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शांति बनाए रखो

शांति बनाए रखो

शांति बनाए रखो

“आओ हम उन बातों में लगे रहें जिनसे शांति कायम होती है।”—रोमि. 14:19.

1, 2. यहोवा के साक्षियों के बीच शांति क्यों पायी जाती है?

 इस दुनिया में सही मायने में शांति पाना बहुत मुश्‍किल है। यहाँ तक कि एक ही देश और भाषा के लोग धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक तौर पर बँटे हुए हैं। इसके विपरीत यहोवा के लोगों में एकता पायी जाती है, जबकि वे अलग-अलग “राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं से” आए हैं।—प्रका. 7:9.

2 हमारे बीच जो शांति पायी जाती है वह इत्तफाक से नहीं आयी बल्कि यह इसलिए है क्योंकि हम “परमेश्‍वर के साथ शांति के रिश्‍ते” का आनंद उठाते हैं। (रोमि. 5:1) यह रिश्‍ता उसके बेटे पर विश्‍वास करने से मुमकिन हुआ है जिसने हमारे पापों को ढाँपने के लिए अपना लहू बहाया। (इफि. 1:7) इसके अलावा सच्चा परमेश्‍वर अपने वफादार सेवकों को पवित्र शक्‍ति देता है जिसके फल का एक पहलू है, शांति। (गला. 5:22) हमारे बीच शांति बने रहने का एक और कारण यह है कि हम “दुनिया के नहीं” हैं। (यूह. 15:19) हम राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं। “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया” बनाने की वजह से हम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय युद्धों में हिस्सा नहीं लेते।—यशा. 2:4.

3. हम जिस शांति का आनंद उठाते हैं उससे हमें क्या बढ़ावा मिलता है और इस लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

3 हम अपने बीच शांति का आनंद उठा सकते हैं। लेकिन उसमें अपने भाइयों को नुकसान न पहुँचाने के अलावा कुछ और भी शामिल है। हम “एक-दूसरे से प्यार” करते हैं, फिर चाहे हमारी मंडली के लोग अलग-अलग जाति और भाषा के क्यों न हों। (यूह. 15:17) यही नहीं, हमारी शांति हमें बढ़ावा देती है कि हम “सबके साथ भलाई करें, मगर खासकर उनके साथ जो विश्‍वास में हमारे भाई-बहन हैं।” (गला. 6:10) हम भाई-बहनों के साथ जिस शांति का आनंद उठाते हैं, हमें उसकी रक्षा करनी चाहिए क्योंकि वह अनमोल है। तो फिर आइए इस बारे में गौर करें कि हम मंडली में शांति कैसे बनाए रख सकते हैं?

जब हम ठोकर खाते हैं

4. अगर हमने किसी भाई को ठेस पहुँचायी है, तो शांति बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

4 चेले याकूब ने लिखा: “हम सब कई बार गलती करते हैं। अगर कोई बोलने में गलती नहीं करता, तो वह सिद्ध इंसान है।” (याकू. 3:2) इसलिए भाई-बहनों के बीच मतभेद या गलतफहमी होना लाज़िमी है। (फिलि. 4:2, 3) फिर भी मंडली की शांति में खलल डाले बिना भाई-बहनों की समस्याएँ सुलझायी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए इस सलाह पर गौर कीजिए जो तब लागू की जा सकती है जब हमें एहसास होता है कि हमने किसी को ठेस पहुँचायी है।मत्ती 5:23, 24 पढ़िए।

5. जब कोई हमारे खिलाफ गलती करता है तो हम कैसे शांति बनाए रख सकते हैं?

