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पुराने ज़माने के वफादार सेवक परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चले

पुराने ज़माने के वफादार सेवक परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चले

पुराने ज़माने के वफादार सेवक परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चले

“प्रभु यहोवा ने और उसकी पवित्र शक्‍ति ने मुझे भेज दिया है।”—यशा. 48:16, NW.

1, 2. विश्‍वास ज़ाहिर करने के लिए हमें किस चीज़ की ज़रूरत है और पुराने ज़माने के वफादार लोगों की मिसाल पर गौर करने से हमें क्या फायदा होगा?

 हाबिल के ज़माने से ही लोगों ने विश्‍वास ज़ाहिर किया है, मगर “विश्‍वास हर किसी में नहीं होता।” (2 थिस्स. 3:2) तो फिर एक व्यक्‍ति यह गुण क्यों दिखा पाता है? काफी हद तक विश्‍वास, परमेश्‍वर के वचन का संदेश सुनने से होता है। (रोमि. 10:17) यह परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है। (गला. 5:22, 23) इसलिए इसे ज़ाहिर करने के लिए हमें पवित्र शक्‍ति की ज़रूरत है।

2 यह कहना सही नहीं होगा कि पैदाइश से ही लोगों में विश्‍वास होता है। हम विश्‍वास दिखानेवाले जिन सेवकों के बारे में बाइबल में पढ़ते हैं, वे भी ‘हमारी जैसी भावनाएँ रखनेवाले इंसान’ थे। (याकू. 5:17) उन्हें भी शंकाएँ होती थीं, वे भी असुरक्षित महसूस करते थे और उनमें भी कमज़ोरियाँ थीं। लेकिन चुनौतियों का सामना करने के लिए उन्हें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के ज़रिए “शक्‍तिशाली किया गया।” (इब्रा. 11:34) अगर हम इस बात पर गौर करें कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उन पर कैसे काम किया तो हमें भी उनकी वफादारी की मिसाल पर चलने का बढ़ावा मिलेगा, खासकर इस अंत के समय में जब हमारे विश्‍वास की परीक्षा ली जा रही है।

परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने मूसा की मदद की

3-5. (क) हम कैसे जानते हैं कि मूसा ने पवित्र शक्‍ति की मदद से काम किए? (ख) यहोवा जिस तरह से पवित्र शक्‍ति देता है उसके बारे में हम मूसा की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

3 ईसा पूर्व 1513 में जितने भी इंसान जीवित थे, उनमें से मूसा “बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (गिन. 12:3) परमेश्‍वर के इस नम्र सेवक को इसराएल राष्ट्र में भारी ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं। पवित्र शक्‍ति की मदद से मूसा ने भविष्यवाणियाँ कीं, लोगों का न्याय किया, अगुवाई की, किताबें लिखीं और कई चमत्कार किए। (यशायाह 63:11-14 पढ़िए।) लेकिन एक वक्‍त ऐसा आया जब मूसा ने परमेश्‍वर से कहा कि अब इस ज़िम्मेदारी का बोझ उठाना उसके बस के बाहर है। (गिन. 11:14, 15) इसलिए यहोवा ने मूसा को जो पवित्र शक्‍ति दी थी “उस में से कुछ लेकर” 70 लोगों को दी ताकि वे उसकी मदद कर सकें। (गिन. 11:16, 17) हालाँकि मूसा को अपना बोझ भारी लग रहा था मगर सच तो यह है कि वह उसे अकेले नहीं उठा रहा था, ना ही उन 70 पुरुषों को उसे अकेले उठाना था।

4 मूसा को अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए जितनी पवित्र शक्‍ति की ज़रूरत थी, उतनी परमेश्‍वर ने उसे दी। सत्तर पुरनियों को पवित्र शक्‍ति देने के बाद भी मूसा को उसकी कोई कमी नहीं हुई, ना ही उन पुरनियों को वह ज़रूरत से ज़्यादा मिली। जी हाँ, यहोवा हमें ज़रूरत के मुताबिक पवित्र शक्‍ति देता है। वह हमें “नाप-नापकर पवित्र शक्‍ति नहीं देता” बल्कि “भरपूर” मात्रा में देता है।—यूह. 1:16; 3:34.

5 क्या आप आज़माइशों का सामना कर रहे हैं? क्या आपकी ज़िम्मेदारियाँ इतनी बढ़ गयी हैं कि आपके पास समय ही नहीं बचता? क्या आपको बढ़ते हुए खर्चों और अपनी बीमारी के बावजूद परिवार की आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ती है? क्या आप पर मंडली की भारी ज़िम्मेदारियाँ हैं? यकीन रखिए कि परमेश्‍वर अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए आपको किसी भी हालत का सामना करने की ताकत दे सकता है।—रोमि. 15:13.

