यहोवा की सेवा करने से मुझे बेइंतिहा खुशी मिली है
यहोवा की सेवा करने से मुझे बेइंतिहा खुशी मिली है
फ्रेड रस्क की ज़ुबानी
अपनी ज़िंदगी के शुरुआती सालों में ही मैंने भजन 27:10 में दर्ज़ दाविद के शब्दों को सच होते देखा, जहाँ लिखा है: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।” चलिए मैं बताता हूँ कि यह वचन मेरी अपनी ज़िंदगी में कैसे पूरा हुआ।
1930 के दशक में अमरीका महामंदी की चपेट में आ गया था। जॉर्जिया में मेरे दादाजी के पास एक कपास का खेत था और वहीं मेरी परवरिश हुई। मेरे छोटे भाई को जन्म देते वक्त मेरी माँ की मौत हो गयी और मेरा भाई भी नहीं बचा। पिताजी इस सदमे को बरदाश्त न कर सके। वे मुझे दादाजी के पास छोड़कर घर से दूर एक शहर में बस गए और नौकरी करने लगे। आगे चलकर उन्होंने कई बार मुझे अपने पास बुलाने की कोशिश की, पर किन्हीं वजहों से बात ना बन सकी।
दादाजी का घर मेरी बुआएँ चलाती थीं। दादाजी को धर्म में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी मगर मेरी बुआएँ सदर्न बेपटिस्ट चर्च की सदस्य थीं और अपने धर्म को बहुत मानती थीं। वे मुझसे भी ज़ोर-ज़बरदस्ती करती थीं इसलिए पिटाई के डर से मैं हर रविवार को चर्च जाया करता था। इसलिए बचपन से ही धर्म के लिए मेरे मन में कोई खास इज़्ज़त नहीं थी। मगर हाँ, मुझे स्कूल जाना और खेल-कूद बहुत पसंद था।
एक मुलाकात जिसने बदल दी मेरी ज़िंदगी
1941 में, जब में 15 साल का था, एक बुज़ुर्ग आदमी और उनकी पत्नी हमारे घर आए। मुझे उनसे यह कहकर मिलवाया गया कि वह मेरे अंकल हैं। उनका नाम टैलमैज रस्क था। इससे पहले मैंने उनके बारे में कभी नहीं सुना था, पर जल्द ही मुझे पता चला कि वे यहोवा के साक्षी हैं। उन्होंने बताया कि परमेश्वर का मकसद है कि इंसान धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाएँ। यह बात चर्च की शिक्षा से एकदम अलग थी। हमारे परिवार के ज़्यादातर लोगों को उनकी बातें रास नहीं आयीं। उन्होंने अंकल से कहा कि वे फिर कभी हमारे घर न आएँ। लेकिन मुझसे तीन साल बड़ी मेरी बुआ, रोज़लन ने उनसे एक बाइबल और उसे समझानेवाली कुछ किताबें लीं।
जल्द ही बुआ को यकीन हो गया कि उन्हें बाइबल की सच्चाई मिल गयी है और 1942 में उन्होंने यहोवा के साक्षी के तौर पर बपतिस्मा लिया। इसके बाद उन्होंने यीशु की यह बात सच होते देखी: “एक आदमी के दुश्मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।” (मत्ती 10:34-36) उन्हें परिवार से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। बुआ की बड़ी बहनों में से एक की उस इलाके में काफी जान-पहचान थी। उन्होंने वहाँ के मेयर के साथ मिलकर टैलमैज अंकल को गिरफ्तार कराने की साज़िश रची और उसमें कामयाब भी हो गयीं। अंकल पर बगैर लाइसेंस चीज़ों की बिक्री करने का आरोप था और इसके लिए उन्हें सज़ा सुनायी गयी।
हमारे यहाँ का मेयर ही इस मुकदमे का जज था। एक स्थानीय अखबार के मुताबिक उसने अदालत में जमा लोगों से कहा: “यह आदमी जो किताबें-पत्रिकाएँ बाँट रहा है,
वे ज़हर जितनी खतरनाक हैं।” अंकल ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और वे जीत गए, लेकिन इस बीच उन्हें दस दिन जेल में बिताने पड़े।रोज़लन बुआ ने कैसे मेरी मदद की