5 अगर किसी ने हमारे खिलाफ कोई मामूली गलती की है तब क्या किया जा सकता है? क्या हम यह उम्मीद करेंगे कि वह हमारे पास आए और हमसे माफी माँगे? 1 कुरिंथियों 13:5 कहता है: “[प्यार] चोट का हिसाब नहीं रखता।” जब हमें कोई ठेस पहुँचाता है तो हम ‘चोट का हिसाब नहीं रखते’ यानी उसे माफ करने और भूल जाने के ज़रिए शांति बनाए रखते हैं। (कुलुस्सियों 3:13 पढ़िए।) जी हाँ, हम रोज़मर्रा ज़िंदगी के छोटे-मोटे मतभेदों को इस तरह सुलझा सकते हैं क्योंकि इससे भाई-बहनों के साथ प्यार-भरा रिश्‍ता बना रहता है और हमें मन की शांति मिलती है। एक नीतिवचन इस तरह कहता है: “अपराध को भुलाना . . . सोहता है।”—नीति. 19:11.

6. जब किसी की गलती को नज़रअंदाज़ करना मुश्‍किल होता है तब क्या किया जा सकता है?

6 लेकिन जब कोई हमें इस कदर ठेस पहुँचाता है कि उसे नज़रअंदाज़ करना मुश्‍किल होता है, तब क्या किया जा सकता है? उन लोगों में बात फैलाना समझदारी नहीं जो सिर्फ चटकारे लेकर सुनते हैं। इससे मंडली की शांति भंग होती है। इस तरह के मामलों को शांति से निपटाने के लिए क्या किया जा सकता है? मत्ती 18:15 कहता है: “अगर तेरा भाई कोई पाप करता है, तो जा और अकेले में जब सिर्फ तू और वह हो, उसकी गलती उसे बता दे। अगर वह तेरी सुने, तो तू ने अपने भाई को पा लिया है।” हालाँकि मत्ती 18:15-17 में बतायी बात गंभीर पाप के मामले में लागू होती है, मगर आयत 15 में दिया सिद्धांत हमें बढ़ावा देता है कि हम गलती करनेवाले से अकेले में बात करें और सुलह करने की कोशिश करें। *

7. हमें झगड़े सुलझाने के लिए क्यों तुरंत कदम उठाना चाहिए?

7 प्रेषित पौलुस ने लिखा: “अगर तुम्हें क्रोध आए, तो भी पाप मत करो। सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा बना न रहे, न ही शैतान को मौका दो।” (इफि. 4:26, 27) यीशु ने कहा: “जो तेरे खिलाफ मुकद्दमा दायर करने जा रहा हो, उसके साथ तू रास्ते में ही जल्द-से-जल्द सुलह कर ले।” (मत्ती 5:25) इस सलाह के मुताबिक जल्द-से-जल्द सुलह करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि ऐसा न करने पर बात इतनी बिगड़ सकती है, जैसे किसी घाव का इलाज न करने पर वह सड़ जाता है। इसलिए आइए हम घमंड, जलन या रुपए-पैसे से ज़्यादा लगाव न रखें, वरना मन-मुटाव शुरू होने पर मामले को तुरंत सुलझाना मुश्‍किल हो जाएगा।—याकू. 4:1-6.

जब मतभेद में कई लोग शामिल हों

8, 9. (क) पहली सदी की रोम की मंडली में क्या मतभेद हो गया था? (ख) उस मतभेद के बारे में पौलुस ने क्या ताड़ना दी?

8 कभी-कभी मंडली में जब मतभेद होते हैं, तो उसमें कई भाई-बहन शामिल होते हैं। ऐसा ही रोम की मंडली में भी हुआ जिसे पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से खत लिखा। वहाँ यहूदियों और गैर-यहूदियों में मतभेद हो गया था। मंडली के कुछ गैर-यहूदी सदस्य, मसीही यहूदियों को नीचा दिखा रहे थे, जिनका ज़मीर कमज़ोर था यानी जो खाने के मामले में सख्ती बरत रहे थे। ये लोग निजी मामलों पर गलत तरीके से दूसरों का न्याय कर रहे थे। उस मंडली को पौलुस ने क्या सलाह दी?—रोमि. 14:1-6.