पवित्र शक्‍ति ने बसलेल को हुनरमंद बनाया

6-8. (क) यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने बसलेल और ओहोलीआब को क्या करने के काबिल बनाया? (ख) क्या बात साबित करती है कि पवित्र शक्‍ति ने बसलेल और ओहोलीआब का मार्गदर्शन किया? (ग) बसलेल का उदाहरण किस तरह हमारी हिम्मत बढ़ाता है?

6 बसलेल, मूसा के ही ज़माने में रहनेवाला परमेश्‍वर का एक सेवक था। उसके उदाहरण पर गौर करने से भी हम सीख सकते हैं कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति कैसे काम करती है। (निर्गमन 35:30-35 पढ़िए।) बसलेल को निवासस्थान के लिए ज़रूरी चीज़ें बनाने के काम का अगुवा नियुक्‍त किया गया था। यह एक बहुत बड़ा काम था जिसमें काफी वक्‍त और मेहनत लगती। लेकिन क्या उसे पहले इस काम का ज्ञान था? हो सकता है। लेकिन कुछ समय पहले तक शायद उसका काम था, मिस्रियों के लिए ईंटें बनाना। (निर्ग. 1:13, 14) तो फिर बसलेल इस जटिल काम को कैसे पूरा करता? यहोवा ने ‘उसको [“पवित्र शक्‍ति,” NW] से ऐसा परिपूर्ण किया कि सब प्रकार की बनावट के लिये उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला, कि वह कारीगरी की युक्‍तियां निकालकर बुद्धि से सब भांति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके।’ पवित्र शक्‍ति ने बसलेल के स्वाभाविक हुनर को और निखार दिया। ओहोलीआब के साथ भी यही हुआ। बसलेल और ओहोलीआब ने यह काम ज़रूर अच्छी तरह सीख लिया होगा क्योंकि उन्होंने ना सिर्फ खुद यह काम किया बल्कि दूसरों को भी इसकी तालीम दी। जी हाँ, परमेश्‍वर ने दूसरों को सिखाने के लिए उन्हें प्रेरित किया।

7 बसलेल और ओहोलीआब ने जो चीज़ें बनायीं वे पाँच-सौ साल बाद भी इस्तेमाल की जा रही थीं। (2 इति. 1:2-6) जी हाँ, उनका काम बहुत मज़बूत और टिकाऊ था। यह भी इस बात का सबूत है कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उनका मार्गदर्शन कर रही थी। बसलेल और ओहोलीआब, आज के उत्पादकों की तरह नहीं थे जो अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। उन्होंने अपने सब कामों का श्रेय यहोवा को दिया।—निर्ग. 36:1, 2.

8 आज हमें भी किसी मुश्‍किल काम को पूरा करने के लिए खास हुनर की ज़रूरत पड़ सकती है। मसलन, निर्माण काम, छपाई, अधिवेशनों के लिए इंतज़ाम, राहत-काम की देखरेख, खून के मामले में बाइबल के स्तरों के बारे में डॉक्टरों और अस्पताल के अधिकारियों से बातचीत। कभी-कभार हुनरमंद भाई ये काम करते हैं, लेकिन अकसर इन्हें ऐसे स्वयंसेवक करते हैं जिन्हें इन कामों को करने का प्रशिक्षण या तजुरबा नहीं होता। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की वजह से ही वे कामयाब हो पाते हैं। क्या आप इस वजह से परमेश्‍वर की सेवा में कोई ज़िम्मेदारी कबूल करने से पीछे हटे हैं क्योंकि आपको लगा कि दूसरे आप से ज़्यादा काबिल हैं? याद रखिए कि आपके पास जितना भी ज्ञान और हुनर है उसे पवित्र शक्‍ति और बढ़ा सकती है और इस तरह वह ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में आपकी मदद कर सकती है।

पवित्र शक्‍ति की मदद से यहोशू कामयाब हुआ

9. मिस्र से आज़ाद होने के बाद इसराएलियों को किन हालात का सामना करना पड़ा और इससे क्या सवाल उठा?

9 पवित्र शक्‍ति ने मूसा और बसलेल के अलावा उसी ज़माने के एक और इंसान की मदद की। मिस्र से आज़ाद होने के कुछ ही समय बाद इसराएलियों पर अचानक ही अमालेकियों ने हमला बोल दिया। हालाँकि इसराएलियों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं था मगर अब उन्हें अमालेकियों के खिलाफ जंग लड़नी थी। (निर्ग. 13:17; 17:8) युद्ध में अगुवाई लेने के लिए किसी की ज़रूरत थी। यह ज़िम्मेदारी किस के कंधों पर आती?

