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बीमारी आपकी खुशी छीनने न पाए!

बीमारी आपकी खुशी छीनने न पाए!

बीमारी आपकी खुशी छीनने न पाए!

ज़रा सोचिए, अगर नया सवेरा आपके लिए उम्मीदों की सौगात के बजाय निराशा का अंधेरा लेकर आए तो आपको कैसा लगेगा। शरीर और मन में उठ रहे दर्द के कारण शायद आप दिन के शुरू होने से पहले ही उसके खत्म होने की दुआ करने लगें और अय्यूब की तरह महसूस करें जिसने कहा कि वह “जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है।” (अय्यू. 7:15) और तब क्या अगर आपको सालों तक इस हालत से छुटकारा ना मिले?

राजा दाविद के दोस्त, योनातन के बेटे मपीबोशेत की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। जब वह पाँच साल का था तब “वह गिरके लंगड़ा हो गया।” (2 शमू. 4:4) उसे इस बात का गम तो रहा ही होगा, ऊपर से जब उस पर राजा को दगा देने का झूठा इलज़ाम लगाया गया और उसे अपनी जायदाद से हाथ धोना पड़ा, तो उसका दर्द और भी बढ़ गया होगा। लेकिन इन सबके बावजूद उसने अपनी खुशी बरकरार रखी। निराशा, कमज़ोरी और गलत इलज़ाम लगाए जाने पर भी उसने मज़बूत बने रहने की एक अच्छी मिसाल कायम की।—2 शमू. 9:6-10; 16:1-4; 19:24-30.

प्रेषित पौलुस भी इस मामले में एक अच्छी मिसाल है। उसने एक बार कहा कि उसके “शरीर में एक काँटा” है, जिसकी चुभन उसे सहनी थी। (2 कुरिं. 12:7) पौलुस यहाँ जिस काँटे का ज़िक्र कर रहा था, वह शायद उसकी कोई शारीरिक तकलीफ थी, जिससे वह एक लंबे अरसे से जूझ रहा था। या फिर हो सकता है कि वह ऐसे लोगों का ज़िक्र कर रहा था जो प्रेषित के तौर पर उसके अधिकार को मानने से इनकार कर रहे थे। वजह चाहे जो भी हो, यह एक ऐसी तकलीफ थी जो काफी समय तक रही और जिसकी वजह से पौलुस को शारीरिक या मानसिक तौर पर दर्द सहना पड़ा।—2 कुरिं. 12:9, 10.

आज के ज़माने में भी यहोवा के कई सेवक गंभीर बीमारी या मानसिक पीड़ा के शिकार हुए हैं। अठारह साल की उम्र में मागडालेना को पता चला कि उसे एक ऐसी बीमारी है जिसमें उसका रोग-प्रतिरक्षा तंत्र उसी के शरीर के अंगों पर धावा बोल देता है (इसे सिस्टमिक लूपस एरिथेमटोसस कहते हैं)। वह कहती है, “मैं बहुत डर गयी थी। समय के गुज़रते मेरी हालत और भी खराब होती गयी। मेरा हाज़मा खराब हो गया, मुँह में छाले पड़ गए और मुझे थायरॉइड की बीमारी भी हो गयी।” ईज़ाबेला की परेशानी कुछ और है। वह कहती है: “बचपन से ही मैं गहरी हताशा की शिकार थी। इस वजह से मुझे अचानक से बहुत घबराहट होने लगती, कभी साँस लेने में तकलीफ होती और पेट में मरोड़ उठता। मैं अकसर बहुत थकान महसूस करती हूँ।”

सच्चाई से दो-चार होना

यह सच है कि बीमारी और तकलीफें आपका जीना दूभर कर सकती हैं। लेकिन ऐसे में ठंडे दिमाग से अपनी हालत का जायज़ा लेना काफी फायदेमंद हो सकता है। इस सच्चाई को कबूल करना शायद आसान न हो कि अब आप पहले की तरह काम नहीं कर पाएँगे। मागडालेना कहती है: “वक्‍त के साथ मेरी बीमारी और बढ़ती जाएगी। मैं कई बार इतनी थकान महसूस करती हूँ कि बिस्तर से उठने का मेरा जी नहीं करता। मैं अपनी बीमारी की वजह से पहले से कुछ योजना नहीं बना पाती क्योंकि मेरी हालत किसी भी वक्‍त खराब हो सकती है। मुझे सबसे बुरा तो यह लगता है कि मैं परमेश्‍वर की सेवा में पहले जितना नहीं कर पाती।”

