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परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में क्यों चलें?

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में क्यों चलें?

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में क्यों चलें?

“पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते रहो।”—गला. 5:16.

1. उदाहरण देकर बताइए कि एक अदृश्‍य शक्‍ति कैसे एक इंसान को राह दिखा सकती है।

 क्या आपने कभी अपना रास्ता ढूँढ़ने के लिए कम्पास का इस्तेमाल किया है? कम्पास दिखने में एक घड़ी जैसा होता है। इसमें चुंबक से बनी एक सुई होती है जिसकी नोक हमेशा उत्तर दिशा दिखाती है। एक अदृश्‍य शक्‍ति जिसे चुंबकीय शक्‍ति कहा जाता है, वही सुई को दिशा दिखाती है। इसकी मदद से सदियों से मुसाफिर और खोजकर्ता ज़मीन और समुद्र पर अपना रास्ता ढूँढ़ने में कामयाब हो पाए हैं।

2, 3. (क) युगों पहले यहोवा ने किस ज़बरदस्त शक्‍ति का इस्तेमाल किया था? (ख) हम क्यों उम्मीद कर सकते हैं कि परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति हमें मार्गदर्शन देगी?

2 एक और अदृश्‍य शक्‍ति है जो हमारे मार्गदर्शन के लिए बहुत ज़रूरी है। वह क्या है? बाइबल की पहली आयत में इसका जवाब मिलता है। युगों पहले यहोवा ने जो किया उसके बारे में उत्पत्ति की किताब कहती है: “आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” ऐसा करने के लिए उसने एक ज़बरदस्त शक्‍ति का इस्तेमाल किया। बाइबल आगे कहती है: “परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति जल के ऊपर मण्डलाती थी।” (उत्प. 1:1, 2, NW) यह शक्‍ति क्या थी? यह पवित्र शक्‍ति थी, एक ऐसी ज़बरदस्त शक्‍ति जिसका इस्तेमाल करके यहोवा ने तमाम सृष्टि की। और इसी की बदौलत आज हम वजूद में हैं।

3 हम जानते हैं कि यहोवा ने हमें बनाने के लिए अपनी पवित्र शक्‍ति का इस्तेमाल किया है। लेकिन क्या इस शक्‍ति का हमारी ज़िंदगी पर किसी और तरह से भी असर हो सकता है? परमेश्‍वर के बेटे यीशु ने अपने चेलों से कहा: ‘पवित्र शक्‍ति सच्चाई की पूरी समझ पाने में तुम्हारी मदद करेगी।’ (यूह. 16:13) यह पवित्र शक्‍ति क्या है और यह क्यों ज़रूरी है कि हम इसके मार्गदर्शन में चलें?

पवित्र शक्‍ति क्या है?

4, 5. (क) त्रियेक में विश्‍वास करनेवाले पवित्र शक्‍ति के बारे में क्या गलत सोच रखते हैं? (ख) पवित्र शक्‍ति असल में क्या है?

4 आप प्रचार में जिन लोगों से मिलते हैं उनमें से ज़्यादातर लोगों की बाइबल में पवित्र शक्‍ति को पवित्र आत्मा कहा गया है। त्रियेक की शिक्षा में विश्‍वास करनेवाले मानते हैं कि यह परमेश्‍वर की तरह एक आत्मिक व्यक्‍ति है और उसी की बराबरी का है। (1 कुरिं. 8:6) मगर यह शिक्षा बाइबल पर आधारित नहीं है।

5 तो फिर पवित्र शक्‍ति क्या है? “शक्‍ति” के लिए इस्तेमाल किए गए इब्रानी शब्द रूआख का अनुवाद, “वायु” या “पवन” भी किया गया है। (उत्प. 3:8, फुटनोट; 8:1) जिस तरह वायु या हवा दिखायी नहीं देती मगर ताकत रखती है, उसी तरह पवित्र शक्‍ति दिखायी नहीं देती ना ही उसकी कोई शख्सियत है, मगर वह चीज़ों पर असर करती है। यह शक्‍ति ऐसी ऊर्जा है जिसका इस्तेमाल परमेश्‍वर अपना मकसद पूरा करने के लिए लोगों या चीज़ों पर करता है। तो फिर क्या यह ताज्जुब की बात है कि इस शानदार शक्‍ति का पवित्र स्रोत, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है? बिलकुल नहीं!यशायाह 40:12, 13 पढ़िए।

6. दाविद ने यहोवा से क्या बिनती की?

