” को दर्शाता है, “जिसका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं होता।” पौलुस के मन में धर्म से जुड़ी झूठी कहानियाँ रही होंगी जो शायद काल्पनिक बातों से फैली थीं। * ऐसी कहानियों से मन में ऊल-जुलूल “सवाल उठते हैं,” जिनकी “खोजबीन के लिए” लोग काफी वक्‍त ज़ाया करते हैं। सबसे बड़ा धोखेबाज़ शैतान लोगों को सच्चाई के रास्ते से भटकाने के लिए ऐसे धार्मिक झूठ और मनगढ़ंत कहानियों का इस्तेमाल करता है। इसलिए पौलुस की सलाह एकदम साफ है: झूठी कहानियों पर कान मत दो!

11. लोगों को गुमराह करने के लिए शैतान ने कैसे चालाकी से झूठे धर्मों का इस्तेमाल किया है और कौन-सी चेतावनी हमें गुमराह होने से बचा सकती है?

11 अगर हम सावधान न रहें, तो कौन-सी झूठी कहानियाँ हमें बहका सकती हैं? ऐसी कोई भी ‘झूठी कहानी’ जिसका ताल्लुक खासकर धर्म की झूठी या काल्पनिक कहानियों से है, जिसकी वजह से एक इंसान ‘सच्चाई के लिए अपने कान बंद कर’ सकता है। (2 तीमु. 4:3, 4) शैतान जो खुद को “रौशनी देनेवाले स्वर्गदूत” की तरह पेश करता है, उसने लोगों को गुमराह करने के लिए बड़ी चालाकी से झूठे धर्म का इस्तेमाल किया है। (2 कुरिं. 11:14) मसीहियत की आड़ में चर्च के लोग त्रियेक, नरक की आग और अमर आत्मा जैसी शिक्षाएँ फैलाते हैं जो पूरी तरह मनगढ़ंत कहानियों पर आधारित हैं। वे क्रिसमस और ईस्टर जैसे त्योहारों को भी बढ़ावा देते हैं, जिनमें बुराई नज़र नहीं आती, पर असल में वे झूठे धर्मों से निकले हैं। इसलिए अगर हम ‘अशुद्ध चीज़ें न छूने की’ परमेश्‍वर की चेतावनी पर ध्यान दें, तो हम कभी झूठी कहानियों से गुमराह नहीं होंगे।—2 कुरिं. 6:14-17.

12, 13. (क) शैतान कौन-से कुछ झूठ फैलाता है, मगर उनके बारे में सच्चाई क्या है? (ख) हम शैतान की झूठी कहानियों से गुमराह होने से कैसे बच सकते हैं?

12 शैतान दूसरे झूठ भी फैलाता है। अगर हम खबरदार न रहें तो हम उनके चंगुल में आ सकते हैं। कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए। आजकल पत्रिकाओं और मनोरंजन की दुनिया में अकसर यह विचार फैलाया जाता है कि सबकुछ चलता है, जो बात आपको सही लगती है वही कीजिए। इस तरह की गलत सोच परमेश्‍वर के स्तरों को ताक पर रखने का दबाव डालती है। लेकिन सच तो यह है कि हम सबको नैतिक निर्देशन की ज़रूरत है और हमारी इस ज़रूरत को सिर्फ परमेश्‍वर पूरा कर सकता है। (यिर्म. 10:23) शैतान एक और झूठ फैलाता है कि परमेश्‍वर दुनिया के मामलों में दखल नहीं देनेवाला। सिर्फ आज के लिए जीओ यह रवैया हमें परमेश्‍वर की सेवा में ‘ठंडा या निष्फल’ कर सकता है। (2 पत. 1:8) पर सच्चाई यह है कि यहोवा का दिन बड़ी तेज़ी से नज़दीक आ रहा है और हमें उसकी बाट जोहते रहनी चाहिए। (मत्ती 24:44) शैतान का तीसरा झूठ है कि यहोवा व्यक्‍तिगत तौर पर आपकी कोई परवाह नहीं करता। इस पर विश्‍वास करने से हम हिम्मत हार जाएँगे और सोचने लगेंगे कि परमेश्‍वर की नज़र में हमारी कोई अहमियत नहीं। मगर सच्चाई यह है कि यहोवा अपने उपासकों से प्यार करता है और व्यक्‍तिगत तौर पर उनकी परवाह करता है।—मत्ती 10:29-31.

13 इस शैतानी दुनिया की सोच और उसके रवैये से हमें सावधान रहने की ज़रूरत है जो दिखने में शायद खतरनाक न लगे। याद रखिए कि शैतान धोखा देने में अव्वल है। वह हमें गुमराह करने के लिए “चतुराई से गढ़ी हुई झूठी कहानियों का सहारा” लेता है। (2 पत. 1:16) लेकिन अगर हम परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सलाहों को मानेंगे तो शैतान हमें कभी नहीं भरमा सकेगा।

“शैतान के पीछे” मत चलो

14. पौलुस ने कम उम्र की कुछ विधवाओं को क्या चेतावनी दी और हमें उसके शब्द दिल में क्यों उतारने चाहिए?