ज़्बीगनेव कहता है: “जैसे-जैसे साल गुज़रते हैं, गठिया (आरथराइटिस) की वजह से मेरी ताकत खत्म होती जा रही है। एक-के-बाद-एक मेरे शरीर के अलग-अलग जोड़ों में दर्द होने लगा है और कई बार तो उनमें इतनी सूजन हो जाती है कि मैं छोटे-से-छोटा काम भी नहीं कर पाता। इससे मैं बहुत निराश हो जाता हूँ।”

कुछ सालों पहले डॉक्टरों ने पता लगाया कि बारबारा के दिमाग में ट्यूमर है जो धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वह कहती है: “मेरे शरीर में अचानक कई बदलाव हुए हैं। मुझमें कुछ भी करने की ताकत नहीं बची। मुझे अकसर सिरदर्द रहता है। इस बीमारी की वजह से मुझे गंभीरता से इस बारे में सोचना पड़ा कि मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं।”

ये सभी यहोवा के समर्पित सेवक हैं और उसकी सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। वे परमेश्‍वर पर भरोसा रखते हैं और सहारे के लिए उस पर निर्भर रहते हैं।—नीति. 3:5, 6.

यहोवा कैसे मदद करता है?

हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हम इसलिए बीमार हैं क्योंकि यहोवा हमसे नाराज़ है। (विला. 3:33) याद कीजिए कि “खरा और सीधा” होने के बावजूद अय्यूब को कितनी मुश्‍किलें झेलनी पड़ी थीं। (अय्यू. 1:8) परमेश्‍वर बुरी बातों से किसी की परीक्षा नहीं लेता। (याकू. 1:13) सभी बीमारियाँ, फिर चाहे वे गंभीर शारीरिक बीमारियाँ हों या फिर मानसिक, हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा के पाप की वजह से हमें विरासत में मिली हैं।—रोमि. 5:12.

यहोवा और यीशु मसीह उनके स्तरों पर चलनेवालों की मदद ज़रूर करते हैं। (भज. 34:15) खासकर ज़िंदगी के मुश्‍किल पलों में हमें एहसास होता है कि परमेश्‍वर हमारा “शरणस्थान और गढ़ है।” (भज. 91:2) तो फिर ऐसे में भी जब हम जानते हैं कि हमारी मुश्‍किल आसानी से हल नहीं होनेवाली, हम अपनी खुशी बरकरार रखने के लिए क्या कर सकते हैं?

प्रार्थना: पुराने ज़माने के परमेश्‍वर के वफादार सेवकों की तरह आप भी प्रार्थना करके अपना बोझ यहोवा पर डाल सकते हैं। (भज. 55:22) ऐसा करके आप ‘परमेश्‍वर की उस शांति’ का अनुभव करेंगे “जो हमारी समझने की शक्‍ति से कहीं ऊपर है।” यह शांति ‘दिल के साथ-साथ आपके दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।’ (फिलि. 4:6, 7) प्रार्थना के ज़रिए यहोवा पर भरोसा रखकर मागडालेना अपने हालात का सामना कर पाती है। वह कहती है: “दिल खोलकर यहोवा से बात करके मुझे राहत मिलती है और मेरी खुशी लौट आती है। मैं अब समझ पा रही हूँ कि हर दिन यहोवा पर निर्भर रहने का असली मतलब क्या है।”—2 कुरिं. 1:3, 4.

यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति, अपने वचन और मसीही भाई-बहनों के ज़रिए आपको ताकत देकर आपकी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। आपको यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि यहोवा कोई चमत्कार करके आपकी तकलीफ दूर कर देगा। लेकिन आप इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको हर संकट से निपटने के लिए बुद्धि और ताकत देगा। (नीति. 2:7) जी हाँ, ऐसी ताकत “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।”—2 कुरिं. 4:7.

