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परमेश्‍वर का विश्राम—क्या आप उसमें दाखिल हुए हैं?

परमेश्‍वर का विश्राम—क्या आप उसमें दाखिल हुए हैं?

परमेश्‍वर का विश्राम—क्या आप उसमें दाखिल हुए हैं?

“परमेश्‍वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है।”—इब्रा. 4:12.

1. परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल होने का एक तरीका क्या है, लेकिन ऐसा करना क्यों मुश्‍किल है?

 पिछले लेख में हमने देखा कि अगर हम परमेश्‍वर के मकसद के मुताबिक काम करें, तो हम उसके विश्राम में दाखिल हो सकेंगे। यह कहना आसान है, मगर करना उतना ही मुश्‍किल। उदाहरण के लिए जब हम किसी चीज़ को पसंद करते हैं और यहोवा उसे ना-मंज़ूर करता है तब हम शायद तुरंत यहोवा की बात का विरोध करें। हमारा यह रवैया दिखाएगा कि हमें सुधार करने और उसकी “मानने के लिए तैयार” रहने की ज़रूरत है। (याकू. 3:17) इस लेख में हम ऐसे ही कुछ मामलों पर चर्चा करेंगे, और देखेंगे कि क्या हम यहोवा के मकसद या उसकी इच्छा के मुताबिक चलने को तैयार रहते हैं या नहीं।

2, 3. यहोवा की नज़र में मनभावना बनने के लिए हमें किस तरह मेहनत करने की ज़रूरत है?

2 क्या आप बाइबल पर आधारित सलाह को खुशी-खुशी कबूल करते हैं? बाइबल कहती है, परमेश्‍वर चाहता है कि “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं” इकट्ठी की जाएँ। (हाग्गै 2:7) सच्चाई सीखते वक्‍त हममें से ज़्यादातर लोग परमेश्‍वर की नज़र में मनभावनी वस्तुएँ नहीं थे। लेकिन परमेश्‍वर और उसके अज़ीज़ बेटे के लिए प्यार ने हमें अपने रवैये और आदतों में बदलाव करने के लिए उकसाया ताकि हम परमेश्‍वर को पूरी तरह से खुश कर सकें। बहुत प्रार्थना और मेहनत के बाद आखिरकार वह खूबसूरत दिन आया जब हमने अपने आपको मसीही बपतिस्मे के लिए पेश किया।कुलुस्सियों 1:9, 10 पढ़िए।

3 मगर असिद्धता के खिलाफ हमारा युद्ध बपतिस्मे के दिन खत्म नहीं हुआ। यह युद्ध चल रहा है और तब तक यह चलता रहेगा, जब तक हम असिद्ध हैं। लेकिन हमें इस बात का भी यकीन है कि अगर हम अपनी कमियाँ सुधारने की कोशिश करते रहें और परमेश्‍वर की नज़र में मनभावना बनने की ठान लें, तो यहोवा ज़रूर हमारी मेहनत पर आशीष देगा।

जब ताड़ना की ज़रूरत पड़ती है

4. हमें किन तीन तरीकों से बाइबल की सलाह मिल सकती है?

4 सबसे पहले हमें अपनी कमियों को जानने की ज़रूरत हैं, क्योंकि तभी हम उन्हें सुधार पाएँगे। राज-घर में हमारे दिल को झकझोर देनेवाला भाषण या हमारे साहित्य में हमें सोचने पर मजबूर करनेवाला लेख हमारी गंभीर कमियों को उजागर कर सकता है। लेकिन अगर हम भाषण या साहित्य में दी गयी ताड़ना को लागू करने से चूक जाएँ, तब यहोवा किसी संगी मसीही के ज़रिए हमारा ध्यान हमारी कमियों पर दिला सकता है।गलातियों 6:1 पढ़िए।

5. ताड़ना मिलने पर हम कई बार कैसा रवैया दिखाते हैं? समझाइए कि मसीही चरवाहों के लिए क्यों ज़रूरी है कि वे ताड़ना देकर हमारी मदद करते रहें।

