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यहोवा मेरा भाग है

यहोवा मेरा भाग है

यहोवा मेरा भाग है

“इस्राएलियों के . . . बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।”—गिन. 18:20.

1, 2. (क) ज़मीन के बँटवारे के मामले में लेवियों के साथ क्या हुआ? (ख) यहोवा ने लेवियों को क्या आश्‍वासन दिया?

 वादा किए हुए देश का काफी हिस्सा जीत लेने के बाद यहोशू ने चिट्ठी डालकर इसराएल के गोत्रों में ज़मीन का बँटवारा किया और इस काम में उसने महायाजक एलीआज़र और गोत्र के प्रधानों की मदद ली। (गिन. 34:13-29) लेकिन लेवियों के गोत्र को कोई ज़मीन नहीं दी जानी थी। (यहो. 14:1-5) ऐसा क्यों? क्या उन्हें भुला दिया गया था?

2 यकीनन उन्हें भुलाया नहीं गया था। हमें इसका जवाब यहोवा की उस बात से मिलता है, जो उसने लेवियों से कही, “[इसराएलियों के] बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।” (गिन. 18:20) यहोवा के ये दिलासा-भरे शब्द कि ‘मैं तेरा भाग हूँ’ कितना गहरा मतलब रखते हैं! अगर यह बात यहोवा आपसे कहता तो आप कैसा महसूस करते? आप शायद तुरंत कहते, ‘मैं कहाँ सर्वशक्‍तिमान से ऐसा दिलासा पाने के योग्य हूँ?’ या आप शायद ताज्जुब करते, ‘क्या आज यहोवा, वाकई किसी असिद्ध इंसान का भाग बन सकता है?’ इस सवाल का ताल्लुक आपसे और आपके अज़ीज़ों से है। तो आइए देखें कि परमेश्‍वर की इस बात का मतलब क्या है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि आज यहोवा कैसे मसीहियों का भाग बन सकता है। या दूसरे शब्दों में कहें तो वह कैसे आपका भाग बन सकता है, फिर चाहे आपकी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर।

लेवियों के लिए यहोवा ने इंतज़ाम किया

3. परमेश्‍वर ने किन घटनाओं के बाद लेवियों को अपनी सेवा के लिए चुना?

3 जब तक इसराएलियों को परमेश्‍वर से नियम नहीं मिले थे, तब तक परिवार के मुखिया ही याजक के तौर पर सेवा करते थे। लेकिन नियम देने के बाद, परमेश्‍वर ने पूरे समय की सेवा करने के लिए लेवियों में से कुछ लोगों को याजक के तौर पर चुना और उनकी मदद के लिए सेवक भी चुने। यह कब हुआ? जब परमेश्‍वर ने मिस्रियों के पहिलौठों को मार डाला तब उसने इसराएलियों के पहिलौठों को अपने लिए अलग करके उन्हें पवित्र ठहराया। लेकिन फिर, परमेश्‍वर ने एक बड़ा बदलाव किया। उसने कहा: “सब पहिलौठों की सन्ती मैं इस्राएलियों में से लेवियों को ले लेता हूं।” जब इसराएलियों की गिनती ली गयी तब उनके पहिलौठे, लेवियों से ज़्यादा निकले। इस अंतर को पूरा करने के लिए इसराएलियों को फिरौती की रकम देनी पड़ी। (गिन. 3:11-13, 41, 46, 47) इसके बाद से लेवी, इसराएल के परमेश्‍वर की सेवा शुरू कर सकते थे।

4, 5. (क) जब यहोवा ने लेवियों को अपना भाग बनाया तो उन्हें क्या आशीषें मिलीं? (ख) परमेश्‍वर ने लेवियों के लिए क्या इंतज़ाम किए?

