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बाइबल पढ़ाई से मुझे जीवन-भर हिम्मत मिली

बाइबल पढ़ाई से मुझे जीवन-भर हिम्मत मिली

बाइबल पढ़ाई से मुझे जीवन-भर हिम्मत मिली

मारसो लरवा की ज़ुबानी

मेरे हाथ में एक किताब थी जिसे मैं चोरी-छिपे पढ़ रहा था। आखिर क्यों? क्योंकि अगर मेरे पिता उसे देख लेते तो उसे बिलकुल पढ़ने नहीं देते। वे एक नास्तिक थे और मेरे हाथ में बाइबल थी। मैंने पढ़ा कि “आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।”

मैं पहली बार बाइबल पढ़ रहा था और उत्पत्ति की किताब के वे शुरुआती शब्द पढ़कर तो मेरे होश उड़ गए! ‘मैंने मन-ही-मन सोचा कि आज मेरी वह पहेली सुलझ गयी कि कुदरत के नियमों के बीच इतना बढ़िया तालमेल क्यों है।’ मैं खुद को बाइबल पढ़ने से रोक नहीं सका और रात आठ बजे से लेकर सुबह चार बजे तक पढ़ता रहा। यहीं से परमेश्‍वर का वचन पढ़ने की शुरूआत हुई और यह मेरी आदत बन गयी। आइए मैं आपको बताऊँ कि कैसे बाइबल पढ़ाई ने पूरी ज़िंदगी मेरी हिम्मत बढ़ायी।

“तुम्हें इसे हर रोज़ पढ़ना पड़ेगा”

मेरा जन्म 1926 में वर्मल नाम के गाँव में हुआ जो उत्तरी फ्राँस में है। यहाँ कोयले की खान थी। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान पूरे देश में कोयले की अहमियत बहुत बढ़ गयी थी। मैं कोयले की खान में काम करता था इसलिए मुझे युद्ध में भाग लेने के लिए मज़बूर नहीं किया गया। फिर भी, अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए मैं रेडियो और बिजली के बारे में सीखने लगा। तब मुझे एहसास हुआ कि वाकई कुदरत के नियमों में कमाल का तालमेल है। जब मैं 21 साल का हुआ, तब मेरे साथ पढ़नेवाले एक दोस्त ने मुझे एक बाइबल दी और कहा, “यह बहुत बढ़िया किताब है, इसे ज़रूर पढ़ना।” इससे पहले मेरे पास अपनी बाइबल नहीं थी। उसे खत्म करते-करते मुझे यकीन हो गया कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है, जिसके ज़रिए उसने मानवजाति को ज्ञान की रौशनी दी है।

मैंने सोचा कि मेरे पड़ोसी भी बाइबल पढ़कर खुश होंगे, इसलिए मैंने इसकी आठ कॉपियाँ ले लीं। लेकिन उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाया और विरोध किया। मेरे अंधविश्‍वासी रिश्‍तेदारों ने मुझे आगाह किया कि “अगर एक बार तुमने इसे पढ़ना शुरू कर दिया, तो तुम्हें इसे हर रोज़ पढ़ना पड़ेगा!” और मैंने वाकई ऐसा किया और इसके लिए मुझे कभी पछताना नहीं पड़ा। यह हमेशा के लिए मेरी आदत में शुमार हो गया।

बाइबल में मेरी दिलचस्पी देखकर, मेरे कुछ पड़ोसियों ने मुझे यहोवा के साक्षियों की कुछ किताबें दीं जो उन्हें साक्षियों से मिली थीं। एक दुनिया, एक सरकार  * (फ्रेंच भाषा में दिखायी गयी है) और इस तरह की दूसरी पुस्तिकाओं में समझाया गया था कि बाइबल क्यों बताती है कि परमेश्‍वर का राज ही मानवजाति की सारी समस्याएँ सुलझाएगा। (मत्ती 6:10) यह पढ़कर मुझमें दूसरों को इस आशा के बारे में बताने का जोश भर आया।