5 जब असिद्ध इंसान ताड़ना देते हैं तब हमें अच्छा नहीं लगता, फिर चाहे वह कितनी ही समझ-बूझ या प्यार से दी गयी हो। फिर भी गलातियों 6:1 के मुताबिक यहोवा आध्यात्मिक तौर पर योग्य भाइयों को यह आज्ञा देता है कि वे हमें “कोमलता की भावना के साथ” सुधारने की “कोशिश” करें। अगर हम उनकी ताड़ना सुनेंगे तो हम परमेश्‍वर की नज़र में और भी मनभावने बन जाएँगे। अकसर जब हम प्रार्थना करते हैं तो हम बेझिझक खुद को पापी मानते हैं। लेकिन जब हमारी कोई कमी उजागर की जाती है, तो हम सफाई देने लगते हैं, समस्या की गंभीरता को कम करने लगते हैं, ताड़ना देनेवाले की नीयत पर शक करते हैं या उसके ताड़ना देने के तरीके की नुक्‍ताचीनी करने लगते हैं। (2 राजा 5:11) कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हमें बहुत पसंद होती हैं, मगर यहोवा को नहीं। ऐसे नाज़ुक मामलों पर जब हमें ताड़ना दी जाती है, जैसे कि परिवार के किसी सदस्य के गलत काम के बारे में, हमारे पहनावे, बनाव-श्रृंगार, साफ-सफाई या मनोरंजन के बारे में तो हम फौरन गुस्सा हो जाते हैं, और उल्टा-सीधा कह बैठते हैं। इससे हम तो दुखी होते ही हैं, साथ ही ताड़ना देनेवाले को भी दुख पहुँचाते हैं। लेकिन बाद में जब हम शांति से इस बारे में सोचते हैं तब अकसर लगता है कि हमें दी गयी ताड़ना सही थी।

6. परमेश्‍वर का वचन हमारे “दिल के विचारों और इरादों” को कैसे उजागर करता है?

6 इस लेख की मुख्य आयत हमें याद दिलाती है कि परमेश्‍वर का वचन “ज़बरदस्त ताकत रखता है।” जी हाँ, परमेश्‍वर के वचन में हमारी ज़िंदगी बदलने की ताकत है। जिस तरह बपतिस्मा लेने से पहले बाइबल ने हम पर ज़बरदस्त असर किया था, उसी तरह बपतिस्मे के बाद भी वह हमारी मदद कर सकती है। पौलुस ने इब्रानियों को यह भी लिखा कि परमेश्‍वर का वचन “इंसान के बाहरी रूप को उसके अंदर के इंसान से अलग करता है, और हड्डियों को गूदे तक आर-पार चीरकर अलग कर देता है और दिल के विचारों और इरादों को जाँच सकता है।” (इब्रा. 4:12) तो पौलुस यहाँ कहना चाहता था कि जब हम बाइबल से समझ जाते हैं कि हमारे लिए परमेश्‍वर की मरज़ी क्या है, तब हम जैसा रवैया दिखाते हैं, उससे ज़ाहिर होगा कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं। क्या हम अंदर से वैसे ही इंसान हैं, जैसे बाहर से दिखायी देते हैं? (मत्ती 23:27, 28 पढ़िए।) गौर कीजिए कि आगे दिए गए मामलों में आप कैसा रवैया दिखाएँगे।

यहोवा के संगठन के साथ-साथ चलिए

7, 8. (क) किस वजह से कुछ यहूदी मसीही मूसा के नियम की कुछ बातों को छोड़ना नहीं चाहते थे? (ख) हम कैसे कह सकते हैं कि वे यहोवा के मकसद के खिलाफ काम कर रहे थे?

7 हममें से कइयों को नीतिवचन 4:18 मुँह-ज़बानी याद होगा कि “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” इसका मतलब है कि हमारे चाल-चलन और परमेश्‍वर के मकसद के बारे में हमारी समझ दिन-पर-दिन बढ़ती जाएगी।

8 जैसा कि हमने पिछले लेख में देखा, यीशु की मौत के बाद बहुत-से यहूदी मसीहियों को मूसा के कानून को छोड़ना मुश्‍किल लग रहा था। (प्रेषि. 21:20) हालाँकि पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से मसीहियों को दलीलें देकर समझाया कि अब वे मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं, फिर भी उन्होंने उसकी बात नहीं मानी। (कुलु. 2:13-15) उन्होंने शायद सोचा हो कि अगर वे मूसा के कुछ नियमों को मानते रहेंगे तो यहूदियों के ज़ुल्मों से बच पाएँगे। बात चाहे जो हो, पौलुस ने उन्हें साफ-साफ कह दिया कि अगर वे परमेश्‍वर के ज़ाहिर किए मकसद के खिलाफ काम करेंगे, तो वे उसके विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाएँगे। * (इब्रा. 4:1, 2, 6, इब्रानियों 4:11 पढ़िए।) परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने के लिए उन्हें इस सच्चाई को कबूल करना था कि अब परमेश्‍वर अपने लोगों को दूसरी दिशा में ले जा रहा है।

9. जब बाइबल के बारे में हमारी सोच सुधारी जाती है तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए?

