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यहोवा पर भरोसा रखिए, जो “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है”

यहोवा पर भरोसा रखिए, जो “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है”

यहोवा पर भरोसा रखिए, जो “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है”

“हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्‍वर और पिता धन्य हो। वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है।”—2 कुरिं. 1:3.

1. चाहे हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों, हमें किस चीज़ की ज़रूरत महसूस होती है?

 जब एक नन्हीं-सी जान इस दुनिया में आती है, तभी से उसे प्यार और दिलासे की ज़रूरत पड़ती है। एक बच्चा रो-रोकर अपनी इस ज़रूरत का एहसास दिलाता है। शायद वह भूखा हो या चाहता हो कि कोई उसे गोद में ले ले। दिलासे की ज़रूरत हम सबको महसूस होती है, फिर चाहे हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों। खासकर ऐसे दौर में जब हम दुख-तकलीफों का सामना करते हैं।

2. जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, उन्हें वह क्या यकीन दिलाता है?

2 हमें कुछ हद तक परिवार के सदस्यों और दोस्तों से दिलासा मिल सकता है। मगर कई बार हमें ऐसी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है जिसका हल इंसान के बस के बाहर होता है। लेकिन परमेश्‍वर हमें किसी भी तरह की मुसीबत में दिलासा दे सकता है। उसका वचन हमें यकीन दिलाता है: ‘जितने यहोवा को पुकारते हैं, उन सभों के वह निकट रहता है, और उनकी दोहाई सुनता है।’ (भज. 145:18, 19) जी हाँ, “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं।” (भज. 34:15) अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारा सहारा बने और हमें दिलासा दे, तो ज़रूरी है कि हम उस पर भरोसा रखें। भजनहार दाविद ने इस बात को पुख्ता करते हुए लिखा: “यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा। और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया।”—भज. 9:9, 10.

3. यहोवा अपने लोगों से कितना प्यार करता है, यह समझाने के लिए यीशु ने क्या मिसाल दी?

3 जो यहोवा की उपासना करते हैं, वह उसकी नज़रों में अनमोल हैं। इस बारे में यीशु ने कहा: “क्या दो पैसे में पाँच चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? फिर भी, उनमें से एक भी ऐसी नहीं जिसे परमेश्‍वर भुला दे। मगर तुम्हारे सिर के सारे बाल तक गिने हुए हैं। इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं अनमोल हो।” (लूका 12:6, 7) भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ज़रिए यहोवा ने अपने लोगों से कहा: “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूं; इस कारण मैं ने तुझ पर अपनी करुणा बनाए रखी है।”—यिर्म. 31:3.

4. हम यहोवा के वादों पर क्यों भरोसा रख सकते हैं?

4 यहोवा और उसके वादों पर भरोसा रखने से मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी हमें दिलासा मिल सकता है। यहोशू को इस बात का यकीन था। उसने कहा: “जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहो. 23:14) यहोशू की तरह हम भी यह यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने सभी वादे ज़रूर पूरे करेगा। हो सकता है कुछ समय के लिए हम पर मुश्‍किलें हावी हो जाएँ, मगर हम यह भरोसा रख सकते हैं कि “परमेश्‍वर विश्‍वासयोग्य है” और वह अपने वफादार सेवकों को कभी नहीं छोड़ेगा।—1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए।

5. हम क्यों दूसरों को दिलासा दे पाते हैं?

5 प्रेषित पौलुस ने यहोवा को “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर” कहा। ‘दिलासा देने’ का मतलब है किसी ऐसे इंसान को राहत पहुँचाना जो बहुत दुख झेल रहा हो या जो मुसीबतों के तूफान में घिरा हो। हम उसे सांत्वना देकर या उसका दर्द बाँटकर उसे दिलासा दे सकते हैं। (2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।) परमेश्‍वर अपने वफादार सेवकों को दिलासा देने में कोई कसर नहीं छोड़ता और ऐसा करने के लिए वह कोई भी तरीका अपना सकता है। परमेश्‍वर हमें जो दिलासा देता है उसकी बदौलत हम भी ‘किसी भी तरह का दुख झेलनेवालों को दिलासा दे पाते हैं।’ वाकई यहोवा जिन तरीकों से दुखी लोगों को राहत पहुँचाता है उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती!