मेरे बचपन का दोस्त नॉएल वह पहला शख्स था जिसने मुझसे बाइबल ली। वह रोमन कैथोलिक था इसलिए उसने हम दोनों की मुलाकात एक ऐसे इंसान से करने का इंतज़ाम किया जो पादरी बनने की शिक्षा ले रहा था। मैं थोड़ा घबराया हुआ था। भजन 115:4-8 और मत्ती 23:9, 10 के हवाले पढ़कर मुझे पता चला कि परमेश्‍वर उपासना में मूर्तियों को पसंद नहीं करता और न ही यह कि हम पादरियों के लिए किसी धार्मिक उपाधि का इस्तेमाल करें। इससे मुझे अपने नए विश्‍वास की पैरवी करने की हिम्मत मिली। इसका नतीजा यह हुआ कि नॉएल ने सच्चाई कबूल कर ली और वह आज तक वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कर रहा है।

मैं अपनी बहन से भी मिलने गया। उसके पति के पास जादू-टोने की किताबें थीं और दुष्ट स्वर्गदूत उसे सता रहे थे। हालाँकि मैं पहले सोच रहा था कि शायद मैं उनकी मदद न कर पाऊँ लेकिन इब्रानियों 1:14 जैसी आयतें पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि यहोवा के स्वर्गदूत मेरे साथ हैं। जब मेरे जीजाजी ने बाइबल के सिद्धांत अपने जीवन में लागू किए और जादू-टोने से जुड़ी सारी चीज़ों को नष्ट कर दिया, तो दुष्ट स्वर्गदूतों ने उन्हें सताना छोड़ दिया। आगे चलकर मेरी बहन और जीजाजी, दोनों जोशीले साक्षी बने।

सन्‌ 1947 में आर्थर एम्यॉट नाम का एक अमरीकी साक्षी मेरे घर आया। मैं बहुत खुश था और पूछा कि साक्षियों की सभाएँ कहाँ होती हैं। उसने मुझे बताया कि यहाँ से करीब 10 किलोमीटर दूर लेवों गाँव में एक समूह है। उन दिनों इतनी साइकिलें नहीं मिलती थीं, इसलिए कई महीनों तक मुझे सभाओं के लिए पैदल आना-जाना पड़ा। फ्राँस में आठ साल से यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी थी। उस वक्‍त पूरे देश में बस 2,380 साक्षी थे और उनमें से कई पोलैंड से आए थे। पर 1 सितंबर, 1947 को फ्राँस में हमारे काम को कानूनी मान्यता मिल गयी। पैरिस के वील्ला गीबर इलाके में शाखा दफ्तर दोबारा शुरू किया गया। लेकिन फ्राँस में एक भी पायनियर नहीं था, इसलिए दिसंबर 1947 की इनफॉर्मेंट (आज हमारी राज-सेवा) में भाई-बहनों से पायनियर सेवा करने की गुज़ारिश की गयी, जिसमें उन्हें महीने में 150 घंटे करने पड़ते। (1949 में इन्हें घटाकर 100 कर दिया गया।) यूहन्‍ना 17:17 में दर्ज़ यीशु के इन शब्दों से मैं पूरी तरह सहमत था कि “[परमेश्‍वर का] वचन सच्चा है” और इन्हें मद्देनज़र रखते हुए मैंने 1948 में बपतिस्मा ले लिया और दिसंबर, 1949 से पायनियर सेवा शुरू कर दी।