9 पौलुस ने दोनों ही तरह के लोगों को ताड़ना दी। जो यह समझते थे कि वे मूसा के नियम के अधीन नहीं हैं उन्हें पौलुस ने ताड़ना दी कि वे भाई-बहनों को नीचा न दिखाएँ। (रोमि. 14:2, 10) ऐसा करके वे उन संगी विश्‍वासियों के लिए ठोकर का कारण बनते, जिन्हें नियम के मुताबिक मना की हुई चीज़ें खाना अब भी घिनौना लगता था। पौलुस ने उन्हें फटकारा: “खाने की खातिर, परमेश्‍वर के काम को बरबाद मत करो।” फिर उसने कहा: “अच्छा तो यह है कि तू न माँस खाए, न दाख-मदिरा पीए, न ही ऐसा कुछ करे जिससे तेरे भाई को ठोकर लगे।” (रोमि. 14:14, 15, 20, 21) दूसरी तरफ पौलुस ने उन यहूदी मसीहियों को भी ताड़ना दी जिनका विवेक बहुत सख्त था। उसने कहा कि उन्हें ऐसे लोगों को अविश्‍वासी नहीं कहना चाहिए, जो खुला मन रखते हैं। (रोमि. 14:13) उसने कहा: “कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे।” (रोमि. 12:3) इन दोनों समूहों को ताड़ना देने के बाद पौलुस ने लिखा: “आओ हम उन बातों में लगे रहें जिनसे शांति कायम होती है और एक-दूसरे का हौसला मज़बूत होता है।”—रोमि. 14:19.

10. पहली सदी की रोम की मंडली की तरह आज भी मतभेदों को सुलझाने के लिए क्या करने की ज़रूरत है?

10 हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि रोम की मंडली ने पौलुस की ताड़ना सुनी और ज़रूरी सुधार किए। उसी तरह, जब संगी मसीहियों में मतभेद हो जाते हैं तो उन्हें शास्त्र की सलाह को नम्रता से कबूल करना चाहिए और झगड़ा प्यार से सुलझाना चाहिए। रोम की मंडली की तरह आज भी “आपस में शांति बनाए” रखने के लिए दोनों समूहों को बदलाव करने की ज़रूरत पड़ सकती है।—मर. 9:50.

जब मदद के लिए पुकारा जाए

11. अगर एक मसीही किसी मतभेद के बारे में प्राचीन से बात करना चाहता है तो प्राचीन को क्या ध्यान में रखना चाहिए?

11 अगर एक मसीही का अपने रिश्‍तेदार या संगी विश्‍वासी से झगड़ा हो जाता है और वह किसी प्राचीन से बात करना चाहता है, तब क्या? नीतिवचन 21:13 कहता है: “जो कंगाल की दोहाई पर कान न दे, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी।” बेशक, एक प्राचीन को दुहाई देनेवाले की पुकार सुननी चाहिए। लेकिन एक और नीतिवचन यह भी आगाह करता है: “मुकद्दमे में जो पहिले बोलता, वही धर्मी जान पड़ता है, परन्तु पीछे दूसरा पक्षवाला आकर उसे खोज लेता है।” (नीति. 18:17) हालाँकि प्राचीन प्यार से उसकी बात सुनेगा मगर वह यह ध्यान रखेगा कि दूसरे पक्ष की सुने बिना वह कोई फैसला ना करे। उसकी सुनने के बाद प्राचीन उससे पूछेगा कि क्या उसने, उस भाई या बहन से बात की जिसकी वजह से उसे ठेस पहुँची है। प्राचीन उस मसीह को शायद यह भी बताए कि शास्त्र के आधार पर कैसे सुलह की जा सकती है।

