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उसके अच्छे और बुरे उदाहरण से सीखिए

उसके अच्छे और बुरे उदाहरण से सीखिए

उसके अच्छे और बुरे उदाहरण से सीखिए

‘याकूब का परमेश्‍वर हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।’—यशा. 2:3.

1, 2. बाइबल में दी गयी मिसालों से आप कैसे फायदा पा सकते हैं?

 बेशक आपको इस बात का यकीन होगा कि बाइबल में लिखी बातों से हमें फायदा होता है। इसमें ऐसे कई स्त्री-पुरुषों के बारे में बताया गया है जिन्होंने वफादारी से अपनी ज़िंदगी बितायी और अच्छे गुण दिखाए। वे हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल हैं। (इब्रा. 11:32-34) बाइबल में ऐसे लोगों का भी ज़िक्र किया गया है, जिनके कामों और रवैयों से हमें दूर रहना चाहिए।

2 इनके अलावा, कुछ इंसान ऐसे भी थे, जिन्होंने एक अच्छा उदाहरण तो रखा, लेकिन साथ ही ऐसे बुरे काम भी किए जो हमारे लिए एक चेतावनी के तौर पर बाइबल में दर्ज़ हैं। मसलन, दाविद के बारे में सोचिए जो पहले एक चरवाहा था और आगे चलकर एक शक्‍तिशाली राजा बना। सच्चाई से प्यार करने और यहोवा पर भरोसा रखने में दाविद वाकई एक बढ़िया मिसाल है। लेकिन दाविद ने कई गंभीर पाप भी किए जैसे बतशेबा और उरिय्याह के मामले में और लोगों की गिनती करने के मामले में। लेकिन इस लेख में हम उसके बेटे सुलैमान पर ध्यान देंगे, जो एक राजा था और जिसने बाइबल की कुछ किताबें भी लिखी थीं। पहले हम देखेंगे कि किन दो तरीकों से उसने हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी।

“सुलैमान की बुद्धि”

3. हम क्यों कह सकते हैं कि सुलैमान ने हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी?

3 महान सुलैमान यीशु मसीह ने, राजा सुलैमान को एक अच्छे उदाहरण के तौर पर पेश किया। यीशु ने कुछ यहूदियों से कहा: “दक्षिण की रानी को न्याय के वक्‍त में इस पीढ़ी के साथ उठाया जाएगा और वह इसे दोषी ठहराएगी; क्योंकि वह सुलैमान की बुद्धि की बातें सुनने के लिए पृथ्वी की छोर से आयी थी, मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बड़ा है।” (मत्ती 12:42) जी हाँ, सुलैमान अपनी बुद्धि के लिए मशहूर था और उसने हमें भी बुद्धि पाने के लिए मेहनत करने का बढ़ावा दिया।

4, 5. सुलैमान को बुद्धि कैसे मिली और हम इसे कैसे हासिल कर सकते हैं?

4 जब सुलैमान राजा बना तो यहोवा सपने में उसे दिखायी दिया और उससे कहा कि वह जो चाहे माँग सकता है। अपने तजुरबे की कमी को समझते हुए सुलैमान ने परमेश्‍वर से बुद्धि माँगी। (1 राजा 3:5-9 पढ़िए।) यहोवा इस बात से खुश हुआ कि सुलैमान ने दौलत और शोहरत की बजाय बुद्धि माँगी इसलिए उसने सुलैमान को ‘बुद्धि और विवेक से भरे मन’ के साथ-साथ धन-दौलत से भी नवाज़ा। (1 राजा 3:10-14) जैसे यीशु ने बताया, सुलैमान की बुद्धि इतनी लाजवाब थी कि शीबा की रानी उसके बारे में सुनकर बड़ी दूर से उससे मिलने आयी ताकि वह खुद उसकी बुद्धि देख सके।—1 राजा 10:1, 4-9.

5 हम यह उम्मीद नहीं करते कि परमेश्‍वर कोई चमत्कार करके हमें बुद्धि देगा। सुलैमान ने कहा कि “बुद्धि यहोवा ही देता है।” लेकिन उसने यह भी बताया कि हमें इस गुण को पाने के लिए मेहनत करनी होगी। उसने कहा: ‘बुद्धि की बात ध्यान से सुन, और समझ की बात मन लगाकर सोच।’ उसने यह भी कहा: ‘यत्न से पुकार,’ ‘ढ़ूंढ़’ और ‘खोज में लगा रह।’ (नीति. 2:1-6) जी हाँ, बुद्धि पाना हमारे लिए भी मुमकिन है।

6. हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम सुलैमान की अच्छी मिसाल पर चल रहे हैं?