मुश्‍किल हालात से जूझना

6. ऐसे कुछ हालात क्या हैं जो हमें तकलीफ पहुँचा सकते हैं?

6 ज़िंदगी में कई ऐसे मौके आते हैं जब हम चाहते हैं कि कोई हमें दिलासा दे। जब हमारे किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है तब हम बहुत दुखी हो जाते हैं और अगर बिछड़नेवाला हमारा प्यारा जीवन-साथी या हमारा बच्चा हो तब तो हमें दिलासे की और भी ज़रूरत महसूस होती है। जब हमारे साथ अन्याय या भेद-भाव होता है या जब हमें बीमारी, बुढ़ापा, गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है तब भी हमें दिलासे की ज़रूरत पड़ती है। इसके अलावा, बिखरती शादीशुदा ज़िंदगी या दुनिया के बिगड़ते हालात की वजह से भी एक इंसान को सुकून की ज़रूरत महसूस हो सकती है।

7. (क) मुश्‍किल हालात में हमें किस चीज़ की ज़रूरत होती है? (ख) “टूटे और पिसे हुए” दिल को राहत पहुँचाने के लिए यहोवा क्या कर सकता है?

7 शायद दुख-तकलीफें हमारे दिल, दिमाग और भावनाओं को झकझोर कर रख दें। इनका बुरा असर हमारी सेहत और विश्‍वास पर भी हो सकता है, इसलिए हमें राहत की ज़रूरत पड़ती है। चलिए पहले दिल की बात लेते हैं। बुरे हालात का हमारे दिल पर इस कदर असर हो सकता है कि वह शायद बुरी तरह ‘टूट या पिस’ जाए। (भज. 51:17) यहोवा ऐसे हालात में भी सांत्वना देकर “खेदित मनवालों को चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम-पट्टी बान्धता है।” (भज. 147:3) अगर हम पूरे विश्‍वास के साथ उससे प्रार्थना करें और उसकी आज्ञाएँ मानें तो बुरे-से-बुरे दौर में भी परमेश्‍वर एक दुखी मन को सुकून दे सकता है।—1 यूहन्‍ना 3:19-22; 5:14, 15 पढ़िए।

8. मानसिक तनाव झेलने में यहोवा कैसे हमारी मदद कर सकता है?

8 कई बार जीवन में ऐसी समस्याएँ आती हैं जब हमें काफी मानसिक तनाव झेलना पड़ता है, ऐसे में दिल के साथ-साथ हमारे दिमाग को भी सुकून की ज़रूरत होती है। हम अपने बल पर विश्‍वास की परीक्षाओं का सामना नहीं कर सकते। भजनहार ने लिखा: “जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।” (भज. 94:19) इसके अलावा पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्‍नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्‍वर को बताते रहो। और परमेश्‍वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्‍ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” (फिलि. 4:6, 7) बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने से हमारे दिमाग को काफी सुकून मिल सकता है।—2 तीमु. 3:15-17.

9. जब निराशा की भावनाएँ हम पर हावी हो जाती हैं, तब हमें किस बात से मदद मिल सकती है?

9 हो सकता है चिंताओं के बोझ से हम इस कदर दब जाएँ कि निराशा की भावनाएँ हम पर हावी हो जाएँ। शायद हमें लगे कि हम मंडली की ज़िम्मेदारियों या परमेश्‍वर से मिली दूसरी ज़िम्मेदारियों को निभाने के काबिल नहीं हैं। इस मामले में भी यहोवा हमें दिलासा दे सकता है और हमारी मदद कर सकता है। यहोशू की मिसाल लीजिए। जब उसे दुश्‍मन देशों पर चढ़ाई करने के लिए इसराएलियों का अगुवा बनने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी, तब मूसा ने इसराएलियों से कहा: “दृढ़ और साहसी बनो। इन राष्ट्रों से डरो नहीं। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्‍वर तुम्हारे साथ जा रहा है। वह तुम्हें न छोड़ेगा और न त्यागेगा।” (व्यव. 31:6, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यहोवा की मदद से यहोशू परमेश्‍वर के लोगों को वादा किए हुए देश में ले जा सका और सभी दुश्‍मनों पर जीत हासिल कर सका। इससे पहले यहोवा ने मूसा को भी लाल समुद्र पार करने में इसी तरह मदद दी थी।—निर्ग. 14:13, 14, 29-31.