9 आज बाइबल की कुछ शिक्षाओं में फेरबदल की गयी है। इससे हमें परेशान नहीं होना चाहिए बल्कि विश्‍वासयोग्य दास पर हमारा भरोसा और बढ़ना चाहिए। जब “दास” वर्ग के प्रतिनिधि समझते हैं कि किसी विषय के बारे में हमारी समझ को सुधारने की ज़रूरत है तो वे तुरंत फेरबदल करते हैं। दास वर्ग परमेश्‍वर के मकसद के साथ-साथ चलने में ज़्यादा दिलचस्पी रखता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि फेरबदल करने पर लोग नुक्‍ताचीनी करेंगे। जब बाइबल के बारे में हमारी सोच सुधारी जाती है तो हम कैसा रवैया दिखाते हैं?लूका 5:39 पढ़िए।

10, 11. जब नए तरीके से प्रचार करने के लिए कहा गया तब लोगों ने जैसा रवैया दिखाया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

10 आइए एक और उदाहरण पर गौर करें। उन्‍नीसवीं सदी के आखिर और बीसवीं सदी की शुरूआत में कुछ बाइबल विद्यार्थी जो भाषण देने में माहिर थे, उन्हें लगता था कि लोगों को बेहतरीन भाषण देकर वे प्रचार काम करने की अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं। उन्हें भाषण देने और लोगों की वाह-वाही सुनने में बहुत मज़ा आता था। लेकिन कुछ समय बाद यह साफ हो गया कि यहोवा चाहता है, लोग अलग-अलग तरीकों से प्रचार काम में हिस्सा लें, जिसमें घर-घर प्रचार करना शामिल है। कुछ बेहतरीन वक्‍ताओं ने इस नए तरीके को अपनाने से साफ इनकार कर दिया। बाहर से वे बड़े आध्यात्मिक नज़र आते थे, मानों वे पूरी तरह से प्रभु को समर्पित हैं। लेकिन जब प्रचार के बारे में परमेश्‍वर का मकसद ज़ाहिर हुआ तो उनकी असल सोच और इरादे उजागर हो गए। उनके बारे में यहोवा ने कैसा महसूस किया? उसने ऐसे लोगों को आशीष नहीं दी। आखिरकार वे संगठन छोड़कर चले गए।—मत्ती 10:1-6; प्रेषि. 5:42; 20:20.

11 ऐसा नहीं है कि संगठन के वफादार भाई-बहनों के लिए प्रचार करना आसान था। बहुत-से लोगों को खासकर शुरूआत में यह काम बहुत चुनौती-भरा लगा। लेकिन वे आज्ञाकारी रहे। समय के चलते वे अपनी इस चुनौती को पार कर पाए और यहोवा ने उन्हें खूब आशीष दी। जब आपको उस तरीके से प्रचार करने के लिए कहा जाता है जो शायद आपके लिए इतना आसान नहीं होता, तब आप कैसा रवैया दिखाते हैं? क्या आप नए तरीकों को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं?

जब हमारा कोई अज़ीज़ यहोवा को छोड़ देता है

12, 13. (क) पश्‍चाताप न दिखानेवाले इंसान का बहिष्कार करने के पीछे यहोवा का मकसद क्या है? (ख) कुछ मसीही माता-पिता किस परीक्षा का सामना करते हैं और किस वजह से उस परीक्षा को सहना मुश्‍किल हो जाता है?

12 बेशक हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि परमेश्‍वर को खुश करने के लिए हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध रहना चाहिए। (तीतुस 2:14 पढ़िए।) कई बार शुद्धता के मामले में हमारी वफादारी परखी जा सकती है। मान लीजिए परमेश्‍वर का भय माननेवाले जोड़े का इकलौता बेटा सच्चाई छोड़ देता है। हो सकता है, इस जवान ने “चंद दिनों का सुख भोगने” के लिए यहोवा और अपने माता-पिता के साथ अपने रिश्‍ते की बलि चढ़ा दी, जिस वजह से उसे मंडली से बहिष्कृत कर दिया गया।—इब्रा. 11:25.