10. यहोशू की अगुवाई में इसराएली क्यों जीत हासिल कर पाए?

10 यहोशू को चुना गया। लेकिन अगर उससे पूछा जाता कि इस काम के लिए उसमें क्या योग्यताएँ हैं, तो वह क्या जवाब देता? यही कि वह पहले एक गुलाम था? ईंटें बनानेवाला मज़दूर था? या फिर मन्‍ना इकट्ठा करता था? यह सच है कि यहोशू का दादा एलीशामा, एप्रैम के गोत्र का प्रधान था और 1,08,100 लोगों की फौज का अगुवा था। (गिन. 2:18, 24; 1 इति. 7:26, 27) लेकिन फिर भी यहोवा ने मूसा के ज़रिए निर्देश दिया कि न तो एलीशामा और ना ही उसका बेटा नून बल्कि यहोशू, फौज का अगुवा होगा और वही दुश्‍मनों का खात्मा करेगा। यह जंग लगभग पूरे दिन चली। यहोशू ने यहोवा की बात मानी और पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन पर चला। इस वजह से इसराएल युद्ध में जीत हासिल कर सका।—निर्ग. 17:9-13.

11. यहोशू की तरह हम भी परमेश्‍वर की सेवा में कैसे कामयाब हो सकते हैं?

11 मूसा के बाद, इसराएल राष्ट्र की अगुवाई करने के लिए, “बुद्धिमानी की पवित्र शक्‍ति से परिपूर्ण” यहोशू को चुना गया। (व्यव. 34:9, NW) पवित्र शक्‍ति ने उसे मूसा की तरह भविष्यवाणी करने या चमत्कार करने की काबिलियत नहीं दी। लेकिन उसकी मदद से यहोशू, इसराएली फौज का काबिल अगुवा बन सका और कनानियों पर जीत हासिल कर सका। आज शायद हम सेवा के किसी खास काम के लिए खुद को काबिल न समझें। लेकिन हम यह भरोसा रख सकते हैं कि अगर हम यहोवा के निर्देशों को बारीकी से मानेंगे तो यहोशू की तरह हम भी ज़रूर कामयाब होंगे।—यहो. 1:7-9.

यहोवा की पवित्र शक्‍ति ‘गिदोन में समायी’

12-14. (क) सिर्फ 300 लोगों की छोटी इसराएली सेना ने जिस तरह बड़ी मिद्यानी सेना पर जीत हासिल की, उससे हम क्या सीखते हैं? (ख) यहोवा ने गिदोन को मदद का यकीन कैसे दिलाया? (ग) यहोवा आज हमें अपनी मदद का यकीन कैसे दिलाता है?

12 यहोशू की मौत के बाद भी यहोवा ने इस बात का सबूत दिया कि उसकी शक्‍ति वफादार लोगों को ताकत दे सकती है। न्यायियों की किताब में ऐसे कई लोगों के बारे में बताया गया है जिन्हें “कमज़ोर हालत से शक्‍तिशाली किया गया।” (इब्रा. 11:34) पवित्र शक्‍ति के ज़रिए परमेश्‍वर ने गिदोन को उभारा कि वह अपने लोगों की खातिर लड़े। (न्यायि. 6:34) लेकिन गिदोन की सेना दुश्‍मन सेना के मुकाबले बहुत छोटी थी। एक इसराएली सैनिक को चार मिद्यानी सैनिकों से लड़ना था। लेकिन यहोवा की नज़र में यह छोटी-सी इसराएली सेना भी बहुत बड़ी थी। उसने दो बार गिदोन की सेना को कम करवाया। इतना कम कि अब एक इसराएली को 450 मिद्यानी सैनिकों से लड़ना था। (न्यायि. 7:2-8; 8:10) यहोवा की यही मरज़ी थी। अगर इसराएली एक शानदार जीत हासिल करते तो क्या वे इस बात का घमंड कर सकते थे कि उनकी अपनी ताकत या बुद्धि की बदौलत ही उन्हें जीत मिली?