मेरे अलावा बुआ अपने पड़ोसियों के साथ भी बाइबल की सच्चाइयाँ बाँटने लगीं। एक बार मैं उनके साथ एक बाइबल अध्ययन पर गया। वे नयी दुनिया * (अँग्रेज़ी) नाम की किताब से एक आदमी को अध्ययन कराती थीं। उसकी पत्नी ने बताया कि उसके पति ने पूरी रात जागकर वह किताब पढ़ी थी। हालाँकि मैं धर्म से जुड़े किसी भी मामले में नहीं उलझना चाहता था मगर जो कुछ मैं सीख रहा था वह मुझे पसंद आ रहा था। लेकिन बाइबल की शिक्षाओं से बढ़कर जिस तरह लोग उनका विरोध करते थे उससे मुझे यकीन हुआ कि ये ही परमेश्वर के लोग हैं।
उदाहरण के लिए, एक दिन जब में टमाटरों के खेत की गुड़ाई करके घर लौट रहा था, तब बुआ और मैंने पाया कि उनकी बड़ी बहनों ने उनकी किताबें, रिकार्ड किया गया बाइबल संदेश और उसे बजाने के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला फोनोग्राफ आग में झोंक दिया। इस बात पर जब मैं गुस्सा हुआ तो मेरी एक बुआ ने मुझे धिक्कारते हुए कहा: “जो हमने आज किया है उसके लिए आगे चलकर तुम हमारा एहसान मानोगे।”
रोज़लन ने अपना विश्वास नहीं छोड़ा, ना ही दूसरों को सच्चाई बताना बंद किया इसलिए 1943 में उन्हें घर छोड़ना पड़ा। लेकिन तब तक मैंने बाइबल की कई सच्चाइयाँ सीख ली थीं। मैंने सीखा कि परमेश्वर का एक नाम है और वह इतना प्यार करनेवाला और दयालु है कि किसी को नरक की आग में नहीं जलाता। हालाँकि उस वक्त तक मैं सभाओं में नहीं गया था मगर इतना जानता था कि यहोवा का एक प्यार भरा संगठन है।
कुछ समय बाद एक दिन जब मैं अपने बगीचे में घास काट रहा था तब एक कार धीरे से आकर रुकी। उसमें दो आदमी थे जिनमें से एक ने मुझसे पूछा, “क्या तुम्हारा नाम फ्रेड है?” जब मुझे पता चला कि वे यहोवा के साक्षी हैं तो मैंने उनसे कहा कि वे मुझे गाड़ी में बैठने दें ताकि हम कहीं और जाकर बात कर सकें। रोज़लन ने उन्हें मुझसे मिलने के लिए भेजा था। उनमें से एक का नाम शील्ड टूटजीअन था और वह एक सफरी निगरान था। उसने मुझे सही वक्त पर सही राह दिखायी और मेरी हिम्मत बँधायी जिसकी मुझे उस वक्त बेहद ज़रूरत थी। मैं यहोवा के साक्षियों के विश्वासों की पैरवी करता था इसलिए अब परिवार के लोग मेरा भी विरोध करने लगे थे।
रोज़लन अब वर्जिन्या में रहती थी और उसने मुझे खत भेजकर कहा कि अगर मैंने यहोवा की सेवा करने की ठान ली है तो मैं उनके साथ आकर रह सकता हूँ। मैंने तुरंत जाने का फैसला कर लिया। सन् 1943 में अक्टूबर की एक शुक्रवार शाम को मैंने ज़रूरत की कुछ चीज़ें एक बक्से में डालीं और उसे घर से कुछ दूर एक पेड़ पर बाँध आया। शनिवार को मैंने बक्सा लिया और पीछे के रास्ते से सबकी
नज़र से बचकर अपने पड़ोसी के घर गया और उसके साथ गाँव से निकल गया। रोअनोक नाम के शहर पहुँचकर मैं रोज़लन से मिला जो एड्ना फाउल्स नाम की एक बहन के घर में रहती थीं।विश्वास मज़बूत करना, बपतिस्मा लेना और बेथेल जाना
एड्ना एक अभिषिक्त बहन थी जो दूसरों का दर्द खूब समझती थी और उनकी मदद करती थी, बिलकुल पुराने ज़माने की लुदिया जैसी। उसने एक बड़ा मकान किराए पर लिया हुआ था जहाँ उसने कई लोगों को आसरा दिया था। मेरी बुआ के अलावा एड्ना की भाभी और उनकी दो बेटियाँ भी उसके साथ रहती थीं। ये दो बेटियाँ, ग्लैडिस ग्रेगरी और ग्रेस ग्रेगरी, आगे चलकर मिशनरी बनीं। ग्लैडिस की उम्र अब 90 से भी ज़्यादा है पर वह अब भी वफादारी से जापान के शाखा दफ्तर में सेवा कर रही है।