13 ऐसे माता-पिता पूरी तरह टूट जाते हैं! वे बहिष्कार के बारे में बाइबल का नज़रिया जानते हैं, जो कहती है कि “ऐसे हर किसी के साथ मेल-जोल रखना बंद कर दो, जो भाई कहलाते हुए भी व्यभिचारी है या लालची है या मूर्तिपूजा करता है या गाली-गलौज करता है या पियक्कड़ है या दूसरों का धन ऐंठता है। यहाँ तक कि ऐसे आदमी के साथ खाना तक न खाना।” (1 कुरिं. 5:11, 13) वे यह भी समझते हैं कि इस आयत में शब्द “हर किसी” में परिवार का वह सदस्य भी शामिल है जो उनके साथ नहीं रहता। लेकिन वे अपने बच्चे से इतना प्यार करते हैं कि वे खुद को रोक नहीं पाते! और इस तरह तर्क करने लगते हैं कि ‘अगर हम अपने बेटे से बात नहीं करेंगे तो यहोवा के पास लौटने में उसकी मदद कैसे करेंगे? उसके साथ लगातार मेल-जोल रखने से ही हम उसकी अच्छी तरह मदद कर पाएँगे!’ *

14, 15. बहिष्कृत बच्चों के माता-पिताओं को कौन-सा फैसला करना चाहिए?

14 हम समझते हैं कि ऐसे माता-पिताओं पर क्या गुज़रती है। लेकिन चुनाव तो बेटे के हाथ में था। उसने अपने माता-पिता और दूसरे भाई-बहनों की संगति के बजाय दुनिया के तौर-तरीके चुने। माता-पिता भी कुछ नहीं कर सकते थे। वे लाचार थे!

15 लेकिन अब माता-पिता क्या करेंगे? क्या वे यहोवा के दिए गए साफ निर्देशनों का पालन करेंगे? या फिर अपने बहिष्कृत बेटे के साथ मेल-जोल बनाए रखेंगे और सफाई देंगे कि यह मेल-जोल सिर्फ “पारिवारिक बातचीत” तक ही सीमित है? लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले माता-पिताओं को सोच लेना चाहिए कि इसके बारे में यहोवा कैसा महसूस करेगा। यहोवा का मकसद है, संगठन को शुद्ध बनाए रखना और जहाँ तक संभव हो पापी को सही मार्ग पर लाना। मसीही माता-पिता कैसे इस मकसद में अपनी भूमिका निभा सकते हैं?

16, 17. हारून के उदाहरण पर मनन करके हम क्या सीख सकते हैं?

16 मूसा के भाई हारून ने अपने दो बेटों के मामले में एक मुश्‍किल परिस्थिति का सामना किया। ज़रा सोचिए उस वक्‍त हारून पर क्या बीती होगी, जब उसे पता चला कि परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़कर उसके दो बेटों, नादाब और अबीहू ने धूप चढ़ाई जिसकी वजह से यहोवा ने उन्हें नाश कर दिया। अब हारून का तो उनके साथ मेल-जोल रखना नामुमकिन था। लेकिन यहाँ हालात की कुछ और माँग थी। यहोवा ने हारून और उसके वफादार बेटों से कहा: “तुम लोग [मातम मनाते हुए] अपने सिरों के बाल मत बिखराओ, और न अपने वस्त्रों को फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ, और सारी मण्डली पर [यहोवा का] क्रोध भड़क उठे।” (लैव्य. 10:1-6) सबक साफ है। हमें परमेश्‍वर के रास्ते पर न चलनेवाले परिवार के सदस्यों से ज़्यादा यहोवा से प्यार करना चाहिए।

17 आज जो लोग परमेश्‍वर के नियम तोड़ते हैं, उन्हें यहोवा तुरंत नाश नहीं कर देता। वह प्यार से उन्हें मौका देता है ताकि वे अपने अधर्मी कामों से पश्‍चाताप करें। अगर माता-पिता पश्‍चाताप न दिखानेवाले अपने बच्चे से मेल-जोल कायम रखते हैं तो यहोवा को कैसे लगेगा? क्या ऐसा करके माता-पिता परमेश्‍वर को नहीं परख रहे होंगे?

18, 19. बहिष्कार किए जाने के बारे में अगर परिवार के सदस्य यहोवा के निर्देशनों को मानते हैं तो इससे क्या आशीषें मिलती हैं?

