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पुरुषों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दीजिए

पुरुषों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दीजिए

पुरुषों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दीजिए

“अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।”—लूका 5:10.

1, 2. (क) यीशु के प्रचार काम के प्रति पुरुषों ने कैसा रवैया दिखाया था? (ख) इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

 पूरे गलील में प्रचार करने के बाद यीशु और उसके चेले नाव में बैठकर किसी सुनसान जगह के लिए निकल पड़े, तब भीड़ भी उनके पीछे पैदल ही निकल पड़ी। उसमें “करीब पाँच हज़ार आदमी थे, और उनके अलावा स्त्रियाँ और बच्चे भी थे।” (मत्ती 14:21) एक और मौके पर यीशु से सीखने और चंगा होने के लिए भीड़ उसके पास आयी, जिसमें “करीब चार हज़ार आदमी थे, और उनके अलावा स्त्रियाँ और बच्चे भी थे।” (मत्ती 15:38) इन आयतों से ज़ाहिर होता है कि जिन लोगों ने यीशु की शिक्षाओं में दिलचस्पी ली उनमें कई पुरुष भी थे। बेशक यीशु को उम्मीद थी कि आगे चलकर और भी लोग उसके संदेश में दिलचस्पी लेंगे इसलिए उसने चमत्कार करके मछलियाँ पकड़ने में चेलों की मदद करने के बाद शमौन से कहा: “अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।” (लूका 5:10) उसके चेलों को मानवजाति के समुद्र में अपने जाल बिछाने थे ताकि वे इंसानों को ‘पकड़’ सकें, जिनमें पुरुष भी होते।

2 उसी तरह आज भी जब हम प्रचार करते हैं, तो कई पुरुष बाइबल के संदेश में दिलचस्पी दिखाते हैं। (मत्ती 5:3) लेकिन कुछ पीछे हट जाते हैं और आध्यात्मिक तौर पर तरक्की नहीं करते। हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं? यीशु ने पुरुषों को संदेश सुनाने के लिए कोई खास अभियान नहीं चलाया, मगर पुरुषों को जो चिंताएँ होती हैं उनके बारे में उसने ज़रूर कुछ सुझाव दिए थे। आइए उसके उदाहरण पर गौर करें और जानें कि हम कैसे खासकर इन तीन मामलों में पुरुषों की मदद कर सकते हैं: (1) उनकी रोज़ी-रोटी की चिंता, (2) समाज का डर और (3) नाकाबिल होने की भावना।

रोज़ी-रोटी कमाना

3, 4. (क) अकसर पुरुषों की सबसे बड़ी चिंता क्या होती है? (ख) कुछ पुरुष आध्यात्मिक बातों से ज़्यादा रोज़ी-रोटी कमाने को क्यों तवज्जह देते हैं?

3 एक शास्त्री ने यीशु से कहा: “गुरु, तू जहाँ कहीं जाएगा, मैं तेरे पीछे चलूँगा।” मगर जब यीशु ने उससे कहा: “इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है” तब शास्त्री सोच में पड़ गया कि उसे अगले वक्‍त की रोटी मिलेगी या नहीं और वह कहाँ रात बिताएगा। शायद इन बातों ने शास्त्री को कशमकश में डाल दिया होगा। हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि इसका ज़रा भी इशारा नहीं मिलता कि वह आगे चलकर यीशु का चेला बना।—मत्ती 8:19, 20.

4 पुरुषों को अकसर आध्यात्मिक बातों से ज़्यादा नौकरी-पेशे की चिंता होती है। वे ज़्यादातर ऊँची शिक्षा और मोटी तनख्वाहवाली नौकरी को तवज्जह देते हैं। उनकी सोच के मुताबिक पैसा कमाना, बाइबल अध्ययन करने या परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाने से ज़्यादा फायदेमंद और कारगर होता है। हो सकता है बाइबल की शिक्षाएँ उन्हें दिलचस्प लगें लेकिन “इस ज़माने की ज़िंदगी की चिंताएँ और भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत” उनकी थोड़ी-बहुत दिलचस्पी को भी खत्म कर देती है। (मर. 4:18, 19) गौर कीजिए कि यीशु ने ज़रूरी चीज़ों को ज़िंदगी में पहली जगह देने के लिए अपने चेलों की मदद कैसे की।

5, 6. अपने कारोबार से ज़्यादा प्रचार काम को अहमियत देने के लिए किस बात ने अन्द्रियास, पतरस, याकूब और यूहन्‍ना की मदद की?