6 क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि यहोवा अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करके ज़िंदगी भर हमें मार्गदर्शन देगा? उसने भजनहार दाविद से यह वादा किया: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा।” (भज. 32:8) क्या दाविद भी यह चाहता था? जी हाँ, क्योंकि उसने यहोवा से इस तरह बिनती की: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है!” (भज. 143:10) हमारी भी यही ख्वाहिश होनी चाहिए कि हम परमेश्‍वर की शक्‍ति के द्वारा मार्गदर्शन पाएँ। क्यों? इसकी चार वजहों पर गौर कीजिए।

हम खुद को राह दिखाने के काबिल नहीं

7, 8. (क) परमेश्‍वर की मदद के बिना हम खुद का मार्गदर्शन क्यों नहीं कर सकते? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि हमें इस दुष्ट व्यवस्था में अपना रास्ता खुद तलाशने की कोशिश क्यों नहीं करनी चाहिए।

7 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन चाहने की पहली वजह है कि हम खुद का मार्गदर्शन करने के काबिल नहीं हैं। किसी का मार्गदर्शन करने का मतलब है उसे चलने के लिए सही राह दिखाना। लेकिन यहोवा ने हमें यह काबिलियत नहीं दी है कि हम ऐसा कर सकें और असिद्ध हालत में ऐसा करना तो नामुमकिन है। भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्म. 10:23) ऐसा क्यों है? परमेश्‍वर ने यिर्मयाह के ज़रिए इसका कारण बताया। उसने कहा: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?”—यिर्म. 17:9; मत्ती 15:19.

8 बिना किसी गाइड या कम्पास के अगर एक इंसान घने जंगल में सैर पर निकल पड़े और उसने पहले कभी ऐसा न किया हो, तो क्या यह बेवकूफी नहीं होगी? एक तो वह यह नहीं जानता कि जंगल में खुद का बचाव कैसे करना है और दूसरा, खो जाने पर उसे अपना रास्ता ढूँढ़ना नहीं आता। ऐसे में क्या वह अपनी जान जोखिम में नहीं डाल रहा होगा? उसी तरह, अगर एक इंसान सोचता है कि वह बिना परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के, इस दुष्ट दुनिया में सही राह पर चल सकता है तो वह खतरा मोल ले रहा होगा। अगर हम इस दुनिया की व्यवस्था को पार करने में कामयाब होना चाहते हैं, तो हमें भी दाविद की तरह यहोवा से यही बिनती करनी चाहिए: “मेरे पांव तेरे पथों में स्थिर रहे, फिसले नहीं।” (भज. 17:5; 23:3) तो फिर परमेश्‍वर से मार्गदर्शन कैसे पाया जा सकता है?

9. जैसे कि पेज 17 पर दी तसवीर में दिखाया गया है, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति कैसे हमारा मार्गदर्शन कर सकती है?

9 अगर हम नम्र हैं और यहोवा पर निर्भर रहने के लिए तैयार हैं, तो वह हमें सही राह दिखाने के लिए अपनी पवित्र शक्‍ति ज़रूर देगा। पवित्र शक्‍ति हमारी मदद कैसे करेगी? यीशु ने अपने चेलों को समझाया: “वह मददगार, यानी पवित्र शक्‍ति जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सारी बातें सिखाएगा और जितनी बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं वे सब तुम्हें याद दिलाएगा।” (यूह. 14:26) जब हम यीशु की कही बातों और बाइबल में दर्ज़ दूसरी सच्चाइयों का प्रार्थना करके अध्ययन करते हैं तो पवित्र शक्‍ति हमें यहोवा की गहरी बुद्धि की बातों को समझने में मदद देती है। नतीजतन हम यीशु के नक्शे-कदमों पर चल पाते हैं। (1 कुरिं. 2:10) इसके अलावा, अगर हमारी ज़िंदगी में अचानक कोई मुश्‍किल आ खड़ी हो, तो पवित्र शक्‍ति हमें सही राह दिखाएगी। वह हमें बाइबल के वे सिद्धांत याद दिला सकती है जिनके बारे में हमने पहले सीखा था और हमें यह समझने में मदद दे सकती है कि हम उस मुश्‍किल को पार करने के लिए कैसे इन्हें लागू कर सकते हैं।