एड्ना के घर में रहते हुए मैं लगातार सभाओं में जाने लगा और प्रचार में जाने के लिए मुझे अच्छी तालीम मिली। अब मैं बिन रोक-टोक परमेश्वर का वचन पढ़ सकता था और मसीही सभाओं में जा सकता था। इस तरह यहोवा को जानने की मेरी मुराद पूरी होने लगी। मैंने 14 जून 1944 को बपतिस्मा ले लिया। रोज़लन, ग्लैडिस और ग्रेस तीनों ने उत्तरी वर्जिन्या में पायनियर सेवा शुरू कर दी। यहाँ इन तीनों ने लीसबर्ग नाम की जगह में एक मंडली शुरू करने में अहम भूमिका निभायी। सन् 1946 की शुरूआत में मैंने भी पास ही के एक इलाके में पायनियर सेवा शुरू कर दी। उसी साल अगस्त 4-11 को ओहायो राज्य के क्लीवलैंड शहर में एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया। हम चारों एक-साथ मिलकर उस यादगार अधिवेशन में गए।
उस अधिवेशन में भाई नेथन नॉर भी आए थे जो उस वक्त संगठन की अगुवाई कर रहे थे। उन्होंने ब्रुकलिन बेथेल को और बड़ा करने के बारे में बताया। छपाई के लिए साथ ही भाई-बहनों के रहने के लिए और भी इमारतें बनानी थीं जिसके लिए कई जवान भाइयों की ज़रूरत थी। मैंने सोचा कि मैं बेथेल में रहकर परमेश्वर की सेवा करूँगा। मैंने अरज़ी भर दी और कुछ महीनों बाद 1 दिसंबर, 1946 को मैं बेथेल चला गया।
करीब एक साल बाद, छपाई विभाग के निगरान, भाई मैक्स लारसन, मेलिंग विभाग में आए जहाँ मैं काम कर रहा था और बताया कि अब मुझे सेवा विभाग में काम करना होगा। इस नयी ज़िम्मेदारी को पूरा करते हुए मुझे बाइबल के सिद्धांतों और परमेश्वर के संगठन के काम करने के तरीकों के बारे में काफी गहरी समझ मिली। खासकर इस विभाग के निगरान, भाई टी. जे. सलिवन (जिन्हें सब प्यार से बड् कहते थे) के साथ काम करके मैंने काफी कुछ सीखा।
बेथेल में सेवा करते वक्त कई बार मेरे पिता मुझसे मिलने आए। उम्र ढलने पर धर्म में उनकी रुचि बढ़ गयी थी। सन् 1965 में जब वह मुझसे आखिरी बार मिले, तो उन्होंने कहा: “अब मैं यहाँ तुमसे मिलने नहीं आऊँगा, लेकिन तुम चाहो तो मुझसे मिलने आ सकते हो।” उनकी मौत से पहले मैं उनसे दो-चार बार मिल पाया। उन्हें पूरा
यकीन था कि मरने के बाद वे स्वर्ग जाएँगे। मैं उम्मीद करता हूँ कि वे यहोवा कि याद में हैं। अगर ऐसा हुआ, तो जी उठने पर वे पाएँगे कि वे वहाँ नहीं हैं जहाँ उन्होंने सोचा था, बल्कि इसी धरती पर हैं और उनके पास फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा है।कई दूसरे यादगार अधिवेशन और निर्माण काम
आध्यात्मिक तरक्की में अधिवेशनों की एक अहम भूमिका रही है। सन् 1958 में न्यू यॉर्क के यैंकी स्टेडियम और पोलो ग्राउंड्स में 123 देशों से 2,53,922 लोग अधिवेशन में हाज़िर हुए थे। उस अधिवेशन में मेरे साथ एक ऐसी घटना घटी जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। मैं अधिवेशन के प्रबंधन में काम कर रहा था। भाई नॉर मेरी तरफ तेज़ कदम बढ़ाते हुए आए और बोले: “फ्रेड, यहाँ पास के एक हॉल में कई पायनियर जमा हैं और मैं किसी को वहाँ भाषण देने के लिए कहना भूल गया। क्या तुम जल्दी से वहाँ पहुँचकर एक बढ़िया-सा भाषण दे सकोगे? भाषण किस बारे में देना है यह तुम रास्ते में सोच लेना।” रास्ते भर प्रार्थना करते हुए जब मैं वहाँ पहुँचा तो मेरी साँस फूल रही थी।