6 हमें खुद से पूछना चाहिए ‘क्या मैं भी उसी तरह बुद्धि की कदर करता हूँ जैसे सुलैमान ने की थी?’ आर्थिक उथल-पुथल के चलते कई लोग अच्छी नौकरी या ऊँची शिक्षा हासिल करने में लग गए हैं। आपके और आपके परिवार के बारे में क्या कहा जा सकता है? आप जो चुनाव करते हैं क्या उससे यह ज़ाहिर होता है कि आप बुद्धि की कदर करते हैं और उसे पाने के लिए मेहनत करते हैं? क्या आप अपने लक्ष्यों में थोड़ा फेरबदल करके ज़्यादा बुद्धि पा सकते हैं? इसमें दो राय नहीं कि अगर आप बुद्धि पाने और उसका इस्तेमाल करने की कोशिश करें, तो आपको ज़रूर फायदा होगा, जैसा कि सुलैमान ने लिखा: “तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली-भली चाल समझ सकेगा।”—नीति. 2:9.

सच्ची उपासना को बुलंद करने से शांति छायी

7. परमेश्‍वर का शानदार मंदिर कैसे तैयार हुआ?

7 अपना शासन शुरू करने के कुछ ही समय बाद, सुलैमान ने मूसा के ज़माने से इस्तेमाल किए जानेवाले निवासस्थान के बदले एक शानदार मंदिर बनाने का काम शुरू किया। (1 राजा 6:1) हम इसे सुलैमान के मंदिर के नाम से जानते हैं लेकिन उसने नाम कमाने के लिए इसे नहीं बनाया था, ना ही इसे बनाने का खयाल उसका अपना था। सच तो यह है कि सबसे पहले दाविद ने मंदिर बनाने की सोची थी और परमेश्‍वर ने उसे मंदिर और उसमें की सारी चीज़ें बनाने के बारे में बारीक निर्देश दिए थे। इसके अलावा, दाविद ने मंदिर बनाने के लिए दिल खोलकर दान भी किया। (2 शमू. 7:2, 12, 13; 1 इति. 22:14-16) लेकिन फिर भी इस काम को अंजाम देने की ज़िम्मेदारी सुलैमान के कंधों पर थी। उसने इस काम को पूरा करने के लिए साढ़े सात साल तक कड़ी मेहनत की।—1 राजा 6:37, 38; 7:51.

8, 9. (क) सुलैमान ने भले कामों में लगे रहने की क्या अच्छी मिसाल रखी? (ख) सुलैमान के सच्ची उपासना को बुलंद करने का क्या नतीजा हुआ?

8 तो हम देख सकते हैं कि सुलैमान ने बिना ध्यान भटकाए भले कामों में लगे रहकर एक अच्छी मिसाल कायम की। जब मंदिर बनकर तैयार हुआ और वाचा का संदूक उसमें रख दिया गया तो सुलैमान ने सब लोगों के सामने यहोवा से यह बिनती की: “तेरी आंख इस भवन की ओर अर्थात्‌ इसी स्थान की ओर जिसके विषय तू ने कहा है, कि मेरा नाम वहां रहेगा, रात दिन खुली रहें : और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।” (1 राजा 8:6, 29) इसराएली और परदेसी इस मंदिर की ओर मुड़कर प्रार्थना कर सकते थे, जिसे परमेश्‍वर के नाम की महिमा के लिए बनाया गया था।—1 राजा 8:30, 41-43, 60.

9 सुलैमान ने सच्ची उपासना को जिस तरह बुलंद किया, उसका क्या नतीजा हुआ? मंदिर के उद्‌घाटन के बाद लोग “उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी, आनन्दित और मगन” हुए। (1 राजा 8:65, 66) दरअसल सुलैमान की हुकूमत के पूरे 40 साल के दौरान इसराएल में कमाल की शांति रही और लोगों को किसी चीज़ की कोई कमी नहीं हुई। (1 राजा 4:20, 21, 25 पढ़िए।) भजन 72 में इसी खुशहाली के माहौल के बारे में बताया गया है और यह हमें महान सुलैमान यीशु मसीह के राज में मिलनेवाली बेशुमार आशीषों की भी एक झलक देता है।—भज. 72:6-8, 16.

सुलैमान की जिंदगी से मिलनेवाली चेतावनी

10. हमें सुलैमान की कौन-सी गलती तुरंत याद आती है?