5 अन्द्रियास और उसका भाई शमौन पतरस मछुआरे थे। वे यूहन्‍ना उसके भाई याकूब और उसके पिता जब्दी के साथ मिलकर मछली पकड़ने का कारोबार चलाते थे। उनका कारोबार बहुत बड़ा था और उनके कई मज़दूर थे। (मर. 1:16-20) जब अन्द्रियास और यूहन्‍ना ने, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले से यीशु के बारे में सुना तो उन्हें भरोसा हो गया कि उन्हें मसीहा मिल गया है। अन्द्रियास ने अपने भाई शमौन पतरस को यह खबर सुनायी और शायद यूहन्‍ना ने अपने भाई याकूब को। (यूह. 1:29, 35-41) फिर कुछ महीनों तक चारों ने गलील, यहूदिया और सामरिया में यीशु के साथ प्रचार काम किया। लेकिन इसके बाद चारों चेले फिर से अपने मछली पकड़ने के कारोबार में लग गए। उन्हें आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी तो थी, मगर प्रचार काम उनकी जिंदगी का सबसे ज़रूरी काम नहीं था।

6 कुछ समय बाद यीशु ने पतरस और अन्द्रियास को अपने पीछे आने और “इंसानों को इकट्ठा करनेवाले” बनने का न्यौता दिया। तब उन्होंने क्या किया? “वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” याकूब और यूहन्‍ना ने भी ऐसा ही किया। “वे फौरन नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” (मत्ती 4:18-22) किस बात ने पूरे समय की सेवा शुरू करने के लिए इन पुरुषों की मदद की? क्या उन्होंने जल्दबाज़ी में या भावनाओं में बहकर यह फैसला किया था? नहीं ऐसी बात नहीं है! पिछले कुछ महीनों में इन्होंने यीशु की बातें सुनी होंगी, उसके चमत्कार देखे होंगे, सही काम करने के लिए उसका जोश और उसके प्रचार करने के बेहतरीन नतीजे देखे होंगे। इस वजह से यहोवा और यीशु पर उनका भरोसा बढ़ा और उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ!

7. हम अपने बाइबल विद्यार्थी को इस बात पर भरोसा करने में कैसे मदद दे सकते हैं कि यहोवा अपने लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के काबिल है?

7 हम यीशु की मिसाल पर चलकर कैसे अपने बाइबल विद्यार्थियों का भरोसा यहोवा पर बढ़ा सकते हैं? (नीति. 3:5, 6) यह काफी हद तक हमारे सिखाने के तरीके पर निर्भर है। बाइबल सिखाते वक्‍त हम इस बात पर ज़ोर दे सकते हैं कि यहोवा ने वादा किया है कि अगर हम उसके राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें तो वह हमें भरपूर आशीषें देगा। (मलाकी 3:10; मत्ती 6:33 पढ़िए।) हालाँकि यह साबित करने के लिए हम उसे कई आयतें दिखा सकते हैं मगर याद रखिए कि हमारी खुद की मिसाल का बाइबल विद्यार्थी पर ज़्यादा असर होगा। इसके अलावा उसे बताइए कि अपनी खुद की ज़िंदगी में आपने कैसे यहोवा की मदद का अनुभव किया है, इससे भी यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ेगा। इसके अलावा हम उसे हिम्मत बढ़ानेवाले वे अनुभव भी सुना सकते हैं जो हम अपने साहित्य में पढ़ते हैं। *

8. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि बाइबल विद्यार्थी खुद ‘परखकर देखे कि यहोवा कैसा भला है?’ (ख) हम यहोवा की भलाई का अनुभव करने में विद्यार्थी की मदद कैसे कर सकते हैं?