परिवार: अगर आपके घर में प्यार और करुणा का माहौल हो तो आपके लिए बीमारी को सहना ज़्यादा आसान हो जाएगा। हो सकता है कि आप अपनी बीमारी की वजह से खुद को बेबस महसूस करें, मगर याद रखिए कि आपके अपने भी ऐसा ही महसूस करते हैं। आपकी बीमारी की वजह से उन्हें भी तकलीफ होती है, फिर भी इस मुश्‍किल दौर में वे आपका साथ दे रहे हैं। अगर पूरा परिवार साथ मिलकर प्रार्थना करे तो आपको मन की शांति मिलेगी।—नीति. 14:30.

बारबारा, अपनी बेटी और मंडली की दूसरी जवान बहनों के बारे में कहती है: “वे प्रचार में मेरी मदद करती हैं। उनका जोश देखकर मेरा दिल खिल उठता है।” ज़्बीगनेव अपनी पत्नी की मदद की बहुत कदर करता है। “वह घर का ज़्यादातर काम अकेले ही सँभाल लेती है। वह कपड़े पहनने में मेरी मदद करती है और अकसर सभाओं और प्रचार में जाते वक्‍त मेरा बैग उठाती है।”

मसीही भाई-बहन: जब हम भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताते हैं तो हमें दिलासा मिलता है और हमारी हिम्मत बढ़ती है। लेकिन तब क्या जब आप अपनी बीमारी की वजह से सभाओं में न जा पाएँ? मागडालेना कहती है: “मंडली ने मेरे लिए सभाओं के कार्यक्रम को रिकॉर्ड करने का इंतज़ाम किया है ताकि मुझे भी उनसे फायदा हो। भाई-बहन अकसर मुझसे फोन करके कहते हैं कि अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मैं उन्हें बता दूँ। वे मुझे हौसला बढ़ानेवाले खत भी भेजते हैं। बस यह एहसास कि वे मुझे याद करते हैं और मेरी परवाह करते हैं, मुझे अपनी तकलीफ सहने में बहुत मदद देता है।”

ईज़ाबेला, जिसे हताशा की बीमारी है, कहती है: “मंडली में मैंने कई ‘माता-पिता’ पाएँ हैं जो मेरी सुनते हैं और मुझे समझने की कोशिश करते हैं। मंडली मेरा परिवार है और वहीं मुझे शांति और खुशी मिलती है।”

जो तकलीफों से गुज़र रहे हैं, उन्हें खुद को “औरों से अलग” नहीं करना चाहिए। इसके बजाय उन्हें मंडली के साथ संगति का मज़ा लेना चाहिए। (नीति. 18:1) इससे मंडली के दूसरे भाई-बहनों को भी काफी हौसला मिल सकता है। शुरू-शुरू में शायद आप भाई-बहनों को अपनी ज़रूरतें बताने में झिझक महसूस करें। लेकिन अगर आप खुलकर उन्हें बताएँ, तो वे आपकी ज़रूरत को अच्छी तरह समझ पाएँगे और उन्हें “भाईचारे का निष्कपट प्यार” दिखाने का मौका मिलेगा। (1 पत. 1:22) जैसे, आप उनसे कह सकते हैं कि आपको सभाओं तक पहुँचने के लिए उनकी मदद चाहिए, या आप उनके साथ प्रचार में काम करना चाहते हैं, या फिर यह कि आप उनसे दिल खोलकर बात करना चाहते हैं। बेशक हमें उनसे बहुत ज़्यादा की माँग नहीं करनी चाहिए बल्कि जो भी मदद वे कर सकें, उसकी कदर करनी चाहिए।

सही रवैया: गंभीर बीमारी से लड़ते हुए आप अपनी खुशी बरकरार रख पाएँगे या नहीं, इसका फैसला काफी हद तक आपके हाथ में है। अगर आप गम में डूबे और मायूस होकर बैठे रहें तो इससे आपके मन में बुरे खयाल आ सकते हैं। बाइबल कहती है: “रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से सम्भलता है; परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है?”—नीति. 18:14.