18 जो लोग पहले बहिष्कृत हो चुके थे, वे मानते हैं कि उन्हें सही रास्ते पर आने में मदद इसलिए मिली क्योंकि उनके परिवार के सदस्यों और दोस्तों ने उनसे कोई नाता न रखने की ठान ली थी। एक जवान स्त्री को बहाल करने की सिफारिश करते समय एक प्राचीन ने लिखा, यह स्त्री अपनी ज़िंदगी फिर से शुद्ध कर सकी “और उसकी एक बड़ी वजह यह थी कि उसके सगे भाई ने बहिष्कार के इंतज़ाम के लिए कदर दिखायी।” उस स्त्री ने कहा: “मेरा भाई जिस तरह वफादारी से बाइबल के निर्देशनों पर चलता रहा, उसे देखकर मुझमें वापस आने की चाहत जागी।”

19 इससे हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं? यही कि हमें अपने उस असिद्ध रवैये से लड़ना होगा, जो हमें बाइबल की सलाहों के खिलाफ जाने के लिए उकसाता है। हमें इस बात का पूरा यकीन रखना होगा कि अपनी समस्याएँ परमेश्‍वर के कहे मुताबिक सुलझाना ही सबसे अच्छा होता है।

“परमेश्‍वर का वचन जीवित है”

20. किन दो तरीकों से इब्रानियों 4:12 लागू किया जा सकता है? (फुटनोट देखिए।)

20 जब पौलुस ने लिखा कि “परमेश्‍वर का वचन जीवित है” तो उस वक्‍त वह परमेश्‍वर के लिखित वचन बाइबल के बारे में नहीं कह रहा था। * संदर्भ दिखाता है कि वह परमेश्‍वर के वादे की ओर इशारा कर रहा था। पौलुस का मतलब था कि परमेश्‍वर ऐसा नहीं है कि पहले तो वादा करे और फिर भूल जाए। यहोवा इस बात को अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए पुख्ता करता है: “मेरा वचन . . . व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु . . . जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशा. 55:11) इसलिए जब कोई बात उतनी जल्दी नहीं होती जितना कि हम चाहते है, तो हमें बेचैन होने की ज़रूरत नहीं। याद रखिए, अपने मकसद को अंजाम तक पहुँचाने के लिए यहोवा “काम करता रहता” है।—यूह. 5:17.

21. “बड़ी भीड़” के वफादार सदस्यों को इब्रानियों 4:12 से कैसे दिलासा मिल सकता है?

21 “बड़ी भीड़” के वफादार सदस्य बरसों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। (प्रका. 7:9) बहुत-से लोगों ने उम्मीद नहीं की थी कि वे इस व्यवस्था में बूढ़े भी होंगे। लेकिन फिर भी वे निराश नहीं हुए। (भज. 92:14) वे जानते हैं कि यहोवा का वादा सच्चा है और वह उसे पूरा करने के लिए काम भी कर रहा है। यहोवा को अपना मकसद बहुत प्यारा है, इसलिए जब हम उसके मकसद को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, तो उसे बड़ी खुशी होती है। इस सातवें दिन में यहोवा विश्राम कर रहा है और वह जानता है कि उसका मकसद ज़रूर पूरा होगा और समूह के तौर पर उसके लोग उसके मकसद का साथ देंगे। लेकिन आपके बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या आप परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल हो चुके हैं?

[फुटनोट]

^ बहुत-से यहूदी धर्म-गुरु बड़ी बारीकी से मूसा का कानून मानते थे लेकिन जब मसीहा आया तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया। वे परमेश्‍वर के मकसद के खिलाफ हो गए।

^ आज परमेश्‍वर हमसे अपने लिखित वचन के ज़रिए बात करता है जिसमें हमारी ज़िंदगी बदलने की ताकत है। इसलिए इब्रानियों 4:12 में लिखे पौलुस के शब्द बाइबल पर भी लागू किए जा सकते हैं।

मकसद को ध्यान में रखिए

• आज परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल होने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

• बाइबल की सलाह खुशी-खुशी मानने और परमेश्‍वर के मकसद के बीच क्या नाता है?

• किन हालात में बाइबल के निर्देशन कबूल करना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है, लेकिन उन्हें मानना क्यों ज़रूरी है?

• किन दो तरीकों से इब्रानियों 4:12 लागू किया जा सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 31 पर तसवीर]

माता-पिता पूरी तरह टूट जाते हैं!