4 लेवियों को सेवा की जो ज़िम्मेदारी मिली, उसका क्या मतलब था? जैसा यहोवा ने कहा कि वह उनका भाग होगा यानी ज़मीन देने के बजाय यहोवा ने उन्हें एक अनमोल ज़िम्मेदारी सौंपी। वह ज़िम्मेदारी, “यहोवा का दिया हुआ याजकपद,” था जो उनका अंश होता। (यहो. 18:7) लेकिन जैसे गिनतियों 18:20 का संदर्भ दिखाता है, इसका यह मतलब नहीं था कि वे पैसे के मोहताज़ होते। (गिनतियों 18:19, 21, 24 पढ़िए।) लेवी जो ‘सेवा करते थे, उसके बदले उनको इस्राएलियों का सब दशमांश निज भाग’ के तौर पर मिलता था। उन्हें इसराएलियों की पैदावार और जानवरों की बढ़ती का 10 प्रतिशत मिलता था। और लेवियों को जो भी मिलता था, वे उसका “उत्तम से उत्तम” दसवाँ भाग याजकों की मदद के लिए देते थे। * (गिन. 18:25-29) इसके अलावा, परमेश्‍वर की उपासना की जगह पर इसराएली जो “पवित्र वस्तुओं की . . . भेंटें” चढ़ाते, वे भी याजकों को मिलती थीं। इस तरह याजक वर्ग के लोग यहोवा पर भरोसा रख सकते थे कि वह उनकी देखरेख ज़रूर करेगा।

5 लगता है कि मूसा के नियम में एक और तरह का दसवाँ अंश देने का इंतज़ाम किया गया था। हर साल इसराएल का घराना, पवित्र सभाओं के दौरान इस दान का इस्तेमाल खाने-पीने और खुशियाँ मनाने के लिए करता था। (व्यव. 14:22-27) लेकिन सात साल के सब्त के दौरान, तीसरे और छठे साल के अंत में यह दान नगर के द्वार पर रखा जाता था ताकि गरीब और लेवी उसका इस्तेमाल कर सकें। इसमें लेवी क्यों शामिल थे? क्योंकि इसराएल में उनका “कोई निज भाग वा अंश न” था।—व्यव. 14:28, 29.

6. दूसरे गोत्रों की तरह लेवियों को कोई ज़मीन नहीं मिली थी, तो वे रहते कहाँ थे?

6 आप शायद सोचें, ‘अगर लेवियों को कोई ज़मीन नहीं दी गयी थी तो वे रहते कहाँ थे?’ यहोवा ने उनके लिए इंतज़ाम किया था। उन्हें 48 नगर और आस-पास के चारागाह दिए गए थे, जिनमें 6 शरणनगर भी शामिल थे। (गिन. 35:6-8) इस तरह, जब लेवी मंदिर में सेवा नहीं करते थे, तब भी उनके लिए रहने की जगह थी। वाकई, जिन्होंने यहोवा की सेवा के लिए खुद को सौंप दिया, यहोवा ने उनका पूरा खयाल रखा! लेवियों ने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा कि उसमें उनकी देखभाल करने की ताकत है और वह ऐसा करना चाहता है। इस तरह उन्होंने दिखाया कि वे यहोवा को अपना भाग मानते हैं।

7. यहोवा को अपना भाग बनाने के लिए लेवियों को क्या करने की ज़रूरत थी?

7 जो इसराएली दसवाँ हिस्सा नहीं देते थे, उन पर कोई जुर्माना नहीं था। जब लोगों ने दसवाँ हिस्सा देने में लापरवाही बरती तब याजक और लेवियों को मुश्‍किल का सामना करना पड़ा। नहेमायाह के दिनों में ऐसा ही हुआ। इसके चलते, लेवियों को परमेश्‍वर की सेवा छोड़कर खेतों में काम करना पड़ा। (नहेमायाह 13:10 पढ़िए।) साफ है कि लेवियों की ज़िंदगी इसराएल राष्ट्र की आध्यात्मिकता पर टिकी थी। इसके अलावा, खुद याजकों और लेवियों को भी यहोवा पर और उसके ठहराए इंतज़ाम पर भरोसा दिखाने की ज़रूरत थी।