मागडालेना कहती है: “मैं पूरी कोशिश करती हूँ कि मैं अपनी परेशानियों के बारे में ज़्यादा ना सोचूँ। जिस दिन मेरी तबियत ठीक रहती है, मैं उस दिन खुश रहने की कोशिश करती हूँ। मुझे ऐसे लोगों की जीवन कहानियाँ पढ़ने से काफी हौसला मिलता है, जो मेरी तरह किसी गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद यहोवा के वफादार रहे।” ईज़ाबेला को यह याद रखने से काफी मदद मिलती है कि यहोवा उससे प्यार करता है और उसकी कदर करता है। वह कहती है: “मैं महसूस करती हूँ कि कोई है जो मेरी फिक्र करता है, जिसके लिए मुझे जीना है। और मेरे पास भविष्य के लिए एक शानदार आशा भी है।”

ज़्बीगनेव कहता है: “मेरी बीमारी ने मुझे नम्रता और आज्ञा मानना सिखाया। दूसरों के हालात अच्छी तरह समझने, सूझ-बूझ से काम लेने और दिल से माफ करने के बारे में भी मैंने कई सबक सीखे हैं। मैंने खुद पर तरस खाए बिना खुशी से यहोवा की सेवा करना भी सीखा। इसके अलावा मुझे आध्यात्मिक तरक्की करते रहने की भी प्रेरणा मिली है।”

याद रखिए कि यहोवा इस बात पर ध्यान देता है कि आप किस तरह तकलीफों के बावजूद धीरज धर रहे हैं। वह आपका दर्द समझता है और आपकी परवाह करता है। वह आपके ‘काम और उस प्यार को नहीं भूलेगा जो आपने उसके नाम के लिए दिखाया है।’ (इब्रा. 6:10) यह मत भूलिए कि परमेश्‍वर ने अपने भय माननेवालों से क्या वादा किया है। वह कहता है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।”—इब्रा. 13:5.

अगर कभी आपकी हिम्मत टूटने लगे तो नयी दुनिया में जीने की अपनी आशा के बारे में सोचिए। वह वक्‍त जल्द आ रहा है जब आप खुद अपनी आँखों से उन आशीषों को देख पाएँगे जो परमेश्‍वर का राज इस धरती पर लाएगा!

[पेज 28 पर बाक्स/तसवीरें]

वे गंभीर बीमारी के बावजूद प्रचार में लगे रहते हैं

“अब मैं बिना सहारे के नहीं चल पाता इसलिए प्रचार में मेरी पत्नी या दूसरे भाई-बहन मेरे साथ आते हैं। मैं अपनी पेशकश और बाइबल की आयतें याद कर लेता हूँ।”—येज़ी, जिसकी आँखों की रोशनी चली गयी है।

“टेलीफोन पर गवाही देने के अलावा, मैं दूसरों को खत भी लिखती हूँ और इस तरह नियमित तौर पर कुछ दिलचस्पी रखनेवालों के संपर्क में रहती हूँ। जब मैं अस्पताल में होती हूँ तो मैं अपने बिस्तर के पास बाइबल और हमारे साहित्य रखती हूँ। इससे मुझे कई लोगों के साथ बातचीत करने के अच्छे मौके मिले हैं।”—मागडालेना, जिसे सिस्टमिक लूपस एरिथेमटोसस नाम की बीमारी है।

“मुझे घर-घर की सेवा बहुत पसंद है लेकिन जब मुझसे यह नहीं हो पाता तो मैं टेलिफोन के ज़रिए लोगों को गवाही देती हूँ।”—ईज़ाबेला, जिसे हताशा की बीमारी है।

“मुझे वापसी भेंट करना और दूसरों के साथ बाइबल अध्ययन में जाना बहुत अच्छा लगता है। जब मैं थोड़ा ठीक महसूस करती हूँ, तब मैं घर-घर की सेवा में जाना पसंद करती हूँ।”—बारबारा, जिसके दिमाग में ट्यूमर है।

“मैं प्रचार में एक हलका बैग ले जाता हूँ। जोड़ों के दर्द के चलते जितनी देर मैं सेवा कर सकूँ, बस उतनी देर ही करता हूँ।”—ज़्बीगनेव, जिसे गठिया है।

[पेज 30 पर तसवीर]

बच्चे हों या बड़े, सभी हौसला बढ़ा सकते हैं