जेल से दोबारा डन्कर्क

मुझे सबसे पहले आज़हों शहर भेजा गया जो दक्षिणी फ्राँस में है, लेकिन मैं वहाँ कुछ ही समय रहा। अब मैं कोयले की खान में काम नहीं करता था इसलिए मुझ पर फौज में भरती होने का दबाव डाला गया। जब मैंने इनकार किया, तो मुझे जेल भेज दिया गया। मुझे बाइबल रखने की इजाज़त नहीं थी, फिर भी किसी तरह मुझे भजन संहिता की किताब के कुछ पन्‍ने मिल गए, जिन्हें पढ़कर मुझे बड़ी हिम्मत मिलती थी। रिहा होने के बाद मुझे फैसला करना था: क्या मैं पूरे समय की सेवा करूँ या घर बसा लूँ? इस मामले में भी बाइबल से मुझे मदद मिली। मैंने फिलिप्पियों 4:11-13 में पौलुस के इन शब्दों पर मनन किया: “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्‍ति मिलती है।” मैंने फैसला कर लिया कि मैं पायनियर सेवा जारी रखूँगा। सन्‌ 1950 में मुझे डन्कर्क में सेवा करने के लिए भेजा गया, जहाँ मैं पहले भी प्रचार कर चुका था।

जब मैं वहाँ पहुँचा, तब मेरे पास कुछ नहीं था। वह शहर दूसरे विश्‍व युद्ध में बुरी तरह तबाह हो चुका था और वहाँ घर ढूँढ़ना मुश्‍किल था। मैंने एक परिवार से मिलने की सोची जिन्हें मैं सच्चाई सिखाया करता था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो उस घर की मालकिन मुझे देखकर खुश हो गयी और बोली: “अरे भाई साहब, आप रिहा हो गए! मेरे पति कहते हैं कि अगर सारे लोग आपकी तरह होते, तो यह युद्ध कभी नहीं होता।” उनके पास एक गेस्टहाउस था और उन्होंने कहा कि जब तक पर्यटक नहीं आते, मैं वहाँ रह सकता हूँ। उसी दिन आर्थर एम्यॉट के भाई ऐवन्ज़ ने कहा कि उसके पास मेरे लिए एक नौकरी है। * वह बंदरगाह पर अनुवादक का काम करता था और रात को जहाज़ पर पहरा देने के लिए उसे किसी आदमी की ज़रूरत थी। उसने मेरी मुलाकात जहाज़ के एक बड़े अफसर से करवायी। जेल से रिहा होने के बाद, मैं बहुत दुबला हो गया था। जब ऐवन्ज़ ने मेरी हालत की वजह अफसर को बतायी तो वह बोला कि मैं फ्रिज में से खाना लेकर खा सकता हूँ। उसी दिन मुझे घर, नौकरी और खाना तीनों मिल गए! मत्ती 6:25-33 में दर्ज़ यीशु के शब्दों पर मेरा भरोसा वाकई बढ़ गया।

जब पर्यटक आने लगे तब मुझे और मेरे साथी, सीमों आपॉलीनारस्की को रहने के लिए दूसरी जगह की तलाश करनी पड़ी, पर हमने ठान लिया था कि हमें यहाँ भेजा गया है, हम यहीं सेवा करेंगे। हमें अस्तबल में रहने की जगह मिली, जहाँ हम भूसे के गद्दे पर सोते थे। हम अपना सारा दिन प्रचार काम में बिताते थे जिससे हमें कई लोगों को सच्चाई में लाने का मौका मिला। हमने अस्तबल के मालिक को भी गवाही दी, और उसने भी सच्चाई कबूल की। कुछ समय बाद, डन्कर्क के अखबार में एक खबर छपी जिसमें लोगों को आगाह किया गया कि “वे यहोवा के साक्षियों से सावधान रहें जो बड़े पैमाने पर उनके इलाके में घुस आए हैं।” लेकिन डन्कर्क में मेरे और सीमों के अलावा मुट्ठी भर साक्षी ही थे! उस मुश्‍किल दौर में हमें अपनी मसीही आशा पर मनन करने और इस पर गौर करने से बहुत हौसला मिला कि यहोवा ने कैसे हमें सँभाला है। जब मैं 1952 में दूसरी जगह सेवा करने गया तब डन्कर्क में 30 प्रचारक थे, जो नियमित तौर पर प्रचार करते थे।