14 कल्पना कीजिए कि सड़क पर यह निशान लगा है: “शैतान के पीछे चलने का रास्ता।” हममें से कौन उस रास्ते से जाना चाहेगा? लेकिन पौलुस बताता है कि हम समर्पित मसीही कई तरीकों से “भटककर शैतान के पीछे” हो सकते हैं। (1 तीमुथियुस 5:11-15 पढ़िए।) पौलुस के शब्द खासकर “कम उम्र की विधवाओं” को लिखे गए थे मगर उसका सिद्धांत हम सभी पर लागू होता है। पहली सदी की उन मसीही स्त्रियों ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि वे शैतान के पीछे चल रही हैं लेकिन उनके काम यही ज़ाहिर करते थे। हम अनजाने में भी शैतान के पीछे चलने से कैसे बच सकते हैं? आइए हम पौलुस की इस चेतावनी पर गौर करें जो उसने पीठ पीछे दूसरों की बुराई करने के बारे में दी।

15. शैतान का मकसद क्या है और पौलुस शैतान की चालों के बारे में क्या बताता है?

15 शैतान का मकसद है कि हम अपने विश्‍वास के बारे में बात न करें। वह चाहता है कि खुशखबरी का प्रचार बंद हो जाए। (प्रका. 12:17) इसलिए वह ऐसे कामों को बढ़ावा देता है जिनमें हमारा बहुत वक्‍त ज़ाया हो जाए या हमारे बीच मतभेद पैदा हो जाए। गौर कीजिए पौलुस शैतान की चालों के बारे में कैसे बताता है। सबसे पहले वह कहता है कि उन्हें “खाली रहने और . . . घूमने की आदत” पड़ गयी थी। इस तकनीकी युग में अपना और दूसरों का वक्‍त बरबाद करना बड़ा आसान है। उदाहरण के लिए लोग दूसरों को बेमतलब के या ऐसे ई-मेल भेजते हैं जिनमें सच्चाई नहीं होती। दूसरा, उन्हें “गप्पे लड़ाने की आदत” पड़ गयी थी। दूसरों की बुराई करने से उनके बारे में झूठी अफवाह फैल सकती है जिससे आपस में फूट पड़ जाती है। (नीति. 26:20) अगर एक इंसान किसी को बदनाम करने के लिए उसके बारे में झूठी बातें फैलाता है, तो चाहे उसे एहसास हो या न हो मगर वह शैतान के रास्ते पर चल रहा होता है। * तीसरा, वे “दूसरों के मामलों में दखल” देती थीं। दूसरों के ज़ाती मामलों के बारे में सुझाव देने का हमें कोई हक नहीं। इन बेकार के कामों में लगकर हम परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाने के काम से भटक सकते हैं। अगर हम यहोवा का काम करना बंद कर दें तो हम शैतान के रास्ते पर चल रहे होंगे, बीच का कोई रास्ता नहीं है।—मत्ती 12:30.

16. किस सलाह पर चलने से हम “भटककर शैतान के पीछे” नहीं होंगे?

16 जब हम बाइबल की सलाह मानेंगे तो हम “भटककर शैतान के पीछे” नहीं होंगे। पौलुस की कुछ बुद्धिमानी भरी सलाह पर गौर कीजिए। उसने कहा, “प्रभु की सेवा में व्यस्त रहने के लिए हमेशा तुम्हारे पास बहुत काम हो।” (1 कुरिं. 15:58) राज के कामों में व्यस्त रहने से हमें खाली रहने का मौका नहीं मिलेगा और ना ही हम समय बरबाद करनेवाले कामों में लगेंगे। (मत्ती 6:33) उसने यह सलाह भी दी, “हिम्मत बँधाने” वाली बातें करो। (इफि. 4:29) ठान लीजिए कि न तो आप दूसरों को बदनाम करनेवाली बातें कहेंगे और ना ही सुनेंगे। * अपने भाई-बहनों पर भरोसा रखिए और उनका आदर कीजिए। इस तरह हम ऐसी बातें कहेंगे जिनसे दूसरों की हिम्मत बँधती है ना कि टूटती है। पौलुस यह भी कहता है, “अपना यह लक्ष्य बना लो कि . . . अपने काम से काम रखो।” (1 थिस्स. 4:11) दूसरों में दिलचस्पी लीजिए लेकिन उनकी व्यक्‍तिगत ज़िंदगी में दखल मत दीजिए और उनकी इज़्ज़त बनाए रखिए। यह मत भूलिए कि कई मामलों में लोगों को अपने फैसले खुद करने होते हैं, ऐसे में अपने विचार उन पर मत थोपिए।—गला. 6:5.