12. शिकायत सुनने पर तुरंत न्याय करने के खतरों के उदाहरण दीजिए।

12 बाइबल के तीन उदाहरण दिखाते हैं कि एक तरफा सुनकर तुरंत फैसला करने के क्या बुरे अंजाम हो सकते हैं। पोतीपर ने अपनी पत्नी की झूठी बात पर विश्‍वास किया कि यूसुफ ने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। आग-बबूला होकर पोतीपर ने यूसुफ को जेल में डलवा दिया। (उत्प. 39:19, 20) राजा दाविद ने सीबा की बात पर भरोसा किया, जिसने कहा कि उसके मालिक मपीबोशेत ने दाविद के दुश्‍मनों का पक्ष लिया है। तब दाविद ने तुरंत कहा कि जो कुछ “मपीबोशेत का था वह सब” तेरा है। (2 शमू. 16:4; 19:25-27) राजा अर्तक्षत्र से कहा गया कि यहूदी लोग यरूशलेम की दीवार बना रहे हैं और वे फारस के साम्राज्य के खिलाफ बगावत करनेवाले हैं। राजा ने उस झूठी बात पर यकीन करके दीवार बनाने का काम रुकवा दिया। इसकी वजह से यहूदियों ने परमेश्‍वर के मंदिर का काम रोक दिया। (एज्रा 4:11-13, 23, 24) तो तीमुथियुस को दी पौलुस की सलाह के मुताबिक मसीही प्राचीन भी पूरी जानकारी लिए बिना कोई फैसला नहीं करते।1 तीमुथियुस 5:21 पढ़िए।

13, 14. (क) दूसरों के मामले सुलझाते वक्‍त हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए? (ख) संगी विश्‍वासियों का सही न्याय करने के लिए प्राचीनों के पास क्या मदद मौजूद है?

13 दोनों तरफ की सुन लेने के बाद, अगर ऐसा लगता है कि पूरी जानकारी मिल गयी है, तब भी प्राचीनों को यह सलाह याद रखनी चाहिए, “अगर कोई सोचता है कि उसे किसी बात का ज्ञान हासिल हो गया है, तो उसे अब तक ऐसा ज्ञान हासिल नहीं हुआ जैसा होना चाहिए।” (1 कुरिं. 8:2) क्या हम दो मसीहियों के बीच हुए झगड़े की हर छोटी-से-छोटी बात जानते हैं? क्या हम उन दोनों के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं? यह कितना ज़रूरी है कि प्राचीन झूठी, चतुराई से गढ़ी बातों और अफवाहों से धोखा खाकर कोई फैसला न करें। परमेश्‍वर के ठहराए गए राजा यीशु ने धर्म से न्याय किया। उसने न तो “मुंह देखा न्याय” किया और न ही “अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय” लिया। (यशा. 11:3, 4) इसके बजाय, यीशु ने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में काम किया। उसी तरह प्राचीन भी परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से न्याय कर सकते हैं।

14 संगी विश्‍वासियों का न्याय करने से पहले प्राचीनों को यहोवा की पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उसका मार्गदर्शन पाने के लिए परमेश्‍वर के वचन, साथ ही विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए मुहैया कराए साहित्य में खोजबीन करनी चाहिए।—मत्ती 24:45.

किसी भी कीमत पर शांति?

15. जब हमें किसी के पाप का पता चलता है तो उसके बारे में प्राचीनों को कब बताना चाहिए?

15 मसीही होने के नाते हमें आपस में शांति बनाए रखने की सलाह दी गयी है। लेकिन बाइबल यह भी कहती है: जो “बुद्धि स्वर्ग से मिलती है, वह सबसे पहले तो पवित्र, फिर शांति कायम करनेवाली” होती है। (याकू. 3:17) गौर कीजिए शांति कायम करना पवित्रता के बाद आता है। इसका मतलब है कि परमेश्‍वर के शुद्ध नैतिक स्तरों और उसकी धर्मी माँगों को पहली जगह देनी चाहिए। अगर एक मसीही को किसी भाई के पाप का पता चलता है, तो उसे गलती करनेवाले को बढ़ावा देना चाहिए कि वह प्राचीनों को इसके बारे में बताए। (1 कुरिं. 6:9, 10; याकू. 5:14-16) अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस मसीही को खुद जाकर प्राचीनों को खबर देनी चाहिए। लेकिन अगर वह गलती करनेवाले के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश में उसके गलत काम की खबर ना दे, तो वह भी उसके पाप का भागीदार बनता है।—लैव्य. 5:1; नीतिवचन 29:24 पढ़िए।

16. राजा योराम के साथ हुई येहू की मुलाकात से हम क्या सीख सकते हैं?