10 हम यह क्यों कह सकते हैं कि सुलैमान की ज़िंदगी हमारे लिए एक चेतावनी भी है? आपको शायद तुरंत उसकी परदेसी पत्नियों और रखेलियों का ख्याल आए। बाइबल बताती है: “जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन . . . यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।” (1 राजा 11:1-6) बेशक, आपने यह फैसला किया होगा की आप ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे। मगर क्या सुलैमान की ज़िंदगी से हमें सिर्फ यही चेतावनी मिलती है? आइए हम उसकी ज़िंदगी की कुछ और घटनाओं पर गौर करें, जिन्हें हम अकसर नज़रअंदाज़ कर देते हैं और देखें कि हम उनसे क्या सबक सीख सकते हैं।

11. सुलैमान की पहली शादी के बारे में हमें क्या जानकारी मिलती है?

11 सुलैमान ने 40 साल तक राज किया। (2 इति. 9:30) इस बात के मद्देनज़र, आप 1 राजा 14:21 पढ़कर किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं? (पढ़िए।) इस आयत के मुताबिक, सुलैमान की मौत के बाद उसका बेटा रहूबियाम 41 की उम्र में राजा बना। उसकी माँ का नाम “नामा था जो अम्मोनी स्त्री थी।” इसका मतलब है कि राजा बनने से पहले ही सुलैमान ने मूर्तियों की उपासना करनेवाले दुश्‍मन देश की एक परदेसी से शादी कर ली थी। (न्यायि. 10:6; 2 शमू. 10:6) क्या वह भी झूठे देवी-देवताओं की उपासना करती थी? हो सकता है वह एक वक्‍त पर ऐसा करती हो, मगर यह भी हो सकता है कि बाद में, वह राहाब और रूत की तरह मूर्ति-पूजा छोड़कर यहोवा की एक सच्ची उपासक बन गयी हो। (रूत 1:16; 4:13-17; मत्ती 1:5, 6) अगर हम ऐसा मान भी लें, तब भी सच तो यह है कि सुलैमान के ससुरालवाले और रिश्‍तेदार अम्मोनी थे, जो यहोवा की उपासना नहीं करते थे।

12, 13. राजा बनने के कुछ ही समय बाद सुलैमान ने क्या गलत फैसला किया और इसके लिए उसने क्या तर्क किया होगा?

12 सुलैमान के राजा बनने के बाद हालात और भी खराब हो गए। वह “मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर” ले आया। (1 राजा 3:1) क्या इस मिस्री स्त्री ने भी सच्ची उपासना को अपनाया, जैसे रूत ने किया था? हमें इस बात का कोई इशारा नहीं मिलता, बल्कि हम यह पढ़ते हैं कि कुछ समय बाद सुलैमान ने उसके लिए (और शायद उसकी मिस्री दासियों के लिए) दाऊदपुर के बाहर एक घर बनवाया। बाइबल बताती है कि उसने ऐसा किया क्योंकि वाचा के संदूक के पास किसी झूठे देवी-देवताओं के उपासक का रहना सही नहीं था।—2 इति. 8:11.

13 शायद सुलैमान ने यह सोचकर एक मिस्री राजकुमारी से शादी की हो कि ऐसा करने से उसे राजनैतिक फायदा होगा। लेकिन क्या इस वजह से वह अपने फैसले को सही करार दे सकता था? परमेश्‍वर ने बहुत पहले ही इसराएलियों को झूठे देवी-देवताओं की उपासना करनेवाले कनानियों से शादी करने के लिए मना किया था। उसने इसराएलियों को ऐसी कुछ जातियों के नाम भी बताए थे। (निर्ग. 34:11-16) क्या सुलैमान ने यह तर्क किया होगा कि उस सूची में मिस्र का नाम तो नहीं है? लेकिन क्या परमेश्‍वर उसकी ऐसी सोच को मंज़ूर करता? बिलकुल नहीं! दरअसल वह ऐसा करके यहोवा की इस साफ चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर रहा था कि झूठे उपासकों से शादी करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि वे लोगों को सच्चे परमेश्‍वर के पीछे चलने से बहका सकते हैं।व्यवस्थाविवरण 7:1-4 पढ़िए।

14. सुलैमान की गलतियों से हमें क्या सबक मिलता है?