8 मज़बूत विश्‍वास पैदा करने के लिए, दूसरों को यहोवा से जो आशीषें मिली हैं उनके बारे में पढ़ना और सुनना ही काफी नहीं है। बाइबल विद्यार्थी को खुद यहोवा की भलाई का अनुभव करना होगा। भजनहार ने लिखा: “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है।” (भज. 34:8) हम यहोवा की भलाई का अनुभव करने में विद्यार्थी की मदद कैसे कर सकते हैं? मान लीजिए आपका बाइबल विद्यार्थी आर्थिक तंगी से गुज़र रहा है, इसके अलावा वह धूम्रपान, जुए या ज़्यादा शराब पीने जैसी किसी बुरी आदत पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है। (नीति. 23:20, 21; 2 कुरिं. 7:1; 1 तीमु. 6:10) अगर हम अपने विद्यार्थी को उसकी बुरी आदत पर काबू पाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करना सिखाएँ, तो वह खुद यहोवा की भलाई का अनुभव कर सकेगा। इसके अलावा अगर हम उसे आध्यात्मिक कामों को पहली जगह देने में मदद दें, मसलन उसे समय निकालकर बाइबल अध्ययन करने, सभाओं में आने और उसकी तैयारी करने का बढ़ावा दें, तो इसके भी अच्छे नतीजे निकलेंगे। बेशक, जैसे-जैसे वह इन मामलों में यहोवा की आशीषों का अनुभव करेगा, उसका विश्‍वास और मज़बूत होता जाएगा।

समाज का डर

9, 10. (क) नीकुदेमुस और अरिमतियाह के यूसुफ ने यीशु में अपनी दिलचस्पी क्यों छिपाए रखी? (ख) आज कुछ पुरुष क्यों यीशु के पीछे चलने से हिचकिचाते हैं?

9 कुछ पुरुष शायद अपने दोस्तों और साथ काम करनेवालों के डर की वजह से मसीह के पीछे चलने से हिचकिचाएँ। नीकुदेमुस और अरिमतियाह के यूसुफ को यीशु के संदेश में दिलचस्पी तो थी मगर उन्होंने यह बात सबसे छिपाकर रखी। उन्हें डर था कि अगर इस बारे में दूसरे यहूदियों को पता चल जाए तो न जाने वे क्या कहेंगे या क्या करेंगे। (यूह. 3:1, 2; 19:38) उनका यह डर बेबुनियाद नहीं था। हम देखते हैं कि आगे चलकर धर्म गुरुओं की नफरत इतनी बढ़ गयी कि जो भी यीशु में विश्‍वास ज़ाहिर करता वे उसे सभा-घर से बेदखल कर देते।—यूह. 9:22.

10 कुछ जगहों में अगर कोई पुरुष परमेश्‍वर, बाइबल या धर्म में ज़्यादा दिलचस्पी ले तो शायद उसके साथ काम करनेवाले, उसके दोस्त या रिश्‍तेदार उसका जीना दूभर कर दें। दूसरी जगहों में, धर्म बदलने की बात करना तक खतरनाक हो सकता है। यह दबाव खासकर तब और ज़्यादा महसूस हो सकता है जब एक पुरुष सेना विभाग, राजनीति या अपने समाज में किसी और अच्छे ओहदे पर होता है। मिसाल के लिए जर्मनी के एक आदमी ने यह कबूल किया: “आप यहोवा के साक्षी जो सिखाते हैं वह बिलकुल सच है, लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे साक्षी बनते ही यह खबर मेरे रिश्‍तेदारों, जान-पहचानवालों और साथ काम करनेवालों में आग की तरह फैलेगी और वे ना जाने क्या-क्या कहेंगे। मैं इसका सामना नहीं कर पाऊँगा।”

11. इंसान के डर पर काबू पाने में यीशु ने अपने चेलों की मदद कैसे की?

11 हालाँकि यीशु का कोई भी प्रेषित कायर नहीं था, मगर उन सबको इंसान का डर था। (मर. 14:50, 66-72) साथियों के भारी दबाव के बावजूद आध्यात्मिक तरक्की करने में यीशु ने उनकी मदद कैसे की? यीशु ने अपने चेलों को आनेवाले विरोध का सामना करने के लिए तैयार किया। उसने कहा: “सुखी हो तुम जब भी लोग इंसान के बेटे की वजह से तुमसे नफरत करें, और अपने बीच से तुम्हारा बहिष्कार कर दें और तुम्हें बदनाम करें और दुष्ट करार देकर तुम्हारा नाम खराब करें।” (लूका 6:22) यीशु ने अपने चेलों को आगाह किया कि उन्हें बदनामी सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। उसने यह भी बताया कि “इंसान के बेटे की वजह से” ही उन पर यह बदनामी आएगी। यीशु ने इस बात का भी आश्‍वासन दिया कि अगर वे परमेश्‍वर से मदद और ताकत माँगें तो वह ज़रूर उनकी सहायता करेगा। (लूका 12:4-12) इसके अलावा यीशु ने नए लोगों को अपने चेलों के साथ मेल-जोल करने और उनसे दोस्ती करने का बढ़ावा दिया।—मर. 10:29, 30.