13 गिदोन और उसकी सेना युद्ध के लिए तैयार थी। अगर आप उसकी सेना में होते, तो क्या आप यह सोचकर खुश होते कि चलो, डरपोक और कमज़ोर सैनिक अब सेना में नहीं रहे? या फिर आप यह सोचकर थोड़ा डर जाते कि न जाने अब क्या होगा? गिदोन ने इस बारे में कैसा महसूस किया? उसे यहोवा पर पूरा भरोसा था और उसने वही किया जो उससे कहा गया। (न्यायियों 7:9-14 पढ़िए।) जब गिदोन ने यहोवा से एक निशानी के ज़रिए इस बात का यकीन दिलाने को कहा कि वह उसका साथ देगा, तो यहोवा नाराज़ नहीं हुआ। (न्यायि. 6:36-40) इसके बजाय, यहोवा ने उसका विश्‍वास मज़बूत किया।

14 यहोवा में अपने सेवकों को बचाने की असीम ताकत है। वह अपने लोगों को किसी भी मुसीबत से निकाल सकता है। ज़रूरत पड़ने पर वह लोगों की मदद करने के लिए ऐसों का भी इस्तेमाल कर सकता है जो कमज़ोर या लाचार नज़र आएँ। कई बार शायद हमें भी लगे कि हमारे दुश्‍मन बहुत हैं या हम मुसीबतों के दलदल में फँस चुके हैं। हम यह उम्मीद नहीं रखते कि परमेश्‍वर एक निशानी देकर हमें भरोसा दिलाएगा जैसे उसने गिदोन के साथ किया। लेकिन वह अपने वचन और पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में चलायी जानेवाली मंडली के ज़रिए हमें अपनी मदद का यकीन दिलाएगा और मार्गदर्शन देगा। (रोमि. 8:31, 32) यहोवा के प्यार-भरे वादे हमारा विश्‍वास मज़बूत करते हैं और हमें यकीन दिलाते हैं कि वह सच में हमारा मददगार है।

यहोवा की पवित्र शक्‍ति ‘यिप्तह में समा गयी’

15, 16. यिप्तह की बेटी त्याग की भावना क्यों दिखा पायी? इससे माता-पिताओं को क्या हौसला मिलता है?

15 एक और मिसाल पर गौर कीजिए। जब इसराएलियों को अम्मोनियों से लड़ना था, तब यहोवा की पवित्र शक्‍ति ‘यिप्तह में समा’ गयी। इसराएलियों की जीत से यहोवा की जयजयकार हो, इसलिए यिप्तह ने यहोवा से एक मन्‍नत मानी, जो बाद में उसे बहुत भारी पड़ी। उसने यह मन्‍नत मानी थी कि अगर परमेश्‍वर अम्मोनियों को उसके हाथ कर दे, तो घर लौटने पर जो भी सबसे पहले उससे मिलने आएगा उसे वह यहोवा को दे देगा। जब वह अम्मोनियों को धूल चटाकर लौटा, तो उसकी बेटी सबसे पहले उससे मिलने आयी। (न्यायि. 11:29-31, 34) क्या यिप्तह उसे देखकर चौंक गया? शायद नहीं, क्योंकि उसे इस बात का एहसास था कि शायद उसकी एकलौती बेटी ही सबसे पहले उससे मिलने आए। अपनी बेटी को शीलो में यहोवा के मंदिर में सेवा करने के लिए देकर उसने अपनी मन्‍नत पूरी की। यहोवा की सच्ची उपासक होने के नाते यिप्तह की बेटी को भी यही लगा कि उसके पिता की मन्‍नत पूरी की जानी चाहिए। (न्यायियों 11:36 पढ़िए।) यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उन दोनों को वह ताकत दी जिनकी उन्हें ज़रूरत थी।

16 यिप्तह की बेटी त्याग की भावना कैसे पैदा कर पायी? इसमें दो राय नहीं कि अपने पिता का जोश और परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति देखकर उसका विश्‍वास मज़बूत हुआ होगा। माता-पिताओ, आपके बच्चे भी आपके उदाहरण पर ध्यान देते हैं। आप जो फैसले लेते हैं उससे उन्हें पता चलता है कि आपका विश्‍वास सच्चा है या नहीं। जब आप तहेदिल से प्रार्थना करते हैं, उन्हें सिखाते हैं या दिलो-जान से यहोवा की सेवा करने के लिए मेहनत करते हैं तो आपके बच्चे आपकी मिसाल पर गौर करते हैं। आपकी अच्छी मिसाल देखकर उन्हें भी यहोवा की सेवा में खुद को दे देने का बढ़ावा मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो आपको कितनी खुशी होगी!

‘यहोवा की पवित्र शक्‍ति शिमशोन पर बल से उतरी’

17. पवित्र शक्‍ति की मदद से शिमशोन क्या कर पाया?