यहोवा निजी तौर पर उनका भाग था

8. बताइए कि लेवी आसाप ने किस परेशानी का सामना किया।

8 बेशक, लेवी के पूरे गोत्र को यहोवा को अपना भाग बनाना था। लेकिन गौरतलब है कि लेवियों ने निजी तौर पर भी परमेश्‍वर के प्रति अपनी भक्‍ति और भरोसा दिखाने के लिए कहा कि “यहोवा मेरा भाग है।” (विला. 3:24) ऐसा ही एक लेवी था आसाप, जो गायक और रचनाकार था। वह शायद राजा दाविद के ज़माने के आसाप के घराने से था, जो गायकों को निर्देशन देता था। (1 इति. 6:31-43) भजन 73 में हम पढ़ते हैं कि आसाप (या उसका एक वंशज़) एक बार कशमकश में पड़ गया और उन दुष्टों से जलने लगा जो ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी रहे थे। उसने यहाँ तक कहा कि “निश्‍चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है।” ज़ाहिर है परमेश्‍वर की सेवा के लिए उसके दिल में कोई कदर नहीं रह गयी थी और उसने यहोवा को अपना भाग समझना छोड़ दिया था। और “जब तक कि [वह] ईश्‍वर के पवित्रस्थान में” नहीं आया तब तक वह आध्यात्मिक तौर पर परेशान रहा।—भज. 73:2, 3, 12, 13, 17.

9, 10. आसाप ने परमेश्‍वर को “सर्वदा के लिये मेरा भाग” क्यों कहा?

9 पवित्रस्थान में जाकर आसाप परमेश्‍वर के नज़रिए से सोचने लगा। शायद आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ हो। शायद एक वक्‍त पर आपमें आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों के लिए कदर कम हो गयी हो और आप उन ऐशो-आराम की चीज़ों के बारे में सोचने लगे हों जो आपके पास नहीं हैं। लेकिन परमेश्‍वर का वचन पढ़ने और मसीही सभाओं में जाने पर आप अपने हालात को यहोवा के नज़रिए से देख पाए। उसी तरह, मनन करने पर आसाप समझ गया कि दुष्टों का क्या हश्र होगा। उसने अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा और उसे एहसास हुआ कि यहोवा उसका दाहिना हाथ पकड़कर उसे राह दिखाएगा। और इसलिए वह यहोवा से कह सका: “तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता।” (भज. 73:23, 25) फिर उसने कहा कि परमेश्‍वर मेरा भाग है। (भजन 73:26 पढ़िए।) भजनहार आसाप का “हृदय और मन” चाहे दोनों “हार” जाते, मगर “परमेश्‍वर सर्वदा के लिये [उसका] भाग” बनता। आसाप को पूरा यकीन था कि यहोवा उसे दोस्त की तरह याद रखेगा और वफादारी से की गयी उसकी सेवा को कभी नहीं भूलेगा। (सभो. 7:1) इस बात से आसाप को कितना दिलासा मिला होगा! उसने गाया: “परमेश्‍वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है।”—भज. 73:28.

10 जब आसाप ने परमेश्‍वर को अपना भाग कहा, तो वह सिर्फ उन चीज़ों के बारे में नहीं सोच रहा था, जो एक लेवी होने के नाते यहोवा ने उसे दी थीं। वह खासकर यहोवा की सेवा करने के सम्मान के बारे में और इस दुनिया के मालिक के साथ अपने रिश्‍ते के बारे में सोच रहा था जो उसने एक मित्र के तौर पर कायम किया था। (याकू. 2:21-23) इस रिश्‍ते को कायम रखने के लिए भजनहार को यहोवा पर भरोसा रखना था। आसाप को यह विश्‍वास दिखाना था कि अगर वह परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीएगा तो उसे आखिर में ढेरों आशीषें मिलेंगी। आप भी सर्वशक्‍तिमान पर ऐसा ही भरोसा रख सकते हैं।

11. यिर्मयाह के मन में क्या सवाल उठा और उसका जवाब कैसे दिया गया?