नयी ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार

ऑम्यों शहर में कुछ समय सेवा करने के बाद, मुझे खास पायनियर के तौर पर पैरिस में बूलोन-बीयाँकूर नाम की एक जगह में सेवा करने के लिए नियुक्‍त किया गया। मैं बहुत-से लोगों के साथ बाइबल अध्ययन करता था जिनमें से कुछ ने आगे चलकर पूरे समय की सेवा की और कुछ मिशनरी बने। गी माबीला नाम के एक नौजवान ने सच्चाई कबूल की जो बाद में सर्किट निगरान और फिर ज़िला निगरान बना। आगे चलकर उसने लूवये बेथेल में, जो पैरिस से थोड़ी दूर है छपाईखाने के निर्माण काम की निगरानी की। प्रचार में भी बाइबल की चर्चा ने मेरे मन पर गहरा असर डाला जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती थी साथ ही मेरे सिखाने की काबिलीयत और निखरी।

फिर अचानक सन्‌ 1953 में मुझे ऑलज़ॉस-लरेन में सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए नियुक्‍त किया गया। जर्मनी ने इस शहर पर सन्‌ 1871 और 1945 के बीच दो बार कब्ज़ा किया था, इसलिए वहाँ आमतौर पर जर्मन बोली जाती थी। अब मुझे थोड़ी-बहुत जर्मन भाषा सीखनी पड़ी। जब मैंने सर्किट काम शुरू किया, तब उस इलाके में कार, टीवी, या टाइपराइटर जैसी चीज़ें बहुत कम थीं और ट्राँजिस्टर रेडियो या कंप्यूटर का तो नामो-निशान नहीं था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि मेरी ज़िंदगी नीरस और बेरंग थी इसके बजाय वह खुशियों से भरी थी। उस ज़माने में ध्यान भटकानेवाली चीज़ें बहुत कम थीं इसलिए ‘अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखने’ की बाइबल की सलाह मानना कहीं आसान था।—मत्ती 6:19-22.

सन्‌ 1955 में पैरिस में एक सम्मेलन हुआ जिसका विषय था “राज की विजय।” वह मेरे लिए यादगार बन गया। वहाँ मैं ईरन कोलानस्की से मिला जो आगे चलकर मेरी पत्नी बनी। उसने मुझसे एक साल पहले पूरे समय की सेवा शुरू की थी। उसके माता-पिता पोलैंड से थे मगर फ्राँस में रहते थे और लंबे समय से जोशीले प्रचारक थे। फ्राँस में ऑडॉल्फ वेबर नाम के भाई ने उनके दिलों में सच्चाई के बीज बोए थे। वह भाई रसल का माली था और यूरोप में खुशखबरी का एलान करने आया था। सन्‌ 1956 में मैंने ईरन से शादी कर ली, जिसके बाद हम दोनों सर्किट काम में लग गए। उसने हर कदम पर मेरा साथ दिया है, जिसके लिए मैं हमेशा उसका बहुत आभारी रहूँगा!

दो साल बाद मैं हैरान रह गया, जब मुझे ज़िला निगरान के तौर पर नियुक्‍त किया गया। उस वक्‍त इतने काबिल भाई नहीं थे, इसलिए मैं सर्किट निगरान के तौर पर कुछ मंडलियों का दौरा करता रहा। वाकई उन दिनों हम बहुत व्यस्त रहते थे। हर महीने 100 घंटे प्रचार करने के अलावा, मुझे हर हफ्ते भाषण देने होते थे, तीन पुस्तक अध्ययन समूहों में जाना पड़ता था, रिकार्ड देखने होते थे और रिपोर्ट तैयार करनी होती थी। ऐसे में मुझे परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने का समय कहाँ से मिलता? मुझे एक ही उपाय सूझा, मैंने एक पुरानी बाइबल के कुछ पन्‍ने निकालकर अपने साथ रख लिए। जब भी मैं किसी का इंतज़ार कर रहा होता, तब मैं उन पन्‍नों को पढ़ता। उन पलों में मुझे आध्यात्मिक ताज़गी मिलती और परमेश्‍वर की सेवा में बने रहने का मेरा इरादा और मज़बूत होता।