12. इंसान के डर पर काबू पाने में हम नए लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

12 हमें भी अपने बाइबल विद्यार्थियों को इंसान के डर पर काबू पाने के लिए तैयार करना चाहिए। जब विरोध की उम्मीद की जाती है तो उसका सामना करना आसान होता है। (यूह. 15:19) उदाहरण के लिए क्यों न आप अपने बाइबल विद्यार्थियों की मदद करें कि वे बाइबल पर आधारित आसान-सा जवाब तैयार कर लें, ताकि जब उनके विश्‍वास पर उँगली उठायी जाए या उनसे कोई सवाल किया जाए तो वे बेधड़क उसका जवाब दे सकें। हम उसके अच्छे दोस्त बन सकते हैं, साथ ही मंडली के दूसरे भाई-बहनों से भी उसकी जान-पहचान करा सकते हैं, खासकर ऐसे लोगों के साथ जिनके हालात उससे मिलते-जुलते हों। सबसे ज़रूरी है कि हम उसे सिखाएँ कि वह रोज़ाना तहेदिल से यहोवा से प्रार्थना करे। इससे वह यहोवा के और करीब आ पाएगा और उसे अपना शरण और चट्टान बना पाएगा।भजन 94:21-23; याकूब 4:8 पढ़िए।

नाकाबिल होने की भावना

13. कुछ लोगों को नाकाबिल होने की भावना आध्यात्मिक तरक्की करने से कैसे रोकती है?

13 कुछ पुरुष आध्यात्मिक मामलों में दिलचस्पी लेने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आता, वे अपनी भावनाएँ अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते या शर्मीले स्वभाव के होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें सबके सामने अपने विचार ज़ाहिर करने में बहुत झिझक महसूस होती है। उन्हें अध्ययन करने, मसीही सभाओं में जवाब देने या अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताने के खयाल से ही डर लगने लगता है। एक मसीही भाई ने कहा: “जब मैं छोटा था और घर-घर के प्रचार में जाता तो दरवाज़े की तरफ फट से बढ़ता, घंटी बजाने का नाटक करता और चुपचाप वहाँ से चला जाता और यह उम्मीद करता कि किसी को मेरे आने की खबर न हो। . . . घर-घर जाने का खयाल से ही मेरी हालत खराब हो जाती।”

14. यीशु के चेले लड़के में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को क्यों नहीं निकाल पाए?

14 ज़रा सोचिए जब यीशु के चेले लड़के में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को नहीं निकाल पाए तो उन्होंने खुद को कितना नाकाबिल महसूस किया होगा। उस लड़के का पिता यीशु के पास आया और बोला: “[मेरे बेटे को] मिरगी आती है और इसकी हालत बहुत खराब है। यह कभी आग में तो कभी पानी में गिर जाता है। और मैं इसे तेरे चेलों के पास लाया, मगर वे इसे ठीक न कर सके।” यीशु ने उस लड़के में से दुष्ट स्वर्गदूत को निकाल दिया और वह ठीक हो गया। बाद में चेलों ने यीशु के पास आकर पूछा: “ऐसा क्यों हुआ कि हम उसे नहीं निकाल पाए?” यीशु ने उनसे कहा: “तुम्हारे विश्‍वास की कमी की वजह से। क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्‍वास है, तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से हटकर वहाँ चला जा,’ और वह चला जाएगा, और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन न होगा।” (मत्ती 17:14-20) पहाड़ जैसी चुनौतियों को पार करने के लिए यहोवा पर मज़बूत विश्‍वास करना बेहद ज़रूरी है। अगर एक इंसान परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखने के बजाय खुद की काबिलीयतों पर भरोसा करने लगे तो क्या होगा? वह नाकाम होगा और उसका आत्म-विश्‍वास कम हो जाएगा।

15, 16. नाकामी की भावना पर काबू पाने में हम अपने बाइबल विद्यार्थी की मदद कैसे कर सकते हैं?