11 एक और लेवी, भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने ‘यहोवा को अपना भाग’ कहा। आइए देखें जब उसने यह बात कही तो उसका क्या मतलब था। यिर्मयाह लेवियों के शहर अनातोत में रहता था जो यरूशलेम के करीब था। (यिर्म. 1:1) एक बार यिर्मयाह सोच में पड़ गया: दुष्ट लोग क्यों मज़े से जी रहे हैं जबकि धर्मी तड़प रहे हैं? (यिर्म. 12:1) यरूशलेम और यहूदा की हालत देखकर वह “मुक़द्दमा” यानी “शिकायत” (बुल्के बाइबिल) करने पर मजबूर हो गया था। यिर्मयाह जानता था कि यहोवा धर्मी है। यहोवा ने उसे भविष्यवाणियों का ऐलान करने का काम सौंपा और बाद में जब वे पूरी हुईं तब उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया। परमेश्‍वर की भविष्यवाणियों के मुताबिक जिन्होंने यहोवा के निर्देशन माने वे ‘जीवित रहे और उनके प्राण बचे।’ जबकि परमेश्‍वर की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीनेवाले दुष्ट खाक में मिल गए।—यिर्म. 21:9.

12, 13. (क) किस बात ने यिर्मयाह को यह कहने के लिए उभारा कि “यहोवा मेरा भाग है” और उसने कैसा रवैया दिखाया? (ख) इसराएल के सभी गोत्रों को क्यों यिर्मयाह की तरह आशा रखने की ज़रूरत थी?

12 आगे चलकर जब यिर्मयाह ने अपने देश को उजाड़ पड़ा देखा, तो उसे लगा मानो वह अंधकार में है। उसे लगा जैसे यहोवा ने उसे “मरे हुए लोगों के समान अन्धेरे स्थानों में बसा दिया है।” (विला. 1:1, 16; 3:6) उसने इसराएलियों को पहले से चिताया था कि वे परमेश्‍वर के पास लौट आएँ, मगर इस अड़ियल जाति की दुष्टता इतनी बढ़ गयी कि आखिरकार यहोवा को यरूशलेम और यहूदा को नाश करना पड़ा। हालाँकि यिर्मयाह ने कोई गलती नहीं की थी, फिर भी इस हालात से वह बड़ा दुखी हुआ। इस दौरान उसने परमेश्‍वर की दया को स्मरण किया और कहा: “हम मिट नहीं गए।” वाकई यहोवा की दया हर दिन देखी जा सकती है! ऐसे ही वक्‍त में यिर्मयाह ने ऐलान किया कि “यहोवा मेरा भाग है” क्योंकि भविष्यवक्‍ता के तौर पर यहोवा अब भी उसका इस्तेमाल कर रहा था।विलापगीत 3:22-24 पढ़िए।

13 इसराएलियों का देश 70 साल तक उजाड़ पड़ा रहता। (यिर्म. 25:11) लेकिन जब यिर्मयाह ने कहा कि “यहोवा मेरा भाग है” तब उसने परमेश्‍वर की दया पर अपना भरोसा ज़ाहिर किया, जिससे उसे भविष्य के लिए “आशा” मिली यानी इंतज़ार करने का एक ठोस कारण। इसराएल के सारे गोत्र अपनी ज़मीन खो चुके थे, इसलिए उन्हें इस भविष्यवक्‍ता के जैसा रवैया दिखाने की ज़रूरत थी। यहोवा ही उनका आखिरी आसरा था। सत्तर साल के बाद वे वापस अपने देश आए और उन्हें फिर से सेवा करने का सम्मान मिला।—2 इति. 36:20-23.

दूसरे भी यहोवा को अपना भाग बना सकते थे

14, 15. लेवियों के अलावा और किसने यहोवा को अपना भाग बनाया और क्यों?

14 आसाप और यिर्मयाह दोनों लेवी के गोत्र से थे, लेकिन क्या सिर्फ लेवियों को परमेश्‍वर की सेवा करने का सम्मान मिला था? जी नहीं! दाविद जो बाद में इसराएल का राजा बनता, उसने परमेश्‍वर से कहा: “मेरे जीते जी तू मेरा भाग है।” (भजन 142:1, 5 पढ़िए।) जब दाविद ने यह भजन लिखा तब वह ना तो किसी महल में था, ना ही किसी घर में, बल्कि अपनी जान बचाने के लिए एक गुफा में छिपा हुआ था। दाविद को कम-से-कम दो बार गुफाओं में शरण लेनी पड़ी, एक बार एनगदी के वीराने में और एक बार अदुल्लाम के पास। शायद उन्हीं में से किसी गुफा में रहते वक्‍त उसने भजन 142 की रचना की थी।

15 राजा शाऊल दाविद के खून का प्यासा था, इसलिए उसे ऐसी गुफा में छिपना पड़ा जहाँ शाऊल उस तक न पहुँच सके। (1 शमू. 22:1, 4) इस वीराने में दाविद ने महसूस किया कि उसका कोई अपना नहीं जो उसकी हिफाज़त कर सके। (भज. 142:4) और तब उसने परमेश्‍वर को पुकारा।

16, 17. (क) दाविद ने खुद को क्यों लाचार महसूस किया? (ख) दाविद किससे मदद माँग सकता था?