पवित्र शक्‍ति ने यीशु का मार्गदर्शन किया

10, 11. पवित्र शक्‍ति के बारे में यीशु कौन-सी बात जानता था और पवित्र शक्‍ति ने उसकी मदद कैसे की?

10 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन चाहने की दूसरी वजह है कि परमेश्‍वर ने खुद अपने बेटे का मार्गदर्शन करने के लिए इसका इस्तेमाल किया। पृथ्वी पर आने से पहले परमेश्‍वर का एकलौता बेटा अपने बारे में की गयी इस भविष्यवाणी से वाकिफ था: “यहोवा की पवित्र शक्‍ति, बुद्धि और समझ की शक्‍ति, युक्‍ति और पराक्रम की शक्‍ति, और ज्ञान और यहोवा के भय की शक्‍ति उस पर ठहरी रहेगी।” (यशा. 11:2, NW) ज़रा सोचिए कि पृथ्वी पर मुश्‍किल हालात का सामना करते वक्‍त यीशु परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन पाने के लिए कितना बेताब रहा होगा!

11 यहोवा की यह भविष्यवाणी पूरी हुई। लूका की किताब बताती है कि यीशु के बपतिस्मे के तुरंत बाद क्या हुआ: “यीशु, पवित्र शक्‍ति से भरा हुआ, यरदन से चला गया। यह पवित्र शक्‍ति उसे वीराने में ले गयी।” (लूका 4:1) इसमें दो राय नहीं कि जिस दौरान यीशु उपवास, प्रार्थना और मनन कर रहा था, उस वक्‍त यहोवा ने अपने बेटे को इस बारे में जानकारी दी होगी कि उसके साथ क्या होनेवाला है और उसे तैयार करने के लिए कुछ निर्देश दिए होंगे। परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति यीशु के दिलो-दिमाग पर काम कर रही थी और उसकी सोच का मार्गदर्शन कर रही थी। इस वजह से यीशु जान पाया कि किसी हालात में उसे क्या करना चाहिए और उसने वही किया जो उसका पिता उससे चाहता था।

12. पवित्र शक्‍ति से मार्गदर्शन पाने के लिए प्रार्थना करना ज़रूरी क्यों है?

12 यीशु ने खुद अपनी ज़िंदगी में पवित्र शक्‍ति का असर देखा और इस वजह से उसने अपने चेलों को भी परमेश्‍वर से पवित्र शक्‍ति माँगने और उसके मार्गदर्शन में चलने की अहमियत समझायी। (लूका 11:9-13 पढ़िए।) ऐसा करना हमारे लिए भी ज़रूरी है क्योंकि पवित्र शक्‍ति हमारी सोच को इस कदर बदल सकती है कि हमारा मन मसीह का सा हो जाएगा। (रोमि. 12:2; 1 कुरिं. 2:16) अगर हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन को कबूल करें तो हमारी सोच यीशु के जैसी हो जाएगी और हम उसकी मिसाल पर चल सकेंगे।—1 पत. 2:21.

दुनिया की फितरत हमें भटका सकती है

13. दुनिया की फितरत क्या है और लोगों पर इसका क्या असर होता है?