15 जो इंसान नाकामी की भावना से जूझता है, उसकी मदद करने का एक बेहतरीन तरीका है उसे यह सिखाना कि वह खुद के बजाय यहोवा पर ध्यान दे। पतरस ने लिखा: “परमेश्‍वर के शक्‍तिशाली हाथ के नीचे खुद को नम्र करो, ताकि वह सही वक्‍त पर तुम्हें ऊँचा करे। और इस दौरान तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डाल दो।” (1 पत. 5:6, 7) ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने विद्यार्थी को यहोवा के साथ मज़बूत रिश्‍ता बनाने में मदद दें। जिस इंसान का परमेश्‍वर के साथ मज़बूत रिश्‍ता होता है वह परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी चीज़ों की कदर करता है, उसके वचन से प्यार करता है और अपनी ज़िंदगी में “पवित्र शक्‍ति का फल” ज़ाहिर करता है। (गला. 5:22, 23) वह प्रार्थना को बहुत अहमियत देता है। (फिलि. 4:6, 7) किसी भी हालात का सामना करने या किसी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए वह परमेश्‍वर से हिम्मत और ताकत माँगता है।2 तीमुथियुस 1:7, 8 पढ़िए।

16 इसके अलावा, कुछ विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने या अच्छी तरह बातचीत करने के लिए मदद देने की ज़रूरत पड़ सकती है। कुछ शायद ऐसे हों जिन्होंने यहोवा को जानने से पहले गलत काम किए हों और इस वजह से वे खुद को यहोवा की सेवा के लायक ना समझते हों। बात चाहे जो हो, हमें प्यार और धीरज के साथ उनकी मदद करनी चाहिए। यीशु ने कहा: “जो सेहतमंद हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।”—मत्ती 9:12.

ज़्यादा-से-ज़्यादा पुरुषों को ‘पकड़ना’

17, 18. (क) हम कैसे ज़्यादा-से-ज़्यादा पुरुषों को राज का संदेश सुना सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या सीखेंगे?

17 सिर्फ बाइबल में ही वह संदेश पाया जाता है जो सही मायने में लोगों को खुशी दे सकता है। और हमारी ख्वाहिश है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा पुरुष इस संदेश को कबूल करें। (2 तीमु. 3:16, 17) हम कैसे ज़्यादा पुरुषों को राज का संदेश सुना सकते हैं? हम ऐसे वक्‍त पर प्रचार में और समय बिता सकते हैं जब पुरुषों के घर पर रहने की गुंजाइश ज़्यादा होती है जैसे, शनिवार-रविवार की दोपहर को, बाकी दिनों में शाम को या छुट्टियों के दिनों में। जब मुमकिन हो तो हम पूछ सकते हैं कि क्या हम घर के किसी पुरुष से बात कर सकते हैं। इसके अलावा जब भी मौका मिले तो काम की जगह पर हम पुरुषों को गवाही देने की कोशिश कर सकते हैं। हमें हमारी मंडली की बहनों के अविश्‍वासी पतियों से भी बात करने की कोशिश करनी चाहिए।

18 प्रचार काम में हिस्सा लेते वक्‍त हम यह यकीन रख सकते हैं कि जो लोग सच्चाई की तलाश कर रहे हैं वे ज़रूर हमारे संदेश की कदर करेंगे। आइए हम उन सभी की मदद करें जो सच्चाई में दिलचस्पी दिखाते हैं। लेकिन हम मंडली के बपतिस्मा पाए हुए भाइयों को परमेश्‍वर के संगठन में ज़िम्मेदारी सँभालने के काबिल बनने के लिए मदद कैसे दे सकते हैं? अगले लेख में इस सवाल पर चर्चा की जाएगी।

[फुटनोट]

^ प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में छपी जीवन कहानियाँ, साथ ही यहोवा के साक्षियों की इयरबुक देखिए।

आप कैसे जवाब देंगे?

• आध्यात्मिक कामों को पहली जगह देने में पुरुषों की मदद कैसे की जा सकती है?

• हम लोगों को साथियों के दबाव का सामना करने में कैसे मदद दे सकते हैं?

• नाकाबिल होने की भावना पर काबू पाने में क्या बात लोगों की मदद कर सकती है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 25 पर तसवीर]

क्या आप पुरुषों को खुशखबरी सुनाने के मौके तलाशते हैं?

[पेज 26 पर तसवीर]

परीक्षा का सामना करने के लिए आप अपने बाइबल विद्यार्थी को कैसे तैयार कर सकते हैं?