1950 और 1960 के दौरान न्यू यॉर्क में मंडलियों की गिनती तेज़ी से बढ़ रही थी और किराए पर लिए गए हॉल अब काफी नहीं थे। इसलिए 1970 से लेकर 1990 तक मैनहैटन में तीन इमारतें खरीदी गयीं और उनकी मरम्मत करके उन्हें सभाओं के लायक बनाया गया। मैं इन निर्माण समितियों का अध्यक्ष था। जब मंडलियाँ इन इमारतों का काम पूरा करने और ज़रूरी पैसों का इंतज़ाम करने के लिए मिलकर कोशिश करती हैं तो यहोवा किस तरह उन पर आशीष देता है इसकी कई सुनहरी यादें मेरे मन में बसी हैं। इन इमारतों में आज भी सच्ची उपासना की जा रही है।
ज़िंदगी में कुछ बदलाव
1957 में एक दिन मैं बेथेल के अपने कमरे से निकलकर बगीचे से होते हुए छपाई खाने की ओर जा रहा था कि बारिश शुरू हो गयी। रास्ते में मैंने सुनहरे बालोंवाली एक सुंदर लड़की देखी जो बेथेल में नयी-नयी आयी थी। उसके पास छाता नहीं था इसलिए मैंने उसे अपने छाते में आने को कहा। उसका नाम मॉर्जरी था। इस तरह हमारी पहली मुलाकात हुई। सन् 1960 में हमारी शादी हुई और तब से हम दोनों साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं फिर चाहे बारिश हो या धूप। हमने सितंबर 2010 में अपनी शादी की 50वीं सालगिरह मनायी।
हम बस हनीमून से लौटे ही थे कि भाई नॉर ने बताया कि मुझे गिलियड स्कूल में एक शिक्षक के तौर पर ज़िम्मेदारी सँभालनी होगी। यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात थी। सन् 1961 से 1965 तक अलग-अलग शाखा दफ्तर के भाइयों को शाखा की देखरेख और संचालन के बारे में तालीम देने के लिए क्लासें रखी गयीं जो गिलियड क्लासों से ज़्यादा लंबी होती थीं। सन् 1965 के पतझड़ से एक बार फिर मिशनरियों के प्रशिक्षण के लिए पाँच महीनोंवाली क्लासें होने लगीं।
गिलियड के शिक्षक के तौर पर सेवा करने के बाद 1972 में मुझे लेखन पत्राचार विभाग में निगरान के तौर पर काम दिया गया। अलग-अलग किस्म के सवालों का जवाब ढूँढ़ने के लिए खोजबीन करने से परमेश्वर के वचन की शिक्षाओं की मेरी समझ बढ़ी है। और मैंने इसके बेहतरीन सिद्धांतों को लागू करके दूसरों की मदद करना सीखा है।
इसके बाद 1987 में मुझे ‘अस्पताल जानकारी सेवाएँ’ नाम के नए विभाग में काम दिया गया। अस्पताल संपर्क समितियों में काम कर रहे प्राचीनों के लिए सेमिनार आयोजित किए गए, जिनमें उन्हें सिखाया गया कि डाक्टरों, न्यायाधीशों और समाज सेवकों के साथ लहू के बारे में हमारे विश्वास की चर्चा कैसे की जा सकती है। उन दिनों एक बड़ी समस्या यह थी की डॉक्टर बिना माँ-बाप की रज़ामंदी के यहोवा के साक्षियों के बच्चों को लहू चढ़ा रहे थे, कई मामलों में तो वे अदालत से खून चढ़ाने की मंज़ूरी ला रहे थे।
शुरू-शुरू में जब हम बिना लहू के इलाज के तरीकों के बारे में डॉक्टरों से बात करते तो वे अकसर कहते कि इस तरह के इलाज के लिए ज़रूरी चीज़ें आसानी से नहीं मिलतीं या कहते कि ऐसा इलाज बहुत महँगा है। जब कोई सर्जन ऐसा बोलता तो मैं अकसर उनसे कहता कि “अपना हाथ आगे कीजिए।” इसके बाद मैं उनसे कहता: “बिना खून के इलाज करने का सबसे बढ़िया औज़ार यही है।” जब मैं इस तरह ऑपरेशन करने के उनके हुनर की तारीफ करता, तो उन्हें एहसास होता कि अगर वे ध्यान से ऑपरेशन करें तो काफी हद तक खून बहने से रोका जा सकता है।
पिछले बीस सालों में डॉक्टरों और न्यायाधीशों को ऐसी जानकारी देने की कोशिशों पर यहोवा ने आशीष दी है। जब लोग लहू के बारे में हमारे विश्वास को अच्छी तरह समझ जाते हैं, तो हमारे बारे में उनका रवैया बदल जाता है। वे जान पाते हैं कि चिकित्सा विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि बगैर खून के इलाज के तरीके वाकई असरदार हैं और यह भी की ऐसे कई अस्पताल और डॉक्टर हैं, जो बिना लहू के मरीज़ों का इलाज करते हैं।