13 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन चाहने की तीसरी वजह है कि अगर हम इसकी मदद ना लें, तो इस दुनिया की फितरत का हम पर बुरा असर हो सकता है, जैसा कि आज ज़्यादातर लोगों पर हो रहा है। दुनिया की फितरत हमें ऐसे रास्ते पर ले जाती है जो पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के बिलकुल खिलाफ है। यह फितरत लोगों में मसीह का मन बढ़ाने की बजाय, दुनिया के शासक शैतान की सोच और कामों को बढ़ावा देती है। (इफिसियों 2:1-3; तीतुस 3:3 पढ़िए।) जब एक इंसान दुनिया की फितरत की गिरफ्त में आ जाता है और शरीर के काम करने लगता है तो इसके बहुत बुरे अंजाम होते हैं। यह उसे परमेश्‍वर के राज का वारिस होने से रोक सकती है।—गला. 5:19-21.

14, 15. हम इस दुनिया की फितरत का मुकाबला करने में कैसे कामयाब हो सकते हैं?

14 यहोवा ने इस दुनिया की फितरत का मुकाबला करने के लिए हमें मदद दी है। प्रेषित पौलुस ने कहा: “प्रभु में और उसकी महा-शक्‍ति में ताकत हासिल करते जाओ . . . ताकि जब बुरा दिन आए, तो तुम सामना कर सको।” (इफि. 6:10, 13) शैतान हमें गुमराह करने की पुरज़ोर कोशिश करता है, लेकिन यहोवा अपनी शक्‍ति के ज़रिए उसकी कोशिशों को नाकाम करने के लिए हमें ताकत देता है। (प्रका. 12:9) इस दुनिया की फितरत लोगों पर ज़बरदस्त असर करती है और हमारे लिए भी इसके असर से बचना आसान नहीं है। लेकिन हम इसका विरोध ज़रूर कर सकते हैं क्योंकि पवित्र शक्‍ति जो इससे कहीं ज़्यादा ताकतवर है, वह हमारी मदद करती है।

15 पहली सदी में जिन लोगों ने मसीही मंडली को छोड़ दिया था, उनके बारे में प्रेषित पतरस ने कहा: “इन्होंने सीधी राह छोड़ दी है और ये गुमराह हो गए हैं।” (2 पत. 2:15) हम कितने एहसानमंद हैं कि हमने “दुनिया की फितरत नहीं पायी बल्कि वह पवित्र शक्‍ति पायी है जो परमेश्‍वर की तरफ से है।” (1 कुरिं. 2:12) अगर हम पवित्र शक्‍ति को अपनी ज़िंदगी पर असर करने दें और हमें सच्चाई के रास्ते पर बनाए रखने के लिए परमेश्‍वर ने जो इंतज़ाम किए हैं उनका पूरा फायदा उठाएँ, तो हम इस दुनिया की फितरत का मुकाबला करने में कामयाब हो सकते हैं।—गला. 5:16.

पवित्र शक्‍ति हममें अच्छा फल पैदा करती है

16. पवित्र शक्‍ति हममें क्या फल पैदा कर सकती है?

16 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का मार्गदर्शन चाहने की चौथी वजह है कि यह उन लोगों में अच्छा फल पैदा करती है जो उसके मार्गदर्शन पर चलते हैं। (गलातियों 5:22, 23 पढ़िए।) क्या हम सब यह नहीं चाहते कि हम ज़्यादा प्यार दिखाएँ, खुश रहें और शांति बनाए रखें? कौन है जो अपने अंदर सहनशीलता, कृपा और भलाई जैसे गुण नहीं बढ़ाना चाहता? हममें से किसको विश्‍वास, कोमलता या संयम बढ़ाने से फायदा नहीं होगा? परमेश्‍वर की शक्‍ति हममें ऐसे खूबसूरत गुण पैदा कर सकती है जिससे न सिर्फ हमें बल्कि हमारे परिवार के सदस्यों और मंडली के भाई-बहनों को भी फायदा पहुँच सकता है। हमें अपने अंदर यह फल बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत करनी चाहिए क्योंकि हमें इस फल की बहुत ज़रूरत है और इस बात की कोई सीमा नहीं है कि हम इसे किस हद तक बढ़ा सकते हैं।

17. हमें पवित्र शक्‍ति के फल के किसी पहलु को अपनी ज़िंदगी में और अच्छी तरह दिखाने के लिए क्या करना चाहिए?