17. (क) जिस रास्ते पर हमें नहीं चलना है उसके बारे में यहोवा हमें क्यों चेतावनी देता है? (ख) जिस मार्ग पर यहोवा हमें ले जाना चाहता है, उसके बारे में आपका क्या इरादा है?

17 हम वाकई यहोवा का धन्यवाद करते हैं जो हमें साफ-साफ बताता है कि हमें किस रास्ते पर नहीं चलना चाहिए! कभी मत भूलिए कि यहोवा हमसे प्यार करता है इसलिए उसने इसमें और पिछले लेख में कई चेतावनियाँ दीं। गुमराह करनेवाले ‘रास्ते के निशान’ पर चलने से हमें जो दुख और दर्द मिलता है यहोवा हमें उससे बचाना चाहता है। यहोवा हमें जिस राह से ले जाना चाहता है वह थोड़ी तंग हो सकती है मगर वह हमें सही मंज़िल तक पहुँचाएगी यानी हमेशा की ज़िंदगी तक। (मत्ती 7:14) आइए हम ठान लें कि हम यहोवा की यह सलाह मानेंगे: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।”—यशा. 30:21.

[फुटनोट]

^ “धर्मत्याग” का मतलब है सच्ची उपासना से दूर जाना, उसे छोड़ देना, बागी बन जाना।

^ उदाहरण के लिए पौलुस के समय में मौजूद तोबीत (टोबायस) की किताब में अंधविश्‍वास और जादू-टोने की ढेरों कथा-कहानियाँ इस तरह लिखी गयी हैं मानों वे सच हों। यह करीब ईसा पूर्व तीसरी सदी में लिखी गयी थी और कुछ लोग इसे बाइबल का हिस्सा मानते हैं।—इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स का खंड 1, पेज 122 देखिए।

^ “इब्‌लीस” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द, दियाबोलोस का मतलब है निंदा करनेवाला या “बदनाम करनेवाला।” यह शब्द शैतान के लिए एक और उपाधि के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, जो सबसे बड़ा निंदक है।—यूह. 8:44; प्रका. 12:9, 10.

^ “हवा में पंख उड़ाना” बक्स देखिए।

आपका क्या जवाब है?

इन आयतों में जो चेतावनियाँ दी गयी हैं, आप उन्हें कैसे अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं?

2 पतरस 2:1-3

1 तीमुथियुस 1:3, 4

1 तीमुथियुस 5:11-15

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 19 पर बक्स/तसवीरें]

हवा में पंख उड़ाना

एक यहूदी कहानी यह बात बड़ी अच्छी तरह समझाती है कि पीठ पीछे बुराई करने से दूसरों को कितना नुकसान पहुँच सकता है। यह कई तरीकों से कही गयी थी, जिसका सार कुछ इस तरह है।

एक आदमी ने गाँव के एक विद्वान के बारे में झूठी बात फैलायी। कुछ समय बाद जब इस आदमी को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह उस विद्वान पुरुष के पास गया और उसने अपने किए की माफी माँगी, और कहा कि वह उसके नाम पर लगे दाग मिटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। उस विद्वान पुरुष ने एक ख्वाहिश ज़ाहिर की। उसने उस आदमी से कहा: जाओ और पंखों से भरा हुआ एक तकिया लो और उसे काटकर उसके पंख हवा में उड़ा दो। वह आदमी इस विद्वान की बात पर ताज्जुब करता हुआ चला गया और उसकी इच्छा के मुताबिक उसने तकिया काटकर उसके पंख हवा में उड़ा दिए।

लौटकर उसने पूछा: “क्या अब आपने मुझे माफ कर दिया?”

विद्वान पुरुष ने कहा: “नहीं, पहले जाओ और जाकर सारे पंखों को इकट्ठा करो।”

“मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? उन्हें तो हवा उड़ा ले गयी।”

“जिस तरह हवा में उड़े हुए पंखों को इकट्ठा करना मुश्‍किल है, उसी तरह तुम्हारे फैलाए झूठ से हुए नुकसान की भरपायी करना मुश्‍किल है।”

सबक साफ है कि जिस तरह मुँह से निकले शब्द वापस नहीं आते, उसी तरह किसी को बदनाम करके उससे हुए नुकसान को ठीक करना नामुमकिन होता है। दूसरों के बारे में झूठी बातें फैलाने से पहले यह याद रखना बुद्धिमानी होगा कि हमारे शब्द उन पंखों की तरह होते हैं, जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है।

[पेज 16 पर तसवीर]

किस तरह कुछ लोग धर्मत्यागियों को अपने घर में बुला सकते हैं?