14 हम सुलैमान की ज़िंदगी से क्या सबक सीख सकते हैं? शायद एक बहन ने “सिर्फ प्रभु में” शादी करने की परमेश्‍वर की आज्ञा को नज़रअंदाज़ करते हुए किसी अविश्‍वासी से नाता जोड़ा हो और वह इसे जायज़ ठहराने की कोशिश करे। (1 कुरिं. 7:39) इसी तरह शायद हम दूसरे मामलों में भी सफाई देने की कोशिश करें। मसलन, स्कूल के बाद खेल-कूद या क्लबों में अपना समय ज़ाया करने को हम सही करार दें, या हम कर से बचने के लिए गलत आमदनी बताएँ और उसे सही ठहराने की कोशिश करें या किसी गलती को छिपाने के लिए झूठ बोलें और उसे सही करार दें। जिस तरह सुलैमान ने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ी और फिर अपने फैसले को सही ठहराने के लिए खुद को झूठी दलीलें दीं, उसी तरह अगर सावधान न हों तो हम भी ऐसी गलती कर सकते हैं।

15. यहोवा ने कैसे सुलैमान पर दया दिखायी, लेकिन हमें क्या याद रखना चाहिए?

15 यह गौर करने लायक है कि बाइबल, सुलैमान के मिस्री राजकुमारी से शादी करने का ज़िक्र करने के बाद यह बताती है कि यहोवा ने उसकी गुज़ारिश मानकर उसे बुद्धि और दौलत दी। (1 राजा 3:10-13) बेशक सुलैमान ने परमेश्‍वर के निर्देश को नज़रअंदाज़ किया था, मगर बाइबल ऐसा नहीं कहती कि यहोवा ने तुरंत उसे ठुकराकर किसी और को राजा बना दिया या उसे कोई कड़ी ताड़ना दी। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्‍वर जानता है कि हम असिद्ध हैं और मिट्टी के बने हुए हैं। (भज. 103:10, 13, 14) लेकिन इतना याद रखिए कि हमें अपने कामों का अंजाम आज नहीं तो कल भुगतना ही पड़ेगा।

इतनी सारी पत्नियाँ!

16. बहुत-सी पत्नियाँ रखकर सुलैमान किस बात को नज़रअंदाज़ कर रहा था?

16 श्रेष्ठगीत की किताब में राजा सुलैमान ने एक कुवाँरी की तारीफ करते हुए कहा कि वह 60 रानियों और 80 रखेलियों से ज़्यादा खूबसूरत थी। (श्रेष्ठ. 6:1, 8-10) इसका मतलब, शायद उस वक्‍त उसकी इतनी पत्नियाँ और रखेलियाँ थीं। अगर हम मान भी लें कि उनमें से कई या फिर सभी, सच्ची उपासक थीं, तब भी उसका ऐसा करना गलत था क्योंकि परमेश्‍वर ने मूसा के ज़रिए इसराएल के राजाओं के लिए आज्ञा दी थी कि “वह बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए।” (व्यव. 17:17) इस आज्ञा को तोड़ने के बावजूद यहोवा ने इस बार भी सुलैमान से मुँह नहीं मोड़ा बल्कि उसे आशीष दी और उसके ज़रिए बाइबल में श्रेष्ठगीत की किताब लिखवायी।

17. हमें किस सच्चाई को नहीं भूलना चाहिए?

17 क्या इसका यह मतलब है कि सुलैमान बिना कोई नुकसान उठाए परमेश्‍वर के निर्देशों को नज़रअंदाज़ करता रह सकता था? क्या आज हम भी ऐसा कर सकते हैं? जी नहीं। बल्कि इससे हम यह सीखते हैं कि परमेश्‍वर कुछ वक्‍त तक बुराई को बरदाश्‍त करता है। हो सकता है कि परमेश्‍वर का एक सेवक उसके किसी निर्देश को नज़रअंदाज़ करे और उसे तुरंत कोई नुकसान न हो। लेकिन कभी-न-कभी उसे इसके बुरे अंजाम भुगतने ही पड़ेंगे। याद कीजिए कि सुलैमान ने क्या लिखा: “बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है।” फिर उसने कहा: “तौभी मुझे निश्‍चय है कि जो परमेश्‍वर से डरते हैं और अपने तईं उसको सम्मुख जानकर भय से चलते हैं, उनका भला ही होगा।”—सभो. 8:11, 12.

18. सुलैमान के जीवन में गलातियों 6:7 के शब्द कैसे पूरे हुए?