17 यह ज़रूरी है कि हम अपने कामों और बोली से इस बात का सबूत दें कि हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चल रहे हैं और उसका फल अपने अंदर बढ़ा रहे हैं। (2 कुरिं. 13:5क; गला. 5:25) अगर हम पाते हैं कि हममें पवित्र शक्‍ति के फल के किसी गुण की कमी है, तो उसे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि हम पवित्र शक्‍ति की दिखायी राह पर चलें। बाइबल और मसीही साहित्य में हरेक गुण के बारे में जो जानकारी दी गयी है उसका अध्ययन करने से हम पवित्र शक्‍ति की दिखायी राह पर चल सकते हैं। * अध्ययन करते वक्‍त हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हम पवित्र शक्‍ति का फल अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कैसे दिखा सकते हैं और फिर उसे दिखाने के लिए हमें जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए। जैसे-जैसे हम देखते हैं कि पवित्र शक्‍ति हममें और हमारे भाई-बहनों की ज़िंदगी में किस तरह काम कर रही है, तो हमें इस बात का और भी यकीन हो जाता है कि क्यों हमें पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन की इतनी ज़रूरत है।

क्या आप पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चल रहे हैं?

18. पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन को कबूल करने में यीशु ने कैसे एक मिसाल रखी?

18 यीशु ने परमेश्‍वर के साथ “कारीगर” के तौर काम करके सृष्टि बनाने में हाथ बँटाया इसलिए वह पृथ्वी की चुंबकीय शक्‍ति से वाकिफ था, जिसका इस्तेमाल इंसान सही राह ढूँढ़ने के लिए करते हैं। (नीति. 8:30; यूह. 1:3) बाइबल यह नहीं बताती कि यीशु ने इस शक्‍ति का इस्तेमाल किया मगर अपनी जिंदगी के मार्गदर्शन के लिए यीशु ने इससे भी बेहतर शक्‍ति, यानी पवित्र शक्‍ति का सहारा लिया। उसने इस शक्‍ति के ज़बरदस्त असर को अपने जीवन में महसूस किया और जब भी पवित्र शक्‍ति ने उसे किसी काम के लिए उकसाया, उसने खुशी-खुशी उसके मार्गदर्शन को कबूल किया और उसके मुताबिक काम किया। (मर. 1:12, 13; लूका 4:14) क्या आप भी ऐसा करते हैं?

19. आप पवित्र शक्‍ति को अपनी ज़िंदगी में सही राह दिखाने का मौका कैसे दे सकते हैं?

19 परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति आज भी ऐसे लोगों के दिलो-दिमाग पर असर करती है जो उसके मार्गदर्शन को कबूल करने के लिए तैयार रहते हैं। आप पवित्र शक्‍ति को अपनी ज़िंदगी में सही राह दिखाने का मौका कैसे दे सकते हैं? यहोवा से लगातार प्रार्थना कीजिए कि वह आपको पवित्र शक्‍ति दे और इसके मार्गदर्शन में चलने के लिए आपकी मदद करे। (इफिसियों 3:14-16 पढ़िए।) फिर अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम करने के लिए बाइबल में खोजबीन कीजिए, जिसे लिखवाने के लिए परमेश्‍वर ने पवित्र शक्‍ति का इस्तेमाल किया। (2 तीमु. 3:16, 17) बाइबल में दिए निर्देशों को मानकर पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलिए। भरोसा रखिए कि यहोवा इस दुष्ट दुनिया में आपको सही राह दिखा सकता है।

[फुटनोट]

क्या आपने खास मुद्दों पर गौर किया?

• पवित्र शक्‍ति कैसे हमारी ज़िंदगी पर असर कर सकती है?

• परमेश्‍वर की शक्‍ति का मार्गदर्शन चाहने की चार वजह क्या हैं?

• परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन से पूरा-पूरा फायदा उठाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीर]

पवित्र शक्‍ति ने हमेशा यीशु का मार्गदर्शन किया

[पेज 17 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति लोगों के दिलो-दिमाग पर असर करती है और उन्हें मार्गदर्शन देती है