10. अगर किसी परेशानी की वजह से हमारी सेहत पर असर हो रहा है, तब हम क्या कर सकते हैं?

10 तकलीफों का असर हमारी सेहत पर भी हो सकता है। बेशक पौष्टिक खाना, भरपूर आराम, कसरत और साफ-सफाई हमारे लिए फायदेमंद है। लेकिन बाइबल हमें जो आशा देती है उसका हमारी सेहत पर बढ़िया असर होता है। इसलिए जब हम किसी मुश्‍किल से गुज़र रहे हों, तब पौलुस के अनुभव और उसके इन दिलासा-भरे शब्दों को याद रखना अच्छा होगा: “हम हर तरह से दबाए तो जाते हैं, मगर ना-उम्मीदी की हद तक नहीं, उलझन में तो होते हैं कि क्या करें, मगर यह नहीं कि सारे रास्ते बंद हो जाएँ। हम पर ज़ुल्म तो ढाए जाते हैं, मगर हम मँझधार में नहीं छोड़े जाते। हम गिराए तो जाते हैं, मगर नाश नहीं किए जाते।”—2 कुरिं. 4:8, 9.

11. अगर हमें लगता है कि हमारा विश्‍वास कमज़ोर हो रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए?

11 कुछ परीक्षाएँ हमारे विश्‍वास को कमज़ोर कर सकती हैं। यहोवा ऐसे में भी हमारी मदद कर सकता है। उसका वचन हमें यकीन दिलाता है: “यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है।” (भज. 145:14) अगर हमें लगता है कि हमारा विश्‍वास कमज़ोर हो रहा है, तो हमें प्राचीनों से मदद माँगनी चाहिए। (याकू. 5:14, 15) हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा को हरदम मन में सँजोए रखने से हमें अपने विश्‍वास की परीक्षाओं को पार करने में मदद मिलेगी।—यूह. 17:3.

परमेश्‍वर ने कैसे दिलासा दिया

12. यहोवा ने किस तरह अब्राहम को दिलासा दिया?

12 परमेश्‍वर की प्रेरणा से भजनहार ने कहा: “जो वचन [यहोवा] ने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि [यहोवा] ने मुझे आशा दी है। मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है।” (भज. 119:49, 50) आज हमारे पास परमेश्‍वर का वचन लिखित रूप में है, जिसमें ऐसे कई वाकए दर्ज़ हैं जो दिखाते हैं कि परमेश्‍वर ने किस तरह अपने वफादार सेवकों को दिलासा दिया। मिसाल के लिए, जब कुलपिता अब्राहम को पता चला कि यहोवा सदोम और अमोरा का नाश करनेवाला है, तब वह बहुत परेशान हो गया। उसने परमेश्‍वर से पूछा: “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा?” यहोवा ने अब्राहम को दिलासा देते हुए कहा कि अगर वहाँ सिर्फ 50 धर्मी लोग भी हों तो वह सदोम का नाश नहीं करेगा। लेकिन अब्राहम ने पाँच बार और यहोवा से सवाल किया: तब क्या अगर सिर्फ 45 धर्मी लोग हों? और अगर सिर्फ 40 हों? या 30? या 20? या अगर सिर्फ 10 लोग हों? हर दफा, यहोवा ने सब्र दिखाते हुए अब्राहम को यकीन दिलाया कि अगर उतने भी हुए तो वह सदोम का नाश नहीं करेगा। हालाँकि वहाँ 10 धर्मी लोग भी न थे, यहोवा ने लूत और उसकी बेटियों की जान बख्श दी।—उत्प. 18:22-32; 19:15, 16, 26.

13. हन्‍ना ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा पर भरोसा है?