17 आइए अब हम शिमशोन की मिसाल पर ध्यान दें। जब पलिश्‍ती, इसराएलियों पर हुकूमत कर रहे थे तब उन्हें छुड़ाने के लिए शिमशोन को “यहोवा की पवित्र शक्‍ति उभारने लगी।” (न्यायि. 13:24, 25, NW) यहोवा ने शिमशोन को बेजोड़ ताकत दी जिस वजह से वह बड़े-बड़े काम कर पाया। जब पलिश्‍तियों के कहने पर कुछ इसराएलियों ने शिमशोन को कैद कर लिया तब “यहोवा की पवित्र शक्‍ति उस पर बल से उतरी, और उसकी बाँहों की रस्सियाँ आग में जले हुए सन के समान हो गयीं, और उसके हाथों के बंधन मानों गलकर टूट पड़े।” (न्यायि. 15:14, NW) बाद में अपनी गलती की वजह से वह अपनी ताकत खो बैठा। लेकिन यहोवा ने “विश्‍वास ही से” शिमशोन को एक बार फिर ताकतवर बनाया। (इब्रा. 11:32-34; न्यायि. 16:18-21, 28-30) उस ज़माने के हालात की वजह से, यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने शिमशोन पर बिलकुल अलग तरीके से काम किया। हालाँकि हमारे साथ ऐसा नहीं होता मगर फिर भी, ये ऐतिहासिक घटनाएँ हमारी हिम्मत बढ़ाती हैं। वह कैसे?

18, 19. (क) शिमशोन के उदाहरण से हमें किस बात का भरोसा मिलता है? (ख) इस लेख में परमेश्‍वर के वफादार सेवकों की जो मिसालें दी गयी हैं, उन पर गौर करके आपको क्या फायदा हुआ?

18 हम भी उसी पवित्र शक्‍ति पर भरोसा रखते हैं जिस पर शिमशोन का भरोसा था। यीशु ने हमें ‘लोगों को प्रचार करने और अच्छी तरह गवाही देने’ का काम दिया है। (प्रेषि. 10:42) इस काम में हिस्सा लेने के ज़रिए हम पवित्र शक्‍ति पर अपना भरोसा दिखाते हैं। प्रचार करने के लिए जो हुनर ज़रूरी हैं, वे शायद स्वाभाविक तौर पर हममें ना हों। लेकिन हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देता है ताकि हम उसका दिया हुआ हर काम कर पाएँ। इसलिए जब हम प्रचार में हिस्सा लेते हैं तो हम भी भविष्यवक्‍ता यशायाह की तरह कह पाते हैं: “प्रभु यहोवा ने और उसकी पवित्र शक्‍ति ने मुझे भेजा है।” (यशा. 48:16, NW) जी हाँ, यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने हमें भेजा है। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि इस काम को पूरा करने के लिए यहोवा हमारी काबिलीयतों को बढ़ाएगा, ठीक जैसे उसने मूसा, बसलेल और यहोशू के साथ किया था। हम “पवित्र शक्‍ति की तलवार, यानी परमेश्‍वर का वचन” इस्तेमाल करेंगे और यह भरोसा रखेंगे कि जिस तरह उसने गिदोन, यिप्तह और शिमशोन को ताकत दी, उसी तरह वह हमें भी ताकत देगा। (इफि. 6:17, 18) जिस तरह शिमशोन शारीरिक तौर पर ताकतवर था, हम आध्यात्मिक तौर पर ताकतवर हो सकते हैं, बशर्ते हम मुश्‍किलों के दौर में मदद के लिए यहोवा पर निर्भर रहें।

19 यहोवा अपने उन सेवकों को आशीष देता है जो हिम्मत के साथ सच्ची उपासना में लगे रहते हैं। जब हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, तो हमारा विश्‍वास और मज़बूत हो जाता है। मसीही यूनानी शास्त्र में कई दिलचस्प घटनाएँ दर्ज़ हैं जो यह दिखाती हैं कि किस तरह ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के पहले और बाद में यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उसके सेवकों का मार्गदर्शन किया। अगले लेख में हम इन्हीं में से कुछ पर चर्चा करेंगे।

जिस तरह पवित्र शक्‍ति ने इन पर काम किया, उससे आपको कैसे हिम्मत मिलती है?

• मूसा

• बसलेल

• यहोशू

• गिदोन

• यिप्तह

• शिमशोन

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 22 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

पवित्र शक्‍ति हमें आध्यात्मिक तौर पर ताकतवर बना सकती है जिस तरह उसने शिमशोन को शारीरिक तौर पर बनाया

[पेज 21 पर तसवीर]

माता-पिताओ, आपकी मिसाल का असर आपके बच्चों पर होगा