18 काश! सुलैमान ने इस सच्चाई को खुद पर लागू किया होता। जी हाँ, उसने बहुत-से अच्छे काम किए और यहोवा से ढेरों आशीषें भी पायीं। मगर समय के चलते, उसने एक-के-बाद-एक गलत कदम उठाए। यह उसकी आदत-सी बन गयी। इसके सालों बाद, प्रेषित पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से जो लिखा वह कितना सच है। उसने लिखा: “धोखे में न रहो: परमेश्‍वर की खिल्ली नहीं उड़ायी जा सकती। इसलिए कि इंसान जो बोएगा, वही काटेगा भी”! (गला. 6:7) परमेश्‍वर के निर्देश न मानने की वजह से आगे चलकर सुलैमान को इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ा। बाइबल कहती है: “राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी, और बहुतेरी और पराये स्त्रियों से, जो मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोनी, और हित्ती थीं, प्रीति करने लगा।” (1 राजा 11:1) इनमें से कइयों ने झूठे देवी-देवताओं की उपासना जारी रखी होगी और सुलैमान इनके असर से अछूता न रहा। वह भटक गया और धीरज धरनेवाले हमारे परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो बैठा।1 राजा 11:4-8 पढ़िए।

उसके अच्छे और बुरे उदाहरण से सीखिए

19. बाइबल में कौन से अच्छे उदाहरण पाए जाते हैं?

19 यहोवा ने पौलुस को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “जो बातें पहले लिखी गयी थीं, वे सब हमारी हिदायत के लिए लिखी गयी थीं, ताकि इनसे हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम शास्त्र से दिलासा पाएँ, और इनके ज़रिए हम आशा रख सकें।” (रोमि. 15:4) “जो बातें पहले लिखी गयी थीं,” उनमें बहुत-से वफादार स्त्री-पुरुषों की अच्छी मिसालें भी शामिल हैं। इसलिए पौलुस ने कहा: “और किस-किसका नाम गिनवाऊँ? अगर मैं गिदोन, बाराक, शिमशोन, यिप्तह, दाविद, साथ ही शमूएल और दूसरे भविष्यवक्‍ताओं के बारे में बताऊँ तो समय कम पड़ जाएगा। इन लोगों ने विश्‍वास ही से उनके खिलाफ लड़नेवाली हुकूमतों को हराया, परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक नेक काम किए, वादे हासिल किए, . . . उन्हें कमज़ोर हालत से शक्‍तिशाली किया गया।” (इब्रा. 11:32-34) शास्त्रों में पाए जानेवाले अच्छे उदाहरणों से हमें सीखना चाहिए और उनकी मिसाल पर चलना चाहिए।

20, 21. आपको परमेश्‍वर के वचन में दी गयी मिसालों का अध्ययन क्यों करना चाहिए?

20 जैसा हमने देखा, बाइबल में कुछ ऐसी मिसालें भी हैं जो हमारे लिए एक चेतावनी है। इनमें से कुछ ऐसे लोग थे जिन पर एक वक्‍त परमेश्‍वर की मंज़ूरी थी और जिन्हें उसने अपने सेवकों के तौर पर इस्तेमाल किया था। बाइबल पढ़ते वक्‍त हम इस बात पर ध्यान दे सकते हैं कि परमेश्‍वर के ये सेवक कब और कैसे भटक गए और हमारे लिए चेतावनी देनेवाली एक मिसाल बन गए। अध्ययन करने पर हम समझ पाएँगे कि उनमें से कुछ सेवकों में गलत रवैया धीरे-धीरे पैदा हुआ और फिर उन्होंने गलत काम किए जिसके बुरे अंजाम उन्हें आगे चलकर भुगतने पड़े। मगर इन वाकयों से सबक सीखने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें खुद से ऐसे सवाल पूछने चाहिए: ‘इन लोगों में गलत सोच कैसे शुरू हुई? क्या मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है? मैं ऐसी गलती करने से कैसे बच सकता हूँ और चेतावनी देनेवाली इस मिसाल से कैसे फायदा पा सकता हूँ?’

21 यह बहुत ज़रूरी है कि हम इन मिसालों का गंभीरता से अध्ययन करें, क्योंकि जैसा पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा: “ये बातें जो उन पर बीतीं, मिसालों की तरह थीं और हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी थीं जिन पर दुनिया की व्यवस्थाओं का आखिरी वक्‍त आ पहुँचा है।”—1 कुरिं. 10:11.

आपने क्या सीखा?

• बाइबल में अच्छी और बुरी, दोनों तरह की मिसालें क्यों दी गयी हैं?

• सुलैमान कैसे आज्ञा ना मानने के ढर्रे में पड़ गया?

• आप सुलैमान की गलतियों से क्या सीख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 9 पर तसवीर]

सुलैमान ने परमेश्‍वर से मिली बुद्धि का इस्तेमाल किया

[पेज 12 पर तसवीरें]

क्या आप सुलैमान के बुरे उदाहरण से सबक लेंगे?