16 जब दाविद ने भजन 142 की रचना की तब तक शायद उसे पता चल चुका था कि महायाजक अहीमेलेक के साथ क्या हुआ है, जिसने दाविद की उस समय अनजाने में मदद की थी जब वह शाऊल से जान बचाकर भाग रहा था। जलन की वजह से राजा शाऊल ने अहीमेलेक और उसके पूरे घराने को मौत के घाट उतार दिया। (1 शमू. 22:11, 18, 19) दाविद को लगा जैसे वही उनकी मौत का ज़िम्मेदार है। उसे ऐसा लगा मानो उसने ही उस याजक को मार डाला जिसने उसकी मदद की थी। अगर आप दाविद की जगह होते तो क्या आप भी ऐसा ही महसूस करते? एक तो वह इस खयाल से दुखी था, ऊपर से शाऊल उसे चैन से जीने नहीं दे रहा था।

17 उसके तुरंत बाद भविष्यवक्‍ता शमूएल की मौत हो गयी, जिसने भविष्य के राजा के तौर पर दाविद का अभिषेक किया था। (1 शमू. 25:1) इस वजह से दाविद ने खुद को और भी लाचार महसूस किया। फिर भी वह जानता था कि मदद के लिए उसे किसे पुकारना है। जी हाँ, यहोवा को। दाविद को लेवियों की तरह सेवा करने का सम्मान तो नहीं मिला था, लेकिन उसे एक दूसरी तरह की सेवा के लिए अभिषिक्‍त किया गया था। वह आगे जाकर परमेश्‍वर के लोगों का राजा बनता। (1 शमू. 16:1, 13) दाविद ने अपने दिल का हाल यहोवा को कह सुनाया और उससे निर्देशन लेता रहा। आप भी जब परमेश्‍वर की सेवा में जी-तोड़ मेहनत करते हैं तो उसे अपना भाग और शरण बना सकते हैं और आपको ऐसा करना भी चाहिए।

18. हमने इस लेख में जिन लोगों के बारे में सीखा, उन्होंने कैसे ज़ाहिर किया कि यहोवा उनका भाग है?

18 हमने सीखा कि जिन लोगों ने यहोवा को अपना भाग बनाया, उन्हें परमेश्‍वर से सेवा करने की ज़िम्मेदारी मिली। ऐसे वक्‍त में वे अपनी ज़रूरतों के लिए पूरी तरह यहोवा पर निर्भर रहे। और न सिर्फ लेवियों ने बल्कि दाविद की तरह इसराएल के दूसरे गोत्र के लोगों ने भी परमेश्‍वर को अपना भाग बनाया। आप भी कैसे यहोवा को अपना भाग बना सकते हैं? इस पर हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

[फुटनोट]

^ याजकवर्ग की देखरेख के मामले में ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स—भाग 2, पेज 684 देखिए।

आप कैसे जवाब देंगे?

• किस मायने में यहोवा लेवियों का भाग था?

• आसाप, यिर्मयाह और दाविद ने कैसे दिखाया कि यहोवा उनका भाग है?

• अगर आप परमेश्‍वर को अपना भाग बनाना चाहते हैं तो आपको किस गुण की ज़रूरत पड़ेगी?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 8 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

लेवियों के पास अपनी ज़मीन नहीं थी। इसके बजाय यहोवा उनका भाग था क्योंकि उन्हें उसकी सेवा करने का बड़ा सम्मान मिला था

[पेज 7 पर तसवीर]

यहोवा किस मायने में याजकों और लेवियों का भाग था?

[पेज 9 पर तसवीर]

आसाप को किस बात ने यहोवा को अपना भाग बनाए रखने में मदद दी?