13 एल्काना की पत्नी हन्‍ना की ख्वाहिश थी कि उसका एक बच्चा हो। पर वह बाँझ थी इसलिए बहुत दुखी रहती थी। उसने इस बारे में यहोवा से प्रार्थना की। लेकिन जब महायाजक एली ने उससे कहा: “इस्राएल का परमेश्‍वर तुझे मन चाहा वर दे,” तब उसे बहुत राहत मिली “और उसका मुंह फिर उदास न रहा।” (1 शमू. 1:8, 17, 18) हन्‍ना ने यहोवा पर भरोसा रखा और सब कुछ उसके हाथ में छोड़ दिया। वह यह तो नहीं जानती थी कि आगे क्या होगा, लेकिन अपना बोझ यहोवा पर डालकर उसके दिल को सुकून मिला। कुछ समय बाद, यहोवा ने उसकी प्रार्थना का जवाब दिया। वह गर्भवती हुई और उसने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम उसने शमूएल रखा।—1 शमू. 1:20.

14. दाविद को दिलासे की ज़रूरत क्यों पड़ी और उसने मदद के लिए किसे पुकारा?

14 इसराएल के राजा दाविद ने भी यहोवा से दिलासा पाया था। यहोवा “की दृष्टि मन पर रहती है” इसलिए जब उसने दाविद को इसराएल का राजा होने के लिए चुना, तब उसे पूरा यकीन था कि वह नेक है और उसे सच्ची उपासना से लगाव है। (1 शमू. 16:7; 2 शमू. 5:10) लेकिन आगे चलकर दाविद ने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया और अपने पाप को छिपाने के लिए उसके पति को मरवा डाला। जब दाविद को यह एहसास हुआ कि उसने कितना गंभीर पाप किया है, तब उसने यहोवा से यह प्रार्थना की: “अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे। मुझे भली भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।” (भज. 51:1-3) दाविद ने सच्चे दिल से पश्‍चाताप किया और यहोवा ने उसे माफ कर दिया। उसे अपने पाप के अंजाम से छुटकारा तो नहीं मिला लेकिन यहोवा की दया से उसे बहुत दिलासा मिला।—2 शमू. 12:9-12.

15. यीशु की मौत से पहले यहोवा ने उसे क्या मदद दी?

15 धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने कई मुश्‍किलों का सामना किया। परमेश्‍वर ने उसे उन मुश्‍किलों से गुज़रने दिया जिससे उसके विश्‍वास की परीक्षा हुई। लेकिन इस दौरान उसने एक सिद्ध इंसान के तौर पर अपनी खराई टूटने नहीं दी बल्कि परमेश्‍वर पर अपना भरोसा बनाए रखा और उसकी हुकूमत बुलंद की। धोखे से पकड़वाए जाने और मौत की सज़ा सुनाए जाने से पहले उसने यह प्रार्थना की: “जो मेरी मरज़ी है, वह नहीं बल्कि वही हो जो तेरी मरज़ी है।” तब एक स्वर्गदूत प्रकट हुआ और उसने यीशु की हिम्मत बँधायी। (लूका 22:42, 43) इस तरह यहोवा ने यीशु को वह हिम्मत, दिलासा और सहारा दिया जिसकी उसे बेहद ज़रूरत थी।

16. अपने विश्‍वास की खातिर अगर हमें मौत का सामना करना पड़े, तो उस वक्‍त यहोवा हमें कैसे दिलासा दे सकता है?

16 अपने विश्‍वास की खातिर अगर हमें भी मौत का सामना करना पड़े, तो यहोवा हमें वफादार बने रहने में ज़रूर मदद देगा। इसके अलावा, हमें यह जानकर भी दिलासा मिलता है कि मरे हुए दुबारा जी उठेंगे। हमें उस दिन का कितनी बेसब्री से इंतज़ार है, जब हमारे आखिरी दुश्‍मन, मौत को “मिटा दिया जाएगा”! (1 कुरिं. 15:26) परमेश्‍वर के वफादार सेवक और दूसरे जन जो मौत की नींद सो रहे हैं, वे यहोवा की याददाश्‍त में हैं और यकीनन वह उन्हें नहीं भूलेगा। वह उन्हें ज़रूर दोबारा जीवन देगा। (यूह. 5:28, 29; प्रेषि. 24:15) यहोवा के इस वादे पर भरोसा रखने से हमें दिलासा मिलता है और ज़ुल्मों के दौर में आशा मिलती है।

17. जब हमारे किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है, तब यहोवा हमें कैसे दिलासा देता है?