सन्‌ 1967 में ईरन और मुझे बूलोन-बीयाँकूर में बेथेल परिवार का सदस्य बनने का न्यौता मिला। मुझे वहाँ सेवा विभाग में काम दिया गया और वहाँ काम करते हुए मुझे 40 से भी ज़्यादा साल हो गए हैं। मेरे काम में बाइबल सवालों के जवाब देना शामिल है जो लोग चिट्ठी लिखकर पूछते हैं। यह मेरा पसंदीदा काम है। परमेश्‍वर के वचन में खोजबीन करने और “खुशखबरी की पैरवी करने” में मुझे बहुत खुशी मिलती है। (फिलि. 1:7) सुबह चेयरमैन के तौर पर बेथेल परिवार के साथ बाइबल पर चर्चा करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। सन्‌ 1976 में मुझे फ्राँस की शाखा-समिति के सदस्य के तौर पर नियुक्‍त किया गया।

जीने की सबसे बेहतरीन राह

हालाँकि मेरे जीवन में कई मुश्‍किलें आयीं, लेकिन सबसे बड़ी मुश्‍किल का सामना मैं अब कर रहा हूँ। मैं और ईरन बूढ़े हो चुके हैं और बीमार रहते हैं, जिस वजह से हम यहोवा की सेवा पहले जितनी नहीं कर पाते। फिर भी, साथ मिलकर परमेश्‍वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने से हम अपनी आशा को बरकरार रख पाए हैं। दूसरों के साथ इस आशा को बाँटने के लिए हम अपनी मंडली के इलाके में बस से जाना पसंद करते हैं। हम दोनों ने मिलकर पूरे समय की सेवा में 120 साल गुज़ारे हैं और यह हमें उभारता है कि हम तहेदिल से उन सभी को इस राह पर चलने का बढ़ावा दें, जो खुशियों और मकसद-भरी ज़िंदगी जीना चाहते हैं। जब राजा दाविद ने भजन 37:25 लिखा तब वह ‘बूढ़ा’ हो गया था पर उसकी तरह मैंने भी ‘कभी धर्मी को त्यागा हुआ नहीं देखा है।’

जीवन-भर यहोवा ने अपने वचन के ज़रिए मेरी हिम्मत बढ़ायी है। मेरे रिश्‍तेदारों ने करीब 60 साल पहले कहा था कि बाइबल पढ़ाई ज़िंदगी-भर के लिए मेरी आदत बन जाएगी। उन्होंने बिलकुल ठीक कहा था। मैं रोज़ बाइबल पढ़ता हूँ और इसके लिए मुझे कभी पछताना नहीं पड़ा।

[फुटनोट]

^ यह पुस्तिका सन्‌ 1944 में प्रकाशित की गयी थी। अब इसकी छपाई बंद हो चुकी है।

^ ऐवन्ज़ एम्यॉट के बारे में और जानकारी के लिए 1 जनवरी, 1999 की प्रहरीदुर्ग के पेज 22 और 23 देखिए।

[पेज 5 पर तसवीर]

सीमों और मैं

[पेज 5 पर तसवीर]

मेरी पहली बाइबल ऐसी ही दिखती थी

[पेज 5 पर तसवीर]

जब मैं ज़िला निगरान के तौर पर सेवा कर रहा था

[पेज 6 पर तसवीर]

हमारी शादी के दिन

[पेज 6 पर तसवीर]

ईरन और मुझे परमेश्‍वर का वचन पढ़ना और उसका अध्ययन करना पसंद है