1996 से मॉर्जरी और मैं, वॉच टावर शिक्षा केंद्र में सेवा कर रहे हैं जो ब्रुकलिन से 110 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में न्यू यॉर्क राज्य के पैटरसन में है। यहाँ मैंने कुछ समय तक सेवा विभाग में काम किया और फिर कुछ वक्त के लिए शाखा दफ्तर की देखरेख करनेवाले भाइयों और सफरी निगरानों को प्रशिक्षण दिया। पिछले 12 सालों से मैं फिर एक बार लेखन पत्राचार विभाग के निगरान के तौर पर सेवा कर रहा हूँ, जो पहले ब्रुकलिन में था पर अब पैटरसन में है।
बुढ़ापे की चुनौतियाँ
अब मैं करीब 85 साल का हो गया हूँ। अब मेरे लिए पहले की तरह ज़िम्मेदारियाँ सँभालना आसान नहीं है। करीब दस साल से मैं कैंसर से लड़ रहा हूँ। मुझे लगता है कि हिज़किय्याह की तरह यहोवा ने मेरी उम्र भी कुछ समय के लिए बढ़ा दी है। (यशा. 38:5) मेरी पत्नी की सेहत भी दिन-पर-दिन खराब होती जा रही है और हम दोनों मिलकर उसके एल्ज़ाइमर की बीमारी से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। मॉर्जरी यहोवा की एक अच्छी सेवक रही है और उसने कई जवानों की मदद की है। उसने जीवन के हर मोड़ पर मेरा साथ दिया है और हमेशा मेरी मदद की है। वह हमेशा बाइबल की एक अच्छी विद्यार्थी और अच्छी शिक्षक भी रही है। हमारे बहुत-से आध्यात्मिक बच्चे अकसर हमारी खैर-खबर लेते हैं।
मार्च 2010 को 87 साल की उम्र में रोज़लन बुआ की मौत हो गयी। वो परमेश्वर के वचन की एक बेहतरीन शिक्षक साबित हुईं और उन्होंने कई लोगों को सच्ची उपासना को अपनाने में मदद दी। कई सालों तक उन्होंने पूरे समय की सेवा की। उन्होंने मुझे मदद दी कि मैं सच्चाई सीखकर उन्हीं की तरह हमारे प्यारे पिता यहोवा का वफादार सेवक बनूँ और इसके लिए मैं उनका बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। मेरी बुआ को उसी जगह दफनाया गया जहाँ मेरे फूफाजी को दफनाया गया था। वे इसराएल में एक मिशनरी थे। मुझे पूरा भरोसा है कि वे यहोवा की याद में हैं और उस वक्त का इंतज़ार कर रहे हैं जब यहोवा उन्हें फिर से ज़िंदा करेगा।
जब मैं यहोवा की सेवा में गुज़ारे 67 सालों को याद करता हूँ तो मेरा दिल उन आशीषों के लिए एहसान से भर जाता है जिनसे यहोवा ने मुझे नवाज़ा है। यहोवा की सेवा करने से मुझे बेइंतिहा खुशी मिली है। मैंने यहोवा की महा-कृपा पर भरोसा किया है। मैं उस वादे को पूरा होते देखना चाहता हूँ जो यीशु मसीह ने किया था: “जिस किसी ने मेरे नाम की खातिर घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों को छोड़ा हो या ज़मीनें छोड़ी हों, वह इसका कई गुना पाएगा और हमेशा की ज़िंदगी का वारिस होगा।”—मत्ती 19:29.
[फुटनोट]
^ यह किताब 1942 में प्रकाशित हुई थी मगर अब यह नहीं छापी जाती।
[पेज 19 पर तसवीर]
1928 में अमरीका के जॉर्जिया में अपने दादाजी के कपास के खेत में
[पेज 19 पर तसवीर]
रोज़लन और टैलमैज अंकल
[पेज 20 पर तसवीर]
रोज़लन, ग्लैडिस और ग्रेस
[पेज 20 पर तसवीर]
14 जून, 1944 को मेरे बपतिस्मे के दिन
[पेज 20 पर तसवीर]
बेथेल के सेवा विभाग में काम करते वक्त
[पेज 21 पर तसवीर]
1958 में रोज़लन के साथ यैंकी स्टेडियम में हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में
[पेज 21 पर तसवीर]
शादी के दिन मॉर्जरी के साथ
[पेज 21 पर तसवीर]
2008 में हम दोनों