16 येहू के बारे में दिया एक वाकया बताता है कि हमें शांति से बढ़कर परमेश्‍वर की धार्मिकता को अहमियत देनी चाहिए। परमेश्‍वर ने येहू को राजा आहाब के घराने पर न्यायदंड सुनाने के लिए भेजा। अहाब और ईज़ेबेल का दुष्ट बेटा राजा योराम रथ पर सवार होकर येहू से मिलने निकला और उसने पूछा: “येहू क्या कुशल है?” येहू ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “जब तक तेरी माता ईज़ेबेल छिनालपन और टोना करती रहे, तब तक कुशल कहां?” (2 राजा 9:22) उसके बाद येहू ने तीर निकाला और योराम के सीने में बेध दिया। सिर्फ शांति की खातिर प्राचीनों को ऐसे पापियों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए जो जानबूझकर, बिना पछतावा दिखाए पाप करते रहते हैं। ऐसे पापियों को मंडली से बहिष्कृत कर देना चाहिए ताकि परमेश्‍वर के साथ शांति बनी रहे।—1 कुरिं. 5:1, 2, 11-13.

17. शांति बनाए रखने में सभी मसीहियों की क्या भूमिका होनी चाहिए?

17 भाइयों में होनेवाले ज़्यादातर झगड़े इतने गंभीर नहीं होते कि उन पर न्यायिक कार्यवाही की जाए। इसलिए कितना अच्छा होगा कि हम दूसरों की कमियों को प्यार से ढाँप दें। परमेश्‍वर का वचन कहता है: “जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।” (नीति. 17:9) इन शब्दों पर ध्यान देने से हम सबको मंडली में शांति बनाए रखने और यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने में मदद मिलेगी।—मत्ती 6:14, 15.

शांति बनाए रखनेवालों को आशीषें मिलती हैं

18, 19. शांति कायम करने की कोशिश करने के क्या फायदे होते हैं?

18 जब हम “शांति कायम” करने की कोशिश करते हैं, तो हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं। यहोवा के निर्देशनों पर चलकर हम उसके साथ एक करीबी रिश्‍ता बना पाते हैं और आध्यात्मिक फिरदौस में एकता को बढ़ावा दे पाते हैं। मंडली में शांति बनाए रखने से हमें यह देखने में मदद मिलती है कि हम उनके साथ कैसे शांति बनाए रख सकते हैं जिन्हें हम “शांति की खुशखबरी” सुनाते हैं। (इफि. 6:15) इस तरह हम “बुराई का सामना करते वक्‍त खुद को काबू में” रख पाते हैं और “सब लोगों के साथ नर्मी से पेश” आते हैं।—2 तीमु. 2:24.

19 याद रखिए कि “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग मरे हुओं में से जी उठेंगे।” (प्रेषि. 24:15) जब यह आशा हकीकत में बदलेगी तब धरती पर लाखों की तादाद में अलग-अलग जातियों, स्वभाव और शख्सियत के लोग ज़िंदा किए जाएँगे और वे उस वक्‍त से लेकर जिंदा होंगे जब “दुनिया की शुरूआत” हुई थी। (लूका 11:50, 51) दोबारा ज़िंदा हुए लोगों को शांति के बारे में सिखाना हमारे लिए कितना बड़ा सम्मान होगा! आज हमें शांति बनाए रखने की क्या बेहतरीन तालीम मिल रही है जिसका इस्तेमाल हम नयी दुनिया में करेंगे!

[फुटनोट]

^ निंदा और जालसाज़ी जैसे गंभीर पापों के बारे में बाइबल से निर्देशन जानने के लिए 15 अक्टूबर, 1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 17-22 देखिए।

आपने क्या सीखा?

• अगर हमने किसी को ठेस पहुँचायी है, तो शांति बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

• जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है तो शांति बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

• किसी एक का पक्ष लेना क्यों गलत होगा?

• बताइए कि किसी भी कीमत पर शांति कायम करना क्यों गलत होगा।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 29 पर तसवीरें]

यहोवा उनसे प्यार करता है, जो दूसरों को खुलकर माफ करते हैं