17 हमें यह जानकर कितनी तसल्ली और दिलासा मिलता है कि हमारे जो अज़ीज़ मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें एक ऐसी खूबसूरत दुनिया में दोबारा जीवन दिया जाएगा, जहाँ दुख-तकलीफें नहीं होंगी! इस दुष्ट व्यवस्था से बचकर निकलनेवाली यहोवा के सेवकों की “बड़ी भीड़” को उनका स्वागत करने और उन्हें सिखाने का क्या ही बड़ा सम्मान मिलेगा!—प्रका. 7:9, 10.

परमेश्‍वर की शाश्‍वत बाहें हमारा सहारा

18, 19. जब परमेश्‍वर के सेवकों पर अत्याचार किए गए, तब उन्हें कैसे दिलासा मिला?

18 मूसा ने दिल को छू जानेवाले एक खूबसूरत गीत में इसराएलियों को यह यकीन दिलाया: “शाश्‍वत परमेश्‍वर तेरा आश्रय है; उसकी शाश्‍वत बाहें तेरा सहारा हैं।” (व्यव. 33:27, नयी हिन्दी बाइबिल) आगे चलकर भविष्यवक्‍ता शमूएल ने इसराएलियों को कहा: “अब यहोवा के पीछे चलने से फिर मत मुड़ना; परन्तु अपने सम्पूर्ण मन से उस की उपासना करना। . . . यहोवा तो अपने बड़े नाम के कारण अपनी प्रजा को न तजेगा।” (1 शमू. 12:20-22) जब तक हम वफादारी से यहोवा की उपासना करते रहेंगे वह हमें नहीं छोड़ेगा। ज़रूरत के वक्‍त में वह हमेशा हमारा सहारा बनेगा।

19 मुश्‍किलों से भरे इन आखिरी दिनों में परमेश्‍वर अपने लोगों को ज़रूरी मदद और दिलासा देता है। यहोवा की उपासना करने की वजह से हमारे भाई-बहनों पर सौ से भी ज़्यादा सालों से अत्याचार किए जा रहे हैं और उन्हें जेल में डाला जा रहा है। उनके अनुभव दिखाते हैं कि परीक्षाओं के दौर में यहोवा अपने सेवकों को दिलासा देता है। मिसाल के लिए, भूतपूर्व सोवियत संघ में हमारे एक भाई को अपने विश्‍वास की वजह से 23 साल की सज़ा सुनाई गयी। लेकिन इस दौरान उसकी हिम्मत बढ़ाने और दिलासा देने के लिए, भाई उस तक आध्यात्मिक भोजन पहुँचाते रहे। वह कहता है: “इन मुश्‍किल सालों के दौरान मैंने यहोवा पर भरोसा रखना सीखा और उसने मुझे हिम्मत दी।”—1 पतरस 5:6, 7 पढ़िए।

20. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें नहीं छोड़ेगा?

20 आगे चलकर चाहे हमें किसी भी मुश्‍किल का सामना करना पड़े, हम भजनहार के ये दिलासा देनेवाले शब्द याद रख सकते हैं: “यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा।” (भज. 94:14) हालाँकि हमें खुद दिलासे की ज़रूरत है, मगर इसके साथ-साथ हमें दूसरों को दिलासा देने का बड़ा सम्मान मिला है। जैसा कि हम अगले लेख में देखेंगे, हम ऐसे लोगों को दिलासा दे सकते हैं जो मुश्‍किलों से भरी इस दुनिया में दुख झेल रहे हैं।

आप कैसे जवाब देंगे?

• ऐसे कुछ हालात कौन-से हैं, जिनसे हमें तकलीफ पहुँच सकती है?

• यहोवा कैसे अपने सेवकों को दिलासा देता है?

• अगर हमें मौत का सामना करना पड़े, तो क्या बात हमें दिलासा दे सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 25 पर बक्स/तसवीरें]

कैसे निपटें उन तकलीफों से जो असर कर सकती हैं हमारे

दिल पर भज. 147:3; 1 यूह. 3:19-22; 5:14, 15

दिमाग पर भज. 94:19; फिलि. 4:6, 7

भावनाओं पर निर्ग. 14:13, 14; व्यव. 31:6

सेहत पर 2 कुरिं. 4:8, 9

विश्‍वास पर भज. 145:14; याकू. 5:14, 15